Authors : Nikhat Shaikh | Ankita K

Expert Speak Urban Futures
Published on Oct 07, 2024 Updated 1 Hours ago

मुंबई में NGO की अगुवाई में संचालित होने वाले वन-स्टॉप सेंटर लिंग आधारित हिंसा की शिकार पीड़ित महिलाओं को न केवल विभिन्न प्रकार की ज़रूरी सेवाएं उपलब्ध कराते हैं, बल्कि उनकी हर संभव मदद भी करते हैं.

लैंगिक हिंसा से पीड़ित महिलाओं का सशक्तिकरण: NGO द्वारा संचालित वन-स्टॉप सेंटर्स में सुविधाओं का आकलन?

Image Source: Getty

पूरी दुनिया में महिलाओं को परंपरागत सामाजिक और आर्थिक बंदिशों व रूढ़ियों की वजह से तमाम तरह की असमानओं एवं भेदभाव से जूझना पड़ता है. देखा जाए तो महिलाओं के विरुद्ध फैली इन लिंग-आधारित असमानताओं की वजह से उन पर और पूरे समाज पर विपरीत असर पड़ता है. इसके अलावा, सच्चाई यह भी है कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में व्यापक तौर पर महिलाओं एवं लड़कियों के विरुद्ध हिंसा की घटनाएं जारी हैं. महिलाओं के ख़िलाफ़ इस हिंसा के पीछे कई सामाजिक और पारंपरिक वजहें हैं.

 भारत की बात की जाए, तो आमतौर पर देश में रोज़मर्रा के जीवन में महिलाओं एवं लड़कियों के विरुद्ध होने वाले विभिन्न प्रकार के अपराधों को नज़रंदाज़ कर दिया जाता है और इसे तवज्जो न देते हुए, सामान्य सी घटना मान लिया जाता है.

भारत की बात की जाए, तो आमतौर पर देश में रोज़मर्रा के जीवन में महिलाओं एवं लड़कियों के विरुद्ध होने वाले विभिन्न प्रकार के अपराधों को नज़रंदाज़ कर दिया जाता है और इसे तवज्जो न देते हुए, सामान्य सी घटना मान लिया जाता है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 (NFHS- 5) के मुताबिक़ 18 से 49 वर्ष की आयु की 29.3 प्रतिशत विवाहित भारतीय महिलाओं ने अपने जीवन में कभी न कभी घरेलू हिंसा को झेला है. लेकिन विवाहित महिलाओं के ख़िलाफ़ घरेलू हिंसा की घटनाएं इससे काफ़ी अधिक हो सकती हैं, क्योंकि ऐसी ज़्यादातर घटनाओं की शिकायत दर्ज़ नहीं कराई जाती है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने भी महिलाओं के विरुद्ध होने वाली आपराधिक वारदातों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज़ की है. NCRB के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ आपराधिक घटनाओं के 4,28,278 मामले दर्ज़ किए गए थे, जबकि वर्ष 2022 में ऐसी आपराधिक वारदातों की संख्या बढ़कर 4,45,256 हो गई थी. एनसीआरबी के आंकड़ों पर गहराई से नज़र डालें तो महाराष्ट्र ऐसा राज्य है, जहां महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों में सबसे अधिक इज़ाफा हुआ है. महाराष्ट्र में 2021 की तुलना में वर्ष 2022 में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में 10 से 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई. इसमें भी, सभी शहरों में मुंबई ऐसा शहर है, जहां महिलाओं के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न और मानव तस्करी के सबसे ज़्यादा मामले दर्ज़ किए गए हैं.

 

महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या माना है. इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य 5 (SDG 5) के अंतर्गत जो वैश्विक कार्ययोजना की सूची है, उसमें लैंगिक समानता एवं महिलाओं व लड़कियों का सशक्तिकरण का मुद्दा भी शामिल है.

 वन स्टॉप सेंटर के कर्मचारी और चिकित्सा विशेषज्ञ OSC में आने वाली पीड़िताओं की न केवल देखभाल करते हैं, बल्कि फोरेंसिक जांच के लिए समय पर सैंपल इकट्ठा करने में भी सहायता करते हैं.

भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने वर्ष 2015 में महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा से जुड़े विभिन्न मुद्दों को संबोधित करने के लिए निर्भया फंड के ज़रिए वन-स्टॉप सेंटर्स (OSCs) की स्थापना की थी. इन केंद्रों को इस प्रकार से बनाया गया है, जहां पीड़ित महिलाओं एवं लड़कियों को एक ही जगह पर अलग-अलग चिकित्सा, मनोवैज्ञानिक एवं क़ानूनी सेवाएं प्रदान की जाती हैं. वन स्टॉप केंद्र न केवल पीड़ितों को अस्थायी आश्रय स्थल की सुविधा उपलब्ध कराते हैं, बल्कि इन्हें या तो अस्पतालों में बनाया जाता है, या फिर अस्पतालों के आसपास स्थापित किया जाता है. ज़िले स्तर पर ये वन स्टॉप सेंटर पीड़ित महिलाओं की मदद के लिए संचालित की जा रही दूसरी पहलों, जैसे कि मानव तस्करी विरोधी इकाइयों (AHTUs), महिला हेल्पलाइन (WHL), विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट (SFTC) और ज़िला क़ानूनी सेवा प्राधिकरणों (DLSAs) के साथ समन्वय स्थापित करने और उन्हें एकजुट करने का काम भी करते हैं. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के मुताबिक़ मौज़ूदा समय में भारत में 752 वन स्टॉप सेंटर चलाए जा रहे हैं. इन वन स्टॉप सेंटर्स के माध्यम से वर्ष 2015 से 2023 के बीच 8,01,062 महिलाओं की मदद की जा चुकी है. एक बात देखने में आई है कि इन OSC को हिंसा से पीड़ित महिलाओं को मदद पहुंचाने में तमाम दिक़्क़तों से जूझना पड़ता है.

 

मुंबई में संचालित वन स्टॉप सेंटर्स के बारे में विस्तृत अध्ययन

 

आबादी की बात की जाए, तो मुंबई और इसके उपनगरीय जिलों की जनसंख्या लगभग 13.1 मिलियन है. शहर में अपराध, शराब पीकर मारपीट करने, लिंग आधारित हिंसा की घटनाओं की संख्या बहुत अधिक है, साथ ही समाजिक असमानता भी बहुत ज़्यादा है. इसके अलावा, मुंबई और इसके उपनगीय इलाक़ों में बड़ी तादाद में प्रवासी भी निवास करते हैं और ग़रीबी के हालातों में जीवनयापन करते हैं.

 

मुंबई और उसके उपनगरीय ज़िलों में काम करने वाले सोसाइटी फॉर न्यूट्रिशन, एजुकेशन एंड हेल्थ एक्शन (SNEHA) एवं ऊर्जा ट्रस्ट नाम के दो NGOs के साथ मिलकर महिला एवं बाल विकास विभाग (DWCD) ने महानगर में वन स्टॉप सेंटर योजना की शुरुआत की थी. इसके अंतर्गत मुंबई में दो OSC स्थापित किए गए. एक OSC किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल (परेल) में स्थापित किया गया, जबकि दूसरा बालासाहेब ठाकरे ट्रॉमा सेंटर (जोगेश्वरी) में स्थापित किया गया. इन वन स्टॉप सेंटर्स में लैंगिक हिंसा से पीड़ित महिलाओं और लड़कियों को आश्रय दिया जाता है, बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, साथ ही उनकी हर संभव मदद की जाती है. वन स्टॉप सेंटर के कर्मचारी और चिकित्सा विशेषज्ञ OSC में आने वाली पीड़िताओं की न केवल देखभाल करते हैं, बल्कि फोरेंसिक जांच के लिए समय पर सैंपल इकट्ठा करने में भी सहायता करते हैं. इसके अलावा, पीड़ित महिलाओं को अपने बयान दर्ज़ कराने के लिए पुलिस स्टेशन जाने की भी ज़रूरत नहीं पड़ती है, क्योंकि इन केंद्रों में ही उनके बयान दर्ज़ करने सुविधा है. मुंबई में महिलाओं के विरुद्ध लगातार बढ़ती वारदातों एवं सीमित संसाधनों के बावज़ूद इन वन स्टॉप सेंटर्स ने अपने दायरे को बढ़ाने का काम किया है.

  

ज़ाहिर है कि हिंसा से पीड़ित महिलाओं को मानसिक आघात भी लगता है और उन्हें इस स्थिति से उबरने के लिए मनोचिकित्सक की भी ज़रूरत पड़ती है. इसलिए, OSCs में विशेषज्ञों के माध्यम से पीड़िताओं की काउंसिलिंग भी की जाती है और उन्हें मनोवैज्ञानिक सहायता भी उपलब्ध कराई जाती है. इतना ही नहीं, इन वन स्टॉप सेंटर्स द्वारा पीड़ित महिलाओं की मदद के लिए सरकारी स्वास्थ्य अधिकारियों, ज़िला क़ानूनी सेवा प्राधिकरणों (DLSAs), संरक्षण अधिकारियों और पुलिस (FIR दर्ज़ करने के लिए) के साथ मिलजुल कर कार्य किया जाता है, साथ ही पीड़िताओं को क़ानूनी मदद भी उपलब्ध कराई जाती है. अगर पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से कम है, तो उसके लिए इन केंद्रों द्वारा किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम -2000 एवं प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट-2012 के अंतर्गत उनकी मदद की जाती है और उन्हें न्याय दिलाने के लिए के संबंधित अधिकारियों से संपर्क स्थापित किया जाता है. गौरतलब है कि महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के जितने भी मामले पंजीकृत किए जाते हैं, उनमें आधे से अधिक मामले (58.4 प्रतिशत) घरेलू हिंसा के होते हैं (चित्र 2 देखें). घरेलू हिंसा के मामलों की इतनी बड़ी संख्या ज़ाहिर तौर पर परेशानी पैदा करने वाली है. यह संख्या बताती है कि घरेलू हिंसा को रोकने और इसे समाप्त से संबंधित पहलों को सशक्त करने की ज़रूरत है, साथ ही सामाजिक स्तर पर और व्यवस्थागत स्तर पर घरेलू हिंसा के मामलों को पहचाने जाने की आवश्यकता है. इसके अलावा, जिस प्रकार से महिलाओं व बच्चों के विरुद्ध यौन हिंसा के मामलों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, वो भी बेहद चिंताजनक है. ऐसे मामलों पर लगाम लगाने के लिए, न सिर्फ़ पुलिस, अदालतों, बाल कल्याण समितियों और सामाजिक सेवाओं को मिलजुल कर कार्य करने की ज़रूरत है, बल्कि प्रभावशाली क़दम उठाने की भी आवश्यकता है.

 

 

सबक, चुनौतियां और आगे का रास्ता

 

वन स्टॉप सेंटर हिंसा से पीड़ित महिलाओं एवं बच्चों के लिए हर तरह की मदद उपलब्ध कराते हैं और एक ही स्थान पर उन्हें सभी सुविधाएं प्रदान करते हैं. लेकिन सरकार को भी लैंगिक आधार पर होने वाली हिंसा के मामलों पर लगाम लगाने और इस समस्या का मुकम्मल समाधान तलाशने के लिए क़दम उठाने चाहिए, साथ ही सरकारी सिस्टम को भी चुस्त-दुरुस्त करना चाहिए. ज़ाहिर है कि वन स्टॉप सेंटर्स को संभालना हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है, लेकिन हाल-फिलहाल में जिस प्रकार से नीतियों में बदलाव किया गया है, साथ ही मिशन शक्ति के अंतर्गत OSCs के संचालन से जुड़े नियमों को सख़्त किया गया है, उसने वन स्टॉप सेंटर्स की स्थापना और इन्हें चलाने में आने वाली दिक़्क़तों को और बढ़ा दिया है.

 

OSCs स्थापित करने की नियमों का मानकीकरण:  नियम-क़ानूनों एवं राज्य के जवाबदेही ढांचे के तहत OSC जैसी पहल को व्यक्तिगत भागीदार संगठनों के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने पर नीतियों, रणनीतियों को लागू करने एवं इसके कार्यों को संचालित करने में समस्या पैदा होती है. वास्तविकता में ऐसी पहलों का मानकीकरण किए जाने की ज़रूरत है. कहने का मतलब है कि इन्हें किस तरह से लागू किया जाएगा, इसमें किस प्रक्रिया को अपनाया जाएगा, इस सबके लिए स्पष्ट नीति एवं दिशानिर्देश निर्धारित किए जाने चाहिए. ऐसा होने पर ही हिंसा से पीड़ित महिलाओं की समस्याओं का समाधान किया जा सकेगा और उनकी सहायता की जा सकेगी.

 

ऑडिट: सरकार एवं एनजीओ द्वारा जो भी वन स्टॉप सेंटर संचालित किए जा रहे हैं, उनका स्वतंत्र सोशल ऑडिट किया जाना चाहिए. साथ ही उनके द्वारा किस प्रकार की सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं, उनकी गुणवत्ता क्या है, इसकी जांच के लिए पीड़िताओं के सुझावों को भी प्रमुखता दी जानी चाहिए. इसके अलावा, OSCs की संख्या बढ़ाने जाने की ज़रूरत है, साथ ही विशेषज्ञ अस्पतालों एवं शहरों के बाहरी इलाकों में स्थित छोटे अस्पतालों जैसे सरकारी हॉस्पिटल तक इन केंद्रों की पहुंच सुनिश्चित किए जाने की भी आश्यकता है.

 

OSCs का मिशन शक्ति के साथ एकीकरण: मिशन शक्ति नाम की पहल को केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2022 में शुरू किया गया था. मिशन शक्ति पहल महिलाओं की सुरक्षा एवं उनकी मदद के लिए पहले से चल रही योजनाओं एवं नई योजनाओं जैसे कि वन स्टॉप सेंटर, महिला हेल्प लाइन, शक्ति सदन, सखी निवास और नारी अदालत को एकीकृत करने का काम करती है. इसके अलावा, अगर राज्य एवं ज़िला स्तर पर महिला केंद्रित सेवाओं को बेहतर तरीक़े से कार्यान्वित करने की कोशिश की जाए, तो इससे इन पहलों के संचालन में आने वाली बाधाओं को दूर किया जा सकता है और ज़ल्द से ज़ल्द इनका मकसद भी पूरा किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त, अगर लिंग आधारित हिंसा की समस्या का समाधान करने के लिए अलग-अलग विभागों व सेक्टरों की तरफ से उठाए जाने वाले क़दमों का प्रभाव बढ़ाना है, तो इसके लिए न केवल व्यवस्था में आने वाली अड़चनों को दूर करना होगा, बल्कि विभिन्न हितधारकों के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित करना होगा और इसको लेकर सरकार व निजी क्षेत्र के बीच साझेदारी के तौर-तरीक़ों को भी स्पष्ट करना होगा. 

 

नियम के मुताबिक़ वित्तीय अनुदान का वितरण: वन स्टॉप केंद्रों को संचालित करने वाली एजेंसियों एवं एनजीओ को अगर समय-समय पर अनुदान नहीं मिलता है और उनकी वित्तीय मदद नहीं की जाती है, तो फिर उन्हें काफ़ी परेशानियों से जूझना पड़ता है. इसके साथ ही कर्मचारियों को वेतन देने के लिए धनराशि का इंतज़ाम करने का भी इन पर दबाव बनता है, क्योंकि वेतन नहीं मिलने पर कर्मचारी नौकरी छोड़ सकते हैं. यही वजह है कि OSCs में अक्सर कर्मचारियों की कमी बनी रहती है. किसी भी वन स्टॉप सेंटर में आमतौर पर 13 लोग काम करते हैं, जिनमें प्रशासक; केस वर्कर; चिकित्सा, कानूनी एवं मनोवैज्ञानिक सहायता कर्मी; और अन्य सहायक कर्मचारी शामिल होते हैं. मुंबई रीजन में वन स्टॉप सेंटर संचालित करने के लिए जो भी अधिकृत NGOs हैं, उनके द्वारा अपने कर्मचारियों को अच्छा-ख़ासा वेतन दिया जाता है, साथ ही अतिरिक्त कर्मी भी रखे जाते हैं, ताकि पीड़िताओं को गुणवत्तापूर्ण सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकें.

 

OSCs के लिए पर्याप्त एवं सुरक्षा स्थान का प्रावधान: शहरों में वन स्टॉप सेंटर्स की स्थापना के लिए पर्याप्त जगह मिलना बेहद मुश्किल होता है. अक्सर अस्थाई आश्रयों एवं रसोई आदि के लिए समुचित जगह नहीं मिल पाती है, जिससे इनके संचालन में बहुत अधिक दिक़्क़तें आती हैं. इसके लिए, सरकार को सरकारी अस्पतालों में OSCs की स्थापना के लिए पर्याप्त जगह आवंटित करनी चाहिए, ताकि उन्हें अपने रोज़मर्रा के कार्यों को संचालित करने में परेशानी न हो.

 

OSCs के कर्मचारियों का कल्याण एवं फायदे: सरकार द्वारा वन स्टॉप सेंटर्स को लेकर जो भी नीतियां बनाई जाएं, उनमें इन केंद्रों में कार्यरत कर्मियों के कल्याण के बारे में प्रावधान किया जाना चाहिए. जैसे कि कर्मचारियों को सवैतनिक अवकाश, रोज़गार से संबंधित दूसरे लाभ और उनकी सामाजिक व आर्थिक उन्नति से जुड़े मुद्दों पर विचार किया जाना चाहिए. आमतौर पर इन केंद्रों पर काम करने कर्मचारी संविदा पर रखे जाते हैं और उनमें महिलाओं की संख्या अधिक होती है. ऐसे में अगर इनके हित में ऐसी नीति बनाई जाती है, जो न केवल श्रम क़ानूनों के मुताबिक़ हो, बल्कि उनके कल्याण का पूरा ध्यान रखे, तो ये कर्मचारी नौकरी नहीं छोड़ेंगे. महाराष्ट्र की बात की जाए तो, वहां महिला एवं बाल विकास विभाग ने ऊर्जा ट्रस्ट के साथ मिलकर राज्य सरकार और केंद्र सरकार की योजनाओं में कार्यरत सभी संविदा कर्मियों के लिए सवैतनिक अवकाश की नीति लागू की है. ज़ाहिर है कि इस तरह की नीतियों को देश के दूसरे राज्यों में भी लागू किया जाना चाहिए. 

 

लैंगिक आवश्यकताओं के मुताबिक़ नीतियां एवं व्यवस्थाएं: हिंसा से पीड़ित महिलाओं के पुनर्वास और उनकी देखरेख के लिए विशेष इंतज़ाम किए जाने की ज़रूरत होती है. ख़ास तौर पर अगर पीड़ित महिलाओं में से कोई एचआईवी संक्रमण या मानसिक बीमारी की चपेट में है, यदि कोई महिला दिव्यांग है, गर्भवती या फिर दूसरी गंभीर बीमारियों से पीड़ित है, तो उनके इलाज और देखरेख के लिए अलग से व्यवस्था करने की ज़रूरत होगी, ताकि उनकी आवश्यकताएं पूरी हो सकें और वे आराम से रह सकें. दरअसल, OSC में पीड़िताओं को शुरुआती पांच दिनों के लिए ही अस्थाई आश्रय दिया जाता है और उसके बाद उन्हें अगर लंबे समय तक रहना है, तो किसी दूसरी जगह पर भेज दिया जाता है. इसके लिए भी समुचित व्यवस्था निर्धारित करने की ज़रूरत है और पीड़िताओं की लंबे समय तक पुनर्वास की आवश्यकता के मद्देनजर सरकारी-निजी भागीदारी को मज़बूत करने की आवश्यकता है, ताकि ज़रूरतमंद महिलाओं की मदद की जा सके.

 

कर्मचारियों का प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण: वन स्टॉप सेंटर में निवास करने वाली महिलाओं को विभिन्न चिकित्सीय एवं क़ानूनी सलाहों की आवश्यकता होती है. इसके लिए जो भी हितधारक इन केंद्रों के संचालन से जुड़े हैं, उन्हें लैंगिक हिंसा की शिकार महिलाओं की मदद के साथ ही महिलाओं के स्वास्थ्य, उनके अधिकारों से जुड़े क़ानूनों और दूसरे मुद्दों की व्यापक समझ होनी चाहिए और इसके लिए उन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए. ज़ाहिर है कि अगर इन केंद्रों के संचालकों एवं यहां काम करने वाले कर्मचारियों को इस सभी मुद्दों की व्यापक समझ होगी, तो वे पीड़ित महिलाओं की बेहतर मदद कर पाएंगे, विभिन्न विभागों के बीच समन्वय बना पाएंगे और त्वरित व प्रभावी सहायता दे सकेंगे. ऐसे में क्षमता निर्माण एवं कर्मचारियों के प्रशिक्षण के माध्यम से OSCs एक ओर अपनी कार्यक्षमता व प्रभावशीलता को बढ़ा सकते हैं, वहीं दूसरी ओर बेहतर तरीक़े से पीड़िताओं की देखरेख व मदद कर. 

 

वन स्टॉप सेंटर की कार्य अवधि को बढ़ाना: वन स्टॉप सेंटर का हर साल नवीनीकरण किया जाता है और इसकी प्रक्रिया काफ़ी जटिल होती है. ऐसे में अगर सरकार चाहती है कि OSC पूरी क्षमता के साथ और योजनाबद्ध तरीक़े से पीड़िताओं की मदद के लिए आगे आएं, तो इसके लिए सरकार को इन केंद्रों के संचालकों के साथ एक साल के बजाए तीन से पांच साल का अनुबंध करना चाहिए.

 

मिशन शक्ति की विभिन्न उप-योजनाओं के साथ वन स्टॉप सेंटर देखा जाए तो हिंसा से पीड़ित महिलाओं की समस्याओं का समाधान करने और उनकी देखरेख व उनके अधिकारों की रक्षा के लिहाज़ से महत्वपूर्ण विकल्प बनकर उभरे हैं. इसके अलावा, OSC समाज में और परिवारों में महिलाओं को समुचित न्याय दिलाने की भावना पर कार्य करते हैं. इतना ही नहीं, वन स्टॉप सेंटर महिलाओं की सुरक्षा और उनके सशक्तिकरण के लिहाज़ से भी बेहद अहम हैं, क्योंकि इन केंद्रों में इस दिशा में गंभीरता से कार्य किया जाता है. इन वास्तविकताओं को देखते हुए और भारत में बढ़ते शहरीकरण के मद्देनज़र केंद्र सरकार के मिशन शक्ति की क़ामयाबी के लिए वन स्टॉप सेंटरों का विस्तार, उनकी सुविधाओं में वृद्धि एवं उनकी प्रभावशीलता को बढ़ावा देना बेहद ज़रूरी है.


निखत शेख सोसाइटी फॉर न्यूट्रिशन, एजुकेशन एंड हेल्थ एक्शन में महिलाओं एवं बच्चों के विरुद्ध हिंसा को रोकने संबंधी कार्यक्रम की निदेशक हैं.

अंकिता के ऊर्जा ट्रस्ट में प्रोग्राम प्रमुख हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.