Author : Satish Misra

Published on Feb 20, 2019 Updated 0 Hours ago

किसकी रणनीति सफल होती है, इसका अनुमान अभी से नहीं लगाया जा सकता है, लेकिन जो गठबंधन लोगों का ध्यान आकर्षित करता है और जनसाधारण की अपेक्षाओं को पूरा करता है, उसका पलड़ा भारी होने वाला है।

चुनावी रणनीतियों का खुलासा

तीन महीने से भी कम समय शेष है, देश में अभी से परस्पर धुर विरोधी दलों के बीच में चुनावी रणनीतियों के संघर्ष को देखा जा सकता है जो इस साल अप्रैल से मई के बीच में होने वाले आम चुनावों में एक-दूसरे का सामना करने वाले हैं।

कुछ क्षेत्रीय दलों के अपवादों को यदि छोड़ दिया जाए तो पूरे विपक्ष ने मुख्य रूप से बेरोजगारी, कृषि उत्पादों में घटते रिटर्न में दिखाई देने वाले कृषि संबंधी संकट और स्वायत्त संस्थानों के विनाश को मुद्दा बनाने का निर्णय लिया है, वहीं बीजेपी की अगुवाई वाला राजग आक्रामक रूप से कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष को भ्रष्ट और सिद्धांतहीन दलों एवं उनके नेताओं के महा मिलावट (यानि महाभ्रष्ट) के रूप में पेश कर रहा है।

केंद्रीय मंत्री अरूण जेटली, जो हाल ही में एक सर्जरी के बाद यूएस से लौटे हैं, ने विरोधी गठबंधन को महाझूठगठबंधन (बड़े झूठों का महागठबंधन) कहा है जिससे से यह स्पष्ट हो जाता है कि आगामी चुनावी संघर्ष कुत्सित और द्वेषपूर्ण राजनीति का साक्षी बनने जा रहा है।

बीजेपी की रणनीति प्रधानमंत्री के अंतिम दो भाषणों से पूर्णतः स्पष्ट हो जाती है जो उन्होंने 7 और 13 फरवरी को निचले सदन में संसद के संयुक्त सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद धन्यवाद प्रस्ताव एवं लोक सभा के अंतिम सत्र के अंतिम दिन विदाई अभिभाषण के जवाब में दिए।

आम चुनाव के ठीक पहले संसद में अपने अंतिम भाषण में, प्रधानमंत्री एक मंझे हुए चुनावी प्रचारक के रूप में दिखाई दिए जहाँ उन्होंने राहुल गांधी पर हमला करने का एक भी मौका नहीं छोड़ते हुए पिछले साल जुलाई में उनके द्वारा गले लगाने और बाद में आँख मारने को लेकर फब्तियाँ कसीं।

मोदी लगभग सबकी और अलग-अलग चीजों की प्रशंसा करते हुए दिखाई दिए, कांग्रेस अध्यक्ष को छोड़कर, जिन्हें वे देश की चुनावी गणित में अपना सबसे बड़ा राजनीतिक शत्रु मानते हैं, यहाँ तक कि उन्होंने उनके अच्छे और सौम्य होने का दिखावा करने की भी बात कह डाली क्योंकि ऐसी उम्मीद बहुसंख्यक जनता उनसे करती है।

मोदी लगभग सबकी और अलग-अलग चीजों की प्रशंसा करते हुए दिखाई दिए, कांग्रेस अध्यक्ष को छोड़कर, जिन्हें वे देश की चुनावी गणित में अपना सबसे बड़ा राजनीतिक शत्रु मानते हैं, यहाँ तक कि उन्होंने उनके अच्छे और सौम्य होने का दिखावा करने की भी बात कह डाली क्योंकि ऐसी उम्मीद बहुसंख्यक जनता उनसे करती है।

मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा अचानक उनके तरफ आने और गले लगाने के बारे में कहा, “मैं यहां पहली बार आया और कई चीजें सीखीं। पहली बार, मैंने गले लगना और गले पड़ना (एक आलिंगन और दूसरा जबरन चिपटना) के बीच के फर्क महसूस किया।”

प्रधानमंत्री, अभी भी स्थिर बैठे थे, इरादतन चौकन्ने दिखाई दिए। जैसे ही राहुल गांधी अपने सीट पर लौटे उन्होंने अपने बगल में बैठे कांग्रेस के साथी सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को देखकर आँख मारी। सत्तारूढ़ भाजपा ने इस आँख मारने को सबूत के रूप में पेश करते हुए कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष की यह हरकत एक राजनीतिक स्टंट है न कि किसी प्रेम भाव का प्रदर्शन।

“मैंने पहली बार देखा कि सभा में आँखों की गुस्ताखियां (आँखों की शरारत) होती हैं” प्रधानमंत्री मोदी ने आज कहा, जिस पर सत्तारूढ़ भाजपा के लोगों ने जोर का ठहाका लगाया।

इससे पहले 7 फरवरी को, मोदी ने विपक्षी गठबंधन पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि देश की जनता नहीं चाहती है कि कोलकाता में रैली में इकट्ठा होने वाले नेताओं की अत्यधिक भ्रष्ट सरकार बने।

आक्रामकता का सिद्धांत रक्षा का सबसे अच्छा तरीका है, इसे सिद्ध करते प्रधानमंत्री ने अपने दावे के समर्थन में कहा “लोग जानते हैं कि पूर्ण बहुमत वाली सरकार क्या कर सकती है और उन्होंने मेरी सरकार का काम देखा है।”

कांग्रेस, जो कि उनके अनुसार भाजपा के लिए वास्तविक खतरा और चुनौती है, पर चौतरफा हमला करते हुए मोदी ने कहा कि महात्मा गांधी ने भी उनके “कांग्रेस-मुक्त भारत” नारे को बुलंद किया था जिनकी इच्छा थी कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कांग्रेस को भंग कर दिया जाना चाहिए।

आक्रामकता का सिद्धांत रक्षा का सबसे अच्छा तरीका है, इसे सिद्ध करते प्रधानमंत्री ने अपने दावे के समर्थन में कहा “लोग जानते हैं कि पूर्ण बहुमत वाली सरकार क्या कर सकती है और उन्होंने मेरी सरकार का काम देखा है।”

देश की सबसे पुरानी पार्टी पर निशाना साधते हुए, प्रधानमंत्री ने चुटकी लेते हुए कहा, “जहाँ तक भारतीय इतिहास का संबंध है — यहाँ दो काल हैं — ‘बीसी’ यानि ‘कांग्रेस से पहले’ जब कुछ नहीं हुआ, और ‘एडी’ यानि ‘आफ्टर डायनेस्टी’ जब सब कुछ हुआ,‘उनके ऐसा कहते ही ट्रेजरी बेंच (सत्तारुढ़ दल) से तालियां बजने लगी।

“मैं आपको विश्वास दिलाता हूं, जिन्होंने राष्ट्र को लूटा है, वे नरेंद्र मोदी से डरते रहेंगे,” प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों से सख्ती से निपटने की कसम खाई है। मोदी ने कहा कि जबकि कांग्रेस का 55 साल का शासन “सत्ता-भोग” (सत्ता का आनंद लेने) का था, उनकी सरकार “सेवा भाव” (सेवा की भावना) को समर्पित है।

उन्होंने यह भी कहा कि अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदे में कुछ अभियुक्तों के प्रत्यर्पण से विपक्ष के कई लोगों को झटका लगा है क्योंकि उनके “राज़दार” (राज़ रखने वाले) लौट रहे हैं और अब वे राज़ खोलेंगे।

उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले संप्रग शासन के दौरान, ऐसे मामले सामने आए हैं जब लोगों ने सरकार में बैठे बड़े ओहदेदारों के फोन कॉल करवाकर बैंकों से ऋण प्राप्त किए हैं।

“संप्रग की फोन बैंकिंग ने अपने नेताओं के मित्रों के हित में आश्चर्यजनक रूप काम किया। इस तरह के पक्षपात के कारण, हमारी बैंकिंग प्रणाली को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा,” प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव के जवाब में कहा।

विपक्षी गठबंधन पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि इसके नेता “थोक में जमानत पर बाहर हैं।”

मुख्य रूप से लोकसभा में विपक्षी दलों पर प्रधानमंत्री के हमले के बावजूद, हाल ही में उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और अखिलेश यादव की छापेमारी और पूछताछ के बाद दोनों ने अपनी पार्टी के चुनावी गठबंधन को एक संयोग नहीं, परंतु लोगों की नजर में उन्हें बदनाम करने की एक सोची समझी योजना का हिस्सा कहा है। शीर्ष अदालत में बसपा सुप्रीमो मायावती के खिलाफ लखनऊ और नोएडा में सैकड़ों हाथी मूर्तियों की स्थापना में सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के मामले को दुबारा खोलने को महज एक रोजमर्रा की बात या इत्तेफाक कह कर खारिज नहीं किया जा सकता है।

मुख्य रूप से लोकसभा में विपक्षी दलों पर प्रधानमंत्री के हमले के बावजूद, हाल ही में उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और अखिलेश यादव की छापेमारी और पूछताछ के बाद दोनों ने अपनी पार्टी के चुनावी गठबंधन को एक संयोग नहीं, परंतु लोगों की नजर में उन्हें बदनाम करने की एक सोची समझी योजना का हिस्सा कहा है।

इसी क्रम में, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को कोलकाता पुलिस आयुक्त राजीव कुमार के माध्यम से सीबीआई के मार्फत निशाना बनाए जाने और कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी के बहनोई रॉबर्ट वाड्रा को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा सम्मन किए जाने को भी लिया सकता है, जो नवनियुक्त महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के पति भी हैं। ईडी ने रॉबर्ट वाड्रा को तब सम्मन किया जब प्रियंका गांधी ने सक्रिय राजनीति में आने का फैसला किया।

ईडी पहले से ही पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम और उनके बेटे कीर्ति चिदंबरम के आईएनएक्स मीडिया मामले में तेजी से पूछताछ कर रहा है जिससे कि अदालत में आरोप पत्र दायर किया जा सके जिससे उनकी गिरफ्तारी के लिए ज़मीन तैयार की जा सके।

कांग्रेस और विपक्षी दलों को भ्रष्ट साबित करके निशाना बनाने की उनकी रणनीति तब से गढ़ी गई है, जब से कांग्रेस ने उनकी रणनीति को चुनौती देना शुरु किया है। प्रधानमंत्री जो ईमानदार और अजेय होने का दावा करते रहे हैं, की टेफ्लॉन छवि में सेंध लगाने में कांग्रेस सफल हुई है। इस रणनीति का मुख्य पहलू विपक्ष को पूरी आक्रामकता के साथ राष्ट्र विरोधी पार्टियों के गठजोड़ के रूप में पेश करना है जो राष्ट्र को लूटने की राजनीति में संलिप्त हैं। राजद नेता लालू प्रसाद पहले से ही जेल में हैं और उनके बेटे तेजस्वी यादव को जल्द ही सीबीआई और ईडी से सम्मन मिल सकता है।

प्रधानमंत्री के अलावा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने यह योजना आरएसएस को विश्वास में लेते हुए तैयार की है। वे यह अच्छी तरह महसूस कर रहे हैं कि आर्थिक विकास और राम मंदिर से जुड़े मुद्दे आने वाले चुनावों में भाजपा की मदद नहीं करने वाले हैं।

संक्षेप में, भाजपा की अगुवाई वाली रणनीति विपक्ष को सत्ता-चाहने वाले, भ्रष्ट, वंशवादी प्रवर्तकों, देश को कमजोर करने वाले असंतुष्ट नेताओं के रूप में पेश करके उन्हें ध्वस्त करना है। अल्पसंख्यकों विशेष रूप से मुसलमानों का विरोध चुनावी रणनीति का एक और आयाम होगा।

दूसरी ओर, प्रधानमंत्री अनेक विरोधाभासों वाले विपक्ष को एकजुट होने के लिए उकसाने का काम कर रहे हैं। जब तक चुनावों की घोषणा नहीं हो जाती, तब तक विपक्ष सीटों के बंटवारे के साथ एक सामान्य घोषणापत्र और चुनावी समझ को प्रस्तुत कर सकता है, जो मोदी और राजग के लिए एक गंभीर चुनौती साबित हो सकती है।

किसकी रणनीति सफल होती है, इसका अनुमान अभी से नहीं लगाया जा सकता है, लेकिन जो गठबंधन लोगों का ध्यान आकर्षित करता है और जनसाधारण की अपेक्षाओं को पूरा करता है, उसका पलड़ा भारी होने वाला है। इस बीच पुलवामा में जो आतंकवादी घटना हुई है जिसमें केंद्रीय रिजर्व सुरक्षा बल के 40 जवान शहीद हुए उसने चुनावी परिप्रेक्ष्य में एक नया आयाम जोड़ दिया है। इसका फायदा किस चुनावी दल को होगा यह कहना अभी मुश्किल है।

जहाँ 2014 में, मोदी ने वायदों के आधार पर चुनाव जीता था और भ्रष्टाचार से मुक्त और उच्च जीवनस्तर मुहैया करवाने के सपनों की दुनिया बुनी थी, वहीं इस बार, सत्तारूढ़ दल जीतने के लिए एक अलग रास्ते पर चल रहा है और उसमें पुलवामा में घटी त्रासदी उनकी मदद कर सकती है। ऐसा लग रहा है कि मोदी की आक्रामकता के साथ राजग की बयानबाजी और विपक्ष द्वारा मतदाताओं को यह समझाने की कोशिश कि मोदी सरकार असफल रही है, के बीच एक द्वंद्व चल रहा है।

आने वाले चुनाव का सही परिणाम इसी समझ पर निर्भर करता है।

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