Author : Soumya Bhowmick

Published on Feb 05, 2021 Updated 0 Hours ago

ये तो वक़्त ही बताएगा कि सुझाए गए सुधार महामारी के बाद आर्थिक रिकवरी में भारत को अहम किरदार में लाते हैं या नहीं.

ऐसा बजट जो पहले ‘कभी नहीं आया’?

पिछले साल बजट के दिन जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपना बजट भाषण पढ़ने के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए तीन बड़ी योजनाओं- आकांक्षापूर्ण भारत, सबके लिए आर्थिक विकास और एक परवाह करने वाला समाज- की रूपरेखा खींच रही थीं तो किसने सोचा होगा कि एक साल बाद भारत का बजट ऐसे वायरस के इर्द-गिर्द केंद्रित होगा जिसने पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था और समाज को तहस-नहस कर दिया है? ओआरएफ ने एक परियोजना पर काम किया जो 2021 के बजट के लिए विकास की प्राथमिकताओं का पता लगा सके और जिससे महामारी के बाद आर्थिक रिकवरी में मदद मिल सके. इससे निष्पक्ष, न्यायसंगत और समयबद्ध तरीक़े से विकास को बढ़ावा देने के लिए स्पष्ट क़दम उठाया जा सकेगा. इस परियोजना के आधार पर ओआरएफ के विश्लेषकों की एक टीम ने 11 जनवरी 2021 को वित्त मंत्री के सामने एक प्रस्तुति दी जिसमें कई तरह के क्षेत्रों जैसे खपत मांग, व्यापार और प्रतिस्पर्धा, पर्यावरणीय सुधार और मौजूदा कर ढांचे में सुधार को लेकर इस साल की बजट प्राथमिकता के लिए विस्तार से सिफ़ारिश की गई थी.

इस साल के बजट को पहले कभी नहीं आया की तरह होना था. ऐसा ही वादा कुछ दिन पहले वित्त मंत्री ने भी किया था. भारत में पिछले कुछ दिनों में कोविड-19 से हालात बेहतर हुए हैं. मरने वालों की संख्या घट रही है और संक्रमण दर कम हो रही है. इन आंकड़ों की वजह से भारत में आर्थिक रिकवरी की प्रक्रिया शुरू होने के लिए वास्तव में सही वक़्त है. भारत की जीडीपी में 2020-21 की पहली तिमाही में 23.9 प्रतिशत की गिरावट और दूसरी तिमाही में 7.5 प्रतिशत की गिरावट के बाद आर्थिक रिकवरी की सख़्त ज़रूरत है. महामारी के दौरान तीन आत्मनिर्भर भारत पैकेज और आरबीआई के उपायों को मिलाकर 27.1 ट्रिलियन रुपये की मदद लोगों को दी गई है जो भारत की जीडीपी के एक-तिहाई हिस्से के क़रीब है. इन उपायों के बावजूद सरकार से बहुत ज़्यादा उम्मीदें लगाई जा रही थीं कि पर्यटन, अतिथि-सत्कार जैसे जिन-जिन सेक्टर में फ़ौरन मदद की ज़रूरत है, उन्हें सहायता मुहैया कराई जाएगी. साथ ही फार्मास्युटिकल और प्रिसिज़न टूल समेत कई और उद्योगों में प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए दूरदर्शिता की भी ज़रूरत थी.

2021-22 का केंद्रीय बजट 6 स्तंभों पर आधारित है- 1. स्वास्थ्य और कल्याण; 2. भौतिक और वित्तीय पूंजी; 3. आकांक्षापूर्ण भारत के लिए समावेशी विकास; 4. मानव पूंजी में नया जीवन लाना; 5. इनोवेशन और रिसर्च एंड डेवलपमेंट; और 6. न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन. ये कोई हैरान करने वाली बात नहीं है कि महामारी के साल में स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर सरकार के लिए प्राथमिकता बन गया है. वित्त मंत्री ने प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना के लिए 541.8 अरब रुपये का ऐलान किया है. भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान कोविड-19 वैक्सीन के लिए 350 अरब रुपये का प्रावधान किया है और ज़रूरत पड़ने पर और ज़्यादा रक़म का भरोसा भी दिया है.

बजट और पर्यावरण

दिलचस्प बात ये है कि इस वर्ष का बजट ज़ोरदार ढंग से स्वच्छ पर्यावरण और स्वच्छ पानी की अहमियत को मानता है. साथ ही संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास लक्ष्य 6 (एसडीजी 6)  के तहत बताए गए स्वच्छता के लक्ष्य तक पहुंचने को भी मानता है जो सर्वव्यापी स्वास्थ्य को हासिल करने के लिए पूर्व शर्त है. इसको ध्यान में रखते हुए जल जीवन मिशन (शहरी) को अगले पांच वर्षों में लागू किया जाएगा जिस पर 2.5 ट्रिलियन रुपये का अनुमानित खर्च आएगा. वास्तव में ओआरएफ के एक ताज़ा अध्ययन में पता चला कि एसडीजी 6 (साफ़ पानी और स्वच्छता) के मामले में सबसे ख़राब प्रदर्शन करने वाले राज्य वो हैं जहां पानी की दिक़्क़त नहीं है. ये अध्ययन व्यापक बदलाव की बात करता है जो नीति बनाने में मांग के प्रबंधन पर ध्यान देगा. इसके अलावा केंद्रीय बजट 2021 में कई ऐसी योजनाएं हैं जिनका लक्ष्य कूड़ा प्रबंधन से लेकर वायु प्रदूषण तक के मुद्दों से निपटना है.

वित्त मंत्री ने पश्चिम बंगाल में क़रीब 950 अरब रुपये की लागत से 765 किलोमीटर हाइवे के काम का भी एलान किया. ये घोषणा अगले कुछ महीनों में होने वाले बहुप्रतीक्षित पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले रणनीति के लिहाज से अहम है. ऊर्जा के क्षेत्र में एकाधिकार को तोड़ने के लिए मज़बूत संकेत थे. यहां उपभोक्ताओं को एक से ज़्यादा वितरण कंपनी में से अपनी पसंद की कंपनी चुनने के लिए रूपरेखा तय करने की बात थी. वास्तव में ये क़दम भी पश्चिम बंगाल के लिए राजनीतिक तौर पर काफ़ी महत्वपूर्ण है जहां कलकत्ता इलेक्ट्रिक सप्लाई कॉरपोरेशन (सीईएससी) पर अक्सर कोलकाता में बिजली वितरण में एकाधिकार के आरोप लगते हैं. चक्रवाती तूफ़ान अंफान के बाद सीईएससी कई हफ़्ते तक पर्याप्त सुविधा मुहैया कराने में नाकाम रही. उस पर उपभोक्ताओं को बढ़ा हुआ बिल भेजने के आरोप भी लगे. इसके अलावा पश्चिम बंगाल और असम के चाय बागान के कामगारों के लिए कल्याण योजना के नाम पर भी 10 अरब रुपये का ऐलान किया गया.

आकांक्षापूर्ण भारत के क्षेत्र में ज़्यादातर ध्यान कृषि सुधारों और किसानों की आमदनी बढ़ाने पर दिया गया. ये नये कृषि क़ानूनों को लेकर देश में किसानों के मौजूदा प्रदर्शन को देखते हुए महत्वपूर्ण क़दम है. मानव पूंजी को बढ़ाने के लिए शैक्षणिक और कौशल इंफ्रास्ट्रक्चर आधुनिक करने के लिए सुधारों की श्रृंखला का भी एलान किया गया. इनोवेशन और रिसर्च एंड डेवलपमेंट को प्रोत्साहन देने के लिए रिसर्च इकोसिस्टम को बढ़ावा देने की भी योजना है. आख़िर में, कार्यकुशल शासन को भी इस बार टॉप प्राथमिकता में माना जा रहा है क्योंकि भारत सरकार इस साल देश की पहली डिजिटल जनगणना का महत्वपूर्ण काम भी करेगी.

विश्व की दूसरी अर्थव्यवस्थाओं की तरह महामारी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी नुक़सानदेह असर पड़ा है. एक तरफ़ राजस्व की वसूली में कमी आई है तो दूसरी तरफ़ समाज के कमज़ोर तबके को ज़रूरी राहत पहुंचाने का काम किया गया है. ऐसे में वित्त वर्ष 2020-21 के लिए राजकोषीष घाटा जीडीपी का 9.5 प्रतिशत होने का अनुमान है. लेकिन 2020 में जिस तरह के अभूतपूर्व संकट का सामना लोगों ने किया है, उसे देखते हुए इस घाटे को समझा जा सकता है. ये बात भी तारीफ़ के लायक है कि सरकार 2025-26 तक  धीरे-धीरे राजकोषीय घाटे को 4.5 प्रतिशत से नीचे लाने का लक्ष्य रखती है.

क्या ऐसा बजट पहले कभी आया है?

वैसे तो सरकार ने घरेलू मांग को बढ़ाने के लिए महामारी के दौरान मध्यम आकार के कई राहत पैकेज का एलान किया है लेकिन खपत मांग का मुद्दा महामारी के पहले भी भारत के लिए बड़ी समस्या बना रहा है. पूर्व में इस तरह के मुद्दे के बावजूद इस बजट में भी आयकर का स्लैब पिछले साल की तरह बरकरार है. पेंशन की आमदनी वाले 75 साल से ज़्यादा के वरिष्ठ नागरिकों को आयकर रिटर्न दाखिल करने से छूट दी गई है लेकिन वेतनभोगी वर्ग को कोई राहत नहीं दी गई है जबकि ये तबका सबसे ज़्यादा खपत करता है. वेतनभोगी वर्ग को आयकर में राहत नहीं मिलने से भारत की कम खपत की मांग को ठीक करने में मदद नहीं मिलेगी.

फिर भी भारत में आयकर की प्रक्रिया की क्षमता को बढ़ाने के लिए कई क़दम सुझाए गए हैं. अप्रत्यक्ष करों के मामले में जीएसटी को सरल बनाने का सुधार भी किया गया है. उदाहरण के लिए, अप्रत्यक्ष कर से बचने वालों की पहचान करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और आधुनिक तकनीकों का ज़्यादा-से-ज़्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है और इसकी वजह से पिछले कुछ महीनों में टैक्स का रिकॉर्ड कलेक्शन हुआ है. इस बात में कोई शक नहीं है कि इस साल का बजट बेहद करुणामय है लेकिन पूरी तरह देखने पर ये कहना सही नहीं होगा कि ऐसा बजट प्रस्ताव पहले कभी नहीं आया. ये तो वक़्त ही बताएगा कि सुझाए गए सुधार महामारी के बाद की आर्थिक रिकवरी में भारत के लिए महत्वपूर्ण स्थान बनाते हैं या नहीं और इससे नई विश्व व्यवस्था बनती है या नहीं.

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