Author : Naghma Sahar

Published on Nov 19, 2018 Updated 0 Hours ago

और सभी राज्यों के मुकाबले राजस्थान में कांग्रेस की जीत की गुंजाइश बेहतर बताई जा रही है हालाँकि कौन बनेगा मुख्यमंत्री ये वाकई करोड़ों का सवाल बना हुआ है।

राजस्थान में कांग्रेस का पायलट कौन

राजस्थान में कांग्रेस के दो बड़े चेहरे हैं दो बार मुख्यमंत्री रह चुके दिग्गज नेता अशोक गहलोत और युवा नेता सचिन पायलट जो पिछली चुनाव में बीजेपी की आंधी में अजमेर से चुनाव हार गए थे। लेकिन इन सालों में कांग्रेस पार्टी की राजस्थान में अछि वापसी हुई है। 200 सीटों में २१ पर सिमटी कांग्रेस आज बीजेपी को चुनौती देने की स्थिति में लौट आई है और इसका श्रेय सचिन पायलट को भी जाता है। उन्हें राहुल गाँधी ने एक ऐसे दौर में राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जब पार्टी बुरे हाल में थी।

मंझे हुए कांग्रेस नेता राजेश पायलट के बेटे सचिन पायलट बेहद सुलझे हुए और कम बोलने वाले हैं हैं। ज़मीन पर काम करने में विश्वास रखते हैं, शायद इसलिए 200 में से २१ सीटों पर सिमटी कांग्रेस को अब राजस्थान में धीरे धीरे इस हालत में ले आये हैं की वो बीजेपी को टक्कर देने की स्थिति में है, और शायद इसी वजह से कहा जा रहा है कि सचिन पायलट इस चुनाव में कांग्रेस के पायलट हैं, लेकिन सचिन विनम्रता से कांग्रेस की बेहतर होती हुई स्थिति का सेहरा दिग्गज कांग्रेस नेता अशोक गहलोत के सर बाँधने से नहीं हिचकते।

पायलट और गहलोत दो बड़े चेहरे हैं जिन में अंदरूनी टकराव की कानाफूसी भी खूब फैली है।

अब जब पार्टी ने ये फैसला लिया है की पायलट और गहलोत दोनों ही चुनाव लड़ेंगे तो क्या कांग्रेस की दुविधा सुलझ गयी है या फिर बात और उलझ गयी है। चुनाव में राजस्थान सरकार किसी चेहरे का ऐलान तो नहीं कर रही फिर भी सवाल बना हुआ है की “पायलट” की सीट में है कौन और को पायलट कौन है, किस के नाम पर जनता कांग्रेस को वोट देगी।

सचिन इसका जवाब पार्टी के फैसले पर टाल देते हैं लेकिन गहलोत तो अक्सर इस से झल्ला उठते हैं। पर कयास लगने जारी हैं। ये सच है कि आज तक कांग्रेस ने कभी भी राजस्थान में चुनाव से पहले मुख्यमंत्री का नाम घोषित नहीं किया गया।

सचिन कहते हैं कि ये कांग्रेस की परंपरा नहीं लेकिन बीजेपी ने तो वसुंधरा राजे के चेहरे का ऐलान कर दिया है और कांग्रेस का कहना है की इस ऐलान के बाद पार्टी की जीत की उम्मीद और कमज़ोर हो गयी है। वजह है वसुंधरा राजे से लोगों की भारी नाराज़गी। अंदरूनी खबर ये भी चल रही है कि राजस्थान में वसुंधरा की आंधी बीजेपी को बहा ले जाएगी।

वैसे उपरी तौर पर कांग्रेस के खेमे में सब ठीक लगता है। गहलोत और सचिन पायलट अक्सर साथ नज़र आते हैं। एक बार दोनों मोटरसाइकिल पर साथ साथ कैंपेन करते भी दिखे और सोशल मीडिया पर इसे जय और वीरू की जोड़ी का नाम भी दिया गया। दोनों को ही इस बात का एहसास है कि मीडिया के एक हिस्से में बार-बार उनके और सचिन के बीच टकराव को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता रहा है। इसे राजस्थान कांग्रेस में फूट और गुटबाजी के तौर पर भी पेश किया जाता है। वैसे राहुल गांधी ने ये कोशिश की है कि दोनों को एक साथ रखा और दिखाया जाए। इसीलिए उनके हर राजस्थान दौरे में ये दोनों नेता एक साथ दिखते हैं। कोशिश है की पार्टी इस गुटबाजी में न फँस कर चुनाव जीतने पर फोकस करे।

और सभी राज्यों के मुकाबले राजस्थान में कांग्रेस की जीत की गुंजाइश बेहतर भी बताई जा रही है हालाँकि कौन बनेगा मुख्यमंत्री ये वाकई करोड़ों का सवाल बना हुआ है। सचिन पायलट ने हाल में ही एक इंटरव्यू में मुझे बताया कि मुख्यमंत्री कौन हो ये अहम नहीं, जीत अहम है, और हाँ सभी राज्यों के मुकाबले कांग्रेस राजस्थान में बेहतर स्थति में है। यानी मुख्यमंत्री पद के लिए घमासान चुनाव के बाद ही होगा। अभी राजस्थान में कांग्रेस खुद को सत्ता के करीब पा रही है। और कोई खतरा उठाने को तैयार नहीं।

सचिन पार्टी में किसी भी अंदरूनी टकराव या गुटबाजी से इंकार करते हैं और कभी भी इस बारे में कोई सार्वजनिक टिपण्णी नहीं की लेकिन गहलोत ने कई बार इस तरफ इशारा किया है की राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष होने से ये नहीं समझ लेना चाहिए की कोई मुख्यमंत्री पद का दावेदार है। उमीदवारों की सूची में भी अलग अलग गुटों के दावेदार हैं, इस गुटबाजी को रोकने की कोशिश जारी है। लेकिन सभी ताक़तवर नेता अपने अपने समर्थकों को टिकट दिलवाने में लगे हैं ताकि चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के लिए ज्यादा समर्थन जुटाया जा सके।

और चुनाव में जाति की जोड़ गणित अब भी महत्त्वपूर्ण हैं, राजपूत वोट किस के नाम पर पड़ेंगे, गुर्जर कितने प्रतिशत हैं वगैरह, हालाँकि नेता सार्वजनिक तौर पर हमेशा यही कहते हैं कि लोगों के लिए नौकरी, किसानो के लिए अपनी फसल अहम है।

बीजेपी के चेहरे अब कांग्रेस में शामिल होने लगे हैं। जिस दिन ये खबर सामने आई कि गहलोत और सचिन दोनों चुनाव लड़ेंगे उसी दिन कांग्रेस ने राजस्थान में बीजेपी का एक बड़ा विकेट गिराया है। दौसा से बीजेपी के सांसद हरीश मीणा बीजेपी छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हो गए। किरोड़ीमल मीणा जो बीजेपी छोड़ कर चले गए थे, वो जब बीजेपी में लौट आये तो अब दुसरे मीणा को कांग्रेस में शामिल कर एक सियासी जवाब दिया गया है।

बीजेपी के मौजूदा सांसद के कांग्रेस में आने से कांग्रेस का खेमा जोश से भरा है। कहा जा रहा है की हर जगह ही लोग कांग्रेस में आने को तैयार हैं। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से सवाल पूछा जा रहा है कि राजस्थान में मिशन 180 का क्या हुआ? अमित शाह का वो बयान भी सबको याद है कि बीजेपी राजस्थान में अंगद का पाँव है जिसे कोई हिला नहीं सकता। इस पर सचिन पायलट कहते हैं की राजस्थान रावन की लंका थोड़े ही है।

राजस्थान में कांग्रेस वसुंधरा सरकार की नाकामियों को मुद्दा बना रही है। उसकी कोशिश रोजगार, महंगाई, किसानों की आत्महत्या, रफाल, सीबीआई का दुरुपयोग जैसे मुद्दों को तूल देने की है। उसका आरोप है कि अपनी नाकामियों से ध्यान भटकाने के लिए ही बीजेपी और संघ परिवार राम मंदिर का मुद्दा उठा रहे हैं। गहलोत का कहना है कि अचानक राम मंदिर का मुद्दा छेड़ दिया गया है। सचिन पायलट भी कहते हैं की राजस्थान में जो गाय के नाम पर भीड़ की हिंसा हुई उसे सरकार की तरफ से रोकने की कोशिश नहीं की गयी। वसुंधरा सरकार को जो मज़बूत बहुमत मिला था उसे उन्होंने ने बर्बाद कर दिया।

राजस्थान में कांग्रेस के तेवर हमलावर हैं, पार्टी साथ दिखने की कोशिश में है और इकठ्ठा होकर बीजेपी को मज़बूत चुनौती दे रही है। क्या राजस्थान से कांग्रेस की वापसी की शुरुआत होगी इसका जवाब ११ दिसम्बर को मिलेगा।

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