Published on Sep 30, 2020 Updated 0 Hours ago

संपदा का पुनर्वितरण और अंतर्निहित कायरता जारी रही और संपदा सृजन के लिए एकमुश्त कदम नहीं उठाया गया तो यह भारत के लिए सबसे बड़ी तबाही का कारण होगा. यही समय है कि भारत के संपदा सृजकों को एक मौका दिया जाए.

जीडीपी संकुचन: भारत के संपदा सृजकों को एक मौका देने का समय

भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में संकुचन (कॉन्ट्रैक्शन) तयशुदा था. दुनिया की दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के साथ ही यहां भी गिरावट आने की उम्मीद थी. लेकिन वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी का लगभग एक चौथाई हिस्सा साफ हो जाना बड़ा झटका है. प्रवासी कामगारों के पलायन ने हमें महीनों पहले इसकी झलक दिखा दी थी. 31 अगस्त 2020 को जारी किए गए आंकड़े उन आकलनों की पुष्टि करते हैं और आर्थिक संकटों का सटीक संख्यात्मक विवरण भर हैं— भारत की जीडीपी में अप्रैल और जून 2020 के बीच 23.9% की गिरावट आई है. दूसरे शब्दों में, कोरोनावायरस और उसके नतीजे में लगाया गया लॉकडाउन वित्त वर्ष के पहले तीन महीनों में 8.45 लाख करोड़ रुपये की आर्थिक गतिविधियां निगल गया.

इस गिरावट का अक्स रेलवे सबसे बेहतर तरीके से दिखाती है. सफ़र में ठहराव आ गया था, और तीन महीनों में 99.5% गिरावट आई (यह एयरलाइन यात्रियों में 94% की कमी जैसी ही थी), रेलवे द्वारा ढुलाई किए जाने माल की मात्रा में 26.7% की कमी आई. मशीनें चलाने वाले हाथों के अभाव में मैन्युफैक्चरिंग में 40.7% कमी, स्टील की खपत में 56.8% और सीमेंट में 38.3% की कमी हुई. सकल मूल्य के संदर्भ में कंस्ट्रक्शन में 50.3% की कमी हुई, जबकि होटल, परिवहन और संचार में 47% की कमी आई.

भारत की जीडीपी में अप्रैल और जून 2020 के बीच 23.9% की गिरावट आई है. दूसरे शब्दों में, कोरोनावायरस और उसके नतीजे में लगाया गया लॉकडाउन वित्त वर्ष के पहले तीन महीनों में 8.45 लाख करोड़ रुपये की आर्थिक गतिविधियां निगल गया.

यह आर्थिक तबाही है. संख्याएं अपने आप में ही काफ़ी ख़राब हैं. लेकिन उपरोक्त हर आंकड़े के पीछे लाखों इंसान हैं. नौकरियां चली गई हैं, और निकट भविष्य में उनके लौटने का कोई संकेत नहीं है, और आगे आर्थिक संताप है. हो सकता है लॉकडाउन ने फ़ौरी तौर पर जीवन बचा लिया हो, लेकिन इसने मध्यम से दीर्घकालिक अवधि में अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया है. जब तक अर्थव्यवस्था सरकार का पहली और सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकता नहीं बन जाती, बयानबाज़ी के बजाय काम नहीं किया जाता, भारत उबर नहीं पाएगा. केंद्र सरकार की तरफ़ से मई के मध्य में घोषित 20 लाख करोड़ रुपये का पैकेज निराशाजनक रूप से अपर्याप्त है.

सरकार की मंशा में कोई कमी नहीं है. बयानों को देखें तो ज़रूरत से ज़्यादा ही हैं. लेकिन अमल के स्तर पर इसके हाथ लोहे की जंजीरों से में जकड़े हैं. सबसे पहले तो 2,100 डॉलर प्रति व्यक्ति आय. यह ब्रिटेन या जर्मनी की प्रति व्यक्ति आय के सामने कहीं नहीं ठहरती है, जो प्रति व्यक्ति क्रमशः 42,300 डॉलर और 46,259 डॉलर है और नागरिकों को आर्थिक संबल प्रदान कर सकती है. दूसरा, एक बर्बाद हेल्थकेयर सिस्टम जिसके नतीजे आज दिखाई दे रहे हैं. मौजूदा संकट ने नीतिगत विकल्पों में निवेश का मौका दिया है. सरकार रातों-रात अस्पताल नहीं बना सकती है. ज़्यादा से ज़्यादा, उन नीतियों के लिए अधिक निवेश और प्रोत्साहन के लिए प्रेरित कर कर सकती है जिससे इस क्षेत्र में निजी पूंजी आमंत्रित की जा सकती है.

जब तक अर्थव्यवस्था सरकार का पहली और सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकता नहीं बन जाती, बयानबाज़ी के बजाय काम नहीं किया जाता, भारत उबर नहीं पाएगा. केंद्र सरकार की तरफ़ से मई के मध्य में घोषित 20 लाख करोड़ रुपये का पैकेज निराशाजनक रूप से अपर्याप्त है.

इस गिरावट के साथ, भारतीय अर्थव्यवस्था न केवल वैश्विक संकुचन में शामिल हो गई है,  बल्कि इसकी अगुवाई कर रही है (तालिका देखें). सभी ट्रिलियन-डॉलर अर्थव्यवस्थाओं में, सिर्फ़ एक— चीन— की जीडीपी बढ़ी है. ब्रिटेन और अमेरिका से लेकर जापान और दक्षिण कोरिया तक हर देश में जीडीपी गिरी है. भारत के बाद सबसे बड़ी गिरावट ब्रिटेन में आई है (पिछली तिमाही की तुलना में 20.4% संकुचन और पिछले वर्ष की तुलना 21.7%). एक रुझान के तौर पर, पश्चिम की तुलना में पूरब में ज़्यादा गिरावट आई है. पांच देशों— यूके, फ्रांस, इटली, कनाडा और जर्मनी— में उनकी 2019 की समान तिमाही की तुलना में दोहरे अंक में गिरावट रही है. पूरब में सिर्फ़ जापान (10% गिरावट) और भारत में दोहरे अंकों की गिरावट हैं. यह आईएमएफ के मौजूदा 4.5% संकुचन के वार्षिक अनुमानों पर असर डालेगा.

  जून 2020 में समाप्त होने वाली तिमाही के लिए जीडीपी वृद्धि ( % में)  
देश पिछली तिमाही की तुलना में परिवर्तन पिछले साल की समान तिमाही से तुलना 2020 के लिए आईएमएफ़ का आकलन
भारत -29.3 -23.9 -4.5
यूनाइटेड किंगडम -20.4 -21.7 -10.2
फ़्रांस -13.8 -19.0 -12.5
इटली -12.4 -17.3 -12.8
कनाडा -12.0 -13.5 -8.4
जर्मनी -9.7 -11.7 -7.8
जापान -7.8 -10.0 -5.8
यूनाइटेड स्टेट्स -9.5 -9.5 -8.0
दक्षिण कोरिया -3.3 -2.9 -6.6
चीन 11.5 3.2 1.0
यूरो एरिया -12.1 -15.0 -10.2

डेटा: भारत (सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय);

अन्य: (OECD)

अगर इस आर्थिक आपदा के बाद भी, सरकारें (संघ और राज्य) कारोबार में आने वाली रुकावटों को दूर नहीं करती हैं, तो भारत का आख़िरी दशक जिसमें से जनसांख्यिकीय लाभ निकाला जा सकता है, ख़त्म हो जाएगा. आर्थिक ठहराव के लिहाज़ से एक दशक का चौथाई लंबा अरसा लगता है. लेकिन यह हमारी कल्पना से भी तेजी़ से गुज़र जाएगा और इससे पहले कि हम इसे जान पाएंगे, भारत इस अवसर को गंवा चुका होगा.

आगे बढ़ते हुए देखें, आर्थिक मसले पर सिर्फ़ एक नीति है जिसका भारत को पालन करने की ज़रूरत है: 2030 तक प्रति व्यक्ति आय बढ़ाकर 10,000 डॉलर तक करना. विकास दर में वृद्धि का समय बीत गया है. भारत को ऐसी नीतियों का मसौदा तैयार करने की ज़रूरत है जो तेज़ी से विकास को बढ़ावा देने की क्षमता रखती हैं. ऐसे विकास के लिए पूंजी, वित्तीय बचत और बड़ी संख्या में करों का भुगतान करने वाले भारतीयों की ज़रूरत है. इसका मतलब यह भी है कि वृद्धिशील पूंजी उत्पादन अनुपात (इंक्रीमेंटल कैपिटल आउटपुट रेशियो)— उत्पादन की एक अतिरिक्त यूनिट पैदा करने के लिए पूंजी की अतिरिक्त यूनिट की ज़रूरत होगी— जो कि पिछले तीन दशकों से 3.5 और 4.5 के बीच रहा है, को कम करने और पूंजी की ज़्यादा  उत्पादकता देने की ज़रूरत है.

जबकि टेक्नोलॉजी इस अनुपात को मजबूत करने में अपना काम करेगी, नीति को मददगार भूमिका निभानी होगी. भारत के पास एक फ़ायदा यह है कि इसके पास टेक्नोलॉजी की मदद से जन कल्याण की क्षमता है, जिनमें से JAM त्रिमूर्ति (जनधन खाता, आधार और मोबाइल फोन का जुड़ाव) एक है, ऐसी ही एक और है प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना. इसके अलावा फाइनेंस और हेल्थकेयर को लेकर कई और इन्नोवेशन हैं. इनका फ़ायदा उठाने की ज़रूरत है, और इसका विस्तार कर भारत के सबसे बड़े वेल्थ क्रिएटर्स या संपदा सृजकों— उद्योगपतियों को जोड़कर इसका विस्तार किया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए, पूरे कंप्लाएंस नेटवर्क को, डिजिटाइज़ किए जाने और फेसलेस होने की ज़रूरत है.

अगर फ़ौरन दूरगामी नीति में परिवर्तन नहीं किया गया जो उद्योगपतियों को जोख़िम लेने और रोज़गार सृजित करने के लिए प्रोत्साहित करती है तो संकुचन का संकट हिमखंड का पानी के ऊपर दिखने वाला मामूली हिस्सा साबित होगा. संपदा

हाल के इतिहास में सबसे ख़राब संकुचन, अपने समकक्षों के बीच जीडीपी में सबसे बड़ी गिरावट, बेरोज़गारी के मामले में सबसे बड़ी संभावित गिरावट अगर एक बदलाव को प्रेरित नहीं करती है जो उद्योगपतियों की ओर उन्मुख हो, तो कुछ नहीं हो सकता. अगर फ़ौरन दूरगामी नीति में परिवर्तन नहीं किया गया जो उद्योगपतियों को जोख़िम लेने और रोज़गार सृजित करने के लिए प्रोत्साहित करती है तो संकुचन का संकट हिमखंड का पानी के ऊपर दिखने वाला मामूली हिस्सा साबित होगा. संपदा का पुनर्वितरण और अंतर्निहित कायरता जारी रही और संपदा सृजन के लिए एकमुश्त कदम नहीं उठाया गया तो यह भारत के लिए सबसे बड़ी तबाही का कारण होगा. यही समय है कि भारत के संपदा सृजकों को एक मौका दिया जाए.

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