Author : Nandan Dawda

Expert Speak Terra Nova
Published on Nov 07, 2024 Updated 0 Hours ago

अगर इन अहम सुधारों को अमल में लाया जाता है, तो एकीकृत महानगरीय परिवहन प्राधिकरणों की स्थापना के लक्ष्य को पाया जा सकता है.

शहरों में यातायात सुधार के लिए एकीकृत परिवहन प्राधिकरण का सशक्तिकरण

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अनुमान के मुताबिक़ मौज़ूदा वक़्त में भारत में शहरों में रहने वाली जनसंख्या लगभग 47.50 करोड़ है. वर्ष 2050 तक देश की शहरी आबादी में 41.60 करोड़ की बढ़ोतरी का अनुमान है. भारत में बहुत तेज़ी के साथ शहरीकरण हो रहा है और देश में 475 शहर ऐसे हैं जिनकी आबादी 1 लाख से अधिक है. ऐसे में शहरों का विस्तारीकरण एक गंभीर मुद्दा है और इस पर तत्काल प्रभाव से ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है. इतना ही नहीं, देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में इन शहरों का योगदान 63 प्रतिशत है, जिसके वर्ष 2030 तक बढ़कर 75 प्रतिशत होने की उम्मीद है. देश में तेज़ी से हो रहे शहरों के विस्तार को देखते हुए, जहां बढ़ती जनसंख्या के रहन-सहन के लिए शहरी क्षेत्रों में समुचित सुविधाएं विकसित करना बहुत ज़रूरी है, वहीं औद्योगिक व व्यावसायिक विकास को संभालते हुए आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न सेवाएं पहुंचाने के लिए शहरों की बढ़ती भूमिका को पहचाना जाना भी बेहद आवश्यक है. कहने का मतलब है कि भविष्य में भारत की आर्थिक प्रगति को सुनिश्चित करने के लिए शहरों का बेहतर तरीक़े से विकास और विस्तार करना बहुत अहम है.

देखा जाए, तो भारत के शहरों में परिवहन के लिए लोगों की बस-आधारित ट्रांसपोर्ट प्रणालियों (जैसे सिटी बस सेवाओं और बस रैपिड ट्रांज़िट), रेल-आधारित परिवहन नेटवर्क और निजी साझा परिवहन विकल्पों पर अत्यधिक निर्भरता है.

शहरों के विस्तार में वर्तमान एवं भविष्य की परिवहन ज़रूरतों पर नज़र डाली जाए तो इन शहरों में एकीकृत व टिकाऊ मल्टीमॉडल परिवहन प्रणालियां (ISMTS) स्थापित करना बेहद आवश्यक है. यानी ऐसी मल्टीमॉडल परिवहन व्यवस्था स्थापित करना ज़रूरी है, जो प्रभावी, किफ़ायती और भविष्य में बढ़ती आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने वाली हो. परंपरागत तौर पर देखा जाए, तो भारत के शहरों में परिवहन के लिए लोगों की बस-आधारित ट्रांसपोर्ट प्रणालियों (जैसे सिटी बस सेवाओं और बस रैपिड ट्रांज़िट), रेल-आधारित परिवहन नेटवर्क (जैसे मेट्रो, उपनगरीय रेल और ट्राम) और निजी साझा परिवहन विकल्पों (जैसे पैराट्रांसिट एवं इंटरमीडिएट सार्वजनिक परिवहन यानी किराए पर चलने वाले वाहनों) पर अत्यधिक निर्भरता है. अगर औपचारिक बस सेवाओं की बात करें, तो फिलहाल देश के सिर्फ़ 127 शहरों में यह सेवाएं उपलब्ध हैं और इसके तहत कुल 46,000 सिटी बसों का संचालन किया जाता है. जहां तक रेल आधारित परिवहन की बात है, तो शहरों में इसके लिए मुख्य रूप से मेट्रो ट्रेनों का संचालन किया जाता है और वर्तमान में भारत के 20 शहरों में ही मेट्रो का संचालन किया जा रहा है, जबकि 7 और शहरों में मेट्रो नेटवर्क का निर्माण किया जा रहा है. इसके अलावा, चार अन्य शहरों में मेट्रो सेवाओं के निर्माण पर विचार किया जा रहा है, साथ ही 20 अन्य शहर में मेट्रो लाइट के लिए व्यावहारिकता का अध्ययन किया जा रहा है. इसके साथ ही तीन शहरों में मेट्रो नियो के संचालन की संभावनाओं को परखा जा रहा है.

 

भारत के शहरों में एकीकृत व टिकाऊ मल्टीमॉडल परिवहन प्रणालियों की समीक्षा करने के बाद जो निष्कर्ष सामने आया है, उसके मुताबिक़ इन शहरों में परिवहन के विभिन्न माध्यमों के बीच कोई तालमेल नहीं है और परिवहन के सभी साधन बगैर किसी समन्वय के संचालित किए जा रहे हैं. शहरों में परिवहन के विभिन्न साधनों के बीच कोई तालमेल नहीं होना बड़ी चिंता की बात है. ज़ाहिर है कि जानकारी का एकीकरण, किराए का एकीकरण, भौतिक एकीकरण, परिचालन एकीकरण और संस्थागत एकीकरण ISMTS के पांच प्रमुख स्तंभ हैं. शहरी परिवहन को बेहतर तरीक़े से संचालित करने के लिए इनमें से संस्थागत एकीकरण सबसे महत्वपूर्ण है.

 

नेशनल अर्बन ट्रांसपोर्ट पॉलिसी यानी राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति 2006 (NUTP) में शहरी परिवहन की मज़बूती के लेकर कई सिफ़ारिशें की गई हैं. इन्हीं सिफ़ारिशों में से एक है, दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों, यानी "मिलियन-प्लस सिटीज़" में एकीकृत महानगरीय परिवहन प्राधिकरण (UMTA) की स्थापना करना. शहरी परिवहन से जुड़े विभिन्न क़दमों को लेकर एकीकृत रूप से योजना तैयार करने एवं उसे ज़मीनी स्तर पर लागू करने के लिए एक ज़िम्मेदार इकाई के रूप में UMTA की परिकल्पना की गई है. यानी UMTA कहीं न कहीं शहरों में एकीकृत अर्बन ट्रांसपोर्ट सिस्टम को स्थापित करने के लिए एक प्रमुख संस्थागत इकाई के तौर पर काम करेगा.

 

एकीकृत महानगरीय परिवहन प्राधिकरण की आवश्यकता

अगर भारत की एकीकृत व टिकाऊ मल्टी मॉडल परिवहन प्रणालियों को देखा जाए तो, इसमें परिवहन सेक्टर से संबंधित एजेंसियां और विभाग शामिल हैं. कहने का मतलब है कि इसमें परिवहन के अलग-अलग साधनों के लेकर योजना बनाने, संचालित करने और उसका प्रबंधन करने से जुड़ी एजेंसियां शामिल हैं. तालिका 1 में भारत में शहरी परिवहन प्रणालियों का प्रबंधन करने में शामिल विभिन्न एजेंसियों के बारे में बताया गया है.

 

तालिका 1: शहरी परिवहन से संबंधित कार्य और इसमें शामिल विभिन्न एजेंसियां व विभाग

 

Sr.No.

शहरी परिवहन से संबंधित कार्य

शामिल एजेंसियां एवं विभाग

1.

नियामक कार्य

  • परिवहन विभाग
  • प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
  • ट्रैफिक पुलिस
  • वित्त विभाग 
  • नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग

2.

रोड इंफ्रास्ट्रक्चर

  • शहरी स्थानीय निकाय (ULBs) 
  • नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग 
  • भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) 
  • लोक निर्माण विभाग 
  • नगर पालिका प्रशासन 
  • भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण 
  • शहरी विकास प्राधिकरण 
  • सड़क एवं भवन विभाग

3.

रणनीतिक नीति निर्माण

  • वित्त विभाग
  • परिवहन विभाग
  • शहरी स्थानीय निकाय
  • शहरी विकास/भूमि नियोजन प्राधिकरण

4.

बस एवं रेल इंफ्रास्ट्रक्चर

  • सार्वजनिक परिवहन के लिए राज्य परिवहन निगम/विशेष प्रयोजन वाहन (SPVs)
  • शहरी स्थानीय निकाय
  • मेट्रो रेल निगम

5.

गैर-मोटर चालित परिवहन इंफ्रास्ट्रक्चर

  • शहरी स्थानीय निकाय

6.

उपनगरीय रेलवे

  • भारतीय रेल

7.

एकीकृत सेवाएं

  • नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग 

 

स्रोत: शहरी विकास मंत्रालय, यूएमटीए 2016 के लिए ऑपरेशन डॉक्युमेंट्स

शहरी परिवहन सुविधाएं मुहैया कराने में कई विभाग शामिल होते हैं और कौन सा विभाग अधिक भागीदारी निभाएगा और कौन सा कम, यह शहरी स्थानीय निकायों पर यानी नगर निगमों या नगर पालिकाओं पर निर्भर होता है. हालांकि, अक्सर देखने में आता है कि शहरी परिवहन से जुड़ी एजेंसियां अपने मन मुताबिक़ काम करती हैं. इससे होता यह है कि एक ही काम को अलग-अलग विभागों द्वारा किया जाता है और कई बार ज़रूरी कामों की अनदेखी भी कर दी जाती है. उदाहरण के तौर पर शहरी नियोजन से जुड़े कामकाज को अमूमन सिटी म्युनिसिपल कारपोरेशन एक्ट और स्टेट हाउसिंग बोर्ड एक्ट 1961 द्वारा नियंत्रित किया जाता है. इसके अलावा, शहरों में मास्टर प्लान तैयार करने की ज़िम्मेदारी नगर एवं ग्राम नियोजन अधिनियम के अंतर्गत स्थापित नगर एवं ग्राम नियोजन निदेशालय की होती है. ज़ाहिर है कि इससे कहीं न कहीं शहरी नियोजन से संबंधित कार्यों में शहरी स्थानीय निकायों एवं हाउसिंग बोर्ड्स के साथ टकराव की स्थिति पैदा होती है.

शहरों में ट्रैफिक पुलिस एवं क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकरणों के अलावा कई दूसरे विभाग भी यातायात के संचालन में शामिल होते हैं और इनके बीच सामंजस्य की कमी से सुगम परिवहन में बाधा आती है.

शहरों में यातायात प्रबंधन के दौरान भी अक्सर अलग-अलग विभागों के बीच तालमेल का अभाव देखने को मिलता है. शहरों में ट्रैफिक पुलिस एवं क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकरणों के अलावा कई दूसरे विभाग भी यातायात के संचालन में शामिल होते हैं और इनके बीच सामंजस्य की कमी से सुगम परिवहन में बाधा आती है. जैसे कि शहरी स्थानीय निकायों के पास अधिकार होता है कि वे कहीं पर निर्माण गतिविधियों की वजह से गाड़ियों के आने-जाने पर रोक लगा सकते हैं, साथ ही किसी मार्ग पर भारी वाहनों की आवाजाही को रोक सकते हैं. इसी प्रकार से हाउसिंग बोर्ड के पास अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली सड़कों पर यातायात को नियंत्रित करने का अधिकार है. ज़ाहिर है कि विभिन्न एजेंसियों और विभागों के बीच ट्रैफिक का संचालन रोकने या नियंत्रित करने को लेकर तालमेल नहीं होने से उन मार्गों पर आने-जाने वालों को दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता है.

 

शहरों में पार्किंग भी एक बड़ी समस्या है और भारतीय संविधान व शहरों में सुधार से संबंधित विभिन्न नीतियों में इस बात का साफ उल्लेख किया गया है कि शहरों में पार्किंग से जुड़ी नियमों को बनाने की ज़िम्मेदारी शहरी स्थानीय निकायों की ही है. हालांकि, सच्चाई यह है कि शहरों में अलग-अलग परिवहन माध्यमों को संचालित करने वाली एजेंसियां अपने अधिकार क्षेत्र में पार्किंग से संबंधित नीतियों को लागू करती हैं. आंध्र प्रदेश का ही उदाहरण लें तो यहां भारतीय टोल अधिनियम (आंध्र प्रदेश संशोधन) 2002, आंध्र प्रदेश रोड डेवलपमेंट कारपोरेशन एक्ट 1998, ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (GHMC) अधिनियम, हैदराबाद महानगर विकास प्राधिकरण (HDMA) अधिनियम और केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम 1988 समेत तमाम दूसरे क़ानूनों के ज़रिए हैदराबाद में गाड़ियों पर लगने वाले टैक्स, टोल और पार्किंग शुल्क का निर्धारण किया जाता है. इसके अलावा भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI), भारतीय रेल और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया जैसी केंद्रीय एजेंसियां भी पार्किंग चार्ज और दूसरे शुल्क निर्धारित करने जैसी ट्रैफिक नीतियां बनाती हैं. इन केंद्रीय विभागों के बीच भी कोई ज़्यादा समन्वय नहीं है, यानी ये सभी विभाग स्वतंत्र तरीक़े से काम करते हैं.

 

इसके अलावा, परिवहन से संबंधित विभिन्न गतिविधियों की मंजूरी देने की भी कोई एकीकृत व्यवस्था नहीं है, बल्कि इसमें भी तमाम विभाग शामिल होते हैं. उदाहरण के तौर पर गाड़ियों के पंजीकरण और लाइसेंस आदि जारी करने का काम स्टेट/क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकरणों के अधीन है, वहीं परिवहन से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर, यानी सड़क, बस डिपो और पार्किंग आदि के निर्माण की अनुमति HDMA, GHMC, राज्य राजमार्ग प्राधिकरण और NHAI समेत कई दूसरे विभागों द्वारा दी जाती है. ज़ाहिर है कि इन विभागों के बीच तालमेल का अभाव होता है और इस वजह से न केवल शहरों में सार्वजनिक परिवहन से जुड़ी सुविधाओं और व्यवस्थाओं के विकास में देरी होती है, बल्कि उनके प्रबंधन में भी रुकावटें आती हैं. 

 

भारत के शहरों में UMTA

ज़ाहिर है कि वर्ष 2005 में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (JnNURM) के अंतर्गत शहरों में UMTAs यानी एकीकृत महानगरीय परिवहन प्राधिकरणों की स्थापना अनिवार्य की गई थी. इसके बाद वर्ष 2017 में मेट्रो रेल पॉलिसी में भी यूएमटीए की स्थापना को ज़रूरी बताया गया था. इस सबके बावज़ूद देश में रांची, जमशेदपुर, धनबाद, जम्मू, श्रीनगर, तिरुवनंतपुरम, कोझिकोड, कोच्चि, बेंगलुरु, पुणे, मुंबई, भुवनेश्वर, पुरी, चेन्नई और हैदराबाद समेत केवल 15 शहरों में ही UMTA की स्थापना की गई है. देखा जाए तो इन शहरों में स्थापित किए गए UMTA में कोई एकरूपता नहीं है, बल्कि इनकी रूपरेखा, इनके द्वारा किए जाने वाले कार्य और परिवहन प्रबंधन का तौर-तरीक़ा अलग-आलग है. उदाहरण के तौर पर इनमें से कुछ शहरों में यूएमटीए कुछ हद तक परिवहन के विभिन्न साधनों के बीच तालमेल स्थापित करने में क़ामयाब रहे हैं, जबकि कई शहरों में ये प्राधिकरण परिवहन से संबंधित गतिविधियों में शामिल हितधारकों के बीच टकराव के साथ ही वित्तीय एवं संस्थागत स्वायत्तता से संबंधित मसलों का सामना कर रहे हैं. यूएमटीए के सामने आने वाली इन दिक़्क़तों और चुनौतियों से स्पष्ट होता है कि शहरी परिवहन को बेहतर तरीक़े से संभालने में इन प्राधिकरणों द्वारा उठाए जाने वाले क़दमों का विस्तार से विश्लेषण करने की ज़रूरत है.

 

एकीकृत महानगरीय परिवहन प्राधिकरणों द्वारा जिन प्रमुख चुनौतियों का सामना किया जाता है, वो निम्न हैं:

 

  • इन प्राधिकरणों की बड़ी चुनौती, इन्हें संस्थागत आज़ादी नहीं मिलना है. इसकी वजह से इन्हें अलग-अलग परिवहन नेटवर्क्स के बीच समन्वय स्थापित करने और उनके कामकाज में तालमेल बैठाने के लिए जूझना पड़ता है.

 

  • परिवहन सेक्टर से जुड़े विभिन्न हितधारकों की प्राथमिकताएं अलग-अलग होती हैं, इससे व्यापक और एकीकृत परिवहन रणनीति बनाने दिक़्क़तें आती हैं.

 

  • इन प्राधिकरणों की क्या भूमिका होगी और उनकी क्या ज़िम्मेदारियां होगी, इसको लेकर स्पष्टता नहीं है. इस वजह से न तो यह बेहतर तरीक़े से कार्य कर पाते हैं और न ही इनकी कोई साफ-साफ जवाबदेही ही होती है.

 

  • ये प्राधिकरण ज़मीनी स्तर पर अपने कार्यों को समुचित तरीक़े से लागू नहीं कर पाते हैं, इस वजह से परिवहन प्रबंधन से संबंधित नीतियों और दिशानिर्देशों का पालन नहीं हो पाता है. इस कारण शहरों में परिवहन माध्यमों के बीच सामंजस्य स्थापित करने में रुकावटें आती हैं.

 

  • अपर्याप्त वित्तीय संसाधन और वित्तीय स्वायत्तता एकीकृत परिवहन प्रणालियों के विकास और कार्यान्वयन में देरी की वजह बनती है.

 

  • इसके साथ ही इन प्राधिकरणओं को वित्तीय संसाधनों की कमी से भी जूझना पड़ता है और इन्हें वित्तीय स्वायत्तता भी नहीं होती है, यानी पैसे ख़र्च करने की स्वतंत्रता नहीं होती है. इस वजह से शहरों में एकीकृत परिवहन प्रणालियों के विकास में देरी होती है.

 

आगे की राह

गौरतलब है कि अगर भारत के शहरों में स्थापित इन UMTAs के मकसद को हासिल करना है, तो इनके सामने आने वाली चुनौतियों से निपटना बेहद ज़रूरी है. अभी तक कोई भी UMTA ऐसा नहीं बन पाया है, जो शहरों में एकीकृत परिवहन प्रणाली स्थापित करने की ज़रूरतों को पूरा कर सके और दूसरे शहरों के सामने उदाहरण पेश कर सके. ज़ाहिर है कि एक प्रभावशाली और वित्तीय ताक़त से लैस एकीकृत महानगरीय परिवहन प्राधिकरण की स्थापना के लिए कई सुधारों को अमल में लाने की ज़रूरत है. इनमें के कुछ प्रमुख उपाय निम्न हैं:

 

  • अर्बन गवर्नेंस की मज़बूती: भारत के शहरों में मल्टीमॉडल परिवहन प्रणाली विकसित करने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देशों और नियम-क़ानूनों की आवश्यकता है. ऐसा होने पर ही शहरों में परिवहन सुविधाएं मुहैया करने से जुड़ी अलग-अलग एजेंसियों और विभागों में बेहतर तालमेल स्थापित हो सकता है.

 

  • न्यायिक और क़ानूनी सहयोग: शहरों में भविष्य की ज़रूरतों के मुताबिक़ परिवहन संबंधी उपायों को अमल में लाने के लिए संस्थागत सहयोग बहुत आवश्यक है. इसके लिए व्यापक स्तर पर नियम-क़ानूनों को बनाना होगा और एक ऐसा क़ानूनी ढांचा तैयार करना होगा, जिससे शहरों में मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्ट सिस्टम स्थापित करने और उसे संचालित करने में कोई रुकावट नहीं आए, साथ ही उसकी ज़िम्मेदारी व स्थायित्व भी सुनिश्चित हो सके. 

 

  • मानक संचालन प्रक्रियाएं (SOPs): अगर शहरों में परिवहन से जुड़ी सुविधाओं को विकसित करना है, तो इसके लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं को अपनाना होगा. ऐसा करके ही परिवहन से जुड़ी व्यवस्थाओं को दुरुस्त किया जा सकता है और इसमें शामिल हितधारकों की जवाबदेही सुनिश्चित की जा सकती है, साथ ही समय पर ज़रूरी फैसले लिए जा सकते हैं. ज़ाहिर है कि अगर इसको लेकर साफ-साफ दिशा-निर्देश होंगे, तो परिवहन से संबंधित परियोजनाओं को बगैर किसी देरी के पूरा किया जा सकेगा और बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकेंगे.

 

  • शहरी परिवहन प्राधिकरणों (UTAs) का सशक्तिकरण: ISMTS के विकास को प्रभावी तरीक़े से आगे बढ़ाने के लिए UTAs का अधिकारों व संसाधनों के ज़रिए सशक्तिकरण किया जाना चाहिए. इसमें आंकड़ों को जुटाना, उनका विश्लेषण करना, आधारभूत ढांचे की योजना बनाना और किराये का निर्धारण जैसी चीज़ें शामिल हैं.

 

  • प्रौद्योगिकी में निवेश: निसंदेह तौर पर अगर प्रौद्योगिकी का बेहतर तरीक़े से उपयोग किया जाता है, तो इससे परिवहन से जुड़े विभागों के बीच तालमेल को मज़बूत किया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर पार्किंग एवं राइड-शेयरिंग के लिए केंद्रीकृत प्लेटफॉर्म विकसित करने से लोगों को काफ़ी आसानी होगी और संसाधनों का भी अच्छी तरह से इस्तेमाल हो सकेगा. इसके लिए अगर केंद्रीकृत डेटा भंडारण की सुविधा स्थापित की जाती है, तो समय पर ट्रांसपोर्ट से जुड़े सटीक आंकड़े मिल पाएंगे, इससे उचित निर्णय लेने में सहूलियत होगी.

 

  • UMTAs को वित्तीय स्वायत्तता प्रदान करना: UMTAs की क़ामयाबी के लिए उन्हें वित्तीय ताक़त देना बेहद अहम है. ज़ाहिर है कि अगर इन प्राधिकरणों को वित्तीय आज़ादी दी जाती है, तो ये न केवल अपने फैसलों को प्रभावशाली तरीक़े से लागू कर पाएंगे, बल्कि दूसरे विभागों एवं एजेंसियों के साथ बेहतर समन्वय स्थापित करते हुए उनके द्वारा भी अपने निर्णयों को लागू करवाने में सक्षम होंगे.

एक प्रभावशाली और वित्तीय ताक़त से लैस एकीकृत महानगरीय परिवहन प्राधिकरण की स्थापना के लिए कई सुधारों को अमल में लाने की ज़रूरत है.

आख़िर में अगर इन अहम सुधारों को अमल में लाया जाता है, तो एकीकृत महानगरीय परिवहन प्राधिकरणों की स्थापना के लक्ष्य को पाया जा सकता है. अगर ऐसा नहीं किया जाता है, तो फिर देश के शहरों में प्रभावी और सक्षम UMTAs की स्थापना में तमाम चुनौतियां खड़ी होंगी और निश्चित तौर पर इससे ISMTS यानी एकीकृत व टिकाऊ मल्टीमॉडल परिवहन प्रणालियों को ज़मीन पर उतारने में और ज़्यादा वक़्त लगेगा.


नंदन एच दावड़ा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के अर्बन स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.

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