Author : Gurjit Singh

Published on Oct 30, 2021 Updated 0 Hours ago

आसियान के सदस्य देश नए ऑकस गठबंधन को चिंता की नज़र से देख रहे हैं. इसके ज़्यादातर देशों को लगता है कि इस गठबंधन से क्षेत्र में बड़ी ताक़तों के बीच होड़ और तेज़ होगी

ऑकस को लेकर आसियान में एकता का अभाव

15 अक्टूबर को आसियान के विदेश मंत्रियों (AMM) की एक आपातकालीन बैठक हुई. इस बैठक में संगठन के सदस्य देशों के बीच तालमेल को क़ायम करना था. विदेश मंत्रियों की इस बैठक का मुख्य मुद्दा, आसियान देशों द्वारा तय पांच बिंदुओं वाली आम सहमति को मानने से म्यांमार की नाफ़रमानी पर चर्चा करना था. एएमएम की बैठक में ऑस्ट्रेलिया- ब्रिटेन- अमेरिका के बीच बने AUKUS गठबंधन को लेकर सदस्य देशों के बीच विचारों में विरोधाभास को दूर करने की कोई कोशिश नहीं की गई. आम तौर पर एकजुट रहने वाले आसियान देशों के बीच इस मसले पर ज़बरदस्त विरोधाभास खुलकर ज़ाहिर हो गया.

आसियान के सदस्य देश अभी भी चिंतित हैं. भले ही उन्होंने 15 अक्टूबर को हुई आसियान विदेश मंत्रियों की बैठक (AMM) में ऑकस पर चर्चा नहीं की. लेकिन, आसियान और ईस्ट एशिया समिट के मंचों पर आगे चलकर ऑकस और क्षेत्रीय सुरक्षा पर असर को लेकर ज़रूर चर्चा की जाएगी. 

ऑकस गठबंधन की कोशिश

ऑकस गठबंधन असल में ऑस्ट्रेलिया से रक्षा क्षेत्र के रिश्तों को और गहरा बनाने की अमेरिकी कोशिश है. ब्रिटेन के एशिया पर ध्यान केंद्रित करने को हम इस क्षेत्र में ब्रिटेन द्वारा हाल ही में अपना एयरक्राफ्ट कैरियर तैनात करने के रूप में देख सकते हैं. इससे नए सैन्य गठबंधन को और मज़बूती मिलती है. ऑस्ट्रेलिया का मानना है कि समुद्री व्यापार पर उसकी निर्भरता को देखते हुए, उसे ऑकस साझेदारी के ज़रिए अपनी नौसैनिक क्षमताओं को बढ़ाने की ज़रूरत है. ऑस्ट्रेलिया इस गठबंधन को लेकर इतना सतर्क था कि उसने 20 सितंबर को एक बयान जारी करके अपनी नज़र में आसियान की अहमियत को दोहराया था. इस बयान में ऑस्ट्रेलिय ने आसियान को भरोसा दिया था कि सबसे पुराने डायलॉग पार्टनर (DP) के तौर पर उसे आसियान की हिंद प्रशांत नीतियों का अच्छे से अंदाज़ा है. ऑस्ट्रेलिया ने आसियान की चिंताएं दूर करने के लिए ये भी कहा कि ऑकस एक रक्षा गठबंधन नहीं है. ऑस्ट्रेलिया ने परमाणु अप्रसार संधि (NPT) मानने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता भी दोहराई. हालांकि, ऑकस समझौते के तहत ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका से बिना हथियारों वाली एटमी पनडुब्बियां लेने जा रहा है. असल में ऑस्ट्रेलिया का ये बयान आसियान देशों की उस चिंता को दूर करने के लिए था, जिसके तहत आसियान देशों ने 1997 की बैंकॉक संधि के ज़रिए, दक्षिणी पूर्वी एशिया को परमाणु हथियारों से मुक्त क्षेत्र (SEANWFZ) घोषित किया हुआ है.

 इस क्षेत्र की धुरी होने के नाते आसियान देशों का मानना है कि वो इस क्षेत्र के भविष्य को लेकर किए जाने वाले फ़ैसलों से जुड़े अहम किरदार हैं. 

अपने बयान में ऑस्ट्रेलिया ने आसियान की केंद्रीय भूमिका, सबको साथ लेकर चलने, पारदर्शिता, खुलेपन, अच्छे प्रशासन, नियमों पर आधारित व्यवस्था के सिद्धांतों के प्रति अपने वादे को दोहराया. इसके साथ, ऑस्ट्रेलिया ने समुद्री मसलों, कनेक्टिविटी, स्थायी विकास के लक्ष्यों (SDG) और आर्थिक विकास के क्षेत्र में सहयोग जारी करने का भी प्रस्ताव रखा. ऑस्ट्रेलिया ने 1976 में हुई दोस्ती और सहयोग की संधि (TAC) के तहत अपनी ज़िम्मेदारियों को भी माना. ऑस्ट्रेलिया ने इस संधि पर 2005 में दस्तख़त किए थे. ईस्ट एशिया समिट (EAS), आसियान रीजनल फोरम (ARF) और आसियान के डायलॉग पार्टनर के तौर पर ऑस्ट्रेलिया ने आसियान देशों को बड़ी नरमी से ये समझाने की कोशिश की कि वो ऑकस को लेकर चिंतित न हों.

हालांकि, आसियान के सदस्य देश अभी भी चिंतित हैं. भले ही उन्होंने 15 अक्टूबर को हुई आसियान विदेश मंत्रियों की बैठक (AMM) में ऑकस पर चर्चा नहीं की. लेकिन, आसियान और ईस्ट एशिया समिट के मंचों पर आगे चलकर ऑकस और क्षेत्रीय सुरक्षा पर असर को लेकर ज़रूर चर्चा की जाएगी.

आसियान देशों का तर्क

इस क्षेत्र की धुरी होने के नाते आसियान देशों का मानना है कि वो इस क्षेत्र के भविष्य को लेकर किए जाने वाले फ़ैसलों से जुड़े अहम किरदार हैं. पहले के कई वर्षों तक, जब इस क्षेत्र में बड़ी ताक़तों का ध्यान बहुत कम था, तब आसियान की अहमियत को लेकर कोई चुनौती नहीं थी. लेकिन, चीन की भारत और जापान के साथ ख़ास तौर से आसियान देशों को लेकर आक्रामक नीयत के चलते सत्ता के इस संतुलन में खलल पड़ा है. आसियान देश, दोबारा ख़ुद को इस क्षेत्र की धुरी बना पाने में नाकाम रहे हैं. न ही आसियान देश, चीन के साथ दक्षिणी चीन सागर के लिए किसी कोड ऑफ कनडक्ट पर सहमति बनाने में कामयाब हो सके हैं.

इंडोनेशिया के ऑस्ट्रेलिया से बहुत अच्छे रिश्ते हैं और वो ऑस्ट्रेलिया और भारत के साथ मिलकर त्रिपक्षीय रिश्तों को भी विकसित कर रहा है. 

इन्हीं वजहों से आज जब इस क्षेत्र में ऐसी साझेदारियों का उदय हो रहा है, जिनके केंद्र में आसियान नहीं है, तो इन देशों की चिंता बढ़ गई है. पहला गठबंधन तो क्वाड था, जिसfके सभी सदस्य देश आसियान और पूर्वी एशिया सम्मेलन के डायलॉग पार्टनर हैं, और अब ऑकस के रूप एक और ऐसा गठबंधन बना है, जिसकी धुरी आसियान नहीं है. इस गठबंधन के सभी सदस्य भी आसियान के डायलॉग पार्टनर हैं. बल्कि, ब्रिटेन को तो हाल ही में यूरोपीय संघ से अलग डायलॉग पार्टनर का दर्जा दिया गया है.

ऑकस गठबंधन को आसियान देश इस क्षेत्र में बढ़ते जियोपॉलिटिकल जोखिम के रूप में देख रहे हैं, क्योंकि ऑकस का मक़सद चीन की आक्रामकता से निपटना है. जहां क्वाड के दूसरे शिखर सम्मेलन ने तो आसियान को ये एक कार्यकारी स्तर पर भरोसा देने की कोशिश की थी. वहीं, ऑकस ने तो आसियान देशों के इस क्षेत्र की धुरी और ताक़त होने के अहंकार को ही सीधे चोट पहुंचाई है. ऑकस गठबंधन से आसियान के भीतर, सामरिक स्वायत्तता के नाम पर चली आ रही सामरिक गतिहीनता की तरफ़ भी ध्यान खींचा है.

ऑसियान की बनावट और आम सहमति के आधार पर फ़ैसले लेने के तरीक़े के चलते इसे एक ऐसे कामचलाऊ गठबंधन के तौर पर देखा जा रहा था, जिसकी कोई सामरिक महत्वाकांक्षा ही नहीं है. आसियान से बस यही उम्मीद की जाती थी कि अगर इस क्षेत्र के शक्ति संतुलन में कोई बदलाव आता है, तो वो आसियान, दक्षिणी एशिया में दोस्ती और सहयोग की संधि (TAC) के सिद्धांतों को लेकर आवाज़ उठाएगा. अब ऑकस के एलान से ये साफ़ हो गया है कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में बड़ी ताक़तों के बीच प्रतिद्वंदिता अब आसियान के दरवाज़े तक आ पहुंची है.

ऑकस को लेकर आसियान देशों ने कैसी प्रतिक्रियाएं दी हैं?

आसियान देशों ने ऑकस पर एकसुर से राय नहीं ज़ाहिर की है. ब्रुनेई ने इस मसले पर कुछ भी नहीं कहा और न ही इस मसले पर कोई अनौपचारिक सलाह मशविरा ही शुरू किया. इसी वजह से आसियान के हर सदस्य देश ने अपनी अपनी राय ही ज़ाहिर की. ऐसे में आसियान देशों के बीच मतभेद साफ़ तौर पर सामने आ गए.

इंडोनेशिया ने 17 सितंबर को ऑकस को लेकर सतर्कता भरा बयान दिया, ‘इंडोनेशिया इस क्षेत्र में लगातार जारी हथियारों की होड़ और ताक़त की नुमाइश को लेकर बहुत चिंतित है’ और वो संबंधित देशों को परमाणु अप्रसार संधि, दोस्ती और सहयोग की संधि और संयुक्त राष्ट्र के समुद्र संबंधी नियमों (UNCLOS) को लेकर किए गए वादों की याद दिलाना चाहता है. इंडोनेशिया के बयान का केंद्र बिंदु परमाणु पनडुब्बियां थीं; वरना तो ये कहा जा सकता था कि ये बयान तो चीन के लिए है! इंडोनेशिया ख़ुद भी अपनी पनडुब्बियों के बेड़ो को बढ़ाकर 12 तक करना चाहता है. हालांकि, उसका इरादा परमाणु पनडुब्बियां ख़रीदने का नहीं है. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो को फ़ोन करके ऑकस के बारे में सफ़ाई पेश की. इस महीने की शुरुआत में इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया के बीच 2+2 यानी रक्षा और विदेश मंत्रियों की बैठक भी हुई. इंडोनेशिया ने ऑकस को लेकर जो प्रतिक्रिया दी उससे ज़ाहिर है कि उन्हें इसकी ख़बर नहीं थी और उनकी नज़र में ऑकस गठबंधन से इस क्षेत्र का संतुलन गड़बड़ा सकता है. इंडोनेशिया के ऑस्ट्रेलिया से बहुत अच्छे रिश्ते हैं और वो ऑस्ट्रेलिया और भारत के साथ मिलकर त्रिपक्षीय रिश्तों को भी विकसित कर रहा है.

इसी तरह, मलेशिया के बयान से भी लगा कि वो ऑकस गठबंधन के एलान से हैरान रह गया और ख़ुद को एक जाल में फंसा हुआ पाया. इस क्षेत्र में ताक़तवर देशों के बीच होड़ को लेकर फ़िक्रमंदी जताते हुए, मलेशिया ने भी एटमी पनडुब्बियों को लेकर चिंता ज़ाहिर की. मलेशिया ने ये उम्मीद भी जताई कि ऑकस को लेकर आसियान में आम सहमति बन सकेगी. अक्टूबर महीने में मलेशिया एक बार फिर चीन के जहाज़ों के अपनी समुद्री सीमा में घुसने की शिकायत कर रहा था. हालांकि, मलेशिया चाहता है कि अन्य बड़ी ताक़तें इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन न बिगाड़ें, भले ही ख़ुद आसियान, चीन को लेकर परेशान रहे.

मलेशिया के साथ सिंगापुर, 1971 से ही पांच देशों के रक्षा समझौते (FPDA) का हिस्सा है. जिसमें ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड भी शामिल हैं. शायद इसीलिए सिंगापुर ने ऑकस गठबंधन को लेकर ज़्यादा उत्साह दिखाया. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने सिंगापुर के पीएम ली सिएन लूंग से फ़ोन पर बात करके उन्हें ऑकस के बारे में जानकारी दी. सिंगापुर के लिए, अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता तनाव ज़्यादा चिंता की बात है. विदेश मंत्री बालाकृष्णन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के बाद कहा कि, ‘ऑकस हमारी चिंता का केंद्र बिंदु नहीं है. असली सामरिक मुद्दा तो ये है कि अमेरिका और चीन के रिश्ते कैसे हैं और वो आपसी रिश्तों को लेकर इस सामरिक समीकरण के साथ कैसे तालमेल बिठाते हैं’.

वियतनाम ने ऑकस को लेकर ज़्यादा खुला नज़रिया दिखाया है. उनके प्रवक्ता ने कहा कि, ‘सभी देश इस क्षेत्र के साथ साथ पूरी दुनिया में शांति, स्थिरता, सहयोग और विकास का लक्ष्य हासिल करने के लिए काम कर रहे हैं.’ और परमाणु शक्ति का इस्तेमाल विकास के लिए भी किया जा सकता है. वियतनाम की पूर्व राजदूत टोन नू थी निन्ह ने कहा कि, ‘आसियान देश इस क्षेत्र की सुरक्षा, स्थिरता, और समृद्धि को लेकर अमेरिका के मज़बूत वादे’ का स्वागत करते हैं और इस क्षेत्र में किसी एक ताक़त के प्रभुत्व की तुलना में कई ताक़तों या गठबंधनों के तार्किक रूप से इस क्षेत्र के देशों के साथ तालमेल के साथ काम करना बेहतर है. जिसमें सभी देश हिंद प्रशांत की साझा शांति, सुरक्षा और समृद्धि के साझा मक़सद के लिए एकजुट हों.’ वियतनाम ने ऑकस और क्वाड के ज़रिए इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन को लेकर ज़्यादा व्यवहारिक रुख़ अपनाया है. वियतनाम को आसियान की सीमाओं और उसकी सीमित भूमिका का अच्छे से एहसास है.

फिलीपींस का बयान ऑकस का खुलकर स्वागत करने वाला था. हालांकि, राष्ट्रपति डुटर्टे का ख़ुद का बयान विरोधाभासी था. विदेशी मामलों के सचिव लोकसिन ने 19 सितंबर के अपने बयान में ऑकस का स्वागत किया था. उन्होंने कहा था कि, ‘आसियान देश अलग अलग और साथ मिलकर भी ऐसी सैन्य ताक़त नहीं रखते हैं, जिससे वो दक्षिणी पूर्वी एशिया में शांति और सुरक्षा क़ायम कर सकें.’ और आसियान देशों के पास मौजूद ताक़त में असंतुलन है. वहीं, इस क्षेत्र की ताक़त से संतुलन बना सकने वाली शक्ति बहुत दूर स्थित है. ऐसे में एक नज़दीकी सहयोगी देश के शक्ति प्रदर्शन कर सकने की ताक़त में इज़ाफ़े से इस क्षेत्र में शक्ति का संतुलन बिगड़ने के बजाय स्थापित होगा.’ वहीं, 27 सितंबर को अपने बयान में फिलीपींस के राष्ट्रपति रोडरिगो डुटर्टे ने ऑकस को लेकर सावधानी भरा बयान दिया और इस क्षेत्र में परमाणु हथियारों की होड़ शुरू होने को लेकर चिंता जताई.

थाईलैंड ने चीन से नज़दीकी बढ़ा ली है और वो उससे पनडुब्बियां भी ख़रीद रहा है. अब ऑकस के एलान के बाद थाईलैंड को लगता है कि उसका फ़ैसला सही ही था. थाईलैंड के पूर्व उप प्रधानमंत्री पिनिट जरुसोम्बट ने कहा कि ऑकस से इस क्षेत्र में हथियारों की होड़ बढ़ेगी. उन्होंने ये भी कहा कि इस क्षेत्र पर बोझ बढ़ने के चलते, परमाणु अप्रसार की कोशिशों पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा. कम्बोडिया के विदेश मंत्री सोखोन्न ने ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री मरीस पेन के साथ फोन पर हुई बातचीत में ये उम्मीद जताई कि ‘ऑकस से बेवजह की प्रतिद्वंदिता नहीं होगी और तनाव भी और नहीं बढ़ेगा.’ इस बार कम्बोडिया ने चीन के सुर में सुर मिलाते हुए ऑकस की कड़ी आलोचना नहीं की.

ऑकस को लेकर चीन का नज़रिया

म्यांमार और लाओस ने इस गठबंधन पर कोई टिप्पणी करने से परहेज़ किया. वहीं, ऑकस को लेकर चीन का नज़रिया ये है कि, ‘इस गठबंधन से क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को बहुत नुक़सान पहुंचेगा, हथियारों की होड़ बढ़ेगी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परमाणु हथियारों का प्रसार रोकने की कोशिशों को नुक़सान होगा. ऑकस क्षेत्रीय देशों की इच्छाओं के ख़िलाफ़ बना गठबंधन है.’ चीन ऑकस को कुछ ख़ास देशों का ऐसा क्लब मानता है, जो इस क्षेत्र से संबंध नहीं रखते हैं.

चीन ऑकस को कुछ ख़ास देशों का ऐसा क्लब मानता है, जो इस क्षेत्र से संबंध नहीं रखते हैं.

ऑकस को लेकर आसियान देशों के नज़रिए में एकजुटता की कमी साफ़ दिख रही है. एटमी मसलों के बारे में बात करके वो अपनी अक्षमताओं पर पर्दा डालने की कोशिशें कर रहे हैं. इन सभी देशों को एहसास है कि अब इस क्षेत्र में ताक़तवर देशों के बीच मुक़ाबला और गंभीर हो गया है. कुछ देश, ऑकस को चीन के लिए चुनौती मानकर स्वागत कर रहे हैं. वहीं, कई देश ऐसे भी हैं, जिन्हें लगता है कि उन्होंने तो चीन के साथ थोड़ा तालमेल बना ही लिया था और अब ऑकस के आ जाने से शक्ति संतुलन को लेकर नज़रिए में बदलाव भी आएगा.

2012 से आसियान ने दक्षिणी चीन सागर में चीन की आक्रामकता को लेकर ख़ुद को तैयार करना शुरू कर दिया था और इसे लेकर उनके बीच एक तरह से आम सहमति बन गई थी. ये तो इंडोनेशिया के तत्कालीन विदेश मंत्री मार्टी नतालेगावा की कोशिशें थीं कि ऑसियान देशों में इस मसले पर आम सहमति बन सकी थी. हालांकि, उस वक़्त आसियान का अध्यक्ष कम्बोडिया था. अब ताज़ा हालात को देखते हुए, हो सकता है कि आसियान विदेश मंत्रियों के अगले बयान में ऑकस और क्वाड का भी कुछ ज़िक्र आए. आसियान के लिए बड़ा सवाल ये है कि वो यहां से आगे किस दिशा में बढें?

इंडोनेशिया के पूर्व विदेश मंत्री मार्टी नतालेगावा चेतावनी भरे लहज़े में कहते हैं कि, ‘आसियान देशों के लिए ऑकस गठबंधन का उदय, इससे पहले क्वाड गठबंधन की तरह ही आसियान देशों को इस बात का एहसास कराता है कि वो तेज़ी से उभरते और जटिल होते जियोपॉलिटिकल हालात को लेकर टाल-मटोल करते रहे हैं.’ आज आसियान के सामने यही चुनौती है कि वो अपनी केंद्रीय भूमिका बनाए रखने के लिए ख़ुद को ज़िम्मेदारी लेने वाले नए किरदार में ढाले.

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