Published on Jul 16, 2020 Updated 0 Hours ago

अगर आप चाहते हैं कि धरती की उर्वरता बनी रहे, भू-गर्भ जल का स्तर पाताल न छुए, बाढ़ से कुछ हदतक ही सही, राहत मिले तो 'वेटलैंड' को संरक्षित करें.

भारत में सिकुड़ते वेटलैंड्स, पर्यावरण असंतुलन और प्राकृतिक आपदा के बीच ग़हरा संबंध: अध्ययन

आज दुनिया में जिस तेजी से विकास हो रहा है, उसी तेजी से पर्यावरण का भी हनन हो रहा है. हम विकास की अंधी दौड़ में इस कदर दौड़े जा रहे हैं कि अपने हित-अनहित को भी नहीं समझ पाते. विकास ने हमें सुविधाएं तो प्रदान की हैं, लेकिन उनका नुकसान भी समाज और प्रकृति में देखने को मिल रहा है. आधुनिक विकास ने सबसे ज्यादा नुकसान हमारे वातावरण और आर्द्रभूमि यानी वेटलैंड्स को पहुंचाया है.

कारख़ानों से निकलने वाले गंदे अवशिष्ट, खनन और भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन कुछ ऐसे मानवीय कारण हैं, जिन्होंने आर्द्रभूमि या वेटलैंड्स को अत्यधिक नुकसान पहुंचाया है. इसके साथ-साथ ही समुद्र के जल स्तर में वृद्धि, जलवायु परिवर्तन, तूफ़ान आदि प्राकृतिक कारणों के कारण भी आर्द्रभूमि अपना वास्तविक रुप खोती जा रही हैं. भारत के झारखण्ड राज्य के रांची शहर में कुछ छोटे छोटे आद्रभूमि को भर के निर्माण कार्य किया गया है. झारखंड में ‘वेटलैंड’ की कुल संख्या 5649 है. झारखंड में सबसे अधिक 1631 ‘वेटलैंड’ बोकारो में है. इस मामले में गिरिडीह दूसरे तथा उप राजधानी दुमका तीसरे स्थान पर है. हज़ारीबाग़ में सबसे कम 27 ‘वेटलैंड’ हैं. 2.25 हेक्टेयर (5.5 एकड़) में बना जलाशय ही वेटलैंड की सूची में शामिल किया गया है.

पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्थाओं के अनुसार झारखंड में लगभग 25 फीसदी भूमि वेटलैंड है, जिनमें क़रीब 12 फीसद भूमि पर अतिक्रमण हो चुका है. इन वेटलैंड को भरकर भवन आदि बनाये जा चुके हैं. इनमें से कई सरकारी भवन हैं. यानी तालाबों का अस्तित्व समाप्त करने में भू-माफ़ियाओं के अलावा सरकारी विभाग का भी हाथ है. जबकि वेटलैंड एरिया के अंतिम छोर से कम से कम 200 मीटर के दायरे में किसी तरह के निर्माण कार्य भी प्रतिबंधित है.

पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्थाओं के अनुसार झारखंड में लगभग 25 फीसदी भूमि वेटलैंड है, जिनमें क़रीब 12 फीसद भूमि पर अतिक्रमण हो चुका है. इन वेटलैंड को भरकर भवन आदि बनाये जा चुके हैं. इनमें से कई सरकारी भवन हैं. यानी तालाबों का अस्तित्व समाप्त करने में भू-माफ़ियाओं के अलावा सरकारी विभाग का भी हाथ है

दुनियाभर में ताजे पेयजल के स्रोत तेजी से खत्म होते जा रहे हैं, जिससे निकट भविष्य में धरती पर मानव जीवन के लिए संकट पैदा हो सकता है. शहरीकरण, औद्योगीकरण, सड़कों, रेल मार्ग आदि के ज़मीन की बढती मांग, कृषि के बेहद तेजी से विस्तार के चलते 1970 से 2015 के बीच 35 फीसदी जल स्रोत जैसे झील, नदियां, दलदल और खाड़ियां खत्म हुए हैं. दुनिया की इकोसिस्टम के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाने वाले जलस्रोत दुनिया भर में 12 मिलियन स्क्वेयर किलोमीटर में फैले हुए हैं. लेकिन, 2000 के बाद इनकी संख्या में कमी होने की दर में तेज़ी से इज़ाफा हुआ है.

वेटलैंड्स पर हुए रामसर कन्वेंशन के अध्यक्ष मार्ठा रोजास उरेगो ने दुनिया के वेटलैंड्स पर पहली रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट में उन्होंने कहा है कि पृथ्वी पर जंगलों से भी तीन गुना तेज़ी से नमी वाली भूमि यानी वेटलैंड्स में कमी आ रही है.  वैश्विक मूल्यांकन ने आर्द्रभूमि को सबसे अधिक ख़तरे वाले पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में चिह्नित किया है. यूनेस्को के अनुसार, यह दुनिया की 40% वनस्पतियों और वन्यजीवों को प्रभावित करता है जो आर्द्रभूमियों में निवास या प्रजनन करते हैं.

दो फरवरी को विश्व आर्द्रभूमि दिवस (World Wetland Day) मनाया जाता है. इसका उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग का सामना करने में आर्द्रभूमि जैसे दलदल तथा मंग्रोव के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाना है. इस वर्ष 2020 के लिये विश्व आर्द्रभूमि दिवस की थीम ‘आर्द्रभूमि और जैव विविधता’ (Wetlands and Biodiversity) थी.

दो फरवरी 1971 को ईरान में रामसर मे वेटलैंड पर सम्मेलन आयोजित किया गया. वेटलैण्डस के संबंध में अद्यावधिक मानक रामसर परिपाटी (सम्मेलन) से आच्छादित है. जिसमें वेटलैंड को अंतरराष्ट्रीय स्तर की मान्यता देने के पूर्व प्राणि विज्ञान, पारिस्थितिकीय, सरोवर विज्ञान व जलीय महत्व पर आधारित मानकों का चिन्हीकरण किया जाता है. वर्तमान में 160 देशों / संविदा समूहों में रामसर परिपाटी स्वीकार कर ली है. भारत में अब तक अंतरराष्ट्रीय महत्व के मात्र पच्चीस वेटलैंड चिन्हित व नामित है. जिनका कुल क्षेत्रफल 6,77,131 हेक्टेयर है.

आद्रभूमि/वेटलैंड किसे कहते हैं?

जलमग्न अथवा आर्द्रभूमि को वेटलैंड कहते हैं. प्राकृतिक अथवा कृत्रिम, स्थायी अथवा अस्थायी, पूर्णकालीन आर्द्र अथवा अल्पकालीन, स्थिर जल अथवा अस्थिर जल, स्वच्छ जल अथवा अस्वच्छ, लवणीय, मटमैला जल- इन सभी प्रकार के जल वाले स्थल वेटलैंड के अंतर्गत आते हैं. समुद्री जल, जहाँ भाटा-जल की गहराई छः मीटर से अधिक नहीं हो, भी वेटलैंड कहलाता है.

इस प्रकार जलयुक्त दलदली वन भूमि (Swamps) दलदली झाड़ी युक्त स्थल (Marsh) घास युक्त दलदल, जल प्लावित घास क्षेत्र (bogs) खनिज युक्त आर्द्रस्थल (Fens) सड़े गले पेड़-पौधों के जमाव वाली आर्द्रभूमि (Peatland) दलदल, नदी, झील, बाढ़ के क्षेत्र, बाढ़ वाले वन, समुद्री किनारे के झाड़ी युक्त स्थल (Mangroves) डेल्टा, धान के खेत, मूंगे की चट्टानों के क्षेत्र, बांध, नहर झरने, मरुस्थली झरने, ग्लेशियर, समुद्री तट ज्वार भाटे वाला स्थल आदि सभी आर्द्र क्षेत्र वेटलैंड कहलाते हैं. मानवकृत कृत्रिम जल स्थल जैसे मत्स्य पालन, जलाशय आदि भी वेटलैंड के अंतर्गत हैं. प्रत्येक वेटलैंड का अपना पर्यातंत्र होता है अर्थात पारिस्थितिक तंत्र होता है. जैव विविधता होती है, वानस्पतिक विविधता होती है. ये वेटलैंड जलजीवों, पक्षियों, आदि प्राणियों के आवास होते हैं.

बिगबैंग के बाद पृथ्वी आस्तित्व में आई और जब यह धीरे-धीरे ठंडी हुई तो सबसे पहले एक कोशिकीय जीवों का विकास हुआ और फिर मानव सहित अन्य बहुकोशिकीय जीव विकसित हुए. जीवों के विकास की एक लंबी कहानी है और इस कहानी का सार यह है कि धरती पर सिर्फ हमारा ही अधिकार नहीं है अपितु इसके विभिन्न भागों में विद्यमान करोड़ों प्रजातियों का भी इस पर उतना ही अधिकार है जितना कि हमारा. नदियों, झीलों, समुद्रों, जंगलों और पहाड़ों में मिलने वाले विभिन्न प्रकार के पादपों एवं जीवों (समृद्ध जैव-विविधता) को देखकर हम रोमांचित हो उठते हैं. जब जल एवं स्थल दोनों स्थानों पर समृद्ध जैव-विविधता देखने को मिलती है तो सोचने वाली बात यह है कि जिस स्थान पर जलीय एवं स्थलीय जैव-विविधताओं का मिलन होता है वह जैव-विविधता की दृष्टि से अपने आप में कितना समृद्ध होगा? दुनिया में 1758 से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय महत्व के वेटलैंड्स स्थल हैं. ऑस्ट्रेलिया का कोबॉर्ग प्रायद्वीप दुनिया का पहला नामित वेटलैंड्स है, जिसे 1974 में चुना गया था.

कांगो का गिरी-तुंब-मेनडोंबे (Ngiri-Tumba-Maindombe) और कनाडा का क्वीन मौद ग्लफ (Queen Maud Gulf) दुनिया के सबसे बड़े वेटलैंड्स हैं, जो 60 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैले हैं.

आर्द्रभूमि का वर्गीकरण: आर्द्रभूमि का वर्गीकरण एक समस्यात्मक कार्य रहा है, आमतौर पर स्वीकृत परिभाषा के अनुसार इसका वर्गीकरण निम्न प्रकार से हैं

समुद्री/तटीय आर्द्रभूमि Marine/Coastal Wetland

  • स्थायी उथला समुद्री जल [खाड़ी व जलडमरूमध्य (Straits)]
  • समुद्री उपज्वार जलीय बेड (Marine Subtidal Aquatic Bed)
  • कोरल रीफ
  • पथरीला समुद्री तट (Rocky Marine Shores)
  • बालू, गोटियाँ एवं कंकड़ तट (Sand, Shingle or Pebble Shores)
  • एश्चुअरी (Estuaries)
  • लैगून (Lagoon)
  • मैंग्रोव (Mangroves)

अंत:स्थलीय आर्द्रभूमि Inland Wetland

  • झील/तालाब (Lakes/Pond)
  • डेल्टा (Deltas)
  • स्ट्रीम/क्रीक (Stream/Creeks)
  • अनूप/कच्छ (Swamp/Marsh)
  • स्वच्छ पानी स्प्रिंग (Fresh Water Springs)

मानव निर्मित आर्द्रभूमि Man Made Wetland

  • एक्वाकल्चर (Aquaculture)
  • तालाब, छोटे टैंक [Ponds (Farm Pond), Small Tanks]
  • सिंचित कृषि भूमि (Irrigated Land)
  • कैनाल (Canals)
  • अपशिष्ट पानी निवारक क्षेत्र (Wastewater TreatmentArea)

भारत के वेटलैंड्स

रामसर संधि के तहत भारत में मान्यता प्राप्त जलक्षेत्रों की संख्या 37 हो गयी है. इनका कुल क्षेत्रफल 10.67 लाख हेक्टेयर है. जिन जलक्षेत्रों को रामसर संधि के तहत मान्यता मिली है उनमें महाराष्ट्र के नंदूर मधमेश्वर, पंजाब में केशोपुर-मियानी, ब्यास और नांगल जलाशय शामिल हैं. जबकि उत्तर प्रदेश के छह जलक्षेत्रों नवाबगंज, आगरा स्थित पार्वती, समन, समसपुर, संदी और सरसी नावर जलक्षेत्रों को यह दर्जा दिया गया है.

भारत में रामसर नामित आर्द्रभूमि की सूची

रामसर नामित आर्द्रभूमि स्थल स्थान

अष्टमुडी आर्द्रभूमि

सस्थमकोट्टा झील

वेम्बनाड-कोल आर्द्रभूमि

केरल
भितरकनिका मैंग्रोव उड़ीसा
भोज आर्द्रभूमि मध्य प्रदेश

चंद्र ताल

पोंग बांध झील

रेणुका आर्द्रभूमि

हिमाचल प्रदेश
चिलिका झील उड़ीसा
दीपोर बील असम
पूर्वी कोलकाता की आर्द्रभूमि पश्चिम बंगाल

हरिकेक आर्द्रभूमि

कंजली आर्द्रभूमि

रोपड़

पंजाब

होक्सार आर्द्रभूमि

सुरिंदर-मंसार झील

त्सोमोरिरी

वूलर झील

जम्मू और कश्मीर
नलसरोवर पक्षी अभयारण्य गुजरात
कोल्लेरू झील आंध्र प्रदेश
लोकतक झील मणिपुर
पॉइंट कैलीमेयर वन्यजीव और पक्षी अभयारण्य तमिलनाडु
रुद्र सागर झील त्रिपुरा
सांभर झील राजस्थान
ऊपरी गंगा नदी (ब्रजघाट से नरोरा तक) उत्तर प्रदेश

स्रोत: https://www.jagranjosh.com/general-knowledge/list-of-ramsar-wetland-sites-in-india-in-hindi-1503661123-2

30 जनवरी 2019 को रामसर कन्वेंशन के तहत भारतीय सुंदरबन को वेट लैंड ऑफ़ इंटरनेशनल इम्पोर्टेंस का दर्जा मिल गया है.

रामसर आर्द्रभूमि साइट का दर्जा पाने के बाद सुंदरबन रिजर्व वन देश में सबसे बड़ी संरक्षित आर्द्रभूमि होगी. भारत में पश्चिम बंगाल के पूर्वी कोलकाता वेटलैंड्स सहित 26 साइटें को वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय महत्व के रामसर आर्द्रभूमि स्थलों के रूप में मान्यता प्राप्त हैं. सुंदरबन रिजर्व वन 4,260 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है जिसमें 2,000 वर्ग किमी के मैंग्रोव वन और क्रीक इसे आर्द्रभूमि हेतु आदर्श स्थल (site) बनाते हैं. यह पद्मा, मेघना और ब्रह्मपुत्र नदी घाटी के डेल्टा क्षेत्र में स्थित है. रामसर कन्वेंशन के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्व के आर्द्रभूमि साइट का दर्जा सुंदरबन (जो पहले से ही विश्व धरोहर स्थल है) के संरक्षण में मदद करेगा, जो जलवायु परिवर्तन और बढ़ते समुद्र स्तर के ख़तरे का सामना कर रहा है.

आर्द्रभूमि की सुरक्षा के लिए किए गए सरकारी प्रयास:

  • पिछले छह महीनों में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने वेटलैंड्स की बहाली के लिए चार-स्तरीय रणनीति तैयार की है, जिसमें शामिल हैं:
  • आधारभूत डेटा तैयार करना,
  • वेटलैंड स्वास्थ्य कार्ड बनाना,
  • गीले वेटलैंड को सूचीबद्ध करना और लक्षित एकीकृत प्रबंधन योजनाओं को तैयार करना.

आर्द्रभूमि संरक्षण और प्रबंधन अधिनियम 2010 (भारत) :-

वर्ष 2011 में भारत सरकार ने आर्द्रभूमि संरक्षण और प्रबंधन अधिनियम 2010 की अधिसूचना जारी किया है. इस अधिनियम के तहत आर्द्रभूमियों को निम्नलिखित 6 वर्गों में बाँटा गया है:

  • अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियाँ.
  • पर्यावरणीय आर्द्रभूमियाँ. यथा- राष्ट्रीय उद्यान, गरान आदि.
  • यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल आर्द्रभूमियाँ.
  • समुद्रतल से 2500 मीटर से कम ऊँचाई की ऐसी आर्द्रभूमियाँ जो 500 हेक्टेयर से अधिक का क्षेत्रफल घेरती हों.
  • समुद्रतल से 2500 मीटर से अधिक ऊँचाई किंतु 5 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल.
  • ऐसी आर्द्रभूमियाँ जिनकी पहचान प्राधिकरण ने की हो.

आद्रभूमि का महत्व  

यदि हम मानव शरीर के साथ जीवमंडल की तुलना करते हैं, तो दलदल को उसका गुर्दे कहा जा सकता है, जो एक संचय, जैविक, भू रासायनिक, जल विज्ञान, जलवायु और गैस नियंत्रण कार्य करते हैं. पारिस्थितिक तंत्रों की स्थिरता बनाए रखने और उनमें उगने वाली पौधों की प्रजातियों की जैविक विविधता को संरक्षित करने के लिए वेटलैंड सिस्टम का बहुत महत्व है. दरअसल वेटलैंड (आर्द्रभूमि) एक विशिष्ट प्रकार का पारिस्थितिकीय तंत्र है तथा जैव-विविधता का एक महत्त्वपूर्ण अंग है. जलीय एवं स्थलीय जैव-विविधताओं का मिलन स्थल होने के कारण यहाँ वन्य प्राणी प्रजातियों व वनस्पतियों की प्रचुरता होने से वेटलैंड समृद्ध पारिस्थतिकीय तंत्र है. आज के आधुनिक जीवन में मानव जीवन को सबसे बड़ा खतरा जलवायु परिवर्तन से है और ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि हम अपनी जैव-विविधता का सरंक्षण करें. 40 फीसदी से अधिक प्रजातियां वेटलैंड्स में ही रहती हैं और उन्हें इनके जरिए पोषण मिलता है.

आर्द्रभूमि एक प्राकृतिक व कुशल कार्बन सिंक के रूप में कार्य करता है. उदाहरण के लिए दलदलीय काई भूमि के केवल 3% हिस्से पर फैली हुई है, परन्तु यह दुनिया के सभी वनों के मुकाबले दोगुनी मात्र में कार्बन को अवशोषित करने की क्षमता रखती है. आर्द्रभूमि जलवायु संबंधी आपदाओं के विरुद्ध बफर के रूप में कार्य करती हैं, इससे जलवायु परिवर्तन के आकस्मिक प्रभावों से बचा जा सकता है

वेटलैंड अत्यंत उत्पादक जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र है. वेटलैंड न केवल जल भंडारण कार्य करते हैं, अपितु बाढ़ के अतिरिक्त जल को अपने में समेट कर बाढ़ की विभीषिका को कम करते हैं. ये पर्यावर्णीय संतुलन में मनुष्य के सहायक हैं. वेटलैंडस में नाना प्रकार के जीव-जंतु एक कोषकीय से कषेरू की जीव तक पाए जाते हैं. जो एक समृद्ध जलीय जैववविविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं.

विश्व की 90% आपदाएं जल से संबंधित होती हैं तथा यह तटीय क्षेत्रों में रहने वाले 60% लोगों को बाढ़ अथवा सूनामी से प्रभावित करती है. आर्द्रभूमि एक प्राकृतिक व कुशल कार्बन सिंक के रूप में कार्य करता है. उदाहरण के लिए दलदलीय काई भूमि के केवल 3% हिस्से पर फैली हुई है, परन्तु यह दुनिया के सभी वनों के मुकाबले दोगुनी मात्र में कार्बन को अवशोषित करने की क्षमता रखती है. आर्द्रभूमि जलवायु संबंधी आपदाओं के विरुद्ध बफर के रूप में कार्य करती हैं, इससे जलवायु परिवर्तन के आकस्मिक प्रभावों से बचा जा सकता है.

कमल, जो कि दुनिया के कुछ विशेष सुन्दर फूल होने के साथ ही भारत का राष्ट्रीय फूलों है, आर्द्रभूमियों में उगता है. आर्द्रभूमियाँ अपने आस-पास अनेक ऐसे वनस्पतियों और जीवों को आश्रय प्रदान करती हैं जो आर्थिक विकास में सहायक होते हैं. आर्द्रभूमि विविधता से परिपूर्ण पारिस्थिति तंत्र का द्योतक है.

दुनिया की तमाम बड़ी सभ्यताएँ जलीय स्रोतों के निकट ही बसती आई हैं और आज भी वेटलैंड्स विश्व में भोजन प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. वेटलैंड्स के नज़दीक रहने वाले लोगों की जीविका बहुत हद तक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन पर निर्भर होती है. आर्द्रभूमियाँ अपने आस-पास बसी मानव बस्तियों के लिये जलावन लकड़ी, फल, वनस्पतियाँ, पौष्टिक चारा और जड़ी-बूटियों की स्रोत होती हैं. आर्द्रभूमि पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक सेवाओं की एक महत्वपूर्ण श्रेणी प्रदान करती है. कई आर्द्रभूमि महान प्राकृतिक सुंदरता के क्षेत्र हैं और कई आदिवासी लोगों के लिए महत्वपूर्ण हैं.

आर्द्रभूमि पारिस्थितिक तंत्र के विनाश का खतरा मुख्य रूप से जल निकासी पर चल रहे काम से जुड़ा हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप बड़ी मात्रा में उपजाऊ भूमि निकलती है, जिसका उपयोग चारागाह और बढ़ती फ़सलों के लिए किया जा सकता है. सिंचाई, घरेलू और तकनीकी ज़रूरतों के लिए पानी खींचने के लिए आर्द्रभूमि के गहन आर्थिक उपयोग को रोकना आवश्यक है.

अगर आप चाहते हैं कि धरती की उर्वरता बनी रहे, भू-गर्भ जल का स्तर पाताल न छुए, बाढ़ से कुछ हदतक ही सही, राहत मिले तो ‘वेटलैंड’ को संरक्षित करें. दरअसल ‘वेटलैंड’ सूखे की स्थिति में जहां पानी को बचाने में मदद करते हैं, वहीं बाढ़ के हालात में यह जलस्तर को कम करने व सूखी मिट्टी को बांध कर रखने में मददगार होते हैं. और तो और ‘वेटलैंड’ वन्य प्राणियों के लिए फीडिंग (भोजन), ब्रीडिंग (प्रजनन) ड्रिंकिंग (पेय) क्षेत्र है.

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