Published on Nov 13, 2020 Updated 0 Hours ago

जलवायु पर अभियान को लेकर चर्चा में भारत एक विशिष्ट स्थिति में है जहां वो व्यापक राहत, अनुकूलता और बहाली को सुनिश्चित करने में असर डाल सकता है.

G-20 और कोविड के बाद जयवायु पर अभियान

इस साल नवंबर में सऊदी अरब की अध्यक्षता में जी20 की 15वीं शिखर वार्ता वर्चुअल माध्यम से हो रही है जिसमें महामारी के बाद के भविष्य पर चर्चा होगी और समस्याओं का समाधान होगा. महामारी की छाया में जी20 की सलाह के मुताबिक़ ऐसे मज़बूत बहुपक्षीय अभियान की ज़रूरत है. ये शिखर वार्ता महामारी की वजह से विकास पर आने वाले संकट के समाधान के मंच की तरह काम करेगी. कोविड-19 के बाद की दुनिया कई चुनौतियां पेश करती हैं जो अभूतपूर्व असर डालेगी. इन चुनौतियों में सबसे ख़ास है आर्थिक गिरावट. इस बात पर कोई बहस नहीं है कि तेज़ी से फैलती महामारी और उसकी वजह से किए गए लॉकडाउन की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट आई है- विश्व बैंक के अनुमानों के मुताबिक़ 5.2% की गिरावट आएगी. वैश्विक वित्तीय संकट से भी बड़ी मंदी जी20 के ज़्यादातर देशों पर असर डालेगी. अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक ख़ुशहाली का अभिभावक होने की वजह से जी20 ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के समर्थन और सहयोग के प्रोत्साहन को लेकर प्रतिबद्धता जताई है ताकि मज़बूत वित्तीय स्थिरता का निर्माण किया जा सके. इस पृष्ठभूमि के बीच जानकारों को डर है कि आर्थिक हालात ठीक करने पर ज़ोर देने की वजह से जलवायु और टिकाऊ विकास का लक्ष्य नज़रअंदाज़ हो सकता है. लेकिन कोविड-19 का आर्थिक असर जलवायु परिवर्तन के बढ़ने से और भी ज़्यादा जटिल हो जाएगा क्योंकि ये विकास के रास्ते में संभवत: सबसे ख़तरनाक अड़चन है. जलवायु परिवर्तन की क़ीमत हम कम कृषि उत्पादन, बेअसर बुनियादी ढांचे और लोगों की ख़राब सेहत के रूप में चुका रहे हैं. जलवायु परिवर्तन के आर्थिक असर से ग़रीबी में बढ़ोतरी होती है और आर्थिक विकास और उत्पादकता प्रभावित होती है. इसलिए जलवायु को लेकर अभियान आने वाले दशकों के लिए महत्वपूर्ण है और इससे आर्थिक और पर्यावरण संबंधी हालात बेहतर होते हैं.

अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक ख़ुशहाली का अभिभावक होने की वजह से जी20 ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के समर्थन और सहयोग के प्रोत्साहन को लेकर प्रतिबद्धता जताई है ताकि मज़बूत वित्तीय स्थिरता का निर्माण किया जा सके. इस पृष्ठभूमि के बीच जानकारों को डर है कि आर्थिक हालात ठीक करने पर ज़ोर देने की वजह से जलवायु और टिकाऊ विकास का लक्ष्य नज़रअंदाज़ हो सकता है. 

ऐसे में ये जी20 के हित में है कि अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए वो जलवायु अभियान को बढ़ावा दे. आने वाली शिखर वार्ता में विकासशील देशों के बीच भारत का महत्वपूर्ण स्थान टिकाऊ विकास लक्ष्य के लिए अवसर का काम कर सकता है जिसमें जलवायु अभियान पर मज़बूत ज़ोर रहेगा. अगर भारत को चर्चा के संचालन का मौक़ा मिलता है तो वो आर्थिक महाशक्ति कहे जाने वाले कई देशों को इस बात के लिए रास्ता दिखा सकता है कि वो अपने वित्तीय और विकास लक्ष्य को पेरिस समझौते के दायरे में रखें.

मौजूदा ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में जी20 देशों का योगदान क़रीब 80% है जिसमें औसतन प्रति व्यक्ति 7 मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड का सालाना उत्सर्जन होता है. साथ ही 99% कार्बन उत्सर्जन के लिए जी20 देश ज़िम्मेदार हैं. चीन और अमेरिका सबसे ज़्यादा कार्बन उत्सर्जन करते हैं जबकि भारत और इंडोनेशिया प्रति व्यक्ति सबसे कम कार्बन उत्सर्जन करते हैं. दुनिया में जो भी तरक़्क़ी की गई है, जलवायु परिवर्तन उनको नुक़सान पहुंचाता है और इससे आजीविका को ख़तरा होता है जो अंत में विकास पर असर डालता है. जलवायु परिवर्तन में निवेश विकास में निवेश की तरह है और जी20 के मंच में ये संभावना है कि जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ सहयोग और समन्वित वैश्विक जवाब तैयार करें. बड़े पैमाने पर स्टिमुलस फंड को इकट्ठा करने (GDP का औसतन 4%) के साथ क़रीब शून्य ब्याज दर न सिर्फ़ आर्थिक बल्कि सामाजिक और पर्यावरण के हिसाब से अनुकूल आर्थिक रिकवरी का दुर्लभ मौका मुहैया कराती है. इस तरह मौजूदा महामारी दुनिया को ऐसे चौराहे पर ले आई है जहां तुरंत कार्रवाई की स्थिति बन गई है. इसमें और ज़्यादा देरी महंगी पड़ सकती है क्योंकि जलवायु संकट मौजूदा महामारी के मुक़ाबले बड़े पैमाने पर और लंबे समय तक खलल डाल सकता है और इसकी वजह से वित्तीय और आर्थिक प्रणाली पर ज़बरदस्त असर पड़ सकता है. इसकी वजह से व्यापक राहत नीति बड़ी प्राथमिकता बन जाती है. जलवायु अभियान में देरी से मुश्किल बढ़ सकती है. आख़िर में, ऐसे वक़्त जब ज़्यादातर देश अपनी अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए भीतर की तरफ़ देख रहे हैं, तब जलवायु परिवर्तन में अनुकूलता के लिए बहुपक्षीय प्रयास की ज़रूरत है. इसलिए उत्सर्जन का दायित्व, जलवायु परिवर्तन और अर्थव्यवस्था में मज़बूत सांठ-गांठ और वैश्विक नेतृत्व की ज़रूरत, जलवायु परिवर्तन पर जी20 का ध्यान बंटाने के लिए पहले से आवश्यक शर्त हैं.

अगर भारत को चर्चा के संचालन का मौक़ा मिलता है तो वो आर्थिक महाशक्ति कहे जाने वाले कई देशों को इस बात के लिए रास्ता दिखा सकता है कि वो अपने वित्तीय और विकास लक्ष्य को पेरिस समझौते के दायरे में रखें. 

क्लाइमेट ट्रांसपेरेंसी द्वारा तैयार ब्राउन टू ग्रीन 2019 रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत जी20 के उन गिने-चुने देशों में से है जो अपना 2030 का लक्ष्य हासिल करने वाला है. इससे भी बढ़कर भारत उन देशों में शामिल है (जर्मनी, चीन, मेक्सिको और दक्षिण अफ्रीका जैसे) जिन्होंने जलवायु अभियान को लेकर सबसे ज़्यादा क़दम उठाए हैं. भारत में जी20 देशों के मुक़ाबले प्रति व्यक्ति ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन एक चौथाई होता है. इस लक्ष्य को हासिल करने में नवीकरणीय ऊर्जा को लेकर बढ़ी हुई कोशिशों का योगदान है. हालांकि, भारत में हालात (जैसा कि दूसरे जी20 देशों के साथ भी है) में अभी महत्वपूर्ण सुधार की ज़रूरत है लेकिन टिकाऊ विकास को लेकर भारत की प्रतिबद्धता का संकेत साफ़ तौर पर दे दिया गया है. इसकी वजह से भारत को जलवायु परिवर्तन पर बातचीत पर असर डालने और दक्षिण के देशों को इकट्ठा करने का ज़रूरी अवसर मिला है.

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© Sanja Baljkas/Getty

पहला मौक़ा अध्यक्षता के ज़रिए मिल सकता है. इससे भारत कोविड के बाद के हालात के लिए व्यापक कम कार्बन उत्सर्जन पर जोर दे सकता है. कम कार्बन उत्सर्जन के लिए सदस्य देशों से प्रतिबद्धता लेने के अलावा भारत कम कार्बन उत्सर्जन की चुनौतियों की भी पहचान कर सकता है. बुनियादी ढांचे की क्षमता में कमी जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए कार्य योजना के निर्माण के अलावा नवीकरणीय स्रोतों की फंडिंग का समाधान  जी20 देशों में बड़े स्तर पर किया जा सकता है ताकि कम कार्बन की दिशा की तरफ़ बढ़ सकें. इससे भारत की अध्यक्षता में जलवायु परिवर्तन पर जी20 का एजेंडा तय किया जा सकता है.

दूसरा, तकनीक और इनोवेशन जलवायु अनुकूलता और राहत में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. जापान ने अपनी अध्यक्षता के समय जलवायु अभियान को लेकर नुक़सानदेह इनोवेशन की वक़ालत की थी लेकिन भारत जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान को लेकर चौथी औद्योगिक क्रांति की संभावना की तरफ़ कोशिश कर सकता है. भारत ये प्रस्ताव दे सकता है कि ज़िम्मेदार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को विकसित करने की रूप-रेखा पर चर्चा हो जिसका काम डाटा इकट्ठा करना, रोकथाम की रणनीति तैयार करना, कंपनियों और रिसर्च इंस्टीट्यूट में अपनाया जाना हो. ग्रीन तकनीक को बढ़ावा देने में भारत का नेतृत्व ज़रूरी होगा.

ऐसे वक़्त जब ज़्यादातर देश अपनी अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए भीतर की तरफ़ देख रहे हैं, तब जलवायु परिवर्तन में अनुकूलता के लिए बहुपक्षीय प्रयास की ज़रूरत है. 

तीसरा, 2022 में भारत को जी20 की अध्यक्षता की बागडोर दुनिया के उत्तर और दक्षिण के देशों के बीच तालमेल के लिए भारत को अनोखा मौक़ा मुहैया कराता है. भारत अमीर देशों से वित्तीय मदद के लिए चर्चा और कार्य योजना का निर्देश दे सकता है. संसाधनों का असमान बंटवारा (वित्तीय और अन्य) वित्तीय मदद की ज़रूरत पैदा करता है ताकि जलवायु परिवर्तन के लिए टिकाऊ रणनीति सुनिश्चित की जा सके. ये अलग-अलग तरह की जलवायु निरंतरता की गतिविधियों के लिए वित्त जुटाने और विशेषताओं से जुड़े मुद्दों पर चर्चा के लिए मौक़ा मुहैया कराता है. इससे भी बढ़कर ये बोझ को बांटने को प्रोत्साहित करता है क्योंकि अच्छे नतीजे के लिए ज़रूरी है कि आर्थिक शक्तियां समन्वित ढंग से काम करें.

अंत में, जी20 देशों में रिसर्च और विकास की गतिविधियों की कोई कमी नहीं है. रिसर्च और डेवलपमेंट पर कुल ख़र्च का 92% इन देशों से आता है. इसके तहत भारत सदस्य देशों के बीच जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में लगातार रिसर्च गतिविधि की ज़रूरत को बढ़ावा दे सकता है. इसमें जानकारी का बंटवारा भी शामिल है, जैसे क्षेत्रों के बीच विकास के अनुभव का आदान-प्रदान और निरंतरता के समाधान को अपनाने और अनुकूलता की तरफ़ योगदान. भारत की अध्यक्षता में जी20 देशों के बीच मिलकर काम करने को मज़बूती से मदद दी जा सकती है.

क्लाइमेट ट्रांसपेरेंसी द्वारा तैयार ब्राउन टू ग्रीन 2019 रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत जी20 के उन गिने-चुने देशों में से है जो अपना 2030 का लक्ष्य हासिल करने वाला है. इससे भी बढ़कर भारत उन देशों में शामिल है (जर्मनी, चीन, मेक्सिको और दक्षिण अफ्रीका जैसे) जिन्होंने जलवायु अभियान को लेकर सबसे ज़्यादा क़दम उठाए हैं. 

निष्कर्ष, जलवायु पर अभियान को लेकर चर्चा में भारत एक विशिष्ट स्थिति में है जहां वो व्यापक राहत, अनुकूलता और बहाली को सुनिश्चित करने में असर डाल सकता है. वैसे तो जलवायु से जुड़े मुद्दे और चुनौतियां लंबे समय से जी20 की जानकारी में रही हैं, जैसा कि चीन, जर्मनी और जापान के पास जी20 की अध्यक्षता के समय देखा जा चुका है, भारत इसमें ताज़ा नज़रिया मुहैया करा सकता है और पेरिस 2030 के लक्ष्य को पूरा करने और टिकाऊ विकास लक्ष्य के लिए अनूठा रास्ता बना सकता है. ये हालांकि, अपने जलवायु प्राथमिकता के साथ-साथ विश्व के दक्षिणी हिस्से के साथ खुले और सहयोगी दृष्टिकोण को लेकर पूर्व शर्त है.

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