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भूमिका
30 साल पहले जनसंख्या विकास पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (ICPD) में दुनिया इस बात पर सहमत हुई कि विकास के केंद्र में आम लोगों को रखा जाए. इस फ़ैसले ने बच्चे के जन्म के दौरान महिलाओं को स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच, लैंगिक समानता और मातृत्व के दौरान मृत्यु दर कम करने के मामले में काफ़ी प्रगति लाने की प्रेरणा मिली. इन बदलावों को आगे बढ़ाने का एक ऐसा नायक भी है, जिसकी चर्चा अक्सर नहीं के बराबर होती है. ये हीरो डेटा है. ये एक ऐसा विषय है, जिस पर ICPD की कार्य योजना में पूरा एक अध्याय समर्पित है. 1994 से ही बहुत सी पहलों में इन सुझावों की गूंज सुनाई दी है. इनमें संयुक्त राष्ट्र महासचिव की ‘डेटा क्रांति’ लाने की अपील भी शामिल है, जिससे देशों को आंकड़ों की उपयोगी व्यवस्था की ताक़त मिलेगी, ताकि वो टिकाऊ विकास के लक्ष्यों में प्रगति पर नज़र रखते हुए उन्हें हासिल कर सकें. पिछले तीन दशकों के दौरान आंकड़े जुटाने और उनके विश्लेषण के साथ साथ तकनीक के मामले में हुई तरक़्क़ी की वजह से ज़्यादा व्यापक और सटीक जानकारी हासिल हो सकी है, जिससे दुनिया भर में समाजों को अच्छी सेहत और अधिकारों और विकल्पों को पूरा करने से जुड़े लक्ष्यों का आकलन करके उन्हें हासिल करने में मदद मिली है. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या फंड (UNFPA) की स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन 2024 रिपोर्ट दिखाती है कि दुनिया के सबसे कमज़ोर समुदाय, मोटे तौर पर अब तक हुई प्रगति से अलग थलग रह गए हैं. अब की बढ़ती हुई अनिश्चितता वाली दुनिया में विश्वसनीय और भरोसेमंद आंकड़ों की ज़रूरत पहले से कहीं अधिक हो गई है और इन आंकड़ों को सबके लिए प्रगति को बढ़ावा देने के लिए औज़ार के तौर पर इस्तेमाल किया ही जाना चाहिए.
निबंधों की इस श्रृंखला में बहुत व्यापक और विविधता भरे विषयों की पड़ताल की गई है. इसमें डेटा को प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करने और प्रशासन की अहमियत को रेखांकित किया गया है, ताकि आंकड़ों को इकट्ठा करने, उनके प्रबंधन और उपयोग को बहुत ज़िम्मेदारी भरे तरीक़े से किया जाए. इस सीरीज़ में पर्यावरण पर पड़ रहे प्रभावों को कम करने के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने की नीतियां बनाने में आंकड़ों की भूमिका की पड़ताल की गई है; कुछ मामलों में आंकड़ों की ख़ामोशी और असमानता का भी विश्लेषण किया गया, जिससे आंकड़ों में निहित पूर्वाग्रह रेखांकित होते हैं; नीतियां बनाने के लिए स्वास्थ्य के आंकड़ों के इस्तेमाल; समुदायों को सोच समझकर फ़ैसले लेने में सक्षम बनाने के लिए ज़रूरी क्षमता निर्माण के लिए आंकड़े जमा करने; और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए लैंगिकता पर आधारित आंकड़ों को जुटाने की फ़ौरी ज़रूरत की समीक्षा भी की गई है. कुल मिलाकर ये सभी थीम इस बात को रेखांकित करती हैं कि अगर प्रभावी और समतापूर्ण तरीक़े से आंकड़े जुटाए जाएं, तो उनमें क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता होती है.
संकलन- शोबा सूरी