क्या यह दुनिया का वित्तीय भविष्य है? या एक घोटाला है? या इससे भी बुरा, यह धन शोधन (money laundering) और धोखाधड़ी को आसान बनाने वाला एक बिल्कुल नया ज़रिया है? सरकार ने क्रिप्टोकरेंसी (cryptocurrencies) का नियमन (regulate) करने के लिए एक नया कानून लाने के लिए संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक सूचीबद्ध किया है. हालांकि, इस विधेयक के प्रस्ताव ठीक-ठीक रूप में अब भी सार्वजनिक विमर्श के लिए उपलब्ध नहीं हैं. लेकिन यह मामला नीति-निर्माताओं के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता में बना हुआ है, यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) क्रिप्टो (Crypto) से जुड़े जोखिमों/अवसरों के बारे में इशारा कर चुके हैं.
कई मामलों में, अपनी घरेलू मुद्रा प्रचलित होने के बावजूद, अमेरिकी डॉलर (या दूसरी ‘हार्ड करेंसी’) को विनिमय (exchange) के साधन के रूप में ज्यादा पसंद किया जाता है.
पहले सिद्धांतों के स्तर पर शुरुआत करते हुए, यह एक बढ़िया मौक़ा है भारत में क्रिप्टो के नियमन से जुड़ी संभावनाओं को तलाशने का.
क्रिप्टो- मुद्रा या फिर परिसंपत्ति श्रेणी (Asset class)?
वैकल्पिक मुद्रा? बेचैनी की बुनियादी वजह है यह
fiat currency (फिअट करेंसी उस मुद्रा को कहते हैं, जो सोने या किसी अन्य कमोडिटी से समर्थित न हो) जारी करने का एकाधिकार राष्ट्र राज्य (nation state) की मूल ढांचागत विशेषताओं में से एक है. हिंसा पर क़ानूनी एकाधिकार के साथ, यह एकाधिकार आधुनिक राष्ट्र को आर्थिक सामाजिक अनुबंधों- व्यापार, बैंकिंग, टैक्स, असंतुलनों को ठीक करने के लिए सरकारी दख़ल इत्यादि- की लगाम अपने हाथ में रखने की शक्ति देता है.
फिअट करेंसी के साथ प्रतिस्पर्धा करती एक निजी क्रिप्टोकरेंसी इस व्यवस्था को उलट-पुलट कर सकती है. देशों के लिए गैर-घरेलू फिअट करेंसी पर निर्भर करना कोई अनोखी बात नहीं है. दर्जनों की तादाद में अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देश हैं जहां अमेरिकी डॉलर बिना किसी निर्देश के प्राथमिक मुद्रा की तरह इस्तेमाल होते रहा है (और अब भी हो रहा है). इसके अलावा कई मामलों में, अपनी घरेलू मुद्रा प्रचलित होने के बावजूद, अमेरिकी डॉलर (या दूसरी ‘हार्ड करेंसी’) को विनिमय (exchange) के साधन के रूप में ज्यादा पसंद किया जाता है. लेकिन ये सभी मामले उन देशों के हैं जो राज्य के रूप में अपना भरोसा गंभीर रूप से या पूरी तरह खो चुके हैं. हाल के समय में ज़िम्बाब्वे, वेनेजुएनला ऐसे मामलों की नुमाइंदगी करते हैं, जहां राज्य की शासन क्षमता पर बड़े पैमाने पर सवाल है, जिसका नतीजा है राज्य के उपकरणों (जिसमें उसकी फिअट करेंसी भी शामिल है) पर से भरोसा उठ जाना. कुछ मायनों में, यह हिंसा पर राज्य के एकाधिकार पर से भरोसा उठ जाने के नतीजतन, अपनी सुरक्षा के लिए निजी व्यक्तियों द्वारा निजी सेना (private militia) खड़ा करने जैसा है.
जब तक पर्याप्त बड़ी तादाद में लोग विश्वास करते हैं कि फ़लां उपकरण उनके लिए एक मूल्य का भंडार है, वह उपकरण मूल्य का भंडार होने की स्व-योग्यता हासिल कर लेता है, और उसे एक परिसंपत्ति श्रेणी के रूप में जाना जाता है.
लेकिन घरेलू अर्थव्यवस्थाओं के ‘डॉलरीकरण’ (Dollarisation) का मौद्रिक और राजकोषीय नीति की निर्धारण-व्यवस्था पर गंभीर असर होता है. अगर किसी देश में विदेशी सरकार द्वारा जारी मुद्रा का प्रचलन हावी हो, तो घरेलू केंद्रीय बैंक अर्थव्यस्था में तरलता (liquidity) को प्रबंधित करने और ब्याज दरों को प्रभावित करने की क्षमता खो देते हैं. इतना ही नहीं, घरेलू केंद्रीय बैंक सीनियोरेज राजस्व (seigniorage revenue) से हाथ धो बैठते हैं- यह वो कमाई है जो हर जारी किये गये करेंसी नोट पर 0% ब्याज और उसी करेंसी नोट को केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज वाले घरेलू वित्तीय उपकरणों (जैसे बैंक रिजर्व, गवर्नमेंट सिक्योरिटीज इत्यादि) में लगाने से हासिल ब्याज के अंतर से होती है. नतीजतन, डॉलरीकृत देशों को अंतत: यूएस फेड (अमेरिकी केंद्रीय बैंक) की मौद्रिक नीति का आयात करना पड़ता है और अपना सीनियोरेज राजस्व यूएस फेड के हाथों गंवाना पड़ता है.
निजी मिल्कियत वाली करेंसी
‘करेंसी’ के रूप में निजी क्रिप्टो से इसी तरह के संभावित असर का डर होना उचित ही है. जिस तरह ‘डॉलरीकरण’ का प्रभावी नतीजा किसी अर्थव्यवस्था में अमेरिकी मौद्रिक और राजकोषीय नीति के आयात के रूप में होता है, उसी तरह ‘क्रिप्टोकरण’ (Crypto-isation) का मतलब होगा निजी मिल्कियत वाली करेंसी द्वारा लायी गयी मौद्रिक नीति का आयात करना. विनिमय के माध्यम के रूप में क्रिप्टो की सर्वव्यापकता जितनी ज्यादा विकसित होगी, घरेलू मौद्रिक नीति का मौद्रिक समुच्चय (monetary aggregates)- ब्याज दरों, मनी सप्लाई, पूंजी प्रवाह- पर से प्रभाव उतना कम होता जायेगा. अगर एक मौद्रिक प्रणाली निजी मिल्कियत वाली करेंसी के भारी असर में है, तो बृहत् स्थिरता (macro stability) पर बड़े और अप्रत्याशित tail-risks (एक तरह का वित्तीय जोखिम) होंगे, जिसका अनुमान लगा पाने, मॉडल बना पाने और जवाबी कदम उठा पाने में कोई केंद्रीय बैंक सक्षम नहीं होगा. एक निजी मिल्कियत वाली मुद्रा प्रणाली के tail-risks का मॉडल तैयार करने के लिए कोई डाटा ही मौजूद नहीं है. भारत जैसी अर्थव्यवस्था, जो शुद्ध व्यापार घाटे और एक गैर-परिवर्तनीय मुद्रा (non-convertible currency) से संचालित है, के लिए यह ख़तरा और भी बढ़ जाता है. निजी मिल्कियत वाले क्रिप्टो से उपजा अप्रत्याशित पूंजी प्रवाह प्रणालीगत स्थिरता को नुक़सान पहुंचा सकता है. सुधारात्मक कदम उठाने की नीति-निर्माताओं की क्षमता के मुक़ाबले यह कहीं ज्यादा तेज़ी से हो सकता है. अंतिम बात जो कतई कम अहम नहीं है, क्रिप्टो के गुमनामी हस्ताक्षरों को देखते हुए, वे गैरक़ानूनी लेनदेन और फाइनेंस का स्रोत हो सकते हैं, जो ज्यादातर देशों के धोखाधड़ी जोखिम और अनुपालन संबधी लियाक़त पर दबाव बढ़ायेगा.
परिसंपत्ति श्रेणी (asset class) के बतौर क्रिप्टो : उपयोग-उपयुक्तता (use-case) के लिहाज़ से ज्यादा वाजिब
आज मौजूद हर परिसंपत्ति श्रेणी- करेंसी, बॉन्ड, इक्विटी, कमोडिटी, गोल्ड- का एक बुनियादी गुण है- इन सबको ‘मूल्य का भंडार’ (store of value) माना जाता है. मूल्य का भंडार होने के लिए, उस उपकरण (instrument) के साथ या तो कैश फ्लो (बांड, इक्विटी), या सॉवरेन गांरटी (फिअट करेंसी, जैसे भारतीय रुपये या अमेरिकी डॉलर), या फिर असल ज़िंदगी में इस्तेमाल की चीज़ें (कमोडिटी) जुड़ी होनीं चाहिए. ठीक इसी परिभाषा से, क्या बिटकॉइन जैसे क्रिप्टो एक परिसंपत्ति श्रेणी कहलाने योग्य हैं? Michael Novogratz (गैलेक्सी डिजिटल होल्डिंग्स) के सह-संस्थापक कहते हैं, यह है, क्योंकि ‘दुनिया ने इस पक्ष में मत दिया है कि वे विश्वास करते हैं’ कि यह है. सच में, यह किसी भी चीज के लिए मूल्य का भंडार होने की कसौटी है. जब तक पर्याप्त बड़ी तादाद में लोग विश्वास करते हैं कि फ़लां उपकरण उनके लिए एक मूल्य का भंडार है, वह उपकरण मूल्य का भंडार होने की स्व-योग्यता हासिल कर लेता है, और उसे एक परिसंपत्ति श्रेणी के रूप में जाना जाता है.
दुनिया के सबसे सक्रिय इनोवेशन हॉटस्पॉट में से एक होने के नाते, भारत के पास क्रिप्टो इकोसिस्टम विकसित करने में दुनिया की अगुवाई करने का बड़ा मौक़ा है.
इस बात पर उतना विवाद नहीं है कि क्रिप्टो परिसंपत्तियां विकेंद्रीकृत वित्त (Decentralised Finance या DeFi), सुरक्षित डाटा भंडारण, नॉन-फंजिबल टोकेन्स (NFT) और सीमा-पार फंड ट्रांसफर जैसी महत्वपूर्ण संभावित उपयोग-उपयुक्तता (use-case) रखती हैं. इन उपयोग-उपयुक्ताताओं ने नेटवर्क की जो ताक़त विकसित की है, वह अत्यधिक मूल्यवान है. जिस तरह डिजिटल कंपनियां अपने मूल्य का बड़ा हिस्सा उस डाटा की शक्ति से प्राप्त करती हैं जिसे वह एक्सेस करती हैं और उस नेटवर्क बाह्यता (externalities) से प्राप्त करती हैं जिसे वे उत्पन्न करती हैं, ठीक उसी तरह क्रिप्टो के उन ज़बरदस्त उपयोगी अप्लीकेशन्स को वही रास्ता अपनाना चाहिए.
वैश्विक स्तर पर नियमन का मौजूदा परिदृश्य
मीडिया में चलने वाली आम टिप्पणी के उलट, दुनिया के बड़े हिस्से ने क्रिप्टो को उत्साह भरे आशावाद के साथ ज्यादा लिया है, बजाय कि उससे पूरी तरह शत्रुता के. अनुमति के स्तर अलग-अलग है. कहीं इसे उत्साह से गले लगाया गया है (जैसे अल सल्वाडोर बिटकॉइन को आधिकारिक मुद्रा का दर्जा दे चुका है), तो कहीं पर न चाहते हुए भी मंज़ूरी दी गयी है (जैसे अमेरिका, जहां संशयग्रस्त SEC ने हाल ही में दो क्रिप्टो ईटीएफ को अनुमति दी है). क्रिप्टो को लेकर चिंता और शत्रुता का भाव अफ्रीका के विभिन्न हिस्सों और एशिया में ज्यादा दिखता है. यह स्वाभाविक भी है क्योंकि यही वो अर्थव्यवस्थाएं हैं जिनको बृहत् स्थिरता (macro stability) को लेकर डर सबसे ज्यादा है. उन्नत अर्थव्यवस्थाएं, कमोबेश, ‘सैंडबॉक्स’ (किसी परीक्षण के लिए सुरक्षित स्थल) दृष्टिकोणों के इर्दगिर्द घूमती रही हैं, जहां क्रिप्टो की जिग्सॉ पहेली के चुनिंदा टुकड़ों को नतीजों को खोजने और परखने के लिए सक्रियतापूर्वक प्रोत्साहित किया जाता है.
भारत को किस तरह के नियमन में जाना चाहिए
भारत के लिए कुछ सवाल अपना जवाब ख़ुद रखते हैं, लेकिन कुछ पर सावधानी के साथ विश्लेषण और विचार-विमर्श की जरूरत है.
मुद्रा के रूप में क्रिप्टो भारत के लिए साफ़ ‘न’ हैं, और दुनिया के बहुसंख्य देशों के लिए भी ‘न’ ही होंगे. एक बड़ी और जटिल अर्थव्यवस्था जिसके बहुत सारे और बढ़ते लिंकेज हों, वह बृहत् (macro) अस्थिरता को बोझ नहीं झेल सकती. हम यक़ीनन विकास-क्रम की उस अवस्था में नहीं हैं, जहां राज्य मुद्रा जारी करने जैसे राज्य के एकाधिकार के मूल सिद्धांतों को साझा कर सके.
धोखाधड़ी से बचाव और नियंत्रण. आम विश्वास के उलट, आंकड़े दिखाते हैं कि दुनिया में हुए कुल क्रिप्टो लेनदेन के बहुत छोटा हिस्से (चेनएनालिसिस की क्रिप्टो क्राइम रिपोर्ट के मुताबिक़ 34%) का इस्तेमाल ही गैरक़ानूनी लेनदेन के लिए हुआ है. अगर यह आंकड़ा सच है, तो यह पारंपरिक वित्तीय प्रणालियों के जरिये होने वाले गैरक़ानूनी लेनदेन के हिस्से से कम है. अगर यह आंकड़ा इससे ऊपर भी हो, और (गैरक़ानूनी लेनदेन के लिए) संभावना भी और ज्यादा हो, तो सबसे बढ़िया हल है किप्टो का गेटेड ट्रेड्रिंग रूम्स (GTR) के ज़रिये नियमन करना. जीटीआर बड़े, राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त और विनियमित इंटरमीडिएरी (regulated intermediaries) होते हैं. कई सदियों के क्रम में वित्त जगत में निगरानी की जो प्रणाली पर्त-दर-पर्त तैयार हुई है, वह वित्त क्षेत्र में शामिल की गयी दूसरी परिसंपत्ति श्रेणी के लिए भी मज़े से काम करेगी. ये जीटीआर- एक विनयमित भारतीय ‘कॉइनबेस’ (Coinbase) की कल्पना कीजए- पूंजी को आकर्षित करेंगे और उच्च स्तर का अनुपालन (compliance) सुनिश्चित करने में निहित हित की सृष्टि करेंगे. ऐसे इंटरमीडएरीज और देशों के बीच वैश्विक समन्वय इसका अगला चरण होगा- बीते दो-तीन दशकों में इस व्यवस्था का एक मानक प्रारूप पहले ही तैयार हो चुका है. सूचनाओं का स्वचालित आदान-प्रदान, वैश्विक स्तर पर सामंजस्यबद्ध केवाईसी (Know Your Customer)- ऐसी प्रणालियां हैं जो क्रिप्टो के विनियमन के लिए भी शुरुआती परीक्षण-भूमि हो सकती हैं.
पूंजी खाते की स्थिरता. अभी भारतीयों की क्रिप्टो होल्डिंग्स के अपेक्षाकृत निम्न आधार (low base) को देखते हुए, क्रिप्टो को खरीदने और बेचने के लिए ज्यादातर सेटलमेंट अमेरिकी डॉलर जैसी फिअट करेंसी में होते हैं. इसलिए, अगर भारतीय बड़े वॉल्यूम में ऐसे क्रिप्टो खरीदते हैं जिनकी माइनिंग भारत के बाहर की गयी हो, तो इसका नतीजा बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा (foreign exchange) का देश के बाहर प्रवाह होगा. इसके उलट, अगर विदेशी निवेशक भारत में माइन किये गये क्रिप्टो खरीदते हैं, तो इससे बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा देश में आयेगी. पूंजी खाते से जुड़े जोखिमों से निपटने के लिए सबसे बढ़िया तरीक़ा फिर जीटीआर के जरिये होगा. जिस तरह भारत होल्डिंग्स पर कुछ निश्चित पाबंदियां (उदाहरण के लिए, विदेशियों द्वारा होल्ड की जा सकनेवाली, भारतीय बॉन्डों की मात्रा पर एक अधिकतम सीमा लागू है ) लगाकर पूंजी खाते के भीतर प्रवाह (inflows) को नियंत्रित करता है, उसी तरह विदेशी क्रिप्टो के जीटआर एक्सपोजर (और भारतीय क्रिप्टो की विदेशी ख़रीद) पर भी अधिकतम सीमा लगायी जा सकती है और उसकी निगरानी की जा सकती है.
निवेशकों की सुरक्षा. किसी नियमन के अभाव में, आज क्रिप्टो की मार्केटिंग किसी उपभोक्ता उत्पाद की तरह हो रही है, जिसके लिए क्रिकेट और बॉलीवुड सितारे प्रचार कर रहे हैं. यह सब निवेशकों की सुरक्षा के लिए ज़रूरी सामान्य फ्रेमवर्क के बग़ैर हो रहा है. क्रिप्टो (और जीटीआर) को अगर सेबी (SEBI) की नियामक निगरानी के तहत एक अलग परिसंपत्ति श्रेणी के बतौर लाया जाता है, तो यह अपने साथ प्रोटोकॉल, प्रमाणन, जोखिम का खुलासा (risk disclosures), उपयुक्तता के प्रावधान लेकर आयेगा, जो कि निवेशक सुरक्षा का ढांचा खड़ा करने के लिए आजमायी हुई निर्माण सामग्री हैं.
प्राइवेट किप्टो पर बैन मतलब वेब 3.0 की जगह डिजिटल हाजी मस्तान का रास्ता
किसी भी अज्ञात, नये विकसित हो रहे, कुछ हद तक असहज करनेवाले उपकरण (instrument) के जवाब में सबसे आसान नीति है, उस पर रोक (ban) लगाना. विदेशी मुद्रा की कमी को देखते हुए, भारत ने 1960 और 70 के दशक में यही काम आयात (ख़ासकर सोने और ऊंची क़ीमतों वाली उपभोक्ता वस्तुओं के आयात) के सिलसिले में किया था. लेकिन, इसका नतीजा सिर्फ़ यह हुआ कि व्यापार गैरक़ानूनी ज़रिये से होने लगा-माल और उसके लिए भुगतान दोनों ही गैरक़ानूनी ज़रियों से होने लगे. विदेशी मुद्रा अब भी देश के बाहर गयी, और जिनके पास साधन थे उन्होंने बाहर से महंगा सोना और कीमती इलेक्ट्रॉनिक सामान ख़रीदे. सरकार को कर राजस्व का नुकसान हुआ, क़ानूनी कारोबारियों ने क़ानूनसम्मत कारोबार के मौक़े गंवाये. बाद में फिल्मों के ज़रिये, इस नीति परिवर्तन का प्रतीक बनकर आया हाजी मस्तान. दुनिया के सबसे सक्रिय इनोवेशन हॉटस्पॉट में से एक होने के नाते, भारत के पास क्रिप्टो इकोसिस्टम विकसित करने में दुनिया की अगुवाई करने का बड़ा मौक़ा है. पूर्ण रोक जैसा अति-प्रतिबंधात्मक नियामक ढांचा केवल डिजिटल हाजी मस्तानों को पैदा करेगा और वांछित नियामक नतीजे हासिल नहीं करेगा.
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