दो दशक के बाद सत्ता में हुई तालिबान की वापसी के कारण अफ़ग़ानिस्तान में राजनीतिक ढांचा ध्वस्त हो गया है. इस वजह से वहाँ रह रहे लोगों की सामाजिक-आर्थिक दशा में काफी गिरावट आयी. जमीन पर शांति बनाए रखने के लिए, अमेरिका ने, अफ़ग़ानिस्तान में पिछले 20 वर्षों में, 80, 000 बमों की बारिश की, जिसमें सैंकड़ों हज़ार लोगों की मौत हुई और लगभग $2.3 ट्रिलियन खर्च हुए. पर अंततः अमेरिका समर्थित घनी प्रशासन अपनी अकर्मण्यता और अक्षमता की वजह से सत्ता एवं देश से बाहर कर दिए गए.
देखो और समझो की नीति पर नेपाल
ऐसी अनिश्चितता वाली स्थिति मे, अंतरराष्ट्रीय समुदाय से वैधता प्राप्त करने के लिए तालिबानी प्रशासन काफी बेसब्री से प्रयासरत है. हालांकि, अब तक किसी भी सरकार ने इनके शासन को आधिकारिक तौर पर मान्यता प्रदान नहीं की है. अन्तराष्ट्रीय समुदाय के पदचिन्हों पर चलते हुए, इस सरकार को कानून मान्यता देने की दिशा में, नेपाल भी रुको, देखो और समझो की नीति पर चल रही है. वो अफ़ग़ानिस्तान के अंदर घट रही हर प्रकार की राजनीतिक घटनाओं को विशुद्ध रूप से उस देश का आंतरिक मामला मानती है. हालांकि, अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल से काफी दूर है, लगभग 1700 किलोमीटर की हवाई दूरी पर है, पर दोनों ही साउथ एशियन एसोसिएशन फॉर रिजनल कोऑपरेशन (सार्क) के सदस्य हैं. इस सच्चाई के बावजूद ही कि दोनों ही देशों के बीच किसी भी प्रकार का कोई कूटनीतिक मिशन नहीं है, फिर भी दोनों राष्ट्र एक दूसरे के साथ एक कूटनीतिक रिश्ता बनाए रखे हुए हैं.
अन्तराष्ट्रीय समुदाय के पदचिन्हों पर चलते हुए, इस सरकार को कानून मान्यता देने की दिशा में, नेपाल भी रुको, देखो और समझो की नीति पर चल रही है. वो अफ़ग़ानिस्तान के अंदर घट रही हर प्रकार की राजनीतिक घटनाओं को विशुद्ध रूप से उस देश का आंतरिक मामला मानती है.
अफ़ग़ानिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता बने होने के बावजूद, ये देश के अप्रवासी नेपाली कामगारों के लिए अब भी एक मनचाहा कार्य डेस्टिनेशन अथवा देश माना जाता है. विगत सालों में, लगभग 8000 नेपाली कामगारों को अफ़ग़ानिस्तान ने वर्क वीजा निर्गत किया है. अनुमानित है कि अफ़ग़ानिस्तान में, अघोषित नेपाली श्रमिकों की संख्या 14000 से भी ज्यादा हो सकती है.
निजी कंपनियों द्वारा किराए पर लिए जाने वाले नेपाली गोरखाओं ने अफ़ग़ानिस्तान के साथ साथ कनाडा, जर्मनी, ब्रिटेन और जापान के कूटनीतिक मिशन में संवेदनशील ऑफिसों में सफलतापूर्वक सुरक्षा सेवा देने की वजह से काफी विश्वसनीयता अर्जित की है. निजी कंपनियों द्वारा काबुल में उनका विशिष्ट नियोजन संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा के लिए भी किया गया था. उस देश में तालिबान द्वारा सत्ता पर कब्ज़ा किए जाने के बाद, नेपाली सरकार ने त्वरित कार्यवाही के तहत तुरंत से अफ़ग़ानिस्तान में रह रहे नेपाली नागरिकों को सकुशल बाहर निकाला. एक रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल ने 18 सितंबर तक अफ़ग़ानिस्तान से अपने ज्य़ादातर नागरिकों को बाहर निकाल लिया था, पर अब भी, विभिन्न संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों मेंकाम करनेवाले करीबन 300 लोग अब भी फंसे हुए हैं.
रिफ्यूजी की चाह में अफ़ग़ानी लोग
एक तरफ जहां नेपाली लोग, नौकरी की तलाश में, अफ़ग़ानिस्तान पहुँचने में सफल रहे, तो बाद में, अफ़ग़ानी लोगों ने भी अवैध तरीके से नेपाल पहुँचना शुरू कर दिया है. कई अफ़ग़ानी अब तो सपरिवार काठमांडू के साथ-साथ नेपाल तक दाखिल हो रहे हैं, इस आशा के साथ कि उन्हें शरण मिलेगा.
चूंकि अफ़ग़ानिस्तान और नेपाल के बीच कोई समान सीमा रेखा नहीं है, अफ़ग़ानी नागरिक पहले भारत आते हैं, और फिर बिचौलिये अथवा दलालों की मदद से, वे झरझरे या त्रुटीपूर्ण भारत-नेपाल सीमा पार करते है,और बग़ैर किसी वीज़ा अथवा कानूनी दस्तावेज़ के बग़ैर नेपाल में दाख़िल हो रहे हैं. अन्य अवैध चैनल के ज़रिए, नेपाल में दाख़िल होने के लिए अफ़ग़ानी लोगों को, प्रति पारिवारिक सदस्य, अमेरिकी डॉलर 1000 से 2000 तक अदा करनी पड़ती है. अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की जीत के बाद, ऐसा नहीं है कि अफ़ग़ानी सिर्फ़ नेपाल ही दाखिल हो रहे है; वे इससे पहले भी नेपाल अवैध तरीके से दाख़िल होते आ रहे है. कुछ समय पहले तक, यूएनएचसीआर ने उल्लेख़नीय तौर पर, काठमांडू में समखुसी नगर में, 13 परिवारों के कुल 53 अफ़ग़ानी लोगों को शरण की मांग करने वालों के तौर पर चिन्हित किया. ऐसा संभव इसलिए हुआ क्योंरि अफ़ग़ानियों ने समखुसी के इलाकों में, जिसे छोटा काबुल के नाम से भी जाना जाता है, में ही सिर्फ़ ध्यान केंद्रित किया. ज्य़ादातर अफ़ग़ानी जो कि अफ़ग़ानिस्तान के कंधार प्रांत से आते है, वे नेपाल में रिफ्यूजी की मान्यता की चाहत रखते है. हालांकि, नेपाली सरकार ने अब तक उन्हे शरणार्थी का दर्जा दिया नहीं है, परंतु उसी वक्त, उन्हें अब तक देश से निकाला भी नहीं है.
हाल ही में, नेपाली सुरक्षा बल ने काठमांडू के सिनमंगल इलाके से, 11 अफ़ग़ानी नागरिकों को गिरफ्त़ार किया, वे भारत के सुनाउली सीमा के रास्ते से उनके देश में अवैध रूप से दाखिल हुए थे. बाद में, उन सब को आगे की कार्यवाही के लिए पर्यवर्तन कार्यालय हस्तांतरित कर दिया गया. ऐसा माना जाता है कि अफ़ग़ानी नेपाल प्रवेश कर गए होंगे और वो ना सिर्फ़ काठमांडू बल्कि नेपाल के अन्य नगरीय क्षेत्र में भी उपस्थित है. स्थिति की गंभीरता को समझते हुए, नेपाल के गृह मंत्रालय ने अपने नागरिकों को किसी भी व्यक्ति को बगैर उनकी नागरिकता और उससे संबंधी कानूनी दस्तावेज के अपने मकान, कमरे या फिर अपार्टमेंट आदि को किराये पर ना देने की चेतावनी दी है. सिर्फं इतना ही काफी नहीं था, देश की सुरक्षा एजेंसियों ने नेपाल- भारत सीमा पर अपनी विजिलेंस को और भी स्फूर्त और सतर्क कर दिया है.
अफ़ग़ानिस्तान और नेपाल के बीच कोई समान सीमा रेखा नहीं है, अफ़ग़ानी नागरिक पहले भारत आते हैं, और फिर बिचौलिये अथवा दलालों की मदद से, वे झरझरे या त्रुटीपूर्ण भारत-नेपाल सीमा पार करते है,और बग़ैर किसी वीज़ा अथवा कानूनी दस्तावेज़ के बग़ैर नेपाल में दाख़िल हो रहे हैं.
अफ़गान शरणार्थियों के अलावे नेपाल, म्यांमार से आए हुए 3000 से ज्यादा रोहींग्या मुस्लिम और सोमालिया और पाकिस्तान से आगे हुए शरणार्थियों का भी घर है. नेपाल में बसे कुल रोहिंग्या मुसलमानों मेंसे 400, काठमांडू घाटी के समीप, उत्तरी सरहद स्थित कापान क्षेत्र में ही रह रहे है. 1990 मे, 100,000 भूटानी शरणार्थियों ने नेपाल में प्रवेश किया. बाद में, उनमें से काफी लोगों को कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, नॉर्वे, न्यूज़ीलैंड, ब्रिटेन और अन्य देशों में बसने को प्रेरित किया. उन सब से ऊपर, 1959 के राजनीतिक उत्थान के बाद, 20,000 से ज़्यादा तिब्बती शरणार्थी इस देश में रहते आ रहे है.
31 अक्टूबर 2021 से नेपाली सरकार ने भारतीय नागरिक के लिए नया नियम लागू कर दिया जहां उनके लिए जमीनी रास्ते से नेपाल की सरहद में दाखिल होने के लिए प्रवेश पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया है.
स्थिति की गंभीरता को भाँपते हुए, नेपाल की सुरक्षा एजेंसियां और भारतीय विजिलेन्स, ख़ासकर सीमा क्षेत्र के समीप अफ़गान संकट के फलस्वरूप किसी भी प्रकार की हिंसा की संभावनाओं से संभावित बचाव के लिए, पूरी तरह से सजग और सतर्क है. 31 अक्टूबर 2021 से नेपाली सरकार ने भारतीय नागरिक के लिए नया नियम लागू कर दिया जहां उनके लिए जमीनी रास्ते से नेपाल की सरहद में दाखिल होने के लिए प्रवेश पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया है. इतना ही नहीं, नेपाली अधिकारियों ने अपने सहभागी भारत से भी ऐसा नियम नेपाली नागरिकों के लिए लागू करने की सिफारिश की है जो जमीनी सीमा के रास्ते भारतीय सीमा पार जाते है.
अफ़गान संकट के फलस्वरूप उत्पन्न किसी भी प्रकार के जोखिम को कम करने के लिए, नेपाल को अन्य चिंतित देशों और ख़ासकर भारत के सुरक्षा एजेंसियों के साथ उचित समन्वय और सहयोग करना चाहिए
खुली सीमा पर प्रभाव
एक देश से दूसरे देश में होने वाले किसी भी प्रकार के आंदोलन पर लगाम लगाने की कोई भी कोशिश देश के भीतर, ख़ासकर सीमा क्षेत्र के निवासी जो हाल हाल तक निर्विघ्न तरीके से एक दूसरे की सीमा के आर पार आया जाया करते थे, के पारंपरिक सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों को दुष्प्रभावित कर सकती है. अफ़गान संकट के फलस्वरूप उत्पन्न किसी भी प्रकार के जोखिम को कम करने के लिए, नेपाल को अन्य चिंतित देशों और ख़ासकर भारत के सुरक्षा एजेंसियों के साथ उचित समन्वय और सहयोग करना चाहिए, ताकि अफ़ग़ानी नागरिकों के नेपाल प्रवेश करने के किसी भी प्रयास को रोकने के नाम पर नियमों के सख्त हो जाने से दोनों देशों के नागरिकों के बेरोक टोक एक-दूसरे के सीमा पार आने-जाने में अवरोध पैदा करने के लिए, ऐसे किसी प्रगति से दोनों देशों के बीच की व्यवसायिक और वाणिज्यिक संबंधो पर प्रभाव पड़ सकता है.
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