Author : Rajen Harshé

Published on Dec 09, 2021 Updated 0 Hours ago

नाइजीरिया पर नाकाम देश होने का ख़तरा है क्योंकि वो आतंकवाद, अलगाववादी गतिविधियों, राजनीतिक हिंसा और व्यापक तौर पर फैली बीमारी जैसे कई चुनौतियों का सामना कर रहा है. 

लड़खड़ाती – नाकाम होती विशाल नाइजीरिया की सरकार: मानव सुरक्षा की समस्याओं का पुनर्मूल्यांकन

राष्ट्रपति मुहम्मदु बुहारी ने 27 जनवरी 2021 को बिगड़ती मानव सुरक्षा की स्थिति पर विचार करते हुए सुरक्षा प्रमुखों की अपनी नई टीम को कहा कि नाइजीरिया में ‘आपातकाल की स्थिति’ है. वास्तव में किसी भी सरकार का प्राथमिक उत्तरदायित्व मानव सुरक्षा के साथ-साथ समुदायों को सुरक्षा देना है. सुरक्षा की परंपरागत सोच से हटकर मानव सुरक्षा एक व्यापक धारणा है जिसमें शारीरिक, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, पर्यावरणीय और स्वास्थ्य से जुड़े पहलू शामिल हैं. इस संदर्भ में व्यापक सुरक्षा से जुड़े मुद्दों जैसे कि मानव और ड्रग तस्करी, पाइरेसी, डकैती, सीमा जो कि विदेशी घुसपैठ और हथियारों एवं गोला-बारूद की तस्करी के लिए खुली है, जातीय-धार्मिक और राजनीतिक हिंसा, और अलग-अलग तरह की बीमारियों के फैलाव ने पहले ही नाइजीरिया को भीतर से कमज़ोर कर दिया है.

मई 2021 में जॉन कैंपबेल और रॉबर्ट I रोटबर्ग फॉरेन अफेयर्स मैगज़ीन में नाइजीरिया की राज्य व्यवस्था को लेकर अपने तीखे मूल्यांकन में इस नतीजे पर पहुंचे कि “अफ्रीका का विशाल देश नाकाम हो रहा है.”

मई 2021 में जॉन कैंपबेल और रॉबर्ट I रोटबर्ग फॉरेन अफेयर्स मैगज़ीन में नाइजीरिया की राज्य व्यवस्था को लेकर अपने तीखे मूल्यांकन में इस नतीजे पर पहुंचे कि “अफ्रीका का विशाल देश नाकाम हो रहा है.” 212 मिलियन लोगों के साथ नाइजीरिया अफ्रीका में सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश है. इसके विशाल आकार के अलावा कच्चे तेल की प्रचुर मात्रा, 15 सदस्य वाले क्षेत्रीय संगठन जैसे इकोनॉमिक कम्युनिटी ऑफ वेस्ट अफ्रीका स्टेट्स (ईसीओडब्ल्यूएएस) में ऊंची स्थिति निश्चित रूप से नाइजीरिया को एक विशाल देश बनाते हैं. इसके अलावा कई दूसरे कारण जिनमें उपनिवेश विरोधी और रंगभेद विरोधी संघर्षों, गुटनिरपेक्ष आंदोलन (एनएएम), संघर्ष के समाधान में नाइजीरिया की भूमिका के साथ-साथ ईसीओडब्ल्यूएएस, अफ्रीकी संघ (एयू), और संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के ज़रिए पश्चिमी अफ्रीकी क्षेत्र में शांति स्थापित करने के प्रयासों ने नाइजीरिया को क्षेत्रीय स्थायित्व के लिए एक महत्वपूर्ण देश बना दिया है. इसके अतिरिक्त 1960 में अपनी स्वतंत्रता के समय से अमेरिका के साथ नाइजीरिया के क़रीबी सहयोग, दुनिया भर में नाइजीरिया के दूतावासों की मौजूदगी, और चीन के साथ संबंध बनाने की नाइजीरिया की कोशिशों ने उसका क़द और भी बढ़ाया है. हालांकि अफ्रीका महादेश में नाइजीरिया और दक्षिण अफ्रीका दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं लेकिन मार्च 2020 की एक गणना के मुताबिक़ अफ्रीका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में नाइजीरिया दक्षिण अफ्रीका से आगे है.

लेकिन विशाल देश/क्षेत्रीय शक्ति की इन अभिव्यक्तियों के बावजूद नाइजीरिया की सरकार अपने अलग-अलग लोगों को एकजुट रखकर संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता बनाए रखने में संघर्ष कर रही है. नाइजीरिया के संघ में शामिल 36 इकाइयों के प्रबंधन से लेकर दीर्घ स्तर पर अर्थव्यवस्था की समस्याओं से निपटारे में नेतृत्व को नाइजीरिया की सरकार की रक्षा करने में संघर्ष करना पड़ा है. उदाहरण के लिए 2020 के दौरान कोविड-19 महामारी और तेल उद्योग पर उसके ख़राब असर ने तेल के उत्पादन पर प्रभाव डाला और इसकी वजह से तेल की क़ीमत धाराशयी हो गई जिसका नाइजीरिया की अर्थव्यवस्था पर ख़राब असर पड़ा. जून 2020 में नाइजीरिया की जीडीपी ने 5.4 प्रतिशत की गिरावट देखी जिससे आजीविका और राज्य के वित्त के साथ-साथ अलग-अलग विकास कार्यक्रमों पर असर पड़ा. इसके परिणामस्वरूप ग़रीबी ने नाइजीरिया की लगभग आधी आबादी को घेर लिया है. इससे भी ज़्यादा, नाइजीरिया दुनिया में एचआईवी/एड्स के दूसरे सबसे ज़्यादा मरीज़ों का देश है जो उसके कमज़ोर स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के लिए चुनौती पेश करता है. मौजूदा संकट को देखते हुए नाइजीरिया में सरकार के अस्तित्व को ख़तरे में डालने वाले मूल कारणों, स्वरूप और सुरक्षा के पहलुओं की छानबीन ज़रूरी है.

जून 2020 में नाइजीरिया की जीडीपी ने 5.4 प्रतिशत की गिरावट देखी जिससे आजीविका और राज्य के वित्त के साथ-साथ अलग-अलग विकास कार्यक्रमों पर असर पड़ा. इसके परिणामस्वरूप ग़रीबी ने नाइजीरिया की लगभग आधी आबादी को घेर लिया है.

एक से ज़्यादा मोर्चों पर एक से ज़्यादा चुनौतियां

वास्तव में नाइजीरिया के अस्तित्व पर स्थायी संकट के कई जटिल लेकिन अपरिवर्तनशील कारण हैं. इसकी शुरुआत होती है एक चीज़ पर आधारित अर्थव्यवस्था से. नाइजीरिया सरकारी राजस्व का 70 प्रतिशत हिस्सा और 90 प्रतिशत विदेशी मुद्रा की कमाई कच्चे तेल की बिक्री से हासिल करता है. तेल की क़ीमत में उतार-चढ़ाव उसकी अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन पर गंभीर रूप से असर डालता है. दूसरा कारण 500 अलग-अलग भाषाएं और 250 जातीय समूह हैं जिनमें नाइजीरिया के उत्तरी, पश्चिमी और पूर्वी भाग में क्रमश: हौसा-फुली, योरुबा और इगबो का वर्चस्व है जो कुल आबादी में 60 प्रतिशत हैं. तीसरा कारण दो अलग-अलग धर्मों का होना है. नाइजीरिया की मुस्लिम आबादी, जो कुल आबादी की क़रीब-क़रीब आधी है, देश के उत्तर में रहती है जबकि बाक़ी आधी आबादी ईसाइयों की है जो दक्षिण में रहते हैं. व्यापक रूप से नाइजीरिया में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी रहती है जबकि छठी सबसे बड़ी ईसाई आबादी. इसका निष्कर्ष ये है कि अपनी आबादी की विविधता को एक राष्ट्र या एक प्रभावशाली बहुजातीय राज्य व्यवस्था में बुनकर एकजुट करना नाइजीरिया के लिए एक कठिन काम साबित हुआ है. अभी तक नाइजीरिया एक उपयुक्त शासन प्रणाली के तहत अपनी सामाजिक-मिश्रित आबादी में अलग-अलग जातीय, क्षेत्रीय, धार्मिक और भाषाई विविधताओं को स्थायी संघीय या अर्ध-संघीय व्यवस्था में लाने में नाकाम रहा है. नाइजीरिया की शासन प्रणाली में राजनीतिक स्थिरता की कमी, भ्रष्टाचार और अराजकता ने 1960-1999 के बीच सेना को विद्रोह के ज़रिए कम-से-कम सात बार हस्तक्षेप करने का मौक़ा दिया है. सेना ने लोकतांत्रिक के साथ-साथ ग़ैर-लोकतांत्रित शासन को भी गिराया है. ऊपर बताई गई वास्तविकताओं को देखते हुए ये व्यावहारिक है कि नाइजीरिया में मानव सुरक्षा के ऊपर कुछ बड़े ख़तरों की पहचान की जाए और उन पर प्रकाश डाला जाए. इसकी शुरुआत कट्टरपंथी इस्लाम के जिहादी आतंकवाद से की जाए. बोको हराम जैसे संगठन इसका समर्थन करते हैं जो उत्तर-पूर्वी नाइजीरिया में सक्रिय है. साथ ही इससे अलग समूह जिसका नाम इस्लामिक स्टेट इन वेस्ट अफ्रीका प्रॉविंस (आईएसडब्ल्यूएपी) भी है, जो लेक चाड क्षेत्र में सक्रिय है. ये दोनों संगठन नाइजीरिया की सुरक्षा एजेंसियों के लिए बार-बार चुनौती पेश करते हैं. बोको हराम के सदस्यों को अल-क़ायदा इस्लामिक मग़रेब की ज़मीन पर ट्रेनिंग दे रहा है. अल-क़ायदा के अलावा बोको हराम दूसरे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी नेटवर्क जैसे अल शबाब और इस्लामिक स्टेट (आईएस) से भी जुड़ा हुआ है. बोको हराम फिरौती के लिए स्कूल जाने वाले बच्चों के सामूहिक अपहरण, हथियारों और गोला-बारूद के गुप्त भंडार पर छापा, और फंड की उगाही के लिए खेतों और कृषि उत्पादों पर टैक्स लगाने पर निर्भर करता है. नाइजीरिया के तेज़ी से बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय मछली बाज़ार पर भी बोको हराम का नियंत्रण है.

अभी तक नाइजीरिया एक उपयुक्त शासन प्रणाली के तहत अपनी सामाजिक-मिश्रित आबादी में अलग-अलग जातीय, क्षेत्रीय, धार्मिक और भाषाई विविधताओं को स्थायी संघीय या अर्ध-संघीय व्यवस्था में लाने में नाकाम रहा है.  

बोको हराम की गतिविधियों की वजह से पिछले 10 वर्षों में 38,000 से ज़्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई है और लेक चाड क्षेत्र में, जिसमें नाइजीरिया, नाइजर, कैमरून और चाड शामिल हैं, 3.2 मिलियन लोग विस्थापित हुए हैं जिनमें से 2.9 मिलियन उत्तर-पूर्वी नाइजीरिया से आंतरिक तौर पर विस्थापित व्यक्ति (आईडीपी) हैं. कैमरून, चाड और नाइजर में 6,84,000 से ज़्यादा आंतरिक तौर पर विस्थापित व्यक्ति हैं और इन चार देशों में 3,04,000 शरणार्थी हैं. इस्लामिक स्टेट इन वेस्ट अफ्रीका प्रॉविंस ने 2016 में बोको हराम से अलग होने के बाद अपनी गतिविधियों में बढ़ोतरी कर दी. मई 2021 में बोको हराम के नेता अबुबकर शेकाऊ की मौत के बाद इस्लामिक स्टेट इन वेस्ट अफ्रीका प्रॉविंस अपने आकार और क्षमता की बदौलत कम समय में ही बोको हराम का एक प्रमुख प्रतिद्वंदी बनकर उभरा है. उसकी गतिविधियां पूरे लेक चाड क्षेत्र के लिए एक ख़तरा बन गई हैं. न तो नाइजीरिया की सेना, न ही अफ्रीकी संघ समर्थित मल्टीनेशनल ज्वाइंट टास्क फोर्स (एमएनजेटीएफ), जिसमें नाइजर, बेनिन, चाड, कैमरून और नाइजीरिया शामिल हैं, प्रभावशाली ढंग से आतंकवादी चुनौती से निपटने में सफल रहा है. इसके अलावा अगस्त 2020 में अमेरिकी स्पेशल ऑपरेशन कमांड-अफ्रीका ने बयान दिया कि मिडिल बेल्ट क्षेत्र में भी अल-क़ायदा अपनी दखलंदाज़ी बढ़ा रहा है.

परस्पर विरोधी समूहों के बीच दरार

नाइजीरिया के उत्तर-पूर्वी और उत्तर-पश्चिमी हिस्से से मिलकर बने मिडिल बेल्ट/सेंट्रल ज़ोन में बैठे रहने वाले किसानों और पशु चरवाहों के बीच लगातार संघर्ष होते रहते हैं जिसमें बड़ी संख्या में लोगों की जान का नुक़सान होता है. साथ ही फसलों की बर्बादी, पशुओं को ख़तरा और अंततोगत्वा इलाक़े के पर्यावरण को भी नुक़सान होता है. परस्पर विरोधी समूहों के बीच जातीय और धार्मिक दरार है. उदाहरण के लिए अलग-अलग जातीय समूहों के ईसाई किसान बनाम फुलानी मुस्लिम समूह. उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में 2011 से 2020 के बीच डकैती, जातीय सतर्कता और सांप्रदायिक संघर्षों की वजह से लगभग 8,000 लोगों की मौत हो गई और 2,00,000 लोग विस्थापित हो गए. मिडिल बेल्ट क्षेत्र में भी सुन्नी-शिया तनाव देखा जा रहा है. नाइजीरिया में सुन्नी की अधिक संख्या को देखते हुए ज़कज़की के नेतृत्व में इस्लामिक मूवमेंट ऑफ नाइजीरिया (आईएमएन) भी है जो शियाओं के अधिकार की रक्षा के लिए काम करने वाले ईरान से प्रेरित है. इस तरह मिडिल बेल्ट में जटिल समस्याओं का समाधान सैन्य और राजनीति के कुशल संचालन के द्वारा सिर्फ़ सरकार ही कर सकती है.

बोको हराम जैसे संगठन इसका समर्थन करते हैं जो उत्तर-पूर्वी नाइजीरिया में सक्रिय है. साथ ही इससे अलग समूह जिसका नाम इस्लामिक स्टेट इन वेस्ट अफ्रीका प्रॉविंस (आईएसडब्ल्यूएपी) भी है, जो लेक चाड क्षेत्र में सक्रिय है. ये दोनों संगठन नाइजीरिया की सुरक्षा एजेंसियों के लिए बार-बार चुनौती पेश करते हैं.

मिडिल बेल्ट के विपरीत नाइजर डेल्टा, जो कि नाइजीरिया के कच्चे तेल का भंडार है, पर्यावरणीय विनाश और स्थानीय लोगों के मानवाधिकार के हनन के लिए आघात योग्य है. पश्चिमी देशों की तेल कंपनियां जैसे शेवरॉन, मोबिल, शेल, एल्फ एक्विटेन (वर्तमान में टोटल फिना एल्फ) ने नाइजीरिया की सरकारी कंपनी नाइजीरियन नेशनल पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (एनएनपीसी) के सहयोग से काम किया है. नाइजीरिया में सैन्य तानाशाहों जैसे इब्राहिम बाबनगिदा (1985-93) और सानी अबाचा (1993-98) ने अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के साथ सहयोग किया और इस क्षेत्र में असंतोष को बेरहमी से कुचल दिया. उदाहरण के लिए, मूवमेंट फॉर द सर्वाइवल ऑफ दी ओगोनी पीपुल (एमओएसओपी) नाइजर डेल्टा में ओगोनीलैंड के लोगों के पर्यावरणीय अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण ढंग से लड़ रहा था. लेकिन एमओएसओपी के नेता केन सारो-विवा के साथ उनके सहयोगी प्रदर्शनकारियों को 1995 में नाइजीरिया की सरकार ने मौत के घाट उतार दिया. इसके अलावा 2009-10 के दौरान मूवमेंट फॉर दी इमैनसिपेशन ऑफ नाइजर डेल्टा (एमईएनडी) एक प्रमुख लड़ाका संगठन के रूप में उभरा जो कि नाइजर डेल्टा में पर्यावरणीय दुर्दशा, भ्रष्टाचार, आर्थिक असमानता और इस क्षेत्र में तेल कंपनियों की विस्तारवादी भूमिका को नियंत्रित करने के लिए तेल उत्पादन को पंगु कर देने को लेकर प्रतिबद्ध था. वास्तव में पर्यावरणीय दुर्दशा ने नाइजर डेल्टा में लोगों की आजीविका के संसाधनों को नष्ट कर दिया है. नाइजर डेल्टा में तेल और मानव सुरक्षा की चुनौतियों ने मानव विकास के साथ-साथ शांति को भी खोखला कर दिया है. तेल के रिसाव, तेल की चोरी और तेल के बुनियादी ढांचे पर लगातार हमलों, जिनमें 2016 के बाद लड़ाकों के द्वारा पाइपलाइन पर हमले शामिल हैं, ने पूरे क्षेत्र को तनाव से भर दिया है. तनाव को और बढ़ाते हुए बोको हराम और इस्लामिक स्टेट इन वेस्ट अफ्रीका प्रॉविंस के आतंकवादी इस क्षेत्र में हथियारों के जखीरे को लूटने में शामिल हैं और सुरक्षा बलों ने 2019 के बाद आतंकवाद विरोधी अभियान की कोशिश के तहत क़ानून को लांघकर हत्याएं की हैं. इसकी वजह से सैकड़ों नागरिकों की हत्या हुई है.

मिडिल बेल्ट क्षेत्र में भी सुन्नी-शिया तनाव देखा जा रहा है. नाइजीरिया में सुन्नी की अधिक संख्या को देखते हुए ज़कज़की के नेतृत्व में इस्लामिक मूवमेंट ऑफ नाइजीरिया (आईएमएन) भी है जो शियाओं के अधिकार की रक्षा के लिए काम करने वाले ईरान से प्रेरित है. 

नाइजीरिया की संप्रभुता को कमज़ोर करने की कोशिश

ज़ाहिर है कि अलगाववादी आंदोलनों ने नाइजीरिया की राज्य व्यवस्था की संप्रभुता को कमज़ोर करने की लगातार कोशिश की है. इसके परिणामस्वरूप नाइजीरिया ने 1967-70 के बीच बियाफ्रा गृह युद्ध को झेला है जहां उसके तेल से समृद्ध दक्षिणी-पश्चिमी हिस्से, जिसमें इगबोस आबादी रहती है, ने नाइजीरिया से अलग होने के लिए संघर्ष किया. सेना ने बेरहमी से अलगाववादी आंदोलन को कुचल दिया और 1 मिलियन लोगों ने अपनी जान गंवाई. लेकिन छोटे समय तक अस्तित्व में रहे बियाफ्रा गणराज्य (1967-1970) को आइवरी कोस्ट, गैबॉन, तंज़ानिया और ज़ांबिया जैसे देशों ने मान्यता दी. इसके बाद इगबोस ने बार-बार नाइजीरिया के संघ से अलग होने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली. वकील राल्फ उवाज़ुरुइके के नेतृत्व में मूवमेंट फॉर दी एक्चुअलाइज़ेशन ऑफ द सॉवरेन स्टेट ऑफ बियाफ्रा, जिसकी स्थापना 1999 में की गई थी, इसका स्पष्ट उदाहरण है. 2005 में मूवमेंट पर पाबंदी लगा दी गई और इसके नेताओं को देशद्रोह के आरोप में जेल में बंद कर दिया गया. वर्तमान में नामदी कानु के नेतृत्व में इंडिजेनस पीपुल ऑफ बियाफ्रा (आईपीबी) 2012 से बियाफ्रा को अलग करने के लिए लगातार लड़ रहा है. 2017 में नाइजीरिया की सरकार ने इसे आतंकवादी समूह घोषित करते हुए इस पर प्रतिबंध लगा दिया. आईपीबी से पहले बियाफ्रा ज़ियोनिस्ट मूवमेंट और वॉइस ऑफ बियाफ्रा इंटरनेशनल हैं. वॉइस ऑफ बियाफ्रा इंटरनेशनल एक रेडियो स्टेशन है जिसका संचालन और फंडिंग विदेश में रहने वाले इगबो करते हैं. इसके अलावा दक्षिण-पश्चिम और दक्षिण-पूर्व क्षेत्रों में रहने वाले योरुबा और इगबो लोगों के द्वारा क्रमश: ओदुदुआ गणराज्य और बियाफ्रा गणराज्य की स्थापना करने के लिए स्वयं-निर्धारण की मांग भी लगातार तेज़ हो रही है.

 अलगाववादी आंदोलनों ने नाइजीरिया की राज्य व्यवस्था की संप्रभुता को कमज़ोर करने की लगातार कोशिश की है. इसके परिणामस्वरूप नाइजीरिया ने 1967-70 के बीच बियाफ्रा गृह युद्ध को झेला है जहां उसके तेल से समृद्ध दक्षिणी-पश्चिमी हिस्से, जिसमें इगबोस आबादी रहती है, ने नाइजीरिया से अलग होने के लिए संघर्ष किया.

निष्कर्ष

निष्कर्ष ये है कि नाइजीरिया की सरकार जिहादी आतंकवाद, किसानों और चरवाहों के बीच संघर्ष से उठने वाली समस्याओं, नाइजर डेल्टा में अशांति और अलगाववादी आंदोलनों का मुक़ाबला करने के लिए मजबूर है. भ्रष्टाचार से ग्रस्त कमज़ोर संस्थानों, लुढ़कती अर्थव्यवस्था और कमज़ोर इंफ्रास्ट्रक्चर की वजह से इस तरह की समस्याओं से निपटना एक मुश्किल चुनौती की तरह लगता है. इन परिस्थितियों के तहत क्या राष्ट्रपति बुहारी अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान, जो 2023 में ख़त्म हो रहा है, नाइजीरिया की लड़खड़ाती ‘विशाल सरकार’ में इन एक से ज़्यादा मानव सुरक्षा की चुनौतियों से निपट पाने में सक्षम हो पाते हैं या नहीं, ये देखा जाना अभी बाक़ी है!

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