Published on Jan 27, 2022 Updated 0 Hours ago
एक हरित, लचीले और समावेशी विकास के लिए राह तय करना
  • दुनिया को आज एक हरित, लचीली और सबको साथ लेकर चलने वाली अर्थव्यवस्था में निवेश करना ही होगा.
  • एक हरित, लचीले और समावेशी विकास (GRID) का नज़रिया, ग़रीबी उन्मूलन और समृद्धि को साझा करने का लक्ष्य हासिल करने के लिए दूरगामी और टिकाऊ सोच रखता है.
  • इस बदलाव में सहयोग के लिए हम निम्नलिखित तरह से निवेश कर सकते हैं.

अगर दुनिया के तमाम देश आज एक हरित, लचीली और समावेशी अर्थव्यवस्था बनाने में निवेश करते हैं, तो वो कोविड-19 और जलवायु परिवर्तन से पैदा हुई चुनौतियों को अवसरों में तब्दील करके एक अधिक समृद्ध और स्थिर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं.

अगर हम सामाजिक आर्थिक, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधिता की चुनौतियों से एक साथ निपटने के बजाय इन्हें अलग अलग करके देखेंगे, तो हमारी कोशिशों का असर कम होगा.

2009 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद के दशक में विकासशील देशों में ढांचागत कमज़ोरियों को बढ़ते हुए देखा गया था. कोविड-19 की महामारी और जलवायु परिवर्तन, बढ़ती ग़रीबी और असमानता ने इस समस्या को और भी बढ़ा दिया है. विकासशील देशों की इन कमज़ोरियों में घटता निवेश, उत्पादकता, रोज़गार और ग़रीबी घटाने की कमज़ोर होती कोशिशें; बढ़ता क़र्ज़; और क़ुदरती पूंजी की तबाही की रफ़्तार का तेज़ होना शामिल है. इस महामारी ने पहले ही दस करोड़ से ज़्यादा लोगों को भयंकर ग़रीबी और असमानता की तरफ़ धकेल दिया है. माना जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन का असर, साल 2030 तक 13 करोड़ और लोगों को भयंकर ग़रीबी की ओर धकेल देगा.

कोविड-19 और जलवायु परिवर्तन ने इस धरती, अर्थव्यवस्था और इस पर आबाद इंसानियत की एक दूसरे पर निर्भरता को साफ़ तौर पर उजागर कर दिया है. सभी आर्थिक गतिविधियां, इकोसिस्टम की सेवाओं पर आधारित हैं. ऐसे में ये सेवाएं देने वाले क़ुदरती संसाधन कम होंगे, तो निश्चित रूप से इसका असर आर्थिक गतिविधियों पर पड़ेगा.

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, विश्व आर्थिक मंच और ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन द्वारा किए गए सभी रिसर्च बताते हैं कि, अगर विकास को दोबारा पटरी पर लाने का हरित विकल्प अपनाया जाता है, तो वो न केवल जलवायु परिवर्तन से निपटने में मददगार होगा, बल्कि सरकारें इसके लिए जो रक़म ख़र्च करेंगी, उस पर उन्हें सबसे अच्छा आर्थिक फ़ायदा भी हासिल होगा 

Figure 1: कोविड-19 महामारी के चलते दुनिया भर में आमदनी का हुआ नुक़सान

तस्वीर: विश्व बैंक

आज दुनिया के सामने जो जटिल चुनौतियां हैं, और इसकी संरचना में जो कमज़ोरियां सामने आई हैं, उनसे निपटने और आर्थिक विकास को पहले जैसे पटरी पर लाने वाला कोई ऐसा रिकवरी पैकेज लाया जाता है, जिसमें क़ुदरती संसाधनों और आर्थिक गतिविधियों के बीच के इस नाज़ुक रिश्ते को पर्याप्त रूप से तवज्जो नहीं दी जाती है, तो आने वाला दशक भी विकास के हाथ से निकल गए मौक़ों वाला साबित होगा. अगर हम सामाजिक आर्थिक, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधिता की चुनौतियों से एक साथ निपटने के बजाय इन्हें अलग अलग करके देखेंगे, तो हमारी कोशिशों का असर कम होगा. क्योंकि, ये समस्याएं एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं. अगर हम विकास के मौजूदा तौर तरीक़ों पर अमल करते रहे, तो हमारी अर्थव्यवस्था की बनावट से जुड़ी बुनियादी कमज़ोरियां दूर नहीं होंगी और आगे चलकर प्राकृतिक पूंजी कम होती जाएगी. इससे दूरगामी विकास के जोखिम बढ़ जाएंगे. आज जब जंगलों, महासागरों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों को हो रहा नुक़सान तेज़ी से बढ़ रहा है, तो जलवायु परिवर्तन से निपटने के ख़र्च की तुलना में, हमारे हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने की क़ीमत बढ़ती जा रही है, और इसका सबसे बुरा असर ग़रीब और कमज़ोर तबक़े को झेलना पड़ रहा है, क्योंकि वो सबसे बुरी स्थिति में हैं.

ग्लासगो में हुए जलवायु सम्मेलन का एक बड़ा सबक़ ये था कि GRID एजेंडा लागू करने के लिए बड़े पैमाने पर हरित पूंजी हासिल करना ज़रूरी होगा. 

ग्रिड (GRID) वाला नज़रिया

तस्वीर: विश्व बैंक

इसका हल एक हरित, लचीला और समावेशी विकास का तरीक़ा अपनाने में है, जो ग़रीबी उन्मूलन और साझा समृद्धि के लक्ष्य को टिकाऊ विकास के दूरगामी नज़रिए से देखता है. ये नज़रिया आर्थिक विकास की दर दोबारा हासिल करने के दौरान विकास के दूरगामी लक्ष्यों पर भी नज़र बनाए रखता है; जो ये मानता है कि ये धरती, इस पर आबाद इंसान और अर्थव्यवस्था एक दूसरे से जुड़े हुए हैं; और जोखिमों से एकीकृत तरीक़े से निपटता है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, विश्व आर्थिक मंच और ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन द्वारा किए गए सभी रिसर्च बताते हैं कि, अगर विकास को दोबारा पटरी पर लाने का हरित विकल्प अपनाया जाता है, तो वो न केवल जलवायु परिवर्तन से निपटने में मददगार होगा, बल्कि सरकारें इसके लिए जो रक़म ख़र्च करेंगी, उस पर उन्हें सबसे अच्छा आर्थिक फ़ायदा भी हासिल होगा और विकास के अच्छे परिणाम भी मिलेंगे. ग्रिड नज़रिया दो मायनों में बिल्कुल नया है.

हमें उम्मीद की एक किरण दिखती है. एक मोटे अनुमान के मुताबिक़ विश्व अर्थव्यवस्था में आज 3.9 ख़रब डॉलर की अधिक बचत मौजूद है, जिस पर या तो नकारात्मक या फिर बहुत कम रिटर्न मिल रहा है. इसके अलावा दुनिया में 46 ख़रब डॉलर के ऐसे पेंशन फंड मौजूद हैं, जिन्हें उचित रिटर्न की तलाश है

पहला, विकास के पैरोकार लंबे समय से ग़रीबी, असमानता और जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंतित रहे हैं. GRID का नज़रिया ख़ास तौर से इनके बीच के रिश्ते पर ज़ोर देता है और इस तरह इसके तहत विकास की अहम नीतियों के बीच तालमेल की बातें करता है. दूसरा, GRID को हासिल करने का मतलब, संस्थागत तरीक़े से एक साथ टिकाऊ विकास, लचीलेपन और सबको साथ लेकर चलना है. असल में GRID का सिद्धांत हर देश की ख़ास ज़रूरत और राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के लक्ष्य के हिसाब से टिकाऊ विकास करने पर ज़ोर देता है. ऐसी राह पर चलने से ऐसा टिकाऊ विकास किया जा सकता है, जिसका फ़ायदा आबादी के हर वर्ग के साथ साझा किया जा सके. इससे आर्थिक सुस्ती से उबरा जा सकेगा और स्थायी विकास के लक्ष्य (SDGs) हासिल करने की रफ़्तार दोबारा क़ायम की जा सकेगी.

GRID के माध्यम से कोविड-19 से उबरना

इस महामारी ने विकासशील देशों को ख़ास तौर से ज़ोर का झटका दिया है. अर्थव्यवस्था की L के आकार की रिकवरी के लिए सबसे पहले तेज़ी से सबको वैक्सीन उपलब्ध कराना बहुत ज़रूरी है. वैक्सीन हासिल करने और टीकाकरण अभियान को लागू करने की चुनौतियां बहुत व्यापक हैं. इनसे अलग अलग देशों की ख़ास ज़रूरत के हिसाब से तेज़ी से निपटने की ज़रूरत है, जिसके लिए मज़बूत तालमेल चाहिए.

आगे चलकर अगर हम GRID के रास्ते पर आगे बढ़ते हैं तो हर तरह की (मानवीय, ढांचागत, प्राकृतिक और सामाजिक) पूंजी में फौरी और व्यापक मात्रा में निवेश की ज़रूरत होगी. तभी ढांचागत कमज़ोरियों से पार पाकर विकास को बढ़ावा दिया जा सकेगा. दोबारा कौशल निर्माण करके, ख़ास तौर से समाज के कमज़ोर तबक़े को महामारी से जुड़े नुक़सान से उबारने और विकास करने के लिए मानव पूंजी के विकास पर ख़ास तौर से ध्यान देने की ज़रूरत है. वैसे तो महामारी ने सबको शिक्षा देने की चुनौती को और सामने ला दिया है. लेकिन, इस महामारी ने ये भी दिखाया है कि पारंपरिक तरीक़े से हर इंसान को प्रशिक्षित करने के साथ-साथ, यथास्थिति में बदलाव लाने वाली तकनीकों का इस्तेमाल करके शिक्षा की सेवाओं को इस दौर के दबावों का सामना करने लायक़ बनाया जा सकता है.

महिलाओं को GRID के एजेंडे के केंद्र में रखा जाना चाहिए. लड़कियों को परिवार नियोजन, प्रजनन और यौन संबंधी सेहत के साथ साथ नियमित शिक्षा और महिलाओं को आर्थिक अवसर देने से विकास के हरित, लचीले और समावेशी आयामों को आगे बढ़ाया जा सकता है.

जलवायु परिवर्तन कहीं दूर खड़ी मरीचिका नहीं, जो आने वाले समय में हमें नुक़सान पहुंचाएगी, बल्कि ये एक ऐसी हक़ीक़त है, जो आज, इस पल भी लोगों की ज़िंदगी पर असर डाल रही है

कम कार्बन उत्सर्जन वाले विकास में तकनीक और इनोवेशन की भूमिका निश्चित रूप से अहम होगी. रिकवरी के लिए घोषित किए जाने वाले पैकेज एक मौक़ा हैं, जिनसे मूलभूत ढांचे के विकास और बदलाव लाने वाली तकनीक में निवेश को प्राथमिकता दी जा सकती है.

ग्लासगो में हुए जलवायु सम्मेलन का एक बड़ा सबक़ ये था कि GRID एजेंडा लागू करने के लिए बड़े पैमाने पर हरित पूंजी हासिल करना ज़रूरी होगा. हालांकि, सम्मेलन में विकसित देशों को वो हरित परिवर्तन लाने के लिए ज़रूरी पूंजी जुटाने में दिक़्क़त आई, जिससे विकासशील देश अपने यहां टिकाऊ और सबके लिए समान विकास के एजेंडे को लागू कर सकें.

हालांकि हमें उम्मीद की एक किरण दिखती है. एक मोटे अनुमान के मुताबिक़ विश्व अर्थव्यवस्था में आज 3.9 ख़रब डॉलर की अधिक बचत मौजूद है, जिस पर या तो नकारात्मक या फिर बहुत कम रिटर्न मिल रहा है. इसके अलावा दुनिया में 46 ख़रब डॉलर के ऐसे पेंशन फंड मौजूद हैं, जिन्हें उचित रिटर्न की तलाश है. कम कार्बन उत्सर्जन निवेशकों के लिए एक अच्छा मौक़ा है, ख़ास तौर से तब और जब आज पारंपरिक तकनीकी विकल्पों की तुलना में हरित निवेश पर ज़्यादा रिटर्न मिल रहा है.

संस्थागत निवेशों और परिवर्तन की ज़रूरत और महत्व

कुछ ख़ास व्यवस्थाओं में बदलाव लाने वाले क़दमों की ज़रूरत होगी- जैसे कि ऊर्जा, कृषि, खाद्य पदार्थ, पानी, ज़मीन, शहरों, परिवहन और निर्माण- जो अर्थव्यवस्था को चलाते हैं, और ग्रीनहाउस गैसों के 90 फ़ीसद उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार हैं. इन क्षेत्रों में बड़े बदलावों के बग़ैर न ही हम जलवायु परिवर्तन के बुरे असर को कम कर पाएंगे और न ही टिकाऊ और लचीला विकास मुमकिन है. आर्थिक भेदभाव की चुनौती को दूर करके, ऐसे बदलाव से अधिक आर्थिक कुशलता आएगी और इससे उत्पादकता और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे असर से भी बचा जा सकेगा, जिससे विकास के बेहतर परिणाम मिल सकेंगे.

लेकिन, इस बदलाव के फ़ायदे सबको बराबर से नहीं मिल सकेंगे. इसके लिए श्रम बाज़ार और सामाजिक क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए ऐसी कई नीतियों की ज़रूरत होगी, जो बुरे असर से निपट सकें, कमज़ोर वर्ग की सुरक्षा कर सकें और एक न्यायोचित बदलाव हासिल करने में मददगार बनें. इसीलिए, GRID का नज़रिया देशों की ऊर्जा ज़रूरतों को समझते हुए और सबसे ग़रीब लोगों को लक्ष्य आधारित सहयोग देते हुए कम कार्बन उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने का समर्थन करता है.

इस बदलाव के लिए पूंजी हासिल करने के लिए वित्तीय व्यवस्थाओं में भी बड़े स्तर पर सुधार करना होगा, जिससे कि घरेलू संसाधनों का इस्तेमाल किया जा सके. नियमित औद्योगिक गतिविधियों से बाहर के कारोबार पर कर लगाना एक बड़े संभावित राजस्व का ऐसा स्रोत है, जिसका इस्तेमाल नहीं किया गया है. इससे निजी क्षेत्र को भी टिकाऊ गतिविधियों में निवेश करने का प्रोत्साहन मिलेगा. घरेलू स्तर पर संसाधन जुटाने का काम कर प्रणाली का दायरा बढ़ाकर भी किया जा सकता है. जैसे कि संपत्ति कर लगाकर और टैक्स चोरी को ख़त्म करके. इसी तरह ख़र्च करने में भी अधिक कुशलता लाने और चुनकर ख़र्च करने की ज़रूरत है.

निजी क्षेत्र की मज़बूत भागीदारी की भी ज़रूरत होगी. जितने बड़े पैमाने पर निवेश की ज़रूरत है, वो सार्वजनिक क्षेत्र की क्षमता से परे है. उचित क्षेत्रों और तकनीकों में निजी क्षेत्र के निवेश की राह में आने वाली बाधाएं दूर करने की ज़रूरत है. इस तरह किसी देश के स्तर पर सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बीच मज़बूत भागीदारी और संवाद की आवश्यकता है. हरित पूंजी निवेश के नियमों को जैसे कि जानकारी देने के मानकों और हरित पूंजी पर टैक्स के नियमों और विकसित करके लागू करने की ज़रूरत है. इससे टिकाऊ निवेश में पैसे लगाने की निवेशकों की दिलचस्पी और बढ़ सकेगी. इस निवेश से पर्यावरण और समाज पर होने वाले असर का आकलन भी किया जा सकेगा.

हालांकि, घरेलू कोशिशों में सहयोग के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक और स्थायी पूंजी प्रवाह की ज़रूरत भी होगी. बहुपक्षीय विकास बैंकों (MDBs) और विकास वित्त संस्थानों (DFIs) को प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में बदलाव को प्रेरणा देने वाले निवेश पर ध्यान देना होगा, जिससे ऐसी हरित, समावेशी और लचीली परियोजनाओं पर काम हो सके, जो आर्थिक विकास, रोज़गार और आमदनी बढ़ाने में सहयोग दें. इस मोर्चे पर बहुपक्षीय विकास बैंक, निजी पूंजी निवेश पर गारंटी और अपनी ओर से भी निवेश करके, जोखिम कम करने में मदद कर सकते हैं. लेकिन, निजी पूंजी निवेश हासिल करने का जो सबसे अहम तरीक़ा होगा, वो ऐसी नीतियां लागू करना होगा, जो पर्यावरण की तबाही को फ़ायदेमंद बनाने वाली कमियों को दूर कर सकें.

महामारी के संकट से जुड़े ख़र्च का इस्तेमाल, नए अवसरों में निवेश के लिए किया जा सकता है. जैसे कि, डिजिटल विकास बुनियादी सेवाएं देने, क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं में सुधार करने, इकोसिस्टम की सेवाओं को मज़बूत बनाने और ऐसी नीतियां बनाने में, जिससे विकास वाले सेक्टरों में रोज़गार पैदा हो सके. 

जलवायु परिवर्तन कहीं दूर खड़ी मरीचिका नहीं, जो आने वाले समय में हमें नुक़सान पहुंचाएगी, बल्कि ये एक ऐसी हक़ीक़त है, जो आज, इस पल भी लोगों की ज़िंदगी पर असर डाल रही है. समुद्र में पानी के बढ़ते स्तर से एक तरफ़ तो प्रशांत महासागर के द्वीपों के सामने अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है, तो वहीं दूसरी ओर, अफ्रीका के साहेल क्षेत्र में सूखे का मौसम लंबा होता जा रहा है. जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया में ग़रीबों और कमज़ोर तबक़ों की ज़िंदगी बदल रहा है. आब-ओ-हवा में आ रहे बदलाव से लड़ने में सबसे कमज़ोर तबक़ों का भविष्य तब तक धूमिल ही रहेगा, जब तक हम नीतियों और आर्थिक सोच में बदलाव लाकर, वो पूंजी नहीं जुटाएंगे, जिसकी आज ज़रूरत है.

आज तमाम देशों के पास ऐसा ऐतिहासिक मौक़ा है, जब वो आने वाले दौर के लिए बेहतर राह चुन सकते हैं. महामारी के चलते आई तबाही के बावजूद इस अभूतपूर्व संकट से जिस तरह निपटने की कोशिश की गई है, वो हमें एक अनूठा अवसर मुहैया कराती है जिससे हम पुरानी नीतियों की कमियों और पूंजी निवेश की भयंकर दिक़्क़तें दूर कर सकते हैं. महामारी के संकट से जुड़े ख़र्च का इस्तेमाल, नए अवसरों में निवेश के लिए किया जा सकता है. जैसे कि, डिजिटल विकास बुनियादी सेवाएं देने, क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं में सुधार करने, इकोसिस्टम की सेवाओं को मज़बूत बनाने और ऐसी नीतियां बनाने में, जिससे विकास वाले सेक्टरों में रोज़गार पैदा हो सके. अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने और निवेश व इनोवेशन के ज़रिए आर्थिक विकास और रोज़गार बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र को जोखिम लेकर नए नए तरीक़े से निवेश करने की ज़रूरत होगी. निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बीच भागीदारी और अहम नीतिगत सुधारों से निजी निवेश (जिसमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश शामिल है) को बढ़ाया जा सकता है. उपयोगी कंपनियों में सुधार करके, और डूब चुके क़र्ज़ की समस्या से निपटकर, वित्तीय व्यवस्था को भी मज़बूत रिकवरी में सहयोग के क़ाबिल बनाया जा सकता है.


ये लेख विश्व आर्थिक मंच के ग्लोबल एक्शन ग्रुप के साझा सहयोग का हिस्सा है और सबसे पहले www.weforum.org पर प्रकाशित हुआ था. वैश्विक सहयोग के शुरुआती क़दमों के बारे में बोर्ग ब्रेंड का लेख यहां पढ़ें. निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की व्यापक साझेदारी के बारे में दीना पॉवेल मैक्कॉर्मिक और वली नस्र का लेख यहां पढ़ें.

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