Author : Shivam Shekhawat

Published on Jul 31, 2023 Updated 0 Hours ago

आगामी अविश्वास मत के साथ पाकिस्तान खुद को राजनीतिक और आर्थिक अनिश्चितताओं में और अधिक उलझा हुआ पाएगा

‘लोकतांत्रिक ह्रास और आर्थिक कठिनाइयां’: पाकिस्तान के लिए आगे का रास्ता
‘लोकतांत्रिक ह्रास और आर्थिक कठिनाइयां’: पाकिस्तान के लिए आगे का रास्ता

एक ऐसे देश में जो ऐतिहासिक रूप से कर्ज़ में डूबा रहा है और जहां अर्थव्यवस्था महामारी से प्रभावित हो वहां देश के दिन प्रणतिदिन के कामकाज को पूरा करने के लिए सरकार की व्यवस्था अगर चरमरा रही हो तो यह उस देश के भविष्य के लिए किसी भी बेहतर नहीं है. इस साल 8 मार्च को, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ (पीएमएल-एन) के नेशनल असेंबली (एमएनए) के लगभग 100 सदस्यों ने अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ राष्ट्रीय सचिवालय में प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया. एक बारहमासी नागरिक-सैन्य संघर्ष में उलझे हुए पाकिस्तान में एक लोकतांत्रिक सरकार का सत्ता में अपना कार्यकाल पूरा करना एक बड़ी उपलब्धि है. भले ही पाकिस्तान की तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) सरकार द्वारा अपना कार्यकाल पूरा करने की उम्मीदें थीं, लेकिन मौजूदा दौर में जनता के बीच बढ़ते असंतोष के साथ यह प्रस्ताव प्रस्तुत करने के साथ पहले से ही उलझी हुई स्थिति अब और जटिल हो गई है.

भले ही पाकिस्तान की तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) सरकार द्वारा अपना कार्यकाल पूरा करने की उम्मीदें थीं, लेकिन मौजूदा दौर में जनता के बीच बढ़ते असंतोष के साथ यह प्रस्ताव प्रस्तुत करने के साथ पहले से ही उलझी हुई स्थिति अब और जटिल हो गई है.

शिकायतें और असंतोष

इमरान खान की सरकार के ख़िलाफ़ असंतोष और शिकायतें साल 2018 में उनके सत्ता में आने के बाद से ही लगातार बढ़ रही हैं. शुरुआत में यह उन अनैतिक तरीकों के लिए था जिसके ज़रिए उन्होंने अपनी सरकार बनाई. इसके बाद लगातार उनके शासन के ख़िलाफ़ शिकायतें बढ़ती गई हैं. कई दशकों के बाद उनके कार्यकाल में देश की आय में भारी गिरावट हुई और अर्थव्यवस्था में मंदी के साथ, देश में पहली बार साल 2019 में विकास की नकारात्मक दर दर्ज की गई. तब से, पाकिस्तान में सरकार की आर्थिक नीतियों, और अपने आलोचकों और विपक्षी सांसदों के प्रति अपनी मनमानी के ख़िलाफ़ कई विरोध प्रदर्शन और नाकेबंदी देखी गई हैं. हाल के गैलप सर्वेक्षण के अनुसार, लोगों के मन में बढ़ती बेरोज़गारी और मुद्रास्फीति के स्तर में गिरावट को लेकर चिंताएं अपने चरम पर हैं. साल 1990 और 2016 के बीच, बाहरी सरकारी ऋण भुगतान देश के राजस्व का औसतन 16 प्रतिशत रहा है जिसमें अधिकर राशि इन ऋणों पर ब्याज की रही है. बाहरी सहायता पर इस अति-निर्भरता ने अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की छवि को नकारात्मक बनाया है और यह धारणा ज़ोर पकड़ रही है कि यह संस्थान ऋण की एवज़ में सुधारों पर ज़ोर डालते हुए पाकिस्तान की संप्रभुता का उल्लंघन करने की कोशिशें कर रहे हैं. यह तब सामने आया जब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने पिछले महीने विस्तारित फंड सुविधा के तहत एक बिलियन अमेरिकी डॉलर की किश्त जारी की. विरोधियों के लिए, खान की ‘विपक्षी शैली’ की राजनीति और देश में प्रभावी घरेलू और विदेश नीति के फैसले लेने की क्षमता पैदा करने में उस असंतोष की जड़ है जो पाकिस्तान में इन दिनों दिखाई दे रहा है.

कैश हैंडआउट्स और तुरत-फुरत में लिए जाने वाले आर्थिक निर्णय, भले ही अर्थव्यवस्था में विश्वास की भावना बढ़ाने और असहमति की आवाजों को शांत करने के इरादे से किए गए हों, लेकिन विशेषज्ञों ने इसे सरकार के भीतर अविश्वास के रूप में देखा है

इस साल 28 फरवरी को एक भाषण में, रूस की अपनी यात्रा के बाद, इमरान खान ने यूक्रेन में संकट के प्रभाव और अंतरराष्ट्रीय तेल की बढ़ती कीमतों को कम करने के लिए कई लोकलुभावन उपायों की घोषणा की. पेट्रोलियम की कीमत में दस पाकिस्तान रुपए (पीकेआर) की कमी और कुछ क्षेत्रों पर कर में छूट की घोषणा करते हुए, उन्होंने जून में अगले बजट सत्र तक कीमतों पर रोक लगाने की घोषणा की है. कैश हैंडआउट्स और तुरत-फुरत में लिए जाने वाले आर्थिक निर्णय, भले ही अर्थव्यवस्था में विश्वास की भावना बढ़ाने और असहमति की आवाजों को शांत करने के इरादे से किए गए हों, लेकिन विशेषज्ञों ने इसे सरकार के भीतर अविश्वास के रूप में देखा है और विपक्ष की मानें तो यह सरकार द्वारा खुद को बचाने की एक आखिरी कोशिश है.

सरकार की कमान में आख़िरी तीर 

पीटीआई सरकार के समर्थन खोने और पद से हटाए जाने की बातें पिछले अक्टूबर से राजनीतिक हलकों में गूंज रही हैं. अविश्वास प्रस्ताव के सफल होने के लिए विपक्ष को 342 सदस्यीय विधानसभा में से 172 सदस्यों के समर्थन की ज़रूरत है. जिस दिन प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया उस दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, पीपीपी के बिलावल भुट्टो और आसिफ अली ज़रदारी और पीएमएल-एन के शहबाज़ शरीफ़ ने उस समर्थन में विश्वास जताया जो वे नेशनल असेंबली में 164 विपक्षी सदस्यों के ज़रिए हासिल कर पाए थे, जिसमें पीटीआई से नाराज़ उसके सदस्य शामिल थे. पीटीआई के असंतुष्ट सदस्यों में 155 सदस्य और 23 गठबंधन सहयोगी शामिल हैं.

विपक्ष की हरकतों को खारिज करते हुए, इमरान खान ने स्पष्ट रूप से सेना से प्राप्त समर्थन के बारे में दावा किया है और अपने मंत्रियों को खरीदने के विपक्ष के प्रयासों का मज़ाक उड़ाया है.

8 मार्च के बाद के दिनों में दोनों पक्ष अपनी स्थिति को बचाना चाहते थे, इसके बाद के दिनों में मौखिक हमलों और पलटवार, बैठकों और चर्चाओं की झड़ी लग गई, और नेशनल असेंबली के सदस्यों की निष्ठा हासिल करने के लिए उन्हें ब्लैकमेल करने और रिश्वत देने के उदाहरण देखे गए. यह स्थिति विपक्ष द्वारा नेशनल असेंबली के अध्यक्ष असद कैसर और उपाध्यक्ष कासिम खान सूरी के ख़िलाफ़ पिछले रविवार को उनके ‘तटस्थ’ पद का अनादर करने और अपनी पार्टी से इस्तीफ़ा देने में विफल रहने के लिए अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत करने के बाद और अधिक जटिल हो गई है. नियमों के अनुसार यह उन्हें विधानसभा की कार्यवाही की अध्यक्षता करने से प्रभावी रूप से प्रतिबंधित करता है.

विधानसभा में राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व

PTI’s allies- PML-Q,  MQM-P, BAP, GDA, JWP and AWL-P
Source: Dawn, 8 March, 2022

घरेलू तौर पर जनता के बीच विश्वस्नीयता खो चुके वैधता की कमी वाले सभी नेताओं की तरह, इमरान खान ने अविश्वास प्रस्ताव को एक विदेशी साजिश के रूप में सामने रखने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि केवल वे लोग जो एक स्वतंत्र विदेश नीति नहीं चाहते थे, इसका समर्थन करेंगे. साल 2028 तक सत्ता में रहने के विश्वास के साथ, उनकी पार्टी ने प्रस्ताव पर मतदान से एक दिन पहले 27 मार्च को इस्लामाबाद के डी-चौक पर ‘पावर शो’ की भी योजना बनाई है. हालांकि, इस तीखी बयानबाजी के बीच गठबंधन में दरारें आ गई हैं. गठबंधन के सहयोगियों द्वारा विधानसभा में समर्थन के लिए पीटीआई को ब्लैकमेल करने और पंजाब प्रांतीय सरकार में असंतोष की खबरों ने स्थिति को और विकट बना दिया है. 

पीटीआई पिछले कुछ हफ्तों में अपने सदस्यों का समर्थन हासिल करने के लिए बड़े पैमाने पर पैरवी कर रही है, लेकिन इस सब के बीच उनके धड़े के एक प्रमुख नेता अलीम खान, जो कभी प्रधानमंत्री के क़रीबी सहयोगी थे, ने असंतुष्ट जहांगीर तरीन समूह के साथ हाथ मिलाने का फैसला किया. लगभग 30 सांसदों के साथ लिया गया उनका यह फैसला किसी भी तरह सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए शुभ संकेत नहीं है. विपक्ष की हरकतों को खारिज करते हुए, इमरान खान ने स्पष्ट रूप से सेना से प्राप्त समर्थन के बारे में दावा किया है और अपने मंत्रियों को खरीदने के विपक्ष के प्रयासों का मज़ाक उड़ाया है. लगातार बनाए जा रहे दबाव के सामने मज़बूती से खड़े एक प्रचंड नेता के रूप में अपनी छवि बनाने के लिए वह लगातार ज़ोरदार भाषण दे रहे हैं और विपक्षी नेताओं के व्यक्तिगत रूप से नाम लेकर व पुलिस कार्रवाई की धमकी देकर विपक्षी नेताओं को निशाना बना रहे हैं. 

एक नई सरकार? 

प्रस्ताव पेश करने का विपक्ष का निर्णय पीटीआई सरकार के प्रति उसके रवैये में विश्वास का संकेत देता है. सरकार में वास्तविक परिवर्तन होने की स्थिति में, विपक्ष की अपनी एकता बनाए रखने और पार्टियों के प्रेरक दल को एक साथ रखने की क्षमता की परीक्षा होगी. विविध वैचारिक आधार वाले नेताओं के साथ, आम सहमति तक पहुंचना एक बेहद कठिन काम साबित हो सकता है और इसलिए यदि प्रस्ताव सफल भी हो जाता है, तो यह अपने आप में पाकिस्तानी राजनीति में एक नए युग की शुरुआत नहीं करेगा. पाकिस्तान में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का संचालन स्थिरता सुनिश्चित करने का एकमात्र संभावित तरीका है. हालांकि, देश से निवेशकों का बड़े पैमाने पर बाहर निकलना और विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की आशंका भी लगातार बनी हुई है. एक नई सरकार का सत्ता में आना पर चढ़ना पहले से मौजूद समझौतों और परियोजनाओं को भी प्रभावित कर सकता है, और आईएमएफ के साथ सहायता कार्यक्रम पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जो भले ही घरेलू संघर्ष का समाना कर रही हो लेकिन पाकिस्तान के लिए बेहद ज़रूरी है. भले ही इमरान खान सरकार इस उथल-पुथल से प्रभावी ढंग से निपट सके, लेकिन विपक्ष द्वारा विरोध के आह्वान से देश पर शासन करने की उसकी क्षमता प्रभावित होगी. ये चेतावनियां, भले ही सतही हलचल पर आधारित हों लेकिन पाकिस्तान को पूर्ण अनिश्चितता के रास्ते पर आगे ले जाने की क्षमता रखती हैं.

दक्षिण एशिया का इतिहास ऐसी सरकारों से अजनबी नहीं है जो सरकारों को गिराने के लिए अस्तित्व में आईं और अपनी विषम प्रकृति के कारण लंबे समय तक खुद को बनाए रखने में विफल रही हैं. इस लड़ाई को चाहे जो कोई भी जीते अगले कुछ महीने नकदी-संकट वाले देश पाकिस्तान के लिए चुनौतीपूर्ण रहेंगे.

अविश्वास प्रस्ताव राजनीतिक नेतृत्व या विश्लेषकों के लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं थी, लेकिन पीटीआई सरकार के लिए स्थिति पर काबू पाना मुश्किल हो रहा है. गठबंधन के बीच दरार और देश में बढ़ रही असंतोष की भावनाओं के साथ, मतदान का देश और उसकी अर्थव्यवस्था पर लगातार प्रभाव पड़ेगा. इस का क्या नतीजा होगा इस बात को तय करने में पीटीआई के असंतुष्ट सदस्यों का विपक्ष को समर्थन महत्वपूर्ण होगा. अविश्वास प्रस्ताव पेश करना विपक्ष का संवैधानिक अधिकार है, पहले से ही कमज़ोर एक देश में “कृत्रिम रूप से निर्मित राजनीतिक अस्थिरता” की संभावना के साथ इसमें शामिल जोखिम कई गुना बढ़ गए हैं. दक्षिण एशिया का इतिहास ऐसी सरकारों से अजनबी नहीं है जो सरकारों को गिराने के लिए अस्तित्व में आईं और अपनी विषम प्रकृति के कारण लंबे समय तक खुद को बनाए रखने में विफल रही हैं. इस लड़ाई को चाहे जो कोई भी जीते अगले कुछ महीने नकदी-संकट वाले देश पाकिस्तान के लिए चुनौतीपूर्ण रहेंगे.

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Shivam Shekhawat

Shivam Shekhawat

Shivam Shekhawat is a Junior Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. Her research focuses primarily on India’s neighbourhood- particularly tracking the security, political and economic ...

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