कोविड-19 महामारी कई तरीक़ों से हमारी ज़िंदगी बदल रही है- वो तरीक़े जो हम, एक समाज के तौर पर, अब से कई साल बाद पता लगाएंगे, समझेंगे और स्वीकार करेंगे. इन्होंने हमारे काम करने, खाने, ख़रीदारी करने, कारोबार करने और यहां तक कि हमारे वोट करने के तरीक़ों में बदलाव किया है. पुरानी रिसर्च से संकेत मिलता है कि संकट के समय में उपभोक्ताओं के व्यवहार में बदलाव आता है. सार्स और मर्स जैसी महामारियों ने अतीत में ‘आर्थिक तौर पर लचीले व्यवहार’ का रुझान दिखाया जहां लोगों ने अपने ख़र्च में कटौती की और ज़्यादातर ज़रूरी सामान ख़रीदने पर ध्यान दिया. खपत में कमी के साथ लोगों ने क़ीमत और उत्पाद के मूल देश पर भी ज़्यादा ध्यान दिया. इस तरह महामारी ने न सिर्फ़ ये तय किया कि उपभोक्ताओं ने क्या ख़रीदा बल्कि ये भी कि कहां से उन्होंने ख़रीदा.
सार्स और मर्स जैसी महामारियों ने अतीत में ‘आर्थिक तौर पर लचीले व्यवहार’ का रुझान दिखाया जहां लोगों ने अपने ख़र्च में कटौती की और ज़्यादातर ज़रूरी सामान ख़रीदने पर ध्यान दिया.
खपत न सिर्फ़ स्वाभाविक है बल्कि प्रासंगिक भी है. प्रसंग का महत्व है और भूकंप, तूफ़ान, युद्ध जैसी ख़ास आपदा और मौजूदा संक्रमण जैसी महामारी सबसे महत्वपूर्ण और सबसे कम पूर्वानुमान लगाने वाली श्रेणी में आती हैं. जोख़िम की समझ और जोख़िम का रवैया जैसे कारणों के साथ तीन बड़े कारण नई आदतों का निर्माण करते हैं. ये बड़े कारण हैं सार्वजनिक नीति, तकनीक और जनसंख्या. सार्वजनिक नीति उस सहूलियत को बनाती है जिसकी मदद से उपभोक्ता कोई ख़ास उत्पाद ख़रीद सकता है और किसी भी तरह की मनपसंद लेन-देन कर सकता है. सार्वजनिक नीति ये भी तय करती है कि क्या कोई विकल्प मौजूद है. हवाई यात्रा का एक बड़ा फ़ायदा- जो कि उसकी सहूलियत है- उस वक़्त कम हो सकता है जब हवाई यात्रा की तैयारी, सुरक्षा जांच, कोविड टेस्ट इत्यादि के लिए समय बढ़ जाए. ऐसा होने पर लोगों को परिवहन के दूसरे साधनों, ख़ास तौर पर कम दूरी के लिए, का इस्तेमाल करना पड़ सकता है. तकनीक में परिवर्तन लगातार इच्छा को ज़रूरत में बदलता है. मोबाइल फ़ोन और इंटरनेट न सिर्फ़ अपने-आप में ज़रूरत बन चुके हैं बल्कि ऑनलाइन शॉपिंग, ऑनलाइन बिल भुगतान, गेमिंग, जीपीएस नैविगेशन, इत्यादि जैसे बिल्कुल नये व्यवहारों को बढ़ावा दे रहे हैं. बदलते लोग उपभोक्ता व्यवहार की दशा तय करते हैं. उदाहरण के लिए, विकसित अर्थव्यवस्थाओं की बुजुर्ग आबादी मनोरंजन, धन सुरक्षित रखने और स्वास्थ्य पर कम औसत उम्र वाली आबादी की तुलना में अलग ढंग से खर्च करेगी.
संकट से व्यवहार में बदलाव
ये नई आदतें और कारण जिनकी वजह से उनकी रचना होती है, वो व्यक्तिगत विशेषताओं, संस्कृति, भूगोल और समय सीमा से संयमित होते हैं. किसी आदत के बने रहने की संभावना इससे तय होती है कि वो व्यक्ति उस ख़ास माहौल से किस हद तक जुड़ा हुआ है. किसी नई आदत को बनने में 18 से 254 दिन तक लगते हैं. इसका औसत समय 66 दिन है. इस क्षेत्र में की गई रिसर्च मौजूदा संकट की वजह से उपभोक्ता के व्यवहार में कुछ आने वाले रुझान बताते हैं. एक बड़ा आने वाला रुझान डिजिटल तकनीक को अपनाने की तेज़ रफ़्तार है. ई-कॉमर्स के ज़्यादा इस्तेमाल के साथ ‘ख़रीदारी का डिजिटलाइज़ेशन’ हो गया है. आने वाले दिनों में इसमें और बढ़ोतरी होगी क्योंकि आवागमन और दूरी के नियम बरकरार रहेंगे. उपभोक्ताओं तक पहुंच, माहौल बनाने, लेन-देन और ग्राहकों को बनाए रखने में तकनीक और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म बड़ी भूमिका निभाने वाले हैं. सामानों की कमी और लगाई गई पाबंदियों ने उपभोक्ताओं के बीच व्यापक सुधार किए हैं, वो उन चीज़ों के साथ अपना सर्वश्रेष्ठ करने की कोशिश कर रहे हैं जिन्हें मंगाया जा सकता है. इस तरह के रचनात्मक समाधान के ज़रिए खपत के नये तरीक़े खोजे जा रहे हैं और पुराने परंपरागत तरीक़े हटाये जा रहे हैं. ख़रीदारी के साधारण तरीक़ों की ओर भी बदलाव हुआ है. उपभोक्ता लग्ज़री सामानों के बदले बुनियादी ज़रूरत के सामानों पर ध्यान दे रहे हैं. यहां तक कि संपन्न लोगों ने भी ज़रूरत से ज़्यादा खपत को मंज़ूर नहीं किया और इसके बदले ज़्यादा टिकाऊ और स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता दी. मन में दबी हुई मांग भी खपत का एक और रुझान है जो संकट के समय प्रकट हो जाता है. उपभोक्ता ख़रीदारी को टालते हैं, ख़ासतौर पर बड़े टिकाऊ सामान जैसे ऑटोमोबाइल गुड्स की, जो बाद में हालात सामान्य होते ही या संकट से थोड़ा छुटकारा मिलते ही दिखने लगता है.
जोख़िम की समझ और जोख़िम का रवैया जैसे कारणों के साथ तीन बड़े कारण नई आदतों का निर्माण करते हैं. ये बड़े कारण हैं सार्वजनिक नीति, तकनीक और जनसंख्या.
महामारी ने हम सभी को मजबूर किया है कि किसी चीज़ को नये ढंग से करें, मौजूदा आदतों में बदलाव लाएं और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन करें और वो भी कुछ समय के लिए नहीं बल्कि अच्छे-ख़ासे समय के लिए. इसलिए उपभोक्ताओं के व्यवहार के स्वरूप में अगला बड़ा सवाल है: क्या संकट के दौरान बनी उपभोक्ताओं की आदत बरकरार रहेगी या एक बार हालात बदलने के बाद वो अपनी पुरानी आदतों पर लौट जाएंगे? उपभोक्ता चीज़ों को नये ढंग से करने लगेंगे अगर वो ‘ज़्यादा सुविधाजनक, किफ़ायती और आसानी से उपलब्ध’ हैं. नेटफ्लिक्स, डिज़्नी और प्राइम जैसी स्ट्रीमिंग सेवाएं उपभोक्ताओं के व्यवहार में इस तरह के बदलाव की मिसाल हैं जहां बेहतर और ज़्यादा आसानी से उपलब्ध विकल्प सामने आए हैं. नूमेरेटर इनसाइट्स डाटा (2021) के एक सर्वे, जिसमें कोविड के बाद के हालात में लोगों की खाद्यान्न की खपत की आदत का पता चला है, जवाब देने वाले 32 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो कोविड से पहले के समय के मुक़ाबले ज़्यादा जल्दी-जल्दी बार और रेस्टोरेंट जाएंगे. वहीं 23 प्रतिशत लोगों ने उम्मीद जताई कि वो कोविड के समय के दौरान बनाई गई आदत को जारी रखेंगे यानी खाने के लिए बाहर कम जाएंगे. खाने का ऑर्डर देने या खाना बाहर से मंगाने की आदतों में बदलाव को लेकर 18 प्रतिशत लोगों ने महसूस किया कि वो इसकी संख्या बढ़ाने को जारी रखेंगे जबकि 19 प्रतिशत ने विश्वास जताया कि उनकी आदतों में बदलाव होगा और वो कोविड से पहले के समय में लौट जाएंगे.
सामानों की कमी और लगाई गई पाबंदियों ने उपभोक्ताओं के बीच व्यापक सुधार किए हैं, वो उन चीज़ों के साथ अपना सर्वश्रेष्ठ करने की कोशिश कर रहे हैं जिन्हें मंगाया जा सकता है.
मानव स्वभाव का एक दिलचस्प पहलू है उन आदतों या ज़रूरतों की तरफ़ फिर से लौटना जो मनोरंजन या हॉबी के तौर पर छोड़ दिए जाते हैं. इस बात की काफ़ी उम्मीद है कि हमारी मौजूदा दुनिया की रोज़ाना की गतिविधियां जैसे दुकान में जाकर ख़रीदारी, काम के लिए यात्रा, रेस्टोरेंट में खाना, इत्यादि एक बार की मनोरंजन की गतिविधि और हॉबी में बदल सकती है. इस बात की पहचान करना दिलचस्प होने के साथ-साथ महत्वपूर्ण भी होगा कि इनमें से कौन सी आदत शिकार या मछली पकड़ने का आधुनिक समतुल्य होगी. इससे उन रास्तों का पता लगेगा जो कोविड के बाद के हालात में मानव समाज अख्तियार करता है.
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