टास्क फोर्स 6: एसडीजी को रफ़्तार देनाः 2030 के एजेंडा के लिए नए रास्ते तलाश करना
सार
खाद्य सुरक्षा वैश्विक कृषि सहयोग के केंद्र में रही है, लेकिन इसे प्राप्त करने के परिणामस्वरूप एक ऐसी विरोधाभासी स्थिति बन गई है जहां उपभोक्ताओं की वैश्विक खाद्य पदार्थों तक पहुंच तो बनी है लेकिन खेत में फ़सलों की पारंपरिक विविधता कम हो गई है और स्थानीय समुदायों की खाद्य संप्रभुता ख़त्म हो गई है. दिक़्क़त यह है कि खाद्य सुरक्षा और संप्रभुता को एक दूसरे के ख़िलाफ़ खड़ा किया जाता है. यह नीति संक्षिप्त इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे पुन:उत्पादक या रिजेनरेटिव कृषि प्रथाओं के साथ स्थानीय खाद्य प्रणालियां इस गतिरोध के लिए स्केलेबल (जिसमें बढ़ाए जाने की संभावना हो) विकल्प प्रदान कर सकती हैं. कई जी20 अध्यक्षों ने प्रकृति-सकारात्मक, संदर्भ-विशिष्टे और छोटे पैमाने पर अनुकूल समाधान की आवश्यकता के माध्यम से स्थानीय खाद्य प्रणालियों के महत्व का उल्लेख किया है. भारतीय जी20 अध्यक्षता को ऐसी खाद्य प्रणालियों को मुख्यधारा में लाने के लिए एक रोडमैप प्रस्तुत करने का प्रयास करना चाहिए. ऐसा करने के लिए, यह नीति संक्षिप्त मौजूदा कृषि सहायता के उद्देश्य को पुनः प्रयोजित करने, सतत खाद्य उपभोग विकल्पों को उत्प्रेरित करने और सक्षमकर्ताओं के माध्यम से इस परिवर्तन को सुविधाजनक बनाने की सिफ़ारिश करता है.
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चुनौती
वैश्विक खाद्य प्रणाली प्रति दिन लगभग 3,000 किलो कैलोरी भोजन प्रति व्यक्ति का उत्पादन करती है.[i] यह ईट (EAT) के ग्रहीय स्वास्थ्य आहार (प्लैनेटरी हेल्थ डाइट) में प्रति व्यक्ति प्रति दिन अनुशंसित 2,500 किलोकैलोरी से अधिक है.[ii] हालांकि, अनुमानतः दुनिया भर में 768 मिलियन लोगों को अपनी दैनिक ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता है, और लगभग 2 बिलियन लोग किसी न किसी रूप में खाद्य असुरक्षा का सामना करते हैं, जबकि अनुमानतः 2.3 बिलियन लोग या तो अधिक वज़न वाले या मोटे हैं.[iii] स्वस्थ, पौष्टिक भोजन तक पहुंच में इस असमानता को कम करना खाद्य प्रणाली के लिए एक प्रमुख चुनौती बनी हुई है.
हरित क्रांति ने बहुतायत का युग शुरू किया था और दुनिया को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वाली खाद्य असुरक्षा से मुक्ति दिलाई थी. दुर्भाग्य से, इसने बड़े पैमाने वाली अर्थव्यवस्थाएं भी बनाईं, जिन्होंने रसायनों के उपयोग को बढ़ाकर एकल-फ़सल प्रथाओं के स्थायित्व को बढ़ावा दिया. इस औद्योगीकृत खाद्य उत्पादन प्रणाली के पीछे एक कृषि सहायता प्रणाली है जो इन रासायनिक आगतों को आर्थिक सहायता प्रदान करती है और इससे किसानों की उन पर निर्भरता को और बढ़ाती है.[iv] ये एकल-फ़सल कृषि प्रणालियां भूमि उपयोग, भूमि आवरण और ताज़े पानी के स्रोतों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं[v] और जैव विविधता, मिट्टी के स्वास्थ्य और पानी की गुणवत्ता को कम करती हैं. ये सघन प्रणालियां वैश्विक स्तर पर कुल कृषि उत्सर्जन के 21-37 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार भी हैं.[vi] इसके अलावा, वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के अस्तित्व से काफ़ी खाद्य हानि[vii] होती है और ऐसी आयात निर्भरता होती है जो खाद्य असुरक्षा को बढ़ाती है, ख़ासकर संकट के समय, जैसे कि कोविड-19 महामारी, जिसमें मूल्य अस्थिरता बहुत ज़्यादा, बाज़ार अस्त-व्यस्त और परिवहन लकवाग्रस्त हो गया था.[viii]
औद्योगीकृत खाद्य उत्पादन प्रणाली ने वैश्विक स्तर पर प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की उपलब्धता में वृद्धि की है, जिससे एक ऐसी विरोधाभासी स्थिति उत्पन्न हुई है जहां उपभोक्ताओं के पास दुनिया भर के ज़्यादा से ज़्यादा खाद्य पदार्थों के विकल्प उपलब्ध होते हैं लेकिन इसके साथ ही खेत में फसलों की पारंपरिक विविधता कम हो रही है. इससे स्थानीय समुदायों की खाद्य संप्रभुता[a],[ix] कम हो जाती है क्योंकि वे मौजूदा बाज़ार संरचनाओं के आगे घुटने टेक देते हैं जो उनके उत्पादन और उपभोग दोनों के चयन को प्रभावित करती हैं. इसके अलावा, जैसे-जैसे उपभोक्ताओं को वैश्विक खाद्य विकल्प उपलब्ध करवाए जाते हैं , वे अपने आस-पास की कृषि प्रणालियों और खाद्य संस्कृतियों से तेज़ी से कटते जाते हैं. इससे ऐसे खाद्य विकल्प चुने जाने लगते हैं जिन्हें उस पारिस्थितिकी से कोई मतलब नहीं होता, आदर्श रूप से जिसमें हमारी खाद्य प्रणालियों को फलना-फूलना चाहिए.
वर्तमान खाद्य प्रणाली की मूलभूत समस्या यह है कि वह खाद्य सुरक्षा को खाद्य संप्रभुता के ख़िलाफ़ खड़ा कर देती है. यद्यपि व्यापक रूप से दुनिया के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए खाद्य सुरक्षा आवश्यक है लेकिन खाद्य प्रणालियों पर चर्चाओं को खाद्य उत्पादकों और पर्यावरण के आसपास केंद्रित करने के लिए खाद्य संप्रभुता आवश्यक है. यह संक्षिप्त प्रकाश डालता है कि कैसे स्थानीय खाद्य प्रणालियां,[b],[x] पुन:उत्पादक खेती प्रथाओं,[d] जैसे सतत कृषि दृष्टिकोणों[c],[xi] के साथ मिलकर मौजूदा तंत्र के लिए स्केलेबल विकल्प प्रदान कर सकती हैं और इस तरह सभी के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षा, खाद्य संप्रभुता और पारिस्थितिक कल्याण को सक्षम कर सकती हैं.
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जी20 की भूमिका
जी20 देशों में दुनिया की 60 प्रतिशत कृषि भूमि है और वैश्विक खाद्य और कृषि-संबंधी व्यापार का 80 प्रतिशत हिस्सा है,[xii],[xiii] जो उन्हें सतत खाद्य प्रणालियों के लिए समाधानों को आगे बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण हितधारक बनाता है.
2008 और 2021 के बीच, जी20 ने खाद्य और कृषि पर 149 प्रतिज्ञा[xiv] लीं. जलवायु परिवर्तन द्वारा कृषि को उत्पन्न खतरे से निपटने और खाद्य सुरक्षा पर जी20 के काफ़ी ध्यान देने के बावजूद,[xv] महामारी ने कुपोषण की लहर ला दी, जो दरअसल वैश्विक खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं के टूटने का परिणाम थी. इसकी वजह से जी20 नेतृत्व ने उचित प्रतिक्रिया की और सदस्य देशों ने मटेरा घोषणापत्र[xvi] पर हस्ताक्षर किए, जो छोटे पैमाने पर और परिवार-आधारित खेती प्रणालियों और जैव विविधता संरक्षण को बढ़ावा देती है और पारंपरिक ज्ञान और स्थानीय खाद्य संस्कृतियों के साथ व्यापार में नवाचारों के बीच पूरकता को प्रोत्साहित करती है.
मटेरा घोषणा सतत कृषि प्रथाओं और स्थानीयकृत खाद्य प्रणालियों पर दोहरा ध्यान देती है, जिसमें जी20 सदस्यों को निम्नलिखित कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है:[xvii]
अंतर-क्षेत्रीय रसद और वितरण प्रणालियों, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच संबंधों और मूल्य-श्रृंखला अवसंरचना में सुधार लाना;
छोटे पैमाने और पारिवारिक किसानों, मछुआरों, पशुचारकों, कृषि-उद्यमों और सहकारी समितियों के लाभ के लिए उत्प्रेरक निवेश बढ़ाना जो बाज़ार की विफलताओं के प्रति जोख़िम सहनशीलता का निर्माण कर सके, उनकी उत्पादकता में सुधार के लिए पूंजी प्रदान कर सके और डिजिटल परिवर्तन और नवाचार को बढ़ावा दे सके;
जलवायु परिवर्तन के अनुकूल कृषि और खाद्य प्रणालियों के विशिष्ट संदर्भ के अनुकूलन में तेज़ी लाना, विशेष रूप से एकीकृत कृषि प्रणालियों को बढ़ावा देने वाली नीतियों, साथ ही जलवायु-संवेदनशील और कृषि-पारिस्थितिक दृष्टिकोण के माध्यम से, निजी क्षेत्र की भागीदारी के साथ.
इंडोनेशिया की जी20 अध्यक्षता ने इसके आगे उन खाद्य प्रणालियों के महत्व पर जोर दिया जो प्रकृति-सकारात्मक[ई],[xviii] परिणाम उत्पन्न कर सकती हैं, जैव विविधता हानि को रोक सकती हैं और उसे उलट सकती हैं और ऐसे उपायों को अपना सकती हैं जो स्थानीय और स्वदेशी खाद्य प्रणालियों और आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करते हैं. यह कृषि और खाद्य प्रणालियों को लेकर सभी-बीमारियों-का-एक-ही-इलाज दृष्टिकोण के कारण उत्पन्न स्थिति के संदर्भ में विशिष्ट समाधान खोजने की आवश्यकता के अनुरूप था.[xix]
पिछली जी20 अध्यक्षताओं द्वारा दिए गए संदर्भों की निरंतरता में, भारत की जी20 अध्यक्षता को एक स्थानीयकृत पुन:उत्पादक और छोटे किसानों के अनुकूल खाद्य प्रणाली को सक्षम बनाने के लिए एक रोडमैप प्रस्तुत करने का प्रयास करना चाहिए जो जलवायु-लचीला (क्लाइमेट रेज़िलिएंस- जलवायु से संबंधित संकटपूर्ण घटनाओं, प्रवृत्तियों और बाधाओं का अनुमान लगाने और तैयार होने की क्षमता को कहते हैं) हो और सभी के लिए पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करे.
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जी20 के लिये सिफ़ारिशें
खाद्य प्रणालियों के इस परिवर्तन को संचालित करने के लिए, जी20 को दो प्राथमिक क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिए: कृषि सहायता को पुन: प्रयोजित करना और सतत खाद्य विकल्पों को बढ़ावा देना. इस संक्षिप्त में भारत और जर्मनी के चुनिंदा मामलों का विश्लेषण किया गया है ताकि यह दिखाया जा सके कि कैसे संदर्भ-विशिष्ट, स्थानीय और सतत खाद्य प्रणाली प्रतिमान वैश्विक उत्तर और दक्षिण, सभी में काम कर सकते हैं (अनुलग्नक).
सिफ़ारिश 1: मौजूदा कृषि सहायता प्रणालियों और लेखांकन के मानकों को पुन: प्रयोजित करें
एक गलत आर्थिक मूल्यांकन प्रणाली रासायनिक रूप से गहन या उच्च उत्सर्जन खाद्य उत्पादन प्रणालियों के नकारात्मक बाहरी कारकों के साथ-साथ स्थायी और पुन:उत्पादक प्रथाओं के सकारात्मक बाहरी कारकों का हिसाब लेने में विफल रहती है. इस चुनौती को दूर करने के लिए, इंडोनेशियाई जी20 के दौरान वास्तविक मूल्य लेखांकन (ट्रू वैल्यू अकाउंटिंग- TVA) को मुख्यधारा में लाने का आह्वान किया गया था, लेकिन कार्रवाई सीमित रही.[xx]
टीवीए पारंपरिक वित्तीय मूल्यांकन विधियों से परे जाता है क्योंकि यह कृषि उत्पादन के पारिस्थितिक और सामाजिक प्रभावों को मुद्रीकृत और अंगीकार करता है.[xxi] टीवीए के तहत, पुन:उत्पादक कृषि विधियों से प्राप्त भोजन पारंपरिक रूप से उगाए गए भोजन की तुलना में सस्ता होगा, क्योंकि बाद वाले (पारंपरिक) की कीमत में पर्यावरण की लागत को भी शामिल किया जाएगा. इसी तरह, स्थानीय रूप से उगाए गए भोजन को यात्रा भी कम करनी होगी और आयातित भोजन की तुलना में इसकी कीमत कम होगी. ज़ाम्बिया, मलावी, भारत, अमेरिका,[xxii] और जर्मनी में ऐसे कई सफल उदाहरण हैं जहां किसानों ने खाद्य मील (फ़ूड माइल- किसी खाद्य पदार्थ की उस दूरी को कहते हैं जो उसके उगाए जाने और खाए जाने के बीच होती है. इसमें उत्पादन से उपभोग की यात्रा पर लगे ईंधन की गणना इकाई के रूप में की जाती है) को कम करते हुए और मिट्टी के स्वास्थ्य और जैव विविधता को संरक्षित करते हुए कृषि उत्पादकता को बनाए रखा है और कुछ मामलों में बढ़ाया भी है. टीवीए के तहत, पारंपरिक रूप से उगाए गए भोजन की कीमत पुन:उत्पादक प्रथाओं से प्राप्त भोजन से अधिक होगी, और यह मूल्य सुधार स्वतः ही बेहतर उपभोग विकल्पों की ओर ले जाएगा.
वैश्विक स्तर पर, कृषि उत्पादकों के लिए सहायता कुल कृषि उत्पादन मूल्य का 15 प्रतिशत है.[xxiii] यह सहायता ऐसी कृषि प्रथाओं को अपनाने के लिए कृत्रिम प्रोत्साहन पैदा करती है जिसमें आसपास की पारिस्थितिकी को अनदेखा कर दिया जाता है. टीवीए के साथ, इस कृषि सहायता को कमज़ोर उपभोक्ताओं को प्रत्यक्ष हस्तांतरण के रूप में पुन: प्रयोजित किया जा सकता है ताकि वहनीयता सुनिश्चित की जा सके.
जी20 को सदस्य देशों के पारस्परिक रूप से सहमत टीवीए रूपरेखाओं द्वारा संचालित पुन: प्रयोजन के प्रयासों में सुसंगतता सुनिश्चित करने के लिए सरकारों, अनुसंधान संस्थानों, ग़ैर-सरकारी संगठनों और निजी क्षेत्र जैसे हितधारकों के बीच सहयोग और समन्वय की सुविधा प्रदान करनी चाहिए. अल्पावधि में इन प्रयासों को कृषि समर्थन को पुन: प्रयोजित करने के लिए सभी जी20 देशों से प्रतिबद्धता हासिल करने के उद्देश्य से आगे बढ़ाया जाना चाहिए. मध्यम से दीर्घावधि में, जी20 को मूल्यांकन और रिपोर्टिंग प्रणालियों के विकास की सुविधा प्रदान करनी चाहिए जिससेउनकी कृषि समर्थन संरचना को वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों के अनुरूप बनाने के लिए स्थानिक सीमाओं (देशों, क्षेत्रों, शहरों) के संदर्भ में ढाला जा सके.
सिफ़ारिश 2: सतत खाद्य विकल्पों को बढ़ावा दें
पौष्टिक खाद्य पदार्थों तक पहुंच और उपलब्धता की कमी और अस्वास्थ्यकर, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की ओर ढेरों विकल्प और उनकी उपलब्धता ने एक अस्थिर खाद्य उपभोक्ता पैदा किया है. जी20 को सतत खाद्य उपभोग प्रवृत्तियां पैदा करने के लिए पहल करनी चाहिए.
सतत खाद्य विकल्पों को प्रोत्साहित करने के लिए, जी20 को ऐसे निवेशों को उत्प्रेरित करना चाहिए जो: (i) जागरूकता पैदा करने की ओर अग्रसर हों, (ii) स्थानीय स्रोतों से जुटाए गए हों, पुन:उत्पादक रूप से उगाए गए उत्पादों को शामिल करने के लिए सार्वजनिक संस्थानों में भोजन की खरीद और प्रावधान के लिए समर्थन को पुन: प्रयोजित करें, और (iii) उन मंचों को सुगम बनाएं जो सफलता की कहानियों और सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ा सकें.
बड़े पैमाने पर शिक्षा कार्यक्रमों और जागरूकता अभियानों और ऐसी पहलों में निवेश की आवश्यकता है जो सतत खाद्य विकल्पों को प्रोत्साहित कर सकें. उदाहरण के लिए, ग्रहीय स्वास्थ्य आहार पर ईट(EAT)-लैंसेट सिफारिशों को न केवल राष्ट्रीय स्तर पर, बल्कि उप-राष्ट्रीय स्तर पर भी अनुकूलित करने की आवश्यकता है जो स्थानीय उत्पादन-उपभोग चक्र को सुविधाजनक बनाते हैं. ये संदर्भ-विशिष्ट सिफ़ारिशें उप-राष्ट्रीय सरकारों को उनकी कृषि सहायता को पुन: प्रयोजित करने में सक्षम बना सकती हैं. इसके अतिरिक्त, सार्वजनिक-निजी भागीदारी शहरी खुदरा बाज़ार तक पहुंचा सकती है जहां लेबलिंग के माध्यम से स्थानीय उत्पादन को अलग किया जाए और उपभोक्ता को उत्पाद के उत्पत्ति स्थान के बारे में सूचित किया जाए या स्थानीय रूप से जुटाए गए उत्पादों के लिए अलग बाज़ारों के बारे में बताया जाए. अंत में, इंडोनेशिया, भारत और ब्राज़ील जैसी कृषि अर्थव्यवस्थाओं में बड़े पैमाने पर परियोजनाओं को चलाने के लिए निवेश की आवश्यकता है ताकि खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिए ‘पोषण-स्मार्ट’ खेती प्रथाओं को बढ़ावा दिया जा सके.
खाद्य सुरक्षा में सुधार के लिए कई जी20 सदस्यों में सामाजिक सहायता कार्यक्रम [f] चल हे हैं. इन कार्यक्रमों को स्थानीय रूप से जुटाए गए खाद्य उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए पुन: प्रयोजित किया जाना चाहिए. इसी तरह, स्कूलों और अस्पतालों के लिए संस्थागत खरीद स्थानीय रूप से की जानी चाहिए. कई जी20 सदस्य स्कूल भोजन गठबंधन का हिस्सा हैं, जिसमें यह अनिवार्य किया जाना चाहिए कि स्थानीय खरीद को अपने उद्देश्यों में से एक के रूप में शामिल किया जाए.
मिलान शहरी खाद्य पदार्थ नीति समझौता [g] (मिलान अर्बन फ़ूड पॉलिसी पैक्ट) ने अन्य लक्ष्यों और प्रतिबद्धताओं के अलावा स्वस्थ और सतत आहार को बढ़ावा देने, स्थानीय खाद्य प्रणालियों का समर्थन करने और शहरी-ग्रामीण संबंधों को मज़बूत किए जाने को रेखांकित किया है. जी20 को ऐसे गठबंधनों [h] को सुविधाजनक बनाना और बढ़ावा देना चाहिए जो समुदाय-आधारित समूहों को नीति निर्माताओं के समान स्तर पर ला सकें. ऐसे मंच सफल उप-राष्ट्रीय पहलों को बढ़ा सकते हैं और क्रॉस-लर्निंग को सक्षम कर सकते हैं.
अंत में, जी20 को जी20 कार्यक्रमों में परोसे जाने वाले खाद्य पदार्थ को जुटाए जाने और व्यंजनों के लिए दिशानिर्देश लाना चाहिए. अध्यक्षताओं को स्थानीय रूप से जुटाए गए खाद्य पदार्थ का समर्थन करना चाहिए और ईट की ग्रहीय स्वास्थ्य आहार अनुशंसाओं से अवगत रहना चाहिए. उदाहरण के लिए, भारत की जी20 अध्यक्षता में 2023 में आयोजित बैठकों में कई मोटे अनाज से बने व्यंजन पेश किए हैं.
सिफ़ारिश 3: स्थानीयकृत, टिकाऊ और छोटे पैमाने की खेती के अनुकूल खाद्य प्रणाली परिवर्तनों को सुविधाजनक बनाने वाले सक्षमकर्ता बनाएं
स्थानीय खाद्य प्रणाली परिवर्तन, अत्यधिक संदर्भ-विशिष्ट होने के कारण, सभी-बीमारी-का-एक-ही-इलाज दृष्टिकोण के साथ बड़े पैमाने पर नहीं किया जा सकता है. हालांकि, यद्यपि अलग-अलग संदर्भों में संपूर्ण प्रणालियों को दोहराया नहीं जा सकता है, समाधान और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा किया जा सकता है और यदि सही सक्षमकर्ता लगाए जाएं तो एक ऊर्ध्वगामी, सहयोगपूर्ण वृद्धि संभव हो सकती है. जी20 निम्नलिखित कदमों के माध्यम से एक प्रभावी तंत्र की सुविधा और वित्त को उत्प्रेरित करके इस तरह के परिवर्तन को सक्षम कर सकता है.
पहला, परिवर्तन के लिए रणनीति विकसित करने के लिए जी20 को विशेषज्ञों और हितधारकों का एक कार्य बल स्थापित करना चाहिए. इस कार्य बल के पास व्यवहार्य वित्तीय माध्यमों की पहचान करने की ज़िम्मेदारी होगी जिनके साथ परिवर्तन को संरेखित करना है और ऐसे दिशानिर्देश बनाने हैं, जिनका राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय सरकारें अनुसरण करें. यह अल्पावधि में परिवर्तन के लिए वित्तीय आवश्यकताओं का आकलन करने और मध्यम से दीर्घावधि में सभी के कार्यों को साझा दृष्टि से संरेखित करने के उद्देश्य से कृषि समर्थन को पुनः प्रयोजित करने और स्थायी खाद्य विकल्पों को आकार देने पर समावेशी बहु-हितधारक जुड़ाव की सुविधा भी प्रदान करेगा.
दूसरा, जी20 को कृषि वैज्ञानिकों की बैठक (एमएसीएस) के नेतृत्व में पुन:उत्पादक कृषि और स्थानीय खाद्य प्रणालियों पर अनुसंधान, नवाचार और ज्ञान प्रसार प्रणालियों में सुधार के लिए तंत्र बनाना चाहिए. पुन:उत्पादक कृषि की ओर सामूहिक प्रगति को ट्रैक करने और साझेदारी और सहयोग के लिए रणनीतिक अवसर पैदा करने के लिए एक स्टॉकटेक (किसी व्यवसाय के पास कितनी मात्रा में स्टॉक या भंडार है उसका आकलन करना और रिकॉर्ड रखना) की आवश्यकता है. खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के स्वदेशी खाद्य पदार्थों पर वैश्विक केंद्र जैसी पहलों का दो प्रकार की कृषि प्रणालियों के बीच अभिसरण के लिए स्वदेशी समुदायों और वैज्ञानिक शोधकर्ताओं के बीच साक्ष्य उत्पन्न करने और ज्ञान-साझाकरण को सुविधाजनक बनाने के लिए समर्थन किया जाना चाहिए.
अंत में, कार्य बल को सीओपी और संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन जैसे अन्य वैश्विक मंचों के साथ इन कार्यों पर अभिसरण को सुविधाजनक बनाना चाहिए. यह महत्वपूर्ण है क्योंकि एक समग्र प्रणाली के दृष्टिकोण की आवश्यकता पर अन्य वैश्विक मंचों में प्रगति धीमी है. उदाहरण के लिए, सीओपी27 कोरोनिविया वार्ता में निर्मित अंतिम दस्तावेज़, कृषि-संबंधी वार्ताओं को संबोधित करने का मुख्य मंच, में ‘कृषिपारिस्थितिकी’ और ‘खाद्य प्रणालियां’ शब्दों को पाठ से हटा दिया गया था, जो कि टिकाऊ कृषि का क्या अर्थ है और टिकाऊ खाद्य प्रणालियों को भविष्य में कैसा दिखना चाहिए, इस विचार पर वैश्विक सहमति की कमी को दर्शाता है.[xxiv] इस तरह के परिणाम संपूर्ण खाद्य प्रणाली समाधानों के लिए धन उगाहने के प्रयासों को संभावित रूप से पटरी से उतार सकते हैं और इसके बजाय उन समाधानों में निवेश को उत्प्रेरित कर सकते हैं जो जलवायु-स्मार्ट तो हो सकते हैं लेकिन प्रकृति-सकारात्मक नहीं.
संलग्नकः भारत और जर्मनी से चुने गए कुछ केस स्टडी
रीजनअलवर्ट एजी: टीवीए [के] का उपयोग करने वाली एक जर्मन कंपनी
रीजनअलवर्ट एजी (Regionalwert AG) एक जर्मन नागरिक शेयरधारक कंपनी है जो मूल्य वर्द्धित श्रृंखला के साथ स्थानीय और जैविक खाद्य संरचनाओं के निर्माण में पूंजी निवेश करती है. उन्होंने कृषि और खाद्य क्षेत्र में व्यवसायों के लिए एक नई विस्तारित स्थिरता लेखांकन प्रणाली विकसित की है ताकि सामाजिक, पारिस्थितिक और क्षेत्रीय आर्थिक सेवाओं का दस्तावेज़ीकरण और मूल्यांकन किया जा सके. इन प्रदर्शन संकेतकों को मापा और मुद्रीकृत किया जाता है और कंपनी की एक विस्तारित बैलेंस शीट में जोड़ा जाता है जो सामाजिक-पारिस्थितिक परिसंपत्तियों को दर्शाती है. अंतिम चरण के रूप में, सार्वजनिक धन इसका उपयोग आम भलाई के लिए सेवाओं को महत्व देने के लिए कर सकता है.
द लोकावोर: एक भारतीय खाद्य मंच जो शहरी समुदायों को स्थानीय उपभोग की ओर ले जा रहा है [l]
द लोकावोर एक भारतीय खाद्य मंच है जो कहानी सुनाने, घटनाओं, परियोजनाओं और साझेदारियों के माध्यम से एक स्थायी प्रभाव पैदा करने और स्थानीय, भारतीय खाद्य आंदोलन का समर्थन करने पर केंद्रित है. वे उत्पादकों और समुदायों जैसे विभिन्न हितधारकों के साथ काम करते हैं ताकि उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच की खाई को पाट सकें. वे स्वदेशी और पारंपरिक खाद्य पदार्थों के उत्पादकों के साथ साझेदारी करके और उपभोक्ताओं और उत्पादकों के बीच बातचीत और ज्ञान प्रवाह को सक्षम करने वाली अभिनव घटनाओं का आयोजन करके व्यवहारिक बदलावों को प्रोत्साहित करते हैं. उनका लक्ष्य पारंपरिक प्रथाओं और व्यंजनों का दस्तावेज़ीकरण करके और उन्हें व्यापक दर्शकों के साथ साझा करके स्थानीय खाद्य संस्कृतियों को पुनर्जीवित करना भी है.
पोषण-स्मार्ट गांव: स्थानीय, पुन:उत्पादक खाद्य प्रणालियों को बड़ा करने का एक उदाहरण [m]
वेलथंगरहिल्फे की पोषण-स्मार्ट गांवों और भूमि-का जैसी पहलों ने दिखाया है कि कैसे इन प्रथाओं का, न केवल एक स्थायी प्रभाव पड़ता है बल्कि इन्हें बड़े पैमाने पर भी किया जा सकता है. स्थानीय खाद्य प्रणालियों में पोषण उद्यान, जैव विविधता संरक्षण, परती भूमि बहाली, जल संरक्षण और पशुधन बायोमास का उपयोग जैसे हस्तक्षेपों को व्यवहारिक हस्तक्षेपों (जैसे सामुदायिक संस्थानों को मजबूत करना और जागरूकता के लिए पोषण शिविर स्थापित करना) के साथ जोड़कर, वेलथंगरहिल्फे द्वारा स्थापित 260 पोषण-स्मार्ट गांव भारत, बांग्लादेश और नेपाल में 2,82,000 से अधिक लोगों के पोषण संबंधी सेवन, ज्ञान, पर्यावरण और सामुदायिक कल्याण में सुधार कर रहे हैं.
लुज़र्नेन्हॉफ़ः जर्मनी में एक समुदाय-समर्थित कृषि परियोजना [n]
लुज़र्नेन्हॉफ़ (Luzernenhof) जर्मनी में एक समुदाय-समर्थित कृषि परियोजना (सीएसए) है, जिसका अर्थ है कि यह उपभोक्ताओं और उत्पादकों के बीच एक सीधी साझेदारी है, जिसके द्वारा दीर्घकालिक समझौतों के माध्यम से कृषि गतिविधियों के जोखिम, ज़िम्मेदारियां और लाभ साझा किए जाते हैं. आम तौर पर एक छोटे और स्थानीय पैमाने पर संचालन करते हुए, सीएसए का उद्देश्य कृषि-पारिस्थितिक तरीके से उत्पादित उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थ प्रदान करना है. आर्थिक अवधारणा के इस परिवर्तन के बिना, यह खेत इतना विविध नहीं हो सकता था जितना कि यह है, यहां 190 विभिन्न उत्पादों का उत्पादन होता है, जबकि गांव के अधिकांश पारंपरिक खेतों में या तो विशिष्ट कृति होती है या इनमें काम हर तरह से बंद कर दिया गया है. समुदाय के साथ जुड़ाव और समर्थन के साथ, खेत न केवल 500 लोगों को जैविक, विविध और ताज़ा स्थानीय उत्पादन खिला रहा है, बल्कि ज़़मीन खरीदने के लिए धन भी जुटाने में कामयाब रहा है.
एट्रीब्यूशन: साहिल पारेख एवं अन्य, ‘स्थानीय खाद्य प्रणालियों में पुन:उत्पादक कृषि: खाद्य सुरक्षा और खाद्य समर्पण की ओर एक जलवायु-स्मार्ट मार्ग,’ टी20 नीति संक्षेप, जून 2023.”
[a] Food sovereignty recognises that farming is both a way of life and a means of producing food. It ensures that food is produced in a culturally acceptable manner and in harmony with the ecosystem in which it is produced. It puts the aspirations and needs of those who produce, distribute, and consume food, rather than the demands of markets and corporations, at the heart of food systems and policies.
[b] Local food systems do not have a standard definition. The definition depends on the context in which they are being considered. ‘Local’ can be viewed in terms of geographical proximity (distance between the producer and consumer), relational proximity (close relationship between the actors), and proximity in values (traceability, freshness, quality, etc.).
[c] Several terminologies exist to describe sustainable agriculture, as highlighted in a study by CEEW, which identified 70 definitions of the term ‘sustainable agriculture’. Therefore, this Policy Brief’s recommendations, while framed for regenerative agriculture, should be viewed as applicable to the myriad approaches of practicing agriculture in a sustainable manner, synchronous with the ecology.
[d] Regenerative agriculture describes holistic farming systems that, among other benefits, improve water and air quality, enhance ecosystem biodiversity, produce nutrient-dense food, and store carbon to help mitigate the effects of climate change. These farm systems are designed to work in harmony with nature while also maintaining and improving economic viability.
[e] The 2021 UN Food Systems Summit formally recognised nature-positive production as one of five critical pathways to sustainable food systems. A nature-positive approach enriches biodiversity, stores carbon, purifies water, and reduces pandemic risk.
[f] India’s nationwide Public Distributions System (PDS) covers around 800 million people who can access rice, wheat, and coarse grains through a network of Fair Price Shops (FPS). Similarly, Brazil, Indonesia, China, and Mexico have social support systems to alleviate poverty and food insecurity.
[g] The Milan Urban Food Policy Pact (MUFPP) is a commitment signed by cities around the world to develop sustainable and equitable food systems. The pact was launched in October 2015 and was signed by more than 200 cities from around the world.
[h] Other coalitions like the MUFPP are the C40, the EUROCITIES, and the 100 Resilient Cities.
[i] Vehicles like the National Action Plans for Climate Change or Nationally Determined Contributions are structured approaches that countries can align with to take action. Since these are internationally accepted vehicles, they can be used to attract the large financing needed for the mentioned transformations.
[j] The Opportunity-Innovation-Equity Food Systems Planning Framework of the FAO should be further developed to assist local food systems planning in line with the necessary action on climate change.
[k] Authors’ analysis based on a discussion with Christian Hiss, Director, Regionalwert AG, on 24 April 2023.
[l] Authors’ analysis based on a discussion with Thomas Zacharias, Founder, The Locavore, on 13 March 2023.
[m] Authors’ analysis based on a discussion with Swati Banerjee, Nutrition Specialist, Welthungerhilfe, on 15 March 2023.
[n] Authors’ analysis based on a discussion with Johannes Superkaemper, organic farmer from the Luzernhof community, on 24 April 2023.
[i] “Food and Agriculture Data 2023,” FAO, accessed April 2, 2023, https://www.fao.org/faostat/en/#home.
[ii] Brent Loken and Fabrice DeClerck, “Diets for a Better Future: Rebooting and Reimagining Healthy and Sustainable Food Systems in the G20,” EAT, 2020, https://eatforum.org/content/uploads/2020/07/Diets-for-a-Better-Future_G20_National-Dietary-Guidelines.pdf.
[iii] FAO et al., “The State of Food Security and Nutrition in the World 2021. Transforming Food Systems for Food Security, Improved Nutrition and Affordable Healthy Diets for All,” 2020, https://doi.org/10.4060/cb4474en.
[iv] R. B. Singh, “Environmental Consequences of Agricultural Development: A Case Study from the Green Revolution State of Haryana, India,” Agriculture, Ecosystems & Environment 82, no. 1–3 (2000): 97-103, https://doi.org/10.1016/S0167-8809(00)00219-X.
[v] Bruce M. Campbell et al., “Agriculture Production as a Major Driver of the Earth System Exceeding Planetary Boundaries,” Ecology and Society 22, no. 4 (2017), https://www.jstor.org/stable/26798991.
[vi] John Lynch et al., “Agriculture’s Contribution to Climate Change and Role in Mitigation is Distinct from Predominantly Fossil CO2-Emitting Sectors,” Frontiers in Sustainable Food Systems 4 (February 2021), https://doi.org/10.3389/fsufs.2020.518039.
[vii] FAO, “The State of Food and Agriculture 2019. Moving Forward on Food Loss and Waste Reduction,” 2019, https://www.fao.org/3/ca6030en/ca6030en.pdf.
[viii] Hojatollah Kakaei et al., “Effect of COVID-19 on Food Security, Hunger, and Food Crisis,” in COVID-19 and the Sustainable Development Goals, eds. Mohammad Hadi Dehghani, Rama Rao Karri, and Sharmili Roy (Elsevier, 2022), 3-29, https://doi.org/10.1016/B978-0-323-91307-2.00005-5.
[ix] Nyéléni 2007 International Steering Committee, “Nyéléni, 2007, Forum for Food Sovereignty,” 2007, https://nyeleni.org/DOWNLOADS/Nyelni_EN.pdf.
[x] Safania Normann Eriksen, “Defining Local Food: Constructing a New Taxonomy – Three Domains of Proximity,” Acta Agriculturae Scandinavica, Section B, Soil & Plant Science 63 (2013): 47-55, http://doi.org/10.1080/09064710.2013.789123.
[xi] Niti Gupta et al., “Sustainable Agriculture in India 2021: What We Know and How to Scale Up,” Council on Energy, Environment and Water, 2021, https://www.ceew.in/sites/default/files/CEEW-FOLU-Sustainable-Agriculture-in-India-2021-20Apr21.pdf.
[xii] G20 Development Working Group, Food Security and Nutrition, “G20 Food Security and Nutrition Framework,” 2021, https://dwgg20.org/app/uploads/2021/09/g20-food-security-and-nutrition-framework.pdf.
[xiii] G20 Agriculture Working Group, “G20 Agriculture Ministers’ Declaration 2019,” 2019, http://www.g20.utoronto.ca/2019/2019-G20_2019_AMM.pdf.
[xiv] Duja Muhanna, “G20 Performance on Food and Agriculture,” Global Governance Project, 2021, https://www.globalgovernanceproject.org/g20-performance-on-food-and-agriculture-2/duja-muhanna.
[xv] Biswajit Dhar, “Prioritising Agriculture and Energy at G20,” Heinrich Böll Stiftung, 2023, https://in.boell.org/en/2023/03/06/prioritising-agriculture-and-energy-g20.
[xvi] G20 Italy, “Matera Declaration on Food Security, Nutrition and Food Systems,” 2021, http://www.g20.utoronto.ca/2021/Matera-Declaration.pdf.
[xvii] Dhar, “Prioritising Agriculture and Energy at G20”
[xviii] Diane B. Holdorf et al., “What is ‘Nature Positive’ and Why is it the Key to Our Future?” World Economic Forum, 2021.
[xix] USDA, “Balancing Food Production and Trade to Fulfil Food for All,” 2022.
[xx] Declercq et al., “The Harmonization of True Value Accounting Approaches to Make the Economic Case for Nature Positive Food Systems,” T20 Policy Brief, 2022, https://www.t20indonesia.org/wp-content/uploads/2022/11/TF4
[xxi] A. Michalke et al., “True Cost Accounting in Agri-Food Networks: A German Case Study on Informational Campaigning and Responsible Implementation,” Sustainability Science 17 (2022): 2269-85, https://doi.org/10.1007/s11625-022-01105-2.
[xxii] Global Alliance for the Future of Food, “True Value: Revealing the Positive Impacts of Food Systems Transformation,” 2021, https://futureoffood.org/wp-content/uploads/2021/11/GA-True-Value-Revealing-Positive-Impacts.pdf.
[xxiii] FAO, UNDP, and UNEP, “A Multi-Billion-Dollar Opportunity – Repurposing Agricultural Support to Transform Food Systems,” 2021, https://doi.org/10.4060/cb6562en.
[xxiv] Nature Food, “Visions of Food Systems at COP27,” Nat Food 3 (2022): 969, https://doi.org/10.1038/s43016-022-00680-y.
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