Published on Mar 30, 2020 Updated 0 Hours ago

तुर्की और रूस के आपस में बड़े मज़बूत आर्थिक संबंध और अमेरिका का विरोध ये सुनिश्चित करते हैं असद और अर्दोआन सीधे-सीधे आपस में युद्ध न करें. लेकिन, युद्ध न होने का ये अर्थ नहीं है कि इदलिब में शांति स्थापित हो जाएगी.

इदलिब को कोई नहीं जीत सकता

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप अर्दोआन ने उत्तरी पश्चिमी सीरिया में शांति स्थापना के लिए बड़ी तीव्रता से एक शांति समझौता किया. ताकि, उत्तरी पश्चिमी सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद के हवाई हमलों से भाग रहे लगभग 35 लाख सीरियाई नागरिकों को भयंकर ठंड में थोड़ी राहत मिलेगी. क्योंकि इतनी ठंड में भी सीरिया की सेनाओं ने उत्तरी-पश्चिमी इलाक़े में बम बरसाने का सिलसिला जारी रखा है. सीरियाई अरब सेना ने भी दिसंबर से अपना अभियान दोबारा तेज़ कर दिया था. जिसकी वजह से अपने ही देश में विस्थापित लगभग दस लाख सीरियाइयों को फिर से अपना ठिकाना छोड़कर भागने को मजबूर होना पड़ा. इससे अभूतपूर्व मानवीय संकट खड़ा हो गया था.

पिछले दो महीनों में सीरिया की सरकार ने जिहादियों के नेतृत्व वाले विद्रोहियों यानी हयात तहरीर अल-शाम के विरुद्ध महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की थी. सीरिया की सेना ने अपनी सप्लाई लाइन सुरक्षित करने के लिए एम-4 और एम-5  हाइवे पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था. हयात तहरीर अल-शाम के पहले अल-क़ायदा से संबंध थे. इसी के लड़कों का सीरिया के इदलिब शहर पर नियंत्रण है. तुर्की, कभी-कभार इस आतंकवादी संगठन का समर्थन करता रहा है. 2018 में रूस के सोची शहर में ईरान, तुर्की और रूस के बीच हुए समझौते के अंतर्गत तुर्की इस संगठन के प्रभाव को सीमित करने के लिए ही इसका समर्थन करता है.

तुर्की की प्रमुख चिंता ये थी कि वो किसी न किसी तरह सीरिया से शरणार्थियों की बाढ़ अपनी सीमा में प्रवेश करने से रोके. तुर्की में पहले से ही लगभग 30 लाख सीरियाई नागरिक शरण लिए हुए हैं. 2011 में सीरिया में युद्ध शुरू होने के बाद किसी भी देश में शरणार्थियों की ये सबसे अधिक संख्या है

लेकिन, सीरिया की सेना की इस बढ़त को तुर्की की सेना ने रोक दिया. क्योंकि वो एक हवाई हमले में तुर्की के 35 सैनिकों के मारे जाने का बदला लेने पर आमादा थे. इस हवाई हमले में तुर्की के कुल 60 सैनिक मारे गए थे. तुर्की ने दावा किया था कि उसने सीरिया के सैकड़ों सैनिकों को मारकर इस हवाई हमले का बदला लिया है. और हालांकि, हवाई हमले में सैनिकों की मौत से तुर्की को इस बात का अवसर मिल गया था कि वो असद की सेना पर सैन्य पलटवार करे. लेकिन, तुर्की की प्रमुख चिंता ये थी कि वो किसी न किसी तरह सीरिया से शरणार्थियों की बाढ़ अपनी सीमा में प्रवेश करने से रोके. तुर्की में पहले से ही लगभग 30 लाख सीरियाई नागरिक शरण लिए हुए हैं. 2011 में सीरिया में युद्ध शुरू होने के बाद किसी भी देश में शरणार्थियों की ये सबसे अधिक संख्या है.

हालांकि, तुर्की ने इस पलटवार को अपनी जीत के तौर पर प्रस्तुत किया है. क्योंकि उसने सीरिया की सेना और ईरान के समर्थन वाले लड़ाकों को आगे बढ़ने और इदलिब पर नियंत्रण स्थापित करने से रोक दिया. लेकिन, बशर अल-असद की सेना धीरे-धीरे ही सही लेकिन, लगातार ज़्यादा से ज़्यादा क्षेत्र पर अपना नियंत्रण दोबारा स्थापित करती जा रही है. विद्रोहियों के नियंत्रण वाले क्षेत्रों की घेरेबंदी और बमबारी करके उन्हें अपने गढ़ से बाहर निकलने को बाध्य करने के बाद उन्हें युद्ध की स्थिति से पीछे हटने के समझौते पर हस्ताक्षर के लिए मजबूर करने की रणनीति पहले ही असद सरकार के अधिकतर विरोधियों को अलग-थलग कर चुकी है. ये इदलिब की आख़िरी मंज़िल तक पहुंचने की ओर भी तेज़ी से बढ़ रही थी. युद्ध के इस आख़िरी चरण में, रूस की वायु शक्ति और ईरान के ज़मीनी सैनिकों की मदद से सीरिया की सरकार, गंवा चुके इलाक़ों पर एक के बाद एक दोबारा अपना नियंत्रण स्थापित कर रही थी. रूस और तुर्की के बीच हुआ युद्ध विराम का समझौता सिर्फ़ गोलीबारी रोकने का है, न कि जीती हुई ज़मीन विद्रोहियों को वापस करने का. और इसमें इस बात के लिए भी पर्याप्त गुंजाईश है कि रूस और असद की सेना हयात तहरीर अल-शाम के जिहादियों को निशाना बनाते रहें. इदलिब को जीतना एक असंभव सा लक्ष्य बना हुआ है. फिर चाहे वो बशर अल-असद के लिए हो. अथवा तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन के लिए. ऐसे में रूस की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है. क्योंकि वो तुर्की और सीरिया, दोनों का सहयोगी देश है.

रूस, एक सीमा के आगे जाकर तुर्की को नाराज़ करने में दिलचस्पी नहीं रखता है. क्योंकि वो तुर्की को अपने एक नए सहयोगी के तौर पर तैयार कर रहा है

बशर अल-असद कई बार ये बात दोहरा चुके हैं कि वो पूरे सीरिया पर अपना नियंत्रण दोबारा स्थापित करना चाहते हैं. और, हालांकि असद, अपने देश के एक बड़े हिस्से पर दोबारा नियंत्रण स्थापित करने में सफल रहे हैं, फिर भले ही वो चाहे ताक़त के बेज़ा इस्तेमाल से ही क्यों न हो. लेकिन, अगर वो इदलिब पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए सेना को और आगे बढ़ने का आदेश देते हैं, तो ये बहुत बड़ा जोख़िम होगा. पहली बात तो ये है कि सीरिया की सेना-यहां तक कि ईरान के लड़ाके, जिनमें युद्धों का तजुर्बेकार हिज़्बुल्लाह भी शामिल हैं, वो इतने ताक़तवर नहीं हैं कि बेहद शक्तिशाली तुर्की की सेना का मुक़ाबला कर सकें. नाटो देशों में तुर्की की सेना दूसरे नंबर पर आती है. रूस के सहयोग के बिना ये संभव ही नहीं है. और रूस, एक सीमा के आगे जाकर तुर्की को नाराज़ करने में दिलचस्पी नहीं रखता है. क्योंकि वो तुर्की को अपने एक नए सहयोगी के तौर पर तैयार कर रहा है. पुतिन ने तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन को अमेरिका से दूर करने और त्वरित गति से अपनी तरफ़ करने के लिए बहुत मेहनत की है.तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन ने ये सोचा था कि जिन बाग़ियों का वो समर्थन कर रहे हैं, वो असद सरकार के ख़िलाफ़ युद्ध में जीत हासिल करेंगे. लेकिन, वैसा हुआ नहीं. तुर्की के समर्थन वाले नेशनल लिबरेशन फ़ोर्स (NLF)के विद्रोही, युद्ध में असद की सेना से पराजित हो चुके हैं.एनएलएफ़, सैन्य तौर पर भी कमज़ोर था और उसके लड़ाकों में वैचारिक और राजनीतिक विषयों पर भी मतभेद थे. लेकिन, अर्दोआन ने इन विद्रोहियों पर अपनी राजनीतिक इस्लाम वाली विचारधारा के साथ-साथ बहुत कुछ दांव पर लगाया था और वो इस दांव को खाली जाने देने को बिल्कुल तैयार नहीं थे. अर्दोआन, इदलिब में युद्ध के कारण उत्पन्न मानवीय संकट का उपयोग, अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने के लिए करते हैं. यहां तक कि संघर्ष के दौरान तुर्की ने कई सीरियाई शरणार्थियों को ढोकर यूनान के साथ लगी अपनी सीमा पर पहुंचा दिया था, ताकि वो यूरोप को धमाका सकें कि या तो वो और शरणार्थियों को अपने यहां आने दे या फिर वो असद सरकार के ख़िलाफ़ ज़मीनी लड़ाई में उनका समर्थन करे. हालांकि, तुर्की भी एक सीमा से आगे जाकर रूस को नाराज़ नहीं करना चाहता.

2015 में तुर्की ने रूस के एक विमान को मार गिराया था. जिसके बाद रूस और तुर्की के संबंध बहुत ख़राब हो गए थे. रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने तुरंत ही तुर्की के ऊपर व्यापारिक प्रतिबंध लगा दिया था. जिससे तुर्की को 7 अरब डॉलर की क्षति हुई थी. रूस के प्रतिबंधों से सबसे अधिक नुक़सान तुर्की के टमाटर उगाने वाले किसानों को उठाना पड़ा था. क्योंकि, 2015 में जहां तुर्की 26 करोड़ डॉलर का टमाटर रूस को आयात कर रहा था. जो एक साल के भीतर घट कर 9 लाख डॉलर ही रह गया था. तुर्की के लिए इस भारी क्षति का बोझ उठाना मुश्किल होने लगा था. और इसी कारण ने अर्दोआन ने त्वरित निर्णय लेते हुए रूस से संघर्ष का रास्ता छोड़कर पुतिन की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाया. क्योंकि, कई मसलों पर अर्दोआन की पुतिन पर निर्भरता बढ़ गई थी. दोनों देशों के बीच व्यापारिक और सैन्य समझौते हुए थे. और पुतिन एक ऐसे दोस्त के तौर पर अर्दोआन के साथ खड़े थे, जो अमेरिका से उतनी ही नफ़रत करते हैं, जितनी ख़ुद अर्दोआन करते हैं. अर्दोआन ने 2016 में अपने तख़्तापलट के पीछे अमेरिका का हाथ होने का आरोप लगाया था. जबकि, उस समय अर्दोआन को मदद का प्रस्ताव देने में पुतिन सबसे आगे थे. पुतिन ने कई बार अर्दोआन ने की इज़्ज़त बचाने वाले काम किए हैं. हाल में हुआ युद्ध विराम का समझौता भी इसी कड़ी का सबसे नया हिस्सा है.

असल में रूस, तुर्की को समझौते की टेबल तक लाने का प्रयास कर रहा है. जिस दिन युद्ध विराम की संधि पर हस्ताक्षर हुए, उस दिन सीरिया के राष्ट्रपित असद ने एक रूसी टीवी चैनल के साथ इंटरव्यू में तुर्की के साथ संबंध बेहतर बनाने की इच्छा जताई थी. रूस के दबाव में अदाना समझौते को पुनर्जीवित करने की चर्चाएं तेज़ हो गई हैं. 1998 में हुए पहले अदाना समझौते के अंतर्गत, तुर्की विरोधी कुर्द गुरिल्ला संगठन पीकेके के सीरिया में अपना ठिकाना बनाकर अपनी गतिविधियां चलाने और तुर्की पर हमला करने का अंत हो गया था. तुर्की के साथ बेहतर संबंध और व्यापारिक संधि के बदले में उस वक़्त सीरिया के राष्ट्रपति रहे हाफ़िज़ अल-असद ने पीकेके के विरुद्ध कार्रवाई करते हुए इसके नेता अब्दुल्लाह ओकालान को अपने यहां से निष्कासित कर दिया था. और इससे भी महत्वपूर्ण बात ये कि सीरिया ने तुर्की को इस बात की इजाज़त दे दी थी कि वो कुर्द संगठन पीकेके के लड़ाकों का पीछा करते हुए उन्हें पकड़ने के लिए सीरिया की सीमा के अंदर पांच किलोमीटर तक घुस सकता है. लेकिन, अदाना समझौता तब ख़त्म हो गया था, जब तुर्की ने सीरिया के विद्रोहियों का समर्थन करना शुरू कर दिया था. लेकिन, हाल ही में बशर अलअसद ने प्रस्ताव रखा था कि अगर तुर्की, इदलिब में विद्रोहियों के बजाय उनकी सरकार का समर्थन करे, तो वो तुर्की के साथ उस समझौते को पुनर्जीवित कर सकते हैं.

हाल ही में बशर अल-असद ने प्रस्ताव रखा था कि अगर तुर्की, इदलिब में विद्रोहियों के बजाय उनकी सरकार का समर्थन करे, तो वो तुर्की के साथ उस समझौते को पुनर्जीवित कर सकते हैं

हालांकि, ये कहना मुश्किल है कि तुर्की, इदलिब पर अपने रुख़ में कोई परिवर्तन करेगा. सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद के इस प्रस्ताव के बावजूद, जिसमें पूर्वी सीरिया में अमेरिका की भूमिका की अनदेखी करता है. इस बात की संभावना भी कम ही है कि असद की सेनाएं जिहादी विद्रोहियों के विरुद्ध अपने हमलों में कोई रोक लगाएंगी. और देश के बाक़ी हिस्सों में असद की सरकार के लिए सहयोग जुटाने का काम बंद करेंगी. तुर्की और रूस के आपस में बड़े मज़बूत आर्थिक संबंध और अमेरिका का विरोध ये सुनिश्चित करते हैं असद और अर्दोआन सीधे-सीधे आपस में युद्ध न करें. लेकिन, युद्ध न होने का ये अर्थ नहीं है कि इदलिब में शांति स्थापित हो जाएगी.

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