Author : Harsh V. Pant

Originally Published नवभारत टाइम्स Published on Feb 13, 2024 Commentaries 0 Hours ago

अब ऐसे आसार दिख रहे हैं कि प्रतिद्वंद्वियों के लाख प्रयास के बावजूद रिपब्लिकन पार्टी की ओर से ट्रंप ही जो बाइडन को चुनौती देंगे.

अमेरिका में ट्रंप की लोकप्रियता का क्या है अर्थ

दुनिया अव्यवस्था के एक ऐसे दौर से गुजर रही है, जिससे छोटे-बड़े देशों के लिए गंभीर नीतिगत सवाल खड़े हो रहे हैं. लेकिन जिस देश को इस पूरे विमर्श के केंद्र में होना चाहिए, वह घरेलू राजनीतिक चुनौतियों में उलझा हुआ है. वह देश है अमेरिका, जहां इस साल नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव होंगे.

ट्रंप तय कर रहे दिशा  

दिलचस्प है कि इस चुनाव की दिशा पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप तय कर रहे हैं, जो न केवल कई अदालती मुकदमों में फंसे हैं, बल्कि अमेरिकी लोकतंत्र के मूल आधार को चुनौती दे चुके हैं. वह एक बार फिर दावा कर रहे हैं कि अमेरिकी संविधान की रक्षा का दायित्व निभाने के तमाम दावेदारों में सबसे ज्यादा लायक वही हैं. आश्चर्य की बात यह कि अमेरिका में कई लोगों को उनके इस दावे पर यकीन भी है.

राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के लिए रिपब्लिकन पार्टी के अंदर हुए पहले मुकाबले में उन्होंने आयोवा रिपब्लिकन कॉकस में ऐतिहासिक जीत हासिल की. आयोवा की 99 काउंटियों में से 98 में उन्हें सबसे अधिक वोट मिले. उनके समर्थकों में सभी हैं- पुरुष और महिला, युवा और बूढ़े, दक्षिणपंथी और रूढ़िवादी, यहां तक कि कॉलेज में शिक्षित रिपब्लिकंस भी.

हेली की राह मुश्किल  

रिपब्लिकन पार्टी में ट्रंप की राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी होने की दावेदारी को निकी हेली चुनौती दे रही हैं, लेकिन उनके लिए आगे की राह कठिन है. हालांकि हेली ने न्यू हैम्पशर में बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन वहां भी जीत ट्रंप को ही मिली. साफ है कि हेली भले ही मुकाबले में बनी रहें, रिपब्लिकन प्रत्याशी ट्रंप के ही बनने आसार हैं.

हेली की चुनौती के जवाब में ट्रंप अब उनके मूल को निशाना बना रहे हैं. उन्होंने इस दुष्प्रचार अभियान का सहारा लिया कि हेली राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनने की पात्रता नहीं रखतीं क्योंकि उनके जन्म के समय उनके माता-पिता अमेरिकी नागरिक नहीं थे. हेली को ट्रंप का जवाब देते हुए हुए भी काफी संभल कर चलना पड़ रहा है. वह ट्रंप की आलोचना तो कर रही हैं लेकिन यह भी देख रही हैं कि ट्रंप समर्थकों की भावनाएं न आहत हो जाएं. इसलिए उन्होंने यह कहकर ट्रंप और बाइडन पर एक साथ निशाना साधा है कि ‘आप रिपब्लिकन अराजकता से डेमोक्रेटिक अराजकता को नहीं हरा सकते’.

ट्रंप रिपब्लिकन समर्थकों के एक बड़े हिस्से को यह समझाने में कामयाब रहे कि वह 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में हारे नहीं थे. उन्हें जितना भी अदालतों में घसीटा गया, समर्थकों के बीच उनकी लोकप्रियता उतनी ही बढ़ती गई है. ये समर्थक मानते हैं कि ट्रंप को राजनीतिक कारणों से निशाना बनाया जा रहा है.

ट्रंप रिपब्लिकन समर्थकों के एक बड़े हिस्से को यह समझाने में कामयाब रहे कि वह 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में हारे नहीं थे. उन्हें जितना भी अदालतों में घसीटा गया, समर्थकों के बीच उनकी लोकप्रियता उतनी ही बढ़ती गई है. ये समर्थक मानते हैं कि ट्रंप को राजनीतिक कारणों से निशाना बनाया जा रहा है. पूर्व राष्ट्रपतियों और राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को एक अलग तरह की चमक ट्रंप ने दी है.

अब तक चुनाव हारा हुआ पूर्व राष्ट्रपति धीरे-धीरे सार्वजनिक विमर्श से गायब हो जाता था. उसकी आभा फीकी पड़ती जाती थी. ट्रंप के रूप में हमारे सामने एक ऐसा पूर्व राष्ट्रपति है जो तीन साल पहले अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी से हार गया था. लेकिन हार स्वीकार न करते हुए 6 जनवरी के कैपिटल हिल दंगों का समर्थन किया था. मेन और कोलराडो में उनका नाम मतपत्रों से हटाया जा चुका है. ये मामले अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में हैं. लेकिन इसके बावजूद वह जबर्दस्त राजनीतिक वापसी कर चुके हैं, मानो उनका दामन पूरी तरह पाक-साफ हो.

पिछले कुछ वर्षों से रिपब्लिकन पार्टी ट्रंप से पीछा छुड़ाने की कोशिश कर रही है लेकिन जैसा कि आयोवा में हुई उनकी भारी जीत से स्पष्ट है कि वह पार्टी के निर्विवाद नेता बने हुए हैं. आज की GOP (ग्रैंड ओल्ड पार्टी) यानी रिपब्लिकन पार्टी एक तरह से ट्रंप की छवि में पुनर्गठित हो चुकी है. उनके विरोधी कुछ कर नहीं पाए हैं. पूरे देश में रिपब्लिकन पार्टी के सभी स्तरों पर ट्रंप समर्थकों की मजबूत पकड़ बनी हुई है. इस वजह से वह अपने प्रतिद्वंद्वियों पर भारी पड़ रहे हैं.

अब ऐसे आसार दिख रहे हैं कि प्रतिद्वंद्वियों के लाख प्रयास के बावजूद रिपब्लिकन पार्टी की ओर से ट्रंप ही जो बाइडन को चुनौती देंगे. इसके बाद राष्ट्रपति चुनाव का नतीजा मुट्ठी भर ‘स्विंग स्टेंट्स’ पर निर्भर करेगा, जहां हालिया सर्वेक्षणों में ट्रंप की स्थिति मजबूत दिखी है. बहरहाल, मुकाबला कांटे का होगा. इसका मतलब यह है कि पहले से ही गोलबंद अमेरिकी समाज में ध्रुवीकरण और तेज होने वाला है.

एक देश जो हमेशा दुनिया को लोकतंत्र की अहमियत पर उपदेश देता रहता है, आज खुद एक ऐसे नेता की सत्ता में वापसी का गवाह बनने जा रहा है, जिसने तीन साल पहले अमेरिकी लोकतंत्र की नींव पर हमला करते हुए भीड़ को इस बात के लिए उकसाया था कि वह बाइडन को 2020 में मिली लोकतांत्रिक चुनावी जीत से वंचित कर दे.

दुनिया की नजर  

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव न केवल वहां के नागरिकों के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए मायने रखता है. ट्रंप की वापसी की संभावना पर मॉस्को से पेइचिंग तक और ब्रसेल्स से नई दिल्ली तक, सबकी नजरें टिकी हैं. दूसरी जो चीज गौर से देखी जा रही है वह है अमेरिकी संस्थागत ताने-बाने का दरकना. एक देश जो हमेशा दुनिया को लोकतंत्र की अहमियत पर उपदेश देता रहता है, आज खुद एक ऐसे नेता की सत्ता में वापसी का गवाह बनने जा रहा है, जिसने तीन साल पहले अमेरिकी लोकतंत्र की नींव पर हमला करते हुए भीड़ को इस बात के लिए उकसाया था कि वह बाइडन को 2020 में मिली लोकतांत्रिक चुनावी जीत से वंचित कर दे.

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का यह साल इस बात की याद दिलाता है कि लोकतंत्र को बनाए रखना आसान नहीं होता और ट्रंप का फिर से अमेरिकी राजनीति के केंद्र में आ जाना बताता है कि एक समय लोकतंत्र का स्व-घोषित झंडाबरदार रहा यह देश लोकतंत्र के मोर्चे पर गंभीर चुनौतियों से गुजरने वाला है.


यह लेख नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है.

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