Published on Oct 09, 2019 Updated 0 Hours ago

पाकिस्तान के आवाम को चाहिए कि वो अपने हुक्मरानों से पूछे कि आख़िर वो स्वच्छ ईंधन की आपूर्ति जैसी बुनियादी सुविधाओं से क्यों महरूम किए जा रहे हैं.

दक्षिण एशिया की ऊर्जा ग्रिड को जोड़ने में बाधाएं डाल कर पाकिस्तान अपना ही नुक़सान कर रहा है

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने 30 अगस्त 2019 को द न्यूयॉर्क टाइम्स में एक लेख लिखा था. इसकी शुरुआत उन्होंने इस बात से की थी कि भारत और पाकिस्तान जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, वो कम-ओ-बेश एक जैसी हैं. इस लेख में इमरान ख़ान ने सफ़ाई दी थी कि प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के साथ संबंध बेहतर बनाने के लिए कई बार कोशिश की. क्योंकि दोनों देशों का बेहतर भविष्य शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में ही है. हालांकि इमरान ख़ान की ये बातें बिल्कुल नेक कही जा सकती हैं. लेकिन, दिक़्क़त ये है कि पाकिस्तान की हरकतें, इमरान सरकार के दोगलेपन और पाखंड को साफ़ उजागर करती हैं.

ये देखना दिलचस्प है कि इसी लेख मे इमरान ख़ान जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौती का भी ज़िक्र करते हैं. इस में कोई दो राय नहीं कि जलवायु परिवर्तन आज दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती बन गया है. लेकिन, इस चुनौती से पार पाने के लिए और इसके ख़तरे को कम करने के लिए पाकिस्तान को जो क़दम उठाने चाहिए थे, वो उसने नहीं उठाए हैं, ताकि दक्षिण एशिया और आस-पास के देशों की मदद हो सके. पाकिस्तान इस मामले में सहयोग वाली भूमिका में बिल्कुल भी नहीं दिखता. बल्कि, अपने पड़ोसी देशों जैसे भारत तक साफ़ ईंधन पहुंचाने के कारोबार में पाकिस्तान का जो रोल रहा है, वो बाधा डालने वाला और नुक़सान पहुंचाने वाले देश का ही रहा है. जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने का एक तरीक़ा ये भी है कि प्राकृतिक गैसें जैसे स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल ज़्यादा से ज़्यादा हो. ऐसे ईंधनों के इस्तेमाल से वायुमंडल में कोयले या तेल से कम कार्बन डाई ऑक्साइड निकलती है. साथ ही इनसे ज़्यादा ऊर्जा भी मिलती है.

तमाम दस्तावेज़ जो इशारा करते हैं, उनसे साफ़ है कि पाकिस्तान, इन पाइपलाइन को, किसी संघर्ष की सूरत में, भारत के ख़िलाफ़ हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का इरादा रखता है.

पाकिस्तान, ईरान और तुर्कमेनिस्तान जैसे देशों का पड़ोसी है या फिर क़रीबी है, जो प्राकृतिक गैस के बड़े उत्पादक देश है. ऐसे में पाकिस्तान के माध्यम से प्राकृतिक गैस के उत्पादक देशों से प्राकृतिक गैस के परिवहन की अच्छी संभावनाएं थीं. 1990 के दशक की शुरुआत में इस क्षेत्र के देशों ने महत्वाकांक्षी योजना बनाई थी. जिस में ऊर्जा के आयातक देशों तक ये प्राकृतिक गैस पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था. ईरान-पाकिस्तान-भारत गैसपाइप लाइन और तुर्कमेनिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान से होते हुए पाकिस्तान के रास्ते भारत तक गैस पाइपलाइन जिसे TAPI योजना भी कहा गया था, बिछाने की योजना बनाई गई थी. इन परियोजनाओं की कामयाबी का फ़ायदा पूरे दक्षिणी एशिया को होता. उनकी ऊर्जा की ज़रूरतें पूरी होतीं. स्वच्छ ईंधन मिलता और विकास के काम रफ़्तार पकड़ते. हाल ही में आई कुछ रिपोर्टों के मुताबिक़, पाकिस्तान गैसों के आयात के बावजूद, वित्तीय वर्ष 2024 तक प्रति दिन 3.6 अरब क्यूबिक फुट गैस की कमी का सामना करेगा. लेकिन, जब हम प्राकृतिक गैस के कारोबार के मसले पर पाकिस्तान के रवैये पर नज़र डालते हैं, तो साफ़ हो जाता है कि इस मामले में क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने की राह में पाकिस्तान का रवैया ही सबसे बड़ी बाधा है.

जब से इन पाइपलाइनों की योजना के प्रस्ताव सामने रखे गए हैं, तब से ही पाकिस्तान का रवैया अड़ंगा डालने वाला ही रहा है. और इसका सिलसिला बातचीत शुरू होते ही हो गया था. तमाम दस्तावेज़ जो इशारा करते हैं, उनसे साफ़ है कि पाकिस्तान, इन पाइपलाइन को, किसी संघर्ष की सूरत में, भारत के ख़िलाफ़ हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का इरादा रखता है. अपने एक कॉलम में आर के पचौरी लिखते हैं कि शुरुआत में भारत सरकार ने ईरान से भारत के बीच गहरे समुद्र वाली पाइपलाइन की योजना के विकल्प के बारे में विचार किया था. लेकिन, पचौरी के मुताबिक़ ये ज़मीन के रास्ते पाइपलाइन बिछाने के विकल्प से काफ़ी महंगा पड़ता. इसके मुक़ाबले ज़मीन के रास्ते पाइपलाइन प्रोजेक्ट पूरा करना सस्ता भी था और सुरक्षित भी.

अगर हम ये मान भी लें कि आने वाले वक़्त में अमेरिका, ईरान पर लगाए गए प्रतिबंध हटा भी लेता है, तो भी कोई निवेशक मौजूदा हालात में इंडिया, पाकिस्तान, ईरान पाइपलाइन में निवेश करने के लिए इच्छुक नहीं होगा.

दूसरी अहम बात ये है कि अपने बलूचिस्तान सूबे में पाकिस्तान का बर्ताव ऐसा है, जिसने इस सूबे से गुज़रने वाले हर प्रोजेक्ट की सुरक्षा पर हमेशा ख़तरा बना रहता है. बलूचिस्तान के आम नागरिकों को अगवा कर के लापता करना, ताक़त का बेज़ा इस्तेमाल और विकास से जुड़ी किसी चुनौती की समझ का न होने से बलूचिस्तान से होने वाला ऊर्जा के स्रोतों का कोई कारोबार न सुरक्षित है और न ही फ़ायदेमंद. अगर हम ये मान भी लें कि आने वाले वक़्त में अमेरिका, ईरान पर लगाए गए प्रतिबंध हटा भी लेता है, तो भी कोई निवेशक मौजूदा हालात में इंडिया, पाकिस्तान, ईरान पाइपलाइन में निवेश करने के लिए इच्छुक नहीं होगा.

वहीं, तुर्कमेनिस्तान से अफग़ानिस्तान और पाकिस्तान होते हुए भारत तक आने वाली पाइपलाइन कई साल पहले ही तैयार हो जानी चाहिए थी. लेकिन इसका भविष्य अभी भी अनिश्चित ही दिखाई दे रहा है. इसकी बड़ी वजह अफ़ग़ानिस्तान के हालात हैं. चूंकि अफ़ग़ानिस्तान की परिस्थितियों पर पाकिस्तान का कुछ हद तक नियंत्रण है, ख़ास तौर से उन इलाक़ों में, जो तालिबान के क़ब्ज़े में हैं. तो, तालिबान जिस तरह लगातार तशद्दुद के हालात बनाए हुए है, उससे साफ़ है कि उसे पाकिस्तान से सियासी और सैन्य समर्थन ही नहीं इमदाद भी मिलती रहती है. इसके अलावा अफ़ग़ानिस्तान में कई आतंकवादी संगठनों की मौजूदगी और ड्रग के कारोबार ने विकास के लिए नए सिरे से पहल करने की अफ़ग़ानिस्तान की कोशिशों की हवा निकाल दी है. बड़े अफ़सोस की बात है कि तुर्कमेनिस्तान और ईरान जैसे तेल और गैस के संसाधनों से भरपूर देशों का पड़ोसी होने के बावजूद, अफ़ग़ानिस्तान अपनी अनूठी भौगोलिक सीमाओं का फ़ायदा नहीं उठा पा रहा है. वरना, अगर हालात सही होते, तो अफ़ग़ानिस्तान, इस इलाक़े का औद्योगिक पावरहाउस बन सकता था. और ये तो कहने की बात ही नहीं है कि अगर अफ़ग़ानिस्तान में अंदरूनी हालात बेहतर होते, वो तरक़्क़ी की राह पर चलता, तो इससे पाकिस्तान का भी भला होता. लेकिन, अफ़ग़ानिस्तान के अंदरूनी मामलों में पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसियों की लगातार दख़लंदाज़ी की वजह से, विकास की ऐसी हर संभावना की भ्रूण हत्या हो रही है. हालांकि हाल ही में पाकिस्तान ने तुर्कमेनिस्तान को ये भरोसा दिलाया है कि कश्मीर मसले पर भारत से हालिया तनाव का असर तुर्कमेनिस्तान से भारत तक आने वाली पाइपलाइन के प्रोजेक्ट पर नहीं पड़ेगा. लेकिन, पाकिस्तान जिस तरह अपनी ज़मीन पर और अफ़ग़ानिस्तान में लगातार आतंकवादी संगठनों को समर्थन और मदद दे रहा है, उससे तापी (TAPI) प्रोजेक्ट में कोई तरक़्क़ी होने के आसार नहीं दिख रहे हैं.

अपने सूबे में और अपने पड़ोसी देशों के मामलों में लगातार दख़लंदाज़ी की वजह से पाकिस्तान आज किसी भी क्षेत्रीय सहयोग वाले ऊर्जा प्रोजेक्ट में साझीदार नहीं बन पा रहा है. इसके बजाय उसे समुद्री रास्ते से अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को आयात कर के पूरा करना पड़ रहा है.

अपने सूबे में और अपने पड़ोसी देशों के मामलों में लगातार दख़लंदाज़ी की वजह से पाकिस्तान आज किसी भी क्षेत्रीय सहयोग वाले ऊर्जा प्रोजेक्ट में साझीदार नहीं बन पा रहा है. इसके बजाय उसे समुद्री रास्ते से अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को आयात कर के पूरा करना पड़ रहा है. अब जबकि ईरान से पाकिस्तान होकर भारत आने वाली या फिर तुर्कमेनिस्तान से अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान होकर आने वाली पाइपलाइन के प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं. तो, पाकिस्तान को महंगे ऊर्जा आयात के विकल्पों पर निर्भर होना पड़ रहा है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले से ही बुरी स्थिति में है. ऐसे में महंगे तेल और गैस की वजह से उस पर बोझ और बढ़ रहा है. पाकिस्तान एक ऐसा देश बन सकता था, जो दूसरे क्षेत्रों से दक्षिण एशिया को जोड़ने वाले एनर्जी प्रोजेक्ट में साझीदार बन सकता था और अच्छा मुनाफ़ा कमा सकता था. लेकिन, आज वो ख़ुद अपनी ऊर्जा ज़रूरतों की हिफ़ाज़त सुनिश्चित नहीं कर पा रहा है. पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियां जो साज़िशें और हरकतें पिछले कुछ दशकों से कर रही हैं, उनसे पाकिस्तान को अपने विकास की चुनौतियों से निपटने में ही दिक़्क़तें आ रही हैं. ये ख़ुद पाकिस्तान के आवाम के लिए महंगा सौदा साबित हो रहा है.

अगर पाकिस्तान अपना रवैया बदलता, तो ऐसे ऊर्जा प्रोजेक्ट में सहयोग का सबसे बड़ा फ़ायदा भारत को होना था. लेकिन, पाकिस्तान के अड़ियल रवैये को देखते हुए भारत अब दूसरे विकल्पों पर काम कर रहा है. आज भारत ख़ुद ही दक्षिण एशिया की ऊर्जा ज़रूरतों का केंद्र बन रहा है. भारत ने स्वच्छ ईंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण क़दम उठाए हैं, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था के विकास को नई धार और रफ़्तार मिलेगी. 2030 तक ऐसे स्वच्छ ईंधन की हिस्सेदारी भारत की ऊर्जा ज़रूरतों में काफ़ी हद तक बढ़ने की उम्मीद है. हाल ही में भारत और नेपाल ने दोनों देशों के बीच एक पाइपलाइन बिछाने के समझौते पर दस्तख़त किए हैं, जिसके ज़रिए पेट्रोलियम उत्पादों का परिवहन हो सकेगा. ठीक इसी तरह, हाल ही में ख़बरें आई थीं कि भारत अपने पूर्वोत्तर के राज्यों को एलपीजी की आपूर्ति के लिए बांग्लादेश के रास्ते का इस्तेमाल करने पर गंभीरता से विचार कर रहा है. इसके अलावा भारत और भूटान के बीच पनबिजली परियोजनाओं में बढ़ते सहयोग से भी इस दिशा में क़दम बढ़ा है. हाल ही में भूटान में मांगडेचू पनबिजली प्रोजेक्ट के उद्घाटन से दोनों देशों में सहयोग का नया अध्याय लिखा गया है. ये कोई छोटी-मोटी उपलब्धि नहीं है. आने वाला सफ़र और भी सकारात्मक रहने वाला है.

इसीलिए, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के लिए बेहतर यही होगा कि वो भारत के साथ विकास के मसलों पर सहयोग की बात करने से पहले, पाकिस्तान के असल हुक्मरानों यानी फ़ौज और ख़ुफ़िया एजेंसियों के बर्ताव पर नज़र डाल लें. पाकिस्तान की सियासी जमातें अपने ही आर्थिक और औद्योगिक विकास की राह में अपने बर्ताव से बाकायदगी से रोड़े अटका रही हैं. वो अपनी ख़ुदग़र्ज़ी के लिए पूरे क्षेत्र के विकास को अपने बर्ताव की वजह से बंधक बनाए हुए हैं. अपने स्तर पर आम पाकिस्तानियों को भी चाहिए कि वो पाकिस्तान के नीति निर्माताओं और सुरक्षा एजेंसियों की जवाबदेही तय करें. पाकिस्तान के आवाम को चाहिए कि वो अपने हुक्मरानों से पूछे कि आख़िर वो स्वच्छ ईंधन की आपूर्ति जैसी बुनियादी सुविधाओं से क्यों महरूम किए जा रहे हैं.

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