Author : Terri Chapman

Published on Aug 12, 2021 Updated 0 Hours ago

तमाम रिसर्च ये इशारा कर रहे हैं कि बंद ठिकानों का वायु प्रदूषण, बाहर के वायु प्रदूषण से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक हो सकता है 

बंद ठिकानों में होने वाले वायु प्रदूषण को नज़रअंदाज़ करने से बढ़ेंगी मुश्किलें!

अंदर और बाहर के वायु प्रदूषण से हर साल क़रीब अस्सी लाख लोगों की बेवक़्त मौत हो जाती है. दुनिया की 91 प्रतिशत आबादी ऐसी जगहों पर रहती है, जहां पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों से कई गुना ज़्यादा वायु प्रदूषण है. विकसित और विकासशील देशों में, आउटडोर यानी बाहर का वायु प्रदूषण नागरिकों पर बुरा असर डालता है. लेकिन, कम और मध्यम आमदनी वाले देशों पर इस प्रदूषण का कई गुना ज़्यादा बुरा असर होता है. विशेषज्ञों के बीच ये सहमति बढ़ती जा रही है कि माहौल में मौजूद यानी आउटडोर वायु प्रदूषण से निपटने की ज़रूरत है. पर, इसकी तुलना में बंद ठिकानों या इनडोर वायु प्रदूषण को कम तवज्जो दी जा रही है.

अनुमान लगाया जाता है कि ख़राब हवा से होने वाली कुल मौतों में से क़रीब आधी (38 लाख) मौतों का कारण बंद ठिकानों के वायु प्रदूषण होता है. भीतर के प्रदूषण से आम तौर पर होने वाली बीमारियों में न्यूमोनिया, दिल का दौरा, दिल में ऐंठन की बीमारी, फेफड़ों में बाधा पड़ने और कैंसर शामिल हैं. लोग औसतन अपना 65 प्रतिशत समय अपने घरों के भीतर बिताते हैं. बहुत से रिसर्च ये इशारा कर रहे हैं कि घर के भीतर का वायु प्रदूषण, बाहर से कहीं ज़्यादा घातक हो सकता है. पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने पाया है कि अमेरिका में बंद ठिकानो के भीतर वायु प्रदूषण, बाहरी वायु प्रदूषण से दो से पांच गुना तक ज़्यादा हो सकता है. हाल ही में हुई एक स्टडी में पाया गया कि अमेरिका में थैंक्सगिविंग डिनर पकाने से घर के भीतर की हवा इतनी ख़राब हो गई कि उसमें वायु प्रदूषण के लिए ख़ास तौर से ज़िम्मेदार माने जाने वाले पार्टिकुलेट मैटर (PM) 285 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया. इसे ऐसे समझें कि दिल्ली में सबसे ख़राब हवा वाले दिनों में भी ये स्तर औसतन 225 माइक्रोग्राम ही होता है.

अनुमान लगाया जाता है कि ख़राब हवा से होने वाली कुल मौतों में से क़रीब आधी (38 लाख) मौतों का कारण बंद ठिकानों के वायु प्रदूषण होता है. भीतर के प्रदूषण से आम तौर पर होने वाली बीमारियों में न्यूमोनिया, दिल का दौरा, दिल में ऐंठन की बीमारी, फेफड़ों में बाधा पड़ने और कैंसर शामिल हैं.

घरेलू इस्तेमाल के बहुत से उपकरणों से नुक़सानदेह गैसें या पार्टिकुलेट मैटर वाला प्रदूषण पैदा होता है. अगर इस उत्सर्जन का स्तर कम भी होता है, तो भी घरों के भीतर ऐसे प्रदूषण फैलाने वाले कई उपकरण मौजूद होते हैं. इन सबके सामूहिक असर से घर के भीतर की हवा बड़ी तेज़ी से ख़राब हो जाती है. घरेलू उपकरणों से पैदा होने वाले जिस प्रदूषण से घर के भीतर की हवा और हमारी सेहत ख़राब होती है, उनके बीच संबंध कई बार साबित हो चुका है और उनके फौरी और दूरगामी असर हो सकते हैं. फिर भी घर के भीतर की हवा की गुणवत्ता का नियमन आम तौर पर नहीं होता है.

घर के भीतर तीन किस्म का वायु प्रदूषण

घर के भीतर के वायु प्रदूषण के स्रोतों को मोटे तौर पर तीन वर्गों में बांटा जा सकता है. इनमें, 1) बाहर की हवा की गुणवत्ता और प्रदूषक तत्व, 2) इमारतों के भीतर इंसानों की गतिविधियां, और 3) इमारतें बनाने में इस्तेमाल होने वाले सामान, उपकरण और सजावट के सामान शामिल हैं. बाहर की ख़राब हवा आसानी से बंद ठिकानों में भी घुस जाती है; ये प्रदूषक तत्व आमतौर पर औद्योगिक गतिविधियों और यातायात से पैदा होते हैं. रैडोन भी एक चुनौती है; ये क़ुदरती रूप से पैदा होने वाली रेडियोएक्टिव गैस होती है, जो किसी इमारत की नींव में दरार के ज़रिए ज़मीन से घरों में घुस सकती है और ये इमारतें बनाने के बेकार पड़े कचरे से भी निकल सकते हैं. अमेरिका मे रैडोन गैसें धूम्रपान न करने वालों के बीच फेफड़ों के कैंसर की बड़ी वजह बन गई हैं.

बंद ठिकानों और बाहर से आने वाले पार्टिकुलेट मैटर का हमारी सेहत से जुड़े कई पहलुओं से संबंध पाया गया है. इनमें कम घातक दिल के दौरे, अनियमत दिल की धड़कन, अस्थमा के बढ़े लक्षण, फेफड़ों के काम-काज पर असर और सांस की दूसरी बीमारियों के लक्षण, और दिल या फेफड़ों की बीमारी के शिकार लोगों की वक़्त से पहले मौत जैसे बुरे असर शामिल हैं.

बहुत से फर्नीचर, घरेलू सजावट के सामान और इलेक्ट्रॉनिक सामान जो हम अपने घरों में रखते हैं, उनसे भी ज़हरीले केमिकल- वॉलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड (VOCs) निकल सकते हैं. ये VOCs ऐसे गैसीय रसायन होते हैं, जिनकी ज़्यादा तादाद कैंसर का ख़तरा बढ़ा देती है

बंद जगहों पर मानवीय गतिविधियां, जैसे कि खाना पकाना, मोमबत्ती जलाना, अंगीठी या अलाव का इस्तेमाल, पालतू जानवर रखना और ज़हरीले केमिकल छोड़ने वाले उत्पादों से सफ़ाई करने से बंद ठिकानों के भीतर की हवा की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ता है. दुनिया भर में क़रीब तीन अरब लोग ठोस ईंधन (लकड़ी, गोबर या फ़सलों के कचरे) से खाना पकाते हैं. गैस के अच्छे चूल्हे जो प्राकृतिक गैस या प्रोपेन से चलते हैं, वो भी कार्बन मोनो ऑक्साइड, फ़ॉर्मेल्डिहाइड, सल्फर डाई ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड छोड़ सकते हैं. इन सबसे हमारे सांस लेने के सिस्टम पर बुरा असर पड़ता है और अस्थमा के लक्षण बढ़ जाते हैं. 

कैंसर, एस्थमा और सांस की तकलीफ़ का कारक

बिल्डिंग बनाने के सामान में अक्सर ज़हरीले रसायन होते हैं, जो धूल या गैस के रूप में बाहर आते हैं. प्रदूषण फैलाने वाली जानी मानी चीज़ों में सीसा और एस्बेस्टस शामिल है. अहम बात ये है कि बहुत से फर्नीचर, घरेलू सजावट के सामान और इलेक्ट्रॉनिक सामान जो हम अपने घरों में रखते हैं, उनसे भी ज़हरीले केमिकल- वॉलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड (VOCs) निकल सकते हैं. ये VOCs ऐसे गैसीय रसायन होते हैं, जिनकी ज़्यादा तादाद कैंसर का ख़तरा बढ़ा देती है; आंखों, नाक और गले में खिचखिच पैदा करती है; ये सिरदर्द, किसी काम में मन न लगने; और चक्कर आने, जिगर, गुर्दों और सेंट्रल नर्वस सिस्टम को नुक़सान पहुंचा सकते हैं.

ये VOC हमारे बहुत से घरेलू सामान से निकल सकते हैं. इनमें गद्दे, सफ़ाई के सामान, क़ालीन और कॉस्मेटिक शामिल हैं. ब्रिटेन के 47 घरों में किए गए एक अध्ययन में पाया गया था कि 45 फ़ीसद घरों के भीतर VOC की मात्रा तय दिशा-निर्देशों के स्तर से कहीं ज़्यादा थी. VOC का एक बड़ा स्रोत फॉर्मेल्डिहाइड होते हैं. घरेलू इस्तेमाल के आम सामान जिनमें फॉर्मेल्डिहाइड होता है- और जो कैंसर का कारण माना जाता है- उनमें मिलावटी लकड़ी के सामान जैसे कि प्लाईवुड, पार्टिकल बोर्ड, गोंद और फर्नीचर, कपड़ों, वालपेपर और पेंट में इस्तेमाल होने वाले फिनिशर शामिल हैं.

.हवा की गुणवत्ता सुधारने और बेहतर सेहत के लिए हमें इमारतों और उत्पादों के और कड़े मानकों की ज़रूरत है. हमें घरों, सार्वजनिक इमारतों और दफ़्तरों के भीतर के वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एकीकृत एक्शन प्लान और नीतिगत ढांचे की भी ज़रूरत है.

घरों के भीतर एलर्जी पैदा करने वाले जीव जैसे की कीड़े, दीमक, फफूंद और बैक्टीरिया भी होते हैं. इनका ताल्लुक़ भी अस्थमा, एलर्जी, सांस की बीमारियों, बुखार, खाना पचाने की दिक़्क़त और सांस की ख़तरनाक बीमारियों से पाया गया है. इनडोर वायु प्रदूषण न केवल घरों की चुनौती है, बल्कि दूसरे बंद ठिकानों जैसे कि स्कूल, सार्वजनिक इमारतों और दफ़्तरों की भी समस्या है. बंद ठिकानों का वायु प्रदूषण का सब पर एक बराबर असर नहीं होता है. इस वजह से बच्चे, बुज़ुर्ग, कम आमदनी वाले लोग, अल्पसंख्यक समुदायों और आदिवासियों पर बंद ठिकानों के वायु प्रदूषण का ज़्यादा बुरा असर होता है. हमें पता है कि घर के भीतर की ख़राब हवा एक व्यापक समस्या है, और हमें काफ़ी हद तक इसकी वजह भी मालूम है. हमें ये भी पता है कि इमारतों के भीतर के प्रदूषण का ताल्लुक़ सेहत की कई समस्याओं से है.

हवा की गुणवत्ता सुधारने और बेहतर सेहत के लिए हमें इमारतों और उत्पादों के और कड़े मानकों की ज़रूरत है. हमें घरों, सार्वजनिक इमारतों और दफ़्तरों के भीतर के वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एकीकृत एक्शन प्लान और नीतिगत ढांचे की भी ज़रूरत है. तीसरी बात, हमें इस बारे में ज़रूरी जानकारी देने वाले जागरूकता अभियान चलाकर आम लोगों को भी ये बताना ज़रूरी है कि घर के भीतर किन चीज़ों से वायु प्रदूषण फैलता है और किन सामानों के इस्तेमाल से इसका ख़तरा बढ़ जाता है. और आख़िर में, हमें माहौल के वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अपनी कोशिशें और तेज़ करनी चाहिएं अब जबकि दुनिया के बहुत से देश बाहर के वायु प्रदूषण की चुनौती से निपटने की कोशिश कर रहे हैं, तो हमें इमारतों के भीतर भी झांकना चाहिए, जहां पर वायु प्रदूषण का स्तर बहुत ज़्यादा है और जहां इसके बहुत से स्रोत मौजूद हैं.

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