Published on Aug 09, 2023 Updated 0 Hours ago

इस भयंकर गर्मी में भारत, बिजलीघरों में बिजली उत्पादन में अचानक आई गिरावट की चुनौती का सामना कर रहा है.

भारत में कोयले की किल्लत: ‘मांग और आपूर्ति से हटकर मौजूद समीकरण’
भारत में कोयले की किल्लत: ‘मांग और आपूर्ति से हटकर मौजूद समीकरण’

ये लेख हमारी सीरीज़- कॉम्प्रिहेंसिव एनर्जी मॉनिटर: इंडिया ऐंड  वर्ल्ड का एक हिस्सा है.


भारत के ऊर्जा क्षेत्र में कोयले के भंडार में कमी और उसके चलते बिजली की कटौती की ख़बरें सुर्ख़ियां बटोर रही हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह कोयले के खदान से बिजलीघरों तक पहुंचने में संसाधनों के मसले को बताया जा रहा है. इसी दौरान भयंकर गर्मी के चलते देश में बिजली की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. 25 अप्रैल 2022 को खदानों से दूर स्थित भारत के 155 कोयले से चलने वाले उन बिजली घरों में सामान्य भंडार का महज़ 26 फ़ीसद कोयला उपलब्ध होने की बात कही गई थी. जबकि 39 गीगावाट (GW) बिजली का उत्पादन करने वाले उन 18 बिजलीघरों में कोयले का पर्याप्त भंडार था, जो कोयले की खदान से सीधे कोयला पाते हैं. समाचारों में कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) के हवाले से बताया गया कि कोयले की खदानों से लेकर लदाई के ठिकानों तक पर्याप्त मात्रा में कोयला उपलब्ध है और बिजलीघर इस कोयले को सड़क के रास्ते ले जा सकते हैं, क्योंकि कोयला ढोने के लिए रेलवे के डिब्बे उपलब्ध नहीं हैं. कोयला मंत्रालय के सचिव के हवाले से एक और ख़बर में कहा गया कि बिजली सेक्टर में संकट का कारण, कोयले की आपूर्ति में कमी नहीं, बल्कि कई बिजलीघरों में बिजली के उत्पादन में गिरावट आना है.

ठेके की शर्तों के तहत ये कोल इंडिया लिमिटेड की ज़िम्मेदारी होती है कि वो कोयले को बिजलीघरों तक पहुंचाए. ऐसे में उसका रेलवे के डिब्बे उपलब्ध न होने का तर्क देना, ठेके की शर्तों के उल्लंघन का पर्याप्त कारण नहीं बन सकता है. 

संसाधनों की चुनौती

सितंबर- अक्टूबर 2021 के दौरान भी देश में कोयले का ऐसा ही संकट देखा गया था और मीडिया में आई ख़बरों में इस संकट के लगभग यही कारण बताए गए थे: महामारी से जुड़ी पाबंदियां हटने के बाद मांग में इज़ाफ़ा, बहुत से बिजलीघरों में कोयले के भंडार का बहुत कम हो जाना, खदानों से कोयले की ढुलाई के लिए रेलवे के पर्याप्त डिब्बे न होना और मॉनसून की बारिश के दौरान कोयले की ढुलाई की दिक़्क़तें. ऐसे में जो सवाल ज़हन में आता है कि आख़िर इन सीधी सपाट दिखने वाली प्रबंधन और प्रशासन की दिक़्क़तों को पिछले छह महीने में दूर क्यों नहीं किया गया? रेलवे के डिब्बों की उपलब्धता और परिवहन प्रबंधन और प्रशासन से जुड़े मसले हैं, जिन्हें सरकार आसानी से दूर कर सकती है. ख़ास तौर से तब और जब कोल इंडिया लिमिटेड और रेलवे, दोनों सार्वजनिक कंपनियां हैं.

ठेके की शर्तों के तहत ये कोल इंडिया लिमिटेड की ज़िम्मेदारी होती है कि वो कोयले को बिजलीघरों तक पहुंचाए. ऐसे में उसका रेलवे के डिब्बे उपलब्ध न होने का तर्क देना, ठेके की शर्तों के उल्लंघन का पर्याप्त कारण नहीं बन सकता है. जैसा कि कोल इंडिया लिमिटेड ने कहा कि बिजलीघर कोयले को सड़क के रास्ते ढोकर ले जाएं, तो इसमें दिक़्क़त ये है कि सड़क के रास्ते कोयला ढोने का जो अतिरिक्त ख़र्च आएगा, उसका बोझ बिजलीघर, तुरंत बिजली की दरें बढ़ाकर ग्राहकों पर नहीं डाल सकते हैं. बिजली वितरण करने वाली कंपनियों की वित्तीय हालत पहले ही ख़राब है. ऐसे में ये कंपनियां महंगी दरों पर बिजली ख़रीदने से बेहतर विकल्प बिजली में कटौती करने को मानेंगी.

इस बात की बारीक़ी से समीक्षा किए जाने की ज़रूरत है कि बिजली की मांग बढ़ रही है. मार्च 2021 में बिजली संबंधी ऊर्जा की मांग 121.205 टेरावाट घंटे (Twh) थी. इस दौरान ऊर्जा की आपूर्ति 120.635 Twh थी और मांग की तुलना में आपूर्ति 0.5 प्रतिशत कम थी.

बिजलीघरों में बार-बार कोयले की कमी से निपटने के लिए हाल के दिनों में कुछ उपायों का एलान किया गया है. अप्रैल 2022 में ऊर्जा मंत्रालय ने निजी बिजली उत्पादकों को इस बात की इजाज़त दे दी कि वो इस संकट से निपटने के लिए एक साल के लिए कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित करने के बजाय, तीन साल के लिए कोयले की आपूर्ति के सौदे कर सकते हैं. स्वतंत्र रूप से बिजली बनाने वालों (IPPs) को कोयले की बोली लगाने की सीमा 67 दिनों से घटाकर 37 दिन कर दी गई और कोयले की आपूर्ति की समयसीमा को एक साल से बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया.

बिजली की मांग

इस बात की बारीक़ी से समीक्षा किए जाने की ज़रूरत है कि बिजली की मांग बढ़ रही है. मार्च 2021 में बिजली संबंधी ऊर्जा की मांग 121.205 टेरावाट घंटे (Twh) थी. इस दौरान ऊर्जा की आपूर्ति 120.635 Twh थी और मांग की तुलना में आपूर्ति 0.5 प्रतिशत कम थी. मार्च 2021 में बिजली की पीक डिमांड 186.389 गीगावाट थी और इस दौरान 185.892 गीगावाट बिजली की आपूर्ति की गई. इसका मतलब ये कि बिजली की मांग की तुलना में आपूर्ति 0.3 फ़ीसद कम थी.

संभावना इसी बात की है कि इन बिजली उत्पादकों ने बिजली बनाना इसलिए बंद कर दिया क्योंकि उन्हें लगा कि ऊंची क़ीमतों पर आयातित कोयला मंगाने से अच्छा उत्पादन ठप कर देना है. क्योंकि विश्व बाज़ार में कोयले की क़ीमत बहुत बढ़ गई है. 

मार्च 2022 में ऊर्जा की ज़रूरत 125.039 Twh थी और ऊर्जा की आपूर्ति 124.272 Twh यानी 0.6 प्रतिशत कम रही. मार्च 2022 में पीक डिमांड 200.727 गीगावाट थी, जबकि आपूर्ति 199.288 गीगावाट यानी 0.7 प्रतिशत कम थी. महामारी से पहले यानी मार्च 2019 में ऊर्जा की ज़रूरत 108.665 Twh और आपूर्ति 108.196 Twh यानी 0.4 प्रतिशत कम थी. उसी दौरान पीक डिमांड 169.454 गीगावाट और आपूर्ति 168.75 गीगावाट थी. अगर हम महामारी से पहले यानी मार्च 2019 और बाद के दौर यानी मार्च 2022 में बिजली वाली ऊर्जा की मांग की तुलना करें, तो मांग 15 फ़ीसद और पीक डिमांड 18 प्रतिशत बढ़ चुकी है. हालांकि ये बहुत अधिक इज़ाफ़ा है. लेकिन 2021 में ही ये बात साफ़ हो गई थी कि ऊर्जा की मांग में बहुत बढ़ोत्तरी होगी. एक और अहम बात जो ध्यान देने लायक़ है वो ये है कि पीक डिमांड में बहुत अधिक इज़ाफ़ा हो गया है. बिजली बनाने वालों के लिए ये एक कारोबारी चुनौती है. क्योंकि, इसके लिए उन्हें अपनी बिजली बनाने की क्षमता में इज़ाफ़ा करने के लिए इस तरह निवेश करना होगा, जिसकी ज़रूरत महज़ कुछ वक़्त की मांग पूरी करने के लिए होगी.

दुनिया के हालात का असर

24 अप्रैल 2022 को कोयले से लगभग 8430 मेगावाट बिजली बनाने की क्षमता रखने वाले बिजलीघरों ने ये जानकारी दी थी कि कोयले की कमी के चलते उन्हें बिजलीघर बंद करना पड़ा (या रख-रखाव के लिए बंद करने को मजबूर होना पड़ा). कोयले से 22,057 मेगावाट बिजली बनाने वाले बिजलीघरों ने बंद होने की वजह तकनीकी कारण बताई थी. वहीं, 4834 मेगावाट बिजली बनाने वाले बिजलीघरों ने बिजलीघर बंद करने की वजह तयशुदा रख-रखाव बताई थी. इसमें 1220 मेगावाट के एटमी पावर प्लांट भी शामिल थे. 5585 मेगावाट बिजली बनाने वाले थर्मल प्लांट ने बताया था कि उन्होंने बिजली ख़रीद के समझौते न होने के कारण बिजली बनाने का काम रोक रखा है. वहीं 2110 मेगावाट बिजली बनाने वाले बिजली घरों ने कहा कि उन्हें इसलिए उत्पादन बंद करना पड़ा क्योंकि तयशुदा बिजली उत्पादन न्यूनतम तकनीकी आवश्यकता से कम हो गया था. वहीं, कुल बिजली उत्पादन के चार फ़ीसद क्षमता वाले बिजलीघरों ने बताया कि उन्होंने कोयले के चलते बिजलीघर बंद कर दिए थे. जबकि 10 फ़ीसद ने बिजलीघर बंद होने की वजह तकनीकी कारण बताई. इन सब बिजलीघरों में से ज़्यादातर को आयातित कोयले से चलने के लिहाज़ से बनाया गया था. संभावना इसी बात की है कि इन बिजली उत्पादकों ने बिजली बनाना इसलिए बंद कर दिया क्योंकि उन्हें लगा कि ऊंची क़ीमतों पर आयातित कोयला मंगाने से अच्छा उत्पादन ठप कर देना है. क्योंकि विश्व बाज़ार में कोयले की क़ीमत बहुत बढ़ गई है.

टिकाऊ विकल्प ये हो सकता है कि बिजली की दरें, ईंधन की क़ीमतों के अनुपात में लायी जाएं. सरकार को चाहिए कि वो प्रशासनिक क़दमों से कोयला संकट दूर करने के बजाय, बिजली की उचित दरें तय करने को बढ़ावा दे. सही दाम होने से कोयले की आपूर्ति बढ़ेगी और उसकी मांग में उसी अनुपात में इज़ाफ़ा होगा.

सितंबर 2021 के कोयला संकट के दौरान समुद्र के रास्ते विदेश से आने वाले कोयले की क़ीमत में, सितंबर 2020 की तुलना में 950 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हो गया था. वहीं, यूरोप में कोयले और गैस की मांग बढ़ने से एशियाई तरल प्राकृतिक गैस (LNG) की क़ीमत 420 प्रतिशत बढ़ गई थी. भारत में ऊंचे दर्जे के आयातित कोयले के दाम 100 प्रतिशत बढ़कर 14,600 रुपए प्रति टन हो गए. इसी वजह से आयातित कोयले से चलने वाले ज़्यादातर बिजलीघर या तो बंद हो गए या फिर आला दर्ज़े का घरेलू कोयला इस्तेमाल करके बिजली बनाने लगे. इसका नतीजा ये हुआ कि सितंबर 2021 में भी ऐसा ही संकट पैदा हो गया था. 2022 में यूक्रेन के संकट और ऊर्जा की मांग में बढ़ोत्तरी के चलते आयातित कोयले की क़ीमतें 100 डॉलर प्रति टन से ऊपर चली गई हैं. भारत में आयातित कोयले से बिजली बनाने वालों के लिए ये एक बड़ी चुनौती है. इस बात की संभावना काफ़ी अधिक है कि आयातित कोयले से बिजली बनाने वाले ज़्यादातर बिजलीघरों ने महंगे दाम वाला विदेशी कोयला ख़रीदने के बजाय बिजली उत्पादन ही बंद कर दिया. जो बात बिल्कुल स्पष्ट है, वो ये है बिजली उत्पादन में आयातित कोयले की हिस्सेदारी बढ़ने के चलते, जब कोयले के दाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते हैं, तो उनका असर भारत पर भी पड़ रहा है. ये विडंबना ही है कि सरकार, उसी आयातित कोयले का इस्तेमाल करके बिजली बनाने का सुझाव दे रही है, जो शायद मौजूदा बिजली संकट की प्रमुख वजह है. यानी जिस वजह से संकट पैदा हुआ, उसी नुस्खे से सरकार इस संकट से बाहर आने को कह रही है. इससे ज़्यादा टिकाऊ विकल्प ये हो सकता है कि बिजली की दरें, ईंधन की क़ीमतों के अनुपात में लायी जाएं. सरकार को चाहिए कि वो प्रशासनिक क़दमों से कोयला संकट दूर करने के बजाय, बिजली की उचित दरें तय करने को बढ़ावा दे. सही दाम होने से कोयले की आपूर्ति बढ़ेगी और उसकी मांग में उसी अनुपात में इज़ाफ़ा होगा.

Source: Central Electricity Authority

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Akhilesh Sati

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Akhilesh Sati is a Programme Manager working under ORFs Energy Initiative for more than fifteen years. With Statistics as academic background his core area of ...

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Lydia Powell

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Ms Powell has been with the ORF Centre for Resources Management for over eight years working on policy issues in Energy and Climate Change. Her ...

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Vinod Kumar Tomar

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Vinod Kumar, Assistant Manager, Energy and Climate Change Content Development of the Energy News Monitor Energy and Climate Change. Member of the Energy News Monitor production ...

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