इस साल 1 फरवरी 2024 को भारत की वित्त मंत्री को मजबूर होकर केवल ‘वोट ऑन अकाउंट यानी लेखानुदान’ पेश करना पड़ा. वो अंतरिम बजट सरकार की अतीत की उपलब्धियों को उजागर करने पर आधारित था. इसकी वजह ये थी कि अप्रैल-जून 2024 में निर्धारित आम चुनाव नज़दीक आ रहे थे. अब चूंकि चुनाव संपन्न हो चुके हैं और एक सरकार का गठन हो गया है, ऐसे में वित्त मंत्री ने 2024-25 के लिए एक उचित, व्यापक बजट पेश किया है. 23 जुलाई 2024 को आया ये बजट वित्त मंत्री के द्वारा पेश राष्ट्रीय बजट की अटूट श्रृंखला में 7वां बजट था. इस बजट ने सरकार के प्रमुख वित्तीय एवं नीतिगत निर्णयों और उसके कई प्रस्तावों के लिए होने वाले खर्च को सामने रखा है. ये लेख शहरी विकास के लिए बजट के प्रस्तावों का विश्लेषण करता है.
वित्त मंत्री के द्वारा पेश इस साल के बजट में नौ प्राथमिकता के क्षेत्रों में से प्राथमिकता संख्या पांच शहरी विकास है. बजट भाषण का पैराग्राफ 64 से 71 सात अलग-अलग शहरी क्षेत्रों के बारे में बताता है.
वित्त मंत्री के द्वारा पेश इस साल के बजट में नौ प्राथमिकता के क्षेत्रों में से प्राथमिकता संख्या पांच शहरी विकास है. बजट भाषण का पैराग्राफ 64 से 71 सात अलग-अलग शहरी क्षेत्रों के बारे में बताता है. इनमें विकास केंद्रों के रूप में शहर; शहरों का रचनात्मक पुनर्विकास; आवागमन उन्मुखी विकास (ट्रांज़िट-ओरिएंटेड डेवलपमेंट); शहरी आवास; जल आपूर्ति, सीवरेज एवं स्वच्छता; स्ट्रीट मार्केट और स्टांप शुल्क शामिल हैं. बिल्कुल शुरुआत में ही वित्त मंत्री राज्यों के साथ साझेदारी में काम करने की आवश्यकता को स्वीकार करती हैं, वो साफ तौर पर मानती हैं कि चूंकि शहरी विकास संवैधानिक रूप से राज्य का विषय है, ऐसे में शहरी क्षेत्र में प्रगति राज्यों को साथ लेकर चलने पर निर्भर है.
बजट और शहरी विकास के लिए उसके विषय का शीर्षक
बजट में पहले विकास केंद्रों के रूप में शहरों को विकसित करने का प्रस्ताव रखा गया है. बजट उम्मीद जताता है कि ये काम आर्थिक और आवागमन की योजना के माध्यम से और शहरी नियोजन की योजनाओं का उपयोग करके शहरों के आस-पास के क्षेत्रों के सुव्यवस्थित विकास से होगा. शहरों के आस-पास के क्षेत्रों पर ज़्यादा ध्यान देकर अधिक शहरीकरण के लिए ज़ोर देने और बेहतरी एवं मुआवज़े की जुड़वां अवधारणाओं का उपयोग करने वाली शहरी नियोजन की योजनाओं (TPS) का इस्तेमाल करके उनके व्यापक शहरीकरण की स्पष्ट रणनीति है. TPS- शहरी विकास के लिए एक शानदार टूल जिसका गुजरात ने काफी इस्तेमाल किया है - ऐसे क्षेत्रों को विकसित करने के लिए आवश्यक अधिकतर राजस्व आंतरिक रूप से पैदा करने की रणनीति को भी संतुष्ट करता है. वहां साफ तौर पर शासन के उद्देश्य से ऐसे विकसित शहरों के आस-पास के क्षेत्रों के भविष्य से निपटने के लिए दो रास्ते होंगे. या तो वो पड़ोस के शहरी स्थानीय निकायों (ULB) में मिल जाएंगे या फिर नई और स्वतंत्र नगरपालिकाओं के रूप में स्थापित हो जाएंगे.
बजट में एक करोड़ ग़रीब और मध्यम वर्ग के परिवारों को घर मुहैया कराने के लिए पीएम आवास योजना 2.0 के तहत अगले पांच वर्षों में 10 लाख करोड़ रुपये के निवेश का ज़िक्र किया गया है. केंद्र जहां 2.2 लाख करोड़ रुपये प्रदान करेगा, वहीं दूसरे हितधारक बाकी रकम साझा करेंगे.
ध्यान देने का दूसरा क्षेत्र उन मौजूदा और पुराने शहरी क्षेत्रों का पुनर्विकास है जो कमज़ोर हो गए हैं और जिन्हें फिर से बनाने की ज़रूरत है. यहां बजट उनके विकास के लिए सक्षम नीतियों, बाज़ार आधारित तौर-तरीकों और उनके विकास के लिए रेगुलेशन (विनियमन) की रूप-रेखा बनाने का प्रस्ताव रखता है. शहरी पुनर्विकास का ये पहलू निर्माणाधीन है और हमें उस कवायद के नतीजों का इंतज़ार करना होगा जो भारत सरकार (GoI) संबंधित नीति और विनियमन पर करेगी.
तीसरा शहरी पहलू ट्रांज़िट-ओरिएंटेड डेवलपमेंट (TOD) के संबंध में है. जैसा कि वित्त मंत्री के पहले के कुछ बजट में ज़िक्र किया गया है, ये उनके लिए विशेष दिलचस्पी का एक विषय रहा है. अब उन्होंने 30 लाख से ज़्यादा आबादी वाले 14 बड़े शहरों में TOD को ले जाने का प्रस्ताव रखा है. वित्त और कार्यान्वयन की रणनीति के साथ इन सभी शहरों के लिए TOD योजनाएं तैयार की जाएंगी. ट्रांज़िट-ओरिएंटेड डेवलपमेंट के लिए चुने गए शहरों की उपयुक्तता को लेकर इस प्रस्ताव की और अधिक छानबीन की ज़रूरत है.
ध्यान देने का चौथा क्षेत्र शहरी आवास है. बजट में एक करोड़ ग़रीब और मध्यम वर्ग के परिवारों को घर मुहैया कराने के लिए पीएम आवास योजना 2.0 के तहत अगले पांच वर्षों में 10 लाख करोड़ रुपये के निवेश का ज़िक्र किया गया है. केंद्र जहां 2.2 लाख करोड़ रुपये प्रदान करेगा, वहीं दूसरे हितधारक बाकी रकम साझा करेंगे. इसके साथ किफायती कर्ज़ की सुविधा देने के लिए ब्याज़ पर सब्सिडी का प्रावधान होगा. इसके अलावा वित्त मंत्री को उम्मीद है कि शहरों में घरों की उपलब्धता को बढ़ाने के उद्देश्य से किराए पर घर के लिए नीतियों और विनियमन की शुरुआत होगी.
शहरी विकास के तहत ध्यान देने का पांचवां विषय पानी की आपूर्ति और स्वच्छता है. विश्वसनीय परियोजनाओं के माध्यम से भारत सरकार, राज्य सरकारें और बहुपक्षीय विकास बैंक 100 बड़े शहरों में पानी की आपूर्ति, सीवेज ट्रीटमेंट और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट परियोजनाओं और सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए साझेदारी करेंगे. सिंचाई के लिए साफ किए गए पानी की रिसाइक्लिंग और कम पानी वाले जल निकायों को भरने में इसके इस्तेमाल के बारे में भी सोचा गया है.
वित्त मंत्री के द्वारा चुना गया छठा विषय शहरों में स्ट्रीट वेंडर (रेहड़ी-पटरी वालों) और स्ट्रीट मार्केट का अनौपचारिक क्षेत्र है. पीएम स्वनिधि योजना की सफलता, जिसने स्ट्रीट वेंडर की आमदनी में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, से उत्साहित वित्त मंत्री ने एक नई योजना का प्रस्ताव दिया है जिसका अगले पांच वर्षों तक समर्थन किया जाएगा. ये चुनिंदा शहरों में 100 साप्ताहिक ’हाटों’ या स्ट्रीट फूड के केंद्रों का विकास होगा.
आख़िरी शहरी घटक कुछ राज्यों के द्वारा लगाए जाने वाले अधिक स्टांप शुल्क पर लक्ष्य साधने के लिए और राज्यों के साथ मिलकर उनके एवं राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के समग्र स्वास्थ्य के हित में स्टांप शुल्क को नियंत्रण में रखना है. इसकी कोशिश JNNURM (जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी पुनरुत्थान मिशन) के समय से की गई है. मिशन के तहत JNNURM फंड तक राज्यों की पहुंच बनाने के लिए अनिवार्य सुधार के रूप में स्टांप शुल्क में कमी का लक्ष्य रखा गया. लेकिन इस बार वित्त मंत्री ने एक और हिस्से को जोड़ा है- महिलाओं के द्वारा ख़रीदी जाने वाली संपत्ति के लिए सामान्य रकम से ज़्यादा स्टांप शुल्क को कम करना. JNNURM की तरह बजट में वित्त मंत्री की तरफ से प्रस्तावित योजनाओं के लिए उल्लिखित शहरी विकास के फंड से पैसा हासिल करने के उद्देश्य से राज्यों के लिए स्टांप शुल्क में कमी को एक शर्त बनाने की मांग की गई है.
शहरी विकास पर बजट का अप्रत्यक्ष परिणाम
पैराग्राफ 64 से 71 के अलावा भी बजट में दूसरे प्रावधान हैं जिनका शहरों के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष महत्व है. इनके उदाहरण हैं महिलाओं के हॉस्टल की स्थापना के माध्यम से वर्कफोर्स (कार्यबल) में महिलाओं की अधिक भागीदारी का प्रावधान, उच्च शिक्षा कर्ज़ एवं कई बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के लिए योजनाओं पर खर्च और रोजगार योजनाएं एवं पर्यटन से जुड़े प्रावधान, विशेष रूप से गया, बोधगया और राजगीर जैसे शहरों के लिए. आंध्र प्रदेश की राजधानी के रूप में अमरावती के विकास के लिए 15,000 करोड़ रुपये का कर्ज़ शहरी विकास में योगदान देता है. शहरी ज़मीन के रिकॉर्ड और संपत्ति कर प्रशासन को डिजिटाइज़ करने का प्रस्ताव भी इसी तरह का है. वैसे तो ये मुख्य रूप से शहरी स्थानीय निकाय के क्षेत्र से बाहर हैं लेकिन इस तरह के खर्च शहरों की अर्थव्यवस्था, शहरों की सेवाओं और जीवन की गुणवत्ता पर सकारात्मक असर डालेंगे.
बजट में शहरी विकास के लिए रखे गए विभिन्न प्रस्तावों में से कुछ को आसानी से पूरा किया जा सकता है क्योंकि उन्हें राज्यों से तुरंत समर्थन मिलेगा. पीएम आवास योजना छोटे और मंझोले शहरों में सफल होना चाहिए लेकिन बड़े शहरों में घरों के निर्माण के लिए पर्याप्त ज़मीन तलाशने में परेशानियों की वजह से उसे जूझना पड़ सकता है. पानी की सप्लाई, सीवरेज ट्रीटमेंट और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट ज़्यादातर शहरों और राज्यों में प्रमुख प्राथमिकताएं हैं. वो केंद्रीय सहायता की तरफ अनुकूल दृष्टि से देखेंगे और अपना हिस्सा देने के लिए तैयार रहेंगे. स्ट्रीट मार्केट के प्रस्ताव को शानदार लोकप्रियता हासिल है और इसे शहर हाथों-हाथ लेंगे. हालांकि कई अन्य प्रस्तावों को राज्यों की तरफ से ठंडी प्रतिक्रिया मिल सकती है. ये प्रस्ताव शहरी नियोजन के क्षेत्र में बहुत ज़्यादा घुसपैठ करना चाहते हैं जबकि राज्य इस क्षेत्र में बाहरी दिशा-निर्देशों की अनुमति देने में कतराते रहे हैं. असहमति के सवाल के अलावा राज्यों के साथ वैचारिक मतभेद भी हो सकता है जिसके साथ भारत सरकार को जूझना पड़ सकता है. भारत सरकार के द्वारा अतीत में प्रस्तावित आदर्श किराए के कानून (मॉडल रेंटल लॉ) को व्यापक स्वीकृति नहीं मिली थी और केंद्र के द्वारा स्टांप शुल्क घटाने के लिए राज्यों को तैयार करने की कोशिशों का विरोध किया गया था. हमें ये याद करने की भी आवश्यकता है कि 2022-23 के राष्ट्रीय बजट में शहरी नियोजन पर बहुत अधिक ज़ोर देने की कोशिश की गई थी. बजट में सोचा गया था कि शहरों को सभी के लिए अवसरों के साथ सतत और समावेशी जीविका के केंद्र के रूप में तैयार किया जाना चाहिए. बजट ने शहरी नियोजन में कई गड़बड़ियों का पता लगाया था और वो ये मान चुका था कि चलताऊ दृष्टिकोण के साथ शहरी नियोजन जारी नहीं रह सकता है. लेकिन इसके बावजूद शहरों में कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखाई देता है.
असहमति के सवाल के अलावा राज्यों के साथ वैचारिक मतभेद भी हो सकता है जिसके साथ भारत सरकार को जूझना पड़ सकता है. भारत सरकार के द्वारा अतीत में प्रस्तावित आदर्श किराए के कानून को व्यापक स्वीकृति नहीं मिली थी और केंद्र के द्वारा स्टांप शुल्क घटाने के लिए राज्यों को तैयार करने की कोशिशों का विरोध किया गया था.
इसके अलावा शहरी विकास के लिए ज़्यादातर पैसा बाज़ार और ख़ुद हासिल करने के तौर-तरीकों पर निर्भर करता है. ये देखना होगा कि राज्य इस तरह के प्रस्तावों पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं. केंद्र के द्वारा सुझाई गई परियोजनाओं को शुरू करने से मिलने वाले फायदों पर राज्य निश्चित रूप से विचार करेंगे. कुल मिलाकर बजट 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के द्वारा काफी हद तक अधूरे छोड़े गए प्राथमिक शहरी सुधार के एजेंडे को नज़रअंदाज़ करता है. हमें उस समय तक इंतज़ार करना होगा जब तक कि केंद्र कोई बड़ा कदम उठाने और बुनियादी शहरी सुधार की रफ्तार को तेज़ करने का फैसला नहीं लेता है.
रामनाथ झा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में डिस्टिंग्विश्ड फेलो हैं.
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