Author : Sushant Sareen

Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

इमरान ख़ान की सत्ता को अविश्वास प्रस्ताव के ज़रिये चुनौती दिये जाने से पाकिस्तान में अव्यवस्था की स्थिति पैदा हो गयी है.

अविश्वास प्रस्ताव: अपनी ही भूलभुलैया में फंसे इमरान ख़ान
अविश्वास प्रस्ताव: अपनी ही भूलभुलैया में फंसे इमरान ख़ान

पाकिस्तान में राजनीतिक सत्ता असेंबलियों में अंकगणित का मामला उतना नहीं है, जितना कि यह राजनीति के बीजगणित का मामला है. प्रधानमंत्री इमरान ख़ान पत्थर की लकीर जैसे इस नियम को उस वक़्त भूल गये, जब उन्होंने यह मान लिया कि उनके शासन के प्रति पाकिस्तानी सेना का समर्थन एक अचर (कॉन्सटेंट) है. पाकिस्तान की राजनीति में पाकिस्तानी सेना भले ही एक अचर है, लेकिन उसका मान (वैल्यू) बदलता रहता है, जो उसके कॉरपोरेट हितों और तत्कालीन सरकार के इर्दगिर्द बने हालात पर निर्भर होता है. इस अर्थ में, सेना एक शक्तिशाली प्राचल (पैरामीटर) की तरह ज़्यादा है, जिसके समर्थन को गारंटी की तरह नहीं लिया जा सकता. अब इमरान ख़ान ने जब यह समझना शुरू किया है, तो उनका ध्यान विपक्षी दलों द्वारा लाये गये अविश्वास प्रस्ताव को जीतने के लिए असेंबलियों के अंकगणित पर ज़्यादा केंद्रित दिखता है. वह सोचते हैं कि वह साम-दाम-दंड-भेद के ज़रिये संख्याओं का जुगाड़ कर सकते हैं और बच सकते हैं. हालांकि, यह देखते हुए कि समीकरण बदल रहा है, अगर निर्णायक पैरामीटर उनके पक्ष में काम नहीं करता है, तो न अंकगणित और न ही बीजगणित उनके पक्ष में जायेगा.

पाकिस्तान की राजनीति में पाकिस्तानी सेना भले ही एक अचर है, लेकिन उसका मान (वैल्यू) बदलता रहता है, जो उसके कॉरपोरेट हितों और तत्कालीन सरकार के इर्दगिर्द बने हालात पर निर्भर होता है.

फ़िलहाल, पाकिस्तानी सेना ने प्रकट तौर पर तटस्थता की स्थिति अपनायी है. अब यह चर्चा नहीं है कि सेना और इमरान ख़ान की सत्ता ‘साथ-साथ’ हैं, जबकि पहले यह बात लोकप्रसिद्ध थी. हालांकि, तटस्थता ने राजनीतिक समीकरण को उलझा दिया है. एक स्तर पर, इसका मतलब है कि सेना इस समीकरण में मौजूद है, लेकिन फ़िलहाल किसी अन्य चर (वैरिएबल) को प्रभावित नहीं करेगी. मसला यह है कि विभिन्न वैरिएबल- गठबंधन सहयोगी, सत्तारूढ़ पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) के असंतुष्ट तत्व, और यहां तक कि कुछ विपक्षी तत्व- सैन्य प्रतिष्ठान द्वारा इशारे, टहोके या धकियाये जाने के बिना किस तरह का व्यवहार करेंगे, इस बारे में कोई भी पूरी तरह सुनिश्चित नहीं है. दूसरे स्तर पर, जैसाकि समझा जाता है, सेना की तटस्थता उन सत्ताधारियों के ख़िलाफ़ काम करती है जो सत्ता पाने और उसमें बने रहने के लिए सेना पर निर्भर रहे हैं. शायद यही फैक्टर है जिसके चलते इमरान ख़ान ने सेना पर भड़ास निकालते हुए कहा कि केवल जानवर तटस्थ होते हैं.

संख्याओं का खेल

जैसी अभी स्थिति है, बिसात इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ बिछी हुई लगती है. पीटीआई के केवल 155 नेशनल असेंबली सदस्य (एमएनए) हैं – 342 के सदन में यह साधारण बहुमत से 17 कम है. तीन मुख्य विपक्षी दलों – पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ (पीएमएलएन), पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और मुत्ताहिदा मजलिस-ए-अमल (एमएमए, जमीअत उलेमा इस्लाम के मौलाना फ़ज़लुर रहमान की अगुवाई वाली) के पास मिलाकर इतने ही सदस्य हैं. इमरान के गठबंधन साझेदारों – पाकिस्तान मुस्लिम लीग क़ायद-ए-आज़म (पीएमएलक्यू), मुत्ताहिदा क़ौमी मूवमेंट (एमक्यूएम), बलूचिस्तान अवामी पार्टी (बीएपी), ग्रैंड डेमोक्रेटिक अलायंस (जीडीए) तथा कुछ छोटे दलों और निर्दलीयों – को सेना ने 2018 में इमरान ख़ान के समर्थन में एकजुट किया, जिससे उन्हें बहुमत मिला. हालांकि, यह बात लगातार स्पष्ट होती जा रही है कि अब वह अपने कुछ बड़े गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर नहीं रह सकते.

जो चीज़ समीकरण या स्थिति को जटिल बना रही है, वो ये नहीं है कि इमरान ख़ान बचेंगे या नहीं, बल्कि यह है कि अगर उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने के पक्ष में वोट पड़े तो उसके बाद क्या होगा. 

न तो पीएमएलक्यू (5) और न ही एमक्यूएम (7) खुलकर इमरान के समर्थन में आये हैं और ऐसा माना जा रहा है कि वे पाला बदलने के लिए विपक्ष के साथ अच्छे सौदे के लिए मोलभाव कर रहे हैं. बीएपी (5) का समर्थन भी पक्का नहीं है. अकेले यही तीन दल अविश्वास प्रस्ताव को विपक्ष के पक्ष में झुका सकते हैं. इसके अलावा ऐसी ख़बरें भी हैं कि पीटीआई के भीतर बड़ी संख्या में असंतुष्ट एमएनए हैं – यह संख्या 20 से 40 तक है – जो न सिर्फ़ इमरान से नाराज़ हैं, बल्कि उनके साथ बने रहने में अपना कोई राजनीतिक भविष्य नहीं देखते, और इससे स्पष्ट है कि अंकगणित इमरान के ख़िलाफ़ जायेगा. बेशक, अगर अंतिम क्षणों में सेना एक बार फिर सरकार को बचाना तय करती है, तो गणित भी बदल जायेगा.

जो चीज़ समीकरण या स्थिति को जटिल बना रही है, वो ये नहीं है कि इमरान ख़ान बचेंगे या नहीं, बल्कि यह है कि अगर उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने के पक्ष में वोट पड़े तो उसके बाद क्या होगा. पाकिस्तान और उसकी सेना के लिए समस्या यह है कि अगर इमरान अपनी सत्ता बचा लेते हैं, तो वह अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के ख़िलाफ़ अपनी सभी फासीवादी कल्पनाओं को बेलगाम छोड़ देने की धमकी पहले ही दे चुके हैं. ऐसा नहीं है कि उन्होंने अपने विरोधियों के उत्पीड़न का अपना दुष्टतापूर्ण, निंदक और द्वेष भरा रूप पहले नहीं दिखाया है. भ्रष्टाचार निगरानी संस्था नेशनल एकाउंटेबिलिटी ब्यूरो के दुरुपयोग द्वारा विरोधियों को जेल भेजकर, उनमें से कुछ के ख़िलाफ़ झूठे मुकदमे बनाकर, मीडिया को चुप कराकर, अपना विरोध करनेवालों के ख़िलाफ़ ट्रोल सेना लगाकर और दमनकारी क़ानून लाकर वह यह काम कर चुके हैं. इस बात का वास्तविक डर है कि अगर वह अविश्वास प्रस्ताव से बच गये, तो वह अपने विरोधियों को खदेड़ते हुए सनक की हद तक चले जायेंगे. इससे भी बुरा यह कि वह सेना के उच्चपदस्थों को भी निशाना बना सकते हैं. वह पहले ही सेना अध्यक्ष पर निशाना साध चुके हैं और उन्हें हटाने का इशारा कर चुके हैं जैसे ख़लीफ़ा उमर ने इस्लामी सिपहसालार ख़ालिद बिन वालिद को सैन्य अभियान के बीच में हटाया था.

ऐसी उड़ती खबर है कि इमरान वर्तमान सेना अध्यक्ष जनरल क़मर बाजवा की जगह पूर्व आईएसआई प्रमुख एवं पेशावर के वर्तमान कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल फ़ैज हमीद को लाकर सेना के भीतर तख़्तापलट करने के बारे में गंभीरता से सोच रहे हैं. अगर वह यह काम तुरंत नहीं भी करते हैं, तो वह नवंबर में करेंगे जब बाजवा का कार्यकाल ख़त्म होगा. विपक्ष जानता है कि हमीद के मातहत सेना इमरान की निजी सेना बन जायेगी और अक्टूबर/नवंबर 2023 में पड़ने वाले अगले चुनाव में उनकी जीत के लिए कोई कोर-कसर बाक़ी नहीं रखेगी. इमरान ख़ान ने जिस तरह सेना का राजनीतिकरण किया है उसे लेकर सेना के अंदर काफ़ी असंतोष है. यह हमेशा से एक निषिद्ध क्षेत्र रहा है, एक लाल रेखा जिसे लांघा नहीं जा सकता. इमरान ख़ान द्वारा हड़बड़ी में उठाये गये किसी भी क़दम के चलते सेना उनके साथ वही कर सकती है जो उसने 1999 में नवाज़ शरीफ़ के साथ किया था, जब उन्होंने मुशर्रफ़ को हटाया था. इसके अलावा, जब बात अविश्वास प्रस्ताव की आती है, तो सेना के भीतर राजनीति खेलने को लेकर उच्चपदस्थों में बेचैनी एक महत्वपूर्ण निर्णायक कारक होगी.

विफलता की स्थिति में योजना

अगर इमरान ख़ान सत्ता से बाहर होते हैं, तो उसके बाद क्या होगा? अभी तक इसका कोई स्पष्ट रोडमैप नहीं है. क्या मौजूदा असेंबलियां अपना कार्यकाल पूरा करेंगी, यानी अगस्त 2023 तक बची रहेंगी? या एक या दो महीने के अंदर नये चुनाव होंगे? ऐसी ख़बरें हैं कि शीर्ष विपक्षी नेता एक रोडमैप पर तैयार हो गये हैं, लेकिन वह क्या है, कोई नहीं जानता. हालांकि, विपक्षी दल इमरान को फिर से कुर्सी पर देखने के लिए उत्साहित हैं, वे जानते हैं कि पाकिस्तान इतने गहरे आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक जंजाल में फंसा है कि प्रधानमंत्रित्व कांटों का ताज है. अगले कुछ महीनों में कुछ बेहद कड़े फ़ैसले लिये जाने हैं, जो अत्यंत अलोकप्रिय होंगे. कोई राजनेता अगले चुनावों से एक साल पहले इन फ़ैसलों को नहीं लेना चाहेगा. इसके बजाय वे एक कार्यवाहक सरकार चाहेंगे जो आवश्यक क़दम उठाए, और वे चुनावों में पुराने बोझ से मुक्त होकर जा सकें. हालांकि, कुछ दूसरी ज़्यादा सामान्य किस्म की राजनीतिक जटिलताएं भी हैं. पाला बदलने वाले दल और राजनेता कुछ ख़ास गारंटियां चाहते हैं, ताकि विपक्ष के साथ रहना मूल्यवान हो सके. किसे क्या मिलेगा और भीतरखाने होने वाले इन सौदों में कौन गारंटर के रूप में खड़ा होगा, यह अब भी साफ़ नहीं है. और अंतत:, सिविल-सैन्य समीकरण पर सेना के साथ भविष्य में क्या समझ होगी, इस पर भी काम करने की ज़रूरत होगी.

अगर इमरान ख़ान सत्ता से बाहर होते हैं, तो उसके बाद क्या होगा? अभी तक इसका कोई स्पष्ट रोडमैप नहीं है. क्या मौजूदा असेंबलियां अपना कार्यकाल पूरा करेंगी

फ़िलहाल, ऐसा लगता है कि इन सवालों में से कई को अविश्वास प्रस्ताव के बाद के लिए लंबित रखा गया है. क्या यह फैक्टर राजनीति का बीजगणित बदलेगा और इमरान ख़ान को उबारेगा, या फिर उनके खिलाफ जो संख्याएं अभी एकजुट हैं उनका पता अविश्वास प्रस्ताव की तारीख़ के क़रीब आने पर ही चलेगा. इमरान ख़ान शायद जानते हैं कि यह उनके लिए अवसान हो सकता है. इसलिए, वह दोहरी रणनीति अपना रहे हैं. पहला हिस्सा है, सत्ता से बाहर होने के बाद की ज़िंदगी की तैयारी. सार्वजनिक भाषणों में उनकी लफ़्फ़ाज़ी एक तगड़े इस्लामी राष्ट्रवादी की छवि हासिल करने की है, जिसे दुष्ट और षड्यंत्रकारी पश्चिम, भ्रष्ट राजनेताओं, और पाकिस्तान के दुश्मनों के साथ खड़ी सेना द्वारा नीचा दिखाया गया है. वह चाहते हैं कि उन्हें एक देशभक्त के रूप में याद किया जाए जो पाकिस्तान के लिए लड़ रहा था. तथ्य यह है कि उन्होंने अपने ढुलमुल प्रशासन और बेहद बुरे आर्थिक प्रबंधन से देश का कबाड़ा कर दिया. इसके अलावा, उन्होंने जिस क्रोनी कैपिटलिज्म को बढ़ावा दिया, वह एक अलग मामला है.

उनकी रणनीति का दूसरा हिस्सा है कि वह बिना लड़ाई के हार नहीं मानेंगे. वह अपने विरोधियों को मात देने के लिए सभी परिचित और अपरिचित हथकंडों का इस्तेमाल करेंगे. वह पहले ही गीदड़भभकी दे चुके हैं कि अगर वह सत्ता से बाहर हुए तो और भी ख़तरनाक होंगे. हालांकि, कोई इसे गंभीरता से नहीं ले रहा, क्योंकि एक बार पद से हटने के बाद अगर वह कुछ कहते हैं या करने की कोशिश करते हैं तो उन्हें ख़ामोश करा दिया जायेगा. इसके बावजूद, वह स्थितियों को जटिल बनाने में जुटे हैं. उन्होंने अर्थव्यवस्था में पहले ही बारूदी सुरंगें लगा दी है. उनके बाद जो भी सत्ता में आयेगा उसका सामना इन सुरंगों में धमाकों से होगा. उनके द्वारा उठाये गये लोकलुभावन क़दमों के चलते आईएमएफ के साथ बातचीत रुक गयी है. पश्चिम – यूरोपीय संघ और अमेरिका – के ख़िलाफ़ उनकी शिकायती बकबक उनके उत्तराधिकारी के लिए कुओं में ज़हर घोल देगी. हालांकि, इन सबसे बढ़कर, अविश्वास प्रस्ताव जीतने के लिए इमरान जो क़दम उठाने की योजना बना रहे हैं, वह टकराव की आशंका पैदा कर रहा है, और जो आसानी से लोकतंत्र के मुखौटे को भी ध्वस्त कर सकता है.

ख़बरों के मुताबिक़, सरकार मतदान से पहले ही पीटीआई के उन सदस्यों को अयोग्य ठहराने के लिए संविधान की जान-बूझकर गलत व्याख्या की योजना बना रही है, जो अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने का इरादा रखते हैं. और कुछ नहीं तो, उनके वोट स्पीकर द्वारा नहीं गिने जायेंगे. निस्संदेह इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जायेगी. हालांकि, जब तक अदालत अपने फ़ैसले पर पहुंचेगी, स्पीकर द्वारा दी गयी व्यवस्था लागू रहेगी. इसके अलावा संसद के बाहर विशाल जनसभा की भी योजना है. इसका मक़सद न सिर्फ़ पीटीआई सदस्यों को, बल्कि विपक्ष और गठबंधन सहयोगियों को भी डराना है. सूचना मंत्री फ़वाद चौधरी आगाह कर चुके हैं कि एमएनए को भीड़ से गुज़र कर संसद पहुंचना होगा, और अपना वोट डालने के बाद उसी भीड़ से होते हुए उन्हें लौटना होगा. अगर यह राष्ट्रीय असेंबली सदस्यों के ख़िलाफ़ हिंसा की खुली धमकी नहीं, तो और क्या है?

विपक्ष के बीच एक वास्तविक चिंता है कि इमरान ख़ान अविश्वास प्रस्ताव पर वोट देने से रोकने के लिए कई एमएनए को मनगढ़ंत आरोपों के तहत गिरफ़्तार कराने की कुटिल चाल का सहारा ले सकते हैं.

यह देखते हुए कि इमरान शासन 27 मार्च को सार्वजनिक रैली करने की योजना बना रहा है, साफ़ है कि अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान या तो 28 या 29 मार्च को होगा. इस बीच, विपक्ष ने भी इस आग से लड़ने का फ़ैसला किया है. मौलाना फ़ज़लुर रहमान ने अपनी पार्टी के लिए इस्लामाबाद में जमा होने का फ़रमान जारी किया है, ताकि पीटीआई को अविश्वास प्रस्ताव हाइजैक कर लेने से रोका जा सके. किस तरह का टकराव आकार ले रहा है, इसकी एक झलक 10 मार्च को देखने को मिली जब इस्लामाबाद पुलिस ने जेयूआईएफ के कुछ एमएनए को गिरफ़्तार करने के लिए संसदीय आवासों पर छापा मारा. आगबबूला हुए एक मौलाना ने अपने कैडरों को पाकिस्तान की सभी सड़कें जाम कर देने का फ़रमान सुनाया. ऐसा लगता है कि सेना ने अंतत: दख़ल दिया, गिरफ़्तार एमएनए रिहा कराये और फ़ज़लुर रहमान ने अपने कैडरों से नाकाबंदी ख़त्म करने को कहा. विपक्ष के बीच एक वास्तविक चिंता है कि इमरान ख़ान अविश्वास प्रस्ताव पर वोट देने से रोकने के लिए कई एमएनए को मनगढ़ंत आरोपों के तहत गिरफ़्तार कराने की कुटिल चाल का सहारा ले सकते हैं. अगर ऐसा हुआ, तो हालात बेक़ाबू हो सकते हैं, और सेना के पास सीधे दख़ल देने के अलावा कोई चारा नहीं होगा.

अविश्वास प्रस्ताव में चाहे जो घटित हो, पाकिस्तान आगामी हफ़्तों और महीनों में काफ़ी उथल-पुथल देखने वाला है.

निष्कर्ष

जैसी स्थितियां हैं, अविश्वास प्रस्ताव अब भी एक हफ़्ते से ज़्यादा दूर है. इसी दौरान इस्लामाबाद में ओआईसी सम्मेलन होने जा रहा है. कुछ ऐसी चिंताएं हैं कि इमरान ख़ान 50 ओआईसी विदेश मंत्रियों की मौजूदगी का इस्तेमाल बाजवा को हटाने के लिए कर सकते हैं. इतनी बड़ी संख्या में विदेशी हस्तियों की मौजूदगी में सेना के लिए कोई प्रतिक्रिया कर पाना कठिन होगा. अगर यह नहीं भी घटित होता है, तो अगले एक-दो हफ़्तों में काफ़ी कुछ बदल सकता है और इस दौरान पाकिस्तान आशंका भरे तनाव में रहेगा. हर तरह की झूठी और प्लांटेड ख़बरें हवा में तैर रही हैं, जिससे सिर्फ़ अनिश्चितता ही बढ़ रही है. सैन्य प्रतिष्ठान के भोंपू के रूप में जानेवाले पत्रकारों के ट्वीट भ्रम की स्थिति में केवल इजाफ़ा कर रहे हैं, क्योंकि कोई नहीं जानता कि वे सत्तारूढ़ दल की राह मोड़ने और उसे भरमाने की कोशिश कर रहे हैं या फिर सच में कोई नयी ख़बर दे रहे हैं. दूसरे जो इमरान ख़ान का विरोध करने के लिए जाने जाते हैं वे अपनी कहानी बुन रहे हैं कि इस सरकार को बाहर का रास्ता दिखाने की डील किस तरह पक्की हो चुकी है. हर घंटे और दिन घटनाक्रम बदल रहे हैं. वैसे, अविश्वास प्रस्ताव में चाहे जो घटित हो, पाकिस्तान आगामी हफ़्तों और महीनों में काफ़ी उथल-पुथल देखने वाला है.

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