व्यक्तियों, उद्यमों और सरकारी निकायों को वित्तीय सेवाओं का एक विस्तृत स्वरूप मुहैया कराने वाली इकाइयों को वित्तीय संस्थानों के नाम से जाना जाता है. इस दायरे में अन्य वित्तीय सेवाओं के अलावा बैंकिंग, ऋण, निवेश और बीमा जैसी गतिविधियां शामिल हैं. तकनीक़ी उन्नति और उपभोक्ता ज़रूरतों के साथ क़दम मिलाते हुए पूरा वित्तीय परिदृश्य विकसित हुआ है, जिससे विविधता और जटिलता बढ़ी है. वित्तीय संस्थान निरंतर रेगुलेटरी टेक्नोलॉजी (रेगटेक) और सुपरवाइज़री टेक्नोलॉजी (सुपटेक) को शामिल करने वाले समाधानों को अपनाते जा रहे हैं, समानांतर रूप से इस क्षेत्र में बाज़ारों के भीतर लेनदेन की बढ़ी हुई मात्राएं दिखाई देने लगी हैं. साथ ही नियामक शर्तों के कठोरतापूर्ण पालन और रिपोर्टिंग की आवश्यकता भी बढ़ गई है. हालांकि, विकास की ये प्रक्रिया दोहरी चुनौती पेश करती है: नियामक मध्यस्थता की संभावना और रुकावटी तकनीक़ी प्रभावों की आशंका.
“रेगटेक” शब्दावली वित्तीय क्षेत्र के भीतर नियामक अनुपालन प्रक्रियाओं की दक्षता को स्वचालित करने और आगे बढ़ाने के लिए तकनीक़ी समाधानों के प्रयोग को दर्शाती है.
रेगटेक क्या है..
“रेगटेक” शब्दावली वित्तीय क्षेत्र के भीतर नियामक अनुपालन प्रक्रियाओं की दक्षता को स्वचालित करने और आगे बढ़ाने के लिए तकनीक़ी समाधानों के प्रयोग को दर्शाती है. इसके तहत, वित्तीय संस्थानों के लिए नियामक आदेशों के अनुपालन को सुविधाजनक बनाने को लेकर प्रभावशाली डेटा एनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (ML) और इनके समान उपकरणों का भरपूर उपयोग शामिल है. ऐसे शासनादेशों (मैंडेट्स) में एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग (AML) प्रोटोकॉल्स, नो-योर-कस्टमर (KYC) आवश्यकताएं, डेटा निजता क़ानून और साइबर सुरक्षा दिशानिर्देश जैसे तमाम विनियमन शामिल हैं. रेगटेक समाधानों के प्राथमिक उद्देश्यों में अनुपालना के ख़र्चों में लाना, परिचालन कुशलता को बढ़ाना और अनुपालना कार्यों में सटीकता के स्तर को ऊंचा उठाकर उसे असरदार बनाना शामिल हैं.
सुपटेक, वित्तीय क्षेत्र के भीतर निगरानी प्रक्रियाओं को बढ़ाने के उद्देश्य से टेक्नोलॉजी के उपयोग से संबंधित है. इसके दायरे में, वित्तीय संस्थानों की निगरानी और पर्यवेक्षण के काम में नियामक निकायों को सुविधा पहुंचाने के लिए डेटा एनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (ML) और समान तरह की तकनीक़ों के प्रयोग शामिल हैं. सुपटेक के प्रमुख कार्यों में उभरते जोख़िमों की पहचान करना, नियामक अनुरूपता को लागू करना और निगरानी प्रक्रिया के प्रभाव में बढ़ोतरी करना शामिल है. ऐसा करके सुपटेक समाधान, नियामक निगरानी की दक्षता को अनुकूलित और अधिकतम करने, वित्तीय इकाइयों पर नियामक बोझ को हल्का करने और वित्तीय स्थिरता के ख़तरों को भांपने और उनका निपटारा करने के लिए नियामक एजेंसियों की क्षमता को मज़बूत करने का लक्ष्य रखते हैं.
वैसे तो इन तकनीक़ों में नियामक आवश्यकताओं के अनुपालन में सुधार लाने और वित्तीय सेवाओं की दक्षता बढ़ाने की क्षमता मौजूद है, लेकिन ये नियामकों और उद्योग में हिस्सा लेने वाले किरदारों के लिए नई चुनौतियां भी पैदा कर सकते हैं.
अप्रत्याशित रुकावटें
प्रतिस्पर्धात्मक लाभ हासिल करने के लिए तमाम न्यायक्षेत्रों और राष्ट्रों में नियामक आवश्यकताओं में अंतर का लाभ उठाने के तौर-तरीक़े को नियामक मध्यस्थता कहते हैं. नियामक मध्यस्थता कई रूप ले सकती है, जैसे नियामक ख़रीदारी, नियामक चोरी, या नियामक अनुकूलन. जैसे-जैसे वित्तीय संस्थान रेगटेक और सुपटेक समाधान अपनाते हैं, विभिन्न न्यायक्षेत्रों में अलग-अलग तरह से नियामक आवश्यकताओं की व्याख्या और कार्यान्वयन किए जाने का जोख़िम रहता है. नतीजतन, नियामक अनुपालना में विसंगतियां पैदा हो सकती हैं. इससे तबाही की दौड़ शुरू हो सकती है, जहां वित्तीय संस्थान सबसे कम कठोर नियामक आवश्यकताओं वाले अधिकार क्षेत्र में परिचालन स्थापित करना चाहते हैं!
तकनीक़ी प्रगति की तेज़ रफ़्तार, वित्तीय सेवा कारोबार के परंपरागत मॉडल को बाधित कर रही है. इससे संभावित रूप से रोज़गार के नुक़सान, बाज़ार केंद्रीकरण और प्रणालीगत जोख़िम सामने आ सकते हैं.
विनियामक मध्यस्थता, वित्तीय स्थिरता के लिए भारी जोख़िम पैदा कर सकती हैं. इससे कुछ न्यायक्षेत्रों में व्यवस्थागत जोख़िमों का केंद्रीकरण हो सकता है. साथ ही प्रतिस्पर्धा के असमान हालात भी पैदा हो सकते हैं, जो वित्तीय बाज़ारों की अखंडता को कमज़ोर करते हैं और वित्तीय स्थिरता के लिए जोख़िम पैदा करते हैं. इस चुनौती से निपटने के लिए नियामकों को कंधे से कंधा मिलाकर काम करने की ज़रूरत है. इससे नियामक आवश्यकताओं को सभी न्यायक्षेत्रों में निरंतर लागू किया जाना सुनिश्चित हो सकेगा. इसे बढ़े हुए सहयोग और सूचना साझा करने की क़वायदों के साथ-साथ साझा नियामक मानकों और ढांचों के विकास के ज़रिए हासिल किया जा सकता है. नियामकों को उभरते जोख़िमों और बाज़ार घटनाक्रमों के प्रति भी सतर्क रहने की ज़रूरत है, जो नियामक मध्यस्थता के अवसर पैदा कर सकते हैं.
बहरहाल, तकनीक़ी प्रगति की तेज़ रफ़्तार, वित्तीय सेवा कारोबार के परंपरागत मॉडल को बाधित कर रही है. इससे संभावित रूप से रोज़गार के नुक़सान, बाज़ार केंद्रीकरण और प्रणालीगत जोख़िम सामने आ सकते हैं. मिसाल के तौर पर, डिजिटल मुद्राओं का उभार और ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी का उपयोग, भुगतान करने और निपटान के तौर-तरीक़ों को बदल रहे हैं. इससे पारंपरिक वित्तीय मध्यस्थों से दूर जाने के हालात बन सकते हैं, जिससे उनकी लाभदायकता कम हो सकती है. अगर ये बदलते परिदृश्य के हिसाब से ढलने में नाकाम रहते हैं, तो व्यवस्थागत जोख़िम भी पैदा हो सकते हैं. इन चुनौतियों के निपटारे के लिए, नियामकों को नई तकनीक़ों और बाज़ार घटनाक्रमों को अपनाने में सक्रियता दिखाने की दरकार है. उन्हें उभरते जोख़िमों की पहचान करने के लिए उद्योग प्रतिभागियों के साथ नज़दीकी से काम करने की ज़रूरत है. साथ ही उन्हें ये भी सुनिश्चित करना होगा कि नियामक ढांचे, नई तकनीक़ों और कारोबार मॉडल को समायोजित करने के लिए पर्याप्त रूप से लचीले हों!
विनियमन और इनोवेशन के बीच नाज़ुक संतुलन
वैसे तो उभरते वित्तीय परिदृश्य के भीतर स्थिरता और उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए नियामक उपाय बेहद अहम हैं, लेकिन इसमें एक नाज़ुक संतुलन बिठाने की आवश्यकता भी मौजूद है. अति-उत्साही विनियमनों में उस नवाचार को ही दबा देने का जोख़िम रहता है जिसे वो नियंत्रित करने की इच्छा रखते हैं. इस तरह ये विनियम संभावित रूप से उन वास्तविक लाभों को बाधित कर देते हैं, जो तकनीक़ी प्रगति से उपभोक्ताओं तक पहुंच सकती हैं. ठोस निरीक्षण, और नवाचार के लिए अनुकूल माहौल को बढ़ावा देने के बीच सही संतुलन बनाना निहायत ज़रूरी है. इस रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जो उपभोक्ता हितों की रक्षा करते हुए नवाचार भरे समाधानों की पूरी क्षमता को फलने-फूलने का मौक़ा देती है. इस तरह आख़िरकार इसमें शामिल सभी स्टेकहोल्डर्स के लिए वित्तीय अनुभव बढ़ता है.
विनियामक मध्यस्थता और प्रौद्योगिकी रुकावट, वित्तीय उद्योग में नई परिकल्पनाएं नहीं हैं. हालांकि, तकनीक़ी उन्नति की रफ़्तार और जटिलता के साथ-साथ रेगटेक और सुपटेक समाधानों की बढ़ती स्वीकार्यता ने संभावित जोख़िमों और चुनौतियों को बढ़ा दिया है.
इन नए रास्तों की ओर बदलाव, स्थापित इकाइयों की लाभदायकता को कमज़ोर कर सकते हैं. साथ ही अगर ये संस्थान बदले वातावरण के हिसाब से ढलने में नाकाम रहते हैं तो इससे व्यवस्थागत जोख़िम पैदा हो सकते हैं.
नई तकनीकें, वित्तीय सेवाओं की कार्यकुशलता और पहुंच बढ़ा सकती हैं, नियामक आवश्यकताओं के अनुपालन में सुधार ला सकती हैं और लागत कम कर सकती हैं. हालांकि दूसरी ओर, ये नए जोख़िम भी पैदा कर सकती हैं. इन जोख़िमों में साइबर ख़तरे, डेटा निजता संबंधी चिंताएं और परिचालन जोख़िम शामिल हैं. इसके समानांतर टेक्नोलॉजी का तेज़ उभार, परंपरागत वित्तीय कारोबार मॉडल को नया आकार दे रहा है, जिससे रोज़गार में विस्थापन, बाजार केंद्रीकरण और प्रणालीगत जोख़िम सामने आ सकते हैं. इन नए रास्तों की ओर बदलाव, स्थापित इकाइयों की लाभदायकता को कमज़ोर कर सकते हैं. साथ ही अगर ये संस्थान बदले वातावरण के हिसाब से ढलने में नाकाम रहते हैं तो इससे व्यवस्थागत जोख़िम पैदा हो सकते हैं.
इन जटिलताओं से निपटते हुए आगे बढ़ने के लिए नियामक निकायों को तकनीक़ी विकास और बाज़ार की गतिशीलता के हिसाब से सक्रिय रूप से ढलना चाहिए. इसके लिए नियामक चतुराई, सहभागिता और अनुकूलनशीलता का मिश्रण अनिवार्य हो जाता है. उभरती टेक्नोलॉजी के संभावित फ़ायदों और जोख़िमों को समझने के लिए उद्योग जगत के किरदारों के साथ जुड़ना सर्वोपरि है. इसके अतिरिक्त, नियामकों को टेक्नोलॉजी अपनाने से जुड़े व्यवस्थागत जोख़िमों की निगरानी और आकलन करना चाहिए और इन ख़तरों का मुक़ाबला करने के लिए उपयुक्त उपायों को लागू करना चाहिए. उभरते जोख़िमों को पहचानने और लचीले नियामक ढांचे की स्थापना के लिए उद्योग के स्टेकहोल्डर्स के साथ क़रीबी सहभागिता अहम है. इससे उभरती टेक्नोलॉजियों और कारोबारी मॉडल को समायोजित किया जा सकेगा.
विनियामक मध्यस्थता और तकनीक़ी रुकावटों का सम्मिलन, वित्तीय क्षेत्र और उसके नियामकों के लिए ज़बरदस्त चुनौतियां पेश करता है. जैसे-जैसे वित्तीय इकोसिस्टम, इन घटनाक्रमों के हिसाब से ढलता जाता है, नियामकों को अपने दृष्टिकोण में सतर्क और सक्रिय रहना चाहिए. इससे एक ऐसे वातावरण को बढ़ावा मिलेगा जिसमें सामूहिक बेहतरी के लिए नवाचार का उपयोग किया जाता है. इसके साथ-साथ टेक्नोलॉजी, विनियमन और बाज़ार गतिशीलता के बीच पेचीदा परस्पर क्रियाओं से पैदा होने वाले जोख़िमों को भी कम किया जाता है. आगे की यात्रा में निरंतर प्रतिबद्धता की ज़रूरत है ताकि इस क़वायद में शामिल सभी स्टेकहोल्डर्स की बेहतरी के लिए उभरते वित्तीय परिदृश्य को समझने, अपनाने और आकार देने का काम पूरा हो सके.
श्रीनाथ श्रीधरन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में विजिटिंग फेलो हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.