Author : Harsh V. Pant

Published on Jul 12, 2022 Commentaries 0 Hours ago

यह आर्थिक संकट दक्षिण एशिया में एक के बाद कई देशों में दिख रहा है. चाहे पाकिस्तान के हालात हों या नेपाल में आर्थिक संकट का सवाल, हर जगह ऐसा ही माहौल दिख रहा है.

पाकिस्तान और नेपाल में श्रीलंका जैसा संकट आया तो क्या होगा?

श्रीलंका इस वक्त भारी उथलपुथल के दौर से गुज़र रहा है. इस वक्त वहां आर्थिक बदहाली का जो आलम है वैसे ही हालात इस वक्त दक्षिण एशिया के कई देशों में दिख रहे हैं. लेकिन इस तरह के आर्थिक संकट को काबू करने के लिए जो राजनैतिक या नेतृत्व क्षमता इन देशों के पास होनी चाहिएवैसी है नहीं. इन देशों में आर्थिक संकट के साथ राजनीतिक नेतृत्व का जो संकट दिख रहा है वह विचित्र है. श्रीलंका को हमने कभी एक नाकाम राष्ट्र के रूप में नहीं देखा था. यहां की आर्थिक स्थिति अच्छी थी. सोशल इंडिकेटर भी अच्छे थे. महज़ तीन साल पहले इसे एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था के तौर पर देखा जा रहा था. लेकिन यहां के आर्थिक हालात जिस तरह से खराब हुए हैं उससे लगता है कि यह राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरियों का नतीजा है. देश का नेतृत्व आर्थिक हालातों को बिगड़ने से बचाने में नाकाम रहा है. यह आर्थिक संकट दक्षिण एशिया में एक के बाद कई देशों में दिख रहा है. चाहे पाकिस्तान के हालात हों या नेपाल में आर्थिक संकट का सवालहर जगह ऐसा ही माहौल दिख रहा है.कभी भी इस तरह के संकट एक चारदीवारी के अंदर सीमित नहीं रहते. श्रीलंका में जो आक्रोश आज दिख रहा हैहो सकता है यही आक्रोश हमें कल पाकिस्तान या नेपाल में दिखने लगे. यह दक्षिण एशिया के लिए बड़ी चिंता की बात है.

कभी भी इस तरह के संकट एक चारदीवारी के अंदर सीमित नहीं रहते. श्रीलंका में जो आक्रोश आज दिख रहा है, हो सकता है यही आक्रोश हमें कल पाकिस्तान या नेपाल में दिखने लगे. यह दक्षिण एशिया के लिए बड़ी चिंता की बात है

कई दक्षिण एशियाई देश आर्थिक संकट में

सवाल ये है कि इस तरह के संकट को काबू करने में पाकिस्तान और नेपाल जैसे दक्षिण एशियाई देश सफल रहेंगे. क्या इन देशों का राजनीतिक ढांचा ऐसा है कि वे इस तरह के संकट को मैनेज कर लेंगे. मुझे तो पाकिस्तान में तो ऐसा संभव होता नहीं दिखता. नेपाल में भी ऐसा आर्थिक संकट आया तो राजनीतिक ढांचे के तहत यह सुलझ जाएगा इसमें शक है. नेपाल में श्रीलंका जैसा आर्थिक संकट आया तो राजनीतिक नेतृत्व के भीतर इसे काबू करने की क्षमता नहीं है. क्योंकि यहां भी राजनैतिक विभाजन काफी गहरा है. तो हालात ये हैं कि इस वक्त राजनीतिक और आर्थिक समस्या दोनों एक साथ खड़ी हैं और इसका खामियाज़ा दक्षिण एशिया के लोगों को भुगतना पड़ रहा है.

श्रीलंका की आर्थिक बदहाली में चीन का भी हाथ

चीनपाकिस्तान और नेपाल तीनों जगह चीन के हित हैं. सवाल है कि चीन में श्रीलंका की जो भूमिका रही है उसे कैसे देखा जाना चाहिएदरअसल श्रीलंका में चीन का रवैया बड़ा गै़र ज़िम्मेदाराना रहा है. चीन ने श्रीलंका को भारी कर्ज़ दिया और यहां निवेश किया. इसका यहां बहुत बड़ा दखल था. हालांकि ये तो नहीं कहा जा सकता कि श्रीलंका की मौजूदा आर्थिक बदहाली के लिए चीन पूरी तरह ज़िम्मेदार है लेकिन उसकी बदहाली का यह बड़ा कारण रहा है. जिस समय पैसा बनाने की बात थी उस समय चीन सबसे आगे थे. चीन ने राजपक्षे परिवार को काफी पैसा दिया. चीन ने राष्ट्रपतिप्रधानमंत्री के निजी हितों को ध्यान में रख कर कर काम किया. उसने राजपक्षे परिवार पर पूरा ध्यान दियायहां के लोगों की उसने अनदेखी की. लोगों को लगा कि राजपक्षे परिवार की संपत्ति तो बढ़ रही है लेकिन उनकी आर्थिक बदहाली बढ़ती जा रही है.

इस वक्त राजनीतिक और आर्थिक समस्या दोनों एक साथ खड़ी हैं और इसका खामियाज़ा दक्षिण एशिया के लोगों को भुगतना पड़ रहा है.

‘चीन के रवैये से सबक लें दूसरे देश’

जिस समय श्रीलंका को मदद की ज़रूरत थी उस वक्त चीन कहीं नज़र नहीं आया. पिछले छह महीने से श्रीलंका की आर्थिक स्थिति चरमराने लगी थी. वहां के लोगों का कहना था कि कोविड की वजह से श्रीलंका की आर्थिक स्थिति को जो झटका लगा है उससे शायद ही ये उबर आए. लेकिन इस दौरान हमने नहीं देखा कि श्रीलंका की मदद के लिए चीन ने कोई पहल की हो. चीन ने श्रीलंका की समस्या को देखते हुए जिस तरह अपने हाथ खींचे हैं उससे और और भी देशों को सबक लेना चाहिए. जहां पैसा बनाने की बात आती है वहां चीन सबसे आगे खड़ा दिखता है लेकिन जहां मदद या समस्या सुलझाने की बात आती है वहां चीन पीछे दिखता है. इस वक्त भी अगर आप देखेंगे तो श्रीलंका में चीन नहीं नज़र नहीं आ रहा है. इस वक्त वहां आईएमएफ और भारत ही मदद के लिए खड़ा है. भारत ने अपनी ओर से श्रीलंका की मदद के लिए काफ़ी पहल की है. श्रीलंका अब मदद के लिए आईएमएफ के पास जा रहा है. श्रीलंका ने चीन से अपने कर्ज़ की री-स्ट्रक्चरिंग की जो बात उठाई उस पर उसने कोई तवज्जो नहीं दी. पाकिस्तान और नेपाल जैसे देश में जिस तरह चीन का आर्थिक दबदबा बना हुआ हैउसका नतीजा कहीं ऐसा न हो कि उन्हें भी श्रीलंका जैसे हालात का सामना करना पड़े.

चीन ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के निजी हितों को ध्यान में रख कर कर काम किया. उसने राजपक्षे परिवार पर पूरा ध्यान दिया, यहां के लोगों की उसने अनदेखी की.

में आगे का रास्ता क्या है?

श्रीलंका में जो हालात हैं उसमें आगे का रास्ता क्या हैश्रीलंका में सभी राजनीतिक दल मिलकर सर्वदलीय सरकार बनाने की बात कर रहे हैं लेकिन सिर्फ़ इससे बात नहीं बनेगी. सरकार के सारे घटक दलों को मिलकर आम सहमति से कोई योजना बनानी होगी. आपसी सहमति से मिल कर बनाई गई योजना को ही लेकर उन्हें आईएमएफ के पास जाना होगा. आईएमएफ तब तक कोई ठोस मदद के लिए तैयार नहीं होगा जब तक कि वहां आर्थिक हालात को सुधारने के लिए सहमति से कोई योजना नहीं बनती. श्रीलंका में जब तक राजनीतिक हालात नहीं सुधरते तब तक आईएमएफ भी कुछ नहीं कर सकता. उसके भी हाथ बंधे हुए हैं.

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यह लेख मूल रूप से बीबीसी हिंदी में प्रकाशित हो चुका है. 

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