Published on Jan 12, 2021 Updated 0 Hours ago

अब जब भारत बचाव से बढ़ोत्तरी के चरण की ओर बढ़ रहा है तो ऐसे में उन क्षेत्रों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जहां आर्थिक तरक़्क़ी और नौकरियां हरित निवेश के आधार पर सामने आ रही हों.

‘क्लाइमेट फ़ाइनेंस की व्याख़्या’

साल 2020 को जलवायु क्षेत्र से जुड़े वित्तीय फ़ैसलों के लिए एक महत्वपूर्ण साल के रूप में याद किया जाएगा. इस बात की उम्मीद की जा रही है कि साल 2021 में ग्लासगो में होने वाली कॉप-26 शिखर वार्ताओं (COP26) के दौरान यह चर्चाएं फलीभूत हो सकती हैं. दुनियाभर में फैली कोविड-19 की महामारी ने वैश्विक स्तर पर हरित एजेंडे (global green agenda) यानी जलवायु परिवर्तन से जुड़े मसलों पर बातचीत को पीछे धकेल दिया है, इस लिए अब ज़रूरत इस बात की है कि जलवायु परिवर्तन पर और तेज़ी से ध्यान दिया जाए और इस मुद्दे को एक बार फिर पूरी कोशिश के साथ केंद्र में लाया जाए.

ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी पर्यावरण के लिए अनुकूल बुनियादी ढांचे को बनाने के लिए उपलब्ध सार्वजनिक धन में तेज़ी से कमी आई है, क्योंकि सरकारी बजट को राहत कार्यक्रमों के लिए आवंटित किया गया है. 

जलवायु से जुड़े मुद्दों पर विश्वभर के देशों द्वारा किए जाने वाले कार्यों के पीछे सबसे बड़ा कारक है, जलवायु संबंधी वित्त यानी क्लाइमेट फ़ाइनेंस (climate finance) यानी स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय वित्तपोषण, जो सार्वजनिक, निजी और वैकल्पिक स्रोतों से इस ओर खींचा गया हो और उन कार्यों का समर्थन करे जो जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से निपटने के लिए ज़रूरी हैं. दुनिया भर में फैले इस संकट ने जलवायु वित्त परिदृश्य को काफ़ी बदल दिया है: ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी पर्यावरण के लिए अनुकूल बुनियादी ढांचे को बनाने के लिए उपलब्ध सार्वजनिक धन में तेज़ी से कमी आई है, क्योंकि सरकारी बजट को राहत कार्यक्रमों के लिए आवंटित किया गया है. हरित बुनियादी ढांचे से संबंधित परियोजनाओं के लिए बढ़ते जोखिम के साथ, निजी पूंजी का प्रवाह भी बहुत हद तक बाधित होने की संभावना है, जिससे वित्तपोषण की खाई यानी धन की ज़रूरत और धन की उपलब्धता के बीच का अंतर और गहरा रहा है. इस बीच, दुनिया के सभी देश महामारी के बाद की अपनी अर्थव्यवस्थाओं को जलवायु परिवर्तन के कारणों से दूर रखते हुए हरित तौर तरीकों को हिसाब से ढालना चाहते हैं. उनकी कोशिश है अर्थव्यवस्थाओं में लचीलेपन को मज़बूत किया जाए और सामाजिक न्याय से संबंधित उन अनियमितताओं को संबोधित किया जाए जो महामारी के चलते सामने आई हैं. इन देशों को अब ग्रीन बॉन्ड मार्केट्स (green bond markets) को प्रभावी ढंग से विस्तारित करने, अंतरराष्ट्रीय ऋण पूंजी बाज़ार का लाभ उठाने और मिश्रित फ़ाइनेंस का लाभ उठाने के लिए के लिए अपनी रणनीतियां बनानी होंगी, ताकि इन परस्पर जुड़ी हुई इकाईयों को साधते हुए इनका लाभ उठाया जा सके.

फ़ाइनेंस फैक्टशीट: जलवायु संबंधी वित्त यानी क्लाइमेट फ़ाइनेंस का मतलब है स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय वित्तपोषण, जो सार्वजनिक, निजी और वैकल्पिक स्रोतों से इस ओर खींचा गया हो. यह जलवायु परिवर्तन के कारणों को खत्म करने और उनका उपाय खोजने की दिशा में किए जाने वाले कामों के लिए इस्तेमाल किया जाता है ताकि जलवायु परिवर्तन को रोका जा सके.

2)   वैश्विक स्तर पर जलवायु संबंधी वित्त यानी क्लाइमेट फ़ाइनेंस साल 2013 से 2018 के बीच तेज़ी से बढ़ा, जिसमें से 93 फीसदी फ़ाइनेंस को जलवायु परिवर्तन को कम करने से जुड़े अक्षय ऊर्जा (renewable energy) संबंधी निवेश के लिए इस्तेमाल किया गया है.

3)   फिर भी जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरगर्वमेंटल पैनल ऑफ क्लाइमेट चेंज आईपीसीसी के मुताबिक इस क्षेत्र में निवेश में, साल 2016 और 2050 के बीच, सालाना 1.6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से 3.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक कम रहा है. इस निवेश की ज़रूरत है ताकि पेरिस समझौते के अंतर्गत तय किए गए 1.5 C [PA1] के लक्ष्य को पाया जा सके.

4)    अकेले भारत में साल 2030 तक क्लाइमेट स्मार्ट निवेश की ज़रूरत 3.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक होगी.

देशों को अब ग्रीन बॉन्ड मार्केट्स (green bond markets) को प्रभावी ढंग से विस्तारित करने, अंतरराष्ट्रीय ऋण पूंजी बाज़ार का लाभ उठाने और मिश्रित फ़ाइनेंस का लाभ उठाने के लिए के लिए अपनी रणनीतियां बनानी होंगी, ताकि इन परस्पर जुड़ी हुई इकाईयों को साधते हुए इनका लाभ उठाया जा सके.

  1. 2017/2018 तक ओईसीडी देशों से गैर ओईसीडी देशों के बीच 72 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रवाह हुआ, बनिस्पत विकसित देशों द्वारा किए गए प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर के वादे के जिसके ज़रिए पेरिस समझौते के अंतर्गत विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कार्रवाई की जा सके.
  2. साल 2018 में हरित एजेंडे के तहत भारत में आने वाला वित्त 21 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जिसमें से 85 फीसदी घरेलू स्तर पर जुटाया गया था.
  3. क्लाइमेट फ़ाइनेंस की कुल राशी का 54 फीसदी हिस्सा ऋण से आया था जो हरित फ़ाइनेंसिग के लिए इस्तेमाल किया गया सबसे बड़ा घटक था.
  4. बिजली उत्पादन क्षेत्र को भारत में हरित फ़ाइनेंसिंग का सबसे बड़ा हिस्सा जाता है, जो आंकड़ों के मुताबिक 80 फीसदी है.
  1. फ़ाइनेंस को तैयार करने और उसे वितरण के लिए ग्रीन बॉड सबसे ज़रूरी उपकरण के रूप में उभरे हैं. ग्रीन बॉड तय आमदनी का एक ज़रिया हैं जिससे होने वाली आमदमी को उन परियोजनाओं और कामों में लगाया जाता है, जिनका जलवायु पर सकारात्मक असर हो.
  2. मील के पत्थर: पहला ग्रीन बॉड यूरोपीय निवेश बैंक (ईआईबी) द्वारा 2007 में जारी किया गया था. भारत में जारी पहला ग्रीन बॉड येस बैंक ने जारी किया था. हरित वित्तीय उपकरणों के शुरु किया गया पहला प्लेटफॉर्म साल 2016 में शुरु किया गया, लक्सेमबर्ग ग्रीन एक्सचेंज था.
  3. साल 2019 में वैश्विक स्तर पर जारी किए गए ग्रीन बॉड्स की कुल कीमत 258.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी जो साल 2018 के मुक़ाबले 51 फीसदी अधिक थी.
  4. जैसा की हरित फ़ाइनेंस से दूसरे क्षेत्रों में भी है, ग्रीन बॉंड्स से होने वाली आमदनी की सबसे अधिक खपत अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में है.
  1. की महामारी ने दुनियाभर में हरित फ़ाइनेंस के तंत्र को अस्त-व्यस्त कर दिया है. लेकिन इस के साथ उसने सभी देशों को हरित तौर तरीकों और हरित व टिकाऊ अर्थव्यवस्थाओं को अपनाने का मौका भी दिया है.
  2. रॉयटर्स के मुताबिक वैश्विक स्तर पर हरित क्षेत्र में सरकारी पैकेज मई 2020 की शुरुआत में ही 15 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर पहुंच गया था.
  3. ख़र्च को लेकर की गई अब की घोषणाओं में यूरोपीय संघ और उस के सदस्य देश सबसे आगे हैं, जिनके ज़रिए कुल 249 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ख़र्च किया गया है.
  4. ब्लूमबर्ग और आईएमएफ, कुल राशि को 12 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक मानते हैं. ब्लूमबर्ग के अनुमानों के मुताबिक जून 2020 तक कुल पैकेज के 0.2 फीसदी से भी कम हिस्से को जलवायु परिवर्तन से जुड़ी प्राथमिकताओं की ओर ख़र्च किया गया है.
  5. महामारी से निपटने के लिए जुटाए गए अपने फंड के एक हिस्से के रूप में यूरोपीय संघ ने 267 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ग्रीन बॉंड जारी करने की घोषणा की है. यह राशि पिछले साल के दौरान बेची गई किसी भी तरह की ग्रीन सेक्यूरिटीज़ से अधिक है.
  6. लंदन स्थित रणनीतिक वित्तीय निवेश का आकलन करने वाली संस्था ‘विविड इकोनॉमिक्स’ द्वारा तैयार किए गए, ग्रीन स्टिमुलस इंडेक्स (Green Stimulus Index) के पैमाने पर भारत का प्रदर्शन सबसे ख़राब है, जिसमें वो दक्षिण अफ्रीका, मेक्सिको, चीन और अमेरिका के साथ है.
  7. अब जब भारत बचाव से बढ़ोत्तरी के चरण की ओर बढ़ रहा है तो ऐसे में उन क्षेत्रों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जहां आर्थिक तरक़्क़ी और नौकरियां हरित निवेश के आधार पर सामने आ रही हों.
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