Author : Ramanath Jha

Published on Nov 06, 2019 Updated 0 Hours ago

किसी भी बस्ती में अपराध की दर और इसकी वजह के बीच संबंध का सत्यापन एक पेचीदा मसला है. भारत में अभी भी शहरीकरण की प्रक्रिया चल रही है. इसलिए आज इस विषय पर गहराई से पड़ताल किए जाने की ज़रूरत है.

भारत के सबसे बड़े शहरी इलाक़ों में अपराध का एक विश्लेषण

अक्टूबर 2019 को भारत के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने साल 2017 में देश भर में हुए अपराधों के आंकड़े जारी किए. सही तुलना के लिए एनसीआरबी ने अपराध की दरों को प्रति एक लाख आबादी पर अपराध के पैमाने के हिसाब से पेश किया. किसी राज्य की आबादी के अनुपात में वहां होने वाले अपराध का रिकॉर्ड देखना ही तुलना करने का सही तरीक़ा है. अगर हम राज्य का आकार और उसकी आबादी देखे बग़ैर केवल उस राज्य में हुए अपराधों की संख्या देखेंगे, तो ये अपराधों की सही तस्वीर नहीं होगी इसके अलावा एनसीआरबी ने अपराध से जुड़े आंकड़ों को हत्या, अपहरण, महिलाओं के ख़िलाफ़ जुर्म, बच्चों और बुज़ुर्गों के ख़िलाफ़ किए गए अपराध, आर्थिक अपराध और साइबर क्राइम की श्रेणी में भी बांटा है. इस बार एनसीआरबी ने अपने आंकड़ों को दो हिस्सों में पेश किया है. पहला तो है, अपराधों का राज्यवार ब्यौरा. और दूसरा, देश के 19 बड़े शहरों में हुए अपराधों का आंकड़ा. इन शहरों की आबादी बीस लाख से ज़्यादा है. इस लेख में हम इन शहरों में हुए अपराध के आंकड़ों का ही विश्लेषण ख़ास तौर से करेंगे. शहरी आबादी में अपराध के आंकड़े असल में एक व्यापक शहरी बस्ती के आंकड़े हैं. इसीलिए इस बार कोझीकोड, कोयम्बटूर, कोच्चि, ग़ाज़ियाबाद और पटना में हुए जुर्म के आंकड़े भी इस में शामिल किए गए हैं. इन शहरों की आबादी बीस लाख से कम है. लेकिन, इनके आस-पास की बस्तियों को जोड़ कर ये बीस लाख से ज़्यादा आबादी वाले बन जाते हैं. इसीलिए इन शहरों के जुर्म की संख्या को भी एनसीआरबी ने अपने डेटा में जगह दी है.

भले ही एनसीआरबी ने बीस लाख से ज़्यादा आबादी वाले शहरों के आंकड़े अलग से जारी किए हैं. लेकिन, इन में से कई शहर ऐसे हैं, जिनकी आबादी दो करोड़ से भी ज़्यादा है. इन में से पांच सबसे बड़े शहर हैं-दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई और बैंगलुरू. जिन 19 शहरी बस्तियों में अपराध के आंकड़े जारी किए गए हैं, उन में से तीन-तीन शहर महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के हैं. वहीं, गुजरात, केरल, तमिलनाडु के दो-दो शहर हैं. इन में बिहार, दिल्ली, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल के एक-एक शहर शामिल हैं. तुलना के लिए हम ने इस लेख में छह बड़ी शहरी बस्तियों (दिल्ली, ग़ाज़ियाबाद, जयपुर, कानपुर, लखनऊ) को एक साथ उत्तरी शहरों के दर्ज़े में रखा है. वहीं, बैंगलुरू, चेन्नई, कोयम्बटूर, हैदराबाद, कोच्चि और कोझीकोड को दक्षिणी शहरी बस्तियों के दर्ज़े में रखा है. आंकड़ों को सहज बनाने के लिए अपराधों के आंकड़ों में दशमलव के बाद की संख्या की अनदेखी कर दी गई है.

आईपीसी की धाराओं में दर्ज़ अपराधों की बात करें, तो दिल्ली में प्रति एक लाख आबादी में 1306 जुर्म दर्ज़ किए गए हैं, जो कि अन्य शहरों के मुक़ाबले बहुत ज़्यादा है. दिल्ली के बाद कोच्चि, पटना, जयपुर और लखनऊ का नंबर आता है. इन शहरों में प्रति एक लाख आबादी पर आईपीसी की धाराओं में हुए जुर्म की संख्या क्रमश: 809,751,683 और 600 है. आईपीसी के तहत दर्ज़ सबसे कम अपराधों वाले शहरों की बात करें तो कोलकाता में ये 141 प्रति लाख है, कोयम्बटूर में 144, हैदराबाद में 187, मुंबई में 212 और चेन्नई में प्रति एक लाख आबादी पर 221 अपराध आईपीसी की धाराओं में दर्ज़ किए गए. उत्तरी शहरों में आईपीसी की धाराओं वाले अपराधों की दर, दक्षिणी इलाक़ों के शहरों के मुक़ाबले क़रीब दोगुनी है.

ऐसे अपराध जिन की वजह से मौत हो गई है, उन में बिहार की राजधानी पटना पहले नंबर पर है. यहां प्रति एक लाख आबादी पर हत्या की 9 वारदातें दर्ज़ की गईं. वहीं नागपुर में 8, इंदौर, जयपुर और बैंगलुरू में प्रति एक लाख आबादी पर हत्या की 3 वारदातें दर्ज़ की गईं. हत्या के सबसे ज़्यादा मामले कोझीकोड, कोच्चि, कोलकाता, मुंबई और हैदराबाद में दर्ज़ किए गए. इन सभी शहरों में प्रति एक लाख आबादी पर एक से भी कम क़त्ल की वारदातें हुईं. यानी क़त्ल के अपराध में उत्तरी भारत के शहर दक्षिणी भारत से सात गुना ज़्यादा हैं.

महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों की बात करें तो, लखनऊ में प्रति एक लाख आबादी पर महिलाओं के ख़िलाफ़ 179 अपराध दर्ज़ हुए. दिल्ली में ये आंकड़ा 152, इंदौर में 130, जयपुर में 128 और कानपुर में 118 देखा गया.

महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों की बात करें तो, लखनऊ में प्रति एक लाख आबादी पर महिलाओं के ख़िलाफ़ 179 अपराध दर्ज़ हुए. दिल्ली में ये आंकड़ा 152, इंदौर में 130, जयपुर में 128 और कानपुर में 118 देखा गया. महिलाओं के ख़िलाफ़ सबसे कम अपराध, कोयम्बटूर में 7, चेन्नई में 15, सूरत में 28, कोलकाता में 29 और कोझीकोड में 33 प्रति लाख दर्ज़ किए गए. इस मामले में उत्तरी शहरों में अपराध का आंकड़ा दक्षिणी शहरों से तीन गुना ज़्यादा है.

बच्चों के ख़िलाफ़ अपराध के मामलों में दिल्ली सबसे आगे है. जहां प्रति एक लाख आबादी पर बच्चों के ख़िलाफ़ जुर्म के 35 मामले दर्ज़ किए गए. इसके बाद मुंबई में 19, बैंगलुरू में 8, पुणे में 7 और इंदौर में प्रति एक लाख आबादी पर बच्चों के ख़िलाफ़ 4 अपराध दर्ज़ किए गए. बच्चों से होने वाले अपराध की सबसे कम दर कोयम्बटूर, ग़ाज़ियाबाद, पटना, कोच्चि और कोझीकोड में देखी गई. इन सभी शहरों में प्रति एक लाख आबादी पर बच्चों पर जुर्म के एक से भी कम मामले दर्ज़ किए गए. बुज़ुर्गों से होने वाले जुर्म के मामले में मुंबई की स्थिति सबसे ख़राब है. जहां, प्रति एक लाख आबादी पर इस अपराध की दर 30 है. इसके बाद दिल्ली में 20, अहमदाबाद में 14, चेन्नई में 13 और बैंगलुरू में प्रति एक लाख आबादी पर बुज़ुर्गों से अपराध के 5 मामले दर्ज़ किए गए. इस लिहाज़ से देखें तो, बुज़ुर्गों के लिए सबसे अच्छे शहर कानपुर, इंदौर, कोझीकोड, ग़ाज़ियाबाद और पटना पाये गए. इन सभी शहरों में बुज़ुर्गों से अपराध की दर प्रति एक लाख आबादी पर एक से भी कम है. अपराध की इस श्रेणी में उत्तरी भारत के शहरों की स्थिति, दक्षिणी हिस्सों के शहरों के मुक़ाबले बेहतर है.

आर्थिक अपराधों की बात करें, तो जयपुर 141 के औसत के साथ अव्वल है. इसके बाद लखनऊ में 65, बैंगलुरू में 41, दिल्ली में 30, और कानपुर में प्रति एक लाख आबादी पर आर्थिक अपराध का औसत 26 ठहरता है. आर्थिक अपराध के मामलों में कोयम्बटूर, चेन्नई, कोझीकोड, पटना और अहमदाबाद की स्थिति सबसे अच्छी है. इन सभी शहरों में प्रति एक लाख आबादी पर आर्थिक अपराध का औसत 10 से भी कम है. कुल मिलाकर, दक्षिणी हिस्से के शहरों के मुक़ाबले उत्तरी इलाक़े के शहरों में अपराध की दर कमोबेश दोगुनी है. भारत के सूचना प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में मशहूर बैंगलुरू साइबर अपराध की दर में भी अव्वल है, जहां प्रति एक लाख आबादी पर पर साइबर क्राइम की दर 32 है. इसके बाद जयपुर में 22, लखनऊ में 21, कानपुर में 8 और मुंबई में साइबर क्राइम प्रति एक लाख आबादी पर 7 के औसत से दर्ज़ किया गया. चेन्नई, कोझीकोड, कोयम्बटूर, दिल्ली और कोलकाता में साइबर क्राइम की तादाद सबसे कम देखी गई, जहां ये प्रति एक लाख आबादी पर दो से भी कम रही.

इन सभी आंकड़ों का विश्लेषण करने पर एक बात साफ़ होती है. वो ये कि अपराध के मामले में दिल्ली, जयपुर, लखनऊ, इंदौर और पटना बहुत आगे हैं. इन सभी शहरों में अपराध का औसत देश के बाक़ी शहरों से बहुत ज़्यादा है. वहीं, कोझीकोड, कोयम्बटूर, चेन्नई, कोच्चि और कोलकाता में अपराध की दर देश के अन्य शहरों के मुक़ाबले सबसे कम है.

भारत के सूचना प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में मशहूर बैंगलुरू साइबर अपराध की दर में भी अव्वल है, जहां प्रति एक लाख आबादी पर पर साइबर क्राइम की दर 32 है.

आम तौर पर ये माना जाता है कि शहरों में अपराध ज़्यादा होते हैं. महानगरों में छोटे शहरों से ज़्यादा अपराध होते हैं. अमेरिका के 1994 के आंकड़ों का निचोड़ कहता है कि वहां के महानगरों में दूसरे शहरों के मुक़ाबले अपराध की दर 79 प्रतिशत ज़्यादा थी. ग्रामीण इलाक़ों के बनिस्बत शहरों में हिंसा की वारदातें 300 प्रतिशत ज़्यादा होती दर्ज़ की गईं. इसके अलावा, अमेरिका के दो सबसे बड़े शहरों न्यूयॉर्क और लॉस एंजेलस में अन्य बड़े शहरों के मुक़ाबले जुर्म की दर चार गुना ज़्यादा थी. बड़े शहरों में अपराध की दर ज़्यादा होने के पीछे इन शहरों में धल-दौलत ज़्यादा होना और बड़ी आबादी के बीच जान-पहचान कम होने को वजह बताया गया. जान-पहचान न होने से अपराधियों को गिरफ़्तारी का डर कम होता है. शहरी इलाक़ों में लोगों से अपराध ज़्यादा होने की वजह ये भी है कि यहां की बड़ी आबादी में अपराधी भी काफ़ी होते हैं.

भारतीय संदर्भ में देखें तो शहरी अपराधों के पीछे की वजह खोजने के लिए अभी और काम किए जाने की ज़रूरत है. फिलहाल, एनसीआरबी जो आंकड़े जारी करता है, उनसे अपराध की वजह जानने के लिए किसी नतीजे पर पहुंचना मुश्किल है. मसलन, देश की सबसे बड़ी शहरी आबादी दिल्ली में है. अपराध के मामले में भी ये अव्वल है. लेकिन, आबादी के लिहाज़ से दिल्ली के बाद दूसरे नंबर पर आने वाले मुंबई, या तीसरे बड़े शहर कोलकाता, या चौथे महानगर चेन्नई में अपराध की दर वैसी नहीं है. हक़ीक़त तो ये है कि दिल्ली की तुलना में मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में अपराध की दर अन्य शहरों के मुक़ाबले बहुत कम है.

एनसीआरबी के आंकड़ों का एक हिस्सा इस बात की तो तस्दीक़ करता है कि शहरों में जुर्म ज़्यादा हो रहे हैं. यही वजह है कि उत्तरी भारत के राज्यों के शहरों में अपराध उन राज्यों से भी कहीं अधिक हैं. ये आईपीसी की धाराओं में दर्ज़ होने वाले अपराधों, क़त्ल, अपहरण, महिलाओं के विरुद्ध अपराध आर्थिक अपराध और साइबर क्राइम समेत सभी श्रेणियों में लागू होता है. लेकिन, यही बात दक्षिणी भारत के राज्यों पर लागू नहीं होती. क्योंकि इन शहरी बस्तियों में आम तौर पर अपराध की दर कम देखी गई है. और ये कम तादाद अपराध की सभी श्रेणियों पर लागू होती है. मसलन, आईपीसी के तहत दर्ज़ अपराध में पटना, जयपुर और लखनऊ का औसत क्रमश: 751,693 और 699 है. जबकि बिहार, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के राज्य भर के अपराधों का औसत 171, 229 और 139 ही है. अगर हम ये तर्क दें कि शहरी इलाक़ों में अपराध की दर ज़्यादा होती ही है, तो फिर ये बात दक्षिणी भारत के शहरों पर क्यों लागू नहीं होती? तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना और कर्नाटक में प्रति एक लाख आबादी पर आईपीसी अपराध का औसत 256, 656, 323, और 232 है. लेकिन, चेन्नई, कोयम्बटूर, कोझीकोड और हैदराबाद में आईपीसी के तहत दर्ज़ अपराधों का औसत क्रमश: 221, 144, 235 और 187 ही है. जो इन शहरों के राज्यों के औसत से काफ़ी कम है. आंकड़ों में ये फ़र्क़ हमें इस बात के लिए प्रेरित करना चाहिए कि हम अपराध की ज़्यादा दर की वजहों की और भी गहराई से पड़ताल करें. जैसे कि अलग-अलग इलाक़े के लोगों के अपराध के प्रति झुकाव की आदत, बाहर से आकर बसे लोग, पुलिस व्यवस्था की कमी या बेहतरी या प्रति एक लाख आबादी पर पुलिसकर्मियों की संख्या, आपराधिक न्याय व्यवस्था और दूसरे पहलुओं पर भी गौर किया जाना चाहिए.

किसी भी बस्ती में अपराध की दर और इसकी वजह के बीच संबंध का सत्यापन एक पेचीदा मसला है. भारत में अभी भी शहरीकरण की प्रक्रिया चल रही है. इसलिए आज इस विषय पर गहराई से पड़ताल किए जाने की ज़रूरत है. इस विश्लेषण के नतीजे हमें अपने शहरों और क़स्बों की बसावट और उनके विकास को नए सिरे से परिभाषित करने में मददगार साबित होंगे.

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