Author : Rupali Handa

Published on Oct 13, 2020 Updated 0 Hours ago
‘क्लीन एनर्जी के दौर में प्रवेश के लिए भारत के सामने खड़ी है फाइनेंसिंग की चुनौती’

स्वच्छ ऊर्जा प्रत्यक्ष (एसडीजी7: क़िफ़ायती और स्वच्छ ऊर्जा, और एसडीजी11: टिकाऊ शहर और बस्तियां) और अप्रत्यक्ष रूप से (एसडीजी3: अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण, एसडीजी 13: जलवायु अभियान, एसडीजी 14: पानी के नीचे जीवन, और एसडीजी 15: भूमि पर जीवन) विभिन्न एसडीजी यानी सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल से जुड़ी है, फिर भी स्वच्छ ऊर्जा में निवेश की रफ़्तार और मात्रा इन लक्ष्यों के अनुरूप नहीं है. विश्व ऊर्जा निवेश रिपोर्ट 2020 बताती है कि दुनिया को अधिक टिकाऊ (सस्टेनेबल) रास्ते पर रखने के लिए स्वच्छ ऊर्जा या क्लीन एनर्जी में निवेश का स्तर ज़रूरत से बहुत कम है. उदाहरण के लिए अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के सतत विकास परिदृश्य में 2020 के अंत तक अक्षय ऊर्जा पर ख़र्च को दोगुना करने की ज़रूरत होगी. अफ़सोस की बात है कि निजी फ़ाइनेंस कई बाधाओं का सामना कर रहा है, जबकि सरकारी फ़ाइनेंस अपर्याप्त है. इसलिए, हमें बदलाव हासिल करने के लिए कई तरह के उपाय करने की ज़रूरत होगी.

अंतरराष्ट्रीय सोलर एलायंस (आईएसए) द्वारा आयोजित एक हालिया शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के बारे में विश्वास व्यक्त किया कि 2022 तक अपने 175 गीगावॉट क्षमता के लक्ष्य को पार करते हुए 220 गीगावॉट की क्षमता हासिल कर लेगा

भारत का ऊर्जा सेक्टर ऊर्जा मिश्रण में अक्षय ऊर्जा की बढ़ती पहुंच के साथ संक्रमणकाल से गुज़र  रहा है. देश ने महत्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा (रीन्यूएबल एनर्जी ) लक्ष्य तय किया है —2022 तक 175 गीगावॉट और 2030 तक 450 गीगावॉट. अंतरराष्ट्रीय सोलर एलायंस (आईएसए) द्वारा आयोजित एक हालिया शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के बारे में विश्वास व्यक्त किया कि 2022 तक अपने 175 गीगावॉट क्षमता के लक्ष्य को पार करते हुए 220 गीगावॉट की क्षमता हासिल कर लेगा— हालांकि,  इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी एंड फ़ाइनेंशियल एनालिसिस के अनुसार यह लक्ष्य हासिल करने के लिए सालाना 36 गीगावॉट क्षमता स्थापना की ज़रूरत होगी. इसके वास्ते भारतीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों निवेशकों से पूंजी प्रवाह की ज़रूरत है. भले ही नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ाने में पिछले एक दशक में भारत की उपलब्धियां उल्लेखनीय रही हैं, लेकिन भारत में स्वच्छ ऊर्जा के फ़ाइनेंस में कई तरह की समस्याओं का सामना करना जारी है, जैसे कि-

नीतिगत स्थिरता का अभाव: अंतरराष्ट्रीय निवेशक नीति में निश्चितता चाहते हैं. भारत ने बहुत ज़्यादा नीति में एकरूपता का अभाव और बदलाव के साथ ही राज्य-केंद्र खींचतान देखी है. सरकार को नवीकरणीय ऊर्जा विकास पर नीति की निश्चितता, बेहतर केंद्र-राज्य समन्वय सुनिश्चित करने और अधिक धन आकर्षित करने के लिए नए फ़ाइनेंशियल समाधान तलाशने की ज़रूरत है.

दीर्घकालिक फ़ाइनेंस का अभाव: हमें नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए, दीर्घकालिक फाइनेंसिंग की ज़रूरत है क्योंकि अल्पकालिक फाइनेंसिंग बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए उपयुक्त नहीं है. दीर्घकालिक अवधि के फ़ाइनेंस की कमी से लो कार्बन की दिशा में प्रगति बाधित होती है. एशियाई अर्थव्यवस्थाएं अभी भी बैंक के प्रभुत्व वाली हैं और दीर्घकालिक फ़ाइनेंस के लिए बैंकिंग क्षेत्र में रुकावटेंहैं.  टिकाऊ फाइनेंसिंग के लिए हमारे पास ऐसे संगठन होने चाहिए जो पेंशन फंड, बीमा कंपनियों की तरह दीर्घकालिक धन रखते हों.

विश्व बैंक ने पाया कि 2011-17 की अवधि में, संस्थागत निवेशकों ने दक्षिण एशिया में एक भी बुनियादी ढांचा परियोजना को फ़ाइनेंस नहीं किया है, क्योंकि मुख्यतः उभरते बाजार के बुनियादी ढांचे में निवेश करना भारी ज़ोखिम वाला माना जाता है.

लो कार्बन परियोजनाओं से जुड़े तमाम ज़ोखिम: इसकी टेक्नोलॉजी में अधिकांश में टेक्नोलॉजी ज़ोखिम अपेक्षाकृत नया है, जिससे निवेशक लागत कम होने के इंतज़ार में अपने निवेश को टाल रहे हैं. फिर, रिटर्न की कम दर के कारण व्यावहारिकता का ज़ोखिम है. लो-कार्बन टेक्नोलॉजी के निर्माण में विनिमय दर का ज़ोखिम देशव्यापी आपूर्ति श्रृंखला पर निर्भर है और यह व्यापार पर बहुत अधिक निर्भर करता है, ऐसे में विनिमय दर ज़ोखिम ज़्यादा है. राजनीतिक ज़ोखिम, परिचालन ज़ोखिम जैसे दूसरे ज़ोखिम भी हैं. जैसे कि विश्व बैंक ने पाया कि 2011-17 की अवधि में, संस्थागत निवेशकों ने दक्षिण एशिया में एक भी बुनियादी ढांचा परियोजना को फ़ाइनेंस नहीं किया है, क्योंकि मुख्यतः उभरते बाजार के बुनियादी ढांचे में निवेश करना भारी ज़ोखिम वाला माना जाता है.

लो कार्बन परियोजनाओं में रिटर्न की नीची दर: स्वच्छ ऊर्जा टेक्नोलॉजी अक्सर विकास के चरण में होती हैं और परंपरागत टेक्नोलॉजी की तुलना में हमेशा व्यावसायिक रूप से फायदेमंद नहीं होती है. यह इन टेक्नोलॉजी को ज़्यादा महंगा और ज़ोखिम भरा बनाता है. भले ही एसडीजी महत्वपूर्ण हों, लेकिन निवेशकों के लिए कमाई की दर सबसे ज़्यादा मायने रखती है.

बाजार के कारकों में क्षमता की कमी: लो-कार्बन परियोजनाओं में परिचय का अभाव, सीमित जानकारी और ज्ञान की कमी और निवेशकों के बीच हरित बुनियादी ढांचे के बारे में सीमित विशेषज्ञता से निवेश कम आता है.

इन रुकावटों के अलावा, संज्ञानात्मक पूर्वाग्रहों के चलते काम करने की अनिच्छा भी है, जिनके चलते जटिल दीर्घकालिक चुनौतियों से, जो हमारे अस्तित्व को खतरे में डालती हैं, निपटने में मुश्किल आती है, जैसे की विश्व में जलवायु परिवर्तन. यह कहना है राजनीतिक मनोवैज्ञानिक कोनोर सीले का. इस भेदभाव का आमतौर पर मौजूदा पूर्वाग्रह के रूप में जिक्र किया जाता है, जो बताता है कि लोग मौजूदा लाभ पर ज़्यादा ध्यान देते हैं, जो मौजूदा पल में मिलता है, बनिस्बत भविष्य के लाभों के.

स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन के तय लक्ष्य को हासिल करने के लिए बड़े पैमाने पर ज़्यादा आकर्षक शर्तों पर भारी फ़ाइनेंस की ज़रूरत होगी और इसलिए, हितधारकों व मददगार नीतिगत ढांचे के ठोस प्रयासों के लिए ज़रूरत होगी

भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए बड़ी मात्रा में पूंजी निवेश की ज़रूरत है. मौजूदा ऊर्जा प्रणालियों को उन्नत करने, ज्यादा कार्बन छोड़ने वाले बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करने और नए – लो कार्बन बुनियादी ढांचे के विकास के लिए ज़्यादा और दीर्घकालिक निवेश की जरूरत है. स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन के तय लक्ष्य को हासिल करने के लिए बड़े पैमाने पर ज़्यादा आकर्षक शर्तों पर भारी फ़ाइनेंस की ज़रूरत होगी और इसलिए, हितधारकों व मददगार नीतिगत ढांचे के ठोस प्रयासों के लिए ज़रूरत होगी जो कि फ़ाइनेंसरों और डेवलपर्स द्वारा निवेश जोखिमों को लेकर उठाए गए सवालों का समाधान किया जाना चाहिए.

नवीकरणीय ऊर्जा की पैठ बनाने में रुकावट बनी संरचनात्मक समस्याओं से भी निपटने की ज़रूरत है. इसके अलावा, ज़रूरी नहीं कि सरकारी धन प्रवाह हो, इसके बजाय नवीकरणीय ऊर्जा जैसी परिपक्व टेक्नोलॉजी प्राइवेट फ़ाइनेंस के कम ब्याज दर वाले वातावरण पर निर्भर होगी, और इसके लिए मुख्य रूप से एक अनुकूल नियामक वातावरण की ज़रूरत होगी. इसके उलट, नई स्वच्छ ऊर्जा टेक्नोलॉजी के लिए इस स्तर पर सरकारी ख़र्च महत्वपूर्ण है जो अभी भी भारी लागत में कमी के लिए जरूरी है. इस पैमाने की नई टेक्नोलॉजी को फ़ाइनेंस करने के लिए, ग्रीन सरकारी निवेश बैंकों और विविध संस्थानों का उपयोग करते हुए मौजूदा विशेषज्ञता का सहारा लेकर सक्षम टेक्नोलॉजी प्रभावी तरीके से बाज़ार में आएगी तो निजी पूंजी भी सक्रिय होगी.

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