जब नवंबर में हुए अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में कांटे की टक्कर के बाद डोनाल्ड ट्रंप हार गए और जो बाइडेन को अमेरिका का निर्वाचित राष्ट्रपति घोषित किया गया, तो फिलिस्तीनियों ने राहत की सांस ली. फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO) की एक सदस्य हनान अश्रावी ने ट्वीट किया कि, ‘America Detrumped’. हनान ने कहा कि अमेरिका का राष्ट्रपति बदलने से दुनिया ने थोड़ी राहत महसूस की है.
फिलिस्तीन के राष्ट्रवादी समूह और सैन्य संगठन हमास के राजनीतिक प्रमुख इस्माइल हानिया ने जो बाइडेन से अपील की कि वो फिलिस्तीन के ख़िलाफ़ ट्रंप की अन्यायपूर्ण नीतियों की बदलें.
PRI न्यूज़ नेटवर्क से बातचीत में हनान अश्रावी ने कहा कि, ‘हालात तबाही वाले रास्ते की ओर चल पड़े हैं. पिछले चार वर्षों से हम ख़ुद को बचाने की जद्दोज़हद करते रहे और हालात बेहद ख़तरनाक, तकलीफ़देह थे. शांति प्रक्रिया की एक एक बुनियादी ईंट को साज़िश के तहत उखाड़ा जा रहा था.’
फिलिस्तीन के राष्ट्रवादी समूह और सैन्य संगठन हमास के राजनीतिक प्रमुख इस्माइल हानिया ने जो बाइडेन से अपील की कि वो फिलिस्तीन के ख़िलाफ़ ट्रंप की अन्यायपूर्ण नीतियों की बदलें. इस्माइल हानिया के मुताबिक़, ‘ट्रंप की नीतियों के चलते फिलिस्तीन समस्या में अमेरिका भी नाइंसाफी और आक्रामक पक्ष बन गया और इससे न सिर्फ़ इस क्षेत्र की बल्कि पूरी दुनिया की स्थिरता को नुक़सान पहुंचा.’
फिलिस्तीनियों की आकांक्षा को तबाह
वैसे तो इज़राइल के निर्माण के समय से ही अमेरिकी नेता इज़राइल के पक्ष में रहे हैं और इनमें से कई नेताओं ने इज़राइल के एक अलग देश के तौर पर उभरने में भी अहम भूमिका अदा की थी. लेकिन, अमेरिकी नेता, फिलिस्तीन के एक अलग देश के तौर पर अस्तित्व में आने की ख़्वाहिशों का भी समर्थन करते आए हैं, भले ही ये दिखावे के लिए ही क्यों न हो.
लेकिन, डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद वो हर मुमकिन कोशिश की, जिससे फिलिस्तीनियों की अलग देश की आकांक्षा को तबाह किया जा सके. उन्होंने अमेरिका के दूतावास को तेल अवीव से हटाकर येरूशलम में स्थापित किया. पवित्र शहर येरूशलम पर फिलिस्तीनी और इज़राइली दोनों ही अपनी अपनी राजधानी बनाने के दावे करते आए हैं. उन्होंने इज़राइल के कब्ज़े वाले पश्चिमी तट पर राज करने वाले फिलिस्तीनी प्राधिकरण को दी जाने वाली मदद रोक दी. इसके अलावा ट्रंप ने फिलिस्तीन के इलाक़ों पर इज़राइल के बढ़ते अतिक्रमण और कब्ज़े की आलोचना करने से इनकार कर दिया, बल्कि इसे बढ़ावा देने का ही काम किया. ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी मिशन को दी जाने वाली मदद भी रोक दी, जिसके ज़रिए लेबनान, सीरिया और जॉर्डन में पनाह लेने वाले फिलिस्तीनी शरणार्थियों के खाने, शिक्षा और रोज़गार की व्यवस्था होती आयी थी.
ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी मिशन को दी जाने वाली मदद भी रोक दी, जिसके ज़रिए लेबनान, सीरिया और जॉर्डन में पनाह लेने वाले फिलिस्तीनी शरणार्थियों के खाने, शिक्षा और रोज़गार की व्यवस्था होती आयी थी.
ईरान के साथ टकराव बढ़ाते हुए, ट्रंप ने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते यानी JCPOA से भी ख़ुद को अलग कर लिया. ट्रंप के इस फ़ैसले के पीछे भी बड़ी वजह इज़राइल के हितों का संरक्षण करना था. पद छोड़ने से पहले फिलिस्तीन पर आख़िरी वार करते हुए ट्रंप ने इज़राइल और तीन अरब देशों: संयुक्त अरब अमीरात (UAE), बहरीन और सूडान के बीच शांति समझौते पर भी दस्तख़त कराए. इन समझौतों से इज़राइल को एक देश के तौर पर मान्यता मिल गई है और इससे अरब देशों की दशकों पुरानी वो नीति भी समाप्त हो गई है, जिसके तहत वो 1967 की सीमाओं के दायरे में फिलिस्तीनी राष्ट्र की स्थापना से पहले इज़राइल को मान्यता देने से परहेज़ करते आए थे.
अब फिलिस्तीनियों को उम्मीद है कि जो बाइडेन उनके लिए बेहतर साबित होंगे. फिलिस्तीनियों को थोड़ी राहत देते हुए जो बाइडेन ने इस समस्या के दो राष्ट्रों के सिद्धांत के आधार पर समाधान की अहमियत को माना है. बाइडेन, फिलिस्तीनी इलाक़ों पर इज़राइल के अवैध कब्ज़े के विरोधी रहे हैं. ये अवैध कब्ज़े अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के भी ख़िलाफ़ हैं. बाइडेन चाहते हैं कि वो फिलिस्तीनी प्राधिकरण से भी कूटनीतिक संबंध दोबारा बहाल करें और गज़ा व पश्चिमी तट के फिलिस्तीनी इलाक़ों को मानवीय मदद दोबारा शुरू करें.
जो बाइडेन भले ही येरूशलम में अमेरिका के दूतावास को बंद न करें, क्योंकि ये फ़ैसला अमेरिका के यहूदियों को बहुत नागवार गुज़र सकता है. लेकिन, इस बात की संभावना ज़रूर है कि फिलिस्तीन की जनता के लिए वो पूर्वी येरूशलम में अमेरिकी कॉन्सुलेट दोबारा खोल सकते हैं और वॉशिंगटन में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन का दूतावास खोलने की इजाज़त दे सकते हैं. मगर, जो बाइडेन की सियासी शख़्सियत का ये अधूरा चेहरा है. वो ख़ुद को एक कट्टर यहूदी समर्थक कहते रहे हैं और इज़राइल के अधिकारियों के भी हामी रहे हैं. बराक ओबामा के शासनकाल में ख़ुद ओबामा और इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू के संबंध तनावपूर्ण भले रहे हों, ख़ुद जो बाइडेन और नेतान्याहू के बीच ताल्लुक़ हमेशा गर्मजोशी वाला ही रहा था.
नए इज़राइल का आविष्कार
जो बाइडेन का वो बयान भी बहुत मशहूर है, जब उन्होंने कहा था कि, इज़राइल को दी जाने वाली सैन्य मदद, ‘अमेरिका का सबसे अच्छा निवेश है’. जो बाइडेन ने कहा था कि, ‘अगर मध्य-पूर्व में इज़राइल नहीं होता, तो अपने हितों की रक्षा के लिए अमेरिका को वहां एक इज़राइल का आविष्कार करना पड़ता’.
बाइडेन, फिलिस्तीनी इलाक़ों पर इज़राइल के अवैध कब्ज़े के विरोधी रहे हैं. ये अवैध कब्ज़े अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के भी ख़िलाफ़ हैं. बाइडेन चाहते हैं कि वो फिलिस्तीनी प्राधिकरण से भी कूटनीतिक संबंध दोबारा बहाल करें और गज़ा व पश्चिमी तट के फिलिस्तीनी इलाक़ों को मानवीय मदद दोबारा शुरू करें.
इस बात की संभावना नहीं है कि व्हाइट हाउस पहुंचने के बाद, जो बाइडेन इज़राइल को दी जाने वाली रक्षा मदद बंद कर देंगे. अमेरिका के टीवी नेटवर्क पीबीएस से बातचीत में जो बाइडेन ने कहा था कि, ‘इज़राइल को रक्षा मदद बंद करने का विचार बेमानी है क्योंकि उस क्षेत्र में अकेला इज़राइल ही है जो हमारा वास्तविक, सच्चा सहयोगी देश है.’ इसके बजाय, जो बाइडेन फिलिस्तीन को तभी आर्थिक मदद देंगे, जब ये पैसा इज़राइल की जेलों में बंद फिलिस्तीनियों के परिजनों के कल्याण में न ख़र्च किया जाए. इज़राइल का मानना है कि अमेरिका की यही मदद ही, फिलिस्तीनियों में इज़राइल के ख़िलाफ़ लड़ते रहते का सबसे बड़ा जज़्बा देती है. पूरे क्षेत्र में सक्रिय कार्यकर्ताओं का ये कहना है कि इज़राइल की कठोर नीतियां और फिलिस्तीनी इलाक़ों पर कब्जा ही फिलिस्तीनियों की इज़राइल से नफ़रत का कारण है.
समझौता वार्ताओं में फिलिस्तीनी जनता लंबे समय से नुक़सान झेलती आ रही है और अब जबकि तेल अवीव से अबू धाबी के बीच सीधी उड़ान सेवा शुरू हो रही है, तो इससे हज़ारों अरब तीर्थ यात्रियों और सैलानियों को लाभ होगा.
इससे भी बड़ी बात ये है कि जो बाइडेन न तो अरब देशों और इज़राइल के बीच शांति समझौतों को पलट पाएंगे और न ही वो ऐसा करेंगे. समझौता वार्ताओं में फिलिस्तीनी जनता लंबे समय से नुक़सान झेलती आ रही है और अब जबकि तेल अवीव से अबू धाबी के बीच सीधी उड़ान सेवा शुरू हो रही है, तो इससे हज़ारों अरब तीर्थ यात्रियों और सैलानियों को लाभ होगा. इससे फिलिस्तीन के हाथ से मोल-भाव का एक बड़ा मौक़ा निकल जाएगा, क्योंकि बहुत से साथी मुसलमान इज़राइल के साथ बिना कोई ख़ास रियायत के अपने संबंध सामान्य कर रहे हैं.
ट्रंप की सियासी विरासत ये है कि उन्होंने फिलिस्तीनी राष्ट्र की आकांक्षाओं को सबसे अधिक नुक़सान पहुंचाया है. ये नुक़सान इतना बड़ा है कि जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद भी इसकी भरपाई की उम्मीद नहीं है.
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