Author : Sameer Patil

Published on Dec 30, 2023 Updated 0 Hours ago

गज़ा पट्टी से बड़ी मात्रा में आ रही वीडियो फुटेज का पैन-इस्लामिक और पाकिस्तान के आतंकी संगठनों के द्वारा अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने के साथ उनके दुष्प्रचार का भारत में आतंकी कट्टरता पर असर पड़ेगा.

भारत में आतंकी कट्टरता पर इज़रायल-हमास संघर्ष का असर

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7 अक्टूबर 2023 को इज़रायल पर हमास के घातक हमले के बाद छिड़े इज़रायल-हमास संघर्ष ने गज़ा पट्टी में ऐसी हिंसा को चिंगारी दी है जो पहले कभी नहीं देखी गई थी. बाहरी ताकतों की भागीदारी के साथ क्षेत्रीय शक्तियों के द्वारा प्रॉक्सी के माध्यम से भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने की कोशिश ने पश्चिम एशिया की नाज़ुक स्थिरता को ख़तरे में डाल दिया है. हालांकि भू-राजनीतिक निहितार्थ के आगे इस संघर्ष के परिणामस्वरूप आतंकी हिंसा और कट्टरता का ख़तरा भी छिपा हुआ है

 दक्षिण एशिया में भी आतंकवादी संगठन और उनके हमदर्द पश्चिम एशिया के घटनाक्रम का उपयोग कट्टरता को बढ़ाने और अपने संगठनों में मासूम नौजवानों की भर्ती करने में कर रहे हैं.  

दक्षिण एशिया में भी आतंकवादी संगठन और उनके हमदर्द पश्चिम एशिया के घटनाक्रम का उपयोग कट्टरता को बढ़ाने और अपने संगठनों में मासूम नौजवानों की भर्ती करने में कर रहे हैं. 

दक्षिणी इज़रायल में हमास की ज़बरदस्त हिंसा और उसके बाद गज़ा पट्टी में इज़रायल डिफेंस फोर्स के अभियान में हुई मौतों और तबाही के ग्राफिक वीडियो और तस्वीरों का हमास ने चालाकी से इस्तेमाल किया है और इसकी वजह से दुनिया के कई देशों में हमास के समर्थन में साफ तौर पर भावनाएं पैदा हुई हैं. इसने पैन-इस्लामिक आतंकवादी समूहों जैसे कि अल-क़ायदा (AQ) और इस्लामिक स्टेट (IS) के साथ-साथ दूसरे क्षेत्रीय आतंकवादी संगठनों के लिए उत्तेजना के तौर पर काम किया है. दक्षिण एशिया में भी आतंकवादी संगठन और उनके हमदर्द पश्चिम एशिया के घटनाक्रम का उपयोग कट्टरता को बढ़ाने और अपने संगठनों में मासूम नौजवानों की भर्ती करने में कर रहे हैं. 

वैश्विक परिदृश्य

दुनिया भर के काउंटर-टेररिज़्म विशेषज्ञों का कहना है कि इज़रायल-हमास संघर्ष की वजह से आतंकी खतरे का उदय हो सकता है. गज़ा पट्टी में इज़रायल के जवाबी हमले के तरीके और पैमाने ने उम्मीद के मुताबिक मुस्लिम देशों में लोगों को गुस्से और निंदा से भर दिया है. अल-क़ायदा जैसे आतंकी संगठनों ने अपनी अहमियत पर ज़ोर देने के लिए इन भावनाओं का फायदा उठाया है. इज़रायल पर हमास के हमले के कुछ दिनों के बाद उत्तर और पश्चिम अफ्रीका में अल-क़ायदा से जुड़े संगठनों ने हमले की तारीफ की और यहूदियों के ख़िलाफ़ और अधिक हिंसा की अपील की. इसी तरह सोमालिया में अल-क़ायदा से जुड़े संगठन अल-शबाब ने हमास के लड़ाकों की प्रशंसा की और इस हमले कोपूरे मुस्लिम उम्मा की लड़ाईबताया

यूरोप में पश्चिम एशिया के घटनाक्रम का असर पहले ही हो चुका है. 7 अक्टूबर से फ्रांस में दो आतंकवादी हमले हो चुके हैं- 13 अक्टूबर को उत्तरी फ्रांस में एक शिक्षक का गला काट दिया गया और 3 दिसंबर को पेरिस में एक सैलानी पर चाकू से हमला किया गया. बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में भी 16 अक्टूबर को एक हमला हुआ लेकिन अधिकारियों ने इसे साफ तौर पर इज़रायल-हमास के संघर्ष से नहीं जोड़ा. इन हमलों ने सुरक्षा एजेंसियों के बीच उन चिंताओं को बढ़ाया है कि इज़रायल-हमास की लड़ाई संभवत: आतंकी कट्टरता के लिए प्रेरणा के तौर पर काम कर रही है जो लोन-वोल्फ आतंकी हिंसा की नई लहर पैदा कर सकती है

 एजेंसियों के आंकड़े के मुताबिक महाराष्ट्र में 7 अक्टूबर से 20 नवंबर के बीच पुणे, कोल्हापुर और ठाणे (मुंब्रा और भिवंडी) ज़िले समेत राज्य के अलग-अलग हिस्सों में फिलिस्तीन के समर्थन में 27 प्रदर्शन आयोजित किए गए. कुछ विरोध प्रदर्शन ऑनलाइन भी आयोजित किए गए. 

इस कट्टरता को हमास के दुष्प्रचार और प्रोपेगेंडा की रणनीति से भी बढ़ावा मिल रहा है. हमास गाज़ा पट्टी में इज़रायल के ज़मीनी और हवाई हमलों की तस्वीरों और वीडियो का इस्तेमाल करके अपने हमले के लिए हमदर्दी पैदा करना चाहता है. अपने दुष्प्रचार और प्रोपेगेंडा को बढ़ाने के लिए हमास ने X (पहले ट्विटर) सोशल प्लेटफॉर्म और टेलीग्राम की एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग सर्विस का इस्तेमाल किया है. हाल के दिनों में रिसर्च करने वालों ने X प्लैटफॉर्म पर 67 अकाउंट के एक प्रोपेगैंडा नेटवर्क का खुलासा किया है जो युद्ध से जुड़े गलत और भड़काऊ कंटेंट पोस्ट करके एक अभियान का तालमेल और उसे बढ़ा रहे थे. टेलीग्राम पर हमास से जुड़े चैनल नियमित रूप से अपने हमले के हिंसक ग्राफिक्स को पोस्ट करते हैं और इज़रायल के हमले की वजह से गज़ा पट्टी में आम लोगों के हताहत होने के पहलू पर प्रकाश डालते हैं. इसने दुष्प्रचार के लिए भरपूर मौका मुहैया कराया है और ज़मीनी हालात की सटीक जानकारी को लेकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की समझ को बिगाड़ दिया है

भारतीय संदर्भ 

भारत में भी हालात अलग नहीं हैं. हमास के हमले के बाद से सुरक्षा एजेंसियां देश में इज़रायल-फिलिस्तीन मुद्दे को लेकर लामबंदी पर करीब से नज़र रख रही हैं. इस दौरान केरल और महाराष्ट्र चिंता पैदा करने वाले राज्यों के तौर पर उभरे हैं. मिसाल के तौर पर, केरल में 27 अक्टूबर को जमात--इस्लामी की युवा शाखा सॉलिडेरिटी यूथ मूवमेंट (SYM) के द्वारा मलप्पुरम में फिलिस्तीन के समर्थन में आयोजित रैली में खालेद मशाल ने वर्चुअल भागीदारी की जो हमास के पूर्व प्रमुख हैं और क़तर में रहते हैं. वैसे तो इस रैली में हिंसा की कोई अपील नहीं की गई और भारत में हमास कोई प्रतिबंधित संगठन नहीं है लेकिन राज्य में फिलिस्तीन के समर्थन में जो अभियान चलाया जा रहा है उसमें हमास को गौरवान्वित किया जाता है और उसके नेताओं को योद्धा के तौर पर पेश किया जाता है. फिलिस्तीन के समर्थन में भावनाओं का हमास के समर्थन में भावनाओं से ये मेल चिंताजनक है और ये आतंकी हिंसा के औचित्य को सही बताता है. दिलचस्प बात ये है कि SYM ने ये आयोजनहिंदुत्व और रंगभेदी यहूदीवाद को जड़ से उखाड़ोशीर्षक से अपने मौजूदा अभियान के हिस्से के रूप में किया. सुरक्षा एजेंसियों के आंकड़े के मुताबिक महाराष्ट्र में 7 अक्टूबर से 20 नवंबर के बीच पुणे, कोल्हापुर और ठाणे (मुंब्रा और भिवंडी) ज़िले समेत राज्य के अलग-अलग हिस्सों में फिलिस्तीन के समर्थन में 27 प्रदर्शन आयोजित किए गए. कुछ विरोध प्रदर्शन ऑनलाइन भी आयोजित किए गए. 

इन घटनाक्रमों ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) जैसे संगठन को भी अपनी राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) के ज़रिए अपनी गतिविधियों को जारी रखने की इजाज़त दी है जबकि सितंबर 2022 में PFI पर पाबंदी लगाई जा चुकी है. 20 अक्टूबर को SDPI ने पुणे में फिलिस्तीन के समर्थन में एक रैली का आयोजन किया. इसके जवाब में इज़रायल के समर्थन में भी कुछ रैलियां आयोजित की गईं

ये लामबंदी उस ध्रुवीकरण का संकेत है जिससे भारतीय समाज इज़रायल-हमास संघर्ष को लेकर गुज़र रहा है. ये धार्मिक समुदायों के बीच खाई भी पैदा कर रहा है. ये ऐसी चीज़ है जिसका आतंकी संगठन फायदा उठाने की फिराक में हैं. इसके अलावा उन्होंने फिलिस्तीन के समर्थन में आयोजित कुछ रैलियों पर पुलिस की कार्रवाई कोशांतिपूर्ण प्रदर्शनोंपर कार्रवाई के रूप में भी पेश किया है और इस तरह अन्याय एवं उत्पीड़न की भावना को बढ़ाया है

पैन-इस्लामिक आतंकवादी दुष्प्रचार में भारत को आम तौर पर इज़रायल के साथ जोड़ा जाता है. अप्रैल 2006 में अल-क़ायदा के तत्कालीन सरगना ओसामा बिन लादेन ने अपने एक ऑडियो संदेश मेंमुसलमानों के ख़िलाफ़ यहूदी-हिंदू युद्धका ज़िक्र किया था. अतीत में पकड़े गए पाकिस्तान और जम्मू-कश्मीर के लश्कर--तैयबा (LeT) आतंकवादियों से पूछताछ के दौरान खुलासा हुआ था कि संगठन में नए भर्ती किए गए आतंकियों को दुनिया भर की घटनाओं जैसे कि इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष और यरुशलम में अल-अक़्सा मस्जिद में फिलिस्तीन के प्रदर्शनकारियों पर इज़रायल की कार्रवाई की तस्वीरें दिखाकर कट्टर बनाया जाता था. ध्यान देने की बात है कि कट्टर इस्लामिक सोच रखने वाला फिलिस्तीनी अब्दुल्ला आज़म LeT के सह-संस्थापकों में से एक था

हालांकि पिछले दशक में भारत में कट्टरपंथ का ख़तरा और ज़्यादा बढ़ा है क्योंकि IS भारत के युवाओं को अपने साथ जोड़ने की लगातार कोशिश कर रहा है. IS भले ही कमज़ोर हुआ है लेकिन ख़तरा अभी भी बना हुआ है. जून 2022 में राजस्थान के उदयपुर और महाराष्ट्र के अमरावती में एक-के-बाद-एक दो हत्या की घटनाओं से इसका सबूत मिलता है. इन वारदात को कट्टरपंथी लोन वोल्व ने अंजाम दिया था. सिर्फ 2023 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने आतंकी संगठनों के लिए भर्ती और कट्टरता के आरोपों में कई संदिग्धों को गिरफ्तार किया है.

इस पृष्ठभूमि में भारतीय सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि पश्चिम एशिया का घटनाक्रम आतंकी संगठनों को नई ज़िंदगी दे सकता है. कई आतंकी संगठन भविष्य को लेकर बेहद उत्साहित हैं- उसी तरह का उत्साह जो अगस्त 2021 में काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के बाद उन्होंने दिखाया था. इससे आतंकी प्रोपेगैंडा और कट्टरता में और तेज़ी आएगी. इज़रायल के सैन्य अभियान की शुरुआत के बाद अल-क़ायदा इन इंडियन सबकॉन्टिनेंट पहले ही अपने समर्थकों से अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के नागरिकों और उनके हितों पर हमले करने की अपील कर चुका है

 साफ तौर पर गज़ा पट्टी से बड़ी मात्रा में आ रही वीडियो फुटेज का पैन-इस्लामिक और पाकिस्तान के आतंकी संगठनों के द्वारा अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने के साथ उनके दुष्प्रचार का भारत में आतंकी कट्टरता पर बहुत ज़्यादा असर पड़ेगा.  

इसके अलावा पाकिस्तान में रहने वाले फ़रार आतंकी फरहतुल्लाह ग़ोरी, जो पहले LeT जैश--मोहम्मद के साथ जुड़ा था, का एक वीडियो संदेश एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग प्लेटफॉर्म पर घूम रहा है. गज़ा पट्टी की वीडियो क्लिप का इस्तेमाल करके वो इज़रायल का समर्थन करने के लिए भारत की निंदा करता है और भारत के मुसलमानों से इज़रायल के ख़िलाफ़ युद्ध में उम्मा के साथ एकजुट होने की गुज़ारिश करता है. ग़ोरी साल 2000 के आस-पास फारस की खाड़ी में आतंकियों की भर्ती के नेटवर्क का हिस्सा था. इसलिए उसके संदेश का मक़सद क्षेत्र में रहने वाले प्रवासी भारतीयों के कमज़ोर तत्वों को समझाना है

साफ तौर पर गज़ा पट्टी से बड़ी मात्रा में रही वीडियो फुटेज का पैन-इस्लामिक और पाकिस्तान के आतंकी संगठनों के द्वारा अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने के साथ उनके दुष्प्रचार का भारत में आतंकी कट्टरता पर बहुत ज़्यादा असर पड़ेगा. एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग प्लेटफॉर्म की व्यापक उपलब्धता और पाकिस्तान के द्वारा आतंकी हिंसा को फिर से शुरू करने की कोशिशें इस ख़तरे को बढ़ाती हैं. गृह मंत्रालय, ख़ास तौर पर NIA, ने आतंकी संगठनों और उनका समर्थन करने वाले इकोसिस्टम पर दबाव बनाए रखा है. लेकिन भारतीय एजेंसियों को आतंकी मास्टरमाइंड और उनके साधन-संपन्न आकाओं की तरफ से कट्टरता को बढ़ाने की नई कोशिशों पर निगरानी तेज़ करनी होगी.  


समीर पाटिल ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में डिप्टी डायरेक्टर और सेंटर फॉर सिक्युरिटी, स्ट्रैटजी एंड टेक्नोलॉजी में सीनियर फेलो हैं

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