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स्वच्छ खाना बनाने के ईंधन की ओर बदलाव की कोशिश करने से पर्यावरण के मामले में टिकाऊ अर्थव्यवस्था, सामाजिक समावेशन और रोज़गार का दीर्घकालीन लक्ष्य हासिल करने में मदद मिल सकती है.
नवंबर 2021 में ग्लासगो में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दौरान ऊर्जा बदलाव के लिए न्यायसंगत घोषणा पर सहमति बनी और 30 से ज़्यादा देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए. “न्यायसंगत बदलाव” के विचार की शुरुआत 70 के दशक में की गई जब अमेरिका के मज़दूर संघों ने उन कामगारों को लेकर चिंता व्यक्त की जिनकी नौकरी पर्यावरण को लेकर नियमों की वजह से ख़तरे में पड़ गई थी. आज ये धारणा काफ़ी व्यापक है और इसमें कई पहलुओं और किरदारों को शामिल कर लिया गया है जिनके पीछे स्वच्छ पर्यावरण की ओर बड़े पैमाने पर बदलाव का असर है.
दुनिया भर में लोगों की जो समझ है उसके मुताबिक़ ‘न्यायसंगत बदलाव’ एक प्रक्रिया है “पर्यावरण के अनुकूल टिकाऊ अर्थव्यवस्था की जिसके लिए अच्छी तरह से प्रबंधन की ज़रूरत है और जो सबके लिए अच्छा काम, सामाजिक समावेशन और ग़रीबी के उन्मूलन के लक्ष्य में योगदान दे.” अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने न्यायसंगत बदलाव के विचार को वर्ष 2013 में अपनाया था और वर्ष 2015 में न्यायसंगत बदलाव के लिए दिशा-निर्देश को प्रकाशित किया था. इसके अलावा 2015 में जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते की प्रस्तावना में भी न्यायसंगत बदलाव को जगह मिली. ग्लासगो सम्मेलन में जिस घोषणापत्र पर सहमति बनी वो न्यायसंगत बदलाव के दिशा-निर्देश का पालन करते हुए शून्य कार्बन (नेट ज़ीरो) उत्सर्जन की तरफ़ परिवर्तन का समर्थन करता है. न्यायसंगत बदलाव के घोषणापत्र के सिद्धांत हैं: (1) नये काम में परिवर्तन करने पर कामगार के लिए समर्थन; (2) सामाजिक संवाद और हिस्सेदारों (स्टेकहोल्डर) की भागीदारी का समर्थन और प्रोत्साहन; (3) आर्थिक रणनीति; (4) स्थानीय, समावेशी और संतोषजनक काम; (5) सप्लाई चेन; और (6) पेरिस समझौते की रिपोर्टिंग और ईमानदार बदलाव. ये लेख ‘न्यायसंगत बदलाव’ की धारणा के दायरे के भीतर रसोई के लिए स्वच्छ ईंधन और तकनीकों की तरफ़ बदलाव की सीमा और न्यायसंगत बदलाव के घोषणापत्र के पहले पांच सिद्धांतों का आत्मनिरीक्षण करता है.
ग्लासगो सम्मेलन में जिस घोषणापत्र पर सहमति बनी वो न्यायसंगत बदलाव के दिशा-निर्देश का पालन करते हुए शून्य कार्बन (नेट ज़ीरो) उत्सर्जन की तरफ़ परिवर्तन का समर्थन करता है.
दुनिया भर में 2.6 अरब लोगों तक खाना बनाने के स्वच्छ ईंधन और तकनीकों की पहुंच नहीं है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एयर क्वालिटी गाइडलाइंस (2021) में प्रत्येक खाना बनाने के ईंधन और तकनीक के लिए घर के अंदर फाइन पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) की सीमा तय की गई है. जिन खाना बनाने के ईंधनों को स्वच्छ और गाइडलाइन के अनुसार माना जाता है, उनमें सौर ऊर्जा, बिजली, बायोगैस, प्राकृतिक गैस, लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) और अल्कोहल ईंधन (इथेनॉल समेत) शामिल हैं. सिर्फ़ एक जैव ईंधन (जैव ईंधन में लकड़ी/चारकोल/कोयला/कृषि अवशेष/उपले शामिल हैं) पर आधारित खाना बनाने के स्टोव के मॉडल, जिसको मिमी मोटो एयर गैसिफायर स्टोव कहते हैं और जो मुख्य रूप से टिकिया से चलता है, को स्वच्छ ईंधन तकनीक के रूप में शामिल किया गया है जबकि परंपरागत स्टोव में ईंधन के रूप में इस्तेमाल होने वाले जैव ईंधन को प्रदूषण पैदा करने वाला ईंधन माना जाता है.
दुनिया भर के 34 प्रतिशत लोगों के द्वारा रसोई के लिए स्वच्छ ईंधन और तकनीक का इस्तेमाल करना काफ़ी बड़ा लक्ष्य लगता है. पहले आंकड़े में चार परिदृश्य पेश किए गए हैं: (1) प्रदूषण पैदा करने वाले ईंधन और तकनीकों का उपयोग; (2) एलपीजी/प्राकृतिक गैस/बिजली (दूर के स्रोतों से वितरित किए जाने वाले ईंधन) का उपयोग; (3) बायोगैस/सौर ऊर्जा (नवीकरणीय ईंधन जो स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हैं और जो निशुल्क हैं) का उपयोग; और (4) टिकिया आधारित स्वच्छ स्टोव तकनीक (उदाहरण के लिए मिमी मोटो स्टोव).
पहला आंकड़ा: स्थानीय स्तर पर अलग-अलग खाना बनाने के ईंधन और तकनीकों के इस्तेमाल से जुड़ा परिदृश्य
स्रोत: लेखक का अपना
पहला आंकड़ा प्रदूषण पैदा करने वाले ईंधन (परिदृश्य 1) से स्वच्छ खाना बनाने के ईंधन (परिदृश्य 2, 3 और 4) की ओर बदलाव के मामले में घरेलू स्तर पर और स्थानीय सप्लाई चेन में अपेक्षित बदलाव को पेश करता है. आम तौर पर लोग प्रदूषण फैलाने वाले रसोई के ईंधन (लकड़ी/कृषि अवशेष/उपले) ख़ुद इकट्ठा करते हैं और सामान्य तौर पर ये निशुल्क उपलब्ध होते हैं. लेकिन एलपीजी, प्राकृतिक गैस और बिजली के मामले में लोग इस्तेमाल करने के लिए पैसा चुकाते हैं. इस तरह जब लोग रसोई के लिए स्वच्छ ईंधन की तरफ़ बदलाव करते हैं तो ईंधन पर उनका खर्च बढ़ जाता है. कई जगह चारकोल/लकड़ी/कोयला के लिए स्थानीय सप्लाई चेन मौजूद हैं. जब लोग बड़े पैमाने पर रसोई के लिए स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल करने लगेंगे तो उस स्थिति में इन सप्लाई चेन पर असर पड़ेगा. लेकिन इसके साथ-साथ बदलाव नये अवसर भी मुहैया कराता है. दूसरा आंकड़ा स्थानीय स्तर पर नष्ट हो चुके और नये अवसरों के बारे में बताता है और जो रसोई के लिए स्वच्छ ईंधन और तकनीकों की तरफ़ पूरी तरह परिवर्तन की स्थिति में न्यायसंगत बदलाव के सिद्धांतों के साथ एक सीध में खड़ा होता है.
आम तौर पर लोग प्रदूषण फैलाने वाले रसोई के ईंधन (लकड़ी/कृषि अवशेष/उपले) ख़ुद इकट्ठा करते हैं और सामान्य तौर पर ये निशुल्क उपलब्ध होते हैं. लेकिन एलपीजी, प्राकृतिक गैस और बिजली के मामले में लोग इस्तेमाल करने के लिए पैसा चुकाते हैं
दूसरा आंकड़ा: रसोई के लिए स्वच्छ ईंधन और तकनीकों की तरफ़ पूरी तरह परिवर्तन की स्थिति में नष्ट हो चुके और नये अवसर
स्रोत: लेखक का अपना
पहले और दूसरे आंकड़े के आधार पर न्यायसंगत बदलाव के घोषणापत्र के पहले पांच सिद्धांतों के अनुसार रसोई के लिए स्वच्छ ईंधन की तरफ़ बदलाव की कोशिश की गई है.
न्यायसंगत बदलाव को समझने से तीन बुनियाद स्पष्ट होते हैं: पर्यावरण के दृष्टिकोण से टिकाऊ अर्थव्यवस्था; सभी के लिए संतोषजनक काम; और सामाजिक समावेशन. बदलाव के साथ नई उत्पादन, सप्लाई और डिलीवरी चेन का उदय होता है. लेकिन न्यायसंगत बदलाव का सिद्धांत चाहेगा: (1) नये उत्पादन और वितरण नेटवर्क के मुताबिक़ हुनर सिखाने के लिए योजना बनाना; और (2) इस्तेमाल करने वालों के लिए किफ़ायत बढ़ाना ताकि रसोई के लिए स्वच्छ ईंधन के लगातार इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा सके, ख़ास तौर पर ग़रीबों के बीच. चूल्हा लगाने, सप्लाई/डिस्ट्रीब्यूशन और देखरेख के नेटवर्क में महिलाओं और कमज़ोरों को शामिल करने से सामाजिक समावेशन और सभी के लिए संतोषजनक काम की धारणा मज़बूत हो सकती है. इससे भी बढ़कर, पर्यावरण के दृष्टिकोण से टिकाऊ अर्थव्यवस्था की तरफ़ व्यापक बदलाव के लिए चर्चा करते समय स्वच्छ खाना बनाने के ईंधन की सूची में एलपीजी और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन की उपयुक्तता के पक्ष में तर्क देने की ज़रूरत है.
न्यायसंगत बदलाव को समझने से तीन बुनियाद स्पष्ट होते हैं: पर्यावरण के दृष्टिकोण से टिकाऊ अर्थव्यवस्था; सभी के लिए संतोषजनक काम; और सामाजिक समावेशन.
रसोई के लिए स्वच्छ ईंधन और तकनीकों की तरफ़ पूरी तरह परिवर्तन ‘न्यायसंगत बदलाव’ की रूप-रेखा में आता है जहां इसका फ़ायदा हर किसी को मिलता है, ख़ास तौर पर महिलाओं को. अच्छी योजना बनाने से पर्यावरण के दृष्टिकोण से टिकाऊ अर्थव्यवस्था और हर किसी के लिए स्थानीय स्तर पर संतोषजनक काम की तरफ़ संभावना बढ़ती है. इस तरह ‘न्यायसंगत बदलाव’ हर किसी के लिए रसोई के स्वच्छ ईंधन और तकनीकों को हासिल करने का रास्ता हो सकता है.
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Manjushree Banerjee was associated with the Social Transformation Division of The Energy and Resources Institute (TERI) for ten years. In total she possesses about fifteen ...
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