Author : Clara Lewis

Published on Dec 03, 2021 Updated 0 Hours ago

दरअसल बीएमसी ने 2006 के अपने बजट में मुंबई में मॉलिक्यूलर डायग्नोस्टिक लैब स्थापित करने के लिए 4 करोड़ रु  की मंज़ूरी दी थी.

कोविड-19 से निपटने का मुंबई (महाराष्ट्र) का तजुर्बा कैसे देश के बाकी शहरों के लिए एक सबक है?
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ये लेख कोलाबा एडिट 2021 सीरीज़ का हिस्सा है.


जुलाई 2005 में मूसलाधार बारिश से आए जल प्रलय के चलते मुंबई की परिवहन व्यवस्था ठप हो गई थी. तब बाढ़ में डूबी मुंबई की सड़कों और वहां फंसे लोगों की तस्वीरें पूरी दुनिया ने देखी थी. गलियों में बह रहा पानी जानवरों के मूत्र के संपर्क में आने के चलते दूषित हो चुका था. उस वक़्त मुंबईकरों के इस गंदे पानी के संपर्क में आने के चलते लेप्टोस्पायरोसिस के मामलों में उछाल देखने को मिला था. आम तौर पर बरसात के मौसम में ये बीमारी देखने को मिलती है. मुंबई में बेहिसाब बरसात और दूषित पानी की वजह से लेप्टोस्पायरोसिस फैलाने वाले बैक्टीरिया जानवरों से इंसानों तक पहुंच गए. कुछ ही दिनों में मुंबई महानगर में लेप्टोस्पायरोसिस समेत बरसाती पानी की वजह से पैदा हुई बीमारियों के मरीज़ों की तादाद तीन लाख से ऊपर पहुंच गई.

लेप्टोस्पायरोसिस एक जानलेवा बीमारी है. मौत का ख़तरा कम करने के लिए वक़्त रहते मर्ज़ की पहचान और इलाज बेहद ज़रूरी है. हालांकि असलियत ये थी कि उस वक़्त मुंबई इस बीमारी से लड़ने के लिए कतई तैयार नहीं थी. लेप्टोस्पायरोसिस की पहचान के लिए ख़ून के तमाम सैंपलों को पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी भेजना पड़ा था. मर्ज़ को पक्का करने और पूरी तरह से तसल्ली के लिए पोर्ट ब्लेयर स्थित आईसीएमआर के रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर को भी सैंपल भेजे जाते थे. यहां ग़ौरतलब है कि देश के सबसे समृद्ध नगरीय निकाय वृहन्नमुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के पास उस समय अपना कोई मॉलिक्यूलर डायग्नोस्टिक लैब नहीं था. इस वजह से मुंबईकरों को लेप्टोस्पायरोसिस की पक्की रिपोर्ट पाने के लिए क़रीब दो हफ़्तों तक का इंतज़ार करना पड़ता था.

मॉलिक्यूलर लैब की स्थापना और उसके संचालन से जुड़ा तजुर्बा कोविड 19 महामारी से लड़ने में बीएमसी के बड़े काम आया. ख़ासतौर से RT-PCR जांच के लिए तेज़ गति से लैब स्थापित करने और उनका कामकाज शुरू करने में इस पुराने अनुभव से भारी मदद मिली. 

इन हालातों में तत्कालीन शिवसेना अध्यक्ष (और महाराष्ट्र के मौजूदा मुख्यमंत्री) उद्धव ठाकरे के निर्देश पर बीएमसी ने एक दूरंदेशी भरा फ़ैसला लिया था. दरअसल बीएमसी ने 2006 के अपने बजट में मुंबई में मॉलिक्यूलर डायग्नोस्टिक लैब स्थापित करने के लिए 4 करोड़ रु (2006 की विनिमय दर पर 9 लाख अमेरिकी डॉलर) की मंज़ूरी दी थी. कस्तूरबा संक्रामक रोग अस्पताल में ये लैब स्थापित किया गया. संक्रामक बीमारियों से दो-दो हाथ करने में अब तक नदारद रहे इस अहम बुनियादी ढांचे की नींव डालने का फ़ैसला दूरगामी दृष्टिकोण वाला साबित हुआ.

विकेंद्रीकृत क्षमता निर्माण

कोविड19 महामारी के दौरान मामलों की पहचान करने और संक्रमण की पुख्त़ा जानकारी हासिल करने में मॉलिक्यूलर लैब (उपकरण और मानव संसाधन दोनों) ने बेहद अहम और केंद्रीय भूमिका निभाई. इसके ज़रिए वायरस के नए स्ट्रेन की तेज़ी से पहचान करना मुमकिन हो सका. ज़ाहिर है वायरस के प्रसार को रोकने और लोगों का जीवन बचाने से जुड़ी रणनीति तैयार करने में ये लैब बीएमसी के लिए बेहद मददगार साबित हुआ. ये मुंबई का पहला कोविड टेस्टिंग सेंटर था. इसे कोविड के टेस्ट किट को परखने और उसकी पुष्टि करने के लिए इस्तेमाल में लाया गया. मॉलिक्यूलर लैब की स्थापना और उसके संचालन से जुड़ा तजुर्बा कोविड 19 महामारी से लड़ने में बीएमसी के बड़े काम आया. ख़ासतौर से RT-PCR जांच के लिए तेज़ गति से लैब स्थापित करने और उनका कामकाज शुरू करने में इस पुराने अनुभव से भारी मदद मिली. महानगरपालिका द्वारा संचालित सायन, कूपर और नायर अस्पतालों में कोरोना जांच के लिए प्रयोगशालाएं शुरू की गईं. आगे चलकर पश्चिमी और मध्य उपनगरीय क्षेत्रों (एचबीटी ट्रॉमाकेयर- जोगेश्वरी और राजावाड़ी अस्पताल) में भी एक-एक लैब चालू की गई. कोरोना टेस्टिंग क्षमता बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र को भी प्रोत्साहित किया गया. इन तमाम क़वायदों का नतीजा ये है कि आज मुंबई में बीएमसी, राज्य सरकार, आईसीएमआर और निजी क्षेत्र के तहत 45 RT-PCR लैब चालू हैं.

महामारी के चलते नौकरी और आमदनी गंवाने वालों के लिए खाने-पीने के सामानों का भी इंतज़ाम किया गया. बीएमसी ने इसके लिए चुने हुए जनप्रतिनिधियों और सामुदायिक नेताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया. संक्रमितों का पता लगाने और कोरोना जांच के सघन तौर-तरीक़ों वाले धारावी मॉडल का विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी लोहा माना. 

2005 में मुंबई में आए तबाही के सैलाब ने आपदा से निपटने में शहर की काबिलियत बढ़ाने में अनेक प्रकार से निर्णायक भूमिका निभाई. आपदा से लड़ने की क्षमता में हुई इस बढ़ोतरी ने कोरोना महामारी के दौरान मुंबई और मुंबईकरों की बड़ी मदद की. 2005 में जल प्रलय से निपटने के दौरान मुंबई में बीएमसी के मुख्यालय में एक आपदा नियंत्रण कक्ष स्थापित किया गया था. इस नियंत्रण कक्ष को मंत्रालय, मुंबई पुलिस मुख्यालय और ट्रैफ़िक कंट्रोल रूम के साथ जोड़ा गया था. कोविड-19 महामारी के दौरान कंट्रोल रूम वाली इस व्यवस्था को हरेक वार्ड में अपनाया गया. इन्हें वॉर रूम का नाम दिया गया और युवा डॉक्टरों को इनकी कमान सौंपी गई. वॉर रूम की ज़िम्मेदारियों में अस्पतालों में बिस्तरों का प्रबंध करना और उनपर निगरानी रखना, कोरोना मरीज़ों को आइसोलेशन सेंटरों और अस्पतालों तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंसों की व्यवस्था करना, नागरिकों को सूचना और परामर्श देना और घर पर क्वारंटीन होकर स्वास्थ्य लाभ ले रहे मरीज़ों का हाल-चाल जानना शामिल था.

महामारी से निपटने और उसपर क़ाबू पाने के लिए मुंबई में स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी क्षमताओं में तेज़ गति से बढ़ोतरी करना ज़रूरी था. कोरोना की पहली लहर से निपटने के लिए बीएमसी ने मुंबई महानगर में 5 विशालकाय केंद्र स्थापित किए थे. इन केंद्रों की स्थापना के पीछे मकसद बिस्तरों की संख्या तेज़ी से बढ़ाने के साथ-साथ गहन चिकित्सा सेवाओं और जांच की सुविधाओं को आगे ले जाना था. जनवरी 2021 में कोविड-19 टीकाकरण अभियान की शुरुआत के बाद इन विशालकाय केंद्रों का इस्तेमाल वैक्सीनेशन सेंटर के तौर पर किया जाने लगा. निजी अस्पतालों के बड़े और विशेषज्ञ डॉक्टरों को इन विशालकाय केंद्रों में इलाज की देखरेख का जिम्मा सौंपा गया. इसके साथ ही युवा चिकित्सकों और दूसरे स्वास्थ्यकर्मियों की भर्ती का काम भी शुरू किया गया. बीएमसी ने इलाज और देखभाल की क्षमता बढ़ाने के लिए निजी अस्पतालों के 80 फ़ीसदी बिस्तरों को अपने नियंत्रण में कर लिया. इसके साथ ही विदेशों से आने वाले यात्रियों के लिए आइसोलेशन सेंटर चालू करने के मकसद से बीएमसी ने कई होटलों की पहचान भी कर ली. कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान अपेक्षाकृत कम गंभीर मरीज़ों के इलाज और उनके स्वास्थ्य लाभ के लिए इन्हीं होटलों में अस्थायी अस्पताल के तौर पर बिस्तरों का इंतज़ाम किया गया.

 कोविड-19 महामारी ने रिहाइश की अनुकूल व्यवस्थाओं की अहमियत फिर से साबित की है. इसके अलावा साफ़ सफ़ाई के ज़रूरी हालात, समुचित सोशल डिस्टेंसिग और जीवन की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए खुली जगहों के महत्व को भी रेखांकित किया है. 

इस साल महामारी की दूसरी लहर के दौरान देश भर में मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति में भारी किल्लत देखने को मिली थी. ऐसे में बीएमसी ने मुंबई में 12 जगहों पर 45 मीट्रिक टन रोज़ाना की क्षमता वाले 16 तरल मेडिकल ऑक्सीजन संयंत्र खोलने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी. ये प्लांट बनकर तैयार हुए और उन्हें चालू भी कर दिया गया. इनकी मदद से मुंबई में ऑक्सीजन उत्पादन की दैनिक क्षमता 3.3 मीट्रिक टन (2 संयंत्र) से बढ़कर तक़रीबन 45 मीट्रिक टन तक पहुंच गई.

मुंबई की घनी आबादी वाली झुग्गी बस्ती धारावी में कोरोना महामारी से निपटने का बीएमसी का तौर-तरीक़ा कामयाबी भरा रहा है. इस इलाक़े में स्थित बीएमसी के वार्ड दफ़्तर (जी/नॉर्थ) ने ये सुनिश्चित किया कि तमाम सार्वजनिक शौचालयों में दिन में अनेक बार साफ़-सफ़ाई का काम हो. ग़ौरतलब है कि इन सार्वजनिक शौचालयों की पहचान आपसी संपर्कों के सबसे आम स्थान और वायरस के संक्रमण के अड्डे के तौर पर की गई थी. इसके साथ ही महामारी के चलते नौकरी और आमदनी गंवाने वालों के लिए खाने-पीने के सामानों का भी इंतज़ाम किया गया. बीएमसी ने इसके लिए चुने हुए जनप्रतिनिधियों और सामुदायिक नेताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया. संक्रमितों का पता लगाने और कोरोना जांच के सघन तौर-तरीक़ों वाले धारावी मॉडल का विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी लोहा माना.

बहरहाल इन कामयाबियों के बावजूद कोरोना महामारी ने मुंबई शहर के स्याह पक्ष को सबके सामने बेपर्दा कर दिया. लॉकडाउन और झुग्गी बस्ती इलाक़ों से बड़े पैमाने पर लोगों के पलायन ने मुंबई में साफ़-सुथरी रिहाइशों और खुली जगहों के अभाव से जुड़े संकट को सबसे सामने ला दिया. इसके साथ ही महामारी में तैयारियों से जुड़ी ख़ामियां भी देखने को मिलीं. मिसाल के तौर पर एक ऐसे समय में जब लोग खाना पकाने के ईंधन और दूसरी ज़रूरी वस्तुएं हासिल करने के लिए जद्दोजहद कर रहे थे, अधिकारी लोगों को  पके-पकाए खाने की बजाए सूखा राशन बांट रहे थे. इन हालातों में सिविल सोसाइटी से जुड़े संगठनों को लोगों की मदद में उतरना पड़ा.

बीएमसी तो कुछ हद तक महामारी पर क़ाबू पाने में कामयाब भी रही लेकिन पड़ोस के ठाणे और नवी मुंबई नगर निगमों को अपने इलाक़ों में स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने मे भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी संकट से निपटने में बीएमसी की सापेक्षिक कामयाबी की तारीफ़ की. हाईकोर्ट ने बीएमसी के तौर-तरीक़ों को आस-पड़ोस के दूसरे नगर निगमों में भी दोहराने का निर्देश दिया. कामयाब तरीक़े से ऑक्सीजन की आपूर्ति का प्रबंधन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी बीएमसी की सराहना की. कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार को मुंबई से सीखने की सलाह भी दी थी.

क्या सीख मिली?

निश्चित रूप से बीएमसी की वित्तीय क्षमता मुंबई के  लिए किसी वरदान से कम नहीं है. अफ़सोस की बात ये है कि वहां का नागरिक प्रशासन और राजनीतिक व्यवस्था इस ताक़त का पूरा लाभ उठाने में नाकाम रहे हैं. वित्तीय क्षमता के बूते मुंबई को रहने लायक बेहतर शहर बनाने और उच्च गुणवत्ता वाली ज़िंदगी का मौका देने से जुड़ा नज़रिया पेश करने और उसपर अमल करने में ये तमाम किरदार विफल रहे हैं. मुंबई की विकास योजना हर 20 साल में तैयार की जाती है. हालांकि शहर की ज़रूरतें तेज़ी से बदल रही हैं. ख़ासतौर से प्राकृतिक और मानव-निर्मित आपदाओं के चलते मुंबई जैसे महानगर की आवश्यकताओं में परिवर्तन हो रहा है. ऐसे में आज वक़्त का तकाज़ा है कि कुछ-कुछ वर्षों के बाद इस योजना की नियमित रूप से समीक्षा होनी चाहिए.

माना कि मुंबई में स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा देश में सबसे अच्छा है लेकिन चुनौतियां भी उसी रफ़्तार से बढ़ रही हैं. सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की अगुवाई करने वाला नेतृत्व तैयार करने के लिए बीएमसी को  मानव संसाधन में निवेश करना होगा. मुंबई में महामारी विशेषज्ञों, माइक्रोबायोलॉजिस्ट्स, बायोटेक्नोलॉजिस्ट्स और ज़ूनॉटिक एक्सपर्ट्स की टीम तैयार करने की ज़रूरत है. इसके साथ ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को और मज़बूत करना भी ज़रूरी है. ये केंद्र न सिर्फ़ स्वास्थ्य व्यवस्था पर निगरानी रखने बल्कि किसी तरह का वायरल संक्रमण फैलने पर उसकी पूर्व सूचना देने वाले तंत्र के तौर पर भी काम कर सकेंगे. मुंबई (बीएमसी) समेत तंग इलाक़ों वाले तमाम शहरों को अपने घने बसे इलाक़ों में दिल्ली की तर्ज पर मोहल्ला (सामुदायिक) क्लीनिक की व्यवस्था अपनानी चाहिए. इतना ही नहीं महंगे निजी अस्पतालों पर नकेल कसने के लिए क़ानून भी लाया जाना चाहिए. बीएमसी को इन अस्पतालों के तमाम शुल्कों पर निगरानी रखने का अधिकार मिलना चाहिए. मुंबई के उपनगरीय इलाक़ों में स्वास्थ्य से जुड़े बुनियादी ढांचे (डॉक्टरों, जांच सुविधाओं और साज़ोसामानों) का स्तर ऊंचा उठाने से पूरे मुंबई महानगर क्षेत्र (ठाणे और नवी मुंबई समेत) को लाभ मिलेगा.

दुनियाभर में शहरों को ज़रूरत के समय अपनी क्षमताओं को तेज़ी से बढ़ाने के लिए अपनी-अपनी वित्तीय ताक़त का भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए. विशाल क्षेत्रों, तंग गलियों और घनी आबादी वाली झुग्गी बस्तियां समेटे ग्लोबल साउथ के शहरों के लिए धारावी मॉडल ख़ासतौर से अहम है. 

इस मोर्चे पर कई तरह की क़वायद शुरू भी हो चुकी है. मुंबई महानगरपालिका के बड़े अस्पतालों के विभाग प्रमुखों को 5 साल की योजनाएं बनाने का जिम्मा सौंपा गया है. इसके लिए ज़रूरी वित्तीय आवंटन भी किया गया है. इन अस्पतालों की सुविधाओं को तकनीकी रूप से उन्नत बनाने के लिए भी अलग से कोष रखा गया है. बीएमसी ने कस्तूरबा अस्पताल में जीनोम सीक्वेंसिंग लैब भी खोला है. साथ ही नायर अस्पताल में इम्युनोलॉजी एंड क्लीनिकल स्किल्स लैब की भी शुरुआत की गई है. कोविड-19 महामारी ने रिहाइश की अनुकूल व्यवस्थाओं की अहमियत फिर से साबित की है. इसके अलावा साफ़ सफ़ाई के ज़रूरी हालात, समुचित सोशल डिस्टेंसिग और जीवन की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए खुली जगहों के महत्व को भी रेखांकित किया है. झुग्गी पुनर्वास योजना शहरों में साफ-सुथरी रिहाइश तैयार करने में नाकाम रही है. नतीजतन शहरों में झुग्गियां और तेज़ी से पनपी हैं. ज़ाहिर है कि मुफ़्त रिहाइश की बजाए शहरों में ऊपर बताई गई तमाम सुविधाओं वाले सस्ते घरों पर ज़ोर दिया जाना चाहिए. भारतीय शहरों के लिए यही रणनीति मुनासिब रहेगी.

दुनिया के लिए सबक

महाराष्ट्र की 45.2 प्रतिशत आबादी शहरी और अर्द्ध-शहरी इलाक़ों में रहती है. लिहाज़ा महाराष्ट्र राज्य की सरकार को मुंबई मॉडल की कामयाबी से सबक लेना चाहिए. निर्णय लेने की प्रक्रिया को विकेंद्रीकृत करने के रास्ते की अड़चनों को दूर करना ज़रूरी है. इस कड़ी में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर ध्यान देने और विकास की ज़रूरी योजनाएं तैयार की जानी चाहिए ताकि समुचित नतीजे हासिल हो सकें.

भारत समेत दुनिया के तमाम शहरी इलाक़ों पर भी यही सारी बातें लागू होती हैं. दुनियाभर में शहरों को ज़रूरत के समय अपनी क्षमताओं को तेज़ी से बढ़ाने के लिए अपनी-अपनी वित्तीय ताक़त का भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए. विशाल क्षेत्रों, तंग गलियों और घनी आबादी वाली झुग्गी बस्तियां समेटे ग्लोबल साउथ के शहरों के लिए धारावी मॉडल ख़ासतौर से अहम है. इनमें ब्राज़ील का रियो डि जेनेरियो और दक्षिण अफ़्रीका का केपटाउन शहर शामिल हैं.

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