Author : Akshay Mathur

Published on Nov 02, 2021 Updated 1 Hours ago

इंडोनेशिया और भारत के रूप में दो एशियाई देशों की अध्यक्षता वाले अगले दो वर्षों के दौरान G-20 के सामने बहुत बड़ा एजेंडा होगा. ये ऐसा एजेंडा होगा जो अगले एक दशक के लिए विश्व अर्थव्यवस्था की दशा-दिशा तय करने वाला होगा.

G-20 की एशिया में वापसी…

इटली के नेतृत्व में तमाम उतार चढ़ाव वाले एक वर्ष के बाद 2022 में G-20 की अध्यक्षता इंडोनेशिया को मिलने वाली है. जिसके अगले साल यानी 2023 में भारत G-20 का अध्यक्ष बनेगा. ये चोटी के दो राष्ट्र उभरते हुए एशिया की परिकल्पना का प्रतिरूप हैं. इंडोनेशिया और भारत के रूप में दो एशियाई देशों की अध्यक्षता वाले अगले दो वर्षों के दौरान G-20 के सामने बहुत बड़ा एजेंडा होगा. ये ऐसा एजेंडा होगा जो अगले एक दशक के लिए विश्व अर्थव्यवस्था की दशा-दिशा तय करने वाला होगा.

वर्ष 2021 में इटली की अध्यक्षता के दौरान G-20 ने 175 कार्यक्रमों का आयोजन किया. इसमें 20 मंत्रि-स्तरीय बैठकें, G-20 देशों के साथ स्वास्थ्य और अफ़ग़ानिस्तान पर दो विशेष बैठकें, कार्यकारी समूहों की 62 मीटिंग, 60 वित्तीय ट्रैकिंग की बैठकें और संवाद करने वाले समूहों की कई बैठकें भी हुईं.

अंतरराष्ट्रीय वित्त के मसले पर इंडोनेशिया और भारत को एक ऐसी योजना तैयार करनी होगी, जिससे आर्थिक विकास को दोबारा पटरी पर लाने, अंतरराष्ट्रीय टैक्स व्यवस्था और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्तीय संसाधनों की व्यवस्था करने के लिए नए प्रयास किए जा सकें, और नए क़ानून और नियम बनाकर उन्हें लागू किया जा सके. इंडोनेशिया के पास निवेश और मूलभूत ढांचे से जुड़े कार्यकारी समूह की सह-अध्यक्षता करने का अनुभव है. वहीं, भारत शुरुआत से ही फ्रेमवर्क वर्किंग ग्रुप की सह-अध्यक्षता करता आ रहा है. ये कार्यकारी समूह वैश्विक व्यापक आर्थिक नीतियों, वैश्विक वित्तीय असंतुलन और वैश्विक आर्थिक विकास में बड़े स्तर पर मार्गदर्शन प्रदान करता आया है.

अंतरराष्ट्रीय वित्त के मसले पर इंडोनेशिया और भारत को एक ऐसी योजना तैयार करनी होगी, जिससे आर्थिक विकास को दोबारा पटरी पर लाने, अंतरराष्ट्रीय टैक्स व्यवस्था और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्तीय संसाधनों की व्यवस्था करने के लिए नए प्रयास किए जा सकें, और नए क़ानून और नियम बनाकर उन्हें लागू किया जा सके.

पहली प्राथमिकता तो ये होगी, ‘DSSI के बाद भी क़र्ज़ को लेकर एक साझा ढांचा’ विकसित किया जा सके. पेरिस क्लब और G-20 के अन्य देश द्विपक्षीय एवं निजी स्तर पर क़र्ज़ का संस्थागत ढंग से प्रबंधन करते हैं. इससे पूर्व अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक द्वारा जिस डेट सस्टेनिबिलिटी सस्पेंशन इनिशिएटिव (DSSI) का प्रबंधन किया जा रहा था, उसकी मियाद 31 दिसंबर 2021 को पूरी हो रही है.

मई 2021 में अपनी शुरुआत के साथ ही DSSI के नतीजे मिले-जुले रहे हैं. महामारी के चलते दबाव झेल रहे कम आमदनी वाले 40 देशों को इससे निपटने के लिए 5 अरब डॉलर की मदद मुहैया कराई गई थी. लेकिन, बहुत से देशों ने इस मदद को लेने में ये सोचकर हिचक दिखाई थी कि, इससे उन्हें अपनी कमज़ोरियां वैश्विक वित्तीय बाज़ारों के सामने उजागर करनी होंगी. इथियोपिया और चाड जैसे देशों ने पहले ही नए साझा फ्रेमवर्क के तहत क़र्ज़ से निपटने के लिए सलाह-मशविरा शुरू कर दिया है.

एक दूसरी प्राथमिकता, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा 2021 में घोषित किए गए विशेष निर्गत अधिकारों (SDR) का नए सिरे से प्रबंधन करने की होगी. इसके तहत IMF ने ऐसे कम आमदनी वाले देशों को 650 अरब डॉलर की मदद उपलब्ध कराई थी, जिन्हें आर्थिक विकास की रिकवरी के लिए मदद की सख़्त दरकार है. चूंकि, ये रक़म हासिल करने के विशेष अधिकार (SDR) को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, सदस्य देशों के हिस्से के हिसाब से तय करता है, तो उभरते हुए बाज़ारों और विकासशील देशों को कुल जारी रक़म में से आधे से भी कम हिस्सा मिल सका है. ये विरोधाभास ही है कि जिन देशों को आर्थिक मदद की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, उन्हें ही सबसे कम सहयोग राशि मिल सकी है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा 2021 में घोषित किए गए विशेष निर्गत अधिकारों (SDR) का नए सिरे से प्रबंधन करने की होगी. इसके तहत IMF ने ऐसे कम आमदनी वाले देशों को 650 अरब डॉलर की मदद उपलब्ध कराई थी, जिन्हें आर्थिक विकास की रिकवरी के लिए मदद की सख़्त दरकार है.

ख़ुद अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने सुझाव दिया है कि विकासशील देश अपने विशेष निर्गत अधिकारों (SDR) को मुद्रा कोष के ग़रीबी घटाने और विकास से जुड़े ट्रस्ट (PRGT) के ज़रिए नया रूप दे सकते हैं. इस ट्रस्ट, या फिर एक नए रेज़िलिएंसी ऐंड सस्टेनिबिलिटी ट्रस्ट के माध्यम से- ग़रीब देशों की मदद की जा सकती है. अब इन दोनों ही प्रस्तावों का नए सिरे से मूल्यांकन करना होगा. डैनियल ब्रैडशॉ और केविन गालाघर जैसे विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि अभी रक़म लेने के सभी संस्थानों यानी- केंद्रीय बैंकों और विकास से जुड़े वित्तीय संस्थानों- को आपस में जोड़ा जाए, जिससे देशों के लिए ख़ुद से SDR के ज़रिए मदद हासिल करना और भी आसान हो जाएगा.

वैश्विक टैक्स को लेकर समझौता 

इंडोनेशिया और भारत के लिए एक तीसरी प्राथमिकता, जुलाई 2021 में G-20 देशों के बीच तय हुए ऐतिहासिक वैश्विक टैक्स समझौते को लेकर आम सहमति क़ायम करने की होगी, जिसके तहत मुनाफ़े के बंटवारे और न्यूनतम वैश्विक टैक्स पर क़ानून बनाकर उसे लागू किया जा सके. ख़ास तौर से 20 अरब डॉलर से ज़्यादा की वैश्विक बिक्री और 10 प्रतिशत से अधिक मुनाफ़े वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों को नए नियमों के दायरे में लाया जा सकेगा. इस समझौते के तहत दस प्रतिशत की सीमा से अधिक मुनाफ़े का 25 प्रतिशत उन देशों के बाज़ार में निवेश किया जा सकेगा, जहां से ये कंपनियां अपना कारोबार कर रही हैं. इस नियम को 75 करोड़ डॉलर या इससे ज़्यादा के सालाना राजस्व वाली सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर 15 प्रतिशत के न्यूनतम प्रभावी कॉरपोरेट टैक्स से और मदद मिलेगी. OECD की 8 अक्टूबर 2021 को हुई पिछली बैठक में कुल वैश्विक GDP के 90 प्रतिशत इलाक़े वाले 136 देशों ने इस समझौते पर सहमति जताई थी. इसमें OECD और G-20 के सभी सदस्य देश शामिल हैं. पहले इस समझौते का विरोध करने वाले एस्टोनिया, हंगरी और आयरलैंड भी अब इस समझौते में शामिल हो गए हैं.

चूंकि टैक्स पर इस बहुपक्षीय समझौते पर वर्ष 2022 में दस्तखत होने और ये समझौता 2023 में लागू होने की उम्मीद है. ऐसे में इंडोनेशिया और भारत, दोनों ही देशों को इस समझौते को लागू करने में अहम भूमिका अदा करनी होगी. इंडोनेशिया को घरेलू क़ानून बनाने के लिए मानक नियम बनाने का मार्गदर्शन करना होगा और वर्ष 2022 में टैक्स नियमों को लागू करने के लिए इससे जुड़ी बहुपक्षीय व्यवस्था (MLI) विकसित करने का निर्देशन करना होगा. इसी तरह, भारत को इस बात पर निगरानी रखनी होगी कि ये समझौते प्रभावी होने के बाद किस तरह से लागू किए जा रहे हैं. ये नियम लागू होने पर, भारत और अन्य देशों को अपने यहां लागू डिजिटल सर्विस टैक्स को भी वापस लेना होगा.

चूंकि टैक्स पर इस बहुपक्षीय समझौते पर वर्ष 2022 में दस्तखत होने और ये समझौता 2023 में लागू होने की उम्मीद है. ऐसे में इंडोनेशिया और भारत, दोनों ही देशों को इस समझौते को लागू करने में अहम भूमिका अदा करनी होगी.

आख़िर में, इंडोनेशिया और भारत की अध्यक्षता के कार्यकाल में वित्तीय मोर्चे पर, जलवायु परिवर्तन से जुड़ी वित्तीय व्यवस्था के लिए टिकाऊ वित्तीय नियम चर्चा के केंद्र में रहने वाले हैं. जलवायु परिवर्तन से जुड़ी वित्तीय व्यवस्था के क्षेत्र में G-20 का काम उसके सस्टेनेबल फिनांस वर्किंग ग्रुप के निर्देश में चलता है. ये समूह 2018 में स्थापित सस्टेनेबल फिनांस स्टडी ग्रुप और 2016 में बनाए गए ग्रीन फिनांस स्टडी ग्रुप का ही बेहतर रूप है. इस साल की परिचर्चाएं, अपने नियमों से पर्दा हटाने, टैक्सोनॉमी विकसित करने, रेटिंग के तरीक़े, आंकड़ों के अंतर की चुनौती से निपटने और कम कार्बन उत्सर्जन के रास्ते पर चलने के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों का मार्गदर्शन करने पर केंद्रित रही थीं. ये सभी बातें, इस साल शुरू किए गए G-20 के स्थायी विकास से जुड़े वित्तीय रोडमैप के दायरे में आती हैं.

इंडोनेशिया और भारत की सबसे ज़्यादा दिलचस्पी तो हरित निवेश के लिए वित्तीय मदद जुटाने में होगी. OECD का दावा है कि विकसित देशों ने इस मद में विकासशील देशों की मदद के लिए 2019 में 79.6 अरब डॉलर देने का वादा किया था. लेकिन, बहुत से विकासशील देशों ने इस दावे पर सवाल उठाए हैं. इनमें भारत भी शामिल है. विकाशील देशों का कहना है कि विकाशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दी जा रही मदद में असल सहयोग कम और दिखावा ज़्यादा है. दोनों देशों की दिलचस्पी अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप वो बुनियादी पैमाने तय करने में भी होगी, जो  टिकाऊ संसाधन तैयार करने से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करने में उद्यमियों के लिए मददगार साबित होंगे. ये मानक विकसित करने की ज़िम्मेदारी IFRS को दी गई है, जो FSB की अगुवाई वाले TCFD के फ्रेमवर्क के अनुरूप होगी और अब वो इंटनेशनल सस्टेनेबिलिटी स्टैंडर्ड्स बोर्ड (ISSB) लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है. इसके अलावा भारत और इंडोनेशिया की दिलचस्पी जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में ऐसे संसाधन विकसित करने में भी होगी, जो व्यापक आर्थिक जोखिमों का मूल्यांकन कर सकें. ये सभी बातें उस फ्रेमवर्क वर्किंग ग्रुप के दायरे में आती हैं, जिसकी सह-अध्यक्षता भारत करता आया है.

OECD का दावा है कि विकसित देशों ने इस मद में विकासशील देशों की मदद के लिए 2019 में 79.6 अरब डॉलर देने का वादा किया था. लेकिन, बहुत से विकासशील देशों ने इस दावे पर सवाल उठाए हैं. इनमें भारत भी शामिल है.

बौद्धिक संपदा को लेकर भारत के सुझाव का विरोध

G-20 के फिनांस ट्रैक एजेंडे उलट, शेरपा ट्रैक ज़्यादा बिखरा हुआ और एक दूसरे से असंबद्ध है. ऐसे में डिजिटल अर्थव्यवस्था, वैश्विक व्यापार और स्वास्थ्य के मुद्दे इंडोनेशिया और भारत के लिए प्राथमिकता होंगे.

डिजिटल अर्थव्यवस्था का एजेंडा, जिसका प्रस्ताव सबसे पहले तुर्की ने रखा था, उसे चीन ने संस्थागत बनाया है और जर्मनी ने अपनी अध्यक्षता में विकसित किया था. अब इंडोनेशिया द्वारा इसमें नई जान डाले जाने की उम्मीद है. इस दौरान इंजोनेशिया डिजिटल इकॉनमी से जुड़े नए वर्किंग ग्रुप की निगरानी करेगा. ये भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विकास के लिए तकनीक और डिजिटलीकरण पर ज़ोर देने और डेटा को मुनाफ़े से ज़्यादा विकास के लिए इस्तेमाल की अपील से काफ़ी मेल खाती है. इसलिए इंडोनेशिया और भारत, दोनों ही देशों के पास मौक़ा होगा कि वो डिजिटल जनहित, ग्राहकों के संरक्षण, डिजिट व्यापार और डिजिटल प्रशासन से जुड़ी नीतियां सामने रख सकें.

जहां तक वैश्विक व्यापार की बात है, तो G-20, विश्व व्यापार संगठन में सुधार, बहुपक्षीय नियम बनाने की व्यवस्था और वैक्सीनों से जुड़े बौद्धिक संपदा के अधिकारों में छूट दिला पाने में नाकाम रहा है. विश्व व्यापार संगठन में कोरोना की वैक्सीन से जुड़े बौद्धिक संपदा के कुछ नियमों में रियायत देने के भारत के प्रस्ताव का कड़ा विरोध हुआ है और इसके विरोध में कई और प्रस्ताव भी रखे गए हैं. विश्व व्यापार संगठन और ख़ास तौर से अपीलीय संस्था में सुधार 2019 के बाद से ही अटका हुआ है. उस वक़्त ट्रंप प्रशासन ने जजों की नियुक्ति में अड़ंगा लगा दिया था. ‘साझा बयानों की पहल’ जैसी आदतें, विश्व व्यापार संगठन की मूल भावना के ख़िलाफ़ हैं. क्योंकि इनके माध्यम से विकसित देश बिना सभी सदस्यों के बीच आम सहमति बनाए हुए, ई-कॉमर्स, निवेश को आसान बनाने और घरेलू नियमों से जुड़े द्विपक्षीय फ़ैसले विश्व व्यापार संगठन के चार्टर पर थोपते हैं.

G-20, विश्व व्यापार संगठन में सुधार, बहुपक्षीय नियम बनाने की व्यवस्था और वैक्सीनों से जुड़े बौद्धिक संपदा के अधिकारों में छूट दिला पाने में नाकाम रहा है. विश्व व्यापार संगठन में कोरोना की वैक्सीन से जुड़े बौद्धिक संपदा के कुछ नियमों में रियायत देने के भारत के प्रस्ताव का कड़ा विरोध हुआ है और इसके विरोध में कई और प्रस्ताव भी रखे गए हैं.

इंडोनेशिया ने पहले ही संकेत दिया है कि वो वो व्यापार और निवेश से जुड़े कार्यकारी समूहों का विलय करेगा, जिससे ये और असरदार बन सकें. कज़ाख़िस्तान की अध्यक्षता में विश्व व्यापार संगठन का बारहवीं मंत्रि-स्तरीय सम्मेलन (MC13) 30 नवंबर से 3 दिसंबर 2021 को इंडोनेशिया की अध्यक्षता के दौरान होगा. चूंकि ये मंत्रि-स्तरीय सम्मेलन हर दो साल में एक बार होता है, तो अगला मंत्रि-स्तरीय सम्मेलन, 2023 में उस समय होगा, जब भारत G-20 का अध्यक्ष होगा. आख़िर में, इंडोनेशिया और भारत दोनों ही देशों को वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन की उस व्यवस्था में सुधार करने का मौक़ा मिलेगा, जिसके केंद्र में अभी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) है. दुनिया के अहम स्वास्थ्य संगठनों और प्रयासों के लिए पैसे जुटाने की व्यवस्था में सुधार के लिए इटली और इंडोनेशिया की अध्यक्षता में एक नए साझा स्वास्थ्य एवं वित्तीय टास्क फ़ोर्स का एलान पहले ही किया जा चुका है. भारत ने भी इस पहल का स्वागत किया है और ये संकेत दिया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की निगरानी में जिस रक़म का आवंटन नहीं होता है, उसे बढ़ाने में भारत की दिलचस्पी होगी.

ये सभी बातें ये संकेत देती हैं कि एशियाई देशों की अध्यक्षता वाले अगले दो वर्षों के दौरान G-20 वैश्विक आर्थिक प्रशासन के एजेंडे पर चर्चा के लिए तैयार है. अगर इंडोनेशिया और भारत इसमें कामयाब होते हैं, तो इससे ब्राज़ील और अन्य विकासशील और उभरती आर्थिक ताक़तों के लिए ऐसी ज़मीन तैयार होगी, जिससे वो वैश्विक अर्थव्यवस्था में और प्रभावशाली भूमिका निभा सकें.

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