Author : Nilanjan Ghosh

Published on May 19, 2023 Updated 0 Hours ago
लाइफ़, डी-ग्रोथ व एसडीजी लक्ष्य और उसकी अवधारणा से जुड़ी कुछ मूलभूत चिंताएं!



नवंबर 2021 में ग्लासगो में COP26 में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी उद्घोषणा में पर्यावरण के संरक्षण के लिए वैश्विक जन आंदोलन को शुरू किए जाने की बात की थी जिसे 'लाइफ़स्टाइल फॉर द एनवायरनमेंट' (LiFE) की अवधारणा के ज़रिए संक्षेप में प्रस्तुत किया जा सकता है. ऐसे समय में उन्होंने अपने भाषण में दुनिया भर के लोगों और संस्थाओं से एक जन आंदोलन के रूप में जीवनशैली में इस तरह के परिवर्तन की एक मुहिम छेड़ने की गुजारिश की जबकि पृथ्वी ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण विनाश की कगार पर है. यह स्पष्ट है कि इस तरह के आंदोलन की सफ़लता हमारी सामाजिक व्यवस्था की सबसे सूक्ष्म इकाई यानी व्यक्तियों पर निर्भर करती है, जो वैश्विक स्तर पर महत्त्वपूर्ण बदलाव के लिए सामूहिक कार्रवाई की मांग करती है. अन्य शब्दों में कहें तो "आधुनिकता" का पथ निश्चित रूप से सभ्यता को आगे ले जाने में सक्षम नहीं है क्योंकि इस पर चलते हुए मानव की विकास संबंधी महत्त्वाकांक्षाएं बेलगाम हो गई हैं. बल्कि, आधुनिकता के कारण वर्तमान में अनियंत्रित उपभोग के पैटर्न को बढ़ावा मिला है, जिससे पीछे हटने की ज़रूरत है; सामाजिक उपापचयी प्रक्रियाओं के तहत मानव द्वारा प्रकृति से ऊर्जा और खनिज का निष्कर्षण किया जाता है, जिसकी गति को प्रकृति की दोबारा उपजाने की क्षमता से अधिक नहीं होना चाहिए; और मानवों को अपनी जीवनशैली को उन जैव-भौतिक प्रक्रियाओं के साथ संतुलित करने की आवश्यकता है जिसके कारण पृथ्वी पर जीवन का उदय हुआ है.

आधुनिकता के कारण वर्तमान में अनियंत्रित उपभोग के पैटर्न को बढ़ावा मिला है, जिससे पीछे हटने की ज़रूरत है; सामाजिक उपापचयी प्रक्रियाओं के तहत मानव द्वारा प्रकृति से ऊर्जा और खनिज का निष्कर्षण किया जाता है, जिसकी गति को प्रकृति की दोबारा उपजाने की क्षमता से अधिक नहीं होना चाहिए

जबकि विश्व स्तर पर अब यह स्वीकार कर लिया गया है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ‘लाइफ़’ सबसे महत्वपूर्ण उपायों में से एक है, लेकिन इसकी कई व्याख्याएं की गई हैं. कईयों का मानना है कि यह न केवल SDG के 13वें लक्ष्य यानी जलवायु कार्रवाई के लिए महत्त्वपूर्ण है बल्कि यह कई SDG लक्ष्यों को पूरा करने और समग्र रूप से सतत विकास की अवधारणा को साकार करने में योगदान देता है. अगर इसे जलवायु कार्रवाई के संदर्भ में भी देखें, तो इसे जीवनशैली में बदलाव आधारित समाधान के रूप में भी व्याख्यायित किया जा सकता है क्योंकि यह टिकाऊ उत्पादन और खपत प्रक्रियाओं की बात करता है जिसमें निम्न ऊर्जा उपयोग और निम्न उत्सर्जन शामिल हैं. वहीं दूसरी ओर, इसे अनुकूलन के तौर पर भी व्याख्यायित किया जा सकता है क्योंकि LiFE की अवधारणा निम्न ऊर्जा और कम खपत वाली जीवनशैली को अपनाने पर ज़ोर देती है जो पारिस्थितिकी तंत्र के साथ संतुलन बनाए रखने पर आधारित है.

जैसे, अगर देखा जाए तो LiFE की अवधारणा अपने मूल में सभी SDG लक्ष्यों के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई है. जलवायु परिवर्तन पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना और क्रियाशीलता को प्रभावित कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप पारिस्थितिकी तंत्र से मिलने वाली सेवाएं (परिस्थितिकी तंत्र द्वारा स्वतः एवं नि:शुल्क प्रदान की जाने वाली सेवाएं) कम या नष्ट हो सकती हैं. इन सेवाओं को अक्सर "गरीबों का सकल घरेलू उत्पाद" कहा जाता है. इसलिए, लाइफ पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़ी सेवाओं के उचित वितरण के माध्यम से प्रथम SDG लक्ष्य (गरीबी को ख़त्म करना) को हासिल करने में मदद कर सकता है. पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को मज़बूत करके LiFE मिट्टी और पानी की उत्पादकता को बढ़ाने में मदद कर सकता है, जिससे फसलों की पैदावार बढ़ सकती है और दूसरे SDG लक्ष्य (शून्य भुखमरी) को हासिल करने में मदद मिल सकती है.

प्रकृति के अनुरूप जीवनशैली के साथ, LiFE जलवायु परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले विषम प्रभावों का सामना कर सकता है (SDG 3) चरम मौसमी घटनाओं के कारण शिक्षा में आए व्यवधान का मुकाबला पर्यावरण के प्रति अनुकूल जीवन शैली को अपनाकर किया जा सकता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जो चरम मौसम की घटनाओं या पर्यावरणीय परिस्थितियों में बदलाव के प्रति संवेदनशील हैं, जिससे SDG के चौथे लक्ष्य से जुड़े परिणामों को प्रभावित किया जा सकता है. जबकि महिलाएं और लड़कियां अक्सर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां उनके पास संसाधनों और निर्णय लेने की शक्ति तक सीमित पहुंच होती है, LiFE के माध्यम से मूल्यों में बदलाव लाया जा सकता, जिससे महिलाएं एवं लड़कियां इसके प्रतिकूल प्रभावों (SDG 5) से बच सकती हैं. छठवें SDG लक्ष्य (स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता) को हासिल करने की प्रक्रिया LiFE से सीधा संबंध रखती है क्योंकि स्वच्छता को बनाए रखने के लिए पर्यावरण के प्रति अनुकूल जीवनशैली को अपनाना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इससे प्रदूषण में कमी आती है. यह विभिन्न स्तरों पर स्वास्थ्य संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने और जल एवं प्राकृतिक संसाधनों के बेहतर प्रबंधन को सुनिश्चित करने में सहयोग प्रदान करता है. सातवें SDG लक्ष्य (सस्ती एवं स्वच्छ ऊर्जा) और LiFE के संबंध को शायद ही समझाने की ज़रूरत है. जलवायु शमन की दिशा में किए जा रहे प्रयास हरित संक्रमण के माध्यम से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने में मदद करते हैं.

LiFE को एक जीवन दर्शन के रूप में अपनाने से मानव एवं भौतिक पूंजी से जुड़ी समस्याओं को दूर करके आर्थिक उत्पादकता में वृद्धि लाई जा सकती है. पुनःपर्यावरण के प्रति अनुकूल जीवन शैली का काम की परिस्थितियों, कारोबारी माहौल और आर्थिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इस प्रक्रिया में, यह आठवें SDG लक्ष्य (बेहतर काम और आर्थिक विकास) को हासिल करने में मदद करता है. नौवें SDG लक्ष्य (नवाचार एवं बुनियादी ढांचा) का उद्देश्य "लचीले बुनियादी ढांचे का निर्माण करना, समावेशी और सतत औद्योगीकरण को बढ़ावा देना और नवाचार को प्रोत्साहित करना है", इसलिए इसे हरित ऊर्जा के माध्यम से हासिल किया जा सकता है. यह SDG के 13वें लक्ष्य में भी मदद करता है. इसलिए, SDG के नौवें एवं 13वें लक्ष्य में भले ही आपसी विरोध जैसी स्थिति दिखाई पड़ती हो लेकिन LiFE की अवधारणा को अपनाने से इन दोनों लक्ष्यों पर एक साथ काम किया जा सकता है.

LiFE को एक जीवन दर्शन के रूप में अपनाने से मानव एवं भौतिक पूंजी से जुड़ी समस्याओं को दूर करके आर्थिक उत्पादकता में वृद्धि लाई जा सकती है. पुनःपर्यावरण के प्रति अनुकूल जीवन शैली का काम की परिस्थितियों, कारोबारी माहौल और आर्थिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.


जबकि विभिन्न आय समूहों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अलग-अलग पड़ता है, जहां गरीब इसके प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनके पास इससे निपटने के लिए ज़रूरी साधनों का अभाव होता है, ऐसे में LiFE  के माध्यम से बढ़ती असमानता का सामना किया जा सकता है (और SDG के दसवें लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है).

वास्तव में, जहां तक ​​SDG के 11वें लक्ष्य का संबंध है, शहरों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए अनुकूलन और शमन से जुड़ी रणनीतियों को विकसित करने की आवश्यकता है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़, प्रदूषण और तापमान में वृद्धि जैसी समस्याओं में इज़ाफ़ा होता है. इस बिंदु पर LiFE की अवधारणा 11वें SDG लक्ष्य में सहायता करती है. इसके अतिरिक्त, LiFE उत्पादन एवं खपत के पैटर्न में बदलाव को प्रोत्साहित करता है, जिसमें कचरा उत्पादन में कमी लाना और टिकाऊ अभ्यासों को बढ़ावा देना शामिल है (SDG 12).

इसी तरह, LiFE की अवधारणा SDG के 14वें और 15वें लक्ष्यों (पृथ्वी की सतह पर और जल के भीतर जीवन) के प्रति पूरी तरह अनुकूल है, जिसे न तो किसी स्पष्टीकरण की आवश्यकता है, न ही इसे दोहराए जाने की ज़रूरत है. पुनः, ब्लू इकोनॉमी कार्बन अवशोषण का एक प्रमुख स्रोत है. इसी तरह, जबकि जलवायु परिवर्तन एक अवरोध की तरह काम करता है और SDG 16 (शांति, न्याय और समावेशिता) की प्राप्ति को बाधित करता है, जो कि अन्य SDG लक्ष्यों को हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण है, LiFE जलवायु और पर्यावरण संबंधी समस्याओं को कम करके SDG के 16वें लक्ष्य को बढ़ावा दे सकता है. LiFE प्राकृतिक संसाधनों के सहकारी प्रशासन में मदद कर सकता है, जिससे उसके जुड़े टकरावों या संघर्षों की संभावनाएं कम होती हैं जो अमूमन प्राकृतिक संसाधनों की कमी या अभाव की स्थिति के कारण पैदा होती हैं, जो कमज़ोर तबकों की वंचना में और इज़ाफ़ा कर सकता है. आखिरकार, जहां SDG का 17वां लक्ष्य वैश्विक साझेदारी की बात करता है, वहीं LiFE पर्यावरण के प्रति अनुकूल एक नई जीवनशैली को अपनाने हेतु सामूहिक वैश्विक प्रयासों की बात करता है जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद कर सकता है.

'डी-ग्रोथ' की अवधारणा को विमर्श में लाना


जबकि अभी तक इस लेख में LiFE और सतत विकास लक्ष्यों के आपसी जुड़ाव को लेकर बात की गई है, लेकिन ज्ञानमीमांसीय दृष्टिकोण से यह महत्त्वपूर्ण है कि 'डी-ग्रोथ' की अवधारणा को विमर्श में शामिल किया जाए. डी-ग्रोथ एक क्रांतिकारी दर्शन है जिसने विश्व के कुछ हिस्सों, ख़ासकर पश्चिम में एक आंदोलन का रूप ले लिया है, हालांकि विकासशील दुनिया में इसके प्रति तनिक भी उत्साह नहीं दिखाया गया है. इसके बावजूद कि विकासशील देशों में कुछ कार्यकर्ता दुनिया के लिए समाधान के रूप में डी-ग्रोथ की वकालत कर रहे हैं. डी-ग्रोथ हमारी सामान्य जीवनशैली को त्यागकर वैश्विक खपत और उत्पादन (सोशल मेटाबॉलिज्म) के स्तर में भारी कमी लाने की मांग करता है. यह आंदोलन प्रगति के मापक के रूप में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को ख़ारिज करता है और सामाजिक रूप से न्यायपूर्ण और पर्यावरण के प्रति अनुकूल सामाजिक व्यवस्था की स्थापना की वकालत करता है, जहां मानव विकास को सामाजिक और पर्यावरणीय लक्ष्यों के माध्यम से व्याख्यायित किया जाता है. इसलिए, डी-ग्रोथ सामाजिक बदलाव की मांग करता है जो सामाजिक रसायनिक प्रक्रियाओं को फिर से संयोजित करती है. क्या यह LiFE की अवधारणा से समानता नहीं रखती? ऐसा इसलिए भी है क्योंकि यह विचारधारा न केवल लियो टॉल्स्टॉय जैसे पाश्चात्य विचारकों से प्रेरित है बल्कि गांधी और जे.सी. कुमारप्पा जैसे भारतीय विचारकों के लेखन से भी प्रभावित है.

इस प्रकार, सतत विकास लक्ष्य, LiFE और डी-ग्रोथ, ये तीनों प्रतिमान इन मुद्दों पर सहमति रखते हैं: जैव विविधता संरक्षण का महत्त्व, प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा जो मानव जीवन और आजीविका के प्रश्न के साथ गहरा संबंध रखता है और नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण. हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि डी-ग्रोथ के समर्थक सतत विकास की अवधारणा का ठीक उसी तरह विरोध करते हैं जिस तरह वे "हरित विकास" के विपक्ष में तर्क देते हैं. डी-ग्रोथ के दृष्टिकोण से देखें, तो सतत विकास की अवधारणा परस्पर विरोधी है. सतत विकास की अवधारणा संरक्षण से जुड़े लक्ष्यों और विकास को एक साथ लेकर चलने में विश्वास करती है, जो कि आर्थिक उत्पादन और विकास के माध्यम मानव समाज की भूमिका को प्रदर्शित करता है, जबकि डी-ग्रोथ की अवधारणा किसी भी तरह के उत्पादकतावाद का विरोध करती है. उत्पादकतावाद के इस दर्शन के विपरीत, डी-ग्रोथ का विचार प्रकृति में समाहित जीवन के मूल आधार को बचाए रखने में विश्वास रखता है और इस प्रकार मानवीय गतिविधियों की बढ़ती दर में कमी लाने की वकालत करता है.


यह देखते हुए, यह सवाल उठता है कि LiFE की अवधारणा क्या कहती है? इस बिंदु पर, ऐसे कड़े सिद्धांत या नियम नहीं हैं जो LiFE को परिभाषित कर सकें. ऐसा लगता है कि LiFE की अवधारणा बहुत व्यापक है जो स्पष्ट रूप से अधिकांश विकासात्मक दर्शनों की तुलना में अधिक उदार है और अभी भी उभर रही है. इसकी अस्पष्ट प्रकृति को देखते हुए, इसकी रूपरेखा तैयार करने के लिए इसे अपनाने वाले समाजों पर निर्भर रहना होगा. हालांकि यह निश्चित रूप से मानव जीवन को प्रकृति के साथ पंक्तिबद्ध करने की वकालत करता है, लेकिन यह समाजों को अपने दृष्टिकोणों और महत्त्वाकांक्षाओं को त्यागने के लिए नहीं कहता है. इसलिए, "डी-ग्रोथ" या विकास की अन्य किसी अवधारणा से विपरीत, ऐसा प्रतीत होता है कि LiFE को "सभी के लिए एक जैसे" प्रतिमान के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता. वैश्विक उत्तर और दक्षिण की महत्वाकांक्षाएं अलग-अलग हैं, लेकिन LiFE उनकी आकांक्षाओं से समझौता किए बिना दोनों के बीच एक संपर्क सूत्र बनाने में मदद करता है: यह केवल उन्हें अपनी जीवन शैली को पर्यावरण के अनुकूल ढालने के लिए कहता है; जो पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने में मदद करेगा. इसके रास्ते तय कर दिए गए हैं, लेकिन इसे अपनाने वालों को इसके तरीकों को परिभाषित करना होगा.

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