Author : Nilanjan Ghosh

Originally Published नवभारत टाइम्स Published on Jan 23, 2025 Commentaries 0 Hours ago

अगर हम 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करना चाहते हैं, तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे वेतन वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी हों.

ग्लोबल टैलेंट के लिए सैलरी भी ग्लोबल होनी चाहिए

हर बार जब किसी नए वेतन आयोग की सिफारिशें लागू हुई हैं तो हमने देखा है कि उससे वेतन में बढ़ोतरी होती है. इसका क्रय शक्ति पर भी पॉजिटिव असर होता है. क्रय शक्ति यानी, लोग कितना खर्च कर सकते हैं. उदारीकरण से लेकर अब तक भारत की विकास प्रक्रिया खपत पर आधारित है, न कि निवेश आधारित. भारत में खपत आधारित वृद्धि स्वाभाविक रूप से होती है. लेकिन यह कई अन्य देशों, जैसे चीन से अलग है. चीन में यह खपत नीतियों के जरिये प्रोत्साहित की गई.

ट्रीटमेंट फैक्टर

सवाल है कि भारत में क्रय शक्ति कैसे बढ़ाई जाए? यहां क्रय शक्ति के लिए दो मुख्य कारक काम कर रहे हैं. यहां खपत कुल GDP का 55 से 60% हिस्सा है. यानी आधे से भी ज्यादा. उदारीकरण के बाद स्वाभाविक रूप से मार्केट फोर्सेज के चलते सैलरी और क्रय शक्ति में बढ़ोतरी हुई. इस प्रक्रिया में सरकार ने वेतन आयोगों के जरिए बाजार से तालमेल बिठाने की कोशिश भी की. हर वेतन आयोग के साथ एक ‘ट्रीटमेंट फैक्टर’ जुड़ा होता है, जो आमतौर पर अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के स्तर के आधार पर तय किया जाता है. आदर्श रूप से इसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जोड़ा जाना चाहिए.

सवाल है कि भारत में क्रय शक्ति कैसे बढ़ाई जाए? यहां क्रय शक्ति के लिए दो मुख्य कारक काम कर रहे हैं. यहां खपत कुल GDP का 55 से 60% हिस्सा है. यानी आधे से भी ज्यादा.

वेतन में सबसे बड़ी बढ़ोतरी छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से आई. इसके बाद राज्य सरकारों ने भी इसी तर्ज पर अपने वेतन आयोग लागू किए. सातवें वेतन आयोग में भी एक बड़ी वेतन वृद्धि हुई. इसका सीधा लाभ न केवल सरकारी कर्मचारियों को हुआ, बल्कि सरकारी सेवा से निवृत्त हुए पेंशनभोगियों को भी मिला. आज भी ऐसे कई पेंशनभोगी हैं, जिनकी पेंशन उनके अंतिम वेतन से दो या तीन गुना अधिक है. वे आर्थिक रूप से निजी क्षेत्र के कई सेवानिवृत्त कर्मचारियों की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं. सरकारी पेंशनभोगियों के पास जो सामाजिक सुरक्षा और स्थायित्व है, वह निजी क्षेत्र के कई सेवानिवृत्त कर्मचारियों की तुलना में कहीं अधिक है.

खपत को बढ़ावा

वेतन आयोग का एक महत्वपूर्ण प्रभाव यह रहा है कि इसने युवाओं के साथ-साथ रिटायर्ड लोगों में भी खपत को बढ़ावा दिया. आमतौर पर माना जाता है कि युवाओं में खर्च की प्रवृत्ति बुजुर्गों के बरक्स अधिक होती है. खपत करने की प्रवृत्ति यानी जब आपकी आय एक रुपये बढ़ती है, तो उससे आप कितनी खपत बढ़ाते हैं. इसके अलावा खपत करने की प्रवृत्ति निम्न आय वर्ग और मध्यम आय वर्ग में उच्च आय वर्ग की तुलना में अधिक होती है. जब वेतनभोगी वर्ग की आय में वृद्धि होती है, तो वे अधिक खर्च करते हैं.

हर वेतन आयोग का असर निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के वेतन पर भी पड़ता है. हर वेतन आयोग निजी क्षेत्र में भी वेतन वृद्धि का दबाव बनाता है, जिससे पूरे आर्थिक तंत्र पर असर पड़ता है. जब सरकारी वेतन निजी क्षेत्र के वेतन के मुकाबले प्रतिस्पर्धी हो जाते हैं, तो स्वाभाविक रूप से निजी क्षेत्र को भी सबसे अच्छे कामगार हासिल करने के लिए अपने वेतन बढ़ाने पड़ते हैं. चूंकि निजी क्षेत्र सरकारी नौकरियों जैसी सामाजिक सुरक्षा या स्थायित्व नहीं देता, उन्हें वेतन वृद्धि के जरिए इस अंतर को पाटना पड़ता है.

जब आठवां वेतन आयोग आएगा और मुद्रास्फीति के आधार पर वेतन में वृद्धि होगी, तो यह अपेक्षित है कि सरकारी वेतन न केवल घरेलू निजी क्षेत्र के वेतन से प्रतिस्पर्धा करेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी वेतन के अनुरूप होगा.

दुनिया में मुकाबला

यह समझना जरूरी है कि हमारी अर्थव्यवस्था भले ही दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो, लेकिन हमारी प्रति व्यक्ति आय अभी भी काफी कम है. इसका कारण हमारी विशाल जनसंख्या है. कम प्रति व्यक्ति आय के बावजूद भारत में खपत करने की प्रवृत्ति अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक है. जब आठवां वेतन आयोग आएगा और मुद्रास्फीति के आधार पर वेतन में वृद्धि होगी, तो यह अपेक्षित है कि सरकारी वेतन न केवल घरेलू निजी क्षेत्र के वेतन से प्रतिस्पर्धा करेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी वेतन के अनुरूप होगा.

खपत और बचत

आज की वैश्वीकृत दुनिया में भारत के युवा बड़ी संख्या में विदेशों में नौकरी के लिए जा रहे हैं. इस वजह से, यह जरूरी हो जाता है कि वेतन को क्रय शक्ति समता (Purchasing Power Parity) के आधार पर सुधारा जाए. इससे भारत में खपत में तेजी आएगी. एक समय के बाद यह बचत को भी बढ़ावा देगा. बचत अर्थव्यवस्था के लिए पूल्ड इन्वेस्टेबल फंड्स (Pooled Investable Funds) का आधार बनती है, जो आर्थिक विकास के लिए निवेश को प्रोत्साहित करती है. इसलिए हमें इस पूरी प्रक्रिया को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना चाहिए.

लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियां भी आती हैं. इनमें से एक है Demand-Pulled Inflation, यानी खपत के कारण कीमतों के स्तर पर दबाव. मध्यम अवधि में पूल्ड इन्वेस्टेबल फंड (Pooled Investable Fund) में वृद्धि होगी, लेकिन अगर आपूर्ति पक्ष की अड़चनें दूर कर दी जाएं, तो इस मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जा सकता है. यह एक ऐसा पहलू है, जिस पर सरकार को विचार करना होगा.

लक्ष्य के लिए

अगर हम 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करना चाहते हैं, तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे वेतन वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी हों. वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए वेतन का निर्धारण क्रय शक्ति समता (Purchasing Power Parity) को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए. इससे न केवल घरेलू प्रतिभाओं को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि अन्य देशों से सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करने का अवसर भी मिलेगा.

(लेखक CNED और ORF कोलकाता के डायरेक्टर हैं)

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