Published on Dec 17, 2021 Updated 0 Hours ago
LPG Subsidy: ख़ामोशी से समाप्ति की ओर बढ़ रही है एलपीजी सब्सिडी?

ये लेख व्यापक ऊर्जा निरीक्षण: भारत और विश्व श्रृंखला का एक हिस्सा है.


स्थिति

पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ (Petroleum Planning & Analysis Cell) के अनुसार सक्रिय घरेलू गैस कनेक्शन (Active Domestic Gas Connection) और अनुमानित घरों की संख्या के आधार पर भारत में 99.8 प्रतिशत घरों में लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) कनेक्शन है. हो सकता है कि ये सटीक आंकड़ा नहीं हो क्योंकि ये घरेलू गैस कनेक्शन की संख्या को 2011 की जनगणना के आधार पर निर्धारित घरों की संख्या से भाग देने के बाद निकाला गया है. प्रस्तावित घरों की संख्या का एक साधारण समायोजन एलपीजी की पहुंच का वांछित प्रतिशत बता सकता है. इस ग़लती के बावजूद एलपीजी कनेक्शन (LPG Gas Connection) और उपभोग के लिए सब्सिडी (LPG Gas Subsidy) पिछले चार दशकों से ज़्यादा समय से घरों में एलपीजी को अपनाने में बढ़ोतरी के पीछे एक बड़ा कारण बनी हुई है.

हाल में एलपीजी की ख़ुदरा क़ीमत में बढ़ोतरी और पिछले एक साल से ज़्यादा समय से डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर पेमेंट (डीबीटी) की अनुपस्थिति से संकेत मिलता है कि एलपीजी सब्सिडी ख़ामोशी से ख़त्म कर दी गई है. 

हाल में एलपीजी की ख़ुदरा क़ीमत में बढ़ोतरी और पिछले एक साल से ज़्यादा समय से डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर पेमेंट (डीबीटी) की अनुपस्थिति से संकेत मिलता है कि एलपीजी सब्सिडी ख़ामोशी से ख़त्म कर दी गई है. लेकिन अगस्त 2021 में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कि क्या एलपीजी सब्सिडी ख़त्म कर दी गई है, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय (एमओपीएनजी) ने कहा कि सरकार घरेलू एलपीजी की वास्तविक क़ीमत को व्यवस्थित करने में लगी हुई है और एलपीजी पर सब्सिडी अंतर्राष्ट्रीय दाम और सरकार के फ़ैसले- दोनों पर निर्भर है. लेकिन पीपीएसी के आंकड़ों के मुताबिक़ घरेलू एलपीजी के लिए डीबीटी के रूप में आख़िरी सब्सिडी का भुगतान जुलाई 2019 में किया गया था. तब से घरेलू एलपीजी का ख़ुदरा दाम बुनियादी क़ीमत, डीलर कमीशन और जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स) को जोड़कर बना हुआ है. उदाहरण के लिए, अक्टूबर 2021 में करों और सब्सिडी से पहले एलपीजी की क़ीमत 780.52 रु./सिलेंडर थी और घरेलू उपभोक्ताओं से वसूली जाने वाली क़ीमत 884.5 रु./सिलेंडर थी जिसमें 61.84 रु./सिलेंडर डीलर का कमीशन और 42.14 रु./सिलेंडर जीएसटी शामिल था.

सब्सिडी के रुझान

अप्रैल 2014 से एलपीजी के खुदरा दाम में लगभग 113 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और ये 414 रु./सिलेंडर से बढ़कर अक्टूबर 2021 में 884.5 रु./सिलेंडर पर पहुंच गया है. “बोझ साझा करने” के कार्यक्रम, जो दिसंबर 2015 से अक्टूबर 2017 के बीच था, के तहत सबसे ज़्यादा बोझ (तेल कंपनियों के बीच) ओएनजीसी (तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम) ने उठाया जो दिसंबर 2015 में 50 रु./सिलेंडर तक पहुंच गया था. सरकार की तरफ़ से दाम में समर्थन (या तो खुदरा क़ीमत में छूट के ज़रिए या डीबीटी के रूप में) ने नवंबर 2018 में सबसे ज़्यादा 435 रु./सिलेंडर की ऊंचाई को छुआ. इसके बाद ये गिरकर जुलाई 2019 में लगभग 140 रु./सिलेंडर तक पहुंच गया. जुलाई 2019 के बाद सरकार की तरफ़ से एलपीजी सब्सिडी पर भुगतान का कोई रिकॉर्ड नहीं है.

स्रोत: Calculated from PPAC reports 2014 to 2021

सब्सिडी की समाप्ति

अगस्त 2021 में लोकसभा में उठाए गए एक प्रश्न कि वैश्विक क़ीमत में गिरावट के बावजूद एलपीजी की खुदरा क़ीमत ज़्यादा क्यों बनी हुई है, के जवाब में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस राज्यमंत्री ने एक अस्पष्ट सी बात कही जिसमें ये साफ़ तौर पर नहीं कहा गया कि एलपीजी सब्सिडी हटा ली गई है. लोकसभा या मीडिया के ज़रिए एलपीजी के दाम को लेकर पूछे गए सवाल को लेकर सरकार के नुमाइंदों की तरफ़ से जवाब में आरोप एलपीजी की अंतर्राष्ट्रीय क़ीमत में बढ़ोतरी पर मढ़ने पर ध्यान दिया गया. हालांकि एलपीजी की अंतर्राष्ट्रीय क़ीमत महामारी से जुड़े लॉकडाउन के ख़त्म होने के बाद बढ़ने लगी है लेकिन पिछले छह वर्षों से क़ीमत घट रही थी. 2013-14 (वित्तीय वर्ष) और 2019-20 के बीच एलपीजी की अंतर्राष्ट्रीय क़ीमत में 48 प्रतिशत की गिरावट आई और 2013-14 और 2020-21 के बीच इसमें लगभग 31 प्रतिशत की कमी आई. अप्रैल 2014 और अक्टूबर 2021 के बीच एलपीजी के खुदरा दाम में 110 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. एलपीजी का अंतर्राष्ट्रीय दाम मायने रखता है क्योंकि कुल एलपीजी खपत में एलपीजी आयात का हिस्सा 2011-12 के लगभग 37 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 में 57 प्रतिशत हो गया है.

एलपीजी का अंतर्राष्ट्रीय दाम मायने रखता है क्योंकि कुल एलपीजी खपत में एलपीजी आयात का हिस्सा 2011-12 के लगभग 37 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 में 57 प्रतिशत हो गया है. 

2013-14 और 2015-16 के बीच बोझ साझा करने के कार्यक्रम के तहत सरकारी सब्सिडी 64 प्रतिशत कम होकर 746.1 अरब रु. से 263 अरब रु. पर पहुंच गई और तेल कंपनियों का हिस्सा 98 प्रतिशत कम होकर 691.28 अरब रु. से लगभग 12.68 अरब रु. पर पहुंच गया. डीबीटी भुगतान 86 प्रतिशत से ज़्यादा कम होकर 2015-16 के 275.7 अरब रु. से 2020-21 के लगभग 36.58 अरब रु. पर पहुंच गया.

मुद्दे

सरकार ने अमीरों के लिए एलपीजी सब्सिडी कम करने और ‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना’ (पीएमयूवाई) के तहत ग़रीबों के लिए एलपीजी सब्सिडी की शुरुआत करने- दोनों का श्रेय लिया. लेकिन दोनों दावों पर विवाद है. 2016 में सरकार ने दावा किया कि उसने “गिव इट अप” योजना के ज़रिए एलपीजी सब्सिडी का बोझ घटाया है जबकि सिर्फ़ क़रीब 5 प्रतिशत उपभोक्ताओं ने स्वेच्छा से एलपीजी सब्सिडी से ख़ुद को अलग किया. इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि सीएजी (नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) ने इस दावे पर अविश्वास किया. सीएजी ने टिप्पणी की कि सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडर लेने में कमी ने भले ही छोटा सा योगदान दिया हो लेकिन एलपीजी सब्सिडी में कमी के पीछे सबसे बड़ी वजह अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में क़ीमत में कमी है. सीएजी ने पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय और तेल कंपनियों के द्वारा एलपीजी सब्सिडी में कमी से बचत के अनुमान के लिए अपनाई गई पद्धति में असंगति की तरफ़ भी ध्यान दिलाया.

दलील ये है कि एलपीजी तक पहुंच घरों में जैव ईंधन के इस्तेमाल को घटाती है और नतीजतन धुआं ख़त्म होता है जिसके कारण गांवों की रसोई में समय बिताने वाली महिलाओं का फेफड़ा ठीक रहता है. 

पहले के कई अध्ययनों के अनुसार प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के कारण ग़रीबों के घरों में प्राथमिक खाना बनाने वाले ईंधन के तौर पर एलपीजी को व्यापक तौर पर नहीं अपनाया गया. इस योजना का लक्ष्य कम वक़्त के लिए था जिसके तहत चुनावी राज्यों में मतदाताओं को एक बार की सब्सिडी पहुंचाना था. प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना पर खर्च में 50 प्रतिशत कटौती हुई और ये 2015-16 के 29.9 अरब रु. से घटकर 2019-20 में लगभग 12.93 अरब रु. हो गया. चूंकि प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत एलपीजी कनेक्शन हासिल करने वाले उपभोक्ताओं की आमदनी में कोई सुधार नहीं हुआ, इसलिए वो दूसरा सिलेंडर ख़रीदने में सक्षम नहीं हो पाए. एलपीजी के लिए सब्सिडी को ख़त्म करने की वजह से प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों के लिए दूसरा सिलेंडर ख़रीदना और भी मुश्किल हो गया है. ज़्यादातर घरों के लिए इसका मतलब फिर से जैव ईंधन जलाना है. ग़रीब उपभोक्ताओं को एलपीजी कनेक्शन देना एक अच्छा क़दम है लेकिन सार्थक ऊर्जा परिवर्तन के लिए ग़रीब घरों को आधुनिक, औद्योगीकृत और शहरी बनाया जाए ताकि एलपीजी तक पहुंच के लिए उन्हें सरकारी सब्सिडी कार्यक्रमों की ज़रूरत ही नहीं पड़े.

सीएजी ने टिप्पणी की कि सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडर लेने में कमी ने भले ही छोटा सा योगदान दिया हो लेकिन एलपीजी सब्सिडी में कमी के पीछे सबसे बड़ी वजह अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में क़ीमत में कमी है

सार्वजनिक सामानों जैसे ऊर्जा तक पहुंच (एलपीजी कनेक्शन या बिजली) को नागरिकों (मतदाताओं) को व्यापक सेवा प्रदान करने, जहां तक एक साथ कई लोगों की पहुंच होगी, के बदले वोट हासिल करने की नीयत से बांटने को लोकप्रियता कहा जाता रहा है. अब उसी चीज़ को सकारात्मक दृष्टिकोण से “नई तरह की कल्याणकारी नीति” के रूप में ढाल दिया गया है और पर्यावरणीय और स्वास्थ्य फ़ायदों के लिए इसका उत्सव मनाया जाता है. दलील ये है कि एलपीजी तक पहुंच घरों में जैव ईंधन के इस्तेमाल को घटाती है और नतीजतन धुआं ख़त्म होता है जिसके कारण गांवों की रसोई में समय बिताने वाली महिलाओं का फेफड़ा ठीक रहता है. अगर पर्यावरण और महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर वास्तविक दीर्घकालीन चिंता होती तो ऊर्जा तक पहुंच का कार्यक्रम राजनीतिक लक्ष्य का साधन नहीं बन जाता. इसके लिए राजनेताओं को चुनाव से आगे और बजट के प्रावधानों को चुनावी चक्र से आगे देखने की ज़रूरत है.

स्रोत: Calculated from PPAC reports 2011 to 2021

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Akhilesh Sati

Akhilesh Sati

Akhilesh Sati is a Programme Manager working under ORFs Energy Initiative for more than fifteen years. With Statistics as academic background his core area of ...

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Lydia Powell

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Ms Powell has been with the ORF Centre for Resources Management for over eight years working on policy issues in Energy and Climate Change. Her ...

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Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar, Assistant Manager, Energy and Climate Change Content Development of the Energy News Monitor Energy and Climate Change. Member of the Energy News Monitor production ...

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