Author : Deepak Sinha

Published on May 05, 2024 Updated 0 Hours ago

वास्तविक नियंत्रण रेखा पर असल में जो हालात हैं, हमारा राजनैतिक नेतृत्व उसे छुपाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन इससे उसकी विश्वनीयता कम हो रही है

सैन्य नेतृत्व: सवालों के घेरे में…

भारत और चीन के बीच लद्दाख में 13वीं कॉर्प्स कमांडर स्तर की बातचीत के बाद तीख़ी बयानबाज़ी हुई. वैसे इस बातचीत को टाला गया था और इसका कोई नतीजा भी नहीं निकला. इसके बाद लद्दाख और दूसरे क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हालात को लेकर केंद्र सरकार ने जिस तरह से अपने नागरिकों को अंधेरे में रखा है, उसकी आलोचना हो रही है. सच्चाई बयां न करने की कीमत चुकानी पड़ती है. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ. जिस तरह से गलवान में बंदी बनाए गए हमारे जवानों के फोटोग्राफ्स और वीडियो हाल में जारी किए गए, उससे देशवासियों में शर्मिंदगी का अहसास हुआ और वे इसे लेकर काफी नाराज़ हैं. यह गुस्सा खासतौर पर हमारे नेताओं में दूरदृष्टि के अभाव को लेकर है, जिन्होंने इस मामले का सच शुरुआत में ही हमारे सामने नहीं रखा. हमारा राजनैतिक नेतृत्व इस सच को छुपाना चाहता था, लेकिन हुआ यह कि हम चीन के सूचना युद्ध का शिकार हो गए. इस तरह के युद्ध में उसे महारत हासिल है और ऐसी घटनाओं का इस्तेमाल वह अपना विमर्श बढ़ाने के लिए करता आया है. अगर हमारा राजनैतिक नेतृत्व यह गलती न करता तो चीन को इस घटना का फायदा उठाने का मौका न मिलता

 इस तरह की खबरें आई थीं कि हाल में अरुणाचल में कुछ समय के लिए कुछ चीनी सैनिकों को भारत ने बंदी बना लिया था. इन रिपोर्ट्स को गलत साबित करने और अपने नागरिकों को संदेश देने के लिए चीन ने गलवान वाली तस्वीरें और वीडियो जारी किए. 

गलवान में बंदी बनाए गए जवानों की तस्वीरें और वीडियो जारी करने की टाइमिंग को लेकर भी कई बातें कही जा रही हैं. इस तरह की खबरें आई थीं कि हाल में अरुणाचल में कुछ समय के लिए कुछ चीनी सैनिकों को भारत ने बंदी बना लिया था. इन रिपोर्ट्स को गलत साबित करने और अपने नागरिकों को संदेश देने के लिए चीन ने गलवान वाली तस्वीरें और वीडियो जारी किए. यह भी हो सकता है कि इन्हें जारी करने का मकसद यूपी चुनाव से पहले मोदी सरकार को शर्मसार करना हो.

चीन के इस कदम का मकसद कुछ भी हो, इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि कर्नल बाबू और उनके जवान गलवान में शेर की तरह लड़े. उन्होंने संख्या में अपने से अधिक, धूर्त और निर्मम दुश्मन का दिलेरी से सामना किया. वह दुश्मन, जिसका हमसे किया गया वादा निभाने का कोई इरादा नहीं था. इस बीच, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दलील दी कि सीमा पर तनाव घटाने के लिए भारत और चीन के बीच जो वार्ता चल रही है, ‘वह गोपनीय और निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है.’ ऐसा नहीं है कि उनकी बात में दम नहीं, लेकिन इसे ऐसे मामलों के बारे में जानने के नागरिकों के अधिकार के बरक्स भी देखना होगा. यही बात भारत जैसे एक जीवंत लोकतांत्रिक देश को चीन से अलग करती है. बदकिस्मती से ऐसा लगता है कि यह बात जवाबदेही छुपाने की नीयत से नागरिकों के सामने नहीं रखी गई. दुनिया भर में राजनैतिक नेतृत्व इस तरह की हरकत करता आया है. हालांकि, गलवान मामले का सच छुपाने की वजह से यह बताना मुश्किल हो गया है कि इस स्थिति में हमें लाने के लिए कौन जिम्मेदार है. और इस वजह से सरकार की विश्वसनीयता भी घटी है.

सेना में सब-कुछ ठीक नहीं है

राजनैतिक नेतृत्व ने जो किया सो किया, सैन्य नेतृत्व का इस मामले को लेकर जो व्यवहार रहा, वह वाकई चिंता में डालने वाला है. ख़ासतौर पर जिस तरह से उसने राजनैतिक नेतृत्व की आड़ में बचने की कोशिश की. जैसा कि मनोज जोशी ने इस मामले में लिखा है कि चीन, हमारी सरकार और जमीन पर तैनात हमारे जवान, उन सबको पता है कि गलवान में क्या हुआ था. इस सच्चाई को कुछ भी कहकर बदला नहीं जा सकता. झूठ बोलकर कुछ समय के लिए भले ही मनोबल ऊंचा बनाए रखा जाए, लंबी अवधि में इसका मनोबल और विश्वसनीयता दोनों पर ही बुरा असर पड़ना तय है. हमारी सेना में वरिष्ठ स्तर पर सब कुछ ठीक नहीं है. थिएटर ऑफ़ कमांड को लेकर वहां एक संघर्ष चल रहा है. ऐसी स्थिति में चीन के इन तस्वीरें और वीडियो जारी करने का कोई अच्छा असर नहीं होगा.

एक आम आदमी की नजर से देखें तो सेना और दूसरे संस्थानों में बड़ा फर्क है. आम इंसान सेना को ईमानदार और खरी-खरी बात करने वाला संस्थान मानता है, जिसके लिए राष्ट्रीय हित सर्वोपरि है. नॉर्दर्न आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी ने देपसांग को लेकर जो दावा किया, उससे ऐसा नहीं लगता. 

एक आम आदमी की नजर से देखें तो सेना और दूसरे संस्थानों में बड़ा फर्क है. आम इंसान सेना को ईमानदार और खरी-खरी बात करने वाला संस्थान मानता है, जिसके लिए राष्ट्रीय हित सर्वोपरि है. नॉर्दर्न आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी ने देपसांग को लेकर जो दावा किया, उससे ऐसा नहीं लगता. देपसांग में भारत सबसे अधिक खतरे का सामना कर रहा है. लेफ्टिनेंट जनरल जोशी ने कहा कि यह ‘लेगेसी इशू’ है यानी अभी वहां जो हालात हैं, उसकी वजह 2020 से पहले की घटनाएं हैं. उनके इस बयान को जल्द ही लेह कॉर्प्स के पूर्व कॉर्प्स कमांडरों ने खारिज कर दिया. इससे यह संदेश गया कि लेफ्टिनेंट जोशी का यह बयान राजनीति से प्रेरित था.

इस बात पर भी गौर करने की जरूरत है कि नेताओं के पीछे छुपने का चलन कोई नया नहीं है. उदाहरण के लिए, कारगिल युद्ध के दौरान पहले तो राजनैतिक और सैन्य नेतृत्व ने संघर्ष की चेतावनियों की अनदेखी की. उसके बाद आर्मी जनरलों ने अपनी नाकामी छुपाने के लिए मिड लेवल के कमांडरों को बलि का बकरा बनाया तो उन्हें रोका नहीं गया. प्रवीण स्वामी ने 15 अक्टूबर 2019 को लिखा था, ‘जनरलों ने कई बातें छुपा रखी हैं. जब तक देश उन बातों को दफ्ऩ नहीं करता. उनकी अच्छी तरह अंत्येष्टि नहीं करता, तब तक सेना परेशान रहेगी.’

चीन और पाकिस्तान की जुगलबंदी

सैन्य नेतृत्व को यह बात अचछी तरह पता है कि संविधान के मुताबिक सेना का पहला दायित्व सरकार की ओर से ‘भारत और उसके हर क्षेत्र की रक्षा सुनिश्चित करना है.’ उसे यह भी पता है कि नेहरू का ज़माना कब का ख़त्म हो गया. इसलिए सेना अगर बड़ी गलती करती है या भारत के हाथ से कोई भू-भाग निकलता है तो इसके लिए उसे ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा. इसकी वजह यह भी है कि सैन्य मामलों का विभाग रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आता है, जिसके प्रमुख चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ हैं. वही इस विभाग के कामकाज को कंट्रोल करते हैं.

यह संयोग नहीं है कि एक तरफ तो जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यकों की चुन-चुनकर हत्याएं की जा रही हैं और पाकिस्तान में पनाह लेने वाले आतंकवादी संगठन सेना पर हमले कर रहे हैं तो दूसरी ओर चीन भारत को लेकर तल्ख़ बयानबाज़ी कर रहा है. 

यह भी कहने की जरूरत नहीं है कि उत्तरी सीमा पर भारत मुश्किल परिस्थितियों का सामना कर रहा है. चीन और पाकिस्तान की मिलीभगत के कारण वहां स्थिति बिगड़ी है. यह संयोग नहीं है कि एक तरफ तो जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यकों की चुन-चुनकर हत्याएं की जा रही हैं और पाकिस्तान में पनाह लेने वाले आतंकवादी संगठन सेना पर हमले कर रहे हैं तो दूसरी ओर चीन भारत को लेकर तल्ख़ बयानबाज़ी कर रहा है.

सच पूछिए तो हमारे देश में सियासत बहुत बंटी हुई है. ऐसे में इस बात पर भरोसा करना मुश्किल है कि वे एक लक्ष्य के लिए मिलकर काम करेंगे. इसलिए हम जिस गड्ढे में जा गिरे हैं, उससे बाहर निकालने की जिम्मेदारी एक बार फिर सैन्य नेतृत्व को निभानी होगी. यह तभी हो सकता है, जब सैन्य नेतृत्व अपने संवैधानिक दायित्व को बिना डर या किसी को खुश करने का इरादा छोड़कर पूरा करे.

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