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कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स से इलेक्ट्रिक गाड़ियों तक, नवीकरणीय ऊर्जा से लेकर रक्षा प्रणाली तक, ये सभी सेमीकंडक्टर से लैस होते हैं. वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग विकास का एक दशक देखने के लिए तैयार है और अनुमानों के मुताबिक 2030 तक ये ट्रिलियन डॉलर का सेक्टर बन जाएगा. इस विकास का लगभग 70 प्रतिशत तीन प्रमुख उद्योगों से होने की उम्मीद है: ऑटोमोटिव, कंप्यूटिंग एवं डेटा स्टोरेज और वायरलेस, ऑटोमोटिव सेक्टर में सबसे तेज़ विकास होने की उम्मीद है और संभावना ये है कि ऑटोनोमस ड्राइविंग और ई-मोबिलिटी में तरक्की की वजह से मांग में तीन गुना बढ़ोतरी होगी.
मौजूदा समय में अमेरिका, यूरोपियन यूनियन (EU) और पूर्वी एशियाई देशों (विशेष रूप से चीन, ताइवान और दक्षिण कोरिया) का इस उद्योग में दबदबा है. अफ्रीका में दुनिया के महत्वपूर्ण खनिजों का लगभग एक-तिहाई हिस्सा है और वो कोबाल्ट, कॉपर, ग्रेफाइट, सिलिकॉन और टैंटलम जैसी सामग्रियों की आपूर्ति करता है जो सेमीकंडक्टर के उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण हैं. लेकिन इसके बावजूद अफ्रीका की भागीदारी वास्तव में खनन पर रुक जाती है और वो वैश्विक बाज़ार के हिस्से में 1 प्रतिशत से भी कम का योगदान करता है. अपने विशाल खनिज संसाधनों, बढ़ती अर्थव्यवस्था और युवा आबादी के साथ अफ्रीका में एक अधिक एकीकृत और समर्थ सेमीकंडक्टर उद्योग विकसित करने की काफी संभावना है.
सेमीकंडक्टर वैल्यू चेन के अलग-अलग चरणों में अफ्रीका का योगदान
सेमीकंडक्टर वैल्यू चेन को मोटे तौर पर तीन चरणों में विभाजित किया गया है- खनन, डिज़ाइन एवं उत्पादन और असेंबली, टेस्टिंग एवं पैकेजिंग (ATP). हर चरण की अपनी चुनौतियां एवं अवसर हैं. चूंकि अफ्रीकी महादेश में आधुनिक लैब और बड़े स्तर के फेब्रिकेशन प्लांट की कमी है, इस वजह से सेमीकंडक्टर के उत्पादन के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण तकनीकों और प्रक्रियाओं तक अफ्रीका की पहुंच सीमित है और खनन के चरण के बाद उसका योगदान काफी कम हो जाता है. इस तरह वो बाद के चरणों- डिज़ाइन और उत्पादन- में बहुत कम योगदान दे पाता है. इसी तरह अफ्रीका अपर्याप्त अनुसंधान एवं विकास (R&D), कम निवेश और कौशल की कमी के कारण ATP के चरण में पिछड़ गया है.
सेमीकंडक्टर वैल्यू चेन के अलग-अलग चरणों में अफ्रीका की क्षमता:
खनन: खनन के मामले में अफ्रीका की स्थिति पहले से ही महत्वपूर्ण है क्योंकि उसके पास खनिज का बड़ा भंडार है और वहां खनन से जुड़े व्यापक काम होते हैं. लेकिन वो निम्नलिखित उपायों के माध्यम से अपनी स्थिति बेहतर बना सकता है:
कीमती कच्चे माल के प्रवाह का प्रबंधन बेहतर ढंग से करने के लिए निर्यात नियंत्रण की शुरुआत: उदाहरण के लिए, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC) ने कोबाल्ट को एक “रणनीतिक खनिज” की श्रेणी में रखा है. इससे सरकार कोबाल्ट के खनन और निर्यात पर सख्त नियमों को लागू करने में सक्षम होती है.
ऑटोमोटिव, कंप्यूटिंग एवं डेटा स्टोरेज और वायरलेस, ऑटोमोटिव सेक्टर में सबसे तेज़ विकास होने की उम्मीद है और संभावना ये है कि ऑटोनोमस ड्राइविंग और ई-मोबिलिटी में तरक्की की वजह से मांग में तीन गुना बढ़ोतरी होगी.
कानूनी ढांचे को मज़बूत करना: उदाहरण के लिए, बोत्सवाना में 1999 के खान और खनिज अधिनियम के तहत हीरे को उनके कच्चे रूप में निर्यात करने के बदले स्थानीय स्तर पर काटने और पॉलिश करने का काम ज़रूरी है.
खनिज के ठेकों और पट्टे में अधिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए ठेके की पारदर्शिता में बढ़ोतरी: इस संबंध में खनन उद्योग पारदर्शिता पहल (EITI) एक बहुत अच्छा उदाहरण है. पश्चिम अफ्रीकी देश लाइबेरिया 2009 में EITI का पूरी तरह से पालन करने वाला अफ्रीका का पहला देश बना. इस तरह लाइबेरिया ने खनन से जुड़े सभी ठेकों और प्राकृतिक संसाधनों को निकालने से प्राप्त होने वाले राजस्व को प्रकाशित करने का वादा किया जिससे सरकार और विदेशी कंपनियों के बीच समझौतों की बेहतर जांच-पड़ताल संभव हो सकी. इसी तरह घाना ने EITI के मानकों को लेकर अपनी प्रतिबद्धता के हिस्से के रूप में 2016 से सभी खनन ठेकों के ब्यौरे को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया.
उचित मुआवज़े की वकालत: ये गिनी में सिमांदू लौह अयस्क परियोजना के द्वारा प्रदर्शित किया गया. 2020 में गिनी ने अधिक अनुकूल शर्त सुरक्षित करने के लिए विदेश की खनन कंपनियों के साथ समझौतों को लेकर फिर से बातचीत की. इसमें अधिक रॉयल्टी और रेल एवं बंदरगाह जैसी स्थानीय बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं को लेकर प्रतिबद्धता शामिल है.
स्थानीय सेमीकंडक्टर उत्पादन की दिशा में कच्चे माल के कुछ हिस्से का आवंटन: मिसाल के तौर पर नामीबिया ने एक ऐसी ‘खनिज नीति’ अपनाई है जो निर्यात से पहले स्थानीय मूल्य वर्धन और प्रसंस्करण को प्राथमिकता देती है, विशेष रूप से यूरेनियम जैसे रणनीतिक खनिजों के लिए.
डिज़ाइन और उत्पादन का चरण:
इस चरण में अफ्रीका की स्थानीय सरकारों को बुनियादी ढांचे और ऊर्जा एवं तकनीक के निवेश से जुड़ी नीतियों को बढ़ाना चाहिए. कुछ छोटी लेकिन आशाजनक पहल पहले से ही चल रही हैं जैसे कि दक्षिण अफ्रीका के द्वारा वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) में माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स एवं नैनो टेक्नोलॉजी केंद्र की स्थापना.
भारत के रक्षा उद्योग में ऑफसेट क्लॉज की तरह, जो विदेशी कंपनियों को अपने लाभ का एक हिस्सा स्थानीय उद्योग में फिर से निवेश करना ज़रूरी बनाता है, अफ्रीका के कच्चे माल के आपूर्तिकर्ता इसी तरह का एक क्लॉज़ शुरू कर सकते हैं जो अफ्रीका से कच्चे माल की ख़रीदारी करने वालों के लिए कॉन्ट्रैक्ट के तहत ये ज़रूरी बनाए कि वो अपने मुनाफे का एक निश्चित प्रतिशत अफ्रीका के सेमीकंडक्टर उद्योग में स्थानीय क्षमताओं को तैयार करने में लगाएं.
ATP चरण:
जैसे-जैसे सेमीकंडक्टर की वैल्यू चेन उन्नत होती है, वैसे-वैसे विशेष कौशल के लिए मांग बढ़ती है. इस अंतर को पाटने के लिए अफ्रीका को R&D में अधिक निवेश करने की आवश्यकता होगी और शिक्षा को उद्योग की ज़रूरतों के साथ जोड़ना होगा. इसके तहत स्थानीय वैल्यू चेन को मज़बूत करने के लिए अधिक STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग एवं मैथमेटिक्स) ग्रैजुएट तैयार करने होंगे. केन्या की कोंज़ा टेक्नोपोलिस, जो अफ्रीका के सिलिकॉन सवाना के रूप में जानी जाती है, और रवांडा की किगाली इनोवेशन स्मार्ट सिटी परियोजना जैसी पहल नौकरी की तलाश करने वाले अफ्रीका के हुनरमंद लोगों के लिए पूर्वी एशिया या अमेरिका जाने के बदले स्थानीय स्तर पर अवसर पाने के लिए भरोसेमंद प्लैटफॉर्म की पेशकश करती हैं. उदाहरण के लिए, कोंज़ा टेक्नोपोलिस ने इलेक्ट्रॉनिक्स के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 2023 में दक्षिण कोरिया की कंपनियों के साथ 1.4 मिलियन अमेरिकी डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किए.
इस विकास का समर्थन करने के लिए अफ्रीकी देशों को कानून भी बनाना चाहिए. दक्षिण अफ्रीका का इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन एक्ट और नाइजीरिया का राष्ट्रीय सूचना तकनीक विकास एजेंसी अधिनियम सूचना एवं संचार तकनीक (ICT) सेक्टर के विकास के लिए व्यावहारिक और प्रभावी रूप-रेखा प्रदान करते हैं.
अपनी मौजूदा चुनौतियों के बावजूद कच्चे माल के खनन से लेकर उभरती तकनीकों तक अफ्रीका की अनूठी क्षमताएं एक व्यापक सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम की दिशा में महत्वपूर्ण वैश्विक तालमेल का अवसर पेश करती है.
इसके अलावा अफ्रीका को अपने STEM ग्रेजुएट प्रवासियों से भी फायदा उठाना चाहिए. अफ्रीका के 3 करोड़ से ज़्यादा प्रवासी दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं और अपने मेज़बान देशों के वैज्ञानिक विकास के लिए काम करते हैं. अफ्रीका को ऐसी नीतियां तैयार करनी चाहिए जो इस प्रवासी वैज्ञानिक समुदाय से लाभ हासिल कर सकें. प्रवासी अफ्रीकी भी अपनी देश के विकास में योगदान करने के लिए उत्सुक होंगे. इसके अलावा, अफ्रीका भारत से भी प्रेरणा ले सकता है, विशेष रूप से भारत के वैश्विक भारतीय वैज्ञानिक (VAIBHAV) फेलोशिप कार्यक्रम से जो भारत के लिए महत्वपूर्ण नतीजे देता है.
अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी
सेमीकंडक्टर वैल्यू चेन में अफ्रीका अलग-अलग देशों और संगठनों से द्विपक्षीय और बहुपक्षीय साझेदारी का लाभ उठा सकता है. मिसाल के तौर पर, पूर्वी अफ्रीका में सेमीकंडक्टर उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका की व्यापार एवं विकास एजेंसी (USTDA) और केन्या की सेमीकंडक्टर टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (STL) के बीच संभावना के अध्ययन (फीज़िबिलिटी स्टडी) को लेकर समझौता इस महादेश के लिए एक आदर्श के रूप में काम कर सकता है. भविष्य में कोविड-19 महामारी जैसी सप्लाई चेन की रुकावट से परहेज़ करने के लिए अमेरिका का लक्ष्य पूर्वी अफ्रीका में अधिक उत्पादन केंद्रों की स्थापना करना है. लेकिन ये तय करना अभी जल्दबाज़ी होगी कि वैल्यू चेन के अलग-अलग स्तरों पर विभिन्न देशों के बीच भविष्य के समझौतों के लिए ये ब्लूप्रिंट के तौर पर काम करेगा या नहीं.
आगे का रास्ता
वैश्विक सेमीकंडक्टर की वैल्यू चेन बेहद जटिल, रणनीतिक और भू-राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनी हुई है. अपनी मौजूदा चुनौतियों के बावजूद कच्चे माल के खनन से लेकर उभरती तकनीकों तक अफ्रीका की अनूठी क्षमताएं एक व्यापक सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम की दिशा में महत्वपूर्ण वैश्विक तालमेल का अवसर पेश करती है. शिक्षा, बुनियादी ढांचे और तकनीक में पर्याप्त निवेश के साथ अफ्रीका में इनोवेशन और उत्पादन के मामले में एक बेहतरीन केंद्र बनने की संभावना है. स्थापित बाज़ारों में लागत बढ़ने के साथ अफ्रीका की प्रतिस्पर्धी कीमत और अप्रयुक्त इनोवेशन क्षमता एक भरोसेमंद समाधान की पेशकश करती हैं.
अफ्रीका को महत्वपूर्ण खनिजों का केवल एक आपूर्तिकर्ता होने से आगे बढ़कर सेमीकंडक्टर इनोवेशन और उत्पादन का एक केंद्र बनना चाहिए. उसे विकसित अर्थव्यवस्थाओं और ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) के दूसरे देशों के साथ ऐसी साझेदारी स्थापित करनी चाहिए जो अनुकूल समझौते पेश करती है. उदाहरण के लिए, अमेरिका का चिप्स एवं साइंस एक्ट निवेश आकर्षित करने के मामले में अफ्रीका के लिए कीमती अवसर पेश करता है. इसी तरह, दुनिया में सबसे बड़े सेमीकंडक्टर डिज़ाइन केंद्र में से एक की अपनी अग्रणी भूमिका के रूप में भारत डिज़ाइन के चरण में महत्वपूर्ण समर्थन मुहैया करा सकता है.
साल 2000 में इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने अफ्रीका को ‘अंधेरा महादेश’ कहा था. लेकिन 10 साल के भीतर उसने अपना कवर बदलकर ‘अफ्रीका का उदय’ कर दिया था. जैसे-जैसे ये महादेश आगे बढ़ रहा है, उसमें सेमीकंडक्टर के डिज़ाइन और टेस्टिंग के मामले में “सिलिकॉन सवाना” के रूप में बदलने की क्षमता बढ़ रही है. लेकिन सेमीकंडक्टर उद्योग में एक अहम किरदार के रूप में अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए उसे लगातार और सक्रिय नीतिगत प्रयासों की आवश्यकता होगी. आख़िर में, अफ्रीका की सेमीकंडक्टर महत्वाकांक्षा इस बात पर निर्भर करेगी कि अफ्रीकी नेता कितने अच्छे तरीके से एक दीर्घकालीन दृष्टिकोण अपनाते हैं, रणनीतिक निवेश को प्राथमिकता देते हैं और स्थानीय नीतियों को अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्यों एवं निवेश के साथ जोड़ते हैं.
समीर भट्टाचार्य ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.
युवराज सिंह ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.
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