Published on Nov 22, 2017 Updated 0 Hours ago

ज्यादातर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) सेवा क्षेत्र में और फि‍र उसके बाद फार्मास्यूटिकल्स, बुनियादी ढांचागत एवं विनिर्माण क्षेत्रों में जा रहा है। विदेशी निवेशक त्वरित एवं लाभप्रद रिटर्न में दिलचस्‍पी रखते हैं। वे हाल के वर्षों में हासिल ऊंची जीडीपी वृद्धि दर को ध्‍यान में रखते हुए ही भारत आ रहे हैं। 

भारत में ‘रोजगार सृजक’ एफडीआई का प्रवाह नहीं!

बांद्रा-वर्ली सी लिंक, मुंबई

स्रोत: पीटीआई

भारत एक ही छलांग में विश्‍व बैंक के ‘कारोबार संबंधी सुगमता’ सूचकांक में 30 पायदान ऊपर चढ़ने में कामयाब हो गया है, जो निश्चित तौर पर महज एक साल में किसी भी देश द्वारा हासिल की गई एक बड़ी उपलब्धि है। इससे यह बात साबित होती है कि विश्व बैंक अवश्‍य ही आर्थिक सुधारों को लागू करने के मामले में मोदी सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड से काफी प्रभावित रहा होगा। यह निश्चित रूप से सराहनीय बात है कि इस सूचकांक में शामिल कई संकेतकों के मामले में भारत ने काफी तेजी से प्रगति की है। हालांकि, इस दिशा में अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। दरअसल, विश्व बैंक के मानकों के अनुसार सभी क्षेत्रों (सेक्‍टर) को खोलने की प्रक्रि‍या में तेजी लाने की आवश्‍यकता है।

विश्व बैंक का सूचकांक भारत के प्रति सभी विकसित देशों की राय को प्रतिबिंबित करता है। यही नहीं, विश्व बैंक की नीतिगत रूपरेखा पर अमेरिका का वर्चस्व रहा है। जहां तक विश्व बैंक की रेटिंग और सुझावों का सवाल है, उस संदर्भ में उसकी नीति व्यापार एवं निवेश के समस्‍त नियमों को कम करने की नव उदारवादी विचारधारा द्वारा निर्देशित होती है। अमेरिका चाहता है कि उसके द्वारा भारत को किए जाने वाले कृषि निर्यात पर अपेक्षाकृत कम नियम-कायदे थोपे जाएं और यही दिली इच्‍छा यूरोपीय संघ की भी है। यदि भारत उन विकसित देशों की इच्छाओं का अनुपालन करने के लिए तैयार है जो उसके बाजारों को खोलने पर अपनी निगाहें जमाए हुए हैं, तो वैसी स्थिति में विश्‍व बैंक के ‘कारोबार में सुगमता’ सूचकांक में भारत कई पायदान और ऊपर चढ़ सकता है। हालांकि, सवाल यह उठता है कि क्‍या इससे रोजगार सृजन या लोगों का कहीं ज्‍यादा कल्याण सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी? एक और अहम बात। हमें विकसित देशों द्वारा विशेषकर कृषि उत्पादों या दवाओं के अपने बाजारों को खोलने के बारे में उनसे किसी भी पारस्परिकता या अन्योन्यता की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। उधर, इस आशय की शिकायत निरंतर की जाती है कि भारत में स्वच्छता एवं साफ-सफाई और यहां तक कि पैकेजिंग के मानक भी पर्याप्त रूप से श्रेष्‍ठ नहीं हैं तथा इसके साथ ही ये विकसित देशों के मानदंडों के अनुरूप नहीं हैं। फार्मास्यूटिकल्स या दवाओं के मामले में शिकायत वैश्विक मानदंडों का अनुपालन न किए जाने को लेकर की जाती रही है। पश्चिमी देशों के विदेशी निवेशकों के लिए भारत में कॉपीराइट का उल्लंघन और बौद्धिक संपदा अधिकारों से जुड़े अन्य मुद्दे भारी चिंता का विषय हैं।

एक इंडेक्‍स के रूप में ‘कारोबार में सुगमता’ सूचकांक अत्‍यंत त्रुटिपूर्ण है क्‍योंकि यह भारत के मामले में विशेषकर सामाजिक क्षेत्र से जुड़े अपेक्षाकृत ज्‍यादा गंभीर मुद्दों को प्रतिबिंबित नहीं करता है। खासकर जब गरीबों के लिए विभिन्‍न सेवाओं की बात आती है तो सूचकांक में इस बात की भी अनदेखी कर दी जाती है कि क्‍या भारत उनका कल्याण सुनिश्चित करने के मोर्चे पर आगे बढ़ रहा है? इतना ही नहीं, सूचकांक में इस बात को भी नजरअंदाज कर दिया जाता है कि महिला-पुरुष समानता के मोर्चे पर आखिरकार कोई प्रगति हुई है या नहीं। दुनिया भर में पांच साल से कम उम्र के सर्वाधिक कुपोषित बच्‍चे भारत में ही हैं। बड़ी संख्‍या में बच्चों का शारीरिक विकास थम जाने एवं उनके ‘बेहद कमजोर रहने’ की समस्‍या भी बढ़ती जा रही है। ध्‍यान रहे कि ‘विश्व भूख सूचकांक’ में भारत कई पायदान नीचे आ गया है।


एक इंडेक्‍स के रूप में ‘कारोबार में सुगमता’ सूचकांक अत्‍यंत त्रुटिपूर्ण है क्‍योंकि यह भारत के मामले में विशेषकर सामाजिक क्षेत्र से जुड़े अपेक्षाकृत ज्‍यादा गंभीर मुद्दों को प्रतिबिंबित नहीं करता है। खासकर जब गरीबों के लिए विभिन्‍न सेवाओं की बात आती है तो सूचकांक में इस बात की भी अनदेखी कर दी जाती है कि क्‍या भारत उनका कल्याण सुनिश्चित करने के मोर्चे पर आगे बढ़ रहा है? सूचकांक में इस बात को भी नजरअंदाज कर दिया जाता है कि महिला-पुरुष समानता के मोर्चे पर आखिरकार कोई प्रगति हुई है या नहीं।


ऐसा आखिरकार क्‍यों होता है कि इन महत्वपूर्ण संकेतकों एवं चेतावनी भरे संकेतों पर तो सरकार द्वारा पर्दा डाल दिया जाता है, वहीं दूसरी ओर सरकार ‘कारोबार में सुगमता’ सूचकांक में भारत के कई पायदान ऊपर चढ़ जाने की बात की शेखी बघार रही है। उधर, भारत भी अब वायु और जल प्रदूषण के संबंध में सर्वाधिक प्रदूषित देशों में से एक हो गया है। भारत में स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में गंभीर समस्‍याओं का सामना करना पड़ता है और यहां के अस्पतालों में प्रति हजार आबादी के हिसाब से पर्याप्त बिस्तर भी नहीं हैं। इसी प्रकार, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त डॉक्टर भी नहीं हैं। स्वच्छता एवं जल निकासी की व्‍यवस्‍था बदहाल है और हर बार मूसलाधार बारिश होने पर चेन्नई, कोलकाता, मुंबई एवं दिल्ली जैसे महानगरों में बाढ़ जैसे हालात उत्‍पन्‍न हो जाते हैं तथा चारों ओर जलभराव नजर आने लगता है।

इससे साफ जाहिर है कि संभावित विदेशी निवेशक जब भारत आएंगे तो उन्‍हें यहां के कारोबारी माहौल के इन पहलुओं को नजरअंदाज करना होगा। इसके अलावा, जिस तरह का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) यहां आ रहा है, उस पर बड़ी बारीकी से गौर किया जाना चाहिए क्योंकि यह उस तरह का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नहीं भी हो सकता है जो नए उद्यमों की स्‍थापना सुनिश्चित करता है और जिनमें स्थानीय लोगों को रोजगार दिया जाता है। उल्‍लेखनीय है कि इसी तरह के ‘फायदेमंद’ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को अतीत में प्रोत्साहित किया गया था क्योंकि इसने देश में प्रौद्योगिकी एवं संबंधित तकनीकी जानकारी का हस्तांतरण सुनिश्चित किया था। इस तरह का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त करने वाला देश निवेशकों द्वारा अपने साथ लाई गई विदेशी मुद्रा से लाभान्वित हुआ था और उसकी बदौलत भुगतान संतुलन की स्थिति बेहतर हो गई थी।


जिस तरह का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) यहां आ रहा है, उस पर बड़ी बारीकी से गौर किया जाना चाहिए क्योंकि यह उस तरह का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नहीं भी हो सकता है जो नए उद्यमों की स्‍थापना सुनिश्चित करता है और जिनमें स्थानीय लोगों को रोजगार दिया जाता है।


हालांकि, वर्तमान में एफडीआई का प्रवाह स्‍पष्‍ट रूप से कुछ अलग किस्‍म का है। हाल ही में एफडीआई का जो प्रवाह देश में हुआ है वह वस्‍तुओं एवं सेवाओं के जाने-माने वैश्विक उत्‍पादकों की ओर से नहीं, बल्कि मुख्‍यत: प्राइवेट इक्विटी (पीई) फंडों की ओर से हुआ है। वर्ष 2014-15 के दौरान देश में विदेशी निवेश की कुल आवक में प्राइवेट इक्विटी फंडों जैसे कि कनाडा पेंशन प्‍लान इन्‍वेस्‍टमेंट बोर्ड का योगदान 60 फीसदी रहा और यह कंज्‍यूमर रिटेल क्षेत्र के उन दिग्‍गजों जैसे कि स्‍नैपडील, पेटीएम एवं फ्लि‍पकार्ट (ई-कॉमर्स) के खाते में गया जो अपने परिचालनों के लिए आयात पर काफी अधिक निर्भर रहते हैं। आज, अमेजन भारत में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए 5 अरब डॉलर की पूंजी के साथ यहां आने का इंतजार कर रही है। हालांकि, इस तरह के मामलों में रोजगार सृजन में एफडीआई के लाभ सीमित होते हैं और इनके जरिए न तो नई प्रौद्योगिकी लाना अपरिहार्य होता है और न ही नई पूंजी का निर्माण संभव हो पाता है।

ज्यादातर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) सेवा क्षेत्र में और फि‍र उसके बाद फार्मास्यूटिकल्स, बुनियादी ढांचागत एवं विनिर्माण क्षेत्रों में जा रहा है। बेशक, विदेशी निवेशक त्वरित एवं लाभप्रद रिटर्न में दिलचस्‍पी रखते हैं। वे हाल के वर्षों में हासिल ऊंची जीडीपी वृद्धि दर को ध्‍यान में रखते हुए ही भारत आ रहे हैं। ऊंची जीडीपी वृद्धि दर को बनाए रखना भी सरकार के लिए चिंता का विषय है और इसके साथ ही रोजगार सृजन को लेकर भी भारी चिंता है। मुख्य रूप से सेवा और ई-कॉमर्स क्षेत्र में एफडीआई को आकर्षित करने से निवेशकों को तो त्वरित मुनाफा हो सकता है, लेकिन यह अपने साथ लोगों के लिए ज्यादा रोजगार अवसर नहीं लाएगा। अत: सरकार को ‘मेक इन इंडिया’ पहल के लिए एफडीआई आकर्षित करने पर अपना ध्‍यान केंद्रित करना चाहिए। हालांकि, यह आसान न होगा।

भारत में एफडीआई बेहद केंद्रित है और वर्ष 2016-17 के दौरान भारत में एफडीआई का सबसे बड़ा स्रोत मॉरीशस रहा है। इसके बाद सिंगापुर अगला सबसे बड़ा स्रोत है और आपस में मिलाकर इन दोनों का कुल पूंजी प्रवाह में 50 प्रतिशत योगदान है। वर्ष 2016-17 में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 9 प्रतिशत बढ़कर 43.5 अरब डॉलर के स्‍तर पर पहुंच गया। मॉरीशस के जरिए एफडीआई का आगमन कुछ और नहीं, बल्कि ‘भारतीय निवेश की ही चालाकीपूर्ण स्‍वदेश वापसी’ है। यह दरअसल भारतीयों द्वारा ही किया गया निवेश है जिसे पहले मॉरीशस भेजा जाता है और वही रकम आगे चलकर एफडीआई के रूप में वापस आ जाती है। दरअसल, दोहरा कर निवारण संधि से लाभ उठाने के उद्देश्‍य से ही इस तरह की रकम को मॉरीशस भेजा जाता है जिसका अर्थ यही है कि यह मौजूदा उद्यमों में ही ‘ब्राउन फील्ड निवेश’ के रूप में रहती है। इस संधि में संशोधन कर तो दिया गया है, लेकिन यह वर्ष 2019 से ही अमल में आ पाएगा। एफडीआई के पसंदीदा गंतव्‍य मुंबई, नई दिल्ली और चेन्नई हैं। हालांकि, शेष भारत शायद ही कोई खास एफडीआई आकर्षित कर पाता है, जबकि बड़ी संख्‍या में बेरोजगार युवा यहीं तो रहते है


‘कारोबार संबंधी सुगमता’ की रिपोर्ट में केवल मुंबई और दिल्ली का ही उल्‍लेख किया जाता है, अत: इस वजह से यह निवेशकों के समक्ष देश की पूरी तस्वीर पेश नहीं कर पा रही है।


इतना ही नहीं, ‘कारोबार संबंधी सुगमता’ की रिपोर्ट में केवल मुंबई और दिल्ली का ही उल्‍लेख किया जाता है, अत: इस वजह से यह निवेशकों के समक्ष देश की पूरी तस्वीर पेश नहीं कर पा रही है। अन्य राज्यों के संभावित कामगारों का कौशल बढ़ाने के लिए उन्‍हें प्रशिक्षि‍त करने की आवश्यकता है, तभी वे एक ऐसे अनुशासित एवं भरोसेमंद श्रम बल का रूप ले सकते हैं जो उद्योग जगत की रीढ़ होता है। यह निश्चित तौर पर अत्‍यंत जरूरी है कि एफडीआई अन्‍य राज्‍यों के खाते में भी जाए और इसके साथ ही सरकार द्वारा ‘कारोबार में सुगमता’ हेतु लागू किए गए सुधारों को सभी राज्‍यों में कार्यान्वित किया जाना चाहिए। भारत यदि अन्य देशों से एफडीआई प्राप्त करने के साथ-साथ अपने बुनियादी ढांचे एवं औद्योगिक आधार का निर्माण करने को भी इच्‍छुक है, तो उसे इस सूचकांक में अब तक कवर नहीं किए गए कारकों (फैक्‍टर) पर भी अवश्‍य ही अत्‍यधिक ध्यान देना चाहिए। सरकार को यह निर्णय लेना होगा कि वह किस तरह का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश चाहती है और उस एफडीआई का गंतव्‍य या स्‍थान कहां होना चाहिए। केवल तभी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश देश में आर्थिक विकास की रफ्तार बढ़ाने संबंधी अपनी भूमिका निबाह पाएगा और फि‍र उसकी बदौलत लोगों के लिए रोजगार सृजित होंगे।

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