आदर्श तौर पर देखा जाए, तो हम सभी शांति और सद्भाव से भरी दुनिया में रहने का विकल्प चुनना पसंद करेंगे. हालांकि, दुर्भाग्य से आज के दौर में हम पूरी दुनिया में हिंसा और टकरावों की घटनाओं में बढ़ोतरी देख रहे हैं, जो कि न सिर्फ़ बहुत चिंताजनक हैं, बल्कि हमारे मानव समाज के ताने–बाने के लिए बेहद ख़तरनाक साबित हो रही हैं. युद्ध और शरणार्थी संकट से लेकर नफ़रत से जुड़े अपराध, नशीली दवाओं, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे, मानव तस्करी और भेदभाव तक ऐसी तमाम पेचीदा, उलझी हुई और बहुआयामी चुनौतियां हैं, जिनका हम आज सामना करते हैं.
सीरिया, यमन और यूक्रेन में चल रहे युद्धों के कारण सभी तरह की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के लोगों का बड़ी संख्या में विस्थापन हुआ है. यहां तक कि विकसित दुनिया भी हिंसा की घटनाओं से अछूती नहीं है.
वैश्विक स्तर पर हिंसा की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं और ये घटनाएं दुनिया के किसी भी क्षेत्र में हो सकती हैं. हिंसा की ये घटनाएं हर तबके, हर क्षेत्र के लोगों पर असर डालेंगी. उदाहरण के तौर पर सीरिया, यमन और यूक्रेन में चल रहे युद्धों के कारण सभी तरह की सामाजिक–आर्थिक पृष्ठभूमि के लोगों का बड़ी संख्या में विस्थापन हुआ है. यहां तक कि विकसित दुनिया भी हिंसा की घटनाओं से अछूती नहीं है. उदाहरण के लिए, अमेरिका में वर्ष 2023 में अब तक 268 व्यापक गोलीबारी की घटनाएं हुई हैं, जिनमें 7,700 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं.
ज़ाहिर है कि ऐसे में वैश्विक समुदाय को हिंसा और लड़ाई–झगड़ों की मूलभूत वजहों को दूर करने के लिए और एक ऐसे विश्व का सृजन करने के लिए काम करने की आवश्यकता है, जो न केवल समावेशी हो, बल्कि न्यायसंगत और अमनपसंद भी हो.
अपनी संस्कृति और जन–कल्याण की भावना, अहिंसा एवं समरसता से भरे सह–अस्तित्व के विचारों के साथ भारत पूरे विश्व में स्थायी शांति एवं सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभा सकता है. विश्व गुरु बनने की भारत की आकांक्षा और महात्मा गांधी की विरासत का लाभ उठाते हुए, जो कि आज भी दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित करती है, सिटीज4पीस (Cities4Peace) द्वारा किया गया कार्य विवादों के समाधान और शांति स्थापित करने के कार्यक्रमों को मज़बूती प्रदान करने के लिए भारत के अनुभव और कौशल को सार्थक रूप से एकजुट करने के लिए व्यावहारिक उदाहरण एवं एक व्यापक फ्रेमवर्क उपलब्ध कराता है.
शांति स्थापना की रणनीतियां और “मानवीय” आयाम
शांति स्थापित करने का मौज़ूदा नज़रिया पश्चिमी मॉडलों और सिद्धांतों पर आधारित हैं, जो कि सांस्कृतिक और संरचनात्मक हिंसा जैसे फैक्टरों को संबोधित करने और अच्छी तरह से काम करने वाले नागरिक संस्थानों, भ्रष्टाचार के निम्न स्तर एवं संसाधनों के समान रूप से वितरण जैसे संस्थागत समाधानों को सुनिश्चित करने को प्रमुखता देते हैं.
हालांकि, स्थायी रूप से शांति की स्थापना करने के लिए लड़ाई–झगड़ों से प्रभावित लोगों पर उसके मनोवैज्ञानिक एवं भावनात्मक आयामों के मुद्दे पर भी पर्याप्त रूप से ध्यान देने की ज़रूरत है. यदि हिंसा और टकराव की घटनाओं से प्रभावित होने वाले व्यक्तियों एवं समूहों को लगे सदमे या आघात के मुद्दे को संबोधित नहीं किया जाता है, तो ज़ाहिर तौर पर यह निराशा व गुस्से में तब्दील हो सकता है. नतीज़तन उनकी यह निराशा और उनका गुस्सा संभावित रूप से हिंसा के रूप में ज़ाहिर हो सकता है.
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने भी इस आंतरिक आयाम को संबोधित करने के महत्व को समझा है और हाल ही में टकरावों के समाधान एवं शांति स्थापना के कार्यक्रमों में मानसिक स्वास्थ्य और मनो-सामाजिक सहायता (MHPSS) को मिलाने की वक़ालत शुरू की है.
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने भी इस आंतरिक आयाम को संबोधित करने के महत्व को समझा है और हाल ही में टकरावों के समाधान एवं शांति स्थापना के कार्यक्रमों में मानसिक स्वास्थ्य और मनो–सामाजिक सहायता (MHPSS) को मिलाने की वक़ालत शुरू की है. इसमें काउंसलिंग, ग्रुप थेरेपी के साथ ही इस प्रकार की विभिन्न गतिविधियां शामिल हैं, जो व्यक्तिगत और सामूहिक सदमे या भय को संबोधित करने, लोगों की भावनाओं को नियंत्रित करने और उन्हें रचनात्मक संवाद में शामिल होने के लिए लचीलापन एवं गैर–हिंसात्मक संपर्क का कौशल विकसित करने में मदद करती हैं.
जहां तक शहरी हिंसा की बात है, तो लॉस एंजिल्स काउंटी ऑफिस ऑफ वायलेंस प्रिवेंशन समेत कई एजेंसियों ने ऐसे कार्यक्रमों की ज़रूरत पर ज़ोर देना शुरू कर दिया है, जो इस सदमे और झटके के उपचार एवं लचीलेपन के निर्माण पर पूरा फोकस करते हैं.
यही वजह है कि इस ‘आंतरिक विकास‘ की ज़रूरत मौज़ूदा टकराव से उपजे हालात के समाधान और शांति स्थापना की रणनीतियों के प्रभाव को अधिक असरकारक बनाने के लिए भारत की आंतरिक शांति के अनुभव एवं जानकारी के अर्थपूर्ण एकीकरण के लिए संदर्भ और साधन उपलब्ध कराती है.
भारत के आंतरिक ज्ञान की समझ और गंभीरता
भारतीय संस्कृति हमेशा से यह विश्वास करती रही है कि विश्व में शांति के लिए लोगों को और समुदायों को सद्भाव के साथ मिलजुल कर रहने की ज़रूरत है. यही वजह है कि इसे हासिल करने के लिए व्यक्तियों को न केवल आंतरिक शांति और पारस्परिक सम्मान का भाव विकसित करना होगा, बल्कि किस प्रकार से समरसता और सामंजस्य से भरे माहौल में मिलजुल कर और साथ–साथ रहना है, इसके बारे में भी सीखना होगा.
चित्र 1: विश्व शांति प्राप्त करने के लिए सर्वव्यापी फ्रेमवर्क
स्रोत: लेखक का शोध
ऐसा नहीं है कि जहां संघर्ष या टकराव नहीं होता है, वहीं शांति होती है. शांति का मतलब होता है कि किसी भी लड़ाई का शांतिपूर्ण तरीक़े से समाधान निकालने की क्षमता. भारत की बौद्धिक परंपरा के मुताबिक़ शांति सभी मनुष्यों का एक सहज और स्वाभाविक स्वभाव है. इसी कारण से भारत की सभी बौद्धिक परंपराएं नकारात्मक भावनाओं को परिवर्तित करने और आंतरिक शांति को विकसित करने के लिए योग, अहिंसा एवं ध्यान के अभ्यास की बात करती हैं. इन चीज़ों के अभ्यास ने और इन्हें अपनाने ने सदियों से पूरे विश्व में हर क्षेत्र, हर वर्ग के लोगों की सहायता की है. डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर और स्टीव जॉब्स जैसी कई शख्सियतों ने स्वीकार किया है कि भारत की संस्कृति, आध्यात्मिक और बौद्धिक ज्ञान के संसर्ग में आने से उन्हें अपने नेतृत्व के मकसद, नज़रिए और प्रभाव को समझने एवं उसे गहराई देने व दिशा देने में मदद मिली है.
सिटीज4पीस: शांति स्थापित करने का एक नया नज़रिया
इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर ह्यूमन वैल्यूज एंड आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन की सिटीज4पीस पहल आंतरिक शांति और सामंजस्य से परिपूर्ण सह–अस्तित्व के भारत की बौद्धिक जानकारी का लाभ उठाते हुए, दुनिया भर में टकराव से प्रभावित समुदायों में हिंसा को कम करने और शांति एवं सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए सिविक लीडर्स के साथ मिलकर काम करती है. इस पहल ने अलग–अलग समुदायों की विशेष प्रकार की चुनौतियों के लिए विशिष्ट समाधान तैयार करने के लिए स्थानीय नेताओं और परिवर्तन लाने वालों की क्षमता का निर्माण करने के लिए कई स्थानीय, क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सरकारी व गैर–सरकारी संस्थानों के साथ काम किया है.
इस कार्यक्रम के असर पर जॉर्ज मेसन विश्वविद्यालय की रिसर्च के मुताबिक़ इस कार्यक्रम में सहभागिता के दो महीनों के बाद 90 प्रतिशत से अधिक प्रतिभागियों की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में सुकून के साथ रहने, अपना ध्यान केंद्रित करने और शांत रहने की क्षमता बढ़ गई थी
उदाहरण स्वरूप, लॉस एंजिल्स में सिटीज4पीस कार्यक्रम का इस्तेमाल समुदाय के सदस्यों और पुलिस अधिकारियों के बीच विश्वास का भाव बढ़ाने के लिए किया गया था. लॉस एंजिल्स शहर में हर साल क़रीब 25,000 हिंसक अपराध होते हैं, जिनमें से 70 प्रतिशत से अधिक वारदातें दक्षिण लॉस एंजिल्स के अंदरूनी शहर में होती हैं. अत्यधिक हिंसा की इन घटनाओं ने शहर के निवासियों के लिए तनाव की स्थिति पैदा कर दी है और इन घटनाओं की वजह से समुदाय के सदस्यों एवं लॉस एंजेलिस पुलिस विभाग (LAPD) के मध्य तनाव बढ़ गया है.
वर्ष 2019 में मार्च और जून महीने के बीच, सिटीज4पीस कार्यक्रम ने ख़ास तौर पर बनाए गए एंबेस्डर्स ऑफ पीस सर्टिफिकेशन ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए साउथ लॉस एंजिल्स के पड़ोस में स्थित हार्वर्ड पार्क के स्थानीय LAPD पुलिस अफ़सरों, बदमाशों के गिरोहों के पूर्व सदस्यों, ख़तरों में घिरे युवाओं, शिक्षकों और माता–पिता सहित अलग–अलग समुदायों के हितधारकों को एक साथ लाने का काम किया. यह ट्रेनिंग योग एवं सुदर्शन क्रिया (SKY) ब्रीथिंग और मेडिटेशन अभ्यास का उपयोग करके प्रतिभागियों की क्षमता बढ़ाने पर केंद्रित थी. इसका मकसद प्रतिभागियों को अपने सदमे की स्थिति निजात पाने और अधिक सहानुभूति की भावना विकसित करने में मदद करना था.
इसके पश्चात बातचीत और चर्चा–परिचर्चाओं के ज़रिए प्रतिभागियों को आपस में प्रगाढ़ रिश्ते बनाने और अपने पड़ोस में शांति स्थापना के लिए एक साझा नज़रिया बनाने की ज़िम्मेदारी लेने के लिए सहयोग किया गया. इस कार्यक्रम के असर पर जॉर्ज मेसन विश्वविद्यालय की रिसर्च के मुताबिक़ इस कार्यक्रम में सहभागिता के दो महीनों के बाद 90 प्रतिशत से अधिक प्रतिभागियों की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में सुकून के साथ रहने, अपना ध्यान केंद्रित करने और शांत रहने की क्षमता बढ़ गई थी, साथ ही उनके सामाजिक संबंध विकसित की योग्यता में भी ख़ासा सुधार हुआ था.
इसको एक और उदाहरण के जरिए भी समझा जा सकता है. सिटीज4पीस को यूनाइटेड नेशन्स पीसकीपिंग फोर्स इन साइप्रस (UNFICYP) द्वारा वर्ष 2022 में मार्च से जून महीने के बीच आमंत्रित किया गया था, ताकि तुर्किये और ग्रीक साइप्रस दोनों समुदायों के नेताओं को आईलैंड पर शांति एवं सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए सशक्त किया जा सके.
पारस्परिक बातचीत वाली चर्चाओं और सामूहिक कार्रवाइयों के ज़रिए सिटीज4पीस प्रोग्राम ने प्रतिभागियों को प्रणालीगत सोच विकसित करने के साथ ही भरोसेमंद नेटवर्क स्थापित करने के योग्य बनाया. इसके साथ–साथ प्रतिभागियों को ‘पीस इन एक्शन‘ प्रोजेक्ट को डिजाइन करने और उस पर अमल करने के लिए प्रोत्साहित किया गया, ज़ाहिर है कि यह आईलैंड के बाशिंदों के लिए एक सकारात्मक बदलाव लाने का काम करेगा. इन परियोजनाओं में विश्वविद्यालय के छात्रों के एक बाई–कम्युनल यानी द्वि–सांप्रदायिक समूह के लिए मानसिक स्वास्थ्य पर सत्र आयोजित करना, एक बाई–कम्युनल सामुदायिक म्यूज़िक कंसर्ट आयोजित करना, दोनों पक्षों की माताओं के बीच बच्चों के पालन–पोषण की भूमिका को लेकर एक पॉडकास्ट आयोजित करना आदि शामिल था.
निष्कर्ष
परंपरागत रूप से देखा जाए, तो टकराव को समाप्त करने और शांति स्थापित करने का क्षेत्र बाहरी कारकों और संस्थागत समाधानों पर केंद्रित रहा है, लेकिन अब यह बात सभी को समझ में आने लगी है कि स्थायी रूप से शांति हासिल करने के लिए हिंसा से प्रभावित सभी हितधारकों का आंतरिक विकास बेहद अहम है.
भारत की जो सॉफ्ट पावर है वो न सिर्फ़ इसकी सांस्कृतिक विरासत (संगीत, नृत्य, कला, आदि) और आर्थिक ताक़त से आती है, बल्कि इसकी दार्शनिक और बौद्धिक परंपराओं के समृद्ध और गौरवशाली इतिहास से भी आती है. यानी वो इतिहास, जिसने सदियों से दुनिया भर के लोगों को दुखों को दूर करने, धीरज रखने और बदलाव की तलाश करने के लिए, साथ ही साथ शांतिपूर्वक तरीक़े से मिलजुल कर रहने की सीख प्रदान करने के लिए प्रेरित किया है.
भारत ने पहले ही संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में अपने कूटनीतिक प्रयासों और टकराव व आपदा प्रबंधन के क्षेत्रों में विकास सहायता उपलब्ध कराके एक ज़िम्मेदार वैश्विक किरदार के रूप में एक ज़बरदस्त रुतबा हासिल कर लिया है. सिटीज4पीस का काम दर्शाता है कि कैसे हम विवादों एवं टकरावों का हल तलाशने और स्थायी शांति स्थापित करने के लिए सहायता के माध्यम से इन शांति स्थापना और शांति निर्माण के मिशनों के प्रभाव को बढ़ा सकते हैं. उल्लेखनीय है कि इससे भारत की ‘विश्व गुरु‘ बनने की आकांक्षा भी परवान चढ़ सकती है.
विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय भी स्थानीय और क्षेत्रीय हिंसा से प्रभावित होते हैं, जैसे कि अमेरिका में बड़े पैमाने पर गोलीबारी में भारतीयों की मौत हुई है, जबकि रूस–यूक्रेन युद्ध के शुरुआती दौर में भारतीय छात्रों को दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा. ऐसे में भारतीय संस्कृति और भारतीय मूल्यों के प्रतिनिधि के रूप में प्रवासी भारतीयों को स्थानीय और क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान करने में भारत की बुद्धिमत्ता को बढ़ावा देकर अपने देशों में अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की ज़रूरत है. ऐसा करने से प्रवासी भारतीयों को न केवल अपने प्रभाव और दबदबे को मज़बूती प्रदान करने में मदद मिलेगी, बल्कि इससे वैश्विक मंच पर भारत के वैचारिक नेतृत्व को ताक़त देने में सहायता मिलेगी.
मंदार आप्टे वर्तमान में सिटीज4पीस पहल की ज़िम्मेदारी संभालते हैं. इससे पहले, मंदार आप्टे जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी स्कूल फॉर कॉन्फ्लिक्ट एनालिसिस एंड रेजोल्यूशन में विजिटिंग स्कॉलर थे.
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