Author : Ramanath Jha

Published on Nov 14, 2018 Updated 0 Hours ago

यदि मुंबई महानगर (एमसीजीएम) के नगर निगम के कार्यों और वित्त का मिलान किया जाए, तो एमसीजीएम का वार्षिक बजट तकरीबन 80,000 रुपये तक होना चाहिए। लेकिन मौजूदा वक़्त में ये महज़ एक तिहाई से अधिक दायित्वों को पूरा करने में सक्षम है।

मुंबई: एक अमीर बिगडैल लड़का?

देश में अगर कहीं भी सबसे अमीर नगर निगम की बात की जाए तो सरे फेहरिस्त मुंबई महानगर निगम का ही नाम आता है। यहाँ यह भी जानना बेहद ज़रूरी है कि इसका बजट (2018-19 में 27,258 करोड़ रुपये) देश के कई राज्यों की तुलना में बड़ा है। लेकिन इन तुलनाओं के जरिये हम किसी का भी कोई प्रशस्ति गान नहीं कर रहे है। इन तथ्यों को उजागर करने के पीछे आलोचकों का सिर्फ एक ही मक़सद है, और वो है ये साबित करना कि एमसीजीएम एक अमीर, और बिगडैल लड़का है। यह हर साल एक बड़ी राशि कमाता है, लेकिन बदले में, अपने नागरिकों को बेहतर सुविधाएं देना तो दूर की बात है वो उन्हें बुनियादी सुविधाएं भी मुहैय्या नहीं करवाता है — वो बुनियादी सुविधाएं जिनके लिए वो इतनी ज़बरदस्त धनराशि एकत्र करता है। अब सवाल ये उठता है कि आखिर इतनी सारी प्राप्त धनराशि का ये करता क्या है? और जवाब साफ़ है कि ये सारा पैसा ऐसे ही गँवा दिया जाता है। अगर इस बजट के पैसे को सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो मुंबई यकीनन देश के तमाम दुसरे शहरों के बीच सबसे चमकीले सितारे के रूप में चमक जाएगा।

इस लेख का उद्देश्य मुंबई की स्थिति की आलोचनात्मक सराहना नहीं है। बल्कि इस लेख के जरिये हम ये जानना चाहते हैं कि यदि अक्षमता और भ्रष्टाचार के आरोपों में से कोई भी सत्य नहीं था और यदि एमसीजीएम एक चमकदार, स्वच्छ संगठन था, तो क्या यह अपने कमाए हुए रुपयों की एक एक पाई का सही तरीके से इस्तेमाल करके अपने नागरिकों की बुनियादी ढांचे की उम्मीदों को पूरा नहीं कर सकता है ? आइए हम इस सवाल के जवाब तलाशने की कोशिश करें।

इन तथ्यों को उजागर करने के पीछे आलोचकों का सिर्फ एक ही मक़सद है, और वो है ये साबित करना कि एमसीजीएम एक अमीर, और बिगडैल लड़का है। यह हर साल एक बड़ी राशि कमाता है, लेकिन बदले में, अपने नागरिकों को बेहतर सुविधाएं देना तो दूर की बात है वो उन्हें बुनियादी सुविधाएं भी मुहैय्या नहीं करवाता है — वो बुनियादी सुविधाएं जिनके लिए वो इतनी ज़बरदस्त धनराशि एकत्र करता है।

सबसे पहले आएये ये जान लें कि MCGM के कार्य क्या क्या हैं? सबसे पहले, एमसीजीएम द्वारा किए गए कार्यों को देखें। इसकी मुख्य ज़िम्मेदारियों में शामिल हैं; जल आपूर्ति और सीवरेज, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, सड़कों, फुटपाथ, ब्रिज, फूट ओवर ब्रिज का निर्माण, तूफान जल निकासी, स्ट्रीट लाइट्स को लगाना और उनका रखरखाव, ट्रैफिक लाइट और अन्य यातायात से संबंधित सेवाओं का रखरखाव। ये बिजली आपूर्ति के साथ साथ शहर की बस सेवा का भी प्रबंधन देखती है। MCGM मुंबई में आठ भाषाओं में 1,038 प्राथमिक विद्यालय चलाने के अलावा 266,000 छात्रों को मुफ़्त में शिक्षा भी उपलब्ध कराती है। मुंबई महानगर पालिका 149 माध्यमिक विद्यालय भी चलाती है जिसमें से 17 दिव्यान्गों के लिए हैं और इन सभी के साथ MCGM दो कॉलेज चलाती है और MCGM में पढ़ने वाले सभी विद्यार्थियों को फ्री बस सेवा भी मुहैय्या कराती है। महानगर पालिका कई सामाजिक संस्थाओं को चलाने के साथ ही नर्सरी स्कूल, लायब्रेरी और रीडिंग रूम्स भी चलाती है। झुग्गी झोपड़पट्टी में सुधार और शहरी गरीबी उन्मूलन इसके बेहद ज़रुरी कार्य हैं तो कला, संगीत और संस्कृति का प्रचार भी है। एमसीजीएम स्वास्थ्य सुविधाओं की एक श्रृंखला प्रदान करता है। खतरनाक बीमारियों से रोकथाम और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करना इसके कार्यों में शुमार हैं, मेडिकल कॉलेज, तीन दर्जन अस्पताल और जच्चा बच्चा स्वास्थ्य केंद्र भी इनके द्वारा चलाया जाता है। पूरे शहर के लिए अग्नि बचाव सेवा चलाना भी इनकी ज़िम्मेदारी है। चिड़ियाघर, स्विमिंग पूल, थिएटर, आर्ट गैलरी, स्टेडियम, खेल के मैदान, सार्वजनिक स्मारक, और सार्वजनिक बाग़ बगीचों का निर्माण और रख रखाव भी इसी के ज़िम्मे आता है। MCGM बाज़ारों का निर्माण और देख रेख करता है, बूचड़ खाने बनाता है, Deonar अभ्यारण्य की देख रेख के साथ ही मृतकों की देह के निपटारे की जगह की भी देखभाल करता है। नए पेड़ पौधे लगाकर और उनकी देखभाल करके शहर के पर्यावरण की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी इसी की है। महानगर पालिका निगम सार्वजनिक शौचालय, पार्किंग स्थल और डस्ट बिन्स भी उपलब्ध कराता है।

अपनी विकास योजना (डीपी) के माध्यम से, एमसीजीएम बढ़ती आबादी के लिए सैकड़ों नई सुविधाओं के निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण करता है, जिसमें बागान, स्कूल, स्वास्थ्य सुविधाएं, महिलाओं के छात्रावास, कौशल केंद्र, आधार केंद्र, देखभाल केंद्र, लड़कों और लड़कियों के लिए छात्रावास शामिल हैं , बुजुर्गों के लिए वृद्धाश्रम , बेघर लोगों के लिए घर और पशुचिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध कराता है। यह एक आपदा प्रबंधन केंद्र भी चलाता है और एक कपड़ा संग्रहालय का निर्माण कर रहा है।

अपनी विकास योजना के माध्यम से, एमसीजीएम बढ़ती आबादी के लिए सैकड़ों नई सुविधाओं के निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण करता है।

नियमों और कानूनों के उचित पालन की ज़िम्मेदारी भी इसी की है और इसी के चलते नियामक पक्ष पर, एमसीजीएम जन्म, मृत्यु और विवाह पंजीकृत करता है, बिल्डिंग बनाने की अनुमति देता है, गैरकानूनी संरचनाओं/ढांचों को गिराता है और सड़क पर रेहड़ी पटरी पर काम करने वालों को नियंत्रित करता है। यह आबादी की जनगणना करता है और शहर की विरासत की देखभाल करता है। यह सभी दुकानों और व्यवसायों को पंजीकृत करता है और इन-हाउस सुरक्षा संगठन के माध्यम से अपनी सुविधाओं की रक्षा करता है। हम चाहें तो बाकियों को काम करने की मनचाही छूट न मिल पाने की दुहाई डे सकते हैं लेकिन ये भी सच है कि देश में कोई अन्य शहरी स्थानीय निकाय एमसीजीएम द्वारा प्रदान की जाने वाली नगरपालिका सेवाओं के इस विशाल जाल से मेल नहीं खाता है।

आइए देखते हैं कि इन विशाल गतिविधियों को करने के लिए उसे कितना पैसा चाहिए। शहरी आधारभूत संरचना के लिए निवेश आवश्यकताओं का अनुमान लगाने के लिए भारत सरकार (जीओआई) द्वारा नियुक्त उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति (एचपीईसी) ने केवल आठ प्रमुख सेवाओं (जल आपूर्ति, सीवरेज, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, सड़कों, तूफान जल निकासी, परिवहन, यातायात समर्थन सेवाएं और सड़क प्रकाश व्यवस्था) को ही शामिल किया। इसने भारत सरकार के द्वारा प्रत्येक सेवा के लिए तय किये हुए मानको को अपना आधार बनाया है और मौजूदा सर्विस बैकलॉग को परखा है। HPEC ने मार्च 2011 में जो रिपोर्ट जमा की है वो 2009-10 के समय की कीमतों पर आधारित है। जिन शहरों की आबादी पांच मिलियन से ऊपर है उन शहरों में उल्लेखित आठ सेवाओं को उपलब्ध कराने के लिए प्रति व्यक्ति निवेश रुपये 47,772 और प्रति व्यक्ति रखरखाव लागत 3,627 मानी गयी है।

चूंकि ये कीमतें लगभग एक दशक पुरानी हैं, और अब हम 2018-19 के लिए अनुमान लगा रहे हैं, तो अब हमें यह मान लेना चाहिए कि लागत में वृद्धि को समायोजित करने के लिए हम अनुमानों को दोगुना कर दें। इस तरह यह प्रति औसत निवेश 95,544 रुपये और प्रति व्यक्ति वार्षिक रखरखाव लागत रु 7,254 तक हो जाएगी। लगने वाले कुल लागतों को पूरा करने के लिए, हमें मुंबई की वर्तमान आबादी के बारे में भी जान लेने की जरूरत है। मुंबई का जनसांख्यिकीय आंकड़ा जनगणना 2011 के माध्यम से 12.44 मिलियन था। आइए मान लें कि मुंबई की आबादी अब 13 मिलियन है, जो एक उचित न्यायसंगत संख्या है।

इन आंकड़ों को देखा जाए तो पता चलता है कि सरकार द्वारा उल्लेखित जिन आठ सेवाओं की चर्चा की जा रही है उन सभी को अमल में लाने के लिए रूपये 1.24 लाख करोड़ या फिर 6. 210 रूपये सालाना की आवश्यकता होगी। अब इसके बाद हम मुंबई के विकास के प्लान की ओर रुख करेंगे। आप इस बात को अपने दिल और दिमाग़ में बिठा लें कि DP को सही तरीके से अमल में लाना ही हम किसी भी शहर के जीवन की गुणवत्ता का आधार है। 2013-14 की कीमतों को आधार मान कर DP टीम इस नतीजे पर पहुँची कि मुंबई को अगले 20 वर्षों के दौरान DP को अमल में लाने के लिए 14.15 लाख करोड़ रुपयों की ज़रूरत होगी और तब कहीं जाकर साल 2034 विकास का काम हो पाएगा। इन बीस वर्षों में से पांच साल तो गुजर ही चुके हैं। भले ही बेहद आशावादी होकर ये मान लिया जाए कि भूमि आधारित उपकरण भूमि अधिग्रहण लागत का 80 प्रतिशत का ख्याल रखेंगे, तब भी एमसीजीएम को 23,112 करोड़ रुपये की न्यूनतम वार्षिक राशि वर्तमान समय की लागत पर इस प्लान को अमली जामा पहनाने के लिए अलग रखनी पड़ेगी।

इन अतिरिक्त सेवाओं के प्रावधान के लिए एक रूढ़िवादी गणना के हिसाब से सालाना लगभग 7,000 करोड़ रूपये लगेंगे। इसका मतलब ये हुआ कि 36,322 करोड़ रूपये की कुल पूंजीगत निवेश की आवश्यकता में से MCGM महज़ 10,115 करोड़ रूपये ही उपलब्ध करा पाई है।

ऐसी और भी अन्य महत्वपूर्ण सेवाएं हैं जो MCGM के द्वारा पूरी की जानी अपेक्षित हैं जो HPEC द्वारा नहीं मानी जाती थीं। इनमें शामिल हैं; शिक्षा, स्वास्थ्य, अग्निशमन सेवाएं, अस्पताल, बगीचे, स्मारक इत्यादी। इन सभी अतिरिक्त सेवाओं की पूर्ती के लिए साथ हज़ार करोड़ के सालाना खर्च की आवश्यकता पड़ेगी। अब इसमें वेतन, प्रशासन, विनियमन और आधारभूत संरचना के रखरखाव की लागत भी जोड़ें। 2018-19 के बजट में इन सभी खर्चों की लागत 17,723 करोड़ रुपये लगाई गयी है। इनमें से वेतन, प्रशासनिक, और प्रबन्धन का खर्च तो पूरे तौर पर वहन करना ही होगा। इस तरह इन सभी खर्चों का कुल जोड़ 13,575 करोड़ हो जाता है जिनमें से 4,129 करोड़ तो सिर्फ रख रखाव के ही हैं। हक़ीकत में ये राशी उन सभी आठ आधारभूत ढांचों का महज़ 44% ही वहन करेगी।

यदि कुल मिलाकर हम एमसीजीएम के कार्यों और वित्त का मिलान करते हैं तो हमें पता चलता है कि एमसीजीएम का वार्षिक बजट 80,000 करोड़ के आसपास होना चाहिए और वर्तमान समय में, यह केवल एक तिहाई से अधिक दायित्वों को पूरा करने में सक्षम है। इन सभी आंकड़ों को देखने के बाद ये साफ़ तौर पर कहा जा सकता है कि एमसीजीएम पर जो जिम्मेदारियां हैं या जो उस से अपेक्षा है उसके लिए पर्याप्त फण्ड नहीं है। वैसे भी कॉमन सेंस कहता है कि जब आपके सर पर बोझ सहनशक्ति से ज्यादा हो तो कुछ ऐसे बोझ को उतार देना ही समझदारी है जिसके बिना भी काम चल सकता है वरना ज़्यादा के लालच में ‘माया मिली न राम’ वाली कहावत सच हो जाएगी। इसलिए यह उचित होगा कि एमसीजीएम को इस पर ध्यान देना चाहिए कि कौन से कार्यों को छोड़ना चाहिएऔर किसे प्राथमिकता देनी चाहिए। यह उसके मौजूदा कार्यों का लगभग डेढ़ भाग तक होगा। वैसे बेहतर होगा अगर हमारे बुद्धिमान मुम्बईकर्स मुंबई महानगर पालिका को इस ‘त्याग’ कार्य में अपना सहयोग दें।

यहाँ यह जानना भी बेहद ज़रुरी है कि एमसीजीएम की कमाई के मौजूदा स्तंभ ओक्ट्रोई (35 प्रतिशत), संपत्ति कर (22 प्रतिशत) और प्रीमियम (16 प्रतिशत) हैं जो उसे राज्य मुआवजे उन्मूलन के जरिये प्राप्त होते हैं। यहाँ ये भी ध्यान देने योग्य बात है कि महाराष्ट्र सरकार की वित्तीय तबियत वैसे भी नासाज़ चल रही है। यदि राज्य ऐसी स्थिति में वापस आ गया जहां यह एमसीजीएम की क्षतिपूर्ति में विफल रहता है, तो बुनियादी ढांचे से जुडी सेवाओं में 35 प्रतिशत की गिरावट आएगी। लेकिन चिंता की कोई बात नहीं “Spirit of Mumbai या मुंबई का जज़्बा तो आप जानते ही हैं न? चाहे कुछ भी हो जाए हम जीवित रहेंगे!

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