अर्थशास्त्र के मुताबिक़ संकीर्ण स्वार्थ आर्थिक बर्ताव को बढ़ाता है. लेकिन साहित्य कहता है कि निष्पक्षता, सहयोग, आदान-प्रदान इत्यादि शुद्ध स्वार्थी हित से दूर करते हैं. मुख्यधारा के निवेश मुनाफ़े की दर पर ध्यान देकर संकीर्ण स्वार्थ से प्रेरित लोगों का काम करते हैं. लेकिन ऐसे भी लोग हैं जो अपने निवेश के ज़रिए बाज़ार के मुनाफ़े की दर की चिंता किए बिना सामाजिक या पर्यावरण के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं. ऐसे निवेश को इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट कहा जाता है. ज़्यादा औपचारिक तौर पर कहें तो जैसा कि मॉनिटर इंस्टीट्यूट ने परिभाषित किया है, ‘इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट में ऐसे निवेश शामिल हैं जो सामाजिक और पर्यावरण संबंधी अहमियत बनाने के साथ-साथ वित्तीय मुनाफ़ा भी दें.‘
मौजूदा विश्व जिसने आमतौर पर टिकाऊ सिद्धांत का पालन करने की क़ीमत समझी है, वहां सोशल इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट को टिकाऊ विकास लक्ष्य (SDG) की उपलब्धि से जोड़ा जा रहा है. जैसा कि संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों ने बताया है, वर्ष 2030 तक टिकाऊ विकास लक्ष्य पाने के लिए विकासशील देशों को हर साल 3.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर निवेश करना होगा. लेकिन निजी और सार्वजनिक क्षेत्र मिलकर हर साल सिर्फ़ 1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करते हैं. यानी निवेश का अंतर 2.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है. सोशल इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट के ज़रिए निवेश के इस अंतर को दूर किया जा सकता है.
भारत इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट के मामले में अग्रणी हैं आविष्कार ग्रुप, ओमिद्यार नेटवर्क, एलिवर इक्विटी, यूनिटस वेंचर्स, एक्युमेन और दूसरी कंपनियां. हालांकि, भारत में इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट अभी तुलनात्मक रूप से शुरुआती दौर में है लेकिन वो तेज़ी से अपनी जगह बना रहा है और ऐसा लग रहा है कि इसका भविष्य उज्ज्वल है. एक तरफ़ आर्थिक विकास की संभावना के साथ-साथ सामाजिक प्रगति और दूसरी तरफ़ मज़बूत वित्तीय बाज़ार के बीच पारस्परिक प्रभाव ने भारत में इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट में बढ़ोतरी को प्रोत्साहन दिया है. भारत में 2010 से 2016 के बीच इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट की कुल संपत्ति 5.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर है जिसमें से 1.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर सिर्फ़ 2016 में निवेश किया गया. 2016 में इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट से जुड़े कुल सौदों में वित्तीय समावेशन का हिस्सा सबसे ज़्यादा 43 प्रतिशत रहा जबकि स्वच्छ ऊर्जा, कृषि और शिक्षा का हिस्सा क्रमश: 21, 13 और 5 प्रतिशत रहा. लेकिन 2018 में हालात पूरी तरह बदल गए. 67 प्रतिशत इम्पैक्ट इन्वेस्टर ने कृषि और शिक्षा के क्षेत्र में अपने पैसे का निवेश किया जबकि ऊर्जा और माइक्रोफाइनेंस में क्रमश: 33 प्रतिशत और 25 प्रतिशत निवेश किया गया.
भारत इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट के मामले में अग्रणी हैं आविष्कार ग्रुप, ओमिद्यार नेटवर्क, एलिवर इक्विटी, यूनिटस वेंचर्स, एक्युमेन और दूसरी कंपनियां. हालांकि, भारत में इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट अभी तुलनात्मक रूप से शुरुआती दौर में है लेकिन वो तेज़ी से अपनी जगह बना रहा है और ऐसा लग रहा है कि इसका भविष्य उज्ज्वल है
भारत में कुल एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) 0.15 मिलियन से लेकर 88.97 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बीच है. भारत में क़रीब आधे इम्पैक्ट इन्वेस्टर ने 20 मिलियन अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा निवेश किया है. इनमें से 75 प्रतिशत निवेश इक्विटी के रूप में, 17 प्रतिशत डेट के रूप में और 8 प्रतिशत डेट, इक्विटी और ब्लेंडेड इंस्ट्रूमेंट के रूप में किया गया. भारत में मुख्य रूप से एंडोमेंट फंड्स (5.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर), डेवलपमेंट फ़ाइनेंस इंस्टीट्यूशन (5.3 मिलियन अमेरिकी डॉलर) और बैंक (4.6 मिलियन) ने इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट किया है. भारत में क़रीब 67 प्रतिशत निवेशक 15 प्रतिशत से ज़्यादा मुनाफ़ा कमाते हैं, 8 प्रतिशत निवेशक क़रीब 10-15 प्रतिशत मुनाफ़ा कमाते हैं जबकि बाक़ी एक-चौथाई क़रीब 5-10 प्रतिशत मुनाफ़ा कमाते हैं.
भारत में इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट सामाजिक उद्यमों में किया जाता है जो मुख्य तौर पर पश्चिम और दक्षिण भारत में हैं. उद्यमों का दृष्टिकोण बिज़नेस मॉडल का प्रतिनिधित्व करते हैं जो आमतौर पर इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट मांगते हैं. ऐसे निवेश के पीछे बुनियादी सिद्धांत है कि जो संस्थान समाज के असुरक्षित, कमज़ोर और विकास से दूर तबके की सेवा कर रहे हैं, उनमें शुरुआती दौर में पैसा लगाएं. इसके पीछे उनके निवेश करने की क्षमता और ऐसी कंपनियों के लिए पूंजी उपलब्ध कराने का इरादा दिखाना है. हालांकि, मुख्यधारा के निवेशकों ने इन उद्यमों की पहल में शुरुआती दौर और पहले चरण में बड़े पैमाने पर निवेश किया है. इसकी वजह से उनके और इम्पैक्ट इन्वेस्टर के बीच अंतर धुंधला हो गया है.
टिकाऊ विकास लक्ष्य (SDG) में भारत के स्थान को देखते हुए इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट भारत की टिकाऊ विकास की कहानी में बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं. लेकिन भारत में इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट के परिदृश्य में कई चुनौतियां हैं. सबसे बड़ी चुनौती है भारत में सामाजिक उद्यमों की क़ानूनी परिभाषा का न होना. सामाजिक उद्यमों को इस तरह से क़ानूनी दर्जा देने की ज़रूरत है ताकि वो इस क्षेत्र की असलियत के बारे में और किन हालात में सामाजिक उद्यम काम करते हैं, ये बताएं. इसके अलावा भारत में अलग-अलग तरह के सामाजिक उद्यमों का नियमन करने के लिए कई विरोधाभासी क़ानून हैं. देश में काम करने वाले सामाजिक उद्यमों के काम-काज पर नज़र रखने के लिए बने विभिन्न क़ानूनों को सुसंगत करके ऐसे विरोधाभासों का हल निकालने की ज़रूरत है.
चूंकि सामाजिक उद्यमों को अलग वैधानिक संस्था के रूप में मान्यता नहीं है, इसकी वजह से उनके काम-काज पर नज़र रखने के लिए कोई मानक क़ानूनी ढांचा नहीं है. ऐसे में सामाजिक उद्यमों को रजिस्ट्रेशन, नियमों के पालन, मंज़ूरी लेने इत्यादि में काफ़ी खर्च करना पड़ता है. बड़े पैमाने का एक रेगुलेटरी प्लेटफॉर्म बनाने की ज़रूरत है जहां नियमों के पालन, रजिस्ट्रेशन, निगमीकरण और सामाजिक उद्यमों के लिए हर तरह की मंज़ूरी एक जगह दी जा सके. भारत में इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट शुरुआती दौर में है. इस संदर्भ में कामकाज पर नज़र रखने के लिए सेल्फ-रेगुलेशन ठीक है. प्रदर्शन के मानक में तालमेल के लिए सामान्यीकरण की ज़रूरत है जो इस स्थिति में सही ढंग से संभव नहीं है.
भारत में इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट सामाजिक उद्यमों में किया जाता है जो मुख्य तौर पर पश्चिम और दक्षिण भारत में हैं. उद्यमों का दृष्टिकोण बिज़नेस मॉडल का प्रतिनिधित्व करते हैं जो आमतौर पर इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट मांगते हैं
आयकर अधिनियम 1961 के तहत बिना लाभ के रूप में रजिस्टर्ड संस्थानों को टैक्स का फ़ायदा मिलता है. लेकिन लाभ वाले संस्थानों के रूप में काम कर रहे सामाजिक उद्यमों को ये फ़ायदा हासिल नहीं है. भारत में कर व्यवस्था सामाजिक मिशन से जुड़े लाभ कमाने वाले संस्थानों और बिना मिशन वाले संस्थानों में अंतर नहीं करता है. फिलहाल दोनों तरह के संस्थानों को एक तरीक़े से कर देना पड़ता है. ऐसे सामाजिक उद्यम जो लाभ कमाने के साथ सामाजिक मिशन में जुड़े हुए हैं, वास्तव में वो सामाजिक कल्याण की सरकार की कोशिशों का समर्थन करते हैं. सामाजिक उद्यम टिकाऊ विकास लक्ष्य को हासिल करने में लगे हुए हैं. मौजूदा कर व्यवस्था के तहत लाभ कमाने वाले संस्थानों पर कर लगाते वक़्त इस तथ्य का ध्यान ज़रूर रखा जाना चाहिए.
परोपकारी और विदेशी फंड हासिल करने में नियम-क़ानून अनुकूल नहीं हैं. सरकार को चाहिए कि वो लाभ कमाने वाले सामाजिक उद्यमों को काम-काज के शुरुआती दौर में मिले अनुदान और चंदे पर कर छूट का फ़ायदा दे. साथ ही उन्हें CSR के लिए योग्य करार दे और विदेशी फंड हासिल करने की गाइड लाइन में छूट दे.
2030 तक टिकाऊ विकास लक्ष्य (SDG) हासिल करने के लिए पूरी तरह सरकारी क्षेत्रों पर निर्भर रहने का मतलब है सरकारी मशीनरी पर बहुत ज़्यादा दबाव डालना. विकल्प के तौर पर सरकार भारत में इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट की पहल को प्रोत्साहन देने पर ज़रूर विचार करे. भारत में इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट सेक्टर जो चुनौतियां झेल रहा है, उसका हल करने के लिए सरकार को कुछ निर्णायक क़दम उठाने चाहिए. ऐसा करने से इम्पैक्ट इन्वेस्टमेंट सेक्टर समर्थ बनेगा और टिकाऊ विकास लक्ष्य (SDG) की दूरी हासिल करने में सरकार के साथ क़दम-से-क़दम मिलाकर चलेगा.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.