कोविड-19 महामारी विश्व के हर देश में फैल गई है और इसने हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी के तकरीबन हर पहलू पर असर डाला है. शिक्षा प्रणाली भी इसका कोई अपवाद नहीं थी, इसने इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी रुकावट का सामना किया है जिसकी वजह से दुनिया के 190 से ज़्यादा देशों के 1.6 अरब छात्रों पर असर पड़ा है. महामारी की वजह से पढ़ाई-लिखाई की प्रणाली को नाटकीय ढंग से बदलना पड़ा जहां छात्रों से दूर रहकर, डिजिटल प्लैटफॉर्म के ज़रिए क्लास लेनी पड़ी. इसके अलावा लाइब्रेरी और शारीरिक शिक्षा की सामग्री तक छात्रों की उपलब्धता को काफ़ी हद तक कम करना पड़ा और इन सामग्रियों तक पहुंच का प्रावधान कई तरह के कारणों जैसे कि कॉपीराइट की वजह से मुश्किल था.
कॉपीराइट जटिल है और डिस्टेंस लर्निंग की तरफ़ परिवर्तन ने उन मुद्दों को बढ़ा दिया है जिसका सामना शिक्षक पहले से कर रहे थे. शारीरिक संसाधनों तक पहुंच की असमर्थता ने डिजिटल विषय-वस्तु पर निर्भरता को काफ़ी बढ़ा दिया है.
कॉपीराइट और शैक्षणिक सामग्री
पाठ्यपुस्तकों, विद्वानों के लेख, ऑनलाइन लेक्चर, प्रेज़ेंटेशन, लाइब्रेरी के कलेक्शन और रिसर्च डाटा बेस में कॉपीराइट का प्रावधान होता है. इसलिए कॉपीराइट शिक्षा में एक अभिन्न भूमिका अदा करता है. कॉपीराइट आर्थिक और नैतिक अधिकारों का एक पुलिंदा है जिसका इस्तेमाल करके लेखक अपनी रचना का उपयोग करने की मंज़ूरी दे सकता है या उसे नामंज़ूर कर सकता है. इसके परिणामस्वरूप लेखक को अपनी रचना का इस्तेमाल करने की मंज़ूरी देने के एवज़ में मेहनताना मिल सकता है. चूंकि कॉपीराइट कंटेंट को वर्जित करने का क़ानूनी तरीक़ा मुहैया करता है, ऐसे में ये सूचना के प्रवाह को रोक कर ज्ञान के प्रसार को प्रभावित करने वाले लीवर की तरह काम कर सकता है.
शिक्षकों ने उन सामग्रियों से पढ़ाया जो कॉपीराइट क़ानून से संरक्षित हैं और कभी-कभी भुगतान किए हुए या मुफ़्त लाइसेंस के तहत हैं या कभी-कभी सीमित इस्तेमाल के तहत हैं या कॉपीराइट उल्लंघन को अधिकार रखने वाले के द्वारा नज़रअंदाज़ किया जा रहा है.
कॉपीराइट जटिल है और डिस्टेंस लर्निंग की तरफ़ परिवर्तन ने उन मुद्दों को बढ़ा दिया है जिसका सामना शिक्षक पहले से कर रहे थे. शारीरिक संसाधनों तक पहुंच की असमर्थता ने डिजिटल विषय-वस्तु पर निर्भरता को काफ़ी बढ़ा दिया है. डिजिटल विषय-वस्तु मुहैया कराने में सक्षम होने के लिए शैक्षणिक संस्थानों और लाइब्रेरी को डिजिटल लाइसेंसिंग समझौता करने की ज़रूरत पड़ेगी जो उनके लिए काफ़ी खर्चीला हो सकता है. लेकिन इसके साथ कॉपीराइट वाली सामग्री को स्कैन करके, तस्वीर खींच कर या वीडियो रिकॉर्डिंग करके उस सामग्री का बड़ा हिस्सा फिर से प्रस्तुत किया जाता है तो ऐसी कोई भी कोशिश कॉपीराइट क़ानून का उल्लंघन हो सकती है.
कोविड-19 और कॉपीराइट का रुझान
कोविड-19 के आने और ई-लर्निंग की तरफ़ बदलाव ने पांच बड़े रुझान देखे हैं: पहला ये कि चूंकि छात्रों ने क्लासरूम के स्टडी मैटेरियल तक पहुंच खो दी है, इसलिए फोटो कॉपी करने में काफ़ी बढ़ोतरी हुई है. दूसरा रुझान ये है कि एडटेक के टूल की लोकप्रियता बढ़ गई है; तीसरा, कुछ प्रकाशकों ने कम समय के लिए बिना किसी क़ीमत या मुफ़्त लाइसेंस की इजाज़त दे दी है; चौथा, ज़्यादा मूल्यांकन का काम ऑनलाइन होने लगा है; और आख़िर में, शिक्षकों ने उन सामग्रियों से पढ़ाया जो कॉपीराइट क़ानून से संरक्षित हैं और कभी-कभी भुगतान किए हुए या मुफ़्त लाइसेंस के तहत हैं या कभी-कभी सीमित इस्तेमाल के तहत हैं या कॉपीराइट उल्लंघन को अधिकार रखने वाले के द्वारा नज़रअंदाज़ किया जा रहा है.
किसी प्रकाशन को तब खुले तौर पर उपलब्ध माना जाएगा जब उसकी उपलब्धता में कोई रुकावट नहीं है यानी किसी व्यक्ति तक ऐसे प्रकाशन की पहुंच को किसी तकनीकी, क़ानूनी या वित्तीय कारणों से प्रतिबंधित नहीं किया जाएगा.
शुरू में प्रकाशकों ने सद्भावना दिखाते हुए सीमित समय के लिए निशुल्क उपलब्ध कंटेंट को स्वेच्छा से मुहैया कराने के लिए कई क़दम उठाए और कुछ कॉपीराइट रखने वाले संगठनों ने तो कॉपी करने की मंज़ूरी देने में अस्थायी रूप से बढ़ोतरी की पेशकश की. कई सब्सक्रिप्शन आधारित मीडिया प्रकाशकों ने भी इसका पालन किया और कोविड-19 से जुड़े लेखों तक पहुंच निशुल्क प्रदान किया. लेकिन जो क़दम उठाए गए उनमें से ज़्यादातर बेहद सीमित, कम समय के लिए और कुछ मामलों में पूरी तरह बेकार थे. चूंकि सद्भावना दिखाने वाले क़दम अब नहीं उठाए जा रहे हैं तो ऐसे में शैक्षणिक संस्थानों, लाइब्रेरी और कई बार लोगों को टूल्स और ऑनालइन लाइसेंस में निवेश के वित्तीय असर के झटके को झेलना पड़ता है.
कोविड-19 महामारी ने कॉपीराइट प्रणाली की व्यवस्थात्मक समस्यायें दिखायीं
कोविड-19 ने उदाहरण के साथ दिखाया है कि किस तरह कॉपीराइट शैक्षणिक सामग्री तक पहुंचने में रुकावट का काम करता है. साथ ही कोविड-19 ने अभूतपूर्व परिस्थितियों जैसे लंबे समय तक शैक्षणिक संस्थानों और लाइब्रेरी के बंद होने की स्थिति में कॉपीराइट प्रणाली की कमज़ोरी को भी दिखाया. लेकिन ये समस्याएं व्यापक और पहले से मौजूद रुकावटों की ही झलक हैं. कोविड-19 ने कॉपीराइट के साथ समस्याएं उत्पन्न नहीं की है बल्कि पुराने तनावों और मुद्दों के असर को बढ़ा दिया है. कई स्कूलों में लगातार रिमोट लर्निंग के साथ डिजिटल कंटेंट और नये प्रासंगिक सॉफ्टवेयर टूल्स पर खर्च की वजह से उपलब्धता और कॉपीराइट के बीच टकराव जारी है.
आगे का रास्ता
अभी कोई ये नहीं जानता कि कोविड-19 महामारी कब ख़त्म होगी और कब शिक्षा प्रणाली महामारी से पहले की स्थिति में लौटने के योग्य होगी. लेकिन कॉपीराइट की वजह से शैक्षणिक सामग्री तक पहुंच की रुकावट को कम करने के लिए समाधान की तलाश करना ज़रूरी है. नीति निर्माताओं को कॉपीराइट की भूमिका, ख़ास तौर पर शिक्षा के संबंध में, का फिर से मूल्यांकन करने और सुगमता बढ़ाने के लिए बेहतर समाधान प्रदान करने की ज़रूरत है. कॉपीराइट प्रणाली को इस ढंग से फिर से जांचने की ज़रूरत है जिससे कि लोगों के हित में बाधा नहीं आए और सिस्टम कठोर सामाजिक और तकनीकी परिवर्तन के साथ चलने में सक्षम हो सके.
इसका एक विकल्प शैक्षणिक सामग्री के लिए “खुली उपलब्धता” या “खुला शैक्षणिक संसाधन” हो सकता है. इस तरह के उपाय कॉपीराइट को कमज़ोर नहीं करते हैं बल्कि उपलब्धता बढ़ाने के लिए मौजूदा कॉपीराइट प्रणाली का इस्तेमाल करते हैं. किसी प्रकाशन को तब खुले तौर पर उपलब्ध माना जाएगा जब उसकी उपलब्धता में कोई रुकावट नहीं है यानी किसी व्यक्ति तक ऐसे प्रकाशन की पहुंच को किसी तकनीकी, क़ानूनी या वित्तीय कारणों से प्रतिबंधित नहीं किया जाएगा. “खुला शैक्षणिक संसाधन” ऐसी सामग्री है जो या तो लोगों के बीच उपलब्ध है या बिना किसी क़ीमत के खुले लाइसेंस के तहत उपलब्ध है.
यहां पर ये ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि राज्यसभा में पेश “भारत में बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था की समीक्षा” रिपोर्ट ने कॉपीराइट और शैक्षणिक सामग्री के मुद्दे पर भी विचार किया है.
ये समय की आवश्यकता है कि कॉपीराइट और खुली उपलब्धता के इर्द-गिर्द मज़बूत नीतिगत उपाय विकसित किए जाएं ताकि शैक्षणिक सामग्रियों की उपलब्धता के मुद्दे का समाधान किया जा सके.
रिपोर्ट में सिफ़ारिश की गई है कि कॉपीराइट एक्ट, 1957 में ज़रूरी बदलाव निश्चित रूप से होना चाहिए ताकि देश भर में एक संतोषजनक साहित्यिक संस्कृति को प्रोत्साहन दिया जा सके. रिपोर्ट में सिफ़ारिश की गई है कि कॉपीराइट एक्ट के खंड 51 (1) को संशोधित किया जाए ताकि सरकारी शैक्षणिक संस्थानों को प्रतिलिपिकरण की इजाज़त दी जा सके और ऐसी सामग्री को ज़्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए जमा किया जा सके. रिपोर्ट में राष्ट्रीय लाइब्रेरी मिशन के महत्व पर भी ज़ोर दिया गया है और देश भर में सामुदायिक पुस्तकालयों की स्थापना की सिफ़ारिश की गई है. रिपोर्ट में ये भी सुझाव दिया गया है कि मौजूदा पुस्तकालयों को निश्चित रूप से बेहतर बनाया जाए ताकि विदेशी लेखकों की रचना तक उपलब्धता प्रदान की जा सके. इसके साथ ही रिपोर्ट में सावधान भी किया गया है कि लेखकों के अधिकारों की रक्षा करना महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसे अधिकार उन्हें अच्छी किताब और रचनाएं लिखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. इसलिए हर हाल में लेखकों के अधिकारों को उपलब्धता बढ़ाने के लोगों के हितों से संतुलित किया जाना चाहिए.
वैसे तो कोविड-19 ने शैक्षणिक सामग्री की उपलब्धता में कॉपीराइट की वजह से बनी गहरी संस्थागत समस्याएं दिखाई हैं लेकिन इसका जल्दबाज़ी में कोई इलाज नहीं है. कॉपीराइट सुरक्षा कम करने और उपलब्धता बढ़ाने के लिए कॉपीराइट क़ानून में बदलाव की कई बार मांग की गई है लेकिन घटी हुई सुरक्षा साहित्यिक रचनाओं के कम उत्पादन की समस्या खड़ी कर सकती है. इस प्रकार सही संतुलन का फ़ैसला करना एक चुनौतीपूर्ण काम है. खुली उपलब्धता और खुला शैक्षणिक संसाधन जैसे उपाय कुछ राहत प्रदान कर सकते हैं लेकिन ये पूरी तरह अनुपलब्धता की समस्या का हल नहीं करते हैं. ये समय की आवश्यकता है कि कॉपीराइट और खुली उपलब्धता के इर्द-गिर्द मज़बूत नीतिगत उपाय विकसित किए जाएं ताकि शैक्षणिक सामग्रियों की उपलब्धता के मुद्दे का समाधान किया जा सके.
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