Published on Aug 06, 2021 Updated 0 Hours ago

दरअसल कुछ ऐसे विशिष्ट क्षेत्र हैं जहां साइबर माध्यमों से आक्रामक तौर-तरीक़े अपनाकर परंपरागत सैन्य कार्रवाइयों पर प्रभाव डाला जा सकता है

साइबर टेक्नोलॉजी: सैन्य कार्रवाइयों के संदर्भ में साइबर हमला, सुरक्षा और रणनीति

अपने एक पुराने लेख में इस लेखक ने साइबर कार्यक्षेत्र में रक्षात्मक के साथ-साथ आक्रमक रुख़ के महत्व की ओर भी ध्यान खींचा था. परंपरागत सैन्य कार्रवाइयों के संदर्भ में साइबर क्षेत्र से जुड़े आघात और बचाव से जुड़ी रणनीतियों का समान रूप से महत्व रहा है. इससे भी बढ़कर इस लेख में लेखक ने पारंपरिक सैन्य कार्रवाइयों के संदर्भ में “रक्षात्मक मत की प्रधानता” पर आधारित साइबर रणनीति की हदों को बेनक़ाब करने का प्रयास किया है. दरअसल, कुछ ऐसे विशिष्ट क्षेत्र हैं जहां साइबर माध्यमों से आक्रामक तौर-तरीक़े अपनाकर परंपरागत सैन्य कार्रवाइयों पर प्रभाव डाला जा सकता है. निश्चित तौर पर जंग-ए-मैदान में वर्चस्व बनाए रखने की जद्दोजहद के मायने ये हैं कि दुनिया भर की फ़ौज साइबर मोर्चे पर आक्रामक युद्ध-क्षमता हासिल करने के लिए उन पर भारी निवेश करेंगे. आने वाले समय में निवेश का ये आकार और बढ़ने वाला है. यहां हम इंटीग्रेटेड एयर डिफ़ेंस सिस्टम (आईएडीएस) के ख़िलाफ़ होने वाले साइबर हमलों की मिसाल ले सकते हैं. ज़मीन पर स्थित एयर डिफ़ेस  सिस्टम (जीबीएडीएस) पर भी साइबर हमलों का ख़तरा रहता है. भारत समेत तमाम देशों के आईएडीएस और डीबीएडीएस सिस्टम्स कंप्यूटरों से जुड़े होते हैं. इस बात की प्रबल संभावना है कि वो स्टैंडर्ड इश्यू रेडियो, सैटेलाइट कम्युनिकेशंस और असैनिक या दोहरे इस्तेमाल वाले टेलीकम्युनिकेशंस पर ही  निर्भर रहते हैं. संचार के ये तमाम साधन शत्रुतापूर्ण साइबर घुसपैठ के ख़तरे और जोखिम की ज़द में रहते हैं.

निश्चित तौर पर जंग-ए-मैदान में वर्चस्व बनाए रखने की जद्दोजहद के मायने ये हैं कि दुनिया भर की फ़ौज साइबर मोर्चे पर आक्रामक युद्ध-क्षमता हासिल करने के लिए उन पर भारी निवेश करेंगे. आने वाले समय में निवेश का ये आकार और बढ़ने वाला है.

साइबर हमलों को दो प्रकारों में बांटा जा सकता है. पहला, ऐसे हमले जो किसी हथियार प्रणाली के प्रभावी संचालन को बाधित करते हैं और दूसरा जो हथियार प्रणालियों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किए जाने पर उन्हें भारी नुकसान पहुंचाते हैं या उन्हें तबाह कर देते हैं. मैलवेयर के इस्तेमाल के ज़रिए संचार, कमांड और कंट्रोल (सीएंडसी) नेटवर्क्स में घुसपैठ से आईएडीएस और जीबीएडीएस के प्रभावी क्रियाकलापों में रुकावट आ सकती है. इस तरह के हमले रेडियो फ़्रीक्वेंसी (आरएफ) के तौर पर किए जा सकते हैं. प्राथमिक तौर पर ये एक इलेक्ट्रॉनिक कार्रवाई है जिसमें साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्धों के तौर-तरीक़ों का घालमेल किया जाता है. आईएडीएस और जीबीएडीएस के कंप्यूटर नेटवर्कों और कमांड और कंट्रोल प्रणालियों में मैलवेयर डाले जा सकते है. 

हमलों और टोह लगाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक और साइबर युद्ध-तकनीक का घालमेल

आईएडीएस और जीबीएडीएस के अलावा साइबर हमले दुश्मनों के हवाई रक्षा को कुंद करने (एसईएडी) की जुगत में होते हैं. यूनाइटेड स्टेट एयर फ़ोर्स (यूएसएएफ़) के ईसी-130 कॉम्पास कॉल इलेक्ट्रॉनिक अटैक प्लेन ने इलेक्ट्रॉनिक और साइबर हमलों को अंजाम देने की क्षमताओं का मेल कर दिया है. ईसी-130 एक हवाई प्लैटफ़ॉर्म है. अमेरिकी फ़ौज जिसे इलेक्ट्रोमैग्नेटिक गतिविधियां (सीईएमए) करार दिया है, ये प्लैटफॉर्म उसी के संगम के तौर पर काम करता है. ईसी-130 इलेक्ट्रॉनिक और साइबर हमले करने की क्षमता रखता है. यूएसएएफ़ आरसी-135 वी\डब्ल्यू रिवेट ज्वाइंट टोही एयरक्राफ़्ट को भी ऑपरेट करता है. ये सिग्नलों की जियोलोकेट करने की काबिलियत रखता है. साथ ही साइबर हमलों को अंजाम देने के लिए टोही खुफ़िया सूचनाएं भेजता है. ईसी-130 का मकसद आरसी-135 वी/डब्ल्यू रिवेट ज्वॉइंट टोही एयरक्राफ़्ट द्वारा मुहैया कराई गई ख़ुफ़िया जानकारियों के इस्तेमाल से हमलों को अंजाम देना है. कॉमपास कॉल सिस्टम इलेक्ट्रॉनिक और साइबर कार्यक्षेत्रों के घालमेल से पैदा हुई परस्पर व्यापक परिस्थितियों का दोहन करता है. अमेरिकी कांग्रेस की शोध सेवा रिपोर्ट (सीआरएस) में इसकी व्याख्या करते हुए कहा गया है: “आमतौर पर ईसी-130 एच कॉम्पास कॉल का इस्तेमाल दुश्मनों के रडार और संचार तंत्र को जाम करने के लिए किया जाता है. हालांकि हाल के वर्षों में रेडियो फ़्रीक्वेंसी के इस्तेमाल के ज़रिए वायरलेस उपकरणों तक कंप्यूटर कोड (साइबर हमलों) प्रसारित करने में भी इसे प्रयोग में लाया जाने लगा है.” जीबीएडीएस और आईएडीएस के ख़िलाफ़ साइबर हमलों के लिए अमेरिकी सुटर नेटवर्क का प्रयोग करते हैं. आक्रामक तरीके से हवाई हमलों का जवाब देने के लिए यूनाइटेड किंगडम समेत कई दूसरे देशों में लाज़िमी तौर पर साइबर हमलों के विकल्प का इस्तेमाल धीरे-धीरे ज़ोर पकड़ता जा रहा है.   

जीबीएडीएस और आईएडीएस के ख़िलाफ़ साइबर हमलों के लिए अमेरिकी सुटर नेटवर्क का प्रयोग करते हैं. आक्रामक तरीके से हवाई हमलों का जवाब देने के लिए यूनाइटेड किंगडम समेत कई दूसरे देशों में लाज़िमी तौर पर साइबर हमलों के विकल्प का इस्तेमाल धीरे-धीरे ज़ोर पकड़ता जा रहा है.   

इसके अलावा सितंबर 2007 में इज़रायलियों ने अपने तौर पर लड़ाकू विमानों के इस्तेमाल से साइबर हमले को अंजाम दिया. अल-किबर में सीरियाई आईएडीएस के ख़िलाफ़ हासिल ख़ुफ़िया जानकारियों के मुताबिक ये हमला किया गया था. इज़रायली हमले के बारे में ज़्यादातर जानकारियां अब भी बेहद गोपनीय हैं. इसके बावजूद साइबर विशेषज्ञों के बीच इस बात पर आम सहमति है कि इज़राइलियों ने हवा में मौजूद ठिकाने से कामयाब साइबर हमले को अंजाम दिया था. इज़रायली साइबर हमले के तहत शत्रु पक्ष को अपनी ओर आते इज़रायली विमानों के बारे में भ्रामक या झूठी जानकारियां मुहैया कराई गईं. इस तरह के हमले को इज़रायली इलेक्ट्रॉनिक और काइनेटिक हमलों के साथ-साथ संचालित किया गया. भारत के नज़रिए से देखें तो साइबर हमलों को अंजाम देने के लिए यहां हवाई क्षमताओं का विकास या जुगाड़ करना अभी बाक़ी है. कम से कम सार्वजनिक तौर पर ऐसी कोई जानकारी मौजूद नहीं है जिससे ये पता चले कि भारत के पास ऐसी कोई क्षमता मौजूद है.

साइबर युद्ध, आक्रामकता और रणनीतिक चाल

इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और साइबर युद्ध को साझा तौर पर इस्तेमाल करने के लिए ज़मीन पर स्थित प्रणाली या वाहनों पर खड़ी की गई क्षमताएं भी मौजूद हैं. मिसाल के तौर पर ब्रिटिश सेना द्वारा लैंड सीकर की प्राप्ति का मकसद इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और साइबर युद्ध क्षमताओं को मिलाकर उसे बख़्तरबंद गाड़ी में व्यवस्थित करना है. इस तरह के बख़्तरबंद सैनिक वाहन को ब्रिटिश सेना की बॉक्सर बख़्तरबंद गाड़ी या अमेरिकी फ़ौज की टीएलएस बख़्तरबंद गाड़ी की तर्ज पर तैयार किया जाना है. सीईएमए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक और साइबर क्षेत्रों में सैन्य कार्रवाइयों के दौरान वर्चस्व बनाने के अमेरिकी और ब्रिटिश प्रयासों का अभिन्न हिस्सा है. 

लिहाज़ा रणनीतिक स्तर पर और अधिक बुनियादी रूप में किसी हमले का आक्रामक पहलु शुद्ध रूप से रक्षात्मक उपायों के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा रहने की संभावना है. दुनिया भर की तमाम सेनाएं अपनी पहलक़दमियों और आक्रामक रणनीतियों में साइबर कार्रवाइयों को बेहद ऊंचा स्थान देती हैं. इस ओर उनका पूरा ध्यान रहता है. इस बात की संभावना बेहद कम है कि भारत समेत दुनिया की कोई भी बड़ी ताक़त आक्रामक साइबर कार्रवाइयों का त्याग कर दे. इस बात पर गरमागरम बहस हो सकती है कि क्या ऐसी ताक़तें साइबर हमलों की बजाए युद्ध की रणनीतिक और कार्रवाइयों के स्तर पर “रक्षात्मक मत की प्रधानता” के हिसाब से पहले से तय किए रास्ते को ही अपनाने पर ज़ोर देंगी. ग़ौरतलब है कि रणनीतिक स्तर पर किसी जंग के दौरान जब विभन्न कार्यक्षेत्रों में फ़ौजी कार्रवाइयां चल रही होती हैं तब परिस्थितियां बेहद तेज़ी से बदलती हैं. वो समय बदलावों से भरा होता है. ऐसे में अनिवार्य रूप से आक्रामक साइबर कार्रवाइयों का दबाव बनता है. इस बात की भी संभावना बेहद ज़्यादा है कि तेज़ गति से, दुश्मन को छकाते हुए और गोपनीय ढंग से हमलों को अंजाम देने की ज़रूरत के चलते आक्रामक साइबर कार्रवाइयों का सहारा लेने का दबाव और भी ज़्यादा होगा

मैदान-ए-जंग में दुश्मनों को चकित कर देने के लिए ये सारे तत्व सहायक होते हैं. युद्ध से जुड़े मामलों के दार्शनिक कार्ल वॉन क्लाउज़विट्ज़ का भी मानना रहा है कि दुश्मन को चकित करने के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सबसे कारगर तरीक़ा रणनीतिक स्तर पर उसे लागू करना है. इसकी वजह ये है कि इस स्तर पर समय और स्थान का बड़े पैमाने पर घालमेल होता है.

मैदान-ए-जंग में दुश्मनों को चकित कर देने के लिए ये सारे तत्व सहायक होते हैं. युद्ध से जुड़े मामलों के दार्शनिक कार्ल वॉन क्लाउज़विट्ज़ का भी मानना रहा है कि दुश्मन को चकित करने के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सबसे कारगर तरीक़ा रणनीतिक स्तर पर उसे लागू करना है. इसकी वजह ये है कि इस स्तर पर समय और स्थान का बड़े पैमाने पर घालमेल होता है. दुश्मन को अचरज में डालने का तरीक़ा भी आक्रामक और रक्षात्मक दोनों मामलों में, रणनीतिक स्तर पर सबसे निर्णायक होता है. साइबर कार्यक्षेत्र आक्रामक कार्रवाइयों के श्रेणी में आता है. लिहाज़ा सैन्य कार्रवाइयों के दौरान दुश्मनों को पहले से ही चित करने की नीयत से दुनिया भर की फ़ौज चकित करने वाले साइबर हमलों और आक्रामक साइबर कार्रवाइयों का सहारा लेना चाहते हैं. ख़ासतौर से जब सैन्य कार्रवाइयों और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध का घालमेल हो जाता है तब दुनिया भर की सेनाएं दृढ़ और बेलोचदार “रक्षात्मक मत की प्रधानता” से बंधकर नहीं रहना चाहतीं. ऐसे मौकों पर दुनिया भर की फ़ौजों में साइबर कार्रवाइयों के इस्तेमाल की बेहद मज़बूत प्रवृति देखी गई है. अगर भारत ख़ुद को रक्षात्मक साइबर युद्ध की मुद्रा में बंद कर लेने या डालने की ज़िद ठान लेता है तो इससे भारतीय सशस्त्र बलों के युद्धकला प्रदर्शन को ज़बरदस्त नुकसान पहुंचने की आशंका रहेगी. ऐसा हुआ तो भारत का रुतबा तीसरे दर्जे की साइबर ताक़त जैसा हो जाएगा. निश्चित तौर पर ये हालात घोर निराशाजनक होंगे.  

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