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भारत की जी20 अध्यक्षता सऊदी अरब के साथ द्विपक्षीय संबंधों और सहयोग भागीदारियों को मज़बूत करने में मददगार हो सकती है.
मौजूदा वक़्त में भारत अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के साथ अपनी भागीदारियों का स्तर ऊंचा उठाने के अथक प्रयास कर रहा है. इसी कड़ी में भारत ने जी20 अंतर-सरकारी मंच के अध्यक्ष के नाते एक और ज़िम्मेदारी उठा ली है. जी20 के सदस्यों के साथ भारत के मौजूदा रिश्ते (कुछ मुट्ठी भर देशों को छोड़कर) संतोषजनक स्तर पर हैं, और निकट भविष्य में इनमें और सुधार आने की पूरी संभावना है. भारत ने हाल ही में जी20 के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला है. अध्यक्ष के रूप में भारत की पारी 1 दिसंबर 2022 से शुरू हुई जो 30 नवंबर 2023 को पूरी होगी. इस क़वायद से कई मोर्चों (द्विपक्षीय समेत) पर सहयोग के अनेक द्वार खुलने के आसार हैं. इनमें सऊदी अरब जैसे देश भी शामिल हैं, जो खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) का एक प्रमुख देश होने के साथ-साथ जी20 का सदस्य भी है.
पिछले कुछ वर्षों से भारत-सऊदी अरब रिश्ते ज़्यादा व्यापक और ठोस हो गए हैं. सऊदी राजशाही अब भारत की चौथी सबसे बड़ी व्यापार सहयोगी बन गई है. आतंकवाद, मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी मक़सदों के लिए वित्त मुहैया कराए जाने के सभी तौर-तरीक़ों के ख़िलाफ़ साझा जंग में दोनों देश अहम सहयोगी भी बन गए हैं.
पिछले कुछ वर्षों से भारत-सऊदी अरब रिश्ते ज़्यादा व्यापक और ठोस हो गए हैं. सऊदी राजशाही अब भारत की चौथी सबसे बड़ी व्यापार सहयोगी बन गई है. आतंकवाद, मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी मक़सदों के लिए वित्त मुहैया कराए जाने के सभी तौर-तरीक़ों के ख़िलाफ़ साझा जंग में दोनों देश अहम सहयोगी भी बन गए हैं. वित्त वर्ष 2021-2022 में दोनो देशों का द्विपक्षीय व्यापार 42.8 अरब अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया. अकेले सऊदी अरब का भारत के ऊर्जा आयात में 18 प्रतिशत हिस्सा है. ये आंकड़ा भारत की ऊर्जा और आर्थिक सुरक्षा की गणनाओं में सऊदी अरब की अहमियत का इज़हार करता है. इसके साथ-साथ सैन्य-सुरक्षा और प्रतिरक्षा सहयोग में भी रफ़्तार आई है. सुरक्षा ख़तरों और चुनौतियों में कुछ समानताओं के चलते दोनों देशों के बीच ऐसे गठजोड़ को रफ़्तार मिली है. साथ ही दोनों देशों की सरकारों ने रक्षा उद्योग क्षेत्र (उनके रक्षा आधुनिकीकरण कार्यक्रमों के दायरे के भीतर) में तालमेल करने को लेकर दिलचस्पी दिखाई है. इतना ही नहीं, दोनों देशों के रिश्ते अब अकेले तेल-ऊर्जा व्यापार (जैसा कि रुझान रहा है) पर ही केंद्रित नहीं हैं.
दोनों पक्षों ने अब नवीकरणीय ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य सेवा, खाद्य सुरक्षा, शिक्षा, प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में भी साथ मिलकर काम करने की संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी हैं. ज़ाहिर तौर पर यही वो अहम क्षेत्र हैं, जिनपर फ़िलहाल जी20 ग़ौर कर रहा है. नवंबर 2022 में जी20 नेताओं के बाली घोषणापत्र में इनको पर्याप्त रूप से रेखांकित किया गया था. इसके मद्देनज़र और इस मंच की व्यापक संरचना के तहत दोनों देशों द्वारा अपने द्विपक्षीय सहयोग के स्तर को और ऊंचा उठाने के लिए इसे मंच के तौर पर इस्तेमाल किए जाने के पूरे आसार हैं. इस सिलसिले में कुछ पहलुओं पर समान सोच वाले मुल्कों के साथ ‘मिनीलैट्रल’ जुड़ावों की स्थापना किए जाने की संभावना है.
हालिया वक़्त में भारत और सऊदी अरब अपने नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों में निवेश की क़वायद को काफ़ी अहमियत दे रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में भारत की विदेश नीति में इस क्षेत्र में भागीदारियां स्थापित करने की प्रक्रिया की बढ़ती लोकप्रियता साफ़-साफ़ देखी जा सकती है. सऊदी अरब के साथ भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है. नवंबर 2020 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेशी निवेशकों से देश के हरित ऊर्जा क्षेत्र में “ख़ुद निवेश करने” या भारतीय कंपनियों के साथ गठजोड़ करने का आह्वान किया था. इसी तरह हाइड्रोकार्बन-आधारित अर्थव्यवस्था पर अपनी निर्भरता घटाने की जद्दोजहद कर रहे सऊदी अरब ने भी इस ओर निवेश करना शुरू कर दिया है. सऊदी विज़न 2030 कार्यक्रम की दिशा में उसने 2021 में सऊदी हरित पहल की शुरुआत की, जो “स्वच्छ ऊर्जा, उत्सर्जनों के प्रति-संतुलन और पर्यावरण की रक्षा पर सऊदी अरब की निर्भरता बढ़ाने...” पर काम कर रहा है. इसी कड़ी में ऊर्जा कूटनीति के एक नए युग का आग़ाज़ करते हुए सऊदी अरब, समान महत्वाकांक्षाओं वाले देशों के साथ भागीदारियां विकसित कर रहा है. उसने नवीकरणीय ऊर्जा के दायरे में भारत के साथ सहयोग को आगे बढ़ाने की क़वायद को काफ़ी हद तक आगे बढ़ाया है. एक ओर जहां भारत सरकार 2030 तक नवीकरणीय और स्वच्छ स्रोतों से 450 गीगावाट (तक़रीबन 60 प्रतिशत) बिजली पैदा करने की दिशा में काम कर रही है, वहीं सऊदी अरब ने भी इसी कालखंड में इन स्रोतों से क़रीब 50 फ़ीसदी बिजली निर्माण करने का लक्ष्य रखा है.
तेज़ी से ख़ाली हो रहे जीवाश्म ईंधन ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कम करने, कार्बन उत्सर्जनों की दर में कटौती की अनिवार्य ज़रूरत पूरी करने और पर्यावरण के क्षय (तेज़ी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के नतीजतन) से पैदा होने वाली चुनौतियों की रोकथाम की तात्कालिकता महसूस की जाने लगी है. इसी वजह से भारत और सऊदी अरब ने नवीकरणीय ऊर्जा के विकास और उनकी तैनाती और संबंधित प्रौद्योगिकी को वरीयता देना शुरू कर दिया है. इस क्षेत्र में दोनों देशों की मौजूदा क़वायद भले ही बेहद शुरुआती दौर में है लेकिन दोनों मुल्कों के नेतृत्व ने इस दिशा में और सक्रिय जुड़ावों को लेकर धीरे-धीरे पारस्परिक दिलचस्पी बढ़ानी शुरू कर दी है. इस दिशा में मेगा सोलर पावर प्लांट के निर्माण में भारत की शुरुआती भागीदारी का दौर शुरू हो चुका है. दरअसल मुंबई-स्थित लार्सन एंड टुब्रो (L&T) ने 2021 में सऊदी अरब में दुनिया की सबसे बड़ी सौर ऊर्जा परियोजना (1.5 गीगावाट्स की क्षमता वाली) सुडेयर सोलर पीवी प्रोजेक्ट के निर्माण का ठेका हासिल किया था. लेन-देन से जुड़ी इस व्यवस्था के साथ-साथ भारत में गुजरात के पश्चिमी तट और पश्चिमी एशियाई क्षेत्र (ख़ासतौर से सऊदी समुद्र तट) को जोड़ने के लिए गठजोड़ की क़वायदों की कोशिश की गई है.
समुद्र के भीतर केबल्स की मदद से तैयार किए जाने वाले इस संपर्क की लागत 15 अरब अमेरिकी डॉलर से 18 अरब अमेरिकी डॉलर के बीच होने का अनुमान है. इस परियोजना के उद्देश्यों में एक नवीकरणीय या हरित ऊर्जा ग्रिड तैयार करना शामिल है. साथ ही सौर और पवन ऊर्जा में उतार-चढ़ावों से जुड़ी समस्या से पार पाना भी एक बड़ा लक्ष्य है. अंतरराष्ट्रीय सौर गठजोड़ के संस्थापकों में से एक होने के नाते भारत की मौजूदा सरकार इस परियोजना को साकार करने में गहरी दिलचस्पी का इज़हार कर रही है. फ़िलहाल इस पर शुरुआती चर्चा का दौर जारी है. इतना ही नहीं, उभरती विश्व व्यवस्था में टिकाऊ और सतत विकास के लिए नवीकरणीय ऊर्जा की केंद्रीय भूमिका के मद्देनज़र भारत और जी20 के सदस्यों (केवल सऊदी अरब ही नहीं) द्वारा ऐसी पहलों में और अधिक निवेश किए जाने के आसार हैं. इसके साथ ही समान हित साझा करने वाले अन्य देशों की भागीदारी के लिए भी अवसर पैदा किए जाएंगे.
2019 के आख़िर में कोविड-19 वैश्विक महामारी के प्रकोप के बाद अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को ऐसी बीमारियों के चलते इंसानी वजूद पर मंडरा रहे ख़तरों का एहसास हो गया है. ऐसी महामारी ना सिर्फ़ सार्वजनिक स्वास्थ्य बल्कि वैश्विक सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और आपूर्ति श्रृंखला के लिए भी बहुत बड़ा ख़तरा है. निश्चित रूप से इस अप्रत्याशित रुझान ने सुरक्षा से जुड़े सभी पहलुओं (पारंपरिक और ग़ैर-पारंपरिक) की व्यापक समझ की ज़रूरत को मज़बूती से रेखांकित किया है. नतीजतन भारत ने पश्चिम एशिया के विस्तृत भूभाग के साथ स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े अपने संपर्कों को और आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है. इस कड़ी में ख़ासतौर से टीकों के उत्पादन, साझा मेडिकल अनुसंधानों, सटीक तौर-तरीक़ों के आदान-प्रदान आदि से जुड़े मसलों पर ध्यान दिया जा रहा है. जी20 समूह की ओर से मज़बूत स्वास्थ्य प्रणाली पर ज़ोर दिया जा रहा है. भारत और सऊदी अरब को इस मंच पर अपने सकारात्मक जुड़ावों को आगे बढ़ाते हुए द्विपक्षीय तौर पर इस पहलू की ओर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए. जब कोरोना महामारी चरम पर थी उस वक़्त भारत सरकार ने सऊदी सरकार को इसके प्रकोप से निपटने में मदद की थी. इसके लिए ख़ासतौर से सैकड़ों पेशेवर स्वास्थ्यकर्मियों को सऊदी अरब भेजा गया था. सऊदी अरब उन चुनिंदा देशों में था जिसने अपनी सीमा में प्रवेश करने के इच्छुक किसी भी शख़्स के लिए “सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया की कोविशील्ड को मान्यताप्राप्त कोविड-19 वैक्सीन के तौर पर स्वीकार्यता” दी थी. ग़ौरतलब है कि 2019 में प्रधानमंत्री मोदी की रियाद यात्रा के दौरान स्वास्थ्य और मेडिकल उत्पादों के नियमनों पर भारत-सऊदी समझौता पत्र (MoU) पर दस्तख़त हुए थे. दोनों देशों के बीच स्वास्थ्य के मोर्चे पर आपसी संवादों को ऊंचा उठाने में ये समझौता उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकता है. इस औपचारिक समझौते की मौजूदगी में स्वास्थ्य और मेडिकल के क्षेत्र में दोनों पक्षों के बीच सहयोग बढ़ाने में कोई कठिनाई नहीं आनी चाहिए.
जी20 के कई देशों ने स्वास्थ्य और मेडिकल विज्ञान के क्षेत्र में काफ़ी तरक़्क़ी कर ली है. कोविड जैसी संक्रामक बीमारी के अप्रत्याशित स्वभाव के चलते समूह के ऐसे सदस्यों के साथ सहयोग और समन्वय की और गुंजाइश होनी चाहिए. इस दायरे में दवाइयों/टीकों के उत्पादन, शोध परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण, तमाम रोगों/बीमारियों में शोध पत्रों का आदान-प्रदान, संस्थाओं और प्रयोगशालाओं के बीच पेशेवरों का निरंतर आदान-प्रदान और जी20 के संबंधित सदस्य देशों के बीच बेहतरीन तौर-तरीक़ों की शेयरिंग और लेन-देन के क्षेत्र में साझा गठजोड़ शामिल हो सकते हैं.
खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में मौजूदा वैश्विक चुनौतियों की तस्दीक़ करते हुए जी20 मंच ने दो टूक लहज़े में “ज़िंदगियां बचाने, भुखमरी और कुपोषण की रोकथाम करने; ख़ासतौर से विकासशील देशों की कमज़ोरियों के निपटारे के लिए, टिकाऊ और लोचदार कृषि और खाद्य प्रणालियों और आपूर्ति श्रृंखलाओं के लिए तेज़ रफ़्तार परिवर्तनकारी क़वायदों का आह्वान किया है.” ये भारत और सऊदी अरब के साथ-साथ संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के लिए भी पारस्परिक रूप से साझा दिलचस्पी वाला क्षेत्र है. ये सभी देश खाद्य असुरक्षा (तमाम तरह की किल्लतों, ऊर्वरकों और मूल्य तय करने समेत) से जुड़े तमाम मसलों पर साझा रूप से काम कर सकते हैं. ग़ौरतलब है कि 2019 में किसी भी तरह की खाद्य असुरक्षा से बचाव के लिए खाड़ी सहयोग परिषद के इन दोनों देशों ने भारत के आर्गेनिक और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में निवेश करने का फ़ैसला किया था. फ़सल उत्पादन के क्षेत्र समेत तमाम कृषि गतिविधियों में भारत को महारत हासिल है. भारत कृषि वस्तुओं (ख़ासतौर से चावल) का शुद्ध निर्यातक है. ऐसे में भागीदारियां मज़बूत करने की क़वायद सऊदी अरब और UAE (GCC के अन्य देशों समेत) की जनता के लिए बहुत फ़ायदेमंद साबित हो सकती है. ग़ौरतलब है कि ये तमाम मुल्क (ख़ासतौर से उपजाऊ भूमि के अभाव में) अपनी खाद्य सुरक्षा के लिए निरंतर बाहरी स्रोतों पर निर्भर रहते हैं.
भारत ने पश्चिम एशिया के विस्तृत भूभाग के साथ स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े अपने संपर्कों को और आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है. इस कड़ी में ख़ासतौर से टीकों के उत्पादन, साझा मेडिकल अनुसंधानों, सटीक तौर-तरीक़ों के आदान-प्रदान आदि से जुड़े मसलों पर ध्यान दिया जा रहा है.
आख़िर में एक और अहम बात ये है कि भारत ने GCC के दूसरे भागीदारों (जैसे ओमान और UAE), और उत्तरी अफ़्रीकी क्षेत्र से मिस्र को जी20 मंच के मेहमानों के रूप में आमंत्रित किया है. इन देशों को सभी बैठकों में शामिल करने की क़वायद भारत की मौजूदा सरकार द्वारा WANA क्षेत्र को दी जा रही भू-सामरिक और भू-आर्थिक अहमियत को रेखांकित करती है. पिछले 7 से 8 सालों में इस इलाक़े के लगभग सभी देशों के साथ भारत के रिश्तों में ज़बरदस्त सुधार आया है. जी20 के आगामी विचार-मंथनों की ज़्यादातर विषयवस्तुओं पर द्विपक्षीय स्तर पर पहले ही परिचर्चा शुरू हो चुकी है. विभिन्न प्रारूपों, जैसे हाल ही में स्थापित समूहों- I2U2 (इज़राइल, भारत, UAE और अमेरिका) के तहत भी इन पर विचार-विमर्श हो रहा है. हालांकि भारत-सऊदी अरब संबंध आगे और गहरे होने के पूरे आसार हैं, लेकिन इन द्विपक्षीय जुड़ावों से परे गठजोड़ों के और आगे जाने की भरपूर संभावना मौजूद है. दरअसल, उभरती विश्व व्यवस्था में दुनिया जिन बहुआयामी संकटों का सामना कर रही है, उनसे निपटने के लिए सामूहिक प्रयासों की दरकार लगातार बढ़ती जा रही है. लिहाज़ा भारत की जी20 अध्यक्षता को बहुत चतुराई और कुशलता के साथ उपयोग में लाने की ज़रूरत है. इससे अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत का कद ऊंचा उठेगा. साथ ही सदस्य राष्ट्रों के साथ द्विपक्षीय और मिनिलैट्रल भागीदारियों को मज़बूत बनाने में भी इस मौक़े का भरपूर इस्तेमाल किया जा सकता है.
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Dr. Alvite Ningthoujam is an Assistant Professor at the Symbiosis School of International Studies (SSIS) Symbiosis International (Deemed University) Pune Maharashtra. Prior to this he ...
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