Published on Nov 20, 2023 Updated 0 Hours ago

लाइबेरिया में हाल ही में संपन्न हुए शांतिपूर्ण चुनाव लगातार तख्त़ापलट की घटनाओं को झेल रहे अफ्रीका महाद्वीप के लिए आशा की एक नई किरण लेकर आए हैं.

लाइबेरिया में राष्ट्रपति चुनाव के लिए मुक़ाबला: कमज़ोर लोकतंत्र के सामने परीक्षा की घड़ी

लाइबेरिया के नागरिकों ने 14 नवंबर को एक बार फिर चुनाव में अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. लाइबेरिया के राष्ट्रपति जॉर्ज वी का छह साल का कार्यकाल पूरा हो रहा है और वे अगले कार्यकाल के लिए जनता से वोट मांग रहे थे. लाइबेरिया के इस चुनाव में प्रमुख उम्मीदवार वर्तमान राष्ट्रपति 57 वर्षीय जॉर्ज वी और 78 वर्षीय पूर्व उपराष्ट्रपति जोसेफ बोकाई थे. राष्ट्रपति चुनाव के लिए कांटे के इस मुक़ाबले में पूर्व फुटबॉल सुपरस्टार और वर्तमान राष्ट्रपति जॉर्ज वी को 43.8 प्रतिशत वोट मिले, जबकि उन्हें चुनौती दे रहे वरिष्ठ राजनेता जोसेफ बोकाई को 43.4 प्रतिशत वोट हासिल हुए. इस चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को कम से कम 50 प्रतिशत वोट का पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हो सका था, इसलिए लाइबेरिया में रनऑफ इलेक्शन हुआ. लाइबेरिया में जनवरी 2024 में एक नए राष्ट्रपति द्वारा पदभार ग्रहण करने की संभावना है. राष्ट्रपति चुनाव में बेहद नज़दीकी मुक़ाबले की उम्मीद के साथ लाइबेरिया अपने इतिहास में आज एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है.

 

लाइबेरियाई चुनाव 2023

 

लाइबेरिया की जनता ने 10 अक्टूबर 2023 को बेहद अहम राष्ट्रपति एवं संसदीय चुनावों के लिए अपना वोट डाला था. ज़ाहिर है कि वर्ष 2003 में लाइबेरिया में भयानक तबाही लाने वाले गृह युद्ध के खात्मे के बाद देश में चौथी बार चुनाव हुए हैं. इस बार के इलेक्शन में लाइबेरिया के रिकॉर्ड दो मिलियन पंजीकृत मतदाताओं ने 46 राजनीतिक दलों एवं राष्ट्रपति पद के 20 उम्मीदवारों को चुनने के लिए अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. लाइबेरिया में कुल पंजीकृत मतदाताओं में 50 प्रतिशत महिलाएं हैं, इसके बावज़ूद इस बार के चुनाव में केवल दो महिलाएं ही चुनाव मैदान में किस्मत अजमाने उतरी थीं.

 

 इस बार के इलेक्शन में लाइबेरिया के रिकॉर्ड दो मिलियन पंजीकृत मतदाताओं ने 46 राजनीतिक दलों एवं राष्ट्रपति पद के 20 उम्मीदवारों को चुनने के लिए अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया..

लाइबेरिया के चुनाव में भ्रष्टाचार और ग़लत तरीक़े से पैसा कमाने के छिटपुट आरोपों को छोड़कर देखा जाए तो प्रचार अभियान के दौरान शांति रही और पूरा फोकस दूसरे तरीकों से मतदाताओं को लुभाने पर रहा. इतना ही नहीं चुनाव की पूरी प्रक्रिया पर राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के 10,000 से अधिक पर्यवेक्षकों ने पूरी निगरानी रखी, साथ ही यूरोपियन यूनियन (EU) से ख़ास तौर पर आए 100 पर्यवेक्षकों ने भी लाइबेरिया के चुनाव पर अपनी पैनी नज़र रखी. इसके अतिरिक्त, अफ्रीकी संघ की ओर से भी राष्ट्रपति चुनाव की देखरेख के लिए ऑब्ज़र्वर्स को भेजा गया था. अफ्रीकन यूनियन द्वारा दक्षिण अफ्रीका के पूर्व उप राष्ट्रपति फुमज़िले म्लाम्बो-नगकुका के नेतृत्व में 60 पर्यवेक्षकों को लाइबेरिया में तैनात किया गया था. लाइबेरिया में तैनात सभी पर्यवेक्षकों को वहां के नेशनल इलेक्शन कमीशन (NEC) की ओर से मान्यता मिली हुई थी.

 

चुनाव के दौरान तैनात किए गए इन पर्यवेक्षकों के मुताबिक़ लाइबेरिया में इलेक्शन व्यवस्थित एवं शांतिपूर्ण तरीक़े से संपन्न हुआ. हालांकि मतदान के लिए उमड़ी लोगों की भारी भीड़ और मतदान प्रक्रिया के लिए लंबे प्रोटोकॉल ने वोटिंग की गति को धीमा ज़रूर किया, लेकिन जिस प्रकार से लाइबेरिया के मतदाताओं ने बड़ी तादाद में वोट डालकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया के प्रति अपने विश्वास को जताया वो बेहद संतोषजनक था. इसके साथ ही चुनाव आयोग के अधिकारियों ने जिस तरह से चुनाव को संपन्न कराया वो भी प्रशंसनीय था.

 

लाइबेरिया का हिंसक अतीत

 

लाइबेरिया पश्चिम अफ्रीका में स्थित है और यह अफ्रीका का सबसे पुराना गणराज्य है. इसके बावज़ूद यह तटीय देश दुनिया के सबसे कम विकसित राष्ट्रों में से एक बना हुआ है. लाइबेरिया ने दो गृह युद्धों का सामना किया है, यह गृह युद्ध 14 वर्षों (1989-2003) तक चले थे. लाइबेरिया का गृह युद्ध आधुनिक इतिहास की सबसे वीभत्स और विनाशकारी लड़ाइयों में से एक था. अनुमान है कि लाइबेरिया के गृह युद्ध में 2,50,000 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी, जो वहां की कुल आबादी का लगभग दसवां हिस्सा था. गृह युद्ध के दौरान लोगों पर भीषण अत्याचार किए गए. इन अत्याचारों में ड्रग्स के नशे में डूबे कमांडरों द्वारा बाल सैनिकों (child soldiers) को अपने माता-पिता को मारने के लिए मज़बूर किया गया, बच्चों के सिर को दीवारों या पत्थरों पर पटककर उन्हें मारा गया, गर्भवती महिलाओं के बच्चों को मारने के लिए उनके पेट को फाड़ा गया और नागरिकों को मानव मांस खाने के लिए मज़बूर किया गया था.

 

लाइबेरिया के अमेरिका के साथ प्रगाढ़ और ऐतिहासिक रिश्ते होने के बावज़ूद यूएस ने वहां व्यापक स्तर पर फैले गृह युद्ध में अपना कोई दख़ल नहीं दिया. दुर्भाग्य की बात यह थी कि लाइबेरिया में गृह युद्ध उस कालखंड में छिड़ा था, जब पूरी दुनिया ऐतिहासिक रूप से बदलाव के दौर से गुजर रही थी. उल्लेखनीय है कि वर्ष 1989 से 1991 को दौरान ज़्यादातर पश्चिमी यूरोपीय देशों की सरकारें पूर्वी यूरोप में और ख़ास तौर पर पूर्व सोवियत संघ में समाजवाद के खात्मे को लेकर घबराहट में थी और उथल-पुथल से घिरी हुई थीं. देखा जाए तो पूरा यूरोप उल्लेखनीय रूप से राजनीतिक उठा-पटक का सामना कर रहा था, जिसमें पूर्व और पश्चिम का गठजोड़ एवं यूगोस्लाविया के टकराव का व्यापक होना शामिल था. ज़ाहिर है कि पूरा यूरोप अपने आंतरिक विवादों और टकरावों में घिरा हुआ था, इसीलिए यूरोपीय देशों ने दुनिया में किसी और हिस्से में होने वाली उथल-पुथल पर बहुत कम ध्यान दिया. इतना ही नहीं, उस वक़्त यूरोप के लिए लाइबेरिया रणनीतिक या फिर सैन्य लिहाज़ से बहुत अहम भी नहीं था.

 

चुनाव के दौरान बड़े मुद्दे

लाइबेरिया ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के वार्षिक करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में 180 देशों की सूची में 142 स्थान पर है, जो साफ तौर पर ज़ाहिर करता है कि लाइबेरिया में भ्रष्टाचर एक बड़ी समस्या है और यह व्यापक रूप से हर स्तर पर फैला हुआ है. अमेरिकी ट्रेजरी की ओर से लाइबेरिया के वर्तमान राष्ट्रपति जॉर्ज वी के तीन नज़दीकी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाया गया था, जिनमें उनके क़रीबी चीफ ऑफ स्टाफ नथानिएल मैकगिल भी शामिल थे. इसके पश्चात जॉर्ज वी को पिछले साल मैकगिल का इस्तीफा स्वीकार करने पर मज़बूर होना पड़ा था. इन तीनों अधिकारियों पर सरकारी धन के दुरुपयोग और संदिग्ध अनुबंधों के आरोप लगाए गए थे. इसके अतिरिक्त, कोविड-19 महामारी एवं यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद उपजी परिस्थितियों में लाइबेरिया में खाद्य पदार्थों एवं ईंधन की क़ीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है. जून के महीने में लाइबेरिया में मुद्रास्फीति पिछले दो वर्षों के सबसे उच्च स्तर 12.4 प्रतिशत पर पहुंच गई थी.

 

 कोविड-19 महामारी एवं यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद उपजी परिस्थितियों में लाइबेरिया में खाद्य पदार्थों एवं ईंधन की क़ीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है. जून के महीने में लाइबेरिया में मुद्रास्फीति पिछले दो वर्षों के सबसे उच्च स्तर 12.4 प्रतिशत पर पहुंच गई थी..

लाइबेरिया के राष्ट्रपति जॉर्ज वी ने दोबारा चुने जाने पर नई सड़कों का निर्माण कर लोगों की बिजली, स्वास्थ्य सेवा एवं शिक्षा तक पहुंच बढ़ाने का वादा किया है. इसके साथ ही उन्होंने देश में बिजनेस और उद्योग के अनुकूल वातावरण को प्रोत्साहित करने के लिए ऋण में कटौती करने, अमेरिकी डॉलर की तुलना में लाइबेरियाई करेंसी की गिरावट को रोकने और विभिन्न वित्तीय एवं मौद्रिक नीतियों को लागू करने का भी वादा किया है. उनका कहना है कि चुनाव जीतने के बाद वो जो नई वित्तीय नीतियों को लाएंगे, उनसे मुद्रास्फ़ीति को 10 प्रतिशत से नीचे ले आएंगे. दूसरी ओर, लाइबेरिया की पहली राष्ट्रपति एलेन जॉनसन सरलीफ के उत्तराधिकारी जोसेफ बोकाई ने लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए मौज़ूदा सरकार की विरोधी लहर का फायदा उठाया है. बोकाई ने चुनाव के दौरान देश में कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देने और देश के इंफ्रास्ट्रक्चर को सशक्त करने का वादा किया. इसके साथ ही उन्होंने लाइबेरिया को जॉर्ज वी सरकार के कुशासन से मुक्ति दिलाने का भी वादा किया.

 

हिंसा भड़कने का ख़तरा

 

लाइबेरिया में व्यापक स्तर पर प्रशासनिक कमियों एवं भड़काऊ और लोगों को बांटने वाले भाषणों के बावज़ूद पिछले दो चुनावों, यानी 2005 और 2011 के चुनावों में बहुत कम हिंसा और ख़ून-ख़राबा हुआ था. इसके अलावा, लाइबेरिया के सभी 46 राजनीतिक दलों ने 4 अप्रैल 2023 को अपडेटेड फार्मिंगटन रिवर डिक्लेरेशन 2023 पर हस्ताक्षर किए थे. इस घोषणा पर हस्ताक्षर करके सभी पॉलिटिकल पार्टियों ने चुनाव पूर्व और चुनाव के बाद के सभी चुनावी विवादों को कानूनी प्रणाली के ज़रिए निपटाने की शपथ ली थी. हालांकि, अक्टूबर में हुए चुनाव से एक महीने पहले, देश के कई हिस्सों में सत्ता पर काबिज कॉलिजन फॉर डेमोक्रेटिक चेंज (Coalition for Democratic Change) एवं विपक्षी यूनिटी पार्टी (Unity Party) के कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़पें हुई थीं. चुनाव पूर्व हुई इस हिंसा में देश के लोफा काउंटी (Lofa County) में कम से कम दो लोग मारे गए थे और 20 लोग घायल हो गए थे.

 

वर्तमान चुनाव का महत्व

 

अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने भले ही लाइबेरिया के राष्ट्रीय चुनावों को ज़्यादा तवज्जो नहीं दी हो, बावज़ूद इसके लाइबेरिया के लिए इस बार के चुनाव ऐतिहासिक अवसर की तरह थे. लाइबेरिया के लोकतांत्रिक चुनावों के इतिहास पर नज़र डालें, तो इस बार जिस तरह से नागरिकों ने मतदान में बढ़चढ़ कर भागीदारी की है, वो बेमिसाल है. इसके अलावा यह लाइबेरिया का पहला ऐसा आम चुनाव था, जिसे पूरी तरह से वहां की संस्थानों द्वारा अपने दम पर संचालित किया गया था. इससे पहले हमेशा लाइबेरिया के चुनावों में संयुक्त राष्ट्र (UN) या इकोनॉमिक कम्युनिटी ऑफ वेस्ट अफ्रीकन स्टेट्स (ECOWAS) के सुरक्षा बलों जैसे विदेशी भागीदार की मदद ज़रूर ली जाती थी.

 

वास्तविकता में जॉर्ज वी और बोकाई के बीच ताज़ा मुक़ाबला वर्ष 2017 के चुनावों का ही दोहराव है. उल्लेखनीय है कि उस दौरान जॉर्ज वी को दूसरे दौर की वोटिंग में 61.54 प्रतिशत मत मिले थे और वो आसानी से जीत गए थे. हालांकि, रोज़मर्रा की ज़रूरतों की चीज़ों की बढ़ती क़ीमतों एवं व्यापक स्तर पर फैले भ्रष्टाचार ने जॉर्ज वी के समर्थन में कमी की है और विश्लेषकों का मानना है कि वर्तमान परिस्थितियों में राष्ट्रपति पद के दोनों दावेदारों के पास जीत हासिल करने का मौक़ा है. अब नतीज़ा चाहे जो भी आए, लेकिन कहा जा रहा है कि इस वर्ष के चुनावी परिणाम बेहद नज़दीकी होंगे.

 

आगे का रास्ता

लाइबेरिया में आम चुनाव ऐसे अवसर पर हुआ है, जब वर्ष 2003 में हुए अकरा शांति समझौते की 20वीं वर्षगांठ है. इसी शांति समझौते के बाद लाइबेरिया में सिविल वॉर का अंत हुआ था. हालांकि, कुछ हलकों में ऐसी चिंता भी जताई जा रही है कि अगर अगले दौर के चुनावी नतीज़े क़रीबी रहे, तो देश में हिंसा भड़क सकती है. फिलहाल देखा जाए तो इस बार लाइबेरिया में हुए राष्ट्रपति चुनाव शांतिपूर्ण रहे हैं और निष्पक्ष तरीक़े से संचालित किए गए हैं. वर्ष 2018 में संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों के जाने के बाद लाइबेरिया में इतने व्यवस्थित तरीक़े से हुआ यह पहला चुनाव है. इसके अतिरिक्त, इस बार के आम चुनाव में लाइबेरिया ने अपने लोकतंत्र को संरक्षित करने के लिए जिस प्रकार से प्रतिबद्धता जताई है और शांतिपूर्त तरीक़े से चुनावी मुक़ाबले को संचालित किया है, उसने स्पष्ट रूप से यह साबित किया है कि लाइबेरिया लोकतांत्रिक तौर पर उथल-पुथल वाले देश की छवि से उबरने एवं इसकी राह में आने वाली रुकावटों पर काबू पाने में सफल रहा है.

 

अफ्रीका के इस रीजन में हाल के महीनों में जिस प्रकार से गिनी, माली, बुर्किना फासो और गैबॉन में सैन्य तख़्तापलट की घटनाएं हुई हैं, साथ ही सिएरा लियोन में सरकार विरोधी प्रदर्शन एवं कोटे डी आइवर में रीइलेक्शन में राष्ट्रपति अलासेन औटारा की तीसरी बार सत्ता में वापसी हुई है, उससे स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि इस क्षेत्र के देशों में लोकतंत्र पर गंभीर ख़तरा मंडरा रहा है. ऐसे में लाइबेरिया में शांतिपूर्ण तरीक़े से संपन्न हुआ चुनाव तख़्तापलट के कई घटनाक्रमों से प्रभावित अफ्रीका महाद्वीप के लिए उम्मीद की एक किरण की तरह हैं. इतना ही नहीं यह चुनाव अफ्रीका और लाइबेरिया दोनों के लिए ही बेहद अहम हैं, क्योंकि दोनों ने ही व्यापक स्तर पर गृह युद्धों को झेला है. सच्चाई यह है कि वर्तमान समय में लाइबेरिया एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है. जिस प्रकार से कुछ वर्षों पहले ही लाइबेरिया दो भीषण गृहयुद्धों से उबरा है, ऐसे में लाइबेरिया के लिए शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव का संपन्न होना मौज़ूदा वक्त में उसकी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि की तरह है. फिलहाल जो हालात हैं, उनमें लाइबेरिया में ऐतिहासिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण चुनाव निष्पक्ष रूप से संपन्न हुआ है.


समीर भट्टाचार्या विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में वरिष्ठ रिसर्च एसोसिएट हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.