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डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं का ये मानना था कि डोनाल्ड ट्रंप को व्हाइट हाउस से बाहर करने या राष्ट्रपति पद के चुनाव में हराने के लिए जो बिडेन ही सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार हैं.
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी का प्रत्याशी कौन होगा, इसकी रेस अब आधिकारिक रूप से दो प्रतिद्वंदियों के बीच सिमट गई है. इसका बड़ा कारण है कि जो बिडेन ने सुपर ट्यूज़डे प्राइमरी में अपने प्रतिद्वंदी बर्नी सैंडर्स को चौंकाते हुए बेहद मज़बूत प्रदर्शन किया. डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रत्याशी की रेस में जो बिडेन की वापसी से, डेमोक्रेटिक पार्टी के सत्ता प्रतिष्ठान ने ऐसे मुद्दे और अपने चुनाव को पार्टी में दोबारा मज़बूती से खड़ा कर दिया है, जो उसे पसंद हैं. सवाल ये है कि वो क्रांति या बदलाव चाहते हैं या यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं.
ऐसा लगता है कि आज डेमोक्रेटिक पार्टी के अधिकतर नेता और समर्थक यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं. फिर चाहे वो मध्यमार्गी हों या रुढ़िवादी तबक़े का प्रतिनिधित्व करते हों. वो छात्रों को क़र्ज़ देने, संस्थागत लाभों और टूटी हुई स्वास्थ्य व्यवस्था से ख़ुश हैं. जो बर्नी सैंडर्स की अपेक्षा है, वो उसके अनुसार अपनी नीतियों में परिवर्तन नहीं करना चाहते.
डेमोक्रेटिक पार्टी के बड़े नेता और पुराने वोटर, डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में पिछले तीन साल में जितनी अधिक उठा-पटक हुई है, उसे देखते हुए बहुत अधिक उलट-फेर या किसी क्रांति के पक्षधर नहीं हैं. जो युवा वोटर बहुत बड़ी संख्या में बर्नी सैंडर्स के साथ हैं, उन्हें किसी क्रांतिकारी परिवर्तन का इतना डर नहीं है. लेकिन, आबादी में उनका हिस्सा बहुत कम है.
मज़े की बात ये है कि जो बिडेन को उम्मीदवारी की रेस में वापस लाने का सबसे अधिक श्रेय अफ्रीकी मूल के अमेरिकी नागरिकों को है. क्योंकि इससे पहले बिडेन का चुनाव अभियान आलस्य से भरपूर और बुरी तरह असंगठित मालूम होता था. लेकिन, अफ्रीकी मूल के अमेरिकी नागरिकों ने उन्हें साउथ कैरोलिना में वो जीत दिलाई, जिसका बिडेन को बेसब्री से इंतज़ार था. सुपर ट्यूज़डे के दो दिन बाद उन्होंने 14 में से 10 राज्यों में जीत हासिल कर ली थी. इसमें से कई राज्य ऐसे थे, जहां पर अफ्रीकी मूल के अमेरिकी नागरिक अच्छी ख़ासी संख्या में रहते हैं.
इसका नतीजा ये हुआ कि डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रत्याशी के नामांकन की रेस में रातों-रात बहुत बड़ा बदलाव आ गया. ज़मीनी स्तर पर मोर्चेबंदी भी नाटकीय रूप से परिवर्तित हो गई. बर्नी सैंडर्स और उनकी ऊर्जावान युवा समर्थकों वाली टीम को रातों-रात पीछे धकेल दिया गया. कम से कम अभी के लिए तो यही कह सकते हैं. वहीं, नामांकन की इस रेस में शामिल एक और तरक़्क़ीपसंद नेता एलिज़ाबेथ वॉरेन ने भी अपना नाम वापस ले लिया. जैसे कि अन्य तीन प्रत्याशियों ने भी किया था. यानी अब डेमोक्रेटिक पार्टी के नामांकन में सिर्फ़ दो प्रत्याशी बचे हैं. जो बिडेन और बर्नी सैंडर्स.
इस समय इस रेस में जो बिडेन 433 डेलीगेट्स के समर्थन के साथ पहले स्थान पर हैं. वहीं सैंडर्स 388 डेलीगेट्स के समर्थन के साथ दूसरे नंबर पर. नामांकन की ये रेस जीतने के लिए दोनों में से किसी एक प्रत्याशी के पास कम से कम 1991 प्रतिनिधियों का समर्थन जुटाना आवश्यक होगा. अभी भी ये तय है कि क़रीब 60 प्रतिशत डेलीगेट का समर्थन तमाम राज्यों की प्राइमरी के दौरान जुटाना बाक़ी है. और ऐसा जून में होने वाली डेमोक्रेटिक पार्टी की कन्वेंशन से पहले करना होगा. क्योंकि जून में इस अधिवेशन में ही डोनाल्ड ट्रंप के विरुद्ध डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार का ताज, विजेता को पहनाया जाएगा. अब से लेकर तब तक बहुत कुछ बदल सकता है.
लेकिन, जो बात एकदम साफ़ है, वो ये है कि रिपब्लिकन पार्टी की ही तरह डेमोक्रेटिक पार्टी भी अपनी तरह के ‘नेवर ट्रंप’ दौर से गुज़र रही है. जब बर्नी सैंडर्स ने प्राइमरी की प्रक्रिया शुरू होने के बाद, आयोवा, न्यू हैम्पशायर और नेवादा में प्राइमरी जीत ली, तो डेमोक्रेटिक पार्टी में भी ‘नेवर बर्नी’ अभियान तेज़ हो गया. डेमोक्रेटिक पार्टी पर क़ाबिज़ लोग चिंतित हो गए. मीडिया के बड़े दिग्गज खुल कर बर्नी सैंडर्स के विरोध में सामने आ गए. और ये सवाल उठाए जाने लगे कि क्या ट्रंप को हराने के लिए बर्नी सैंडर्स सही उम्मीदवार होंगे.
डेमोक्रेटिक पार्टी के वोटर अप्रवासियों के लिए मुफ़्त स्वास्थ्य सेवा के ख़िलाफ़ हैं. वो अमेरिका के इमिग्रेशन ऐंड कस्टम्स एनफ़ोर्समेंट को हटाने के समर्थक नहीं हैं. साथ ही वो अमेरिकी सीमा में अवैध रूप से प्रवेश को आपराधिक दायरे से हटाने के भी विरुद्ध हैं. जबकि बर्नी सैंडर्स के समर्थक इन सबके पक्ष में हैं
जिस तरह डेमोक्रेटिक पार्टी पर क़ाबिज़ पूर्व राष्ट्रपतियों, राष्ट्रपति पद की रेस में शामिल रहे नेताओं, दानदाताओं, पुराने रणनीतिकारों के साथ साथ अमेरिकी सीनेट और हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स के सदस्यों ने एकजुट होकर बर्नी सैंडर्स के ख़िलाफ़ एक अदृश्य दीवार खड़ी कर दी, वो एक राजनीतिक थ्रिलर फ़िल्म का अच्छ प्लॉट है. उनका तर्क था कि बर्नी सैंडर्स के पक्ष में जो माहौल बन रहा है, उसे रोकना होगा क्योंकि अगर बर्नी, डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बन गए, तो अमेरिकी संसद के निचले सदन में पार्टी का बहुमत हाथ से निकल जाएगा. और उनकी सीनेट के भीतर बहुमत हासिल करने की उम्मीदें भी ख़त्म हो जाएंगी.
डेमोक्रेटिक पार्टी ने 2018 में ट्रंप विरोधी लहर पर सवार होकर हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स में बहुमत हासिल किया था. लेकिन, पार्टी की ये जीत पुराने, कॉलेज में पढ़े, सामाजिक तौर पर रूढ़िवादी समर्थकों के कंधे पर सवार होकर मिली थी. डेमोक्रेटिक पार्टी के ये वो समर्थक हैं, जो न तो अमेरिका के पूर्वी तट पर रहते हैं और न ही पश्चिमी तट पर. बल्कि वो अमेरिका के मध्य में उपनगरीय इलाक़ों में ट्रंप समर्थकों के बीच में रहते हैं. पार्टी के पुराने नेताओं को डर था कि अगर डेमोक्रेटिक पार्टी, क्रांति की बात करती है, तो कहीं ये समर्थक उसके पाले से खिसक कर कहीं दोबारा रिपब्लिकन पार्टी के पाले में न चले जाएं.
दूसरे शब्दों में कहें तो, डेमोक्रेटिक पार्टी के पुरोधा, बर्नी सैंडर्स को बेहद जोखिम भरे प्रत्याशी के तौर पर देख रहे थे. कई मुद्दों, ख़ास तौर से अप्रवासियों के मसले पर पर उनका एजेंडा कुछ ज़्यादा ही वामपंथी झुकाव वाला मालूम हो रहा था. तमाम सर्वे से पता चलता है कि डेमोक्रेटिक पार्टी के वोटर अप्रवासियों के लिए मुफ़्त स्वास्थ्य सेवा के ख़िलाफ़ हैं. वो अमेरिका के इमिग्रेशन ऐंड कस्टम्स एनफ़ोर्समेंट को हटाने के समर्थक नहीं हैं. साथ ही वो अमेरिकी सीमा में अवैध रूप से प्रवेश को आपराधिक दायरे से हटाने के भी विरुद्ध हैं. जबकि बर्नी सैंडर्स के समर्थक इन सबके पक्ष में हैं.
सुपर ट्यूज़डे प्राइमरी को 14 राज्यों, जिनमें कैलिफ़ोर्निया और टेक्सस जैसे बड़े राज्य भी शामिल थे, के प्रतिनिधियों के वोट दांव पर लगे थे. उससे पहले दो प्रतिद्वंदी प्रत्याशियों पीट बटीगीग और एमी क्लोबूचर ने ख़ुद को नामांकन की दौड़ से अलग कर लिया और जो बिडेन का समर्थन करने की घोषणा कर दी. इन दोनों प्रत्याशियों के रेस से अलग होने की टाइमिंग बेहद सटीक थी. क्योंकि इससे मुक़ाबला सैंडर्स, वॉरेन और बिडेन के बीच सिमट गया और इनके बीच का फ़ासला भी बेहद कम रह गया.
माइकल ब्लूमबर्ग जिनके आलीशान प्रचार अभियान से उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ, सिवाए इसके कि उन्होंने टेलिविज़न पर प्रचार में 50 करोड़ डॉलर ख़र्च किया. ब्लूमबर्ग ने भी सुपर ट्यूज़डे के बाद अपना नाम रेस से अलग कर लिया. ब्लूमबर्ग ने भी अपना समर्थन और संसाधन जो बिडेन को देने की घोषणा कर दी. इन सबका मतलब ये था कि डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं का ये मानना था कि डोनाल्ड ट्रंप को व्हाइट हाउस से बाहर करने या राष्ट्रपति पद के चुनाव में हराने के लिए जो बिडेन ही सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार हैं. चुनाव के इस दौर का यही सबसे अहम प्रेरक तत्व है. डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए शायद 2020 के चुनाव में अन्य कोई बात मायने नहीं रखती.
इस बार जो बिडेन के हक़ में सबसे ज़्यादा जा रही है वो है कि उनके साथ अफ्रीकी मूल के अमेरिकी नागरिकों का पूरा समुदाय है. इसके अलावा मध्यमार्गी डेमोक्रेटिक वोटर भी बिडेन के साथ हैं. ये डेमोक्रेटिक पार्टी के वो वोटर हैं, जिनके बिना डेमोक्रेटिक पार्टी का कोई भी प्रत्याशी, राष्ट्रपति का चुनाव नहीं जीत सकता
कई नीतिगत मसलों पर जो बिडेन का जो रिकॉर्ड रहा है, वो बड़ी चिंता का विषय नहीं है. उन्होंने स्वास्थ्य सेवाओं और सामाजिक सुरक्षा के बजट में कटौती की वक़ालत की है. उन्होंने इराक़ युद्ध के समर्थन में वोट दिया था. और उप राष्ट्रपति के तौर पर बराक ओबामा को अफ़ग़ानिस्तान से निकलने की सलाह दी थी. जबकि ओबामा के अन्य सलाहकार इसके ख़िलाफ़ थे. इनमें पेंटागन के जनरल भी शामिल थे.
इस बार जो बिडेन के हक़ में सबसे ज़्यादा जा रही है वो है कि उनके साथ अफ्रीकी मूल के अमेरिकी नागरिकों का पूरा समुदाय है. इसके अलावा मध्यमार्गी डेमोक्रेटिक वोटर भी बिडेन के साथ हैं. ये डेमोक्रेटिक पार्टी के वो वोटर हैं, जिनके बिना डेमोक्रेटिक पार्टी का कोई भी प्रत्याशी, राष्ट्रपति का चुनाव नहीं जीत सकता. इसके अतिरिक्त, जो बिडेन के साथ पार्टी के संगठन का समर्थन होगा. अमेरिकी कांग्रेस के डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता होंगे और वो लोग भी होंगे, जो बर्नी सैंडर्स के क्रांतिकारी विचारों के समर्थक नहीं हैं.
वहीं, दूसरी तरफ़ बर्नी सैंडर्स, अफ्रीकी मूल के अमेरिकी वोटरों से जुड़ने में संघर्षरत रहे हैं. हालांकि वो उन मुद्दों पर बात करते हैं, जो इस समुदाय और इसकी जेब से संबंधित हैं. सैंडर्स का अभियान महिला मतदाताओं को लुभाने में भी संघर्ष करता रहा है. क्योंकि ये धारणा आम है कि सैंडर्स के समर्थक दादागीरी करते हैं और लैंगिक भेदभाव करते हैं. विदेश नीति के नज़रिए से देखें तो, जो बिडेन ज़्यादा प्रत्याशित उम्मीदवार होंगे. और वो एशिया में शक्ति संतुलन बनाए रखने के समर्थक होंगे. इसका मतलब ये होगा कि ट्रंप की हिंद-प्रशांत क्षेत्र की नीति पर बिडेन के राष्ट्रपति बनने की सूरत में भी अमल जारी रहेगा. ये भले हो सकता है कि इसका नाम बदल जाए और इसके चीन विरोधी तेवर थोड़े नर्म पड़ जाएं.
वहीं, बर्नी सैंडर्स की विदेश नीति मूल्यों पर अधिक आधारित होगी. जिसका मतलब है कि वो मानवाधिकारों पर ज़्यादा ज़ोर देंगे. सैंडर्स पहले ही कई भारत विरोधी बयान दे चुके हैं. हाल ही में उन्होंने दिल्ली दंगों पर भी बयान दिया था. सैंडर्स और उनके सलाहकार रक्षा बजट में कटौती और तमाम देशों में तैनात अमेरिकी सेनाओं की संख्या में कटौती के भी पक्षधर रहे हैं. इससे ये संकेत मिलता है कि सैंडर्स के राष्ट्रपति बनने की स्थिति में अमेरिका, दुनिया में अपने फैलाव को घटाएगा. ये एक ऐसा विचार है, जिससे रिपब्लिकन पार्टी के साथ-साथ डेमोक्रेटिक पार्टी में भी बहुत से समर्थक हैं. हालांकि अभी ये स्पष्ट नहीं है कि एक प्रगतिशील अमेरिकी विदेश नीति का अर्थ क्या होगा. इसका रूप रंग क्या होगा.
हालांकि, अगर अमेरिका पारंपरिक विदेश नीति पर अमल जारी रखता है, तो इससे अमेरिका के वो सहयोगी शांत होंगे, जिन्हें तीन साल से ट्रंप ने अपनी नीतियों और बयानों से हिला रखा है. लेकिन, इसका भारत जैसे देशों के लिए क्या अर्थ होगा कहा नहीं जा सकता. क्योंकि वो तो ट्रंप की उठा-पटक वाली नीति में अपने लिए एक अवसर देख रहे थे.
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Seema Sirohi is a columnist based in Washington DC. She writes on US foreign policy in relation to South Asia. Seema has worked with several ...
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