Occasional PapersPublished on Dec 19, 2023
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साइबर संग्राम और यूक्रेन से परे: ‘चीन-भारत पारंपरिक युद्ध पर PLASSF का प्रभाव’

  • Kartik Bommakanti

    मौजूदा रूस-यूक्रेन युद्ध ने साइबर संग्राम (CW) क्षमताओं की प्रभावशीलता के आकलन को लेकर प्रयोगशाला परीक्षण के तौर पर काम किया है. हालांकि इस युद्ध से साइबर संग्राम की सापेक्षिक ग़ैर-प्रभावशीलता के बारे में व्यापक निष्कर्ष निकालना भ्रामक होगा. इसकी बजाय  भारतीय सामरिक और सैन्य योजनाकारों द्वारा पीपुल्स लिबरेशन आर्मी स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स (PLASSF) की साइबर संग्राम क्षमताओं के आकलन में, और भारत की अपनी तैयारियों को आगे बढ़ाने में पूरी सावधानी और सूझबूझ का प्रयोग किया जाना चाहिए. PLASFF के पास परंपरागत सैन्य अभियानों और मिशनों को सक्षम बनाने के लिए साइबर संघर्ष की ज़बरदस्त क्षमता है. इसके साथ ही ये भारत के ख़िलाफ़ परंपरागत सैन्य मिशनों के प्रभावी संचालन के लिए साइबर संग्राम, इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष (EW), अंतरिक्ष क्षमताओं और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी सीमांत तकनीकों के प्रयोग को जोड़ने में भी बेहद सक्षम है.

Attribution:

कार्तिक बोम्माकांति, “साइबर संग्राम और यूक्रेन से परे: ‘चीन-भारत पारंपरिक युद्ध पर PLASSF का प्रभाव’” ओआरएफ ओकेज़नल पेपर नं. 409, सितंबर 2023, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन.

परिचय

भारत और चीन के बीच सीमा पर जारी मौजूदा तनातनी और दोनों देशों के बीच पारंपरिक युद्ध में गतिक (काइनेटिक) संचालन पर साइबर अभियानों के प्रभाव को देखते हुए भारत-चीन सीमा युद्ध में साइबर संग्राम (CW) और इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष (EW) का मिला-जुला प्रयोग अकेले साइबर संग्राम की तुलना में ज़्यादा प्रासंगिक रहने की संभावना है. रूस-यूक्रेन युद्ध ने पारंपरिक और गतिक सैन्य अभियानों के पूरक के तौर पर CW और EW की प्रभावशीलता के बारे में बहस छेड़ दी है.[1] ये पेपर पूरक तत्वों के रूप में CW और EW की भूमिका की पड़ताल करता है. इसमें तर्क दिया गया है कि अंतरिक्ष से जनित और अंतरिक्ष-रोधी क्षमताएं, साइबर संग्राम और इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष के मिले-जुले प्रभाव को पूरक कर सकती हैं. भारत के साथ सैन्य टकराव की सूरत में चीन द्वारा इन दोनों का प्रयोग किए जाने की संभावना है.[2] चीनी फ़ौज CW और EW के पूरक उपयोग की संभावनाओं को आत्मसात करने वाली  दुनिया की पहली सेनाओं में से एक थी. एकीकृत नेटवर्क इलेक्ट्रॉनिक युद्ध (INEW)[3] के ज़रिए उसने ये कामयाबी पाई, जिसे गतिक लड़ाइयों के साथ-साथ स्वतंत्र रूप से भी प्रदर्शित किया जा सकता है. एकीकरण, साइबर संग्राम के साथ-साथ ज़्यादा सामान्य रूप से INEW के लिए भी मौलिक है. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स (PLASSF) के कंधों पर युद्ध क्षेत्र में दुश्मन के नेटवर्कों के ख़िलाफ़ हमलों को अंजाम देने की ज़िम्मेदारी है. ये साइबर संग्राम, इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष और अंतरिक्ष टकराव (SW) को साथ जोड़ता है. PLASSF सीधे केंद्रीय सैन्य आयोग (CMC) को रिपोर्ट करता है. ये भारतीय सेना (IA) और भारतीय वायु सेना (IAF) के साथ युद्ध की स्थिति में पश्चिमी थिएटर कमांड (WTC) के मातहत पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (सेना) (PLAA) और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयरफोर्स  (PLAAF) की मदद और समर्थन में मुख्य भूमिका निभाएगा.  

वैसे तो रूस-यूक्रेन युद्ध में अपनी नाकामियों के चलते साइबर युद्ध की आलोचना की गई है[4], लेकिन इस आधार पर भारत को साइबर संग्राम क्षमताओं में आवश्यकता से कम निवेश करने की सलाह देना भारी भूल होगी. भारतीय रक्षा रणनीति पर एक अमेरिकी विशेषज्ञ के मुताबिक चूंकि रूस-यूक्रेन युद्ध में साइबर युद्ध के मुक़ाबले इलेक्ट्रॉनिक युद्ध ज़्यादा प्रभावी हो गया है, लिहाज़ा भारत को इलेक्ट्रॉनिक युद्ध में ज़्यादा निवेश करना चाहिए[5]: हालांकि इस दलील में युद्ध की अवधि या मियाद पर ध्यान नहीं दिया गया है. पश्चिमी सहायता ने किस हद तक यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के साइबर संग्राम की प्रभावशीलता को कमज़ोर किया है, और शुरुआती सैन्य आक्रामकताओं में रूस की साइबर संग्राम क्षमताओं के अपर्याप्त केंद्रीकरण, जैसे मसले को भी इस तर्क में छिपाया गया है.[6] लिहाज़ा ये बेहद ज़रूरी है कि भारत के सामरिक और सैन्य योजनाकार, रूस के सैन्य अभियान में इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष की तुलना में साइबर संग्राम की कथित ‘अप्रभावशीलता’ को अपने अनुमानों या आकलनों में विस्तृत स्वरूप ना दें. साइबर संग्राम और इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष, भारत के सैन्य नेतृत्व के लिए आर या पार का विकल्प नहीं है. रूस-यूक्रेन युद्ध में साइबर संग्राम (CW) के सापेक्षिक तौर पर बेअसर रहने के बावजूद साइबर संग्राम और इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष (EW), दोनों ही अहम रहेंगे. साइबर क्षमता को संशय की नज़र से देखने वाले विश्लेषकों ने रूस-यूक्रेन युद्ध का विश्लेषण करते वक़्त CW को एकाकी तौर पर देखा है, और इस कड़ी में रूस की EW और अंतरिक्ष-रोधी क्षमताओं पर ग़ौर नहीं किया है.[7] हालांकि, चीन की सैन्य रणनीति का अनुमान लगाने में ये रुख़ बेअसर साबित हो सकता है, ख़ासतौर से भारत के साथ चीन की साइबर संग्राम क्षमताओं के एकाकी रूप से आकलन में इसके भ्रामक होने की आशंका है. 

इस पेपर का पहला खंड साइबर आशावादियों और साइबर संदेहवादियों के बीच बहस का विश्लेषण करता है और इस बात की पड़ताल करता है कि शुरुआती चरणों में रूस के साइबर हमले क्यों नाकाम हो गए, जिससे यूक्रेन संकट से उबरने में सक्षम हो गया.

इस पेपर का पहला खंड साइबर आशावादियों और साइबर संदेहवादियों के बीच बहस का विश्लेषण करता है और इस बात की पड़ताल करता है कि शुरुआती चरणों में रूस के साइबर हमले क्यों नाकाम हो गए, जिससे यूक्रेन संकट से उबरने में सक्षम हो गया. ये खंड रूस की साइबर संग्राम क्षमताओं की विशिष्ट ख़ासियतों के साथ-साथ सूचना युद्ध (IW) में रूस के रुख़ पर भी विचार करता है. दूसरा खंड इस बात को रेखांकित करता है कि चीन-भारत सीमा युद्ध, साइबर संग्राम की प्रभावशीलता के बारे में कुछ मान्यताओं को कमज़ोर कर सकता है. रूस के साइबर संग्राम के सापेक्ष चीन की ज़बरदस्त क्षमताओं और हमलों के अन्य तौर-तरीक़ों (वेक्टर्स), जैसे इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष और अंतरिक्ष-रोधी क्षमताओं के साथ साइबर संग्राम के घालमेल के चलते ऐसा हुआ है. इसलिए रूस-यूक्रेन युद्ध से हासिल प्रमाणों को विस्तृत किया जाना साइबर हमलों की प्रभावशीलता को समझने के लिहाज़ से नाकाफ़ी है. दरअसल चीन की सेना द्वारा उद्देश्यों के सीमित समूह की तलाश किए जाने की संभावना है, जो साइबर क्षमताओं के ज़्यादा प्रभावी तैनाती से संचालित होगी. इसके अतिरिक्त, चीन सीमित लक्ष्य वाले युद्ध में CW और EW का प्रयोग कर सकता है, जिसे रूस ने अब तक यूक्रेन में नहीं अपनाया है. तीसरे हिस्से में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स (PLASSF) के ज़रिए चीनी फ़ौज द्वारा CW, EW, और SW के तालमेल भरे इस्तेमाल का आकलन किया गया है. भारतीय सैन्य प्रणालियों के प्रदर्शन को कमज़ोर करने या उनको लक्षित करके नष्ट करने के लिए चीन इनका इस्तेमाल कर सकता है. इनमें भारत के कमांड एंड कंट्रोल (C&C), संचार, और हथियार प्रणालियां शामिल हैं. अंतिम खंड में चीनी सेना द्वारा साइबर तकनीक के उपयोग और अमल की काट के लिए भारत द्वारा उठाए जा सकने वाले ज़रूरी क़दमों का विश्लेषण किया गया है. 

I. रूस का 'लचर' साइबर प्रदर्शन पूरी कहानी क्यों नहीं है?

यूक्रेन के साथ अपने संघर्ष में साइबर संग्राम के क्षेत्र में रूसी प्रदर्शन के इर्द-गिर्द दो तरह की विचारधाराएं हैं. साइबर आशावादियों का तबक़ा जेसन हेली की बात ही दोहरा रहा है, जिन्होंने कहा था, "रूस अगर आने वाले हफ़्तों में यूक्रेन पर हमला करता है तो शुरुआती प्रहार आक्रामक साइबर क्षमताओं के ज़रिए होने के आसार हैं."[8] अमेरिकी विशेषज्ञों के एक समूह ने ये भी कहा है कि साइबर संग्राम क्षमताओं में रूस की ओर से "भारी तैनाती" दिखाई देगी, जिससे यूक्रेन की बचाव व्यवस्था संभावित रूप से धराशायी हो जाएगी.[9] इस बीच, साइबर पर संदेह करने वालों का दावा है कि यूक्रेन पर पूर्ण स्तरीय आक्रमण से पहले भी रूस की साइबर टेक्नोलॉजी इष्टतम स्तर पर नहीं थी.[10] रूसी साइबर हमलों को नाकाम करने की दिशा में यूक्रेन की कामयाबी की व्याख्या करने वाले तीन कारक मौजूद हैं, जिनमें से कुछ आक्रमण से पहले शुरू किए गए थे या वो आक्रमण के साथ-साथ घटित हुए हैं.

सर्वप्रथम, युद्ध से पहले यूक्रेन की तैयारियों ने रूस के साइबर हमलों की हवा निकाल दी थी. फरवरी 2022 के अंत में रूसी हमलों से पहले यूक्रेन एक ऐसी प्रयोगशाला के तौर पर काम करता था जहां ताक़त के वास्तविक उपयोग के बग़ैर या दोनों देशों के गतिक अभियानों पर ठोस प्रभाव डाले बिना रूसी साइबर कार्रवाइयों को अमल में लाया जाता था.[11] ये अभियान यूक्रेन में माप-योग्य रणनीतिक प्रभाव हासिल करने में भी नाकाम रहे.[12] दूसरा, रूसी आक्रमण कीव पर क़ब्ज़ा करने और अनेक मोर्चों पर हमलों के ज़रिए यूक्रेन को अधीनता में लाने के अपने लक्ष्य में महत्वाकांक्षी था. इस कड़ी में रूस के पास मौजूद तमाम साधनों (विशेष रूप से हवाई शक्ति और साइबर संसाधनों) को ख़त्म किए बिना इच्छित लक्ष्य हासिल करने की योजना थी.[13] साइबर संशयवादियों का समूह जॉन बेटमैन के आकलन को स्वीकार करता है कि चौंकाने वाले तरीक़े से युद्ध की शुरुआत में, जिस प्रकार रूस ने यूक्रेन के ख़िलाफ़ अपने साइबर हमलों को अंजाम दिया, वो छोटी मियाद वाले संघर्ष में तो प्रभावी हो सकता है, लेकिन बड़े या लंबे अरसे  तक चलने वाली जंगों में ये उतना असरदार नहीं होता, जैसा आज यूक्रेन में देखा जा रहा है.[14] साइबर संशयवादी यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के साइबर अभियानों की नाकामयाबी को और बढ़ा-चढ़ाकर बता रहे हैं; साइबर युद्ध से जुड़ी रूसी क़वायदों के बावजूद, इस ‘नाकामी’ को विस्तार देते हुए ऐसा नहीं कहा जा सकता कि भारत के साथ संभावित युद्ध की स्थिति में चीन के साइबर अभियान का भी ऐसा ही परिणाम होगा.

तीसरा कारक ये है कि भारत के साथ युद्ध की स्थिति में चीन ऐसे संघर्ष की अवधि को छोटा रखने की हर संभव कोशिश करेगा; लंबा चलने वाला युद्ध चीन के लिए केवल और केवल नुक़सानदेह होगा, जो ‘बिने लड़े जीतने’ और न्यूनतम लागत पर निर्णायक जीत हासिल करने के उसके सिद्धांत के विपरीत होगा. इसके अतिरिक्त, लंबे युद्ध में PLAA, PLAAF और चीन के पश्चिमी थिएटर कमांड (WTC) पर उतनी ही लागत आने की आशंका होगी जितनी यूक्रेन में रूस को उठानी पड़ी है. रूस की ओर से साइबर हमलों की शुरुआती लहर के बाद पश्चिमी सहायता ने यूक्रेन को तेज़ी से उबरने में सक्षम बनाया. ये स्थिति साइबर संग्राम के क्षेत्र में रूस की कथित विफलता की आंशिक रूप से व्याख्या करती है.[15]  

संभव है कि रूस ने बिना किसी प्रतिरोध के यूक्रेनी नेटवर्कों पर क़ब्ज़ा जमाने का लक्ष्य रखा हो.[21] हालांकि संघर्ष के पहले पांच हफ़्तों के बाद हमलों की संख्या घट गई.[22] इस गिरावट के पीछे सिर्फ़ यूक्रेन के साइबर लचीलेपन और अनुकूलता का ही हाथ नहीं बताया जा सकता.

रूस जैसी विकट शक्ति के ख़िलाफ़ यूक्रेन की साइबर प्रतिरक्षा को व्यापक सराहना मिली है. 2014 में रूस द्वारा क्रीमिया पर क़ब्ज़ा किए जाने के बाद से यूक्रेन ने रूसी साइबर हमलों से बचाव के लिए ‘संपूर्ण समाज’ दृष्टिकोण में ज़बरदस्त निवेश किया है.[16] यूक्रेन को ऊर्जा, मीडिया, कारोबार, और ग़ैर-लाभकारी क्षेत्रों समेत तमाम क्षेत्रों में साइबर हमलों का सामना करना पड़ा है.[17] यूक्रेन के डिजिटल नेटवर्कों और सैन्य संचार में घुसपैठ करके रूस शुरुआती दौर में यूक्रेन की संचार व्यवस्था को नाकाम करने में कामयाब रहा था.[18]

24 फरवरी 2022 को आक्रमण से एक घंटा पहले रूसी जनरल स्टाफ के मुख्य निदेशालय (GRU) ने एक अमेरिकी संचार कंपनी वियासैट  के स्वामित्व वाले KA-SAT संचार उपग्रह को हैक कर लिया था. माना जाता है कि रूस ने यूक्रेनी संचार को बाधित करने के लिए जैमिंग और हैकिंग के रूप में इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष और साइबर संग्राम को जोड़ दिया है, जिसे मुमकिन तौर पर यूक्रेनी बलों ने कभी पूरी तरह से पहचाना ही नहीं है.[19] इन कमांड ने डेटा को अपने नियंत्रण में ले लिया और उपग्रह संपर्कों को बाधित कर दिया, इससे ऐसे हज़ारों राउटर्स निष्क्रिय हो गए जिन पर  यूक्रेनी सेना कमांड और कंट्रोल संचार के लिए निर्भर करती थी.[20]

संभव है कि रूस ने बिना किसी प्रतिरोध के यूक्रेनी नेटवर्कों पर क़ब्ज़ा जमाने का लक्ष्य रखा हो.[21] हालांकि संघर्ष के पहले पांच हफ़्तों के बाद हमलों की संख्या घट गई.[22] इस गिरावट के पीछे सिर्फ़ यूक्रेन के साइबर लचीलेपन और अनुकूलता का ही हाथ नहीं बताया जा सकता. अतिरिक्त कारकों ने भी इन हालातों से उबरने में यूक्रेन की मदद की: कॉरपोरेट स्वामित्व और तकनीकी ढांचे को विकेंद्रीकृत कर दिया गया; इंजीनियर ज़्यादा अनुकूलनीय और चुस्त-दुरुस्त बन गए,[23] युद्ध से जुड़े प्रयासों में समर्थन देने के लिए उद्योग जगत आगे आया. इतना ही नहीं, यूक्रेन ने अपने साइबर नेटवर्कों को और लचीला बनाने के लिए युद्ध से पहले काफ़ी प्रयास भी किए थे.[24] आख़िरकार, निजी स्वामित्व वाली कंपनी स्पेसएक्स की ओर से दी गई बाहरी सहायता ने यूक्रेन को उबरने में मदद की. स्पेसएक्स ने यूक्रेनी सेना को अपना स्टारलिंक सैटेलाइट संचार नेटवर्क उपलब्ध कराया.[25] स्टारलिंक के 2000 अंतरिक्ष आधारित हाई-स्पीड सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस को भूतल पर स्थित 10000 टर्मिनलों से जोड़ा गया, जिससे साइबर क्षेत्र में रूस की शुरुआती सफलता को तेज़ी से नाकाम कर दिया गया.[26] कम से कम युद्ध की शुरुआत के बाद से यूनाइटेड स्टेट्स साइबर कमांड यानी USCYBERCOM ने यूक्रेन की ओर से कई ऑपरेशन किए हैं.[27] इस सिलसिले में रक्षात्मक साइबर ऑपरेशंस (DCOs), आक्रामक साइबर ऑपरेशंस (OCOs) और सूचना युद्ध (IW) को शामिल किया गया है. यूनाइटेड स्टेट्स साइबर कमांड के कमांडर और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (NSA) के निदेशक जनरल नाकासोने ने इसे स्पष्ट किया है. रूस के साइबर हमलों को कमज़ोर किए जाने की क़वायदों के चलते साइबर संशयवादी साइबर संग्राम के बारे में आंशिक तौर पर ग़लत निष्कर्षों पर पहुंचने लगे हैं. पश्चिमी सहायता के बिना यूक्रेन द्वारा रूसी प्रयासों को कामयाबी से कुंद किए जाने की संभावना ना के बराबर है. विशिष्ट रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध के आधार पर सबक़ों के बारे में सामान्यीकरण तक पहुंचना कठिन है. अतीत के ग्रे ज़ोन संघर्ष और ख़ासतौर से यूक्रेन की ओर से बाहरी किरदारों और निजी क्षेत्र द्वारा संसाधनों के महत्वपूर्ण उपयोग के चलते ये क़वायद मुश्किल हो जाती है.[28]

इतना ही नहीं, रूस की साइबर संघर्ष क्षमताएं चीन की तुलना में अपेक्षाकृत कमज़ोर हैं.[29] रूस और चीन की साइबर संग्राम क्षमताओं की तुलना किए जाने से रूसी साइबर संग्राम क्षमता की कुछ कमज़ोरियां बेपर्दा हो जाएंगी. रूस की आक्रामक साइबर क्षमताओं का एक बड़ा अनुपात रूसी सेना में केंद्रित होने की बजाए साइबर अपराधियों में केंद्रित है.[30] रूसी संघ के ज़्यादातर बेहद कार्यकुशल साइबर संचालक अब भी व्यापक रूप से घरेलू ख़ुफ़िया एजेंसी (संघीय सुरक्षा ब्यूरो, FSB) के नियंत्रण में बरक़रार हैं. माना जाता है कि 2014 तक रूस में FSB के साथ-साथ GRU और आंतरिक मामलों का मंत्रालय सैन्य कार्रवाइयों में साइबर-केंद्रित तौर-तरीक़े अपनाए जाने का ज़ोरदार विरोध करते रहे थे.[31] सैन्य कार्रवाइयों के लिए साइबर युद्ध कभी भी रूस का मज़बूत पक्ष नहीं रहा है. रूस ने साइबर कार्रवाइयों के आक्रामक आयामों को लेकर ना तो कोई रणनीति बनाई है और ना ही कोई सिद्धांत तैयार किया है, और बहुत कम सैन्य कर्मियों को इनके प्रयोग के लिए प्रशिक्षित किया गया है.[32]

इसके अलावा, जैसा कि यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध से प्रदर्शित हुआ है, रूस ने पारंपरिक सैन्य अभियानों के साथ साइबर कार्रवाइयों का प्रभावी रूप से मिश्रण तैयार नहीं किया है.[33] रूस और चीन द्वारा साइबर संग्राम यानी CW के उपयोग में ये एक प्रमुख अंतर है, जिससे इस बात के और पुख़्ता संकेत मिलते हैं कि आख़िर भारत को इस मसले पर दोगुनी सतर्कता बरतने की ज़रूरत क्यों है. भारत को सैन्य अभियानों के लिए अपनी ख़ुद की रक्षात्मक और आक्रामक साइबर क्षमताओं को सीमित करने की क़वायदों के ख़िलाफ़ सचेत रहना होगा. चीन की आक्रामक साइबर क्षमताएं अमेरिका और रूस की क्षमताओं भी आगे निकलती हैं.[34]

निश्चित रूप से साइबर शोषण के क्षेत्र में चीन सबसे बड़ी ताक़त है. 2012 से 2021 के बीच चीन की साइबर संग्राम इकाइयों ने किसी भी अन्य साइबर ताक़त की तुलना में कहीं ज़्यादा ज़ीरो-डे वल्नेरेबिलिटी शोषणकारी हरकतों को अंजाम दिया है.[35] चीन की साइबर-तकनीकी कर्मियों की संख्या तक़रीबन 60,000 है, जिनमें से एक बड़ी तादाद आक्रामक साइबर अभियानों के लिए समर्पित है, जो USCYBERCOM की तुलना में 10 गुणा ज़्यादा है;[36] अंतरराष्ट्रीय सामरिक अध्ययन संस्थान (IISS) के मुताबिक चीन की 18.2 फ़ीसदी साइबर इकाइयां आक्रामक साइबर अभियानों को अंजाम देने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं, इसकी तुलना में USYBERCOM की महज़ 2.8 प्रतिशत इकाइयां ही इस काम में लगी हैं.[37]

भारत जैसी राज्यसत्ताओं के लिए, जो चीन की CW और EW क्षमताओं के साथ-साथ पूरे इलेक्ट्रोमैगनेटिक दायरे (EMS) में चीनी क्षमताओं का मुक़ाबला कर रहे हैं, हक़ीक़त और भी ज़्यादा चुनौतीपूर्ण हो जाता है. यूरोपीय सुरक्षा को लेकर भौगोलिक अहमियत के चलते यूक्रेन को तो पश्चिम की सहायता मिल गई, लेकिन भारत को ऐसी मदद मिलने की संभावना ना के बराबर है. इसके अलावा यूक्रेन की तुलना में भारत का सापेक्षिक आकार और क्षमताएं भी अधिक हैं. यूक्रेन को अमेरिका और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नेटो) के अपने सहयोगियों से भी मदद मिली है. पश्चिम और रूस के बीच ऐतिहासिक रूप से शत्रुतापूर्ण रिश्तों की वजह से यूक्रेन को ऐसा समर्थन मिलता रहा है. नेटो के अनेक यूरोपीय सदस्य, रूसी आक्रामकता के ख़तरे से जूझ रहे हैं, और यूक्रेन के साथ इनकी भौगोलिक निकटता ने पश्चिम को यूक्रेन में ज़ेलेंस्की की अगुवाई वाली सत्ता की मदद के लिए और प्रेरित किया है. नेटो, यूक्रेन को बफ़र देश के तौर पर देखता है, लिहाज़ा ये पश्चिमी सैन्य गठजोड़ के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है.[38]

दूसरी ओर, अमेरिकी सरकार भारत को साइबर सुरक्षा सहयोग उपलब्ध कराने को लेकर अनिच्छुक है. नाज़ुक और उभरती टेक्नोलॉजी पर अमेरिका-भारत पहल (iCET) में ऐसी किसी क़वायद की ग़ैर-मौजूदगी से ये बात प्रमाणित होती है. जनवरी 2023 में दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच ये पहल संपन्न हुई थी.[39] ऐतिहासिक रूप से साइबर क्षेत्र में पारस्परिक विश्वास के अभाव के साथ-साथ “कूटनीतिक विसंगतियों” ने अमेरिका और भारत के बीच नज़दीकी सहयोग में बाधाएं खड़ी की हैं.[40]

लिहाज़ा, यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस की साइबर आक्रामकता की सीमाओं को यूक्रेन द्वारा प्राप्त बाहरी समर्थन के साथ-साथ यूक्रेन की युद्ध-पूर्व तैयारियों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए.

II. चीन-भारत सीमा युद्ध में साइबर आक्रमणों की अहमियत

रूस-यूक्रेन संघर्ष में साइबर टेक्नोलॉजी की कमज़ोरियों के बावजूद चीन के साथ सैन्य टकराव की सूरत में भारत के लिए इसके प्रभावों के आकलन में सतर्कता बरती जानी चाहिए. इसकी वजह ये है कि भारत की सशस्त्र सेवाएं, चीनी फ़ौज द्वारा साइबर संग्राम के ज़बरदस्त और प्रभावकारी प्रयोग की अनदेखी नहीं कर सकतीं.

ग़ौर किया जाना वाला पहला मसला संभावित चीन-भारत सीमा युद्ध की मियाद के साथ-साथ इसमें साइबर कार्रवाइयों की भूमिका से जुड़ा है. टकराव की अवधि और साइबर हथियारों की प्रभावकारिता, एक दूसरे के साथ अटूट रूप से जुड़ी हुई है. चीनी साइबर हथियारों का प्रभाव उसके उद्देश्यों के साथ-साथ उसकी साइबर क्षमताओं की प्रभावशीलता का भी कारक होगा. छोटी अवधि और सीमित लक्ष्यों वाला संघर्ष (जिसे चीन द्वारा आगे बढ़ाए जाने के आसार हैं) निर्णायक होगा. साइबर प्रहार का सहारा लेने वाले छोटे, सीमित लक्ष्यों वाले संघर्ष के बेहद प्रभावी होने की संभावना है. सीमित लक्ष्यों के लिए लड़ी जाने वाली लड़ाई का ये मतलब नहीं है कि इसे सीमित साधनों से लड़ा जाए; साधनों के असमानुपातिक होने की संभावना है, लिहाज़ा इसके लिए पूर्ण प्रतिबद्धता की दरकार होगी.[41] यही वजह है कि चीन द्वारा अंतरिक्ष-रोधी क्षमताओं के साथ-साथ हमलों के अन्य तौर-तरीक़ों जैसे साइबर संग्राम और इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष को भी प्रयोग में लाए जाने के आसार हैं.

चीन ने पूर्वी लद्दाख में भारत के दावे वाले भू-क्षेत्रों पर क़ब्ज़े के ज़रिए इस ज़रूरत को लेकर अपनी समझ का प्रदर्शन किया. वो सीमित वापसी के साथ पांच में से दो क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण बरक़रार रखने में कामयाब भी रहा. चीनियों ने भारतीय सेना को पूर्वी लद्दाख के देपसांग जैसे कई विवादित क्षेत्रों में गश्त करने से भी वंचित या बाधित कर रखा है. चीन शिनजियांग क्षेत्र में हर साल अभ्यासों का आयोजन करता है, और इन्हीं की बदौलत वो भू-क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा करने के लिए बड़ी मात्रा में सुरक्षाबलों  की तैनाती करने में सक्षम हो सका है. भारत भी इनकी प्रतिक्रिया में अपने अभ्यास करता है; हालांकि 2020 में कोविड-19 महामारी के चलते भारत ऐसे अभ्यासों का आयोजन नहीं कर सका था,[42] जबकि PLAA ने विवादित भू-क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा करने के लिए सैनिक अभ्यास को हमले में तब्दील कर दिया. चीन द्वारा PLA के मौजूदा सिद्धांत के साथ तालमेल बिठाते हुए न्यूनतम लागत पर निर्णायक जीत पाने की कोशिश किए जाने की संभावना है. ये सुन त्ज़ु की ओर से सामने रखी गई चीनी रणनीति के हिसाब से भी सुसंगत है, जिसमें कहा गया है कि: “सौ लड़ाइयों में सौ जीत हासिल करना उत्कृष्टता का शिखर नहीं है. बिना लड़े ही दुश्मन की सेना को अपने अधीन कर लेना उत्कृष्टता का शिखर है.”[43],[44]

जून 2020 में भारतीय सेना के कई जवानों और चीनी के अनेक फ़ौजियों की जान लेने वाले गलवान झड़प को छोड़ दें,[45] तो चीन ने कम से कम 1960 के दशक से भारत के साथ तीव्रतापूर्ण लड़ाई या भिड़ंतों से परहेज़ किया है;[46] आख़िरकार, जैसा कि 1983 में चीन के तत्कालीन रक्षा मंत्री झांग आइपिंग ने कहा था, चीन के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण जीत हासिल करने के लिए न्यूनतम लागत पर लड़ना अनिवार्य है.[47] इस लक्ष्य को जंगी नीति और रणनीति में कमांडरों के सामर्थ्य, उन्नत सैन्य उपकरणों और उच्च गुणवत्ता वाले सैन्य कर्मियों से ही हासिल किया जा सकता है.[48] 1979 में वियतनाम के साथ युद्ध से चीन के उबरने के बाद ये बयान दिया गया था. इस जंग में चीन को भारी क़ीमत चुकानी पड़ी थी, और तब से चीन ने चोट पहुंचाने वाले सैन्य अभियानों से परेहज़ किया है. 

अक्टूबर 2022 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं कांग्रेस में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा था कि चीनी सेना को जंगी वातावरण में प्रशिक्षण लेना है, ख़ुद को प्रभावी हथियारों से लैस करना है, फुर्तीला और अनुकूलनीय बनते हुए "सूचनापरक" और "चतुराई भरी युद्धकला" में पूरी पात्रता सुनिश्चित करनी है, जिससे चीन की सुरक्षा भरोसेमंद बनेगी और चीन में संकट का प्रबंधन हो सकेगा, ख़तरों के प्रति जवाब तैयार किया जा सकेगा और "स्थानीय युद्धों में जीत" मिलेगी.[49] इन क़वायदों के तहत नागरिक दायरों में तकनीकी नवाचारों का भरपूर लाभ उठाना भी शामिल है. इनमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मानवरहित हवाई वाहन (UAVs) शामिल हैं, जो PLA के लिए उन्नत साझा अभियान क्षमता सुनिश्चित करेंगे ताकि स्थानीय या थिएटर स्तर पर जीत हासिल की जा सके.[50] शी के बयान से ये भी संकेत मिलते हैं कि युद्ध से जुड़े पश्चिम के अनुभव (जैसे 1990-91 में फारस की खाड़ी का युद्ध) ने जियांग ज़ेमिन की हुकूमत में चीन के रुख़ में बदलाव को प्रेरित किया और इसके बाद हु जिंताओ की सत्ता में भी ये क़वायद बदस्तूर जारी रही.

हालांकि इस दिशा में दो अतिरिक्त बदलाव रहे, जिनमें आक्रामक क्षमता (जो एंटी-एक्सेस एरिया डिनायल (A2AD) रणनीति के साथ गहराई से सुरक्षा पर ख़ास ज़ोर वाली रणनीति से आगे निकल गई, जिसमें ताक़त दिखाने वाली क्षमताओं की दरकार होती है)[51] 51 और तीसरे पक्ष का दख़ल रोकने का भी लक्ष्य रखा गया था; साथ ही शत्रु को कमज़ोर करने के लिए बड़ी ताक़त इस्तेमाल करने के चीन के रुख़ से बदलते हुए ज़मीन पर छोटी टुकड़ियों पर ज़ोर दिया गया. इनमें मिसाइल ताक़तों में गुणात्मक सुधारों, नौसैनिक शक्तियों के लिए बेहतर समर्थन, और चीनी सुरक्षा बलों की गुणवत्ता को अमेरिकी बलों[52] के बराबर सुनिश्चित करने को लेकर एक आम क़वायद के साथ भारत जैसी अन्य राज्यसत्ताओं की शक्तियों से आगे निकलने की बात शामिल रही. 

गतिक (काइनेटिक) दख़लंदाज़ियों के बिना मिसाइल ताक़तों को नाकाम करने के लिए साइबर उपकरणों की दरकार होती है. संभावित चीन-भारत टकराव में सामरिक संचार प्रणालियों, कमांड और कंट्रोल केंद्रों और संचालन और सामरिक स्तर पर हथियार प्रणालियों पर साइबर या मैलवेयर हमलों की क़वायदों के चीन की मदद करने के आसार हैं. लिहाज़ा चीनी सैन्य विचारधारा के एक मुख्य घटक पर ध्यान दिए जाने की दरकार है. चीन के सिस्टम डिस्ट्रक्शन वॉरफेयर (SDW) के तहत PLA की क्षमताओं में व्यापक एकीकरण की ज़रूरत होती है. इसके साथ ही ये दुश्मन के सभी अहम संचालन क्रियाकलापों की पहचान करने और उनको जोख़िम में डालने की ताक़त रखता है.[53] संचालन प्रणाली अनेक तत्वों से बनी होती है जो संगठनों और क्रियात्मक प्रक्रियाओं को जोड़ते हैं. साथ ही चीनी सैन्य फैलाव में युद्ध लड़ने वाले दायरों में एकीकृत साझा कार्रवाइयां सुनिश्चित करने के लिए सक्षमकारी नेटवर्क तैयार करते हैं.[54] इन प्रमुख तत्वों के अलावा SDW में पांच और घटक शामिल हैं- कमांड प्रणाली, गोलाबारी और हमला करने वाली प्रणाली, सूचना टकराव प्रणाली, टोही-समर्थन प्रणाली और समर्थन प्रणाली.[55] SDW में बुनियादी तौर पर दुश्मनों का सर्वनाश किए जाने की ज़रूरत के बिना उनकी संचालन प्रणाली को पंगु करने की क़वायद शामिल है. जैसा कि एक चीनी विशेषज्ञ ने कहा है SDW शत्रुओं की नाज़ुक क्षमताओं को पूरी तरह से तबाह किए बिना जीत सुरक्षित कर सकता है.[56] SDW में गतिक साधनों से जुड़े बिना शत्रुओं के सूचना नेटवर्क, कंट्रोल एंड कमांड सेंसर्स और नेतृत्व को तबाह करने की क़वायद शामिल है; साइबर संग्राम, इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष और अंतरिक्ष-रोधी निर्देशित ऊर्जा हथियारों (जैसे लेज़र्स और माइक्रोवेव हथियार) का संयुक्त उपयोग गतिक साधनों जितना ही असरदार रहने की संभावना है.[57]

भारतीय सैन्य योजनाकारों को ऐसे बारीक़ हमलों की आशंका में तैयारी करनी चाहिए जो भारतीय सैन्य परिसंपत्तियों के ख़िलाफ़ विनाशकारी कार्रवाइयों से निर्देशित हो, जो PLA के लिए लागत को सीमित करेंगे. गतिक अभियानों के इसके बाद होने की संभावना है, लेकिन ये तभी होगा जब PLA अपने प्रतिद्वंदी पर पूर्ण सूचना श्रेष्ठता हासिल कर ले.[58] भारत की अंतरिक्ष परिसंपत्तियों और गुप्तचरी, निगरानी और टोही (ISR) शाखाओं के ख़िलाफ़ गतिक हमलों को सूचना प्रभुत्व स्थापित किए जाने से पहले अंजाम दिए जाने की संभावना ना के बराबर है. इन्हें तभी आज़माए जाने की संभावना है जब इनसे सूचना श्रेष्ठता हासिल करने में मदद मिले. सूचना श्रेष्ठता में दुश्मनों के कमांड और कंट्रोल और नेटवर्क ढांचे के ख़िलाफ़ सूक्ष्म हमलों के प्रयोग से ग़ैर-संपर्ककारी युद्ध शामिल है, जो सर्जिकल, सूक्ष्म, और निर्णायक काइनेटिक  हमलों में मदद करने के लिए आवश्यक हैं. ये स्थानीय अभियानों को सक्षम बनाते हैं और बड़े पैमाने पर हमलों और विनाशकारी युद्ध की ज़रूरत को ख़त्म कर देते हैं.[59],[60]

चीन अपने बलों की मात्रा और मज़बूती की बजाए हमलों की गुणात्मक प्रभावशीलता, समय और लक्ष्य निर्धारण पर ज़ोर देगा. इसके लिए “तीन प्रभुत्व”, यानी “समुद्र की कमान, हवा की कमान और सूचना का प्रभुत्व” हासिल करने की दरकार है.[61] सूचना का प्रभुत्व सबसे नाज़ुक है क्योंकि इसके बिना हवा और समुद्र की कमान असंभव होगा.[62] अगर चीन के युद्ध के लक्ष्य भारत से सीमित रूप से भू-क्षेत्रों को हथियाने तक सीमित हैं तो उसके द्वारा ऊपर बताए गए साधनों को अपनाए जाने की संभावना है. अरुणाचल प्रदेश पर उसके ऐतिहासिक दावों के संदर्भ में चीन द्वारा संभावित रूप से ऐसी हरकतों को अंजाम दिए जाने की आशंका है. 

III. भारत के ख़िलाफ़ गतिक संचालनों में जुटा PLASSF

भारत के विरुद्ध चीन के सैन्य लक्ष्यों का दायरा, भारतीय सशस्त्र बलों (ख़ासतौर से भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना) के ख़िलाफ़ चीनी सेना की कामयाबी के लिए अहम है. यूक्रेन में रूसी सेना की कार्रवाइयां, शी की अगुवाई वाले नेतृत्व को ये समझने में सक्षम कर सकती हैं कि युद्ध को संचालन कैसे नहीं किया जाना चाहिए. साथ ही, वो ये भी समझ पाएंगे कि काइनेटिक संचालनों के समर्थन में साइबर हथियार किस हद तक प्रभावी रह सकते हैं. गतिक और साइबर युद्ध क्षमताओं के इष्टतम उपयोग के साथ सीमित लक्ष्यों वाले युद्ध को आगे बढ़ाना ही वो इकलौता रास्ता हो सकता है जिसके ज़रिए चीनी सेना भारत पर निर्णायक जीत हासिल कर सकती है.

ये सवाल अपनी जगह क़ायम है कि भविष्य में भारत के ख़िलाफ़ चीन की संभावित सैन्य आक्रामकता कैसे सामने आएगी. यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के सैन्य अभियान के बाद चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LaC) पर ज़्यादा सीमित उद्देश्यों के साथ युद्ध पर विचार कर सकता है. इसमें भारतीय भू-क्षेत्रों (जैसे समूचे अरुणाचल प्रदेश या जिसे चीन तवांग कहता है) पर गहराई से हमलों या क़ब्ज़े की बजाए छिछले या सीमित भू-क्षेत्रीय क़ब्ज़ा जमाने की क़वायद शामिल रहेगी. ऐसे सैन्य अभियान में अनेक मोर्चों पर सीमित भूमि पर ज़ब्ती की हरकत शामिल रहेगी, और चीन साइबर हमलों के ज़रिए अपने सैन्य अभियान की शुरुआत कर सकता है. ऐसे आक्रमण भारत के कमांड और कंट्रोल और संचार ढांचे को अस्थिर करने में काफ़ी हद तक प्रभावी साबित हो सकते हैं. इसके बाद चीन की ओर से भारतीय सेना की स्थिर और गतिमान लक्ष्यों पर तोपखानों और मिसाइल हमलों की बरसात की जा सकती है. चीन अपने कंप्यूटर, संचार, कमांड, कंट्रोल, ख़ुफ़िया, निगरानी और टोही (C4ISR) क्षमताओं के ज़रिए ऐसे हमलों को अंजाम दे सकता है. PLASSF चीन की एकीकृत सूचना युद्ध सेवा है जो अंतरिक्ष में भिड़ंत (SW), इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष (EW) और साइबर संग्राम (CW) क्षमताओं को जोड़ती है. सैन्य शत्रुता के शुरुआती चरणों में चीन की निकटतम ज़मीनी और समुद्री सरहदों पर सूचना प्रभुत्व हासिल करने के लिए इस क़वायद को अंजाम दिया जाता है.[63] चीन पूरे इलेक्ट्रोमैग्नेटिक दायरे (EMS) में उसे उपलब्ध किसी भी क्षमता को प्रयोग में ला सकता है.  

चीन के पास भारत की तुलना में ज़्यादा बड़ी साइबर ताक़त मौजूद है, जिससे ये एक शक्तिशाली साइबर प्रतिद्वंदी बन गया है.[64] तबाही और रुकावट, संचार और सूचना नेटवर्कों को कमज़ोर करने का केवल एक साधन है; मिसाल के तौर पर भारत के नेटवर्कों में झूठी सूचना डालने के लिए चीन आक्रामक साइबर संचालनों (OCOs) के रूप में साइबर संग्राम को अंजाम दे सकता है. भारत की सैटेलाइट नेविगेशन (SatNav) प्रणाली, नेविगेशन विद इंडियन कांस्टेलेशन (NAViC) के ज़रिए ऐसी हरकत की जा सकती है. NAViC पोज़िशनिंग, नेविगेशन और टाइमिंग (PNT) क्रियाकलापों का प्रदर्शन करता है.[65] लक्ष्य को रुकावट या तबाही का शिकार बनाने की बजाए उसे चकमा देना ज़्यादा फ़ायदेमंद होगा.[66] चूंकि NAViC सूक्ष्म नियंत्रण और निगरानी सुनिश्चित करने के लिए ज़मीन पर मौजूद नियंत्रण केंद्र पर निर्भर करता है, लिहाज़ा PLASFF के लिए चकमा देने के तौर-तरीक़ों का उपयोग करने के काफ़ी अवसर हैं.[67]  

उपग्रहों के नियंत्रण और निगरानी तंत्रों में डेटा में हेरफ़ेर से मसले की मौजूदगी या कारण का संकेत दिए बिना उनके प्रदर्शन में गिरावट आ जाएगी. इसके नतीजतन शत्रु पक्ष मिसाइलों को लॉन्च करने के लिए PNT प्रणाली पर निर्भर हो जाएगा जो आख़िरकार अपने लक्ष्यों से काफ़ी हद तक भटक जाएगा.[68] लिहाज़ा, भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के ज़मीनी खंड के साथ जुड़ाव बनाकर अंतरिक्ष-जनित लक्ष्यों के ख़िलाफ़ साइबर हमलों को अंजाम दिया जा सकता है.[69] एक हमलावर ग्राउंड स्टेशन के ज़रिए उपग्रहों तक कंप्यूटर कोड के सीधे ट्रांसमिशन के माध्यम से अंतरिक्ष यान के ऑनबोर्ड सेंसर्स का सीधा नियंत्रण भी हासिल कर सकता है.[70] अगर ये मान लिया जाए कि कि भारत के NAViC को चकमा देने की बजाए चीन केवल रुकावट या तबाही में ही शामिल होगा, तो ये भारतीय सैन्य कमांडरों को ग़ैर-सटीक गोला-बारूदी हमलों की ओर रुख़ करने को मजबूर कर सकता है.[71] इसका नतीजा ये होगा कि भारत PLAA और PLAAF के सैन्य ठिकानों को दृश्य रूप से कोई नुक़सान पहुंचाए बिना अपने गोला-बारूद के भंडार को ख़त्म करता जाएगा.

चीन ने भारत के उपग्रहों, लड़ाकू विमानों और मानव रहित वाहनों को निशाना बनाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष और साइबर संग्राम के मिले-जुले स्वरूप को तैनात किया है.[72] निंगची मेनलिंग हवाई अड्डे पर स्थित चीन के WZ-7 हाई-ऑल्टिट्यूड  लॉन्ग एंड्योरेंस (HALE) मानव रहित हवाई वाहन (UAVs) अरुणाचल प्रदेश से 15 किमी उत्तर में स्थित हैं. ये सक्रिय रूप से ISR डेटा एकत्रित करते हैं (चित्र 1). 2018 से सक्रिय WZ-7 UAVs को PLAAF के शिगात्से एयरबेस पर भी तैनात किया गया है, जो सिक्किम की राजधानी गंगटोक से 150 किमी उत्तर में स्थित है.[73] इन HALE ड्रोन्स के ISR क्रियाकलाप, भारत की स्थिर और गतिमान सैन्य परिसंपत्तियों के ख़िलाफ़ आक्रामक CW और EW अभियानों की नींव रखते हैं.[74] WZ-7 HALE मानव रहित हवाई वाहन अपने इलेक्ट्रॉनिक ख़ुफ़िया तंत्र (ELINT), ऑप्टिकल टोही प्रणाली (OR), और रडार टोही (RR) तंत्र से हासिल लक्ष्यीकरण  सूचना उत्पन्न करने में भी सक्षम हैं. इससे चीनी पक्ष भारतीय सैन्य ठिकानों के ख़िलाफ़ सटीक गोलीबारी  के लिए अपने मिसाइल बेड़े के इस्तेमाल में सक्षम हो जाता है.[75]

चीनी फ़ौज ने अधिक उन्नत सुपरसोनिक WZ-8 संस्करण की भी तैनाती की है, जिसमें दमदार इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल कैमरे और सेंसर्स से लैस अत्याधुनिक निगरानी क्षमता मौजूद है. ये वास्तविक समय में मैपिंग डेटा तैयार करने में भी सक्षम हैं.[76] WZ-8 का सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) रात के समय में और कोहरे और बादलों से ढके भू-क्षेत्रों का खाका तैयार कर सकता है.[77] चीन का WZ-8 पहले ही दक्षिण कोरिया और ताइवान के ख़िलाफ़ टोही मिशनों को अंजाम दे चुका है.[78] ये मैक 3 तक की गति हासिल कर सकता है और इसे A2AD मिशनों के लिए संभावित हथियार के तौर पर डिज़ाइन किया गया है. 2019 में बीजिंग में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की 70वीं वर्षगांठ के जलसे में आयोजित परेड में पहली बार इसे प्रदर्शित किया गया था. हालांकि उस वक़्त इसे परिचालित किए जाने का कोई पुख़्ता प्रमाण सामने नहीं आया था.[79] वैसे तो इसने अब तक हमले की भूमिका नहीं निभाई है, लेकिन इसे हमले के अभियानों को अंजाम देने के लिए पर्याप्त रूप से संशोधित किया जा सकता है. ऐसे संशोधनों से इसका सुराग लगाना और इसको रोक पाना लगभग असंभव हो जाता है.[80] ना तो अमेरिका और ना ही भारत के पास इसके टक्कर की ड्रोन क्षमता मौजूद है. जैसा कि अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञ डीन चेंग ने बताया है, “ये महज़ अमेरिका या दक्षिण कोरिया तक ही लक्षित नहीं है. जापान को भी इसकी चिंता करनी होगी. भारत को इसकी चिंता करनी होगी. दक्षिण पूर्व एशिया को इसकी चिंता करनी होगी.”[81] WZ-8 चीन की “टोही हमला सम्मिश्रण” का अहम हिस्सा तैयार करता है, जिसका लक्ष्य “दुश्मन को ढूंढना, दुश्मन पर वार करना, दुश्मन का ख़ात्मा करना” है.[82]

चित्र 1: ISR मिशनों के लिए चीनी UAV की तैनाती

स्रोत: डेमियन साइमन और बेंजामिन पिटेट

इसके अलावा, ये प्रमाणित हो चुका है कि चीन ने समूचे इलेक्ट्रोमैग्नेटिक दायरे (EMS) में साइबर युद्ध के अन्य संचालन आयामों के प्रभाव का क़रीब से अध्ययन किया है. रेडियो प्रसारणों और सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियोज़ (SDRs) के समानांतर ट्रांसमिशन की इजाज़त देने वाले एक्टिव इलेक्ट्रॉनिक स्कैन्ड एरे (AESA) रडार (जो रेडियो तरंगों के ट्रांसमिशन के तौर-तरीक़ों को बदल देते हैं) समूचे EMS में संचालनों को अंजाम देने के लिए कंप्यूटर प्रणाली पर निर्भर करते हैं.[83] सॉफ्टवेयर ये तय करता है कि रेडियो किस प्रकार ट्रांसमिशन करते हैं, जिससे रेडिया या रडार सिग्नलों का पता लगाना मुश्किल हो जाता है.[84] सॉफ्टवेयर का परिवर्तन आसानी से एक रिसीवर को ट्रांसमीटर में बदल सकता है, और छोटे ऐरे वाले AESA रडार संभावित लक्ष्यों पर रेडियो ऊर्जा प्रसारित करने के लिए विशेष रूप से उपयुक्त हैं.[85] उपग्रह संचारों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाली कंप्यूटर प्रणालियों में घुसपैठ करने की चीन की क़वायद रूसी साइबर क्षमताओं से आगे निकलती है; चूंकि उपग्रह समूहों में संचालित होते हैं, लिहाज़ा अंतर-उपग्रह संचारों को रोकने के लिए चीन की साइबर क्षमताएं आसान हो गई हैं.[86] इस प्रकार की घुसपैठ उपग्रह और हथियार प्रणालियों के बीच सिग्नल प्रसारणों में रुकावट डालकर और उन्हें ख़राब करके अंतरिक्ष और भूतल के बीच संचार रोक देगी. इसी प्रकार विज़ुअल और इलेक्ट्रॉनिक डेटा के बीच आदान-प्रदान भी रुक जाएगा.[87] ये हालात युद्ध-क्षेत्र में दबदबा जमाने की चीन की क़वायदों के अनुरूप है, जिसमें दो घटक शामिल हैं. पहला- सूचना दायरा है, जिसमें युद्ध के अलग-अलग दायरों (जैसे हवा, पानी और ज़मीन) के रूप में अंतरिक्ष में टकराव, इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष और साइबर संग्राम शामिल हैं. इन दायरों को सुरक्षित बनाने और वहां प्रभुत्व जमाने की ज़िम्मेदारी PLASSF पर है.[88] PLASSF के लिए दूसरी आवश्यकता क्षेत्रीय और वैश्विक रूप से साझा संचालनों को अमल में लाने के लिए क़रीबी सहयोग की है. PLA की हरेक सेवा शाखा के साथ उसे ऐसी सहभागिता करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है. इनमें PLAA यानी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयरफोर्स , पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी, और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी रॉकेट फोर्सेज़ (PLARF) शामिल हैं.[89] PLASSF के क्रियाकलापों की हाइब्रिड के तौर पर व्याख्या की जा सकती है, जिसमें कम से कम एक हिस्सा (जैसे सेवा के अंतरिक्ष तत्व) CMC और थिएटर कमांड्स (TCs) दोनों को रिपोर्ट करता है.[90] साझा युद्ध को बढ़ावा देने के लिए PLASFF प्रशिक्षण और अभ्यासों से लैस इकाइयों की तैनाती करता है.[91]

वैसे तो कमांड और कंट्रोल के इर्द-गिर्द कुछ मसले 2020 तक अस्पष्ट थे, चीनियों ने थिएटर कमांडों और PLAA की ज़मीनी इकाइयों के साथ PLASFF के क्रियाकलापों का समन्वय बनाने और उनका तालमेल बिठाने के लिए प्रगति की है. चीन की आधिकारिक घोषणा है कि “CMC अगुवाई करता है, थिएटर लड़ाइयां लड़ते हैं और सेवाएं निर्माण करती हैं.”[92] सैद्धांतिक रूप से इसका मतलब ये होगा कि PLASSF के कर्मी सीधे तौर पर पांच थिएटर कमांडों यानी TCs के तहत आते हैं; हालांकि व्यावहारिक संदर्भों में PLARF के समान SFF (जो चीन की परमाणु क्षमता का प्रबंधन करता है) सीधे CMC को रिपोर्ट करता है, क्योंकि दोनों ही बलों को ‘पर्याप्त रूप से सामरिक’ माना जाता है.[93] हालांकि इस बात की संभावना रहती है कि PLASFF के कंप्यूटर इंजीनियरों या सॉफ्टवेयर डेवलपर्स को TCs और PLA की ज़मीनी इकाइयों के साथ जोड़ दिया जाए. ख़ासतौर से PLA की पश्चिमी थिएटर कमांड (WTC)[94] की 76वीं ग्रुप आर्मी के संयुक्त सशस्त्र ब्रिगेड (CAB) के साथ ऐसा घालमेल किया जा सकता है, जैसा रूस के साथ युद्ध में यूक्रेन ने किया है.[95]

PLAA और PLASFF ने बेहद सूचनाप्रद वातावरण में युद्ध अभ्यास आयोजित किए हैं. इनमें 80वें GA से जुड़े रेड ब्रिगेड और 81वें GA से जुड़े ब्लू ब्रिगेड ने हिस्सा लिया. इन अभ्यासों में छोटी और अलग-अलग फैली इकाइयों के बीच उपग्रह संचारों का प्रदर्शन हुआ और संचार का परीक्षण किया गया, जो दुश्मन द्वारा विनाश को रोक देगा और उत्तरजीविता सुनिश्चित करेगा.[96] PLASFF और PLAA ने PLASFF बेस से जुड़े अभ्यास भी आयोजित किए हैं. इस कड़ी में सघन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वातावरण में 83वें GA की एक ब्रिगेड का मुक़ाबला किया गया.[97] ब्रिगेड स्तर पर और उसके नीचे PLAA की निचली स्तर की इकाइयों को EW मिशनों के लिए अहम युद्धक समर्थन मिलता है. साथ ही सिग्नल या सिग्नल इंटेलिजेंस (SIGINT) भी प्राप्त होता है. हरेक GA के साथ एक सेवा समर्थन ब्रिगेड जुड़ा होता है. इसमें तमाम घटक मौजूद होते हैं, जिनमें रसद, मेडिकल, मरम्मत, गोला-बारूद, कमांड और संचार (सिग्नल और संचार), और EW शामिल हैं. ब्रिगेड के सिग्नल पूरे GA युद्ध क्षेत्र के आर-पार पारंपरिक और नेटवर्क संचार का उपयोग करते हैं.[98]

इससे पूर्व, सभी संचार डिविज़नल कमांड स्तर पर संभाले जाते थे, इसमें निचले स्तरों पर संचार कमज़ोर रहता था.[99] बहरहाल, PLAA में सूचना-आधारित संचालनों पर दिए जा रहे ज़ोर को देखते हुए सभी सामरिक इकाइयों में सिग्नल क्षमताओं को बढ़ाया गया है.[100] सिग्नल घटक PLAA इकाइयों में साइबर कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिए मुस्तैद हैं, इस कड़ी में तमाम इकाइयों में संचार नेटवर्कों का जैमिंग, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक हमले, और हैकिंग या ‘साइबर घुसपैठ’ से बचाव किया जाता है.[101] इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष (EW) रेजिमेंट का उपयोग बेहद अहम है, जिससे संचालनों के सामरिक स्तर पर EW और साइबर संग्राम (CW) दोनों के प्रति मज़बूत वचनबद्धता के संकेत मिलते हैं.[102] EW रेजिमेंट को पांच विशिष्ट खंडों में विभाजित किया गया है- इलेक्ट्रोमैग्नेटिक हमला और जैमिंग; लंबी दूरी की इलेक्ट्रॉनिक निगरानी; इलेक्ट्रोमैग्नेटिक संरक्षण; नेटवर्क या साइबर संचालन; और संचार संचालन.[103] रूस की टोही हमला प्रणाली की तरह PLAA तोपखाने और हवाई रक्षा (AD) ब्रिगेडों को नज़दीकी संचालन समर्थन मुहैया कराने के लिए PLAA EW रेजिमेंट का उपयोग किए जाने की संभावना है.[104]

AI-संवर्धित एल्गोरिदम्स के प्रयोग और पश्चिम के पास मौजूद विविध स्रोतों[105] (जैसे वाणिज्यिक उपग्रह तस्वीर और ख़ुफ़िया उपकरणों) से सेंसर डेटा के इष्टतम उपयोग के ज़रिए रणभूमि में यूक्रेन के प्रदर्शन को देखने के बाद चीन द्वारा AI-संवर्धित एल्गोरिदम्स के प्रयोग को दोहराए जाने की संभावना है. वास्तविक समय में प्रोसेस  किए जाने के लिए ज़रूरी सूचना की मात्रा को लेकर ‘इंटेलिजेंट वॉरफेयर’[106] या AI ऐप्लिकेशन बेहद अहम होगा. ये इंसानों के लिए तार्किक रूप से और सटीकता के साथ प्रोसेस  किए जाने के लिए बेहद ज़्यादा होगा.[107] ये ‘इंटेलिजेंट टेक्नोलॉजी’ CW और EW को आगे बढ़ाएगी और सूचना के प्रवाह को इष्टतम कर देगी, जिससे सेंसर-टू-शूटर समय में कटौती लाने से जुड़ी युद्ध प्रभावशीलता में ज़बरदस्त बढ़ोतरी होगी, जिससे साझा संचालनों में दुश्मन के निर्णय चक्र को बाधित करने में मदद मिलेगी.[108] चीन ने पहले ही अपने स्पेशल फोर्सेज़ (SF) यूनिट्स के हिस्से के तौर पर AI-सक्षम स्वार्म ड्रोनों का परीक्षण और तैनाती कर दी है. साथ ही टोही मिशनों के लिए हथियारबंद ब्रिगेडों का भी परीक्षण किया है.[109] 2017 में चीन ने ये प्रदर्शित करके एक विश्व कीर्तिमान स्थापित किया कि कैसे 1000 ड्रोनों का झुंड अनेक पेचीदा तकनीकी कार्यों को पूरा कर सकता है.[110] चीनी इंटर-ड्रोन संचार, तालमेल और सहयोग के AI ऐप्लिकेशन की तकनीकी उत्कृष्टता में तब से सिर्फ़ बढ़ोतरी ही हुई है;[111] मिसाल के तौर पर अगर एक इकलौता ड्रोन या झुंड में ड्रोन का एक समूह ख़राब हो जाता है तो बाक़ी के ड्रोन आगे आकर ख़राब हो चुके ड्रोन या ड्रोनों द्वारा किए जाने वाले तकनीकी कार्यों की भरपाई करते हैं.[112]

2017 से चीन ने एक दूसरे के साथ संचार करने के लिए ऊंचाई वाले या जासूसी ड्रोनों का भी परीक्षण किया है, जो पृथ्वी की सतह से 20 किमी ऊपर तैनात हैं.[113] ये ड्रोन ISR मिशनों के लिए तैयार चीन की निकट-अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी का हिस्सा हैं.[114] इस क्षमता का विकास अब भी चीन के लिए चुनौतीपूर्ण बना हुआ है, चूंकि ऊंचाई पर बेहद पतली हवा या वैक्यूम जैसी स्थितियां विद्युत धाराएं पैदा करती हैं जो उपकरणों को नुक़सान पहुंचा सकती हैं.[115] वैसे तो ये विचार नया है, और चीनी तकनीकी विशेषज्ञ स्वीकार करते हैं कि ज़्यादा ऊंचाई पर स्वार्म ड्रोन्स का प्रभावी सैन्य प्रयोग एक खुला प्रश्न बना हुआ है.[116] नतीजतन, 2017 के परीक्षणों के बाद से अहम प्रगति के काफ़ी कम प्रमाण मिले हैं.[117]

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस PLASFF के साइबर संग्राम और इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष को बढ़ाता है. सूचनाकरण और बुद्धिमत्ताकरण (इंटेलिजेंटाइज़ेशन) एक दूसरे से अटूट रूप से जुड़े हैं, मसलन कंप्यूटिंग शक्ति और डेटा, AI के लिए ज़रूरी है, जो बदले में विशाल सूचना की सटीक प्रोसेसिंग  को सक्षम बनाते हैं, जिन पर  युद्ध भूमि  में निर्णय लिए जाते हैं.

यूक्रेन के संचार और सैन्य ठिकानों के ख़िलाफ़ युद्ध के ज़्यादातर हिस्से में रूस का इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष उसके साइबर संग्राम की तुलना में ज़्यादा प्रभावी साबित हुआ है. आकलन के मुताबिक इसके ज़रिए 90 फ़ीसदी यूक्रेनी ड्रोनों का ख़ात्मा किया गया है, जिससे यूक्रेनी पक्ष सटीक वार करने से वंचित हो गया.[118] इसका ये मतलब नहीं है कि साइबर युद्ध को नज़रअंदाज़ कर दिया जाना चाहिए, बल्कि रूस-यूक्रेन जंग जैसे लंबे युद्ध में EW के ज़्यादा प्रभावी होने की संभावना है. दरअसल, सूचनाकरण को लेकर चीन के रुख़ में जानकारी का बड़े पैमाने पर घालमेल, उपयोग और प्रयोग शामिल है, ताकि युद्ध और शांतिकाल, दोनों में राष्ट्रीय उद्देश्यों को सुरक्षित किया जा सके. ऐसे में PLA द्वार साइबर उपकरणों के साथ-साथ सूचना के पूरे दायरे में मौजूद औज़ारों का दोहन किए जाने की संभावना है. वैसे तो PLAA ने मशीनीकरण हासिल कर लिया है और सूचनाकरण की दिशा में भी अहम प्रगति की है, लेकिन सूचनाओं से जुड़ी उसकी क़वायद अब भी आधी-अधूरी है. सूचनाकरण का अनुसरण करने वाले बुद्धिमत्ता करण  में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग और ऐप्लिकेशन शामिल है, जिससे PLAA के लिए अपने और अपने प्रतिद्वंद्वियों  के बीच भारी अंतर स्थापित करने का रास्ता साफ़ हो जाता है.[119] PLAA तीनों तत्वों- मशीनीकरण, सूचनाकरण और बुद्धिमत्ताकरण- को ना सिर्फ़ क्रमिक चरणों के रूप में देखता है बल्कि इन्हें पारस्परिक रूप से समावेशी और अटूट रूप से जुड़ा हुआ भी समझता है.[120]

भारत जैसी राज्यसत्ताओं के लिए, जो चीन की CW और EW क्षमताओं के साथ-साथ पूरे इलेक्ट्रोमैगनेटिक दायरे (EMS) में चीनी क्षमताओं का मुक़ाबला कर रहे हैं, हक़ीक़त और भी ज़्यादा चुनौतीपूर्ण हो जाता है. यूरोपीय सुरक्षा को लेकर भौगोलिक अहमियत के चलते यूक्रेन को तो पश्चिम की सहायता मिल गई, लेकिन भारत को ऐसी मदद मिलने की संभावना ना के बराबर है.

1990 और 2000 के दशकों में अमेरिका ने नेटवर्क्ड युद्ध में चीन को अहम ताक़त नहीं माना.[121] 2010 के दशक में PLA द्वारा सूचना आधारित साझा सैन्य युद्ध अभ्यासों के आयोजन के बढ़ते प्रमाणों के साथ ये धारणा तेज़ी से दूर हो गई.[122] अमेरिका से आगे निकलने की चीनी क़वायदों ने CW, EW और EMS क्षमताओं (और ज़्यादा सामान्य रूप से नेटवर्क केंद्रित संचालनों यानी NCOs) में भारत के साथ इसके अंतर को चौड़ा कर दिया है. सैन्य रणनीति का विज्ञान (SMS) “नेटवर्क युद्ध में चीन के उभरते रणनीतिक दृष्टिकोण को समझने में ख़ासतौर से मूल्यवान संसाधन है. आधुनिक युद्ध और लड़ाई में सूचना युद्ध की केंद्रीयता के चलते व्यापक लक्ष्य की ओर निर्देशित सैन्य रणनीति का विज्ञान नेटवर्क युद्ध की अनदेखी नहीं कर सकता, साथ ही SMS को जिस प्रक्रिया से लिखा जाता है, वो ये सुनिश्चित करता है कि नेटवर्क युद्ध में प्राप्त सूचना एनालिटिक्स, PLA के भीतर एक अधिकारवादी सहमति की ओर बढ़ती प्रक्रिया का प्रतिनिधित्व करता हो.”[123] यही वो बिंदु है जहां हम अन्य सूचना स्रोतों की भूमिका की ओर मुड़ते हैं, जिन्हें स्वतंत्र रूप से लागू किया जा सकता है या साइबर संचालनों के साथ जोड़ते हुए पूरक के रूप में अमल में लाया जा सकता है.

IV. चीन-भारत युद्ध में PLASFF की अन्य क्षमताएं

जब भारत और दुनिया का ध्यान किसी संकट से निपटने पर होगा और भारत विवादित सीमाओं से अलग कहीं और व्यस्त होगा तब चीन का सीमित-लक्ष्यों वाला सैन्य अभियान सामने आ सकता है. इसके अतिरिक्त, चीन द्वारा ऐसे अभियान के लिए ऐसा लम्हा चुने जाने की संभावना है, जो जंग की सूरत में तीसरे पक्षों को भारत की मदद करने से रोकता हो. 1962 के चीन-भारत सीमा युद्ध को ही ले लीजिए. ये जंग क्यूबा के मिसाइल संकट के समानांतर घटित हुई थी, और ना तो अमेरिका और ना ही सोवियत संघ, वक़्त पर भारत की मदद कर पाए थे; हक़ीक़त तो ये है कि सोवियत संघ ने कम से कम तात्कालिक रूप से चीन के साथ सांठगांठ  कर ली थी. अमेरिका जब तक भारत की मदद के लिए आया तब तक  युद्ध ख़त्म हो चुका था और चीनी पक्ष पूर्वी सेक्टर में चीन-भारत सीमा पर मैकमोहन लाइन से पीछे लौट चुका था. 

भारत के ख़िलाफ़ चीन की सबसे हालिया सैन्य कार्रवाई अप्रैल-मई 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान सामने आई, जब उसने पूर्वी लद्दाख में पांच खाली क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा जमा लिया. इस हमले को लेकर भारतीय सेना ग़ैर-सतर्क थीं और युद्ध के लिहाज़ से उनका जमावड़ा भी नहीं था. नतीजतन, भारतीय सेना वक़्त पर PLAA की घुसपैठ का जवाब नहीं दे पाई. इनमें से कम से कम दो इलाक़े, जैसे डेमचोक और रणनीतिक रूप से नाज़ुक देपसांग चीनी नियंत्रण में बरक़रार हैं. भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना द्वारा पहले से ज़्यादा निगरानी और सतर्कता के बावजूद चीन का पश्चिमी थिएटर कमांड (WTC) हमलों को अंजाम देने के लिए उन अवसरों के दोहन में अहम रहेगा जो या तो भारत के अशांत उत्तर-पूर्व में घरेलू उथल-पुथल और इसके नतीजतन भारतीय बलों की नए सिरे से तैनाती के प्रत्यक्ष नतीजे से पैदा होते हैं या पर्याप्त रूप से विचलित करने वाले और ध्यान भटकाने वाले एक अंतरराष्ट्रीय संकट के परिणाम के तौर पर सामने आए हों. 

चीनी फ़ौज ने अधिक उन्नत सुपरसोनिक WZ-8 संस्करण की भी तैनाती की है, जिसमें दमदार इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल कैमरे और सेंसर्स से लैस अत्याधुनिक निगरानी क्षमता मौजूद है. ये वास्तविक समय में मैपिंग डेटा तैयार करने में भी सक्षम हैं.

इतना ही नहीं, लद्दाख में सलामी-स्लाइसिंग और दिसंबर 2022 में अरुणाचल प्रदेश के यांगत्से में घुसपैठ को चीन की ग्रे-ज़ोन रणनीति के तौर पर देखा जाना चाहिए, जिसने चीन को कम लागत पर फ़ायदे हासिल करके भारतीय सेना की कमज़ोरी साबित करने में मदद की है. यहां चीन के लिए एक अहम सबक़ ये है कि ग्रे-ज़ोन युद्धकला से पारंपरिक युद्ध की ओर बढ़ने (जैसा रूस ने फरवरी 2022 में किया) में भारी लागत चुकानी पड़ सकती है,[124] जबकि ग्रे रणनीति चीन के लिए किफ़ायती रहती है. 

हालांकि भारतीय सेना को ये मानकर नहीं चलना चाहिए कि चीनी फ़ौज अपनी रणनीति को ग्रे-ज़ोन युद्धकला तक ही सीमित रखेगी, क्योंकि चीन असमानुपातिक साधनों के साथ परंपरागत सीमित-लक्ष्यों वाले युद्ध की ओर आगे बढ़ सकता है- जैसा रूस ने कभी भी यूक्रेन के ख़िलाफ़ नहीं किया था- इससे चीन बड़ी मात्रा में भू-क्षेत्रीय लाभ हासिल करने में सक्षम हो सकेगा. ये मुनाफ़ा पूर्वी लद्दाख में हासिल फ़ायदे से भी ज़्यादा हो सकता है. यही वजह है कि भारत के नागरिक और सैन्य नेतृत्व को चौकन्ना रहना चाहिए और चीन द्वारा मौजूदा ग्रे-ज़ोन युद्धकला से संभावित टकराव की ओर बढ़ने की आशंकाओं को देखते हुए व्यवस्थित रूप से तैयारी करनी चाहिए. 

एक और संभावित परिदृश्य युद्धकला के ध्यान भटकाने वाले सिद्धांत से सामने आता है, जो सत्ता की कमज़ोरी और घरेलू अव्यवस्था को युद्ध के कारण के तौर पर देखता है.[125] भू-क्षेत्रीय टकराव (जैसा चीन और भारत के बीच है) के चलते तीव्र भावनाएं भड़कने की आशंका है, जो गहरी सामाजिक एकता में योगदान देगी और जनता को एकजुट करेगी, जिससे नेताओं को लड़ाकूपन दिखाने का प्रोत्साहन मिलेगा.[126] ऐसी समस्याएं शी की अगुवाई वाले नेतृत्व को (जो समस्याग्रस्त घरेलू हालात का सामना कर रही है) युद्ध भड़काने के लिए एक आसान रास्ता मुहैया करा सकती हैं. 

दिसंबर 2022 में कोविड-19 महामारी से जुड़े प्रतिबंधों के हटने के बाद चीन की अर्थव्यवस्था  उबरने के लिए संघर्ष कर रही है.[127] शी की हुकूमत द्वारा राज्यसत्ता की ताक़त के मनमाने इस्तेमाल ने चीनी जनता के बीच गहरी अनिश्चितता पैदा कर दी है,[128] जो जनता में अशांति और असंतोष भड़का सकती है. नतीजतन, घरेलू असंतोष और शी के नेतृत्व के प्रति नाराज़गी से चीनी जनता का ध्यान भटकाने के लिए चीनी नेतृत्व परंपरागत हमले का हथकंडा अपनाकर तनाव बढ़ाने की कोशिश कर सकता है. ख़ासतौर से चीन-भारत सरहद के पूर्वी सेक्टर में ऐसा देखने को मिल सकता है जहां ऐतिहासिक रूप से चीन के दावे ज़्यादा प्रमुखता से उभरते रहे हैं. 

अंत में, एक दूरस्थ, लेकिन संभावित परिदृश्य में दूसरा मोर्चा खोलने में पाकिस्तान की भूमिका शामिल है. संभावित चीनी हमले को मदद देने में पाकिस्तान की भूमिका नियंत्रण रेखा (LoC) पर सीमित हरकतों के रूप में सामने आ सकती है, या यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार पाकिस्तानी बलों की सामान्य लामबंदी के तौर पर भी दिखाई दे सकती है, जिससे भारत के लिए पर्याप्त भटकाव भरा दबाव पैदा हो सकता है. इस तरह भारतीय सेना, भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना की सैन्य तैनातियां परेशानी में पड़ सकती हैं.

लिहाज़ा, चीन तब हमला करेगा जब भारत को ऐसी हरकत की सबसे कम उम्मीद रहेगी. भारत की परंपरागत क्षमताओं और तैनातियों में पर्याप्त कमज़ोरियां भांपने के बाद ही चीन ऐसी हरकतों को अंजाम देगा.

चीनी सैन्य आक्रमण के संभावित मार्ग में भारत के अंतरिक्ष-जनित नेविगेशन सिस्टम के ख़िलाफ़ PLASSF की इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष क्षमताएं शामिल होंगी. चीन द्वारा भारतीय प्रणालियों में व्यवधान खड़ी करने के पहले अहम लक्ष्यों में NAViC[129] शामिल होगा, जिसे जैमिंग (EW) का प्रयोग करके अंजाम दिया जाएगा. आक्रामक और रक्षात्मक हथियार के तौर पर जैमिंग के स्वरूप का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया गया स्वरूप संचार जैमिंग टेक्नोलॉजी का है.[130] वैसे तो इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष के ज़रिए भारतीय उपग्रह अपलिंक और डाउनलिंक संचारों को बाधित करने की क़वायद PLASSF का पसंदीदा हथकंडा होने की संभावना है, ये संचार को ऐसे तरीक़े से हैक कर सकती है जो PLAA और PLAAF की ज़मीनी और हवाई संचालनों को सक्षम बनाकर उनका समर्थन करे.

AI-संवर्धित एल्गोरिदम्स के प्रयोग और पश्चिम के पास मौजूद विविध स्रोतों[105] (जैसे वाणिज्यिक उपग्रह तस्वीर और ख़ुफ़िया उपकरणों) से सेंसर डेटा के इष्टतम उपयोग के ज़रिए रणभूमि में यूक्रेन के प्रदर्शन को देखने के बाद चीन द्वारा AI-संवर्धित एल्गोरिदम्स के प्रयोग को दोहराए जाने की संभावना है.

चीन के पास डायरेक्ट एसेंट एंटी-सैटेलाइट (DA-ASAT) क्षमताएं भी मौजूद हैं, जो अंतरिक्ष यानों को ना सिर्फ़ पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) में बल्कि भू-स्थैतिक कक्षा (GEO) में भी निशाना बना सकता है. GEO में भारत के NAViC उपग्रहों को DA-ASAT से निशाना बनाया जा सकता है, जिसमें डोंग नेंग-2 (DN-2) भी शामिल है, जिसे पहली बार 2013 में पश्चिमी चीन के कोरला में लॉन्च किया गया था.[131] DA-ASAT भू-स्थैतिक कक्षा में अंतरिक्ष-जनित लक्ष्य साध सकता है, हालांकि इसको रोकने में इसे 4-5 घंटे का वक़्त लग सकता है, जिससे भारत के GEO अंतरिक्ष यान को बचावकारी कार्रवाई को अंजाम देने के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा.[132] GEOSAT की सीमित संख्या को देखते हुए, DA-ASAT के कामयाब प्रहार से एक भी भू-स्थैतिक उपग्रह (GEOSAT) का नुक़सान गंभीर झटका साबित होगा, जिससे भारत की युद्धकालीन कार्रवाइयों में बाधाएं आ जाएंगी. 

काइनेटिक हमला अंतरिक्ष-रोधी तकनीकों से परे, एक कामयाब इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स (EMP) हमला भू-स्थैतिक कक्षा में किसी भी संचार उपग्रह को क्षति पहुंचाएगा. माना जाता है कि चीन के पास हाई-ऑल्टिट्यूड  इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स (HEMP) क्षमता मौजूद है, जिसे सुपर-EMP के नाम से भी जाना जाता है. ये एक कमज़ोर परमाणु उपकरण है जिसे पृथ्वी से ऊपर 70-100 किमी की ऊंचाई पर विस्फोटित किया जा सकता है ताकि 10-100 किलो वोल्ट प्रति मीटर (kV/m) तक EMP क्षेत्र का निर्माण किया जा सके. ये उपग्रहों के इलेक्ट्रिकल सर्किट और इलेक्ट्रॉनिक घटकों को गला कर नष्ट कर सकता है.[133] सैन्य आकस्मिकता में चीन द्वारा इस क्षमता का उपयोग दुर्लभ है क्योंकि इससे कक्षा में घूम रहे अन्य अंतरिक्ष यानों को भी समान रूप से नुक़सान पहुंच सकता है, जिनमें चीनी उपग्रह भी शामिल हैं.[134] हालांकि EMP क्षमता का उपयोग कक्षा में घूमते अंतरिक्ष यानों  पर माइक्रोवेव हमले (HEMP हमले के साथ-साथ) के तौर पर किया सकता है. ये युद्धक्षेत्र में शत्रु के संचार को तबाह कर सकता है और चीनी सूचना की श्रेष्ठता स्थापित कर सकता है. सूचनादायक उपकरणों के सामरिक प्रदर्शन और उत्तरजीविता को सीमित करके इस क़वायद को अंजाम दिया जा सकता है.[135] हालांकि, अंतरिक्ष क्षेत्र में उच्च ऊर्जा हमलों से जुड़ी टेक्नोलॉजी अब भी अपने शुरुआती चरण में है.[136] रूसी संघ, अमेरिका और चीन समेत तमाम अन्य देशों ने निर्देशित ऊर्जा हथियारों (DEWs) में शोध और विकास (R&D) के क्षेत्र में संसाधन खपाए हैं. इनमें हाई एनर्जी लेज़र्स के साथ-साथ कुछ सीमित संचालन क्षमताओं का विकास शामिल हैं. फिर भी, DEWs अब भी प्रयोगशाला परीक्षणों से ही गुज़र रहे हैं और सैन्य मिशनों के लिए प्रभावी उपयोग को लेकर जाने जाने वाली कोई ज्ञात विश्वसनीय लेज़र टेक्नोलॉजी नहीं है.[137] इस आकलन से परे, चीन काइनेटिक मारक क्षमताओं में अमेरिका की बराबरी करने के लिए तेज़ गति से निवेश कर रहा है, जो उपग्रहों को जाम करने और चकमा देने के लिए ज़मीन और अंतरिक्ष से लॉन्च किए जा सकते हैं.[138] इसके विकल्प के तौर पर PLASSF समन्वित हमले में साइबर संग्राम (CW), इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष EW, और अंतरिक्ष में टकराव (SW) क्षमताओं को शामिल कर सकता है, हो सकता है कि इसमें काइनेटिक ऑपरेशंस शामिल ना हो, और ये भारत के अंतरिक्ष, इलेक्ट्रॉनिक और साइबर नेटवर्कों की ज़ब्ती और नियंत्रण तक सीमित हो. ये भारत को 'बिना लड़े आत्मसमर्पण' कराने यानी "युद्ध का सबसे उच्चतम दर्जा" स्थापित करने में निर्णायक साबित हो सकता है- इस तरह चीन संकटकाल में टकराव बढ़ाने और उसके प्रबंधन की क़वायद में सक्षम हो जाएगा.[139]

PLA को संयुक्त हथियार युद्ध को अंजाम देने में सक्षम बनाने के उद्देश्य से भी PLASSF की स्थापना की गई थी- ये एक ऐसा सांगठनिक बदलाव है जिसमें PLA को अभी महारत हासिल करना बाक़ी है. हालांकि 2015 में इसकी शुरुआत के बाद से इस दिशा में प्रगति के कुछ निशान दिखाई दिए हैं. चीन ने उनकी क्षमताओं के संदर्भ में विशिष्ट उपाय किए हैं, जिसमें आगे दिए गए सिद्धांत की पालना शामिल है: “समग्र कमांड में CMC, युद्ध के प्रबंधन में थिएटर कमांड, और बल निर्माण का प्रबंधन सेवाओं के ज़िम्मे.”[140] PLASFF का प्राथमिक मिशन थिएटर कमांडों के लिए साझा संचालन क़वायदों में सक्षमकारी इकाई के तौर पर काम करने का है.[141] PLASSF का अंतरिक्ष मिशन उनके “भू-क्षेत्रीय समकक्षों” की तुलना में “प्रधानता” का लाभ उठाएगा.[142] मिसाल के तौर पर PLASFF का अंतरिक्ष मिशन रडार सिग्नेचर्स, इंफ्रारेड हीट सिग्नेचर्स और इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल उत्सर्जनों की पहचान के लिए ज़िम्मेदार होगा; और LaC और सैन्य सुविधाओं के साथ इमेजरी इंटेलिजेंस (IMINT)[143] के आधार पर लक्ष्यों का प्रोफाइल तैयार करने का उत्तरदायित्व उठाएगा, इस तरह ये भारत में स्थलीय रूप से दूर तक संकेंद्रण, हथियार प्रणालियों और प्रतिष्ठानों को मजबूर करेगा. ये क़वायद हथियार प्रणालियों और मंचों की पहचान करने, टोह लगाने और उन्हें लक्षित करने में मदद करेगी. इस तरह जुटाई गई सभी जानकारियों को हवाई प्रतिरक्षा, अर्ली वॉर्निंग और निगरानी के लिए थिएटर कमांडों के संचालन और सामरिक इकाइयों में ख़ुफ़िया जानकारियां इकट्ठा करने वाली इकाइयों तक प्रसारित किया जाएगा. भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना के सेंसर, रडार और संचार नेटवर्कों को साइबर हमलों और जैमिंग के ज़रिए निशाना बनाने में इस सूचना का प्रयोग किया जा सकता है.[144] PLA की सभी परंपरागत मिसाइल स्ट्राइक मिशनों को PLASSF द्वारा मदद पहुंचाई जाएगी. पहचान, खोज, मार्गदर्शन और हमले के बाद लड़ाई में नुक़सान के आकलन के स्वरूप में इस क़वायद को अंजाम दिया जाएगा.[145] इकलौते एकीकृत बल के रूप में ये क्षेत्रवार जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न स्रोतों से सूचना एकत्रित करने में सक्षम होगा.[146] साथ ही थिएटर कमांडों और उनके निचले स्तर वाली इकाइयों (जैसे ग्रुप आर्मी और संयुक्त हथियार ब्रिगेड यानी CAB) को संबंधित लक्ष्य अधिग्रहण और सूक्ष्मता से हमला करने की क्षमता मुहैया कराएगा. इस कड़ी में इकलौती अहम सावधानी यही है कि चीन का कमांड ढांचा शांतिकाल के विपरीत युद्धकाल में कैसे काम करेगा. शांतिकाल में PLASSF को मज़बूती से नियंत्रित किया जाएगा और वो CMC को रिपोर्ट करेगा, क्योंकि इसे बेहद रणनीतिक माना जाता है.[147]

भारत के ख़िलाफ़ फ़ौजी हमले में PLASSF के समर्थन से चीन का पश्चिमी थिएटर कमांड (WTC) लड़ाका पंक्ति में सबसे आगे होगा. पहले ही हम PLA द्वारा दुष्प्रचार के प्रयोग की आंशिक झलक देख चुके हैं, जिसने हमले को लेकर इसकी योजना के बारे में कोई संकेत नहीं दिए. अप्रैल-मई 2020 में हुए उस हमले में लद्दाख में भारत के दावे वाले पांच इलाक़ों में चीनी क़ब्ज़े का परिणाम सामने आया, जिससे दोनों देशों के बीच ऐसी ज़बरदस्त तनातनी मच गई जो आज तक क़ायम है. इससे भी अहम बात ये है कि शी जिनपिंग के नेतृत्व वाले सेंट्रल मिलिट्री कमांड (CMC) के साथ WTC और PLASSF की कामयाबी चीन द्वारा सूचना का नियंत्रण किए जाने का अच्छा उदाहरण है. इसके ज़रिए हज़ारों सैनिकों का उपयोग करके चीन भू-क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा जमाने की रणनीति को क्रियान्वित करता है. रूसी साइबर हमले, जिसमें EW का पूरक इस्तेमाल भी शामिल था, पांच हफ़्तों तक चले. भारत के ख़िलाफ़ चीनी सैन्य आक्रामकता अगर पांच हफ़्तों तक जारी रह जाए तो भारतीय बलों को पस्त करके सीमित भू-क्षेत्रीय फ़ायदे हासिल करने के लिए पर्याप्त हो सकती है. ये बेटमैन की इस दलील पर टिकी है कि छोटी अवधि वाले टकरावों में साइबर युद्ध के सबसे प्रभावी होने के आसार होते हैं.[148] सीमांत क्षेत्रीय लाभ हासिल करने के लिए सीमित लक्ष्यों वाले सैन्य अभियान में PLASFF की साइबर क्षमताओं के साथ-साथ उसकी EW और अंतरिक्ष-जनित और अंतरिक्ष-रोधी क्षमताओं के संघर्ष की मियाद तक प्रभावी रहने की संभावना है. संघर्ष को छोटा रखने से PLA भारत के ख़िलाफ़ अपने साइबर उपकरणों के अधिकतम या इष्टतम दोहन में सक्षम हो जाएगा. 

भले ही साइबर उपकरण अपने आप में उतने प्रभावी ना हों, पर PLASSF के पास हमले के अन्य हथकंडे मौजूद हैं. इनमें EW और DA-ASAT शामिल हैं. साइबर युद्ध के साथ इन क्षमताओं का पूरक उपयोग प्रभावी साबित हो सकता है. बुनियादी तौर पर साइबर संचालन साइबर संसार में निरंतर टोही क़वायदों, साइबर क्षमताओं के विकास और साइबर प्रभावों के दोहन को ज़रूरी बना देते हैं. युद्ध में शत्रु के ऊपर बढ़त हासिल करने के लिए इसका प्रभावी रूप से उपयोग किया जा सकता है.[149] साइबर क्षेत्र में टोही और हमलों से जुड़े मिशन सख़्ती से जुड़े होते हैं, जहां साइबर हमले और ख़ुफ़िया क्षमताएं चीनी सेना के लिए एक आवश्यकता है.[150] PLA की रणनीति के मूल में भारतीय सेना और वायु सेना के संचार और डिजिटल नेटवर्कों में घुसपैठ करना और उसे नष्ट करना शामिल रहेगा, जो भारतीय वायुसेना  और थल सेना द्वारा हवा से ज़मीन तक संयुक्त लड़ाई को अंजाम देने की क़वायद के केंद्र में है. इसके अलावा चीनी पक्ष भारतीय सेना की युद्धक शाखाओं को भी तबाह करने की कोशिश करेगा. PLA साइबर क्षेत्र को “स्वाभाविक रूप से आक्रामक क्षेत्र” के तौर पर देखता है, जिसमें “मज़बूती से हमले की मानसिकता” ज़रूरी हो जाती है,[151] ऐसे में PLASSF के लिए निरंतर तैयारी और क्षमताओं के विकास की दरकार होती है, जो शत्रुओं के हथियारों और नेटवर्कों में कमज़ोरियों की पहचान करने और उनका लाभ उठाने की ताक में रहते हैं.[152]

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हाल के दिनों में गाज़ा  युद्ध को लेकर दुश्मनी को घटाने के मक़सद से एक प्रस्ताव को नाकाम कर दिया गया. इसने UNSC के असरदार न होने को उजागर किया है.

11वीं पंचवर्षीय योजना (2006-2010) से अपने अड्डों में PLA के प्रशिक्षण में सूचनाकरण की दिशा में काफ़ी प्रगति हुई है. इन ठिकानों पर मौजूद PLA की इकाइयों ने सूचनाकरण की प्रशिक्षण ज़रूरतों के निपटारे के साथ-साथ साझा संचालनों में प्रभावी साइबर कार्रवाइयों के लिए मार्गदर्शन और समायोजन मुहैया कराने के लिए अपना सूचनी प्रणालियों का निर्माण किया है.[153] युद्धक परिस्थितियों में प्रभावशीलता के लिए साइबर संचालनों और कमांड में सैन्य टुकड़ियों का निरंतर प्रशिक्षण बेहद अहम है. हालांकि PLA ने प्रशिक्षण और कमांड, दोनों के लिए साइबर क्षेत्र को चुनौतीपूर्ण पाया है क्योंकि समुद्र, हवा, ज़मीन और अंतरिक्ष जैसे अन्य क्षेत्रों की तुलना में इसमें भारी अंतर मौजूद हैं.[154] साइबर क्षेत्र युद्धक कमांड प्रशिक्षण में- हवा और अंतरिक्ष टोही ख़ुफ़िया तंत्र, जलीय और मौसम विज्ञान संबंधी डेटा और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक दायरे (EMS) से जुटाई गई सूचना जैसे अनेक स्रोतों से सूचना को एकीकृत करने और उन्हें जोड़ने की क़वायद; आक्रामक और रक्षात्मक साइबर क्षेत्र में साइबर कमांड युद्धक प्रशिक्षण को उत्प्रेरित करने वाला प्रशिक्षण और साइबर हथियारों का सत्यापन और परीक्षण; शत्रु के नेटवर्क संचार, सॉफ्टवेयर संचालन, सूचना प्रोसेसिंग  क्षमताओं, कंप्यूटर पर नियंत्रण का दोहन कर उनको नष्ट करके साइबर हथियारों के उपयोग में महारत विकसित करना और प्रतिद्वंदी के उपकरण में समस्याएं खड़ी करना; और मार्गदर्शन और नियंत्रण, जो सभी गतिविधियों के मूल में है, शामिल हैं. इनमें प्रशिक्षण सूचनाओं, प्रशिक्षण संसाधनों के लिए आवंटनों, और प्रशिक्षण रुझानों की स्थापना शामिल हैं.[155] इसमें अनेक दायरों से सूचना को जोड़ने और PLA की अनेक शाखाओं के साथ जुड़ाव और समन्वय की क़वायद भी शामिल है. इसके नतीजतन समय के हिसाब से कार्यकुशल, लोचदार और आसानी से उपयोग होने वाले मददगार सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर हासिल होता है.[156]

LaC पर भारत की ज़मीनी और हवाई युद्धक तैनातियों के ख़िलाफ़ चीन की निगरानी और टोही मिशनों को समझने के लिए पश्चिमी थिएटर कमांड (WTC) और PLASSF के तहत PLA की कार्रवाइयों की पड़ताल करने की आवश्यकता है. सैन्य शत्रुता भड़कने की सूरत में आगे यह  INEW (CW और EW) की अहमियत को भी रेखांकित करती है.

कम से कम 2017 से (जो भारत और चीन की सरहद पर मौजूदा तनातनी से पहले का काल है) चीन ने चीन-भारत सीमा पर रडार स्थापित करने में भारी-भरकम निवेश किया है.[157] पूर्व में, चीन के ISR-संबंधित निवेश उसके तटीय क्षेत्रों पर केंद्रित थे,[158] जबकि 2017 के बाद चीन ने सिरजाप क्षेत्र में सियाचिन ग्लेशियर के नज़दीक देपसांग इलाक़े और डेमचोक में रडार केंद्र स्थापित किए हैं, जो चीन को भारतीय क्षेत्र में सभी ज़मीनी और हवाई गतिविधियों का पता लगाने में सक्षम बनाता है.[159] ये रेडोम रडार भारतीय क्षेत्र में 125 किलोमीटर अंदर तक निगरानी कर सकते हैं (चित्र 2, 3 और 4) और निश्चित रूप से भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना के लिए चुनौतियां पेश करते हैं. इसके अतिरिक्त ये संभावित रूप से स्थापित सेंसरों की मदद से सूचना इकट्ठा करते हैं, जो भारतीय सेना और भारतीय वायुसेना के प्रतिष्ठानों से हासिल सिग्नलों के विश्लेषण के साथ-साथ गतिमान वस्तुओं (जैसे फिक्स्ड-विंग और रोटरी विमानों) और ज़मीन पर सैन्य यातायात की सूचना जुटाते हैं. निश्चित रूप से भारतीय वायु सेना इन लक्ष्यों के साथ-साथ चीन की उन्नत लंबी दूरी वाले और हवाई निगरानी रडारों को भी निशाना बना सकती है. इनमें JY-27A निगरानी रडार भी शामिल है जिन्हें अब पैंगोंग  त्सो और पाकिस्तान के मियांवाली में तैनात किया गया है.[160] लेकिन ये रडार चीन के सटीक मिसाइल हमलों को सक्षम करने और ठोस हवाई प्रतिरक्षा प्रणालियों को मदद पहुंचाने में अटूट भूमिका निभाएंगे. ये चीनी वायु सेना द्वारा भारतीय वायु सेना और भारतीय सेना के ख़िलाफ़ पूर्व-तैयारियों से किए जाने वाले हमलों को भी सक्षम बना सकते हैं, जिससे PLAAF को मौक़े का लाभ उठाने की छूट मिल जाएगी.

रडार सेंसर भारी मात्रा में डेटा मुहैया कराते हैं. वो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें छोड़ते हैं, और सिग्नल प्रतिबिंब उन्हें उड़ान के समय की माप करने में सक्षम बनाते हैं.[161] इन्हें फ्रीक्वेंसी मॉड्यूलेटेड कंटीन्यूअस  वेव (FMCW) रडार के नाम से भी जाना जाता है; सेंसर एक चहचहाहट (चर्प) छोड़ता है और प्राप्त चहचहाहट के लिए समय अंतर या अंतराल वस्तु की दूरी का निर्धारण करने में मदद करता है.[162] सेंसर माइक्रोवेव उत्सर्जनों की खोज करने में भी सक्षम होते हैं. ऐसे आंकड़े भारतीय वायु सेना के हवाई संचार के ख़िलाफ़ चीन के इलेक्ट्रॉनिक हमले में मददगार साबित हो सकते हैं.  

रडार सेंसर चीन के लिए सूचना के अहम स्रोत होंगे. भारत के स्थिर, गतिमान और हवाई ठिकानों के ख़िलाफ़ सूक्ष्मता से काइनेटिक हमलों को अंजाम देने के लिए अहम डेटा इकट्ठा करने के लिहाज़ से ये महत्वपूर्ण होंगे. इनके अलावा, चीन के अंतरिक्ष-जनित और हवाई सेंसर द्वारा भारतीय रडार और संचार प्रतिष्ठानों, ज़मीन पर स्थित हवाई रक्षा (GBAD) प्रणालियों, मिसाइल अड्डों, और भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना की बेस सुविधाओं की भू-स्थानिकी (जियोलोकेशन) में मदद किए जाने की संभावना है. इन स्थिर प्रतिष्ठानों से परे, शत्रु के ठिकानों की तमाम ख़ासियतों (जैसे उनके आकार और ढांचे) के निर्धारण में चीन के हवाई और अंतरिक्ष सेंसरों द्वारा प्रमुख भूमिका निभाए जाने की संभावना है. इस तरह वास्तविक समय में काइनेटिक हमलों का रास्ता साफ़ हो जाएगा.[163]

चित्र 2: सियाचिन पर नज़र रखने वाले चीनी रडार स्थल

स्रोत: भट्ट (2017)[164]

चित्र 3: डेमचोक इलाक़े में चीनी रडार स्थल

स्रोत: भट्ट (2017)[165]

चित्र 4: चुसुल, डेमचोक और पैंगोंग  त्सो में चीन के अतिरिक्त रडार स्थल

स्रोत: भट्ट (2017)[166]

चीन के साथ भारतीय सीमा के पूर्वी हिस्से में चीन ने तिब्बत के पठार में अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए तमाम क़दम उठाए हैं. भारत के ख़िलाफ़ सैन्य संचालनों के लिए पश्चिमी थिएटर कमांड, मुख्य थिएटर कमांड के रूप में समर्पित है. PLAA की 76वीं और 77वीं GA, भारत के ख़िलाफ़ और अन्य देशों की ज़मीनी सरहदों पर पश्चिमी थिएटर कमांड के ज़मीनी मिशनों से अटूट रूप से जुड़े हैं. हालांकि PLAA की दक्षिणी थिएटर कमांड द्वारा भी (विशेष रूप से सीमा के पूर्वी खंड में) सैन्य ऑपरेशनों में अहम रोल निभाने की संभावना है.[167] तिब्बती क्षेत्र (थिएटर) में भारत के ख़िलाफ़ सैन्य संचालनों में एक आरक्षित बल के रूप में दक्षिणी थिएटर कमांड को तेज़ी से संगठित किया जाएगा.[168] हरेक GA में विशिष्ट संचालन क्रियाकलापों के लिए समर्पित ब्रिगेड मौजूद हैं. इनमें एक तोपखाना ब्रिगेड, एक हवाई प्रतिरक्षा ब्रिगेड, एक सेना विमानन या हवाई हमला ब्रिगेड, एक विशिष्ट बल ब्रिगेड, एक इंजीनियरिंग और रासायनिक  प्रतिरक्षा, और एक सतत स्थिरता ब्रिगेड शामिल हैं.[169] उपयोग किए गए लड़ाकू वाहन प्रकारों में भारी ट्रैक वाले बख़्तरबंद वाहन, मध्यम पहिए वाले बख़्तरबंद वाहन, और हल्के उच्च गतिशीलता वाले वाहन (जैसे उच्च गतिशीलता वाले पहाड़ी, हवाई हमला, और मोटर चालित ब्रिगेड) शामिल हैं.

V. चीन के लिए चुनौतियां

2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले से पहले साइबर क्षमताओं के प्रभाव को लेकर तमाम आशंकाओं और गंभीर भविष्यवाणियों का वातावरण था. एक ओर साइबर आशावादी दावा कर रहे थे कि साइबर टेक्नोलॉजी स्वतंत्र प्रभाव उपलब्ध करा सकती है और परंपरागत संचालनों का पूरक बन सकती है, लेकिन रूस के “लचर” साइबर प्रदर्शन से ऐसा लगता है कि साइबर संदेहवादियों की बात सच साबित हुई है. हालांकि रूस ने संयुक्त रूप से साइबर संग्राम (CW) और इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष (EW) की सीमित क्षमताओं की तैनाती की, इस सिलसिले में उम्मीद या ज़रूरत से कम CW संसाधनों को सामने लाया गया. अतिरिक्त रूप से रूस की सैन्य रणनीति में आम तौर पर लूटपाट, अपहरण, बलात्कार और बिना स्पष्ट और ठोस लक्ष्यों के पूरे के पूरे नगर या शहर को तबाह किए जाने की क़वायद शामिल रही है.[170] इसके अलावा, आक्रमण को रोकने के लिए ज़रूरी साइबर संसाधनों को समर्पित करने में रूस की नाकामयाबी ने उसे एक लंबा युद्ध लड़ने के लिए मजबूर कर दिया है. आज, यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस का युद्ध सुस्त पड़ चुका है, और भारत के ख़िलाफ़ चीन द्वारा लड़े जा सकने वाले युद्ध के प्रतिमान के रूप में काम करने की इसकी संभावना ना के बराबर है. भारत के CW और EW की जानकारी रखने वाले सैन्य अधिकारी रूसी ‘विफलताओं’ को इस बात का संकेत नहीं मानते कि भारत को साइबर युद्धकला में निवेश नहीं करना चाहिए;[171] इसकी बजाए वो सिफ़ारिश करते हैं कि भारत को मज़बूत CW क्षमता हासिल करने के लिए अपने प्रयास दोगुने कर देने चाहिए. वो ये भी दोहराते हैं कि एक ओर PLASFF या नेटवर्क डिविज़न द्वारा भारी-भरकम निवेश किए जाने और शक्तिशाली क्षमताओं का भंडार बन जाने तक भारत हाथ पर हाथ धरे बैठा नहीं रह सकता.[172]

भारतीय सेना को ये मानकर नहीं चलना चाहिए कि चीनी फ़ौज अपनी रणनीति को ग्रे-ज़ोन युद्धकला तक ही सीमित रखेगी, क्योंकि चीन असमानुपातिक साधनों के साथ परंपरागत सीमित-लक्ष्यों वाले युद्ध की ओर आगे बढ़ सकता है- जैसा रूस ने कभी भी यूक्रेन के ख़िलाफ़ नहीं किया था- इससे चीन बड़ी मात्रा में भू-क्षेत्रीय लाभ हासिल करने में सक्षम हो सकेगा.

पॉलिनॉमियल -आधारित एन्क्रिप्शन तंत्र, क्वॉन्टम और पोस्ट-क्वॉन्टम तकनीकों के लिए रास्ता बनाएगी, जिससे पॉलिनॉमियल  पद्धति बेमानी हो जाएगी.[173] जहां तक क्वॉन्टम के ऐप्लिकेशन, क्वॉन्टम की डिस्ट्रीब्यूशन , और पोस्ट-क्वॉन्टम तकनीकों का सवाल है तो इस क्षेत्र में चीन के रूस से आगे होने की संभावना है.[174] नतीजतन, भारत को चीन के रूप में एक ऐसे ताक़तवर प्रतिद्वंदी से निपटना है, जो CW, EW के क्षेत्रों और समूचे EMS में अपनी मज़बूती बढ़ाने के लिए सीमांत तकनीकों में समर्पित रूप से निवेश कर रहा है.

हालांकि लंबे समय तक चलने वाली जंग में साइबर युद्ध की अपनी सीमाएं हो सकती हैं, लेकिन छोटी अवधि और सीमित लक्ष्यों वाले युद्ध में काइनेटिक संचालनों को सक्षम बनाने में इसकी दक्षता की अनदेखी नहीं की जा सकती. ये तर्क देना ग़लत होगा कि चूंकि रूस के सैन्य अभियान में साइबर हमलों का प्रभाव सीमित रहा था, लिहाज़ा भारत के ख़िलाफ़ युद्ध में चीन की साइबर क्षमताओं के बारे में आशंकित रहने की ज़रूरत नहीं है; EW के साथ संयोजन में उपयोग किए गए साइबर युद्ध ने रूस-यूक्रेन युद्ध के शुरुआत चरणों में संभावित रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और चीन-भारत युद्ध में भी इसका समान प्रभाव होने की आशंका है, ख़ासकर अगर चीनी उद्देश्यों का दायरा सीमित हो.  

चीन की सेना के रणनीतिकारों के लिए मुख्य परीक्षा और चुनौती ये सुनिश्चित करना है कि भविष्य में चीन-भारत के बीच होने वाला कोई भी युद्ध छोटी अवधि वाला हो और उसे निर्णायक रूप से कम लागत पर अंजाम दिया जाए, जो “बिना लड़े जीतने” के सिद्धांत से मेल खाता है. ऐसा लक्ष्य सुनिश्चित करने की क़वायद में भारत के सैन्य साइबर नेटवर्कों में घुसपैठ करना और क़ब्ज़ा करना या उन्हें बाधित करना अहम होगा. PLASSF की मिशन ज़रूरतों और भारत के ख़िलाफ़ युद्ध लड़ने वाली PLA की शाखाएं “प्रणाली विनाश युद्धकला” का गठन करेंगी. एक विशेषज्ञ ने दलील दी है कि दशकों तक चली एक संतान नीति की वजह से चीन में सैन्य सेवा से जुड़ने के लिए सक्षम शरीर वाले पुरुषों की तादाद सीमित हो गई है, लिहाज़ा युद्ध में सैनिकों के हताहत होने को लेकर चीन में गहरी नापसंदगी बढ़ती जा है.[175] ऐसे में चीन के लिए भारत के ख़िलाफ़ निर्णायक और कम लागत वाले सैन्य अभियान को अंजाम देना अनिवार्य हो जाता है. भारत के साइबर नेटवर्क में भारतीय सेना का कमांड और कंट्रोल और सामरिक साइबर नेटवर्क आते है, जिनमें पैदल सेना, बख़्तरबंद, तोपखाना, ज़मीन-आधारित पारंपरिक मिसाइल बल और हवाई रक्षा शामिल हैं. भारत के साइबर नेटवर्क पर क़ब्ज़ा करना (ख़ासतौर से भारतीय बलों के ख़िलाफ़ परंपरागत हमले की शुरुआत में) PLASFF के लिए अहम हो जाता है.[176] भारतीय वायु सेना और भारतीय सेना के हवाई-ज़मीन युद्धक्षेत्र सहयोग के बीच संचार में रुकावट डालना और उन्हें बेअसर कर देना भी चीन के लिए एक अहम शुरुआती लक्ष्य होगा.

हालांकि, चीन ने भारत के ख़िलाफ़ तक़रीबन उतनी मात्रा में साइबर हमले नहीं किए हैं जितने रूस ने यूक्रेन के ख़िलाफ़ किए हैं. भारत के अहम बुनियादी ढांचे में चीन की साइबर घुसपैठ काफ़ी हद तक टोही मिशनों के लिए तैयार की गई है, जो भविष्य के साइबर हमलों के लिए आधार के तौर पर काम करता है.[177] ये PLASSF द्वारा अंजाम दिए गए साइबर टोही मिशनों के साथ-साथ भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना के संचार नेटवर्कों और कमांड और कंट्रोल के ख़िलाफ़ चीन की पश्चिमी थिएटर कमांड में समर्थित इकाइयों के लिए भी समान रूप से सच है. चीन द्वारा अपने आक्रामक साइबर बलों को आरक्षित रखे जाने की संभावना है, और उनका उपयोग रणनीतिक रूप से उपयुक्त समय पर ही किया जाएगा.

भले ही रूस के पास यूक्रेन की सैन्य सूचना और संचार नेटवर्कों पर नियंत्रण जमाकर यूक्रेनी प्रतिरोध को कुचल देने का स्पष्ट लक्ष्य था, जिससे कीव पर तेज़ी से क़ब्ज़ा करने का रास्ता साफ़ हो जाता, लेकिन इसके लिए अपनाए गए साधन ठोस लक्ष्यों को सुरक्षित करने के लिहाज़ से अपर्याप्त थे. रूस की विफलताएं, चीन के लिए भारत के ख़िलाफ़ कामयाबी हासिल करने में रफ़्तार और उपयुक्त उपायों की आवश्यकता का संकेत करती हैं. चीन ने स्वीकार किया है कि INEW के रूप में CW और EW की पूरकताओं को सूचना संचालनों के लिए समन्वित करके उनका भरपूर लाभ उठाया जा सकता है. इसके अलावा, चीन के शस्त्रागार में अतिरिक्त क्षमताएं मौजूद हैं: मिसाल के तौर पर PLASFF भारतीय उपग्रहों के ख़िलाफ़ EMP क्षमता का इस्तेमाल कर सकता है.[178] चीन को ‘एसेसिन्स मेस’ तकनीकों को सघन रूप से विकसित करने के लिए भी जाना जाता है. इनमें निर्देशित ऊर्जा हथियार शामिल हैं. हालांकि इन विशिष्ट, लेकिन मज़बूत क्षमताओं के विकास के इर्द-गिर्द काफ़ी अस्पष्टता है.[179]

सावधानी का इकलौता सबब या स्पष्ट कमज़ोरी कमांड के स्तर पर होगी. हाल ही में अमेरिकी विशेषज्ञ चार्ल्स हूपर ने दृढ़ता से कहा है कि “सांगठनिक सुधार से जुड़े हालिया प्रयासों के बावजूद PLA अनिवार्य रूप से युद्धक मिशन के साथ अब भी एक राजनीतिक इकाई बनी हुई है...सीखने और नेतृत्व से जुड़ा उसका (PLA) दृष्टिकोण अपने ख़ुद के संगठन के साथ-साथ चीन की परंपरागत संस्कृति और शिक्षा से ज़बरदस्त रूप से प्रभावित है.”[180] कमांड का केंद्रीकरण PLASSF और थिएटर कमांडों और GAs के साथ जुड़ी साइबर इकाइयों के अमल को बाधित कर सकता है. निचली पंक्ति के अधिकारियों में प्राधिकार सौंपने को लेकर PLA के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच भरोसे का अभाव भी बाधक बन सकता है.[181] एक साथ मिलकर ये सभी चीन के लिए संभावित नुक़सान का सबब बन सकते हैं. हालांकि कमांड के केंद्रीकरण को ज़्यादा अहम कारक नहीं माना जा सकता, और भारतीय सामरिक और सैन्य योजनाकारों को ये मानकर नहीं चलना चाहिए कि ये विफल हो जाएगा या चीन के रक्षा कवच में अहम रुकावट रहेगा. PLASFF के सूचना संचालनों में चीन को अनेक फ़ायदे हैं, जो स्वतंत्र रूप के साथ-साथ थिएटर कमांडों और उनकी मातहत इकाइयों के समर्थन में भी हैं. ये कमांड की एकता और संचालनों के क्रियान्वयन के रूप में मददगार साबित होंगे.

भारत को अंतरिक्ष भूतल एकीकृत सूचना नेटवर्क (SGIIN) की भी आवश्यकता है, जिसे चीन पहले से ही विकसित कर रहा है. भारत को SGIIN क्षमता हासिल करने में ज़्यादा तात्कालिकता का प्रदर्शन करने की दरकार है. SGIIN भारतीय सशस्त्र बलों की ISR क्षमताओं को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाएगा और संयुक्त संचालनों को सुविधाजनक बना देगा.

VI. सिफ़ारिशें और निष्कर्ष

भारत को EW, CW, SW और SIGINT को जोड़ने वाली एक एकीकृत सेवा विकसित करने की दरकार है. टोही और CW संचालनों के बीच के संबंध के चलते PLASFF जैसा समर्पित बल आवश्यक हो जाता है. मोदी सरकार ने एकीकृत थिएटर कमांड (ITCs)[182] तैयार करने के लिए संसद में क़ानून पेश किया है. हालांकि इन हालिया प्रगतियों के बावजूद PLASFF जैसे बल का निर्माण आसान नहीं होगा. इसके अतिरिक्त, भारतीय सेना के अफ़सरों ने संयुक्त अंतर-सेवा नेटवर्क स्थापित करने का प्रस्ताव किया है,[183] हालांकि इसमें ये स्पष्ट नहीं है कि क्या ये एक एजेंसी-स्तरीय संगठन होना चाहिए या तीनों सेवाओं के कमांड स्तर का. SIGINT में ढेरों भारतीय एजेंसियां शामिल हैं, साथ ही EMS के साथ गतिविधियों की एक पूरी श्रृंखला जुड़ी है. इनसे, ख़ासतौर से युद्धकाल में सशस्त्र सेवाओं की मदद करने की इनकी क्षमता सीमित हो जाती है.[184] हालांकि PLASFF और थिएटर कमांडों का समर्थन करने में इसकी भूमिका ने प्रदर्शित किया है कि संयुक्त अभियानों के कामयाब और प्रभावी आयोजन के लिए PLASFF जैसी एकल एकीकृत सूचना युद्धक सेवा एक आवश्यकता है, और निश्चित रूप से भारतीय सशस्त्र बलों के लिए इसे एकीकृत थिएटर कमांडों के साथ जोड़ा जाना चाहिए.

भारत के सामने अहम चुनौतियों में एक ये है कि थिएटरीकरण के क्षेत्र में हालिया प्रगतियों के बावजूद यहां सशस्त्र सेवाएं अब भी एकाकी तौर पर काम करती हैं,[185] जिसमें तीनों सेवाओं में से हरेक अपने ख़ुद के उपग्रहों का संचालन कर रही है और भारतीय सेना जल्द ही अपना उपग्रह हासिल करने को तैयार है.[186] इसके अलावा, अंतरिक्ष, अंतरिक्ष-रोधी, और EW संचालनों और मिशनों के क्षेत्रों में तीनों सशस्त्र सेवाओं के बीच एकीकृत और संयुक्त नियोजन का अभाव है. भारी-भरकम प्रतिरोध (विशेष रूप से भारतीय वायु सेना द्वारा) के बाद एकीकृत थिएटर कमांडों की स्थापना से कमांड स्तर और एकीकृत सूचना युद्ध सेवा की स्थापना का काम आसान हो जाना चाहिए.[187]

रक्षा साइबर एजेंसी (DCA), जो तीनों सेवाओं का संगठन है, को सेवाओं और ITCs को सीधे युद्धक सहायता पहुंचाने जैसे क्रियाकलापों के प्रदर्शन के लिए विस्तारित किया जा सकता है. ‘कमांड साइबर ऑपरेशंस एंड सपोर्ट विंग्स (CCOSW)’ स्थापित करने को लेकर भारत सरकार की ताज़ा पहल लंबे समय से प्रतीक्षित और ज़रूरी क़दम है. इससे ग्रे-ज़ोन और परंपरागत सैन्य संचालनों में संचार और साइबर मिशनों का बचाव हो सकेगा.[188] CCOSW प्राथमिक रूप से भारतीय सेना की एजेंसी है, हालांकि ये साफ़ नहीं है कि क्या CCOSW सेना के नेट-केंद्रित मिशनों की रक्षात्मक सुरक्षा का ज़िम्मा उठाएगा और क्या उसकी आक्रामक साइबर क्षमताओं से उसका संबंध नहीं रहेगा. इस वक़्त, संभव है कि भारतीय सेना आक्रामक साइबर संचालनों के लिए क्षमता विकास के रास्ते पर चलने से पहले अपनी रक्षात्मक साइबर क्षमताओं को मज़बूत करना चाहती हो.[189]

तीनों सेवाओं के लिए रक्षात्मक साइबर सुरक्षा एक आवश्यकता है. साइबर लचीलापन तैयार करना, ख़ासतौर से भारतीय सेना के नेटवर्कों में, भारत के लिए अहम है. हालांकि नेटवर्क केंद्रित बल तैयार करने के लिए साइबर लचीलापन अपरिहार्य है, फिर भी ये नाकाफ़ी है, और परंपरागत सैन्य मिशनों के लिए एकीकृत थिएटर कमांड महत्वपूर्ण होंगे.[190] मोदी सरकार द्वारा नया क़ानून बनाकर एकीकृत थिएटर कमांडों को वैधानिक दर्जा दिए जाने के साथ[191] CW, EW, SW और अंतरिक्ष-रोधी मिशनों में पहले से ज़्यादा तालमेल स्थापित होने की संभावना है.

भारत को अंतरिक्ष भूतल एकीकृत सूचना नेटवर्क (SGIIN) की भी आवश्यकता है, जिसे चीन पहले से ही विकसित कर रहा है. भारत को SGIIN क्षमता हासिल करने में ज़्यादा तात्कालिकता का प्रदर्शन करने की दरकार है. SGIIN भारतीय सशस्त्र बलों की ISR क्षमताओं को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाएगा और संयुक्त संचालनों को सुविधाजनक बना देगा. चीन-भारत सैन्य टकराव की सूरत में भारत को उदारतापूर्ण सहायता और समर्थन (जैसे स्पेसएक्स ने यूक्रेन को दिया है) का लाभ मिलने की संभावना ना के बराबर है. छोटे उपग्रहों (SmSats) का नेटवर्क भारत के लिए अनिवार्य है, भले ही इस क्षमता में खामियां क्यों ना हों.  

आख़िरकार, चीन के स्वार्म ड्रोनों की तरह भारत के लिए भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और उसके ऐप्लिकेशंस में निवेश करना एक आवश्यकता है. AI, चीन की सूचनात्मक क्षमताओं में ज़बरदस्त बढ़ोतरी कर देगा. इस बीच, ये भारत के लिए एक अहम कमज़ोरी बनी हुई है. भारत को चीन के WZ मानव रहित हवाई वाहनों (UAVs) का भी अनुकरण करना चाहिए, जो बेहिसाब क्षमता प्रस्तुत करते हैं, और EW, CW और समूचे EMS के दायरे में चीन की बढ़ती शक्ति के बीच भारत के लिए अपनी पकड़ बनाए रखने के लिहाज़ से अहम हो सकते हैं. ISR और स्ट्राइक मिशन, दोनों को अंजाम दे सकने वाले UAVs रखने के फ़ायदे, भारत और चीन की सेनाओं के बीच क्षमता अंतर को दूर करने के लिहाज़ से काफ़ी मददगार साबित होंगे.


कार्तिक बोम्माकांति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं

लेखक सतीश तेज़ा को उनकी शोध सहायता के लिए धन्यवाद देते हैं.

Endnotes

[1] See especially Jon Batemans comments on why Russian cyber operations were “ineffective” in Jon Bateman, Nick Beecroft and Gavin Wilde, “What the Russian Invasion Reveals About the Future of Cyber Warfare”, Q&A Carnegie Endowment for International Peace, December 19, 2022.

 

[2] The PLASFF is a command entity that combines CW, EW and space capabilities. See when PLASSF was established. “The Inaugural meeting of the Rocket Force Strategic Support Force, the leading organization of the army, was held in Beijing”, People’s Daily Online, January 2, 2016.

 

[3] James Mulvenon, “PLA Computer Network Operations: Scenarios, Doctrine, Organisations and Capability”, in Roy Kamphausen, David Lai, and Andrew Scobell, ed., Beyond the Strait: PLA Mission Other Than Taiwan, (Carlisle, PA: Strategic Studies Institute, 2009), pp. 259-261.

 

[4] See for example, Jon Bateman, “Russia’s Wartime Operations in Ukraine: Military Impacts, Influences and Implications”, Carnegie Endowment for International Peace, Washington D.C., December, 2022.

[5] See Joshua T. White’ comments on EW being superior in effectiveness than CW and the importance of investing in jamming and anti-technologies technologies, which are part of EW in Raj Shukla, Joshua T. White, Lauren Kahn and Ashley J. Tellis on the Russia-Ukraine War, The Print, December 7, 2022.

 

[6] Bateman’s comments on why Russian cyber operations were “ineffective”.

 

[7] This analysis is a good example of an excessive focus on cyber fires or attacks. Bateman, “Russia’s Wartime Operations in Ukraine: Military Impacts, Influences and Implications”.

 

[8] Jason Healey, “Preparing for Inevitable Cyber Surprise”, War On the Rocks, January 12, 2022, https://warontherocks.com/2022/01/preparing-for-inevitable-cyber-surprise/

 

[9] William Courtney and Peter Wilson, “If Russia Invaded Ukraine”, The Hill, 8 December, 2021, https://thehill.com/opinion/international/584805-expect-shock-and-awe-if-russia-invades-ukraine/?rl=1

 

[10] Lennart Maschmeyer, “The Subversive Trilemma: Why Cyber Operations Fall Short of Expectations”, International Security, Vol. 46, No. 2, Fall 2021, pp. 51-90.

[11] Lennart Maschmeyer and Nadiya Kostyuk, “There Is No Cyber ‘Shock and Awe’: Plausible Threats In the Ukrainian Conflict”, War On the Rocks, February 8, 2022, https://warontherocks.com/2022/02/there-is-no-cyber-shock-and-awe-plausible-threats-in-the-ukrainian-conflict/

 

[12] Maschmeyer and Kostyuk, “There Is No Cyber ‘Shock and Awe’: Plausible Threats In the Ukrainian Conflict”.

 

[13] Chris Gordon, “Lack of Airpower in Ukraine Proves Value of Air Superiority, NATO Air Boss Says”, Air&Space Forces Magazine, March 22, 2023, https://www.airandspaceforces.com/airpower-ukraine-air-superiority-hecker/, See Bateman comments in in Jon Bateman, Nick Beecroft and Gavin Wilde, “What the Russian Invasion Reveals About the Future of Cyber Warfare”.

 

[14] Jon Bateman, “Russia’s Wartime Operations in Ukraine: Military Impacts, Influences and Implications”, p. 3.

 

[15] William Banks, “Cyberattacks and the Russian War in Ukraine: The Role of NATO and Risks of Escalation”, Georgetown Journal of International Affairs, August 8, 2022, https://gjia.georgetown.edu/2022/08/08/cyberattacks-and-the-russian-war-in-ukraine-the-role-of-nato-and-risks-of-escalation%EF%BF%BC/

 

[16] Julia Voo, “Lessons from Ukraine’s Cyber Defense and Implications for Future Conflict”, Evolving Cyber Operations and Capabilities, James A. Lewis and Georgia Wood (eds.), Center for Strategic and International Studies, Washington D.C., May 2023, p. 16

[17] Voo, “Lessons from Ukraine’s Cyber Defense and Implications for Future Conflict”, p. 16

 

[18] Bateman, “Russia’s Wartime Operations in Ukraine: Military Impacts, Influences and Implications”.

 

[19] Bateman, “Russia’s Wartime Cyber Operations in Ukraine: Military Impacts, Influences, and Implications”. More recent evidence suggests the same. See Mehul Srivastava, Felicia Schwartz and Demetri Sevastopulo, “China building cyber weapons to hijack satellites, says US leak”, Financial Times, April 21, 2023, https://www.ft.com/content/881c941a-c46f-4a40-b8d8-9e5c8a6775ba, See also for an overview on how cyber attacks can be directed at ground nodes in Rajeswari Pillai Rajagopalan, “Electronic and Cyber Warfare in Outer Space”, Space Dossier – 3, UNIDIR, p. 9, https://unidir.org/sites/default/files/publication/pdfs//electronic-and-cyber-warfare-in-outer-space-en-784.pdf

 

[20] Srivastava et al., “China building cyber weapons to hijack satellites, says US leak”.

 

[21] The author thanks Dr. Manoj Joshi for this point.

 

[22] Jon Bateman, “Russia’s Wartime Operations in Ukraine: Military Impacts, Influences and Implications”, p. 13.

 

[23] Thomas Brewster, “Ukraine’s Engineers Battle To Keep The Internet Running While Russian Bombs Fall Around Them”, Forbes, March 22, 2022, https://www.forbes.com/sites/thomasbrewster/2022/03/22/while-russians-bombs-fall-around-them-ukraines-engineers-battle-to-keep-the-internet-running/?sh=13c05ef65a4c

 

[24] Gordon Corera, “Inside a US military cyber team’s defence of Ukraine”, BBC News, 30 October, 2022, https://www.bbc.com/news/uk-63328398

 

[25] Bateman, “Russia’s Wartime Operations in Ukraine: Military Impacts, Influences and Implications”, p. 11.

 

[26] Michael Sheetz, “About 150,000 people in Ukraine are using SpaceX’s Starlink internet service daily, government official says”, CNBC, May 2, 2022, https://www.cnbc.com/2022/05/02/ukraine-official-150000-using-spacexs-starlink-daily.html

[27] Cited in Alexander Martin, “US military hackers conducting offensive operations in support of Ukraine, says head of Cyber Command”, skynews, June 1, 2022, https://news.sky.com/story/us-military-hackers-conducting-offensive-operations-in-support-of-ukraine-says-head-of-cyber-command-12625139

 

[28] Voo, “Lessons from Ukraine’s Cyber Defense and Implications for Future Conflict”, p. 16.

 

[29] Kyle Alspach, “Russian hackers get the headlines. But China is the bigger threat to many US enterprises”, Protocol, August 3, 2022, https://www.protocol.com/enterprise/china-hacking-ip-russia-cybersecurity

 

[30] Gavin Wilde, “Cyber Operations in Ukraine: Russia’s Unmet Expectations”, Working Paper, Carnegie Endowment for International Peace, Washington D.C., December 2022, p. 7, https://carnegieendowment.org/files/202212-Wilde_RussiaHypotheses-v2.pdf

 

[31] Keir Giles and Anthony Seaboyer, “Russian Special Forces and Intelligence Information Effects”, Defence Research and Development Canada, Ontario, March 2019, https://cradpdf.drdc-rddc.gc.ca/PDFS/unc340/p810875_A1b.pdf

 

[32] Wilde, “Cyber Operations in Ukraine: Russia’s Unmet Expectations”, p. 8

 

[33] Grace B. Mueller et al., “Cyber Operations during the Russo-Ukrainian War: From Strange Patterns to Alternative Futures”, Center for Strategic and International Studies, Washington D.C. July 2023, p. 8, https://csis-website-prod.s3.amazonaws.com/s3fs-public/2023-07/230713_Mueller_CyberOps_RussiaUkraine.pdf?VersionId=BwNbsmkThLIPVpB0tctC59kwVpZ2aXeI

 

[34] 2022 Annual Report to Congress: U.S.-China Economic and Security Review Commission, Washington D.C., 2022, p. 438.

 

[35] 2022 Annual Report to Congress: U.S.-China Economic and Security Review Commission.

 

[36] International Institute if Strategic Studies, “Chapter Ten: Military Cyber Capabilities”, The Military Balance, 122:1, 2022, p. 508

 

[37] International Institute if Strategic Studies, “Chapter Ten: Military Cyber Capabilities”.

 

[38] Boaz Atzili and Min Jung Kim, “Buffer zones and international rivalry: internal and external geographic separation mechanisms”, International Affairs, Volume 99, Issue 2, March 2023, pp. 645-665.

 

[39] FACT SHEET: United States and India Elevate Strategic Partnership with the initiative on Critical and Emerging Technology (Icet), January 31, 2023, https://www.whitehouse.gov/briefing-room/statements-releases/2023/01/31/fact-sheet-united-states-and-india-elevate-strategic-partnership-with-the-initiative-on-critical-and-emerging-technology-icet/

 

[40] Jennifer McArdle and Michael Cheetham, “Indo-US cyber security cooperation”, Seminar, Issue 655, 2014, https://www.india-seminar.com/2014/655/655_jennifer_&_cheetham.htm

 

[41] Wars may have limited aims, but the commitment with which they are fought will need to be maximum which is well explained in Michael Howard, “When are wars decisive?”, Survival, Vol. 41, no.1, Spring 1999, p. 127.

 

[42] Manoj Joshi, “Eastern Ladakh, the Longer Perspective”, Occasional Paper No. 319, Observer Research Foundation, 2021, p. 3, https://orfonline.org/wp-content/uploads/2021/06/ORF_OccasionalPaper_319_Ladakh.pdf

 

[43] Sun Tzu, The Art of War, in The Seven Military Classics, translated with historical introductions and extensive commentary by Ralph D. Sawyer, (New York: Basic Books, 1993), p. 161

[44] Amrita Jash, “Fight and Win Without Waging War: How China Fights Hybrid Warfare”, CLAWS Journal, Winter, 2019, pp. 96-109.

 

[45] For a chronology of events leading to the Galwan clash see Shishir Gupta, “What does the 2020 Galwan clash say about India and China?”, Hindustan Times, June 16, 2022, https://www.hindustantimes.com/india-news/what-does-the-2020-galwan-clash-say-about-india-101655355460675.html

 

[46] Probal Dasgupta, Watershed 1967: India’s Forgotten Victory Over China, (New Delhi: Juggernaut, 2020).

 

[47] Paul H.B. Godwin, “Changing Concepts of Doctrine, Strategy and Operations in the Peoples Liberations Army 1978-1987”, The China Quarterly, No. 112, December 1987, p. 576.

 

[48] Godwin, “Changing Concepts of Doctrine, Strategy and Operations in the Peoples Liberations Army 1978-1987”.

[49] Xi Jinping, “Hold High the Banner of Socialism with Chinese Characteristics and Strive for Unity to Build a Modern Socialist Country in All Respects”, Report to the 20th National Congress of the Communist Party of China, 16 October, 2022, pp. 48-49, https://www.fmprc.gov.cn/eng/zxxx_662805/202210/t20221025_10791908.html.

 

[50] Dong Wentao, “The Enlightenment of Epidemic Prevention and Control to Winning Local Wars of Informatization in the Future”, Guangming Daily, April 19, 2020, https://tech.sina.cn/2020-04-19/detail-iirczymi7102494.d.html

 

[51] Evan A. Feigenbaum and Charles Hooper (Q&A), “What the Chinese Army is Learning From Russia’s Ukraine’s War”, Carnegie Endowment for International Peace, Washington D.C., July 21, 2022, https://carnegieendowment.org/2022/07/21/what-chinese-army-is-learning-from-russia-s-ukraine-war-pub-87552.

 

[52] Feigenbaum and Hooper, “What the Chinese Army is Learning From Russia’s Ukraine’s War”.

 

[53] Edmund J. Burke, Kristen Gunness, Cortez A. Cooper III and Mark Cozad, “People’s Liberation Army Operational Concepts”, Research Report. RAND Corporation, Santa Monica, California, p. 8, https://www.rand.org/content/dam/rand/pubs/research_reports/RRA300/RRA394-1/RAND_RRA394-1.pdf

 

[54] Burke, et al., “People’s Liberation Army Operational Concepts”.

 

[55] Jeffrey Engstrom, “Systems Confrontation and System Destruction Warfare: How the Peoples Liberation Army Seeks to Wage Modern Warfare”, RAND Corporation, Santa Monica, California, 2018, p. 25

 

[56] Shou cited in Burke, et al., “People’s Liberation Army Operational Concepts”.

 

[57] Burke, et al., “People’s Liberation Army Operational Concepts”, pp. 8-13.

[58] Burke, et al., “People’s Liberation Army Operational Concepts”, pp. 8-13.

 

[59] The Science of Military Strategy, China Aerospace Studies Institute, (Montgomery: AL, 2013), pp. 50-52, See also Burke, et al., “People’s Liberation Army Operational Concepts”, pp. 8-13

 

[60] Peng Guangqian, and Yao Youzhi, eds., The Science of Military Strategy, Beijing, China: People’s Liberation Army Academy of Military Science Press, 2001.

 

[61] The Science of Military Strategy, pp. 160-161.

 

[62] The Science of Military Strategy.

 

[63] Bateman, “Russia’s Wartime Operations in Ukraine: Military Impacts, Influences and Implications”, p. 9-10

 

[64] This point has been confirmed by some serving and former Indian Army officers with expertise in Signals Intelligence (SIGINT).

 

[65] See how deception could play out in the form of OCO against an adversary see Erik Gartzke and Jon Lindsay, “Weaving Tangled Webs: Offense, Defense, and Deception in Cyberspace”, Security Studies, 24, 2015, pp. pp. 48.

[66] Gartzke and Lindsay, “Weaving Tangled Webs: Offense, Defense, and Deception in Cyberspace”.

 

[67] Gartzke and Lindsay, “Weaving Tangled Webs: Offense, Defense, and Deception in Cyberspace”.

 

[68] Austin Long, “A Cyber SIOP?: Operational Considerations for Strategic Offensive Cyber Planning”, in Bytes, Bombs and Spies: The Strategic Dimensions of Offensive Cyber Operations, by Herbert Lin and Amy Zegart (eds.), (Washington D.C.: Brookings Institution Press, 2018), pp. 105-133.

 

[69] See Rajeswari Pillai Rajagopalan, “Electronic and Cyber Warfare in Outer Space”, p. 9.

 

[70] Catherine A. Theohary and John R. Hoehn, “Convergence of Cyberspace Operations and Electronic Warfare”, Congressional Research Service, Washington D.C. August 13, 2019, https://sgp.fas.org/crs/natsec/IF11292.pdf, Rajeswari Pillai Rajagopalan, “Electronic and Cyber Warfare in Outer Space”, p. 9.

 

[71] Although Long does not specifically use China and India as an example, but his point is valid and applies to how the Chinese might employ their capabilities. See Long, “A Cyber SIOP?: Operational Considerations for Strategic Offensive Cyber Planning”, pp. 105-133.

 

[72] Author interview with former senior general officer of IA.

[73] Andreas Rupprecht and Gabriel Dominguez, “Chinese air force equips 16th Air Division with WZ-7 HALE UAVs”, Janes, November 11, 2021, https://www.janes.com/defence-news/news-detail/chinese-air-force-equips-16th-air-division-with-wz-7-hale-uavs

 

[74] This is confirmed to author by an Indian Army Officer.

 

[75] Parth Satam, “Threat from China’s WZ-7 Drones”, Defence Research and Studies (DRaS), December 23, 2022, https://dras.in/threat-from-chinas-wz-7-drones/

 

[76] Christian Shepherd et al., “China readies supersonic spy drone unit, leaked document says”, The Washington Post, April 18, 2023, https://www.washingtonpost.com/world/2023/04/18/china-supersonic-drone-taiwan-leaks/

[77] Shepherd et al., “China readies supersonic spy drone unit, leaked document says”.

 

[78] Curtis Lee, “Leaked US Intel Suggests First Chinese WZ-8 Drone Unit Established”, navalnews, April 21, 2023, https://www.navalnews.com/naval-news/2023/04/leaked-us-intel-suggests-first-chinese-wz-8-drone-unit-established/

[79] Shepherd et al., “China readies supersonic spy drone unit, leaked document says”.

 

[80] Shepherd et al., “China readies supersonic spy drone unit, leaked document says”.

 

[81] Cited in Shepherd et al., “China readies supersonic spy drone unit, leaked document says”.

 

[82] Cited in Shepherd et al., “China readies supersonic spy drone unit, leaked document says”.

 

[83] Theohary and Hoehn, “Convergence of Cyberspace Operations and Electronic Warfare”.

 

[84] Theohary and Hoehn, “Convergence of Cyberspace Operations and Electronic Warfare”.

 

[85] Theohary and Hoehn, “Convergence of Cyberspace Operations and Electronic Warfare”.

 

[86] Srivastava et al., “China building cyber weapons to hijack satellites, says US leak”. See also Juan Andres Guerrero-Saade and Max van Amerongen, “AcidRain: A Modem Wiper Rains Down on Europe”, SentinelLabs, March 31, 2022, https://www.sentinelone.com/labs/acidrain-a-modem-wiper-rains-down-on-europe/

[87] Srivastava et al., “China building cyber weapons to hijack satellites, says US leak”.

 

[88] John Chen, Joe McReynolds, and Kieran Green, “The PLA Strategic Support: A “Joint” Force for Information Operations”, in The PLA Beyond Borders: Chinese Military Operations in Regional and Global Context, ed. Joel Wuthnow, Arthur S. Ding, Philip Saunders, Andrew Scobell, and Andrew Yang, (Washington D.C.: National Defence University Press, 2021), p. 151.

 

[89] Chen et al., “The PLA Strategic Support: A “Joint” Force for Information Operations”.

 

[90] Chen et al., “The PLA Strategic Support: A “Joint” Force for Information Operations”, p. 168.

 

[91] Chen et al., “The PLA Strategic Support: A “Joint” Force for Information Operations”, p. 168.

 

[92] Cited in John Costello and Joe McReynolds, “China’s Strategic Support Force: A Force for a New Era”, in Chairman Xi Remakes the PLA: Assessing Chinese Military Reforms, Phillip C. Saunders, Arthur S. Ding, Andrew Scobell, Andrew N.D. Yang, and Joel Wuthnow (eds.), (Washington D.C.: National Defence University Press, 2019), p. 491

 

[93] See for example Anil Chopra, “Peoples Liberation Army Strategic Support Force – A Comprehensive Look”, Air Power Asia, March 8, 2021, https://airpowerasia.com/2021/03/08/peoples-liberation-army-strategic-support-force-a-comprehensive-look/

 

[94] Scott D. Applegate, “Cyber and Political Hackers – Use of irregular Forces in Cyberwarfare”, IEEE Security and Privacy Magazine, 9 (5) September 2011, p. 19. More specifically see Nicholas Lyall, “China’s Cyber Militias”, The Diplomat, March 1, 2018, https://thediplomat.com/2018/03/chinas-cyber-militias/. Nigel Inkster, “China’s Cyber Power”, Adelphi Series, Volume 55, Issue 456, 2015, pp. 83-108.

[95] The Ukrainian Army has at least one software developer embedded with each battalion. See David Ignatius, “How the algorithm tipped the balance in Ukraine”, The Washington Post, December 19, 2023, https://www.washingtonpost.com/opinions/2022/12/19/palantir-algorithm-data-ukraine-war/

 

[96] “Leaping-2017-Zhu Rihe”: From the perspective of the Red Army brigade’s actions to see the new changes in the army’s system and organization after the reshaping of the exercise”, Xinhuanet, September 7, 2017, https://www-xinhuanet-com.translate.goog//politics/2017-09/07/c_1121625327.htm?_x_tr_sch=http&_x_tr_sl=zh-CN&_x_tr_tl=en&_x_tr_hl=en&_x_tr_pto=sc

[97] “Fierce confrontation in electromagnetic space: the strategic support force unveils the mystery”, CCTV.com, May 17, 2018, http://military.cctv.com/2018/05/17/ARTIjjonCY3EwBqyLfOvJ1fn180517.shtml

[98] “Chinese Tactics”, ATP 7-100.3, August 2021, Headquarters, Department of the Army, Washington D.C. August, 2021, p. 2-12, https://armypubs.army.mil/epubs/DR_pubs/DR_a/ARN34236-ATP_7-100.3-001-WEB-3.pdf

 

[99] “Chinese Tactics”.

 

[100] “Chinese Tactics”.

 

[101] “Chinese Tactics”.

 

[102] “Chinese Tactics”.

[103] “Chinese Tactics”.

 

[104] “Chinese Tactics”.

 

[105] Ignatius, “How the algorithm tipped the balance in Ukraine”.

 

[106] China’s National Defence in the New Era, The State Council Information Office of the People’s Republic of China, July 2019, Foreign Languages Press Co. Ltd. Beijing, China.

 

[107] “The basic direction of quasi-network and electricity integration operations”, PLA Daily, December 13, 2022. See also, Amy J. Nelson, and Gerald L. Epstein, “The PLA Strategic Support Force and AI Innovation”, Tech Stream, Brookings, December 23, 2022, https://www.brookings.edu/techstream/the-plas-strategic-support-force-and-ai-innovation-china-military-tech/

[108] “The basic direction of quasi-network and electricity integration operations”, PLA Daily, December 13, 2022.

 

[109] Elsa B. Kania, “The PLA’s Unmanned Aerial Systems: New Capabilities for a “New Era” of Chinese Military Power”, (Washington D.C: Chinese Aerospace Studies Institute, 2018), pp. 10-13. This was also confirmed by an Indian Army officer.

 

[110] Scott N. Romanuik and Tobias Burgers, “China’s Swarm of Smart Drones Have Enormous Military potential”, TheDiplomat, February 3, 2018, https://thediplomat.com/2018/02/chinas-swarms-of-smart-drones-have-enormous-military-potential/

 

[111] This is confirmed by an Indian Army officer.

 

[112] This is confirmed by an Indian Army officer.

 

[113] “China Tests Spy Drones In Near Space ‘Death Zone’: Report”, NDTV, October 31, 2017, https://www.ndtv.com/world-news/china-tests-spy-drones-in-near-space-death-zone-report-1769303

 

[114] “China Tests Spy Drones In Near Space ‘Death Zone’: Report”.

 

[115] “China Tests Spy Drones In Near Space ‘Death Zone’: Report”.

 

[116] “China Tests Spy Drones In Near Space ‘Death Zone’: Report”.

 

[117] Colonel Mandeep Singh (Retd.), “The Coming Chinese Drone Swarm”, Delhi Defence Review, July 30, 2018, https://delhidefencereview.com/2018/07/30/the-coming-chinese-drone-swarm/

 

[118] David Axe, “Russia’s Electronic-Warfare Troops Knocked Out 90 Percent of Ukraine’s Drones”, Forbes, December 24, 2022, https://www.forbes.com/sites/davidaxe/2022/12/24/russia-electronic-warfare-troops-knocked-out-90-percent-of-ukraines-drones/?sh=2a6a6615575c

 

[119] Yun Bo. “Strong Army Forum: Adhere to the integration and development of mechanization, informationization and intelligence”, PLA Daily, November 22, 2022, http://www.mod.gov.cn/gfbw/jmsd/4926673.html

[120] Bo. “Strong Army Forum: Adhere to the integration and development of mechanization, informationization and intelligence”.

 

[121] Anthony S. Cordesman, “Chinese Strategy and Military Power in 2014”, Center for Strategic and International Studies, Washington D.C., November 2014, p. 122.

 

[122] Cordesman, “Chinese Strategy and Military Power in 2014”.

[123] Joe McReynolds, “China’s Evolving Perspectives on Network Warfare: Lessons from the Science of Military Strategy”, China Brief, Volume: 15 Issue: 8, The Jamestown Foundation, April 16, 2015.

[124] This is an interesting analysis, but it would be wise for India’s leaders to prepare for conventional escalation. Tobias Burgers and Scott N. Romanuik, “China’s Real Takeaway From the War in Ukraine: Grey Zone Conflict is Best”, The Diplomat, October 6, 2022, https://thediplomat.com/2022/10/chinas-real-takeaway-from-the-war-in-ukraine-grey-zone-conflict-is-best/

 

[125] Karl R. DeRouen Jr., “The Indirect Link: Politics, the Economy, and the Use of Force”, Journal of Conflict Resolution, 39 (3): pp. 671-95.

 

[126] Jaroslav Tir, “Territorial Diversion: Diversionary Theory of War and Territorial Conflict”, The Journal of Politics, Vol. 72, No. 2, 2010, pp. 413-425.

 

[127] Adam S. Posen, “The End of China’s Economic Miracle”, Foreign Affairs, August 2, 2023, https://www.foreignaffairs.com/china/end-china-economic-miracle-beijing-washington

 

[128] Posen, “The End of China’s Economic Miracle”.

 

[129] “Satellite Navigation Services”, Indian Space Research Organisation (ISRO), Bengaluru, https://www.isro.gov.in/SatelliteNavigationServices.html

 

[130] Zhenhua Liu, Chuanwen Lin and Gang Chen, “Space Attack Technology Overview”, Journal of Physics: Conference Series, 1544, 2020, p. 7.

 

[131] Franz-Stefan Gady, “Revealed: China Tests Secret Missile Capable of Hitting US Satellites”, The Diplomat, November 11, 2015, https://thediplomat.com/2015/11/revealed-china-tests-secret-missile-capable-of-hitting-us-satellites/

 

[132] See decision time available for Matthew Mowthorpe, “Space resilience and the importance of multiple orbits”, The Space Review, January 3, 2023, https://www.thespacereview.com/article/4504/1.

 

[133] “China: EMP Threat: The Peoples Republic of China’s Military Doctrine, Plans, and Capabilities for Electromagnetic Pulse (EMP) Attack”, by Dr. Peter Vincent Pry, Executive Director, EMP Task Force on National and Homeland Security, Washington D.C., June 10, 2020, pp. 3-4, https://apps.dtic.mil/sti/pdfs/AD1102202.pdf

 

[134] The costs would be significant for almost all states operating satellites at a minimum in LEO, see Robert “Tony” Vincent, “Getting Serious About The Detonations of High Altitude Nuclear Detonations”, War On The Rocks, September 23, 2022, https://warontherocks.com/2022/09/getting-serious-about-the-threat-of-high-altitude-nuclear-detonations/

[135] Zhao Meng, Da Xinyu, and Zhang Yapu, “Overview of Electromagnetic Pulse Weapons and Protection Techniques Against Them”, Winged Missiles, PRC Air Force Engineering University: May 1, 2014.

 

[136] Liu et al., “Space Attack Technology Overview”, p. 7.

 

[137] Liu et al., “Space Attack Technology Overview”, p. 7.

 

[138] “Chinese space technology capable of jamming satellites is ‘on the march’, top Pentagon official says”, South China Morning Post, July 10, 2021, https://www.scmp.com/news/world/united-states-canada/article/3140634/chinese-space-technology-capable-jamming-satellites.

 

[139] Chen Zongwei and Xu Yuhao, “Power in con-combat military operations”, Guangming Military, August 23, 2022, https://www.secrss.com/articles/46133

 

[140] Cited in Chen et al., “The PLA Strategic Support: A “Joint” Force for Information Operations”, p. 171.

[141] Elsa B. Kania and John Costello, “Seizing the commanding heights: the PLA Strategic Support Force in Chinese military power”, Journal of Strategic Studies, Vol. 44, Issue 2: The People’s Liberation Army in its Tenth Decade, Edited by James Char, p. 20

 

[142] John Costello and Joe McReynolds, “China’s Strategic Support Force: A Force for a New Era”, China Strategic Perspectives, No. 13, Center for the Study of Chinese Military Affairs, Institute for National Strategic Studies, National Defence University Press, Washington D.C., 2018, pp. 37-38, https://ethz.ch/content/dam/ethz/special-interest/gess/cis/center-for-securities-studies/resources/docs/INSS_china-perspectives_13.pdf

 

[143] Costello and McReynolds, “China’s Strategic Support Force: A Force for a New Era”.

 

[144] Costello and McReynolds, “China’s Strategic Support Force: A Force for a New Era”.

 

[145] Costello and McReynolds, “China’s Strategic Support Force: A Force for a New Era”.

 

[146] Kania and Costello, “Seizing the commanding heights: the PLA Strategic Support Force in Chinese military power”.

 

[147] John Costello and Joe McReynolds, “China’s Strategic Support Force: A Force for New Era”, China Strategic Perspectives, No. 13, Center for the Study of Chinese Military Affairs, Institute for National Strategic Studies, (Washington D.C.: p. 15, https://ndupress.ndu.edu/Portals/68/Documents/stratperspective/china/china-perspectives_13.pdf

[148] Jon Bateman, “Russia’s Wartime Operations in Ukraine: Military Impacts, Influences and Implications”, p. 3.

 

[149] Elsa B. Kania and John K. Costello, “The Strategic Support Force and the future of Chinese Information Operations”, Cyber Defense Review, Spring, 2018, p. 109.

 

[150] Kania and Costello, “The Strategic Support Force and the future of Chinese Information Operations”.

[151] Kania and Costello, “Seizing the commanding heights: the PLA Strategic Support Force in Chinese military power”, p. 28.

 

[152] Kania and Costello, “Seizing the commanding heights: the PLA Strategic Support Force in Chinese military power”.

 

[153] He Chao et al., “Research on Generalisation of Cyberspace Combat Command Training Platform”, Computer Science and Application, Vol. 12, No. 4, April, 2022, https://www.hanspub.org/journal/PaperInformation.aspx?paperID=50684&btwaf=88878717

 

[154] Chao et al., “Research on Generalisation of Cyberspace Combat Command Training Platform”.

[155] Chao et al., “Research on Generalisation of Cyberspace Combat Command Training Platform”.

[156] Chao et al., “Research on Generalisation of Cyberspace Combat Command Training Platform”.

[157] Col. Vinayak Bhat (Retd), “China’s string of radars in Ladakh track every move of the Indian Army”, ThePrint, August 25, 2017, https://theprint.in/opinion/chinas-string-radars-ladakh-track-every-move-indian-army/7976/

[158] Bhat, “China’s string of radars in Ladakh track every move of the Indian Army”.

 

[159] Bhat, “China’s string of radars in Ladakh track every move of the Indian Army”.

 

[160] Bidisha Saha, “Making sense of Chinese advanced air surveillance radars near Indian border”, India Today, April 19, 2023, https://www.indiatoday.in/india/story/making-sense-of-chinese-advanced-air-surveillance-radars-near-indian-border-2362084-2023-04-19

 

[161] Nidhi Rastogi et al., “Explaining RADAR features for detecting spoofing attacks in Connected Autonomous Vehicles”, p. 3, https://arxiv.org/pdf/2203.00150.pdf

[162] Rastogi et al., “Explaining RADAR features for detecting spoofing attacks in Connected Autonomous Vehicles”.

 

[163] “The basic direction of quasi-network and electricity integration operations”, PLA Daily, December 13, 2022, http://www.news.cn/mil/2022-12/13/c_1211709258.htm

 

[164] Col. Vinayak Bhat (Retd.), “China’s string of radars in Ladakh track every move of Indian Army”, ThePrint, August 25, 2017, https://theprint.in/opinion/chinas-string-radars-ladakh-track-every-move-indian-army/7976/

 

[165] Bhat (Retd.), “China’s string of radars in Ladakh track every move of Indian Army”.

[166] Bhat (Retd.), “China’s string of radars in Ladakh track every move of Indian Army”.

[167] Suyash Desai, “Assessing the Role of the PLA Southern Theater Command in a China-India Contingency”, China Brief, Vol. 23, Issue:3, The Jamestown Foundation, February 17, 2023, https://jamestown.org/program/assessing-the-role-of-the-pla-southern-theater-command-in-a-china-india-contingency/

 

[168] Desai, “Assessing the Role of the PLA Southern Theater Command in a China-India Contingency”.

 

[169] Ziyu Zhang, “China’s military structure: what are the theatre commands and service branches?”, South China Morning Post, August 15, 2021, https://www.scmp.com/news/china/military/article/3144921/chinas-military-structure-what-are-theatre-commands-and-service

 

[170] Jon Bateman, “Russia’s Wartime Operations in Ukraine: Military Impacts, Influences and Implications”, p. 13

 

[171] Both retired senior officer and serving officer made this point in an interview with the author.

 

[172] Author interview with senior IA officer and serving officer.

 

[173] Author interview with serving IA officer.

 

[174] Author interview with serving IA officer.

 

[175] I want to thank an expert for this point who requested anonymity.

 

[176] The author thanks the Dr. Manoj Joshi and Dr. Rajeswari Pillai Rajagopalan for this point.

 

[177] 2022 Annual Report to Congress: U.S.-China Economic and Security Review Commission, pp. 438-441.

 

[178] Although this piece does not say so, but it can be inferred. Mowthorpe, “Space resilience and the importance of multiple orbits”.

 

[179] Kania and Costello, “Seizing the commanding heights: the PLA Strategic Support Force in Chinese military power”, p. 29

[180] See Charles Hooper comments in Evan A. Feigenbaum and Charles Hooper, “What the Chinese Army Is Learning From Russia’s Ukraine War”, Carnegie Endowment for International Peace, Washington D.C., July 21, 2022, https://carnegieendowment.org/2022/07/21/what-chinese-army-is-learning-from-russia-s-ukraine-war-pub-87552

 

[181] Feigenbaum and Hooper, “What the Chinese Army Is Learning From Russia’s Ukraine War”.

 

[182] Rajat Pandit, “Government sets stage for integrated military commands, introduces bill for inter-services organisations”, The Times of India, March 16, 2023, https://timesofindia.indiatimes.com/india/government-sets-stage-for-integrated-military-commands-introduces-bill-for-inter-services-organisations/articleshow/98673712.cms?from=mdr

 

[183] Lt. Colonel Poshuk Ahluwalia, “Limited Wars Under Conditions of Informationisation and Capability Development”, Pinnacle – The ARTRAC Journal, Vol. 18, 2019, p. 59.

 

[184] An expert reviewer of this paper requested anonymity made this point.

 

[185] Author interview with retired General officer of Indian Army.

[186] Author interview with retired General officer of Indian Army.

[187] This point was made by both serving and retired IA officers to the author.

 

[188] “Indian Army raising new units to counter China, Pak in cyber warfare: Report”, Hindustan Times, April 27, 2023, https://www.hindustantimes.com/india-news/indian-army-raising-new-units-to-counter-china-pakistan-in-cyber-warfare-reports-101682581848934.html

[189] A cyber expert did state to this author that without defensive cyber security for network defence, you cannot have capabilities geared for offensive missions. In many ways offence is built on strong defence.

 

[190] This was underlined to the author by both serving and retired Indian Army officers to the author. See also “India moves ahead with creation of theatre commands for integrated war-fighting”, The Economic Times, June 18, 2023, https://economictimes.indiatimes.com/news/defence/india-moves-ahead-with-creation-of-theatre-commands-for-integrated-war-fighting/articleshow/101078591.cms?from=mdr

 

[191] “As theatre commands take shape, Lok Sabha clears Inter-Services Organisation Bill”, The Hindu, August 4, 2023, https://www.thehindu.com/news/national/as-theatre-commands-take-shape-parliament-clears-inter-services-bill/article67157616.ece

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