हमारे घर की दीवारों पर लटकी कलाकृतियों के साथ योग और संगीत, सुबह-सुबह एक कप चाय और अख़बार पढ़ना, ये सभी रचनात्मक सामान और सेवाएं हमारे रोज़ाना के जीवन का एक मूलभूत हिस्सा है. इनमें हमारे घर की दीवारों पर लटकी कलाकृतियों से लेकर हम जो संगीत सुनना पसंद करते हैं वो शामिल है. हमारे भौतिक क्षेत्र से बढ़कर वो अनगिनत ऐप जैसे कि गेमिंग और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के ज़रिए हमारी डिजिटल दुनिया को भी आबाद करते है, हमें ऐसे बुनियादी ढांचे से जोड़ते है जो लाइव परफॉर्मेंस, व्यापार एवं साहित्यिक मेलों और संग्रहालयों तक पहुंचने में मदद करते है. 'रचनात्मक अर्थव्यवस्था' मानवीय कल्पनाशीलता और समझ का एक भंडार है जिसका उपयोग एक में सम्मिलित जानकारी आधारित आर्थिक गतिविधियों का बहुत सारे सांस्कृतिक एवं रचनात्मक उत्पादों को पहुंचाने में किया जाता है. ऐसा होने पर इसके पास 'ऑरेंज अर्थव्यवस्था' का लोकप्रिय उपनाम अर्जित करने के लिए पर्याप्त आधार हैं. 60 के दशक में अर्थशास्त्र के भीतर एक स्वतंत्र धारा के तौर पर इसका ज़िक्र अक्सर किया जाता है जैसे कि विलियम बॉमोल और विलियम बोवेन के काम-काज में लेकिन वो जॉन हॉकिंस थे जिन्हें 'विचार के व्यवसाय' के रूप में रचनात्मक अर्थव्यवस्था की तरफ़ ध्यान आकर्षित करने का श्रेय दिया जाता है. 2008 में संयुक्त राष्ट्र की एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार रचनात्मक अर्थव्यवस्था रचनात्मकता, संस्कृति, अर्थशास्त्र और तकनीक के संगम पर स्थित है. रिपोर्ट में आगे ये निष्कर्ष निकाला गया है कि इस क्षेत्र में इनोवेशन (परंपरागत शिल्प में), सामाजिक मूल्य उत्पन्न करने (प्रतिभा और जानकारी तैयार करने) और निरंतरता (बौद्धिक पूंजी के निर्माण और वितरण के माध्यम से) की प्रचंड क्षमता है. ये संपत्ति बाद में सामाजिक तौर पर समावेशी और लचीली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देते हुए आमदनी जुटाने, आजीविका के समर्थन और निर्यात में मदद करती है.
परिणामस्वरूप रचनात्मक अर्थव्यवस्था के विचार ने अंतत: उस समय अहम स्थान हासिल किया जब संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (अंकटाड) ने रचनात्मक अर्थव्यवस्थाओं को सतत विकास के एक प्रमुख प्रेरक के रूप में व्यापार, श्रम और उत्पादन समेत इस उद्योग को बनाने वाले सभी घटकों के योग के रूप में बताया. ये इसके लिए योग्य है क्योंकि ये सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले क्षेत्रों में से एक है जो वैश्विक GDP में 5-10 प्रतिशत का योगदान करता है. ये क्षेत्र हर साल 2.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर कमाता है, ज़्यादातर 15-29 वर्ष के बीच के लोगों को रोज़गार देता है जिनमें से लगभग आधी संख्या महिलाओं की है जो स्थिति दूसरे क्षेत्रों में नहीं है. संयुक्त राष्ट्र के द्वारा 2021 को सतत विकास के लिए रचनात्मक अर्थव्यवस्था का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित करने के साथ इस क्षेत्र ने वैश्विक मंच पर अपना उचित स्थान हासिल करने में सफलता हासिल की.
हालांकि दुनिया के सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले आर्थिक क्षेत्रों में से एक के रूप में इन आशावादी अनुमानों के बावजूद महामारी ने इसके कई छोटे व्यवसायों को तबाह कर दिया, 2020 में वैश्विक स्तर पर कुल मिलाकर 1 करोड़ कामगारों से नौकरियां छीन लीं. महामारी ने अचानक इस क्षेत्र की प्रगति को रोक दिया जिसके बारे में अनुमान लगाया गया था कि वो 2030 तक वैश्विक घरेलू उत्पाद का 10 प्रतिशत हिस्सा होगा. हाल के एक अध्ययन से संकेत मिला कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्योगों (MSME) को इस सेक्टर में काम करने वाली बड़ी कंपनियों के मुक़ाबले उनके सप्लाई चेन, श्रम आपूर्ति और वस्तुओं एवं सेवाओं की अंतिम मांग के मामले में नकारात्मक झटकों को लेकर ज़्यादा असर की स्थिति में छोड़ दिया गया. इस बहु उपयोगी क्षेत्र को फिर से ज़िंदा करना ज़रूरी हो जाता है क्योंकि ऐसा करने से लाभ मिलता है. इस सेक्टर में रोज़गार के लिए न्यूनतम प्रवेश की बाधाएं मौजूद हैं. साथ ही जिस समय युवाओं के लिए रोज़गार दुर्लभ हो गया है, ये क्षेत्र नौजवानों और महिलाओं के लिए नौकरी पैदा करने की काफ़ी संभावना दिखाता है.
भारत में इवेंट और मनोरंजन प्रबंधन सेवाओं के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों के साथ MSME, जो रचनात्मक अर्थव्यवस्था में 80 प्रतिशत हिस्सा है, महामारी के दौरान सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए. ये सभी रुझान मानवीय पूंजी एवं रचनात्मकता में निवेश और इस क्षेत्र के लिए एक समान नीति की रूपरेखा बनाने की आवश्यकता की तरफ़ ध्यान दिलाते है.
इस मामले में जैसे-जैसे विकासशील देशों के बीच व्यापार का विस्तार हो रहा है तो G20 भविष्य के विकास को प्रेरित करने के एक माध्यम के तौर पर रचनात्मक अर्थव्यवस्था के लिए समर्थन का विस्तार करने की दिशा में सभी देशों को एकजुट करने में एक मददगार भूमिका निभा सकता है. एक अनुकूल और समर्थ करने वाले इकोसिस्टम का निर्माण अंतर्राष्ट्रीय संवाद जैसे कि दक्षिण-पूर्व एशिया में रचनात्मक अर्थव्यवस्था पर विश्व सम्मेलन (WCCE), लैटिन अमेरिका की राष्ट्रीय विकास योजनाओं में ऑरेंज अर्थव्यवस्था को स्वीकार करना और सऊदी अरब की अध्यक्षता के समय से G20 के सदस्य देशों के भीतर भी पहले से एक उभरता क्षेत्र है. 2023 में G20 के लिए भारत को इस क्षेत्र के पथ प्रदर्शक के रूप में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए और इंडोनेशिया की भूमिका से आगे ले जाना चाहिए जिसने उचित रूप से इसे एक अलग-अलग क्षेत्र की समावेशी घटना के रूप में स्थापित किया और धरोहर के संरक्षण के साथ संस्कृति, अर्थव्यवस्था और व्यापार के मूल्यों को मन में बैठाया. चीन, भारत, तुर्किए और मेक्सिको जैसे G20 के सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले सदस्य देशों के द्वारा रचनात्मक विकास के सामानों में वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने के साथ ये बड़ा बदलाव करने वाला साबित हो सकता है.
रचनात्मक अर्थव्यवस्था का पुनर्जागरण भारत के लिए फ़ायदेमंद साबित होगा
इसके अलावा, भारत के पास अपने रचनात्मक सेक्टर में जान फूंकने के पर्याप्त कारण है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार रचनात्मक सामानों एवं सेवाओं, जिनमें न केवल फ़िल्म एवं मनोरंजन शामिल है बल्कि अनुसंधान एवं विकास के अलावा योग, वेलनेस, वस्त्र, हस्तशिल्प, पकवान की कला, धरोहर पर्यटन भी शामिल है, के निर्यात में भारत दुनिया के 10 बड़े देशों में से एक है. एक अनुमान के अनुसार भारत में रचनात्मक सामानों एवं सेवाओं की अर्थव्यवस्था लगभग 36.2 अरब अमेरिकी डॉलर की है. हाल के एक अध्ययन में संकेत दिया गया है कि कुल मिलाकर 8.03 प्रतिशत लोग इस क्षेत्र में काम करते हैं जो कि तुर्किए (1 प्रतिशत), मेक्सिको (1.5 प्रतिशत), दक्षिण कोरिया (1.9 प्रतिशत) और यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया (2.1 प्रतिशत) से भी ज़्यादा है. ये क्षेत्र 15-29 साल के उम्र समूह के भीतर के नौजवानों के लिए आजीविका भी प्रदान करता है. साथ ही भविष्य में नौकरियां पैदा करने के लिए इस क्षेत्र ने असाधारण क्षमता दिखाई है. इस बात की तरफ़ भी ध्यान दिलाया गया है कि रचनात्मक व्यवसाय में महिलाओं को ग़ैर-रचनात्मक नौकरियों के मुक़ाबले ज़्यादा हिस्सा (27.89 प्रतिशत) मिला है. रचनात्मक सामानों एवं सेवाओं के वैश्विक निर्यात के हिस्से के मामले में भारत ने बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया है. 2003-2012 के दौरान इसमें भारत का हिस्सा 1.9 प्रतिशत से बढ़कर 5.5 प्रतिशत हो गया. लेकिन महामारी की वजह से इस पर गहरी चोट लगी और 2019-2020 के 500 करोड़ के मुक़ाबले 2020-2021 में ये 39 प्रतिशत कम होकर 304 करोड़ रह गया. एक और विश्वसनीय सर्वे में इस बात की तरफ़ इशारा किया गया है कि भारत में इवेंट और मनोरंजन प्रबंधन सेवाओं के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों के साथ MSME, जो रचनात्मक अर्थव्यवस्था में 80 प्रतिशत हिस्सा है, महामारी के दौरान सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए. ये सभी रुझान मानवीय पूंजी एवं रचनात्मकता में निवेश और इस क्षेत्र के लिए एक समान नीति की रूपरेखा बनाने की आवश्यकता की तरफ़ ध्यान दिलाते है. इनमें सीमांकन एवं पता लगाना, रचनात्मक केंद्र एवं प्रणाली की स्थापना, डिजिटलाइजेशन को प्रोत्साहन, कॉपीराइट का समाधान, वित्त तक ज़्यादा पहुंच का निर्माण और यूनाइटेड किंगडम (UK), ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, दक्षिण कोरिया एवं इंडोनेशिया जैसे G20 के सदस्य देशों के साथ सहयोग शामिल है. इन देशों ने नीति नियंत्रण और रचनात्मक अर्थव्यवस्था के लिए विभाग स्थापित किए है.
भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान रचनात्मक अर्थव्यवस्थाओं के लिए जगह का निर्माण
G20 इनसाइट्स के अनुमानों के अनुसार रचनात्मक अर्थव्यवस्था का वैश्विक मूल्य 2023 तक 985 अरब अमेरिकी डॉलर हो जाएगा और ये वैश्विक GDP के 10 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करने के लिए तैयार है, ऐसे में G20 के सदस्य देशों के पास एक अवसर है कि वो उन व्यवधानों और नियामक मजबूरियों की पहचान करने और उनका समाधान करने में सरकारों और नीति निर्माताओं को जोड़ें जिनकी वजह से इस तेज़ी से बढ़ते सेक्टर को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. एक स्पष्ट उदाहरण डिजिटल मनोरंजन बाज़ार के उदय की वजह से ओवर-द-टॉप एंटरटेनमेंट (OTT) का विस्तार है. इसने इन्फ्लुएंसर्स और सोशल मीडिया क्रिएटर्स के लिए अवसर पैदा किए है. वैसे वैश्विक OTT का बाज़ार 2022 के 202.5 अरब अमेरिकी डॉलर से अगले पांच वर्षों में 434.5 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है. इस तरह ये सालाना 16.5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज कर सकता है. जानकारों ने इस बात की तरफ़ इशारा किया है कि नई नौकरी पैदा करने में इस क्षेत्र की क्षमता महत्वपूर्ण होगी क्योंकि वैश्विक श्रम बाज़ार ख़ुद को चौथी औद्योगिक क्रांति (4IR) की मांगों के अनुकूल बदल रहा है.
G20 के सदस्य देश एक ‘रचनात्मक आर्थिक सूचकांक’ को विकसित करने के लिए सहयोग कर सकते हैं जो इस क्षेत्र के बारे में आंकड़ों को जुटाने और अनुसंधान एवं विकास में सहायता करते है.
आगे बढ़ने के रास्ते में रचनात्मक अर्थव्यवस्था को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य परिभाषा को लेकर आम राय बनाने से ऐसी नीतियों को बनाने में मदद मिल सकती है जो संस्थागत विभागों के माध्यम से प्रमाण आधारित नीति निर्माण को सुनिश्चित करती हैं, वित्त एवं बौद्धिक संपदा अधिकार तक पहुंच में सुधार करती हैं, अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देती हैं और डिजिटल टूल्स के साथ क्रिएटर्स को बढ़ावा देती है. G20 के सदस्य देश एक ‘रचनात्मक आर्थिक सूचकांक’ को विकसित करने के लिए सहयोग कर सकते हैं जो इस क्षेत्र के बारे में आंकड़ों को जुटाने और अनुसंधान एवं विकास में सहायता करते है. हुनर हासिल करने के लिए पर्याप्त पहुंच के साथ मल्टीमीडिया, एनीमेशन, आर्ट, हैंडीक्राफ्ट और वेलनेस के क्षेत्र में रचनात्मक कलाकारों के लिए पारस्परिक डिजिटल प्लैटफॉर्म को विकसित करने के संभावित रास्ते का पता लगाने को चर्चा के दौरान शामिल करना चाहिए. इन कामों को तब उचित इकोसिस्टम के ज़रिए बौद्धिक संपदा अधिकारों के संरक्षण की गारंटी देकर और मज़बूत किया जा सकता है. ये एक कभी नहीं भुलाने वाला तथ्य है कि जब महामारी ने हमारे जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया था, तब यह क्षेत्र लोगों की भलाई, निरंतरता और सामुदायिक लचीलेपन के संरक्षण के लिए रचनात्मक गतिविधियों के महत्व को उजागर करने में मददगार बना था. इस स्थिति में भारत को हर हाल में ये सुनिश्चित करना चाहिए कि विकासशील देशों और उसके आगे की रचनात्मक अर्थव्यवस्था को उसके अपने वैश्विक अभियान ‘मिशन लाइफ़’ के भीतर आगे बढ़ने का अवसर मिले. साथ ही G20 के भागीदारी समूहों जैसे कि C20, B20, G20 एम्पावर में भी दीर्घकालीन संवाद के लिए साझेदारी विकसित करने और नीति निर्माताओं एवं विशेषज्ञों को जोड़ने के लिए ज्ञान प्रबंधन प्रणाली स्थापित करने का मौक़ा मिले ताकि ऐसा समर्थन तंत्र बनाया जा सके जो इस बहु उपयोगी क्षेत्र में काम कर रहे रचनात्मक लोगों के लिए आमदनी को सुनिश्चित कर सके.
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